१. हिन्दू कुल का गोत्र धरती में एक बीज बोने के बाद वह बीज अपनी जड़ें बनाता है, फिर धीरे धीरे बड़ा होता है और उस पर ढेर सारी टहनियां और पत्ते लगते हैं। हिन्दू कुल का गोत्र सिद्धांत भी कुछ इसी प्रकार का है। ऐतिहासिक रूप से हिन्दू धर्म में सबसे पहले कुछ ऋषियों का चुनाव किया गया था।
२. आने वाला वंश इन ऋषियों के आधार पर आगे इनके वंशज स्थापित किए गए, जो आज युगों से इस रीति को आगे बढ़ा रहे हैं। संस्कृत में गोत्र शब्द उपस्थित नहीं है परंतु इसके स्थान पर गोष्ठ मिला है, जिसका अर्थ एक पवित्र गाय से सम्बन्धित है। गोत्र शब्द को दो हिस्सों में विभाजित करके समझाया गया है।
३. शास्त्रों में गोत्र ‘गो’ का मतलब है ‘गाय’ और शेष्ठ शब्द ‘त्र’ का अर्थ है शाला। पाणिनीकी अष्टाध्यायी में गोत्र की एक परिभाषा भी मौजूद है, ‘अपात्यम पौत्रप्रभ्रति गोत्रम्’, अर्थात 'गोत्र शब्द का अर्थ है बेटे के बेटे के साथ शुरू होने वाली (एक साधु की) संतान्। इस प्रकार से प्राचीन काल से एक ही गोत्र के भीतर होने वाले लड़के और लड़की का एक-दूसरे से भाई-बहन का रिश्ता माना जाता है।
४. गोत्र एक होने पर विवाह नहीं क्योंकि उनके पूर्वज एक ही हैं, इसीलिए वह सगे तो नहीं, लेकिन मूल रूप से भाई बहन ही हुए। इसीलिए गोत्र सिद्धांत के अंतर्गत एक ही गोत्र के लड़के या लड़की का विवाह करने की मनाही होती है। इस विषय पर सामाजिक रूप से काफी गर्मागर्मी का माहौल बना रहता है, क्योंकि हमारी आज की पीढ़ी इन तथ्यों को महज ‘दकियानूसी बातें’ बताती है।
५. विज्ञान भी सहमत परंतु जब विज्ञान ही इसकी पैरवी करने लगे, तो भी क्या नौजवान पीढ़ी इसका समर्थन नहीं करेगी? इसमें कोई दो राय नहीं कि आज का युग तथ्यों के आधार पर बातें करता है। किसी देश की चाहे पूरी जनसंख्या ना ही सही, परंतु उसका एक बड़ा भाग ऐसी बातों पर जरूर सहमत होता है जो वैज्ञानिक प्रणाली से तथ्यों की सही परिभाषा दे।
६. लेकिन नौजवान पीढ़ी मानेगी? यदि हम आप से यह कहें कि आज विज्ञान ने भी यह मान लिया है कि यदि एक ही गोत्र के एक लड़के और लड़की का विवाह कर दिया जाए, तो यह ना केवल सामाजिक बल्कि मानसिक एवं स्वास्थ्य के संदर्भ से भी गलत साबित होता है। इसे समझने के लिए सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि किसी इंसान को उसका गोत्र हासिल कैसे होता है?
७. आठ ऋषि अति प्राचीन काल से गोत्र सिद्धांत की शुरुआत ब्राह्मण गोत्र से हुई थी। इस ब्राह्मण गोत्र के अंतर्गत 8 ऋषियों का चुनाव हुआ जिसमें से पहले सात सप्तर्षि थे और आठवें भारद्वाज ऋषि थे। यदि नामावली की जाए तो यह आठ ऋषि इस प्रकार हैं; अंगिरस, अत्रि, गौतम, कश्यप, भृगु, वशिष्ठ, कुत्स एवं भारद्वाज ऋषि।
८. आधार हैं ये ऋषि उपरोक्त आठ ऋषियों को ‘गोत्रकरिन’ भी कहा जाता है। हिन्दू धर्म में इन गोत्र के आधार पर ही विवाह करने की मान्यता है। एक जैसे गोत्र के लड़का एवं लड़की को भाई-बहन का दर्जा हासिल है। शास्त्रों में एक समान गोत्र में विवाह ना करने के विभिन्न कारण हैं, जिसमें से कुछ मर्यादाओं एवं अन्य कारण वंश रीति को सही रूप से आगे बढ़ाने से सम्बन्धित हैं।
९. तीन पीढ़ियों का गोत्र मिलान क्या आप जानते हैं कि हिन्दू विवाह में किस प्रकार से गोत्र को पहचानने की गणना की जाती है? एक लड़का लड़की की शादी के लिए सिर्फ विवाह के लायक लड़के लड़की का गोत्र ही नहीं मिलाया जाता, बल्कि मां और दादी का भी गोत्र मिलाते हैं। इसका अर्थ है कि तीन पीढ़ियों में कोई भी गोत्र समान नहीं होना चाहिए तभी शादी तय की जाती है।
१०. नयापन नहीं परंतु यदि गोत्र समान हैं तो विवाह ना करने की सलाह दी जाती है। हिन्दू शास्त्रों में एक गोत्र में विवाह करने पर प्रतिबंध इसलिए लगाया गया क्योंकि यह मान्यता है कि एक ही गोत्र या कुल में विवाह होने पर दंपत्ति की संतान अनुवांशिक दोष के साथ उत्पन्न होती है। ऐसे दंपत्तियों की संतान में एक सी विचारधारा, पसंद, व्यवहार आदि में कोई नयापन नहीं होता।
११. एक भी अलग हुआ तो यहां एक और बात ध्यान देने योग्य है कि यदि लड़का और लड़की का गोत्र अलग अलग है तब भी कई बार विवाह करने के मनाही दी जाती है, जिसका कारण है उनके ऊपर की किसी पीढ़ी के गोत्र का मिलान हो जाना। यदि लड़का लड़की के माता पिता या दादा दादी का गोत्र एक जैसा निकले, तब भी विवाह ना करने को कहा जाता है।
१२. क्रोमोसोम का महत्व यह तो हैं शास्त्रीय तथ्य, परंतु विज्ञान भी आज कुछ इसी प्रकार के तर्क दे रहा है। एक मानवीय शरीर में कुछ गुणसूत्र (क्रोमोसोम) पाए जाते हैं। यह दो प्रकार के होते हैं, ‘एक्स’(X) क्रोमोसोम तथा ‘वाय’(Y) क्रोमोसोम। विज्ञान कहता है कि एक ही गोत्र के सभी मर्दों में वाय(Y) क्रोमोसोम एक जैसा ही होता है।
१३. संतान में कमी इसी तरह से एक ही गोत्र की सभी स्त्रियों में भी एक्स(X) क्रोमोसोम एक जैसा होता है। तो यदि एक ही गोत्र के लड़का एवं लड़की की शादी कर दी जाए तो उनकी संतान कुछ कमियों के साथ पैदा होती है। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार एक संतान को अपना गोत्र अपने पिता से ही हासिल होता है, परंतु मलयालम और तेलुगु भाषी समुदायों में संतान का गोत्र उसकी मां के मुताबिक तय किया जाता है।
१४. स्त्री है पति पर निर्भर लेकिन ऐसी अवधारणा क्यों है? क्यों एक बच्चे को उसके पिता का गोत्र या पिता का ही आखिरी नाम हासिल होता है? माता का क्यों नहीं? और क्यों शादी के बाद महिलाएं अपना पुराना गोत्र या पुराना आखिरी नाम छोड़ नए गोत्र को अपनाती हैं? वह उसी गोत्र के साथ अपनी सारी ज़िंदगी क्यों नहीं बिता सकतीं?
१५. शरीर में 23 क्रोमोसोम इसका जवाब आगे की पंक्तियों में आपको हासिल हो सकता है। जैसा कि उपरोक्त लाइनों में बताया गया था कि एक मानवीय शरीर में कुछ क्रोमोसोम शामिल होते हैं। एक शरीर में 23 क्रोमोसोम होते हैं। एक बच्चे को जन्म के बाद अपने माता पिता दोनों से ही बराबर के क्रोमोसोम मिलते हैं।
१६. सेक्स क्रोमोसोम इसका मतलब उसे 46 क्रोमोसोम हासिल होते हैं। इन सभी क्रोमोसोम में से एक खास क्रोमोसोम होता है ‘सेक्स क्रोमोसोम’, जो यह निश्चित करता है कि पैदा होने वाले बच्चे का लिंग ‘मादा’ है या ‘पुरुष’। संभोग के दौरान प्रत्येक इंसान में एक खास क्रोमोसोम की उत्पत्ति होती है।
१७. एक्स एक्स(XX) या एक्स(XY) वाय? यदि संभोग के दौरान बनने वाले ‘सेल्स’ एक्स एक्स(XX) सेक्स क्रोमोसोम का जोड़ा बनाते हैं, तो लड़की पैदा होती है। इसके विपरीत यदि एक्स वाय(XY) सेक्स क्रोमोसोम बनता है, तो लड़का पैदा होगा। एक मां द्वारा केवल एक्स(X) सेक्स क्रोमोसोम ही दिया जाता है। एक पिता ही है जो एक्स (X)और वाय (Y)दोनों सेक्स क्रोमोसोम देने की क्षमता रखता है।
१८. बच्चे का लिंग(पुत्र या पुत्री) यह समाज में एक गलत अवधारणा है कि यदि लड़की पैदा हो तो इसमें मां की गलती है। पिता ही आने वाले बच्चे के लिंग(पुत्र या पुत्री) के लिए जिम्मेदार होता है। लेकिन बच्चे का लिंग(पुत्र या पुत्री) क्या हो इसका चुनाव एक पिता के हाथ में भी नहीं है। यह एक प्राकृतिक प्रतिक्रिया है।
१९. पिता का सेक्स क्रोमोसोम खैर यहां निष्कर्ष यह निकलता है कि यदि लड़का होगा तो उसे अपना सेक्स क्रोमोसोम पिता से हासिल होता है। परंतु एक लड़की अपना सेक्स क्रोमोसोम माता पिता दोनों से हासिल करती है। एक बच्चा यदि लड़का हो तो उसे अपना सेक्स क्रोमोसोम केवल अपने पिता से ही हासिल होता है क्योंकि उसका वाय(Y) क्रोमोसोम उसे कोई और नहीं दे सकता।
२०. किससे मिलता है सेक्स क्रोमोसोम लेकिन एक लड़की को अपना सेक्स क्रोमोसोम उसकी मां और उसकी मां की भी मां से हासिल होता है। इसे वैज्ञानिक भाषा में ‘क्रासओवर’ भी कहा जाता है। इस सारे वैज्ञानिक खेल में एक ‘वाय(Y)’ सेक्स क्रोमोसोम ऐसा है, जो कहीं ना कहीं कम पड़ जाता है।
२१. वाय सेक्स क्रोमोसोम यह वाय(Y) सेक्स क्रोमोसोम कभी भी एक महिला को हासिल नहीं होता है। इस वाय (Y)क्रोमोसोम का गोत्र से काफी गहरा सम्बन्ध है। यदि कोई अंगरस गोत्र से है तो उसका वाय(Y) क्रोमोसोम हजारों वर्ष पीछे से चलकर आया है, जो सीधा ऋषि अंगरस से सम्बन्धित है।
२२. भारद्वाज गोत्र इसके साथ ही यदि व्यक्ति का गोत्र भारद्वाज है जिसके साथ गोत्र परिवार (अंगिरस, बृहस्पत्य, भारद्वाज) भी जुड़े हैं, तो उसका वाय(Y) क्रोमोसोम वर्षों पीछे से अंगिरस से बृहस्पत्य और फिर ब्रहस्पत्य से भारद्वाज में बदलकर आया है। यहां समझने योग्य बात यह है कि केवल वाय(Y) क्रोमोसोम ही ऐसा है जो गोत्र परिवारों को एक आधार प्रदान करता है।
२३. पति का गोत्र इसीलिए यह माना जाता है कि एक स्त्री का खुद का कोई गोत्र नहीं होता। उसका गोत्र वही है जो उसके पति का गोत्र है। उनमें वाय(Y) क्रोमोसोम की अनुपस्थिति उन्हें अपने पति के गोत्र को अपनाने के लिए विवश करती है।
24. समान गोत्र और सपिंड गोत्र में विवाह वर्जित है।
साभार सत्य सनातन Reposted
*क्या आपको अपने गोत्र की असली शक्ति का पता है?*
*न कोई अनुष्ठान। न कोई अंधविश्वास। यह आपका प्राचीन कोड है।*
*इस पूरे थ्रेड को ऐसे पढ़िए जैसे आपका अतीत इसी पर निर्भर करता हो।*
*गोत्र आपका उपनाम नहीं है। यह आपकी आध्यात्मिक डीएनए है।*
आइए जानते हैं सबसे अजीब बात क्या है?
*हम में से ज्यादातर लोग यह भी नहीं जानते कि हमारा गोत्र क्या है।*
*हम सोचते हैं यह तो बस वो लाइन है जो पंडितजी पूजा में बोलते हैं। लेकिन ये उससे कहीं ज़्यादा है।*
*गोत्र का मतलब है — आप किस ऋषि के मन से जुड़े हुए हैं।*
*खून से नहीं। बल्कि विचार, ऊर्जा, तरंग और ज्ञान से।*
*हर हिंदू आध्यात्मिक रूप से किसी एक ऋषि से जुड़ा हुआ है। वो ऋषि आपके बौद्धिक पूर्वज हैं। उनका ज्ञान, उनका मानसिक स्वरूप, उनकी आंतरिक ऊर्जा — ये सब आप में प्रवाहित होती है।*
*गोत्र का मतलब जाति नहीं है।*
आजकल लोग इसे गड़बड़ा देते हैं।
*गोत्र का ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र से कोई लेना-देना नहीं है। यह जातियों से पहले, उपनामों से पहले, यहाँ तक कि राजाओं से भी पहले से है।*
*यह सबसे प्राचीन पहचान प्रणाली थी — शक्ति नहीं, ज्ञान के आधार पर।*
*हर किसी का गोत्र होता था — यहां तक कि ऋषि भी अपने सच्चे शिष्यों को गोत्र देते थे। यह सीख के बल पर अर्जित होता था।*
*गोत्र कोई लेबल नहीं है। यह एक आध्यात्मिक विरासत की मोहर है।*
*हर गोत्र एक ऋषि से आता है — एक सुपरमाइंड से।*
मान लीजिए आपका गोत्र वशिष्ठ है।
*तो इसका मतलब आपके पूर्वज ऋषि वशिष्ठ थे — वही जिन्होंने भगवान राम और राजा दशरथ को मार्गदर्शन दिया था।*
*इसी तरह, भारद्वाज गोत्र?*
*तो आप उस ऋषि से जुड़े हैं जिन्होंने वेदों के बड़े भाग लिखे और योद्धाओं व विद्वानों को प्रशिक्षित किया।*
*कुल मिलाकर 49 प्रमुख गोत्र हैं। हर एक ऐसे ऋषि से जुड़ा है जो खगोल- शास्त्री, चिकित्सक, योद्धा, मंत्र विशेषज्ञ या प्रकृति वैज्ञानिक थे।*
*बुज़ुर्ग एक ही गोत्र में विवाह क्यों मना करते थे?*
*अब आती है वो बात जो स्कूल में नहीं पढ़ाई जाती*:-
*प्राचीन भारत में गोत्र का उपयोग जेनेटिक लाइन (वंशानुक्रम) को ट्रैक करने के लिए किया जाता था।*
*गोत्र पितृवंश से चलता है अर्थात् पुत्र ऋषि की वंशरेखा को आगे बढ़ाता है।*
*इसलिए यदि एक ही गोत्र के दो व्यक्ति विवाह करें, तो वे आनुवंशिक रूप से भाई-बहन जैसे होते हैं। ऐसे बच्चों में मानसिक और शारीरिक दोष होने की संभावना रहती है।*
*गोत्र प्रणाली = प्राचीन भारतीय डीएनए विज्ञान।*
*और हमें ये हज़ारों साल पहले पता था — पश्चिमी विज्ञान के जेनेटिक्स से पहले।*
*गोत्र = आपका मानसिक प्रोग्रामिंग।*
अब इसे निजी बनाते हैं।
*कुछ लोग जन्म से विचारशील होते हैं। कुछ में गहरी आध्यात्मिक भूख होती है। कुछ को प्रकृति में शांति मिलती है। कुछ स्वाभाविक नेता या सत्य-साधक होते हैं।*
क्यों?
*क्योंकि आपके गोत्र ऋषि का मन अभी भी आपकी प्रवृत्तियों को आकार देता है।*
*जैसे आपका मन आज भी उसी ऋषि की तरंगों से ट्यून है — जैसे वह सोचते, महसूस करते, प्रार्थना करते और शिक्षा देते थे।*
*यदि आपका गोत्र किसी योद्धा ऋषि से है, तो आपमें साहस की भावना होगी।यदि वह किसी चिकित्सक ऋषि से है, तो आप आयुर्वेद या चिकित्सा की ओर आकर्षित होंगे।*
यह कोई संयोग नहीं है — यह गहरी प्रोग्रामिंग है।
*गोत्र का उपयोग शिक्षा को व्यक्तिगत बनाने में होता था। प्राचीन गुरुकुलों में सबको एक जैसा नहीं पढ़ाया जाता था।*
*गुरु का पहला प्रश्न होता था* — *बेटा, तुम्हारा गोत्र क्या है? क्यों? क्योंकि इससे पता चलता था कि छात्र किस तरह से सीखता है। कौन सी विद्या उसके लिए उपयुक्त है। कौन से मंत्र उसकी ऊर्जा से मेल खाते हैं।*
*अत्रि गोत्र का छात्र ध्यान और मंत्र में प्रशिक्षित होता।कश्यप गोत्र का छात्र आयुर्वेद में गहराई तक जाता।*
*गोत्र सिर्फ पहचान नहीं था — यह सीखने की शैली और जीवन पथ था।*
*अंग्रेजों ने इसका मज़ाक उड़ाया। बॉलीवुड ने हँसी बनाई। और हम भूल गए।*
*जब अंग्रेज आए, उन्होंने इस प्रणाली को अंधविश्वास कहा।*
*वे गोत्र को समझ नहीं सके — इसलिए उसे बकवास बता दिया।*
*बॉलीवुड ने फिर मजाक बनाया। पंडितजी फिर गोत्र पूछ रहे हैं! — जैसे यह कोई बेकार पुरानी बात हो।*
*और धीरे-धीरे, हमने अपने दादाजी - दादीजी या नानाजी - नानीजी से पूछना बंद कर दिया। हमने अपने बच्चों को बताना छोड़ दिया।*
सिर्फ 100 साल में, 10,000 साल पुरानी व्यवस्था गायब हो रही है।
*उन्होंने इसे मारा नहीं। हमने इसे मरने दिया।*
*यदि आप अपना गोत्र नहीं जानते — आपने एक नक्शा खो दिया है।*
*कल्पना कीजिए कि आप एक प्राचीन शाही परिवार के सदस्य हैं — लेकिन अपना उपनाम भी नहीं जानते।*
यही गंभीरता है।
*आपका गोत्र आपके पूर्वजों का जीपीएस है — जो आपको मार्ग दिखाता है:*
*सही मंत्र, सही अनुष्ठान, सही ऊर्जा उपचार, सही आध्यात्मिक मार्ग, विवाह में सही मेल। इसके बिना, हम अपने ही धर्म में अंधे होकर चल रहे हैं।*
*गोत्र की परंपराएँ "सिर्फ दिखावा" नहीं थीं।*
*जब पंडित जी पूजा में आपका गोत्र बोलते हैं — वो सिर्फ औपचारिकता नहीं कर रहे। वो आपको ऋषि की ऊर्जा से जोड़ रहे हैं। आपकी आध्यात्मिक वंश परंपरा को बुला रहे हैं। ताकि वह साक्षी बने और आशीर्वाद दे।*
*इसीलिए संकल्प में गोत्र बोलना महत्वपूर्ण है — जैसे कहा जा रहा हो।*
*मैं, भारद्वाज ऋषि का वंशज, पूर्ण आत्म - जागरूकता के साथ ईश्वर से सहायता मांगता हूँ।*
यह सुंदर है। पवित्र है। और सच्चा है।
*अपने गोत्र को फिर से जानिए — इससे पहले कि बहुत देर हो जाए। अपने माता-पिता से पूछिए। अपने दादा-दादी या नाना-नानी से पूछिए। ज़रूरत हो तो शोध कीजिए। लेकिन इस हिस्से को जाने बिना न जिएं।*
*इसे लिख लीजिए। अपने बच्चों को बताइए। गर्व से कहिए।*
*आप सिर्फ 1990 या 2000 में जन्मे कोई आम व्यक्ति नहीं हैं। आप एक अनंत ज्वाला के वाहक हैं, जिसे हजारों साल पहले किसी ऋषि ने प्रज्वलित किया था।*
*आप उस कहानी का अभी तक का अंतिम अध्याय हैं — जो महाभारत, रामायण, यहां तक कि समय की गिनती शुरू होने से भी पहले शुरू हुई थी।*
*आपका गोत्र आपकी आत्मा का भुलाया हुआ पासवर्ड है।*
*आज के युग में हम वाई-फाई पासवर्ड याद रखते हैं, ईमेल लॉगिन्स, नेटफ्लिक्स कोड…लेकिन हम अपना सबसे प्राचीन पासकोड भूल जाते हैं — अपना गोत्र।*
*वह एक शब्द, एक पूरी धारा खोल सकता है — पूर्वजों का ज्ञान, मानसिक प्रवृत्तियाँ, कर्मिक स्मृतियाँ, यहां तक कि आपकी आध्यात्मिक कमज़ोरियाँ और ताकतें।*
*यह सिर्फ एक लेबल नहीं — एक चाबी है। आप या तो इसका उपयोग करते हैं… या इसे खो देते हैं।*
*महिलाएं विवाह के बाद अपना गोत्र "खोती" नहीं हैं — वे उसे चुपचाप संभालती हैं।*
*बहुत लोग मानते हैं कि महिलाएं विवाह के बाद अपना गोत्र बदल देती हैं। लेकिन सनातन धर्म बहुत सूक्ष्म है।*
*श्राद्ध जैसे अनुष्ठानों में भी, स्त्री का गोत्र उसके पिता के वंश से लिया जाता है। क्यों? क्योंकि गोत्र वाई - क्रोमोसोम (पुरुष वंश) से चलता है।*
*स्त्रियाँ उस ऊर्जा को धारण करती हैं, लेकिन आनुवंशिक रूप से आगे नहीं बढ़ातीं।*
*इसलिए नहीं — स्त्री का गोत्र विवाह के बाद समाप्त नहीं होता। वह उसमें जीवित रहता है।*
*देवता भी गोत्र नियमों का पालन करते थे। रामायण में जब भगवान श्रीराम और सीता का विवाह हुआ — तब भी उनके गोत्र की जाँच की गई थी।*
*राम: इक्ष्वाकु वंश, वशिष्ठ गोत्र*
*सीता: जनक की पुत्री, कश्यप गोत्र वंश*
*उन्होंने सिर्फ प्रेम के नाम पर विवाह नहीं किया। दिव्य रूपों ने भी धर्म का पालन किया।*
*यह प्रणाली कितनी पवित्र थी — और आज भी है।*
गोत्र और प्रारब्ध कर्म का गहरा संबंध है
*क्या कभी ऐसा लगा है कि कुछ आदतें, प्रवृत्तियाँ, इच्छाएँ — बचपन से ही आपके अंदर हैं?*
*यह आपके प्रारब्ध कर्म का हिस्सा हो सकता है — जो इस जीवन में फल देने लगे हैं।*
और गोत्र इस पर प्रभाव डालता है।
*हर ऋषि की अपनी कर्मिक प्रवृत्तियाँ थीं। आप, उनकी ऊर्जा को लेकर, उन्हीं कर्मों की ओर आकर्षित हो सकते हैं — जब तक आप उसे तोड़ने का संकल्प न लें।*
*गोत्र जानना = अपने कर्म पथ को समझना और शुद्ध करना।*
*हर गोत्र का अपना देवता और बीज मंत्र होता है। गोत्र सिर्फ मानसिक वंश नहीं हैं — ये विशिष्ट देवताओं और बीज मंत्रों से जुड़े होते हैं, जो आपकी आत्मा की आवृत्ति से मेल खाते हैं।*
*कभी ऐसा लगा कि कोई मंत्र आप पर असर नहीं कर रहा?*
*शायद आप अपने फोन को गलत चार्जर से चार्ज करने की कोशिश कर रहे हैं।*
*सही मंत्र + आपका गोत्र = आध्यात्मिक करंट का प्रवाह।*
*यह जानना आपकी साधना, ध्यान और उपचार की शक्ति को 10 गुना बढ़ा सकता है।*
*जब भ्रम हो — गोत्र आपकी आंतरिक दिशा है*
*आज की दुनिया में हर कोई खोया हुआ है।*
*जीवन का उद्देश्य, रिश्ते, करियर, धर्म — हर चीज़ में उलझन है।*
*लेकिन यदि आप चुपचाप बैठें और अपने गोत्र, अपने ऋषि, अपनी पूर्वज प्रवृत्तियों पर ध्यान करें — तो आंतरिक स्पष्टता मिलने लगेगी।*
*आपके ऋषि उलझन में नहीं जीते थे। उनका विचार प्रवाह अभी भी आपकी नसों में बह रहा है।*
*उससे जुड़ जाइए — और खोए हुए नहीं, जड़ों से जुड़े महसूस करने लगेंगे।*
*हर महान हिंदू राजा गोत्र का सम्मान करता था*
*चंद्रगुप्त मौर्य से लेकर हर्षवर्धन, शिवाजी महाराज तक — सभी राजाओं के पास राजगुरु होते थे, जो कुल, गोत्र और संप्रदाय का रिकॉर्ड रखते थे।*
*यहां तक कि राजनीति और युद्ध के निर्णय भी गोत्र संबंधों, मेलों और रक्त संबंधों के आधार पर होते थे।*
*क्यों? क्योंकि गोत्र को नजरअंदाज करना ऐसा था जैसे अपनी रीढ़ को नजरअंदाज करना।*
*गोत्र प्रणाली ने महिलाओं को शोषण से बचाया।*
*इसे “पिछड़ा” कहने से पहले समझिए — प्राचीन काल में गोत्र का पालन अनाचार को रोकने, कुल की मर्यादा बनाए रखने और लड़कियों की गरिमा की रक्षा के लिए होता था।*
*यहां तक कि यदि कोई महिला युद्ध में बिछड़ जाए या अगवा हो जाए — तो उसका गोत्र उसे पहचानने और सम्मान दिलाने में मदद करता था।*
*यह पिछड़ापन नहीं — यह दूरदर्शी व्यवस्था थी। गोत्र = ब्रह्मांडीय खेल में आपकी भूमिका।*
*हर ऋषि केवल ध्यान नहीं करते थे — वे ब्रह्मांड के लिए कर्तव्य निभाते थे।*
*कोई शरीर के उपचार पर केंद्रित था। कोई ग्रह-नक्षत्रों को समझ रहा था।*
*कोई धर्म की रक्षा कर रहा था, कोई न्याय प्रणाली बना रहा था।*
*आपका गोत्र उस उद्देश्य की गूंज अपने अंदर रखता है।*
*यदि जीवन में खालीपन लगता है — शायद आपने अपनी ब्रह्मांडीय भूमिका को भूल दिया है।*
गोत्र खोजिए। आप खुद को पा लेंगे।
*यह धर्म की बात नहीं — यह पहचान की बात है।*
*चाहे कोई नास्तिक हो… या सिर्फ आध्यात्मिक… या फिर अनुष्ठानों से उलझन में — गोत्र फिर भी मायने रखता है।*
*क्योंकि यह धर्म से परे है।यह पूर्वज चेतना है। यह भारत की वह गहराई है, जो ज़बरदस्ती नहीं करती — बस चुपचाप मार्गदर्शन देती है।*
*आपको इसमें “विश्वास” करने की ज़रूरत नहीं। बस इसे याद रखने की ज़रूरत है।*
अंतिम शब्द:
*आपका नाम भले ही आधुनिक हो।*
*आपकी जीवनशैली भले ही वैश्विक हो।*
*लेकिन आपका गोत्र समय से परे है।*
*और यदि आप इसे अनदेखा करते हैं, तो आप उस नदी की तरह हैं — जो नहीं जानती कि वह कहाँ से आई है।*
*गोत्र आपका “अतीत” नहीं है यह भविष्य के ज्ञान का पासवर्ड है।*
*इसे खोलिए — इससे पहले कि अगली पीढ़ी भूल जाए कि ऐसा कुछ था भी*।
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गौत्र और वंश....
गुणसूत्र वंश का वाहक
हमारे धार्मिक ग्रंथ और हमारी सनातन हिन्दू परंपरा के अनुसार पुत्र (बेटा) को कुलदीपक अथवा वंश को आगे बढ़ाने वाला माना जाता है.....
अर्थात.... उसे गोत्र का वाहक माना जाता है.
क्या आप जानते हैं कि.... आखिर क्यों होता है कि सिर्फ पुत्र को ही वंश का वाहक माना जाता है ????
असल में इसका कारण.... पुरुष प्रधान समाज अथवा पितृसत्तात्मक व्यवस्था नहीं ....
बल्कि, हमारे जन्म लेने की प्रक्रिया है.
अगर हम जन्म लेने की प्रक्रिया को सूक्ष्म रूप से देखेंगे तो हम पाते हैं कि......
एक स्त्री में गुणसूत्र (Chromosomes) XX होते है.... और, पुरुष में XY होते है.
इसका मतलब यह हुआ कि.... अगर पुत्र हुआ (जिसमें XY गुणसूत्र है)... तो, उस पुत्र में Y गुणसूत्र पिता से ही आएगा क्योंकि माता में तो Y गुणसूत्र होता ही नही है
और.... यदि पुत्री हुई तो (xx गुणसूत्र) तो यह गुणसूत्र पुत्री में माता व् पिता दोनों से आते है.
XX गुणसूत्र अर्थात पुत्री
अब इस XX गुणसूत्र के जोड़े में एक X गुणसूत्र पिता से तथा दूसरा X गुणसूत्र माता से आता है.
तथा, इन दोनों गुणसूत्रों का संयोग एक गांठ सी रचना बना लेता है... जिसे, Crossover कहा जाता है.
जबकि... पुत्र में XY गुणसूत्र होता है.
अर्थात.... जैसा कि मैंने पहले ही बताया कि.... पुत्र में Y गुणसूत्र केवल पिता से ही आना संभव है क्योंकि माता में Y गुणसूत्र होता ही नहीं है.
और.... दोनों गुणसूत्र अ-समान होने के कारण.... इन दोनों गुणसूत्र का पूर्ण Crossover नहीं... बल्कि, केवल 5 % तक ही Crossover होता है.
और, 95 % Y गुणसूत्र ज्यों का त्यों (intact) ही बना रहता है.
तो, इस लिहाज से महत्त्वपूर्ण Y गुणसूत्र हुआ.... क्योंकि, Y गुणसूत्र के विषय में हम निश्चिंत है कि.... यह पुत्र में केवल पिता से ही आया है.
बस..... इसी Y गुणसूत्र का पता लगाना ही गौत्र प्रणाली का एकमात्र उदेश्य है जो हजारों/लाखों वर्षों पूर्व हमारे ऋषियों ने जान लिया था.
इस तरह ये बिल्कुल स्पष्ट है कि.... हमारी वैदिक गोत्र प्रणाली, गुणसूत्र पर आधारित है अथवा Y गुणसूत्र को ट्रेस करने का एक माध्यम है.
उदाहरण के लिए .... यदि किसी व्यक्ति का गोत्र शांडिल्य है तो उस व्यक्ति में विद्यमान Y गुणसूत्र शांडिल्य ऋषि से आया है.... या कहें कि शांडिल्य ऋषि उस Y गुणसूत्र के मूल हैं.
अब चूँकि.... Y गुणसूत्र स्त्रियों में नहीं होता है इसीलिए विवाह के पश्चात स्त्रियों को उसके पति के गोत्र से जोड़ दिया जाता है.
वैदिक/ हिन्दू संस्कृति में एक ही गोत्र में विवाह वर्जित होने का मुख्य कारण यह है कि एक ही गोत्र से होने के कारण वह पुरुष व् स्त्री भाई-बहन कहलाए क्योंकि उनका पूर्वज (ओरिजिन) एक ही है..... क्योंकि, एक ही गोत्र होने के कारण...
दोनों के गुणसूत्रों में समानता होगी.
आज की आनुवंशिक विज्ञान के अनुसार भी..... यदि सामान गुणसूत्रों वाले दो व्यक्तियों में विवाह हो तो उनके संतान... आनुवंशिक विकारों का साथ उत्पन्न होगी क्योंकि.... ऐसे दंपत्तियों की संतान में एक सी विचारधारा, पसंद, व्यवहार आदि में कोई नयापन नहीं होता एवं ऐसे बच्चों में रचनात्मकता का अभाव होता है.
विज्ञान द्वारा भी इस संबंध में यही बात कही गई है कि सगौत्र शादी करने पर अधिकांश ऐसे दंपत्ति की संतानों में अनुवांशिक दोष अर्थात् मानसिक विकलांगता, अपंगता, गंभीर रोग आदि जन्मजात ही पाए जाते हैं.
शास्त्रों के अनुसार इन्हीं कारणों से सगौत्र विवाह पर प्रतिबंध लगाया था.
यही कारण था कि शारीरिक बिषमता के कारण अग्रेज राज परिवार में आपसी विवाह बन्द हुए।
जैसा कि हम जानते हैं कि.... पुत्री में 50% गुणसूत्र माता का और 50% पिता से आता है.
फिर, यदि पुत्री की भी पुत्री हुई तो.... वह डीएनए 50% का 50% रह जायेगा...
और फिर.... यदि उसके भी पुत्री हुई तो उस 25% का 50% डीएनए रह जायेगा.
इस तरह से सातवीं पीढ़ी में पुत्री जन्म में यह % घटकर 1% रह जायेगा.
अर्थात.... एक पति-पत्नी का ही डीएनए सातवीं पीढ़ी तक पुनः पुनः जन्म लेता रहता है....और, यही है "सात जन्मों के साथ का रहस्य".
लेकिन..... यदि संतान पुत्र है तो .... पुत्र का गुणसूत्र पिता के गुणसूत्रों का 95% गुणों को अनुवांशिकी में ग्रहण करता है और माता का 5% (जो कि किन्हीं परिस्थितियों में एक % से कम भी हो सकता है) डीएनए ग्रहण करता है...
और, यही क्रम अनवरत चलता रहता है.
जिस कारण पति और पत्नी के गुणों युक्त डीएनए बारम्बार जन्म लेते रहते हैं.... अर्थात, यह जन्म जन्मांतर का साथ हो जाता है.
इन सब में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि.... माता पिता यदि कन्यादान करते हैं तो इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि वे कन्या को कोई वस्तु समकक्ष समझते हैं...
बल्कि, इस दान का विधान इस निमित किया गया है कि दूसरे कुल की कुलवधू बनने के लिये और उस कुल की कुल धात्री बनने के लिये, उसे गोत्र मुक्त होना चाहिए.
पुत्रियां..... आजीवन डीएनए मुक्त हो नहीं सकती क्योंकि उसके भौतिक शरीर में वे डीएनए रहेंगे ही, इसलिये मायका अर्थात माता का रिश्ता बना रहता है.
शायद यही कारण है कि..... विवाह के पश्चात लड़कियों के पिता को घर को ""मायका"" ही कहा जाता है.... "'पिताका"" नहीं.
क्योंकि..... उसने अपने जन्म वाले गोत्र अर्थात पिता के गोत्र का त्याग कर दिया है....!
और चूंकि..... कन्या विवाह के बाद कुल वंश के लिये रज का दान कर मातृत्व को प्राप्त करती है... इसीलिए, हर विवाहित स्त्री माता समान पूजनीय हो जाती है.
आश्चर्य की बात है कि.... हमारी ये परंपराएं हजारों-लाखों साल से चल रही है जिसका सीधा सा मतलब है कि हजारों लाखों साल पहले.... जब पश्चिमी देशों के लोग नंग-धड़ंग जंगलों में रह रहा करते थे और चूहा ,बिल्ली, कुत्ता वगैरह मारकर खाया करते थे....
उस समय भी हमारे पूर्वज ऋषि मुनि.... इंसानी शरीर में गुणसूत्र के विभक्तिकरण को समझ गए थे.... और, हमें गोत्र सिस्टम में बांध लिया था.
इस बातों से एक बार फिर ये स्थापित होता है कि....
हमारा सनातन हिन्दू धर्म पूर्णतः वैज्ञानिक है....
बस, हमें ही इस बात का भान नहीं है.
असल में..... अंग्रेजों ने जो हमलोगों के मन में जो कुंठा बोई है..... उससे बाहर आकर हमें अपने पुरातन विज्ञान को फिर से समझकर उसे अपनी नई पीढियों को बताने और समझाने की जरूरत है.
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