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Thursday 4 April 2024

वंश और गोत्रादि का मानव जीवन में महत्व

*समान गोत्र में शादी से संतान में आते हैं अनुवांशिक दोष? जानिए क्या है वैज्ञानिक सच?*

१. हिन्दू कुल का गोत्र धरती में एक बीज बोने के बाद वह बीज अपनी जड़ें बनाता है, फिर धीरे धीरे बड़ा होता है और उस पर ढेर सारी टहनियां और पत्ते लगते हैं। हिन्दू कुल का गोत्र सिद्धांत भी कुछ इसी प्रकार का है। ऐतिहासिक रूप से हिन्दू धर्म में सबसे पहले कुछ ऋषियों का चुनाव किया गया था।

२. आने वाला वंश इन ऋषियों के आधार पर आगे इनके वंशज स्थापित किए गए, जो आज युगों से इस रीति को आगे बढ़ा रहे हैं। संस्कृत में गोत्र शब्द उपस्थित नहीं है परंतु इसके स्थान पर गोष्ठ मिला है, जिसका अर्थ एक पवित्र गाय से सम्बन्धित है। गोत्र शब्द को दो हिस्सों में विभाजित करके समझाया गया है।

३. शास्त्रों में गोत्र ‘गो’ का मतलब है ‘गाय’ और शेष्ठ शब्द ‘त्र’ का अर्थ है शाला। पाणिनीकी अष्टाध्यायी में गोत्र की एक परिभाषा भी मौजूद है, ‘अपात्यम पौत्रप्रभ्रति गोत्रम्’, अर्थात 'गोत्र शब्द का अर्थ है बेटे के बेटे के साथ शुरू होने वाली (एक साधु की) संतान्। इस प्रकार से प्राचीन काल से एक ही गोत्र के भीतर होने वाले लड़के और लड़की का एक-दूसरे से भाई-बहन का रिश्ता माना जाता है।

४. गोत्र एक होने पर विवाह नहीं क्योंकि उनके पूर्वज एक ही हैं, इसीलिए वह सगे तो नहीं, लेकिन मूल रूप से भाई बहन ही हुए। इसीलिए गोत्र सिद्धांत के अंतर्गत एक ही गोत्र के लड़के या लड़की का विवाह करने की मनाही होती है। इस विषय पर सामाजिक रूप से काफी गर्मागर्मी का माहौल बना रहता है, क्योंकि हमारी आज की पीढ़ी इन तथ्यों को महज ‘दकियानूसी बातें’ बताती है।

५. विज्ञान भी सहमत परंतु जब विज्ञान ही इसकी पैरवी करने लगे, तो भी क्या नौजवान पीढ़ी इसका समर्थन नहीं करेगी? इसमें कोई दो राय नहीं कि आज का युग तथ्यों के आधार पर बातें करता है। किसी देश की चाहे पूरी जनसंख्या ना ही सही, परंतु उसका एक बड़ा भाग ऐसी बातों पर जरूर सहमत होता है जो वैज्ञानिक प्रणाली से तथ्यों की सही परिभाषा दे।

६. लेकिन नौजवान पीढ़ी मानेगी? यदि हम आप से यह कहें कि आज विज्ञान ने भी यह मान लिया है कि यदि एक ही गोत्र के एक लड़के और लड़की का विवाह कर दिया जाए, तो यह ना केवल सामाजिक बल्कि मानसिक एवं स्वास्थ्य के संदर्भ से भी गलत साबित होता है। इसे समझने के लिए सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि किसी इंसान को उसका गोत्र हासिल कैसे होता है?

७. आठ ऋषि अति प्राचीन काल से गोत्र सिद्धांत की शुरुआत ब्राह्मण गोत्र से हुई थी। इस ब्राह्मण गोत्र के अंतर्गत 8 ऋषियों का चुनाव हुआ जिसमें से पहले सात सप्तर्षि थे और आठवें भारद्वाज ऋषि थे। यदि नामावली की जाए तो यह आठ ऋषि इस प्रकार हैं; अंगिरस, अत्रि, गौतम, कश्यप, भृगु, वशिष्ठ, कुत्स एवं भारद्वाज ऋषि।

८. आधार हैं ये ऋषि उपरोक्त आठ ऋषियों को ‘गोत्रकरिन’ भी कहा जाता है। हिन्दू धर्म में इन गोत्र के आधार पर ही विवाह करने की मान्यता है। एक जैसे गोत्र के लड़का एवं लड़की को भाई-बहन का दर्जा हासिल है। शास्त्रों में एक समान गोत्र में विवाह ना करने के विभिन्न कारण हैं, जिसमें से कुछ मर्यादाओं एवं अन्य कारण वंश रीति को सही रूप से आगे बढ़ाने से सम्बन्धित हैं।

९. तीन पीढ़ियों का गोत्र मिलान क्या आप जानते हैं कि हिन्दू विवाह में किस प्रकार से गोत्र को पहचानने की गणना की जाती है? एक लड़का लड़की की शादी के लिए सिर्फ विवाह के लायक लड़के लड़की का गोत्र ही नहीं मिलाया जाता, बल्कि मां और दादी का भी गोत्र मिलाते हैं। इसका अर्थ है कि तीन पीढ़ियों में कोई भी गोत्र समान नहीं होना चाहिए तभी शादी तय की जाती है।

१०. नयापन नहीं परंतु यदि गोत्र समान हैं तो विवाह ना करने की सलाह दी जाती है। हिन्दू शास्त्रों में एक गोत्र में विवाह करने पर प्रतिबंध इसलिए लगाया गया क्योंकि यह मान्यता है कि एक ही गोत्र या कुल में विवाह होने पर दंपत्ति की संतान अनुवांशिक दोष के साथ उत्पन्न होती है। ऐसे दंपत्तियों की संतान में एक सी विचारधारा, पसंद, व्यवहार आदि में कोई नयापन नहीं होता।

११. एक भी अलग हुआ तो यहां एक और बात ध्यान देने योग्य है कि यदि लड़का और लड़की का गोत्र अलग अलग है तब भी कई बार विवाह करने के मनाही दी जाती है, जिसका कारण है उनके ऊपर की किसी पीढ़ी के गोत्र का मिलान हो जाना। यदि लड़का लड़की के माता पिता या दादा दादी का गोत्र एक जैसा निकले, तब भी विवाह ना करने को कहा जाता है।

१२. क्रोमोसोम का महत्व यह तो हैं शास्त्रीय तथ्य, परंतु विज्ञान भी आज कुछ इसी प्रकार के तर्क दे रहा है। एक मानवीय शरीर में कुछ गुणसूत्र (क्रोमोसोम) पाए जाते हैं। यह दो प्रकार के होते हैं, ‘एक्स’(X) क्रोमोसोम तथा ‘वाय’(Y) क्रोमोसोम। विज्ञान कहता है कि एक ही गोत्र के सभी मर्दों में वाय(Y) क्रोमोसोम एक जैसा ही होता है।

१३. संतान में कमी इसी तरह से एक ही गोत्र की सभी स्त्रियों में भी एक्स(X) क्रोमोसोम एक जैसा होता है। तो यदि एक ही गोत्र के लड़का एवं लड़की की शादी कर दी जाए तो उनकी संतान कुछ कमियों के साथ पैदा होती है। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार एक संतान को अपना गोत्र अपने पिता से ही हासिल होता है, परंतु मलयालम और तेलुगु भाषी समुदायों में संतान का गोत्र उसकी मां के मुताबिक तय किया जाता है।

१४. स्त्री है पति पर निर्भर लेकिन ऐसी अवधारणा क्यों है? क्यों एक बच्चे को उसके पिता का गोत्र या पिता का ही आखिरी नाम हासिल होता है? माता का क्यों नहीं? और क्यों शादी के बाद महिलाएं अपना पुराना गोत्र या पुराना आखिरी नाम छोड़ नए गोत्र को अपनाती हैं? वह उसी गोत्र के साथ अपनी सारी ज़िंदगी क्यों नहीं बिता सकतीं?

१५. शरीर में 23 क्रोमोसोम इसका जवाब आगे की पंक्तियों में आपको हासिल हो सकता है। जैसा कि उपरोक्त लाइनों में बताया गया था कि एक मानवीय शरीर में कुछ क्रोमोसोम शामिल होते हैं। एक शरीर में 23 क्रोमोसोम होते हैं। एक बच्चे को जन्म के बाद अपने माता पिता दोनों से ही बराबर के क्रोमोसोम मिलते हैं।

१६. सेक्स क्रोमोसोम इसका मतलब उसे 46 क्रोमोसोम हासिल होते हैं। इन सभी क्रोमोसोम में से एक खास क्रोमोसोम होता है ‘सेक्स क्रोमोसोम’, जो यह निश्चित करता है कि पैदा होने वाले बच्चे का लिंग ‘मादा’ है या ‘पुरुष’। संभोग के दौरान प्रत्येक इंसान में एक खास क्रोमोसोम की उत्पत्ति होती है।

१७. एक्स एक्स(XX) या एक्स(XY) वाय? यदि संभोग के दौरान बनने वाले ‘सेल्स’ एक्स एक्स(XX) सेक्स क्रोमोसोम का जोड़ा बनाते हैं, तो लड़की पैदा होती है। इसके विपरीत यदि एक्स वाय(XY) सेक्स क्रोमोसोम बनता है, तो लड़का पैदा होगा। एक मां द्वारा केवल एक्स(X) सेक्स क्रोमोसोम ही दिया जाता है। एक पिता ही है जो एक्स (X)और वाय (Y)दोनों सेक्स क्रोमोसोम देने की क्षमता रखता है।

१८. बच्चे का लिंग(पुत्र या पुत्री) यह समाज में एक गलत अवधारणा है कि यदि लड़की पैदा हो तो इसमें मां की गलती है। पिता ही आने वाले बच्चे के लिंग(पुत्र या पुत्री) के लिए जिम्मेदार होता है। लेकिन बच्चे का लिंग(पुत्र या पुत्री) क्या हो इसका चुनाव एक पिता के हाथ में भी नहीं है। यह एक प्राकृतिक प्रतिक्रिया है।

१९. पिता का सेक्स क्रोमोसोम खैर यहां निष्कर्ष यह निकलता है कि यदि लड़का होगा तो उसे अपना सेक्स क्रोमोसोम पिता से हासिल होता है। परंतु एक लड़की अपना सेक्स क्रोमोसोम माता पिता दोनों से हासिल करती है। एक बच्चा यदि लड़का हो तो उसे अपना सेक्स क्रोमोसोम केवल अपने पिता से ही हासिल होता है क्योंकि उसका वाय(Y) क्रोमोसोम उसे कोई और नहीं दे सकता।

२०. किससे मिलता है सेक्स क्रोमोसोम लेकिन एक लड़की को अपना सेक्स क्रोमोसोम उसकी मां और उसकी मां की भी मां से हासिल होता है। इसे वैज्ञानिक भाषा में ‘क्रासओवर’ भी कहा जाता है। इस सारे वैज्ञानिक खेल में एक ‘वाय(Y)’ सेक्स क्रोमोसोम ऐसा है, जो कहीं ना कहीं कम पड़ जाता है।

२१. वाय सेक्स क्रोमोसोम यह वाय(Y) सेक्स क्रोमोसोम कभी भी एक महिला को हासिल नहीं होता है। इस वाय (Y)क्रोमोसोम का गोत्र से काफी गहरा सम्बन्ध है। यदि कोई अंगरस गोत्र से है तो उसका वाय(Y) क्रोमोसोम हजारों वर्ष पीछे से चलकर आया है, जो सीधा ऋषि अंगरस से सम्बन्धित है।

२२. भारद्वाज गोत्र इसके साथ ही यदि व्यक्ति का गोत्र भारद्वाज है जिसके साथ गोत्र परिवार (अंगिरस, बृहस्पत्य, भारद्वाज) भी जुड़े हैं, तो उसका वाय(Y) क्रोमोसोम वर्षों पीछे से अंगिरस से बृहस्पत्य और फिर ब्रहस्पत्य से भारद्वाज में बदलकर आया है। यहां समझने योग्य बात यह है कि केवल वाय(Y) क्रोमोसोम ही ऐसा है जो गोत्र परिवारों को एक आधार प्रदान करता है।

२३. पति का गोत्र इसीलिए यह माना जाता है कि एक स्त्री का खुद का कोई गोत्र नहीं होता। उसका गोत्र वही है जो उसके पति का गोत्र है। उनमें वाय(Y) क्रोमोसोम की अनुपस्थिति उन्हें अपने पति के गोत्र को अपनाने के लिए विवश करती है।
24. समान गोत्र और सपिंड गोत्र में विवाह वर्जित है। 
साभार सत्य सनातन Reposted


गौत्र और वंश....
गुणसूत्र वंश का वाहक

हमारे धार्मिक ग्रंथ और हमारी सनातन हिन्दू परंपरा के अनुसार पुत्र (बेटा) को कुलदीपक अथवा वंश को आगे बढ़ाने वाला माना जाता है..... 
अर्थात.... उसे गोत्र का वाहक माना जाता है.

क्या आप जानते हैं कि.... आखिर क्यों होता है कि सिर्फ पुत्र को ही वंश का वाहक माना जाता है ????

असल में इसका कारण.... पुरुष प्रधान समाज अथवा पितृसत्तात्मक व्यवस्था नहीं .... 
बल्कि, हमारे जन्म लेने की प्रक्रिया है.

अगर हम जन्म लेने की प्रक्रिया को सूक्ष्म रूप से देखेंगे तो हम पाते हैं कि......

एक स्त्री में गुणसूत्र (Chromosomes) XX होते है.... और, पुरुष में XY होते है. 

इसका मतलब यह हुआ कि.... अगर पुत्र हुआ (जिसमें XY गुणसूत्र है)... तो, उस पुत्र में Y गुणसूत्र पिता से ही आएगा क्योंकि माता में तो Y गुणसूत्र होता ही नही है

और.... यदि पुत्री हुई तो (xx गुणसूत्र) तो यह गुणसूत्र पुत्री में माता व् पिता दोनों से आते है.

XX गुणसूत्र अर्थात पुत्री

अब इस XX गुणसूत्र के जोड़े में एक X गुणसूत्र पिता से तथा दूसरा X गुणसूत्र माता से आता है. 

तथा, इन दोनों गुणसूत्रों का संयोग एक गांठ सी रचना बना लेता है... जिसे, Crossover कहा जाता है.

जबकि... पुत्र में XY गुणसूत्र होता है.

अर्थात.... जैसा कि मैंने पहले ही बताया कि.... पुत्र में Y गुणसूत्र केवल पिता से ही आना संभव है क्योंकि माता में Y गुणसूत्र होता ही नहीं है.

और.... दोनों गुणसूत्र अ-समान होने के कारण.... इन दोनों गुणसूत्र का पूर्ण Crossover नहीं... बल्कि, केवल 5 % तक ही Crossover होता है.

और, 95 % Y गुणसूत्र ज्यों का त्यों (intact) ही बना रहता है.

तो, इस लिहाज से महत्त्वपूर्ण Y गुणसूत्र हुआ.... क्योंकि, Y गुणसूत्र के विषय में हम निश्चिंत है कि.... यह पुत्र में केवल पिता से ही आया है.

बस..... इसी Y गुणसूत्र का पता लगाना ही गौत्र प्रणाली का एकमात्र उदेश्य है जो हजारों/लाखों वर्षों पूर्व हमारे ऋषियों ने जान लिया था.

इस तरह ये बिल्कुल स्पष्ट है कि.... हमारी वैदिक गोत्र प्रणाली, गुणसूत्र पर आधारित है अथवा Y गुणसूत्र को ट्रेस करने का एक माध्यम है.

उदाहरण के लिए .... यदि किसी व्यक्ति का गोत्र शांडिल्य है तो उस व्यक्ति में विद्यमान Y गुणसूत्र शांडिल्य ऋषि से आया है.... या कहें कि शांडिल्य ऋषि उस Y गुणसूत्र के मूल हैं.

अब चूँकि.... Y गुणसूत्र स्त्रियों में नहीं होता है इसीलिए विवाह के पश्चात स्त्रियों को उसके पति के गोत्र से जोड़ दिया जाता है.

वैदिक/ हिन्दू संस्कृति में एक ही गोत्र में विवाह वर्जित होने का मुख्य कारण यह है कि एक ही गोत्र से होने के कारण वह पुरुष व् स्त्री भाई-बहन कहलाए क्योंकि उनका पूर्वज (ओरिजिन) एक ही है..... क्योंकि, एक ही गोत्र होने के कारण...
दोनों के गुणसूत्रों में समानता होगी.

आज की आनुवंशिक विज्ञान के अनुसार भी..... यदि सामान गुणसूत्रों वाले दो व्यक्तियों में विवाह हो तो उनके संतान... आनुवंशिक विकारों का साथ उत्पन्न होगी क्योंकि.... ऐसे दंपत्तियों की संतान में एक सी विचारधारा, पसंद, व्यवहार आदि में कोई नयापन नहीं होता एवं ऐसे बच्चों में रचनात्मकता का अभाव होता है.

विज्ञान द्वारा भी इस संबंध में यही बात कही गई है कि सगौत्र शादी करने पर अधिकांश ऐसे दंपत्ति की संतानों में अनुवांशिक दोष अर्थात् मानसिक विकलांगता, अपंगता, गंभीर रोग आदि जन्मजात ही पाए जाते हैं.
शास्त्रों के अनुसार इन्हीं कारणों से सगौत्र विवाह पर प्रतिबंध लगाया था.
यही कारण था कि शारीरिक बिषमता के कारण अग्रेज राज परिवार में आपसी विवाह बन्द हुए। 
जैसा कि हम जानते हैं कि.... पुत्री में 50% गुणसूत्र माता का और 50% पिता से आता है.

फिर, यदि पुत्री की भी पुत्री हुई तो.... वह डीएनए 50% का 50% रह जायेगा...
और फिर.... यदि उसके भी पुत्री हुई तो उस 25% का 50% डीएनए रह जायेगा.

इस तरह से सातवीं पीढ़ी में पुत्री जन्म में यह % घटकर 1% रह जायेगा.

अर्थात.... एक पति-पत्नी का ही डीएनए सातवीं पीढ़ी तक पुनः पुनः जन्म लेता रहता है....और, यही है "सात जन्मों के साथ का रहस्य".

लेकिन..... यदि संतान पुत्र है तो .... पुत्र का गुणसूत्र पिता के गुणसूत्रों का 95% गुणों को अनुवांशिकी में ग्रहण करता है और माता का 5% (जो कि किन्हीं परिस्थितियों में एक % से कम भी हो सकता है) डीएनए ग्रहण करता है...
और, यही क्रम अनवरत चलता रहता है.

जिस कारण पति और पत्नी के गुणों युक्त डीएनए बारम्बार जन्म लेते रहते हैं.... अर्थात, यह जन्म जन्मांतर का साथ हो जाता है.

इन सब में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि.... माता पिता यदि कन्यादान करते हैं तो इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि वे कन्या को कोई वस्तु समकक्ष समझते हैं...

बल्कि, इस दान का विधान इस निमित किया गया है कि दूसरे कुल की कुलवधू बनने के लिये और उस कुल की कुल धात्री बनने के लिये, उसे गोत्र मुक्त होना चाहिए. 

पुत्रियां..... आजीवन डीएनए मुक्त हो नहीं सकती क्योंकि उसके भौतिक शरीर में वे डीएनए रहेंगे ही, इसलिये मायका अर्थात माता का रिश्ता बना रहता है.

शायद यही कारण है कि..... विवाह के पश्चात लड़कियों के पिता को घर को ""मायका"" ही कहा जाता है.... "'पिताका"" नहीं.

क्योंकि..... उसने अपने जन्म वाले गोत्र अर्थात पिता के गोत्र का त्याग कर दिया है....!

और चूंकि..... कन्या विवाह के बाद कुल वंश के लिये रज का दान कर मातृत्व को प्राप्त करती है... इसीलिए, हर विवाहित स्त्री माता समान पूजनीय हो जाती है.

आश्चर्य की बात है कि.... हमारी ये परंपराएं हजारों-लाखों साल से चल रही है जिसका सीधा सा मतलब है कि हजारों लाखों साल पहले.... जब पश्चिमी देशों के लोग नंग-धड़ंग जंगलों में रह रहा करते थे और चूहा ,बिल्ली, कुत्ता वगैरह मारकर खाया करते थे....

उस समय भी हमारे पूर्वज ऋषि मुनि.... इंसानी शरीर में गुणसूत्र के विभक्तिकरण को समझ गए थे.... और, हमें गोत्र सिस्टम में बांध लिया था.

इस बातों से एक बार फिर ये स्थापित होता है कि....  
हमारा सनातन हिन्दू धर्म पूर्णतः वैज्ञानिक है....

बस, हमें ही इस बात का भान नहीं है.

असल में..... अंग्रेजों ने जो हमलोगों के मन में जो कुंठा बोई है..... उससे बाहर आकर हमें अपने पुरातन विज्ञान को फिर से समझकर उसे अपनी नई पीढियों को बताने और समझाने की जरूरत है.
*गोत्र के महत्व को वैज्ञानिक तरीके से समझे अज्ञानता की हठधर्मिता न करे*