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Friday 29 March 2024

ROHILA THE BRAND

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 में भी रोहिले राजपूतों ने अपना योगदान दिया, ग्वालियर के किले में रानी लक्ष्मीबाई को हजारों की संख्या में रोहिले राजपूत मिले, इस महायज्ञ में स्त्री पुरुष सभी ने अपने गहने, धन आदि एकत्र कर झांसी की रानी के साथ अंग्रेजों के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए सम्राट बहादुरशाह- जफर तक पहुंचाए। अंग्रेजों ने ढूंढ-ढूंढ कर उन्हें काट डाला जिससे रोहिले राजपूतों ने अज्ञातवास की शरण ली। राजपूतों की हार के प्रमुख कारण थे हाथियों का प्रयोग, सामंत प्रणाली व आपसी मतभेद, ऊंचे व भागीदार कुल का भेदभाव (छोटे व बड़े की भावना) आदि। सम्वत 825 में बप्पा रावल चित्तौड़ से विधर्मियों को खदेड़ता हुआ ईरान तक गया। बप्पा रावल से समर सिंह तक 400 वर्ष होते हैं, गह्लौतों का ही शासन रहा। इनकी 24 शाखाएं हैं। जिनके 16 गोत्र (बप्पा रावल के वंशधर) रोहिले राजपूतों में पाए जाते हैं। चितौड़ के राणा समर सिंह (1193 ई.) की रानी पटना की राजकुमारी थी इसने 9 राजा, 1 रावत और कुछ रोहिले साथ लेकर मौ. गोरी के गुलाम कुतुबद्दीन का आक्रमण रोका और उसे ऐसी पराजय दी कि कभी उसने चितौड़ की ओर नहीं देखा। रोहिला शब्द क्षेत्रजनित, गुणजनित व मूल पुरुष नाम-जनित है। यह गोत्र जाटों में भी रूहेला, रोहेला, रूलिया, रूहेल, रूहिल, रूहिलान नामों से पाया जाता है। रूहेला गोत्र जाटों में राजस्थान व उ. प्र. में पाया जाता है। रोहेला गोत्र के जाट जयपुर में बजरंग बिहार ओर ईनकम टैक्स कालोनी टौंक रोड में विद्यमान है। झुनझुन, सीकर, चुरू, अलवर, बाडमेर में भी रोहिला गोत्र के जाट विद्यमान हैं। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में रोहेला रोहल रोहिलान गोत्र के जाटों के बारह गाँव हैं। महाराष्ट्र में रूहिलान गोत्र के जाट वर्धा में केसर व खेड़ा गांव में विद्यमान हैं।रोहतक के पास रोहद आदि स्थानों पर रोहिल रूहिल रोहल रोहिल उपनाम के जाट विद्युमान है जो खुद को महाराज रोहा के वंशज बताते हैं। भिवानी में रोहिल उपनाम के जाट विद्यमान है।मुगल सम्राट अकबर ने भी राजपूत राजाओं को विजय प्राप्त करने के पश्चात् रोहिला-उपाधि से विभूषित किया था, जैसे राव, रावत, महारावल, राणा, महाराणा, रोहिल्ला, रहकवाल आदि।रोहिलखंड से विस्थापित रोहिला-राजपूत समाज, क्षत्रियों का वह परिवार है जो सरल ह्रदयी, परिश्रमी, राष्ट्रप्रेमी, स्वधर्मपरायण, स्वाभिमानी व वर्तमान में अधिकांश अज्ञातवास के कारण साधनविहीन है। 40 प्रतिशत कृषि कार्य से, 30 प्रतिशत श्रम के सहारे व 30 प्रतिशत व्यापार व लघु उद्योगों के सहारे जीवन यापन कर रहे हैं। इनके पूर्वजों ने हजारों वर्षों तक अपनी आन, मान, मर्यादा की रक्षा के लिए बलिदान दिए हैं और अनेको आक्रान्ताओं को रोके रखने में अपना सर्वस्व मिटाया है। गणराज्य व लोकतंत्रात्मक व्यवस्था को सजीव बनाये रखने की भावना के कारण वंश परंपरा के विरुद्ध रहे, करद राज्यों में भी स्वतंत्रता बनाये रखी। कठेहर रोहिलखण्ड की स्थापना से लेकर सल्तनत काल की उथल पुथल, मार काट, दमन चक्र तक लगभग आठ सौ वर्ष के शासन काल के पश्चात् 1857 के ग़दर के समय तक रोहिले राजपूतों ने राष्ट्रहित में बलिदान दिये हैं। क्रूर काल के झंझावातो से संघर्ष करते हुए क्षत्रियों का यह रोहिला परिवार बिखर गया है, इस समाज की पहचान के लिए भी आज स्पष्टीकरण देना पड़ता है। कैसा दुर्भाग्य है? यह क्षत्रिय वर्ग का। जो अपनी पहचान को भी टटोलना पड़ रहा है। परन्तु समय के चक्र में सब कुछ सुरक्षित है। इतिहास के दर्पण में थिरकते चित्र, बोलते हैं, अतीत झांकता है, सच सोचता है कि उसके होने के प्रमाण धुंधले-धुंधले से क्यों हैं? हे- क्षत्रिय तुम धन्य हो, पहचानों अपने प्रतिबिम्बों को –

क्षत्रिय एकता के बिगुल FOONK सब  _धुंधला _धुंधला छंटने दो।

हो akhand भारत के राजपुत्र, खण्ड खण्ड में न सभी को  batne   दो।।
संकलन
समय सिंह पुंडीर
प्रकाशित
क्षत्रिय आवाज मासिक पत्रिका
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा १८९७
*राजपूत विशेषांक*
02मई 2011ईस्वी


Sunday 24 March 2024

ROHILLA THE TITLE

रोहिल्ला उपाधि - शूरवीर, अदम्य - साहसी विशेष युद्ध कला में प्रवीण, उच्च कुलीन सेनानायको, और सामन्तों को उनके गुणों के अनुरूप क्षत्रिय वीरों को तदर्थ उपाधि से विभूषित किया जाता था - जैसे - रावत - महारावत, राणा, महाराणा, ठाकुर, नेगी, रावल, रहकवाल, रोहिल्ला, समरलछन्द, लखमीर,(एक लाख का नायक) आदि। इसी आधार पर उनके वंशज भी आजतक राजपूतों के सभी गोत्रों में पाए जाते हैं। "वभूव रोहिल्लद्व्यड्कों वेद शास्त्रार्थ पारग: । द्विज: श्री हरि चन्द्राख्य प्रजापति समो गुरू : ।।2।। ( बाउक का जोधपुर लेख ) - सन 837 ई. चैत्र सुदि पंचमी - हिंदी अर्थ - "वेद शास्त्र में पारंगत रोहिल्लाद्धि उपाधिधारी एक हरिश्चन्द्र नाम का ब्राह्मण था" जो प्रजापति के समान था हुआ ।।6।। ( गुज्जर गौरव मासिक पत्रिका - अंक 10, वर्ष ।।माह जौलाई 1991 पृष्ठ - 13) (राजपुताने का इतिहास पृष्ठ - 147) (इतिहास रोहिला - राजपूत पृष्ठ - 23) (प्राचीन भारत का इतिहास, राजपूत वंश, - कैलाश - प्रकाशन लखनऊ सन 1970 ई. पृष्ठ - 104 -105 - ) रोहिल्लद्व्यड्क रोहिल्लद्धि - अंक वाला या उपाधि वाला । सर्वप्रथम प्रतिहार शासक द्विज हरिश्चन्द्र को रोहिल्लद्धि उपाधि प्राप्त हुई । बाउक,प्रतिहार शासक विप्र हरिश्चन्द्र के पुत्र कवक और श्रीमति पदमनी का पुत्र था वह बड़ा पराक्रमी और नरसिंह वीर था। प्रतिहार एक पद है, किसी विशेष वर्ण का सूचक नही है। विप्र हरिश्चन्द्र प्रतिहार अपने बाहुबल से मांडौर दुर्ग की रक्षा करने वाला था, अदम्य साहस व अन्य किसी विशेष रोहिला शासक के प्रभावनुरूप ही रोहिल्लद्व्यड्क उपाधि को किसी आधार के बिना कोई भी व्यक्ति अपने नाम के साथ सम्बन्ध करने का वैधानिक रूप में अधिकारी नही हो सकता। उपरोक्त से स्पष्ट है कि बहुत प्राचीन काल से ही गुणकर्म के आधार पर क्षत्रिय उपाधि "रोहिल्ला" प्रयुक्त । प्रदत्त करने की वैधानिक व्यवस्था थी। जिसे हिन्दुआसूर्य - महाराजा पृथ्वीराज चौहान ने भी यथावत रखा। पृथ्वीराज चौहान की सेना में एक सौ रोहिल्ला - राजपूत सेना नायक थे । "पृथ्वीराज रासौ" - चहूँप्रान, राठवर, जाति पुण्डीर गुहिल्ला । बडगूजर पामार, कुरभ, जागरा, रोहिल्ला ।। इस कवित्त से स्पष्ट है । कि - प्राचीन - काल में रोहिला- क्षत्रियों का स्थान बहुत ऊँचा था। रोहिला रोहिल्ल आदि शब्द राजपुत्रों अथवा क्षत्रियों के ही द्योतक थे । इस कवित्त के प्रमाणिकता "आइने अकबरी", 'सुरजन चरिता' भी सिद्ध करते हैं । युद्ध में कमानी की तरह (रोह चढ़ाई करके) शत्रु सेना को छिन्न - भिन्न करने वाले को रहकवाल, रावल, रोहिल्ला, महाभट्ट कहा गया है। महाराज पृथ्वीराज चौहान की सेना में पांच गोत्रों के रावल थे - रावल - रोहिला रावल - सिन्धु रावल - घिलौत (गहलौत) रावल - काशव या कश्यप रावल - बलदया बल्द मुग़ल बादशाह अकबर ने भी बहादुरी की रोहिल्ला उपाधि को यथावत बनाए रखा जब अकबर की सेना दूसरे राज्यों को जीत कर आती थी तो अकबर अपनी सेना के सरदारों को,बहादुर जवानों बहादुरी के पदक (ख़िताब,उपाधि) देता था। एक बार जब महाराणा मान सिंह काबुल जीतकर वापिस आए तो अकबर ने उसके बाइस राजपूत सरदारों को यह ख़िताब दी (उपाधि से सम्मानित किया) बाई तेरा हर निरकाला रावत को - रावल जी चौमकिंग सरनाथा को - रावल झंड्कारा कांड्कड को - रोहिल्ला रावत मन्चारा - कांड्कड काम करन, निरकादास रावत को रावराज और रूहेलाल को रोहिला
गौरवशाली इतिहास के कुछ स्वर्णाक्षर (रोहिला क्षत्रिय) भारत वर्ष का क्षेत्रफल 42 ,02 ,500 वर्ग किमी था । रोहिला साम्राज्य 25 ,000 वर्ग किमी 10 ,000 वर्गमील में फैला हुआ था । रोहिला, राजपूतो का एक गोत्र , कबीला (परिवार) या परिजन- समूह है जो कठेहर - रोहिलखण्ड के शासक एंव संस्थापक थे |मध्यकालीन भारत में बहुत से राजपूत लडाको को रोहिला की उपाधि से विभूषित किया गया. उनके वंशज आज भी रोहिला परिवारों में पाए जाते हैं । रोहिले- राजपूत प्राचीन काल से ही सीमा- प्रांत, मध्य देश (गंगा- यमुना का दोआब), पंजाब, काश्मीर, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और बुंदेलखंड के कुछ भागों में शासन करते रहे हैं । जबकि मुस्लिम-रोहिला साम्राज्य अठारहवी शताब्दी में इस्लामिक दबाव के पश्चात् स्थापित हुआ. मुसलमानों ने इसे उर्दू में "रूहेलखण्ड" कहा और खुद को ये अफगान लोग रुहेला सरदार कहलाने लगे । सन 1702 से 1720 ई तक रोहिलखण्ड में रोहिले राजपूतो का शासन था(औरंगजेब के कमजोर पड़ते ही पुनः रोहिला राजपूतों ने रोहिलखंड को स्वतंत्र घोषित कर दिया था). जिसकी राजधानी बरेली थी । रोहिले राजपूतो के महान शासक "राजा इन्द्रगिरी" ने रोहिलखण्ड की पश्चिमी सीमा पर सहारनपुर में एक किला बनवाया,जिसे "प्राचीन रोहिला किला" कहा जाता है । सन 1801 ई में रोहिलखण्ड को अंग्रेजो ने अपने अधिकार में ले लिया था. हिन्दू रोहिले-राजपुत्रो द्वारा बनवाए गये इस प्राचीन रोहिला किला को 1806 से 1858 के मध्य कारागार में परिवर्तित कर दिया गया था । इसी प्राचीन- रोहिला- किला में आज सहारनपुर की जिला- कारागार है । "सहारन" राजपूतो का एक गोत्र है जो रोहिले राजपूतो में पाया जाता है. यह सूर्य वंश की एक प्रशाखा है जो राजा भरत के पुत्र तक्ष के वंशधरो से प्रचालित हुई थी । फिरोज तुगलक के आक्रमण के समय "थानेसर" (वर्तमान में हरियाणा में स्थित) का राजा "सहारन" ही था । दिल्ली में गुलाम वंश के समय रोहिलखण्ड की राजधानी "रामपुर" में राजा रणवीर सिंह कठेहरिया (काठी कोम, निकुम्भ वंश, सूर्यवंश रावी नदी के काठे से विस्थापित कठगणों के वंशधर) का शासन था । इसी रोहिले राजा रणवीर सिंह ने तुगलक के सेनापति नसीरुद्दीन चंगेज,बहराम वंश (नसीरुद्दीन महमूद) को हराया था. 'खंड' क्षत्रिय राजाओं से सम्बंधित है, जैसे भरतखंड, बुंदेलखंड, विन्धयेलखंड , रोहिलखंड, कुमायुखंड, उत्तराखंड आदि । प्राचीन भारत की केवल दो भाषाएँ संस्कृत व प्राकृत (सरलीकृत संस्कृत) थी । रोहिल प्राकृत और खंड संस्कृत के शब्द हैं जो क्षत्रिय राजाओं के प्रमाण हैं । इस्लामिक नाम है दोलताबाद, कुतुबाबाद, मुरादाबाद, जलालाबाद, हैदराबाद, मुबारकबाद, फैजाबाद, आदि । रोहिले राजपूतो की उपस्तिथि के प्रमाण हैं । योधेय गणराज्य के सिक्के, गुजरात का (1445 वि ) ' का शिलालेख (रोहिला मालदेव के सम्बन्ध में), मध्यदेश में स्थित रोहिलखंड रामपुर में राजा रणवीर सिंह के किले के खंडहर, रानी तारादेवी सती का मंदिर , पीलीभीत में राठौर रोहिलो (महिचा- प्रशाखा) की सतियों के सतियों के मंदिर, सहारनपुर का प्राचीन रोहिला किला, मंडोर का शिलालेख, " बड़ौत में स्तिथ " राजा रणवीर सिंह रोहिला मार्ग ",सहारनपुर में प्राचीन रोहिला किला के सामने स्थित सूर्य वंशी क्षत्रिय सम्राट कठेहर रोहिलखंड महाराजा रणवीर सिंह रोहिला चौक,।।
नगरे नगरे ग्रामै ग्रामै विलसन्तु संस्कृतवाणी । सदने - सदने जन - जन बदने , जयतु चिरं कल्याणी ।। जोधपुर का शिलालेख, प्रतिहार शासक हरीशचंद्र को मिली रोहिल्लाद्व्यंक की उपाधि, कई अन्य राजपूतो के वंशो को प्राप्त उपाधियाँ, 'पृथ्वीराज रासो', आल्हाखण्ड - काव्य और, सभी राजपूत वंशो में पाए जाने वाले प्रमुख गोत्र । अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा भारत द्वारा प्रकाशित पावन ग्रन्थ क्षत्रिय वंशाणर्व (रोहिले क्षत्रियों का राज्य रोहिलखण्ड का पूर्व नाम पांचाल व मध्यदेश), वर्तमान में अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा से अखिल भारतीय रो. क्ष. वि. परिषद को संबद्धता प्राप्त होना, वर्तमान में भी रोहिलखण्ड (संस्कृत भाषा में) क्षेत्र का नाम यथावत बने रहना, अंग्रेजो द्वारा भी उत्तर रेलवे को "रोहिलखण्ड - रेलवे" का नाम देना जो बरेली से देहरादून तक सहारनपुर होते हुए जाती थी, वर्तमान में लाखो की संख्या में पाए जाने वाले रोहिला-राजपूत, रोहिले-राजपूतों के सम्पूर्ण भारत में फैले हुए कई अन्य संगठन अखिल भारतीय स्तर पर 'राजपूत रत्न' रोहिला शिरोमणि डा. कर्णवीर सिंह द्वारा संगठित एक अखिल भारतीय रोहिला क्षत्रिय विकास परिषद (सम्बद्ध अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा) पंजीकरण संख्या - 545, आदि,अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के बहुत से रोहिला क्षत्रियों का आजीवन सदस्य और पदाधिकारी होना। 12. पानीपत की तीसरी लड़ाई (अब्दाली और मराठा वार में) रोहिले राजपूत- राजा गंगासहाय राठौर /गंगा सिंह महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत के नेतृत्व में मराठों की ओर से अफगान आक्रान्ता अहमदशाह अब्दाली व पठान नजीबदौला(रुहेला सरदार नजीब खान) के विरुद्ध लड़े व वीरगति पाई । इस मराठा युद्ध में लगभग एक हजार चार सौ रोहिले राजपूत वीरगति को प्राप्त हुए । (1761-ईसवी,दिन बुधवार, मकर सक्रांति,१४जनवरी .) (इतिहास -रोहिला-राजपूत द्वारा डॉक्टर के सी सेन पानीपत, और ,कलायत,हरियाणा में वर्तमान में स्थित शिला लेख और रानी सती रामप्यारी का स्मारक स्थल दर्शनीय है) 13. प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 में भी रोहिले राजपूतों ने अपना योगदान दिया, ग्वालियर के किले में रानी लक्ष्मीबाई को हजारों की संख्या में रोहिले राजपूत मिले, इस महायज्ञ में स्त्री पुरुष सभी ने अपने गहने धन आदि एकत्र कर झाँसी की रानी के साथ अंग्रेजो के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए सम्राट बहादुरशाह- जफर तक पहुँचाए । अंग्रेजों ने ढूँढ-ढूँढ कर उन्हें काट डाला और शूट एट साइट का नोटिस जारी किया जिससे रोहिले राजपूतों ने अज्ञातवास की शरण ली। 14. राजपूतों की हार के प्रमुख कारण थे हाथियों का प्रयोग, सामंत प्रणाली व आपसी मतभेद, ऊँचे व भागीदार कुल का भेदभाव (छोटे व बड़े की भावना) आदि। 15. सम्वत 825 में बप्पा रावल चित्तौड़ से विधर्मियों को खदेड़ता हुआ ईरान तक गया। बप्पा रावल से समर सिंह तक 400 वर्ष होते हैं, गह्लौतों का ही शासन रहा। इनकी 24 शाखाएँ हैं। जिनके 16 गोत्र (बप्पा रावल के वंशधर) रोहिले राजपूतों में पाए जाते हैं। 16. चितौड़ के राणा समर सिंह (1193 ई.) की रानी पटना की राजकुमारी थी इसने 9 राजा, 1 रावत और कुछ रोहिले साथ लेकर मौ. गोरी के गुलाम कुतुबद्दीन का आक्रमण रोका और उसे ऐसी पराजय दी कि कभी उसने चितौड़ की ओर नही देखा। 17. रोहिला शब्द क्षेत्रजनित, गुणजनित व 'मूल पुरुष' नाम-जनित है। यह गोत्र जाटों में भी रूहेला, रोहेला, रूलिया, रूहेल , रूहिल, रूहिलान नामों से पाया जाता है। 18. रूहेला गोत्र जाटों में राजस्थान व उ. प्र. में पाया जाता है। रोहेला गोत्र के जाट जयपुर में बजरंग बिहार ओर ईनकम टैक्स कालोनी टौंक रोड में विद्यमान है। झुनझुन, सीकर, चुरू, अलवर, बाडमेर में भी रोहिला गोत्र के जाट विद्यमान हैं । उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में रोहेला गोत्र के जाटों के बारह गाँव हैं। महाराष्ट्र में रूहिलान गोत्र के जाट वर्धा में केसर व खेड़ा गाँव में विद्यमान हैं। 19. मुगल सम्राट अकबर ने भी राजपूत राजाओं को विजय प्राप्त करने के पश्चात् रोहिला-उपाधि से विभूषित किया था, जैसे राव, रावत, महारावल, राणा, महाराणा, रोहिल्ला, रहकवाल आदि। 20. "रोहिला-राजपूत" समाज , क्षत्रियों का वह परिवार है जो सरल ह्रदयी, परिश्रमी,राष्ट्रप्रेमी,स्वधर्मपरायण, स्वाभिमानी व वर्तमान में अधिकांश बिखरा होने के कारण साधनविहीन है। 40 प्रतिशत कृषि कार्य से,30 प्रतिशत श्रम के सहारे व 30 प्रतिशत व्यापार व लघु उद्योगों के सहारे जीवन यापन कर रहे हैं। इनके पूर्वजो ने हजारों वर्षों तक अपनी आन, मान, मर्यादा की रक्षा के लिए बलिदान दिए हैं और अनेको आक्रान्ताओं को रोके रखने में अपना सर्वस्व मिटाया है । गणराज्य व लोकतंत्रात्मक व्यवस्था को सजीव बनाये रखने की भावना के कारण वंश परंपरा के विरुद्ध रहे, करद राज्यों में भी स्वतंत्रता बनाये रखी । कठेहर रोहिलखण्ड की स्थापना से लेकर सल्तनत काल की उथल पुथल, मार काट , दमन चक्र तक लगभग आठ सौ वर्ष के शासन काल के पश्चात् 1857 के ग़दर के समय तक रोहिले राजपूतों ने राष्ट्रहित में बलिदान दिये हैं। क्रूर काल के झंझावालों से संघर्ष करते हुए क्षत्रियों का यह 'रोहिला परिवार' बिखर गया है, इस समाज की पहचान के लिए भी आज स्पष्टीकरण देना पड़ता है। कैसा दुर्भाग्य है? यह क्षत्रिय वर्ग का। जो अपनी पहचान को भी टटोलना पड़ रहा है। परन्तु समय के चक्र में सब कुछ सुरक्षित है। इतिहास के दर्पण में थिरकते चित्र, बोलते हैं, अतीत झाँकता है, सच सोचता है कि उसके होने के प्रमाण धुंधले-धुंधले से क्यों हैं? हे- क्षत्रिय तुम धन्य हो, पहचानो अपने प्रतिबिम्बों को' - "क्षत्रिय एकता का बिगुल फूँक सब धुंधला धुंधला छंटने दो। हो अखंड भारत के राजपुत्र खण्ड खण्ड में न सबको बंटने दो ।।" 21. रोहिलखण्ड से विस्थापित इन रोहिला परिवारों में राजपूत परम्परा के कुछ प्रमुख गोत्र इस प्रकार पाए जाते हैं :- 
रोहिला, रोहित, रोहिल, रावल, द्रोहिया, रल्हन, रूहिलान, रौतेला , रावत यौधेय, योतिक, जोहिया, झोझे, पेशावरी पुण्डीर, पांडला, पंढेर, पुन्ड़ेहार, पुंढीर, पुंडाया चौहान, जैवर, जौडा, चाहल, चावड़ा, खींची, गोगद, गदाइया, सनावर, क्लानियां, चिंगारा, चाहड बालसमंद, चोहेल, चेहलान, बालदा, बछ्स (वत्स), बछेर, चयद, झझोड, चौपट, खुम्ब, जांघरा, जंगारा, झांझड निकुम्भ, कठेहरिया, कठौरा, कठैत, कलुठान, कठपाल, कठेडिया, कठड, काठी, कठ, पालवार राठौर, महेचा, महेचराना, रतनौता, बंसूठ जोली, जोलिए, बांकटे, बाटूदा, थाथी, कपोलिया, खोखर, अखनौरिया ,लोहमढ़े, मसानिया बुन्देला, उमट, ऊमटवाल भारतवंशी, भारती, गनान नाभावंशी,बटेरिया, बटवाल, बरमटिया परमार, जावडा, लखमरा, मूसला, मौसिल, भौंसले, बसूक, जंदडा, पछाड़, पंवारखा, ढेड, मौन तोमर, तंवर, मुदगल, देहलीवाल, किशनलाल, सानयाल, सैन, सनाढय गहलौत, कूपट, पछाड़, थापा, ग्रेवाल, कंकोटक, गोद्देय, पापडा, नथैड़ा, नैपाली, लाठिवाल, पानिशप, पिसोण्ड, चिरडवाल, नवल, चरखवाल, साम्भा, पातलेय, पातलीय, छन्द (चंड), क्षुद्रक,(छिन्ड, इन्छड़, नौछड़क), रज्जडवाल, बोहरा, जसावत, गौर, मलक, मलिक, कोकचे, काक कछवाहा, कुशवाहा, कोकच्छ, ततवाल, बलद, मछेर सिसौदिया, भरोलिया, बरनवाल, बरनपाल, बहारा
खुमाहड, अवन्ट, ऊँटवाल 
सिकरवार, रहकवाल, रायकवार, ममड, गोदे सोलंकी, गिलानिया, भुन, बुन, बघेला, ऊन, (उनयारिया) बडगूजर, सिकरवार, ममड़ा, पुडिया कश्यप, काशब, रावल, रहकवाल यदु, मेव, छिकारा, तैतवाल, भैनिवाल, उन्हड़, भाटटी बनाफरे, जादो, बागड़ी, सिन्धु, कालड़ा, सारन, छुरियापेड, लखमेरिया, चराड, जाखड़, सेरावत, देसवाल, पूडिया प्रमुख रोहिला क्षत्रिय शासक अंगार सैन - गांधार (वैदिक काल) अश्वकरण - ईसा पूर्व 326 (मश्कावती दुर्ग) अजयराव - स्यालकोट (सौकंल दुर्ग) ईसा पूर्व 326 प्रचेता - मलेच्छ संहारक शाशिगुप्त - साइरस के समकालीन सुभाग सैन - मौर्य साम्राज्य के समकालीन राजाराम शाह - 929 वि. रामपुर रोहिलखण्ड बीजराज - रोहिलखण्ड करण चन्द्र - रोहिलखण्ड विग्रह राज - रोहिलखण्ड - गंगापार कर स्रुघ्न जनपद (सुगनापुर) यमुना तक विस्तार दसवीं शताब्दी में सरसावा में किले का निर्माण पश्चिमी सीमा पर, यमुना द्वारा ध्वस्त टीले के रूप में नकुड़ रोड पर देखा जा सकता है। सावन्त सिंह - रोहिलखण्ड जगमाल - रोहिलखण्ड धिंगतराव - रोहिलखण्ड गोंकुल सिंह - रोहिलखण्ड महासहाय - रोहिलखण्ड त्रिलोक चन्द - रोहिलखण्ड रणवीर सिंह - रोहिलखण्ड सुन्दर पाल - रोहिलखण्ड नौरंग देव - रोहिलखण्ड सूरत सिंह - रोहिलखण्ड हंसकरण रहकवाल - पृथ्वीराज के सेनापति मिथुन देव रायकवार - ईसम सिंह पुण्डीर के मित्र थाना भवन शासक सहकरण, विजयराव - उपरोक्त राजा हतरा - हिसार जगत राय - बरेली मुकंदराज - बरेली 1567 ई. बुधपाल - बदायुं महीचंद राठौर - बदायुं बांसदेव - बरेली बरलदेव - बरेली राजसिंह - बरेली परमादित्य - बरेली न्यादरचन्द - बरेली राजा सहारन - थानेश्वर प्रताप राव खींची (चौहान वंश) - गागरोन राणा लक्ष्य सिंह - सीकरी रोहिला मालदेव - गुजरात जबर सिंह - सोनीपत रामदयाल महेचराना - क्लामथ गंगसहाय - महेचराना - क्लामथ 1761 ई. राणा प्रताप सिंह - कौराली (गंगोह) 1095 ई. नानक चन्द - अल्मोड़ा राजा पूरणचन्द - बुंदेलखंड राजा हंस ध्वज - हिसार व राजा हरचंद राजा बसंतपाल - रोहिलखण्ड व्रतुसरदार, सामंत वृतपाल 1193 ई. महान सिंह बडगूजर - बागपत 1184 ई. राजा यशकरण - अंधली गुणाचन्द - जयकरण - चरखी - दादरी राजा मोहनपाल देव - करोली राजारूप सैन - रोपड़ राजा महपाल पंवार - जीन्द राजा परपदेड पुंडीर - लाहौर राजा लखीराव - स्यालकोट राजा जाजा जी तोमर - दिल्ली खड़ग सिंह - रोहिलखण्ड लौदी के समकालीन राजा हरि सिंह - खिज्रखां के दमन का शिकार हुआ - कुमायुं की पहाड़ियों में अज्ञातवास की शरण ली राजा इन्द्रगिरी (रोहिलखण्ड) (इन्द्रसेन) - सहारनपुर में प्राचीन रोहिला किला बनवाया । रोहिला क्षत्रिय वंश भास्कर लेखक आर. आर. राजपूत मुरसेन अलीगढ से प्रस्तुत राजा बुद्ध देव रोहिला - 1787 ई., सिंधिया व जयपुर के कछवाहो के खेड़ा व तुंगा के मैदान में हुए युद्ध का प्रमुख पात्र । (राय कुँवर देवेन्द्र सिंह जी राजभाट, तुंगा (राजस्थान)
रोहिल्ला उपाधि - शूरवीर, अदम्य - साहसी विशेष युद्ध कला में प्रवीण, उच्च कुलीन सेनानायको, और सामन्तों को उनके गुणों के अनुरूप क्षत्रिय वीरों को तदर्थ उपाधि से विभूषित किया जाता था - जैसे - रावत - महारावत, राणा, महाराणा, ठाकुर, नेगी, रावल, रहकवाल, रोहिल्ला, समरलछन्द, लखमीर,(एक लाख का नायक) आदि। इसी आधार पर उनके वंशज भी आजतक राजपूतों के सभी गोत्रों में पाए जाते हैं। "वभूव रोहिल्लद्व्यड्कों वेद शास्त्रार्थ पारग: । द्विज: श्री हरि चन्द्राख्य प्रजापति समो गुरू : ।।2।। ( बाउक का जोधपुर लेख ) - सन 837 ई. चैत्र सुदि पंचमी - हिंदी अर्थ - "वेद शास्त्र में पारंगत रोहिल्लाद्धि उपाधिधारी एक हरिश्चन्द्र नाम का ब्राह्मण था" जो प्रजापति के समान था हुआ ।।6।। ( गुज्जर गौरव मासिक पत्रिका - अंक 10, वर्ष ।।माह जौलाई 1991 पृष्ठ - 13) (राजपुताने का इतिहास पृष्ठ - 147) (इतिहास रोहिला - राजपूत पृष्ठ - 23) (प्राचीन भारत का इतिहास, राजपूत वंश, - कैलाश - प्रकाशन लखनऊ सन 1970 ई. पृष्ठ - 104 -105 - ) रोहिल्लद्व्यड्क रोहिल्लद्धि - अंक वाला या उपाधि वाला । सर्वप्रथम प्रतिहार शासक द्विज हरिश्चन्द्र को रोहिल्लद्धि उपाधि प्राप्त हुई । बाउक,प्रतिहार शासक विप्र हरिश्चन्द्र के पुत्र कवक और श्रीमति पदमनी का पुत्र था वह बड़ा पराक्रमी और नरसिंह वीर था। प्रतिहार एक पद है, किसी विशेष वर्ण का सूचक नही है। विप्र हरिश्चन्द्र प्रतिहार अपने बाहुबल से मांडौर दुर्ग की रक्षा करने वाला था, अदम्य साहस व अन्य किसी विशेष रोहिला शासक के प्रभावनुरूप ही रोहिल्लद्व्यड्क उपाधि को किसी आधार के बिना कोई भी व्यक्ति अपने नाम के साथ सम्बन्ध करने का वैधानिक रूप में अधिकारी नही हो सकता। उपरोक्त से स्पष्ट है कि बहुत प्राचीन काल से ही गुणकर्म के आधार पर क्षत्रिय उपाधि "रोहिल्ला" प्रयुक्त । प्रदत्त करने की वैधानिक व्यवस्था थी। जिसे हिन्दुआसूर्य - महाराजा पृथ्वीराज चौहान ने भी यथावत रखा। पृथ्वीराज चौहान की सेना में एक सौ रोहिल्ला - राजपूत सेना नायक थे । "पृथ्वीराज रासौ" - चहूँप्रान, राठवर, जाति पुण्डीर गुहिल्ला । बडगूजर पामार, कुरभ, जागरा, रोहिल्ला ।। इस कवित्त से स्पष्ट है । कि - प्राचीन - काल में रोहिला- क्षत्रियों का स्थान बहुत ऊँचा था। रोहिला रोहिल्ल आदि शब्द राजपुत्रों अथवा क्षत्रियों के ही द्योतक थे । इस कवित्त के प्रमाणिकता "आइने अकबरी", 'सुरजन चरिता' भी सिद्ध करते हैं । युद्ध में कमानी की तरह (रोह चढ़ाई करके) शत्रु सेना को छिन्न - भिन्न करने वाले को रहकवाल, रावल, रोहिल्ला, महाभट्ट कहा गया है। महाराज पृथ्वीराज चौहान की सेना में पांच गोत्रों के रावल थे - रावल - रोहिला रावल - सिन्धु रावल - घिलौत (गहलौत) रावल - काशव या कश्यप रावल - बलदया बल्द मुग़ल बादशाह अकबर ने भी बहादुरी की रोहिल्ला उपाधि को यथावत बनाए रखा जब अकबर की सेना दूसरे राज्यों को जीत कर आती थी तो अकबर अपनी सेना के सरदारों को,बहादुर जवानों बहादुरी के पदक (ख़िताब,उपाधि) देता था। एक बार जब महाराणा मान सिंह काबुल जीतकर वापिस आए तो अकबर ने उसके बाइस राजपूत सरदारों को यह ख़िताब दी (उपाधि से सम्मानित किया) बाई तेरा हर निरकाला रावत को - रावल जी चौमकिंग सरनाथा को - रावल झंड्कारा कांड्कड को - रोहिल्ला रावत मन्चारा - कांड्कड काम करन, निरकादास रावत को रावराज और रूहेलाल को रोहिला✍️संकलित :
द्वारा_
*समय सिंह पुंडीर*
 *संदर्भ ग्रंथ*
*क्षत्रिय/राजपूत वाटिका*
*प्रकाशित*
*अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा ,मुख्यालय दिल्ली*
*स्थापित१८८९*

DOCTOR KARAN VEER SINGH ROHILA CHANDIGARH

💬⚔️🚩 *महसूस कीजिए कि डॉक्टर कर्णवीर सिंह रोहिला जी की पुण्य आत्मा आपके साथ खड़ी है और अपने जीवंत विचारो को फलीभूत कराने में आपका साथ दे रही है*
*उनका सपना यही था कि विस्थापित होते होते परचून की हालत में बिखरे इस राजपूत समुदाय को उसकी खोई हुई पहचान रोहिला क्षत्रिय के रूप में तभी मिलेगी जब भावी पीढ़ी को अन्य रोजगार मिलेंगे और विपत्ति काल में जीवन यापन के लिए किए गए कार्य बदल जायेंगे,इसके लिए शिक्षा और रोजगार आवश्यक होगा और रोहिला राजपूत क्षत्रिय महाराजा के प्रतीक बिम्ब बनेंगे और उनका प्रचार होगा इतिहास पुनः दोहराएगा तो रोहिला राजपूत समाज का स्वरूप बदलता चला जायेगा*
*आज रोहिला क्षत्रिय समाज के साथ कुछ वैसा ही आप लोग करते जा रहे हैं प्रशिक्षण संस्थान भी है लगभग चार हजार रोहिला क्षत्रिय लड़के स्वरोजगार,सरकारी गैर सरकारी अनेको प्रकार से जीवन यापन परिवार का पालन पोषण कर रहे है और उन परिवारों के रोजगार भी बदलते जा रहे हैं ,रोहिला राजपूत इतिहास को सोशल मीडिया पर राजपूत सिरदारो ने इतना प्रचार किया के कोई भी अछूता नहीं रहा,रोहिला राजपूत समाज को उसका खोया गौरव मिलता जा रहा है*
*मुझे याद है,उनके विचारों से प्रभावित होकर उनके बड़े भाई सहारनपुर में अति प्रतिष्ठित एडवोकेट चौधरी ओम प्रकाश रोहिला जी ने भटनागर धर्म शाला जनक नगर में दिनांक १२ अगस्त १९८८ को कहा था कि जब तक कोई स्थान रुहेला बिरादरी को नही मिलता कही मंदिर नही बनता कोई तीर्थ स्थान नही मिलता जिसके बारे में दूसरे लोग भी जाने कि यह है रुहेलदेव का मंदिर ,जैसे कश्मीर में सुना गया है रोहिल्डेव मंदिर तब तक आप को पहचान वापस मिलना कठिन कार्य है क्योंकि आपकी मानसिक शक्ति दम तोड चुकी है,कुछ न कुछ बनाओ चाहे एक मंदिर सहारनपुर में रुहेलदेव का ही बना दो जिसे लोग रोजाना देखे मंदिर रूहेलदेव का है*

*उनकी भाषा में जो उन्होंने कहा था तो उनके छोटे भाई डॉक्टर साहब भी सुनते रहे और मन ही मन मुस्कराते रहे*

*मैने तभी बोला था फोटो फाइल में लगा है कि रोहिला राजपूत है और उनके पूर्वजों के बलिदानों के कारण आज आप इस तरह की बैठक कर रहे है अन्यथा सजदा करते फिरते क्यों न उन्ही मे से किसी एक वीर राजा महाराजा का मंदिर बनवा लो,उस समय इतना ही ज्ञान था मुझे*
*डॉक्टर साहब बोले थे-बेटा जी आपकी भावनाएं और सपने तभी पूरे होंगे जब आप इस संगठन से जुड़े रह कर चलोगे और अपनी भावनाओं ,इच्छाओं की पूर्ति में लगे रहोगे यह ऐसा प्लेट फार्म बनेगा जिस पर बैठ कर रोहिला राजपूत समाज गर्व की अनुभूति अवश्य करेगा*

*उनके आशीर्वाद से आज आपके महाराजा रणवीर सिंह रोहिला राजपूत की जन्म जयंती राज घरानों में राजा मेवाड़ रणधीर सिंह भींडर महाराज अपने महल में मनाते है,कुल दीप सिंह रोहिला हरियाणा जटौली वाले का प्रयास रंग लाता है-अनेक राजपूत हस्तियां, कुंवर अजय सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा,कुंवर राजेंद्र सिंह जी नरूका सेवा निवृत कर्नल राष्ट्रीय अध्यक्ष राष्ट्रीय क्षत्रिय ज्योति मिशन,क्षत्रिय शिरोमणि अदम्य साहसी चौहान की अस्थियों को हजार साल बाद गुलामी की बेडियो से आतंकियों के चंगुल से लाने वाले भाई शेर सिंह राणा जी संस्थापक राजपा, ओकेंद्र राणा फ्रॉम हरियाणा युवाओं के दिलो की धड़कन,दादा महिपाल सिंह मकराना अध्यक्ष श्री राजपूत करणी सेना,सुखदेव सिंह गोगा महेड़ी आदि जिनके नाम विश्व विख्यात है सोशल मीडिया पर इनके करोड़ों फोलोवर्स है वे रोहिला राजपूत वीर का गुणगान करते है जन्म जयंती पूरे विश्व में मनवाते है,भाई शेर सिंह राणाजी अपने साथी भाई कुलदीप सिंह रोहिला और दादा नरेंद्र सिंह चौहान को साथ लाकर महान वीर विधर्मी विनाशक सनातन रक्षक राजपूत रोहिलखंड सम्राट रणवीर सिंह रोहिला के चित्र पर पूजा करके माल्यार्पण कर रहे है*

*उन्होंने प्राचीन रोहिला किला अपनी टीम के साथ देखा और बोला गंगा से भी पवित्र रोहिलखंड की अपने पूर्वजों के रक्त से रंजित उनके खून और हड्डियों से लतपथ धरती में तुझे आज प्रणाम करता हूं तेरी भूमि की माटी हल्दी घाटी की माटी सी पवित्र है,रोहिलखंड के रामपुर को सर जमीन राजा रणवीर सिंह रोहिला के जन्म से एक राजपूत तीर्थ बन गई है*
*क्या यह किसी चमत्कार से कम नजर आता है??????*

*ऐसे ही सहारनपुर के रामपुर (भांकला गांव) की धरती राजपूताना परंपरा संचालित करने वाले डॉक्टर कर्णवीर सिंह रोहिला के जन्म से पवित्र हुई उन्होंने यहां के एक समृद्ध किसान परिवार सोलंकी बरनवाल रोहिला राजपूत समाज में श्री सुगन सिंह रोहिला जी के घर छ: जून उन्नीस सो छत्तीस को जन्म लिया था और अपने व्यवहार और कार्य से इस राजपूत रोहिला परिवार (भांकला)की भूमि को प्रतिष्ठित करने और राजपूत रोहिला खाप को सम्मान दिलाने में अपना जीवन सत्रह मार्च २००० को होली के दिन समाप्त कर दिया था, समाज के कार्यों में इतने खो गए थे कि राष्ट्र पति श्री शंकर दयाल शर्मा जी के फेमिली चिकित्सक होते हुए भी अपनी परवाह करने को समय नही निकल पाए और अपना जीवन बलिदान कर दिया,ऐसे रामपुर को मेरा कोटि कोटि प्रणाम जिसने रोहिला राजपूतों में अपनी संस्कृति का संचार करने के लिए ऐसे महान राजपूत सोलंकी बरनवाल रोहिला डॉक्टर कर्णवीर सिंह जी को इस समाज में जन्म देकर पुनरोद्धार और उत्कर्ष की राह दिखाई*
*नही ये सपने साकार हो रहे हैं पुण्य आत्माए आकार ले रही है,इतिहास पुनः अपना गौरव प्राप्त करता जा रहा है,आज आपके रोहिला राजपूत समाज के साथ भारत का सभी राजपूत समाज कंधे से कंधा मिलाए खड़ा है दादा राजेंद्र सिंह परिहार राष्ट्रीय अध्यक्ष क्षत्रिय अस्तित्व न्याय मोर्चा,रोहिला राजपूत इतिहास संरक्षण में लगे है रोहिला राजपूत युवाओं को जोड़ रहे हैं जागृति चरमोत्कर्ष पर है वो दिन दूर नही रोहिलखंड के राजपूतों का इतिहास स्कूल सेलेब्स में पढ़ाए जायेगा रोहिला क्षत्रिय भी अन्य क्षत्रिय राजपूतों की तरह ही सामान्य जाति की सूची में उल्लिखित कराया जाएगा भारत का संपूर्ण राजपूत समाज आ गया मैदान में रोहिला राजपूतों के सम्मान में*
*एक यही तो है यही है आधित्वाद डॉक्टर करण वीर सिंह रोहिला जी को पुण्य आत्मा के द्वारा दी जाती रही प्रेरणा का*
*आज एक रुहेल देव (,रोहिला राजपूत लोक देव ,सूर्य वंशी क्षत्रिय महाराजा रणवीर सिंह रोहिला) का मंदिर भी बना है विश्व में सहारनपुर की शान एतिहासिक राष्ट्रीय धरोहर प्राचीन रोहिला किला के सामने स्थित चौक का नाम है ,आज महाराजा रणवीर सिंह रोहिला चौक क्या यह किसी भव्य मंदिर से कम है?????*
*उनके विचारों और उनके संगठन अखिल भारतीय रोहिला क्षत्रिय विकास परिषद में निष्ठा रखिए आपके सभी कार्य पूर्ण होंगे*
*आज राष्ट्र की राजधानी दिल्ली रोहिणी क्षेत्र में युवा साथी जय प्रकाश रोहिला जी के प्रयास से एक पार्क का नाम भी महान वीर राजपूत सम्राट रणवीर सिंह रोहिला जी के नाम से है,रोहिला क्षत्रिय चौक भी नागलोई में है,और सबसे पहले इस क्षेत्र में बड़ौत नगर में रोहिला राजपूत समाज की ओर से श्री अनूप सिंह रोहिला जी ने कराया था श्री मति सरला मालिक तत्कालीन चेयर मैन के द्वारा एक मार्ग का नाम राजा रणवीर सिंह रोहिला मार्ग आज उनके पति विधायक के पी मालिक राज्य मंत्री जी भी हमारा साथ देते है ,और प्रेरित करते है कि जहाँ भी उनकी अवश्यकता हो वे खड़े होंगे और महाराजा रणवीर सिंह रोहिला जी के नाम पर नामकरण कराएंगे*


*डॉक्टर कर्णवीर सिंह रोहिला जी के ""हमे चाहिए स्वाभिमान""के उद्घोष को ध्यान में रखा वर्तमान न्यू जेनरेशन ने,जिस प्रेरणा के कारण आज युवक युवतियां प्रत्येक क्षेत्र में दर्शनीय भागीदारी कर अपना कैरियर बनाने में जुटे है,। अभिनय ,खेल , क्रिकेट कुश्ती,चिकित्सा ,मॉडलिंग एथलीट, बॉक्सिंग,गायन शिक्षा उच्च तम आई आई टी , सी पी एम टी आदि में अपना और परिवार तथा रोहिला राजपूत समाज का नाम बिना किसी आरक्षित सुविधा चलना ही होगा*
*सनातन धर्म की रक्षा के लिए उत्तर भारत का अकेला राजपूत वीर गंगा सिंह महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत को कलायत (कैथल) के mudahad राजपुतो को साथ लेकर दुर्रानी अब्दाली ,रुहेला नजीब खान से भिड़ गया था और मराठा सेनापति के रूप में वीर गति पाई थी उन्ही की स्मृति में अंबाहेटा नकूड तिराहे पर वीर गंगा सिंह महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत का स्मारक और उनकी रानी राम प्यारी देवी की सती समाधि बन कर तैयार किए जाने के प्रस्ताव आ रहे है,राजपूत स्मार्स्को को संरक्षित किया जा रहा है*
*तीर्थ नगरी हरिद्वार में उत्तराखंड में एक घाट जहा उनकी अस्थियां प्रवाहित हुई थी उस घाट का नाम होगा महाराजा रणवीर सिंह रोहिला घाट*

*ये चमत्कार से कम नही आप नही तो हम नही*
*आप साथ है तो कोई गम नही*
*जय जय राजपूताना*
*क्षत्रिय एकता जिंदाबाद*

*डॉक्टर कर्ण वीर सिंह रोहिला विचार मंच*
*ABRKVP.*
*TAPARI*
*SAHSRANPUR*
*247001*

          *U.P.*

SHIV DATT SINGH 11/4/2021

*आदरणीय सभापति श्रीमहेश बेनाडीकर पाटिल, सदन नेता श्री कुंवर अजय सिंह, श्री सुखदेव गोगामेडी, ............ सम्मानित मंच देश के कोने कोने से पधारे विभिन्न रजवाडे रियासतों सूबो और राज्यो से संबंधित महान वीर पुत्रों * मैं शिव दत्त सिंह रोहिला,संयोजक अखिल भारतीय रोहिला क्षत्रिय विकास परिषद रजिस्टर्ड,संसद सदस्य गवर्निंग कोंसिल राष्ट्रीय क्षत्रिय जन संसद व संयोजक क्षत्रिय अधिकार न्याय मोर्चा समस्त क्षत्रिय महानुभावों को बोलता हूं जय भवानी जय श्री राम और सभी को मेरा नमस्कार। मैं उत्तर प्रदेश के एक बहुत बडे भाग रोहिलखण्ड राजपूताना का प्रतिनिधित्व कर रहा हूं गवर्निंग कोंसिल संसद सदस्य होने के नाते मैं समस्त देश में विभिन्न नामों उपनामों को धारण किए हुए बिखरे पड़े क्षत्रियों जैसे बुंदेला,चंदेला, बघेला रोहिला ,खंगार, रवा,ओड,लोधी, सिक्ख, मराठा,अर्कवंशी,गोरखा,रवानी, कोलिए,अग्नि वंशी ,चोल , पांड्या गगोई आदि सभी संगठनों के प्रमुखों और गवर्निंग कोंसिल सदस्यों ,क्षत्रिय अधिकार न्याय मोर्चा संयोजको आदि पदाधिकारियों से निवेदन करता हूं कि हम जो लगभग छ हजार टुकड़ों में बिखरे पड़े समस्त क्षत्रियों की एकता व जो सिंह शावक इस्लामिक आक्रांताओं द्वार मचाई हुई भयंकर मारकाट की भगदड़ में मेमने के झुंडो में गुम गए उन्हे अपनी सिंह नाद सुना कर वापस लाने हेतु क्षत्रिय समाज के सामने बहुत विषम परिस्थितियां खड़ी है जिन पर विचार करना और निर्णय आवश्यक हो गया है जैसे सूर्य वंशी क्षत्रिय मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जन्म भूमि ट्रस्ट में क्षत्रियों की भागीदारी ,वामपंथियों द्वारा लिखित इतिहास को वास्तविक रूप देना उस इतिहास को बदला जाना जिसमे मुस्लिम अक्रांता शासकों का महिमा मंडन किया गया और स्थानीय बलिदानी क्षत्रिय राजाओं को विद्रोही लिखा गया है,जितने भी मार्गो नाम शहरो के नाम मुस्लिम आक्रांताओं ने अपने नाम पर किए या चाटुकार सरकारों ने मुस्लिमो के नाम पर रखे उन्हे बदला जाना और क्षत्रिय राजाओं के नाम पर रखा जाना क्योंकि उन्होंने ही प्रजा की रक्षा की तथा अपना जीवन का सर्वोच्च बलिदान देकर देश को बचाया लोक तंत्र के लिए अपना सर्वस्व दे दिया जितनी भी राष्ट्रीय धरोहर है सभी क्षत्रिय स्थापत्य है उनके रख रखाव के लिए क्षत्रियों का रखा जाना और सबसे घातक आरक्षण है जिसने क्षत्रिय समाज की रीढ़ तोड़ दी है,इसके लालच में क्षत्रिय समाज का विघटन हो रहा है खंड खंड हो विभिन्न जातियों में बंट गया है इस आरक्षण को समाप्त कराना और एस सी एस टी एक्ट जिसमे उल्लिखित है कि केवल एस सी को एस सी कहने मात्र से सवर्ण जाति को तुरंत गिरफ्तार किया जाए यह धारा हटवाना आदि अति आवश्यक व ज्वलंत मुद्दों पर कीर्यानवन तभी संभव है जब अपनी कोई राजनीतिक पकड़ हो,अपनी पार्टी हो अपनी सरकार हो,इसके लिए समस्त क्षत्रियों को एक मंच पर लाया जाए और एक राजनीतिक पार्टी का गठन हो,जैसे अखिल भारतीय क्षत्रिय विकास पार्टी ,राष्ट्रीय क्षत्रिय जन विकास पार्टी, राष्ट्रीय क्षत्रिय उत्थान मोर्चा आदि , हे क्षत्रिय वीर पुत्रों आज समय आ गया है कि जो आपके बलिदान स्वरूप आपको नही मिला वह पाना होगा,कुछ स्वहितार्थ कर दिखाना होगा*
   बुंदेलखंड जहां पहले बनाफर राजपूतों की रियासत थी ओर फिर चंदेल राजपूतों ने शासन किया उसी से लगता हुआ उत्तर पूर्व का राज्य राजपुताना रोहिलखंड हैं ,जिसने महान सम्राट चक्रवर्ती हिंदुआसुर्य्य प्रथ्वीराज चौहान के बाद शेष राजपूतों को कन्नौज पतन के बाद राजपूत एकता का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए तत्कालीन दिल्ली सलतनत को धूल चटाई ओर लगभग चार सौ साल संघर्ष करते हुए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया उन्ही महान वीर क्षत्रियों की संतान सूर्य वंशी ,रघुवंश निकुंभ काठी खाप के महाराजा रणवीर सिंह कठेहर रोहिलखंड नरेश की 817वी जयंती अक्टूबर 25, 2020 को बडी धूमधाम से समस्त राजपूत समाज ने पूरे उत्तर भारत में मनायी गयी। इसी प्रकार सभी क्षत्रिय वीर महाराजाओं की जयंती मनाई जाए। अट्ठारहवीं सदी तक इस्लामिक दबाव के चलते कुछ राजपूत कठेहर रोहिलखंड से भारत के अन्य भागों में गए और रोहिला राजपूत कहलाए। कठेहर रोहिलखंड को औरंगजेब के कमजोर पड़ते ही तुरंत स्वतंत्र घोषित कर रोहिलखंड की पश्चिमी सीमा पर गंगा पार करके सहारनपुर में महान शासक राजा इन्द्र सेन ने 1702 ईसवी तदानुसार 1761 विक्रमी में एक किले का निर्माण कराया जो आज प्राचीन रोहिला किला के नाम से प्रसिद्ध हे भारत के पुरातत्व विभाग ने इसे अपने संरक्षण में लेकर राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया हुआ है, उसी प्राचीन रोहिला किला को ब्रिटिश राज में गदर के बाद एक कारागार के रूप में प्रयोग किया ओर आज़ादी के सेनानियों की जेल बना डाली आज भी उसमे जिला कारागार स्थित है ,उसी प्राचीन रोहिला किला के सामने स्थित चौक का नाम सूर्य वंशी क्षत्रिय कठेहर नरेश के नाम पर महाराजा रणवीर सिंह रोहिला चौक कराया गया हे , बड़ौत नगर में एक मार्ग का नाम राजा रणवीर सिंह रोहिला मार्ग हे। इसी प्रकार नगर नगर गांव गांव में चौराहों ,मार्गो और भवनों के नामकरण उन क्षत्रिय राजाओं के नाम पर कराए जाने चाहिए जिन्हे भुलाने में कोई कमी नही छोड़ी गई है।
   *अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा ने समस्त क्षत्रियों की एकता के लिए जो बीड़ा उठाया था उसी महान विश्व विजेता क्षत्रिय संगठन के एकता हेतु किए गए महान कार्यों के कारण आज रोहिलखंड के क्षत्रिय भी आपके सम्मुख आपने भाइयों से मिल सके ओर भारत भूमि के अनेक महान क्षत्रिय वंशजों के दर्शन कर सके। हम अखिल भारतीय रोहिला क्षत्रिय विकास परिषद रजिस्टर्ड की ओर से माननीय सभा पति जी कुंवर अजय सिंह जी व महेश मोहनराव पाटिल बेनाडीकर का आभार प्रकट करते हे जो अपने बिछुड़े क्षत्रियों को मिलाने ओर एकता करने के लिए कटी ब्द्ध है आज के परिवेश में जहा पर क्षत्रियों के विरूद्ध स्वतंत्रता के बाद से ही कुचक्र चल रहे हे,राष्ट्रीय क्षत्रिय जन संसद का गठन अति आवश्यक था समय की पुकार हे कि क्षत्रिय अधिकार न्याय मोर्चा समस्त क्षत्रियों के लिए आवश्यक अधिकार की मांग करे ओर पूरा कराए, अपनी जमीन राज्य आदि सब कुछ लोक तंत्र को सौंपने के बाद भी क्षत्रिय आज अपने बलिदानों की परिणिती को क्यों तरस रहा है यही जानने हेतु आज आप हम सब देश के विभिन्न क्षेत्रों से एकत्र हुए हे कि भारत में हो रही क्षत्रियों की उपेक्षा के चलते किस तरह क्षत्रिय एकता बनाए जाएं ।
एकता न बन पाने के मुख्य कारण हे क्षत्रिय इतिहास जो भारत का गौरव शाली इतिहास है उसे वामपंथियों ओर चाटुकारों द्वारा लिखा जाना जिससे क्षत्रिय संस्कृत ओर विरासत भ्रमित हो भावी पीढ़ी को मार्ग दर्शन न किया जाना, जिससे मानसिक क्षमता ओर इतिहास के प्रति जागरूकता कम हुई।*
*मेरा राजपूत भाइयों से अनुरोध है कि सरकार पर हरेक क्षेत्र में दबाव बनाया जाए कि भारत के महान बलिदानी राजाओं सभ्यताओं की जानकारी पाठ्यक्रम में लाई जाए जिसे आज के सेलेब्स ने पूर्णतया नकार रखा हे,राजपुताना संस्कृती विरासत ओर सभ्यता को यदि भावी पीढ़ी को बताने की बात आए तो इतनी गहरी जड़ें हे इतिहास के पन्ने कम पड़ जाए। उत्तर प्रदेश की ही बात है बेंसवाडा में बेंस राजपूतों न शासन किया मैनपुरी में चौहान ने,दिल्ली में तोमर राजपूतों ने, वृंदावन व मथुरा में सोम वंश ने बुंदेलखंड में चंदेल ओर बनाफर ओर बुंदेला ने, रोहिलखंड में रोहिला कठेरिया राजपूतों ने , विजयपुर सीकरी में सूर्य वंशी सिकरवार राजपूत शासन था अकबर ने ध्वस्त कर फतेहपुर सीकरी किया रोहिलखंड के राजपुताना पर अफगानों को काबिज कर रूहेलखंड लिखा यह सब कोई उल्लेख नहीं है क्या यह इतिहास कारो की महान भूल है या सरकार ही नहीं चाहती कि भावी पीढ़ी क्षत्रिय बलिदान से अवगत हो कहने को बहुत है अंत में यही कहना है कि यदि आज इन ज्वलंत मुद्दों पर क्षत्रिय जन संसद विचार नहीं करती तो यह क्षत्रिय समाज उस वाटिका के समान विकर्षण को प्राप्त हो जाएगा जिसमे पोधे तो विभिन्न प्रकार के है किन्तु सुवासित पुष्प बसंत से रूठ जाए।*

*जय भवानी*
*जय महाराणा*
*जय चौहान*
*जय MAHARAJA RANVEER SINGH  ROHILA*
*ABRKVP*

*दिनांक*
11-4-2021

SHIV DATT SINGH ROHILA GZD

*आदरणीय सभापति श्रीमहेश बेनाडीकर पाटिल, सदन नेता श्री कुंवर अजय सिंह, श्री सुखदेव गोगामेडी, ............ सम्मानित मंच देश के कोने कोने से पधारे विभिन्न रजवाडे रियासतों सूबो और राज्यो से संबंधित महान वीर पुत्रों * मैं शिव दत्त सिंह रोहिला,संयोजक अखिल भारतीय रोहिला क्षत्रिय विकास परिषद रजिस्टर्ड,संसद सदस्य गवर्निंग कोंसिल राष्ट्रीय क्षत्रिय जन संसद व संयोजक क्षत्रिय अधिकार न्याय मोर्चा समस्त क्षत्रिय महानुभावों को बोलता हूं जय भवानी जय श्री राम और सभी को मेरा नमस्कार। मैं उत्तर प्रदेश के एक बहुत बडे भाग रोहिलखण्ड राजपूताना का प्रतिनिधित्व कर रहा हूं गवर्निंग कोंसिल संसद सदस्य होने के नाते मैं समस्त देश में विभिन्न नामों उपनामों को धारण किए हुए बिखरे पड़े क्षत्रियों जैसे बुंदेला,चंदेला, बघेला रोहिला ,खंगार, रवा,ओड,लोधी, सिक्ख, मराठा,अर्कवंशी,गोरखा,रवानी, कोलिए,अग्नि वंशी ,चोल , पांड्या गगोई आदि सभी संगठनों के प्रमुखों और गवर्निंग कोंसिल सदस्यों ,क्षत्रिय अधिकार न्याय मोर्चा संयोजको आदि पदाधिकारियों से निवेदन करता हूं कि हम जो लगभग छ हजार टुकड़ों में बिखरे पड़े समस्त क्षत्रियों की एकता व जो सिंह शावक इस्लामिक आक्रांताओं द्वार मचाई हुई भयंकर मारकाट की भगदड़ में मेमने के झुंडो में गुम गए उन्हे अपनी सिंह नाद सुना कर वापस लाने हेतु क्षत्रिय समाज के सामने बहुत विषम परिस्थितियां खड़ी है जिन पर विचार करना और निर्णय आवश्यक हो गया है जैसे सूर्य वंशी क्षत्रिय मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जन्म भूमि ट्रस्ट में क्षत्रियों की भागीदारी ,वामपंथियों द्वारा लिखित इतिहास को वास्तविक रूप देना उस इतिहास को बदला जाना जिसमे मुस्लिम अक्रांता शासकों का महिमा मंडन किया गया और स्थानीय बलिदानी क्षत्रिय राजाओं को विद्रोही लिखा गया है,जितने भी मार्गो नाम शहरो के नाम मुस्लिम आक्रांताओं ने अपने नाम पर किए या चाटुकार सरकारों ने मुस्लिमो के नाम पर रखे उन्हे बदला जाना और क्षत्रिय राजाओं के नाम पर रखा जाना क्योंकि उन्होंने ही प्रजा की रक्षा की तथा अपना जीवन का सर्वोच्च बलिदान देकर देश को बचाया लोक तंत्र के लिए अपना सर्वस्व दे दिया जितनी भी राष्ट्रीय धरोहर है सभी क्षत्रिय स्थापत्य है उनके रख रखाव के लिए क्षत्रियों का रखा जाना और सबसे घातक आरक्षण है जिसने क्षत्रिय समाज की रीढ़ तोड़ दी है,इसके लालच में क्षत्रिय समाज का विघटन हो रहा है खंड खंड हो विभिन्न जातियों में बंट गया है इस आरक्षण को समाप्त कराना और एस सी एस टी एक्ट जिसमे उल्लिखित है कि केवल एस सी को एस सी कहने मात्र से सवर्ण जाति को तुरंत गिरफ्तार किया जाए यह धारा हटवाना आदि अति आवश्यक व ज्वलंत मुद्दों पर कीर्यानवन तभी संभव है जब अपनी कोई राजनीतिक पकड़ हो,अपनी पार्टी हो अपनी सरकार हो,इसके लिए समस्त क्षत्रियों को एक मंच पर लाया जाए और एक राजनीतिक पार्टी का गठन हो,जैसे अखिल भारतीय क्षत्रिय विकास पार्टी ,राष्ट्रीय क्षत्रिय जन विकास पार्टी, राष्ट्रीय क्षत्रिय उत्थान मोर्चा आदि , हे क्षत्रिय वीर पुत्रों आज समय आ गया है कि जो आपके बलिदान स्वरूप आपको नही मिला वह पाना होगा,कुछ स्वहितार्थ कर दिखाना होगा*
   बुंदेलखंड जहां पहले बनाफर राजपूतों की रियासत थी ओर फिर चंदेल राजपूतों ने शासन किया उसी से लगता हुआ उत्तर पूर्व का राज्य राजपुताना रोहिलखंड हैं ,जिसने महान सम्राट चक्रवर्ती हिंदुआसुर्य्य प्रथ्वीराज चौहान के बाद शेष राजपूतों को कन्नौज पतन के बाद राजपूत एकता का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए तत्कालीन दिल्ली सलतनत को धूल चटाई ओर लगभग चार सौ साल संघर्ष करते हुए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया उन्ही महान वीर क्षत्रियों की संतान सूर्य वंशी ,रघुवंश निकुंभ काठी खाप के महाराजा रणवीर सिंह कठेहर रोहिलखंड नरेश की 817वी जयंती अक्टूबर 25, 2020 को बडी धूमधाम से समस्त राजपूत समाज ने पूरे उत्तर भारत में मनायी गयी। इसी प्रकार सभी क्षत्रिय वीर महाराजाओं की जयंती मनाई जाए। अट्ठारहवीं सदी तक इस्लामिक दबाव के चलते कुछ राजपूत कठेहर रोहिलखंड से भारत के अन्य भागों में गए और रोहिला राजपूत कहलाए। कठेहर रोहिलखंड को औरंगजेब के कमजोर पड़ते ही तुरंत स्वतंत्र घोषित कर रोहिलखंड की पश्चिमी सीमा पर गंगा पार करके सहारनपुर में महान शासक राजा इन्द्र सेन ने 1702 ईसवी तदानुसार 1761 विक्रमी में एक किले का निर्माण कराया जो आज प्राचीन रोहिला किला के नाम से प्रसिद्ध हे भारत के पुरातत्व विभाग ने इसे अपने संरक्षण में लेकर राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया हुआ है, उसी प्राचीन रोहिला किला को ब्रिटिश राज में गदर के बाद एक कारागार के रूप में प्रयोग किया ओर आज़ादी के सेनानियों की जेल बना डाली आज भी उसमे जिला कारागार स्थित है ,उसी प्राचीन रोहिला किला के सामने स्थित चौक का नाम सूर्य वंशी क्षत्रिय कठेहर नरेश के नाम पर महाराजा रणवीर सिंह रोहिला चौक कराया गया हे , बड़ौत नगर में एक मार्ग का नाम राजा रणवीर सिंह रोहिला मार्ग हे। इसी प्रकार नगर नगर गांव गांव में चौराहों ,मार्गो और भवनों के नामकरण उन क्षत्रिय राजाओं के नाम पर कराए जाने चाहिए जिन्हे भुलाने में कोई कमी नही छोड़ी गई है।
   *अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा ने समस्त क्षत्रियों की एकता के लिए जो बीड़ा उठाया था उसी महान विश्व विजेता क्षत्रिय संगठन के एकता हेतु किए गए महान कार्यों के कारण आज रोहिलखंड के क्षत्रिय भी आपके सम्मुख आपने भाइयों से मिल सके ओर भारत भूमि के अनेक महान क्षत्रिय वंशजों के दर्शन कर सके। हम अखिल भारतीय रोहिला क्षत्रिय विकास परिषद रजिस्टर्ड की ओर से माननीय सभा पति जी कुंवर अजय सिंह जी व महेश मोहनराव पाटिल बेनाडीकर का आभार प्रकट करते हे जो अपने बिछुड़े क्षत्रियों को मिलाने ओर एकता करने के लिए कटी ब्द्ध है आज के परिवेश में जहा पर क्षत्रियों के विरूद्ध स्वतंत्रता के बाद से ही कुचक्र चल रहे हे,राष्ट्रीय क्षत्रिय जन संसद का गठन अति आवश्यक था समय की पुकार हे कि क्षत्रिय अधिकार न्याय मोर्चा समस्त क्षत्रियों के लिए आवश्यक अधिकार की मांग करे ओर पूरा कराए, अपनी जमीन राज्य आदि सब कुछ लोक तंत्र को सौंपने के बाद भी क्षत्रिय आज अपने बलिदानों की परिणिती को क्यों तरस रहा है यही जानने हेतु आज आप हम सब देश के विभिन्न क्षेत्रों से एकत्र हुए हे कि भारत में हो रही क्षत्रियों की उपेक्षा के चलते किस तरह क्षत्रिय एकता बनाए जाएं ।
एकता न बन पाने के मुख्य कारण हे क्षत्रिय इतिहास जो भारत का गौरव शाली इतिहास है उसे वामपंथियों ओर चाटुकारों द्वारा लिखा जाना जिससे क्षत्रिय संस्कृत ओर विरासत भ्रमित हो भावी पीढ़ी को मार्ग दर्शन न किया जाना, जिससे मानसिक क्षमता ओर इतिहास के प्रति जागरूकता कम हुई।*
*मेरा राजपूत भाइयों से अनुरोध है कि सरकार पर हरेक क्षेत्र में दबाव बनाया जाए कि भारत के महान बलिदानी राजाओं सभ्यताओं की जानकारी पाठ्यक्रम में लाई जाए जिसे आज के सेलेब्स ने पूर्णतया नकार रखा हे,राजपुताना संस्कृती विरासत ओर सभ्यता को यदि भावी पीढ़ी को बताने की बात आए तो इतनी गहरी जड़ें हे इतिहास के पन्ने कम पड़ जाए। उत्तर प्रदेश की ही बात है बेंसवाडा में बेंस राजपूतों न शासन किया मैनपुरी में चौहान ने,दिल्ली में तोमर राजपूतों ने, वृंदावन व मथुरा में सोम वंश ने बुंदेलखंड में चंदेल ओर बनाफर ओर बुंदेला ने, रोहिलखंड में रोहिला कठेरिया राजपूतों ने , विजयपुर सीकरी में सूर्य वंशी सिकरवार राजपूत शासन था अकबर ने ध्वस्त कर फतेहपुर सीकरी किया रोहिलखंड के राजपुताना पर अफगानों को काबिज कर रूहेलखंड लिखा यह सब कोई उल्लेख नहीं है क्या यह इतिहास कारो की महान भूल है या सरकार ही नहीं चाहती कि भावी पीढ़ी क्षत्रिय बलिदान से अवगत हो कहने को बहुत है अंत में यही कहना है कि यदि आज इन ज्वलंत मुद्दों पर क्षत्रिय जन संसद विचार नहीं करती तो यह क्षत्रिय समाज उस वाटिका के समान विकर्षण को प्राप्त हो जाएगा जिसमे पोधे तो विभिन्न प्रकार के है किन्तु सुवासित पुष्प बसंत से रूठ जाए।*

*जय भवानी*
*जय MAHARANA*
*जय चौहान*
*जयMAHARAJA RANVEER SINGH ROHILA*

SOME FACTS ABOUT ROHILA SANGTHAN

*अतीत और वर्तमान के दर्पण में थिरकते चित्र बोलते हैं, कि उनके होने का प्रमाण क्या है।।*
*1..रोहिला क्षत्रियों के विस्थापन और गदर1857 में उनके विरुद्ध शूट एट साइट का यानी देखते ही गोली मारने का आदेश जारी होने के बाद से परचून की हालत में बिखरना और ब्रिटिश काल में रोहिलखंड में अफगानों के शासन से इनकी पहचान विलुप्त होने के मुख्य कारण पाए गए* *प्रथम विश्व युद्ध के बाद रोहिला क्षत्रिय रोहिला राजपूत सरनेम से संगठित होने आरंभ हुए क्योंकि वक्त बदलता है रक्त नही*
*2..सन1930में युद्ध समाप्ति के एक दशक बाद महारानी विक्टोरिया ने जातिगत जनगणना कराई,पुरानी दिल्ली में जनगणना से समय कोई संगठन सक्रिय नही था,जो मार्ग दर्शन कर सके तो कुछ लोगो ने स्वयं को रोहिला टांक क्षत्रिय,कुछ लोगो ने टांक रोहिला क्षत्रिय लिखवाया और कार्य वही दोनो जिनका हवाला आज भी देते है दुहाई भी देते है,किंतु क्षत्रिय शब्द दोनो तरह से बताने वाले लोगो ने नही छोड़ा क्योंकि वे अपना और अपने पूर्वजों का इतिहास अभी भूले नही थे,इस जनगणना की रिपोर्ट सेंसस कमिश्नर जे एच हटशन ने ब्रिटिश हाई कमिश्नर को22दिसंबर1930, को सौंप दी जिसमे क्लियर अनुमोदित किया कि जाति के हिसाब से इन दोनो मिक्सड शब्दो के उपनाम से रोहिला टांक क्षत्रिय से टांक को अविलंब भिन्न /अलग किया जाए* *अतः सिद्ध होता है कि रोहिला क्षत्रिय उपनाम ब्रिटिश काल से प्रमाणिक है और दोनो समुदाय अलग अलग है**सामान्य क्षत्रिय केटेगरी में उल्लिखित है*
*4.1931 ईसवी में रोहिलखंड से विस्थापित होकर आए परचून की हालत में बिखरे पड़े इन क्षत्रिय परिवारों ने संगठित होने की योजना बनाई, और खुल कर सामने आ गए जबकि स्वतंत्रता के लिए देश भर में आंदोलन और संघर्ष जारी था बहुत से रोहिला राजपूत आजादी की जंग में कूद पड़े,और कही पर रोहिला क्षत्रिय और कही पर रोहिला राजपूत जाने गए ,कुछ स्थानों पर अभी अज्ञात वास जैसी ही हालत रही और पेशेगत जातियों के उपनाम को धारण कर जाने गए,उत्तर भारत में रोहिलखंड राजपूताना से विस्थापन लगभग चार सदी तक चलता रहा और 1720में पूर्णतया रोहिलखंड अफगानों के अधिकार में आ गया और वे खुद रुहेला सरदार /नवाब बन गए,इसके अतिरिक्त भारत में रोहिला क्षत्रियों की काठ ,कठ शाखा की विभिन्न नामों से लगभग69राजपूत रियासते थी जिनका उल्लेख यहां करना अप्रासंगिक है *एक संगठन रोहिला राजपूत नाम से बना जिसने इतिहास रोहिला राजपूत लिखवाए और खोज खोज कर अपने भाईयो को जोड़ा उनके गोत्रों की लिस्ट बनाई दूसरा संगठन रुहेला क्षत्रिय नाम से बना उन्होंने रुहेला क्षत्रिय जाति निर्णय नाम से इतिहास संकलित कराया* 
*5..दिल्ली में कोई संगठन आजादी से पहले नही बन पाया और भारत 1947, में आजाद हो गया* *1970 के दशक में हजारी लाल वर्मा जी जो एक पत्रिका निकालते थे और प्रेस रिपोर्ट भी बनाते थे उन्होंने टांक रोहिला क्षत्रिय नाम के संगठन बनाए जिनकी संख्या दिल्ली में आज लगभग दस है किसी का नाम रोहिला टांक सभा किसी का टांक रोहिला सभा है इनमे अन्य और पेशेगत जातियों के लोग सदस्य है किंतु 2014 तक सामान्य ही रहे यानी क्षत्रिय ही रहे सन2014, में टोंक नाम से दिल्ली में पिछड़े वर्ग में अधिसूचित हुए,रोहिला क्षत्रिय सामान्य में ही है ओबीसी नही है*
*दिल्ली के अंदर टांको के रोहिला राजपूतों के साथ रोहिला टांक महासभा नाम के संगठन होने के कारण कुछ लोगो ने वहां भी पिछड़ी का जिन्न खड़ा कर दिया है और रोहिला राजपूतों का सामान्य में रह जाना हजम नही हो रहा और रोहिला राजपूत को रुहेला जाति बता कर संख्या बढ़ाने की बात कहते हुए पिछड़ी जाति के लिए आवेदन किया गया बताया गया है ,कुछ राजनीतिक महत्वाकांक्षी लोग संख्या बल दिखा कर अपनी पैठ दिल्ली की राजनीति में बनाना चाहते है कि में इतनी पिछड़ी जातियों का सरदार हूं मुझे आम आदमी पार्टी टिकट दे दे यंत्री मनोनित कर दे ऐसे लोग रोहिला क्षत्रिय समाज के अस्तित्व के लिए घातक सिद्ध हो रहे है।अभी सर्वे हो गया बताया गया है किंतु रोहिला एक क्षत्रिय खाप है सरनेम है और सरनेम को जाति नही बनाया जा सकता,इस लिए अभी स्थिति साफ नही रोहिला क्षत्रियो का दिल्ली में क्या होगा पिछड़ी में रुहेला जाति स्वीकार करेंगे या रोहिला राजपूत बने रहेंगे*
*6..1984 में कुछ रोहिला क्षत्रिय लोगो ने निर्णय लिया कि विशुद्ध रोहिला क्षत्रियों का एक अलग संगठन बनाया जाय जिससे भ्रमित हो रहा या क्षत्रिय समाज जो पेशेग्गत जातियों की दल दल में जा रहा है उनकी भीड़ में गुम होता जा रहा है अपनी मौलिक पहचान बनाए और क्षत्रियों की मुख्य धारा की ओर चले, संगठन बन गया इतिहास लिखा गया और1989, के अक्टूबर माह की,22, तारीख को एक महाअधिवेशन बुलाया गया जिसमे इतिहास का विमोचन हो गया और मुख्य धारा के क्षत्रियों ने रोहिला क्षत्रियों को अपना अभिन्न अंग मानते हुए आवाह्न किया कि रोहिला क्षत्रियों को किन्ही अन्य पेशेगत जातियों के स्थान पर अपनी पहचान एक राजपूत/क्षत्रिय के रूप में बनानी चाहिए क्योंकि उनकी वंशावली इतिहास और भूगोल पूर्णतया जीवित है**इस संगठन का नाम रखा गया अखिल भारतीय रोहिला क्षत्रिय विकास परिषद रजिस्टर्ड*
*7..अब दौर चला कि जोर शोर से प्रचार किया जाए इतिहास बताया जाए रोहिला को क्षत्रिय/राजपूत साबित करने में कोर कसर न छोड़ी जाए।। सभी रोहिला क्षत्रिय अति उत्साह से परिपूर्ण रहे और कार्य करते रहे समाज संगठित होने लगा* *1995ईसवी में हरियाणा में रोहिला क्षत्रिय को क्षत्रिय शब्द हटा कर केवल रोहिला को चार पेशेगत जातियों के साथ पिछड़े वर्ग में सात प्रतिशत के आरक्षण में अधिसूचित कराया गया इसमें जो धोखा हो गया और किसने कैसे किया यदि बखान किया जाए तो रोहिला क्षत्रिय समाज के बन ए सभी संगठन के अध्यक्षों नेताओ की भारी भूल उजागर होगी जिससे समाज विघटित हो गया*
*मध्य प्रदेश में एक ही विधान सभा क्षेत्र में रोहिला राजपूतों के लगभग नब्बे गांव है सभी राजपूत ठाकुर पटेल जमींदार है वे किस ई पेशेगत जाति को नही जानते और न ही वे उनसे संबंधित है राजनीति के एक लालची नेता ने रूवला रुवाला नाम की किसी जाति के साथ पिछड़े वर्ग में अधिसूचित कर दिया अपनी वोटो की संख्या बढ़ाने के लालच में हो यो गया कि कोई सामाजिक संगठन नही था किसान संगठन थे*
*8..आज समय आया इलेक्ट्रोनिक मीडिया सोसल मीडिया का और सगठन में वर्चस्व की जंग का संघ संगठन बने रोहिला क्षत्रिय समाज बिखर गया और युवा वर्ग जाग गया जो इतनी जानकारी प्राप्त कर चुका है कि स्वाभिमान से रोहिला राजपूत कहता है और मुख्य धारा में लोटना चाहता है सम्पूर्ण राजपूत क्षत्रिय समाज रोहिला क्षत्रियों को एकता के लिए पुकारता है और पूर्ण सपोर्ट करने लगा है अपने राजपूत संगठनों में लेने के लिए उतारू है रोहिला क्षत्रियों का सम्मान लोटा लाया है आज का युवा और धीरे धीरे आर्थिक हालात भी काबू में आ गए है*
*दूरस्थ गांव की हालत भी ठीक है उनकी पहचान रोहिला क्षत्रिय के नाम से बनती जा रही है युवाओं का सर्किल विस्तृत हो गया सम्मान बढ़ गया है*
*9.इस पुनरोत्थान, पुनरोत्कर्श के काल में क्षत्रिय शब्द का अकाल पड़ गया अचानक ज्ञात हुआ कि उत्तर प्रदेश में भी कुछ महत्वाकांक्षी रोहिला प्रतिनिधियों ने राजनीतिक लाभ लेने और संख्या ओबीसी की बढ़ाने के लालच में निवेदन किया था कि जिस प्रदेश में राजपूताना रोहिलखंड है वहा भी रोहिला राजपूतों को रुहेला जाति मानते हुए पिछड़े वर्ग में डाला जाए*
**10..जबकि आज उत्तर प्रदेश में तीन सो जातियों को जो पिछड़ी है सत्ताइस प्रतिशत आरक्षण नही मिलेगा, संख्याबल और कार्य के आधार पर चार श्रेणी में बांटा गया है, रुहेला जी को पिछड़ी में संभवतः दो प्रतिशत का ही लाभ मिल पाएगा, राजनीतिक लाभ हेतु सम्पूर्ण समाज के अस्तित्व को खतरे में डाल रहे चंद लोग संख्या बल बढ़ाने के लिए अन्य दस जातिगत लोगो में विलय होकर रोहिला राजपूत समाज को उन जातियों का घटक बता कर उनके साथ रुहेला रोहिला सरनेम लिख कर राजनीतिक लाभ लेने हेतु अलग संगठन उनके साथ मिल कर बना लिए है,स्वयंभू नेता बने उनके सरकार को भ्रमित कर रोहिला राजपूत समाज से भी छलावा किया जा रहा है*
*यदि तीन दशक पहले ज्ञान शून्य कुछ समाज के ठेकेदारों ने उत्तर प्रदेश में पिछड़ी के लिए आवेदन कर भी दिया था तो उनसे अधिक शिक्षित आज के ठेकेदारों को जो वर्तमान में रोहिला क्षत्रिय सगठनों के नेता है और उच्चतम शिक्षित है क्या उन्हे वर्तमान स्थिति का आकलन नहीं करना चाहिए था कि अब आर्थिक आधार पर सवर्ण आरक्षण लेने और सामान्य में पजीकृत कराने में लाभ है या पिछड़ी में जाने में, किंतु उन्हें केवल अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकनी है और निजी लाभ हेतु सम्पूर्ण रोहिला क्षत्रिय समाज के उपनाम को उपयोग में लाना है दिमागी कसरत क्यों करे*
*शिक्षा आदमी को आंतरिक रूप से परफेक्ट बनाती है किंतु उच्च शिक्षित आज के नेताओ की मति भ्रष्ट हो गई और सोचने और सामाजिक पहलुओं पर अध्ययन करने की शक्ति शून्य हो गई है अथवा कोई समय नहीं लगाना चाहते और फालतू मे नेता बन गले में मालाएं डलवाते और राजपूताना पगड़ी धारण कर उसकी लाज गंवाते फिरते है समाज की कोई चिंता नहीं अपनी चमक के सामने*
*यह कार्य चंद लोगो ने अपनी मर्जी से किया बताया गया जिसमें उत्तर प्रदेश में निवास करने वाले हर आयु वर्ग के रोहिला राजपूत/,,क्षत्रिय परिवारों की कोई लिखित प्रस्तावित वार्ता रूपी सलाह सहमति नही है* 
*इस लिए सभी छ संगठनों ने जो रोहिला क्षत्रिय शब्द के साथ बने थे क्षत्रिय बोलना छोड़ दिया है ताकि पिछड़ी में आने में कोई अड़चन क्षत्रिय खुद को कहने में न आ जाए इसे कहते है आज वक्त बदलता है तो रक्त भी बदल जाता है पुरानी कहावत गलत सिद्ध हुई*
*प्रश्न*
*कृपया बताए सभी पाठक कि अचानक आई इस राजनीतिक बिसात की दूषित हवा के झोंके में सामाजिक सगठनों के राजनीतिक सगठनों में परिवर्तन को कैसे रोका जाए और किया क्या जाए या कुछ न किया जाए क्या ठीक होगा या गलत होगा*
*भावी पीढ़ी का भविष्य लिखने वाले वर्तमान नेतृत्व को क्या अधिकार है कोई* ????
*कुछ बदलते परिवेश को ध्यान में रखते हुए चंद शब्दो में अपनी राय दे क्योंकि सभी रोहिला क्षत्रिय सगठनों का नब्बे वर्षो का सफर निरर्थक होता जा रहा है जहां से आरंभ किया था वही अंत होने जा रहा है जो पहचान रोहिला राजपूत समाज की बनी थी उसे निजी लाभ हेतु धूल धूसरित किया जा रहा है सामाजिक नेता ज्ञान,स्वाभिमान शून्य होकर पिछलग्गू बन कर रोहिला क्षत्रिय समाज के साथ छलावा करने पर आमदा हो रहे है इस लिए आत्म चिंतन करते हुए रोहिला क्षत्रिय समाज के हितों की रक्षा के लिए सोचिए, कि आज ओबीसी में जाने में रोहिला क्षत्रिय समाज का कितना नुकसान हो जायेगा और कुछ अवश्य बोलिए आपकी अति कृपा होगी और भावी पीढ़ी का मार्ग दर्शन और भविष्य निर्धारण भी*
*धन्यवाद*
*निवेदक*
*हम आपके है कोण????*

Friday 22 March 2024

रोहिलखंड

रोहिलखंड(हिंदी,संस्कृत,अंग्रेजी भाषा) या रुहेलखण्ड(उर्दू मिक्स हिंदी, रूहेल उर्दू खंड हिंदी) रुहेलखंड(उर्दू) उत्तर प्रदेश के उत्तर-पश्चिम में एक क्षेत्र है।[1][2].

रोहिलखंड गंगा की उपत्यका के ऊपरी २५००० वर्ग कि॰मी॰ क्षेत्र में विस्तृत है। इसके दक्षिण पश्चिमी ओर गंगा है, पश्चिमी ओर उत्तराखंड और नेपाल उत्तर में हैं। पूर्वी ओर अवध है। इसका नाम यहां की एक क्षत्रिय खाप रोहिला के नाम पर पड़ा। महाभारत में इसे रोह शब्द अवरोह धातु से लिया गया है जिसका अर्थ है चढ़ना अवरोही, रोही प्लस ला प्रत्य बराबर रोहिला अर्थात चढ़ाई करने वाला, पश्चिमी उत्तरीय सीमा प्रांत वैसे भी पर्वतीय चढ़ाई युक्त ढलान युक्त होने के कारण और द्रहयु के वंशजो द्रोही / रोही के वंशजो चन्द्र वन्स के क्षत्रियो का प्रदेश होने के कारण मध्य काल तक पाणिनि कालीन भारत से लेकर रोह के नाम से जाना गया,।

तीब्र प्रवाह *रोह*, की भांति चढ़ाई करने वाला भी रोहिला कहलाया।

रोहिला शब्द भारत के गौरव शाली इतिहास का एक विशेष दर्पण है ! यह वही शब्द है जो वीर क्षत्रिय राजवंशों व इतिहास की वीर गाथाओं से परिचय कराता है।

रोहिला 500 ईसा पूर्व पुराना शब्द है( प्राचीन भारत-पृष्ठ-159, बी एम रस्तोगी)

रोहिला एक संघ था, भारत

के उन वीरो का, भारत की पश्चिमी उत्तरीय सीमा प्रहरियों का जिन्होंने स्वयम के टुकड़े टुकड़े होने तक ओर अंतिम श्वांस लेने तक धूलि के कण के बराबर भी आक्रांताओं को भारत भूमि और कदम नही रखने दिया।

रोहिले राजपूत प्राचीनकाल से ही लोकतंत्र के संवाहक रहे हैं

वंस वाद पीढ़ी वाद से दूर रहे है

रोहिल खंड राज्य लोकतन्त्रात्मक गणराज्य था
वंशानुक्रम का शासन नहीं था*

वाचाल( वाछेल)चौहान राठोर ग्र्ह्लोत (,गहलोत) आदि प्रसिद्ध साहसी राज वन्सो का शासन था ये सभी कटेहर इया राजपूत कहलाते थे
सुन्दर बलिष्ठ

योग्य पहलवान(रहेल्ला) को अपना शासक चुनाव ( हाथ उठा कर) से नियुक्त करते थे

इसी लिए इनमे राजपूतो के सभी वंस शाखाये प्रशाखाए उपलब्ध है।

रणवीर सिंह सूर्य वंस निकुम्भ शाखा के वशिष्ठ गोत्र में उत्पन्न हुए थे,

उनका प्रवर गोत्र काठी कठोड,कठेरिया था 

इस कठेहर रोहिल खंड के राजा के साथ 84 लोहे के कवच धारी अजेय रोहिले सरदार / सेनापति, सामंत थे

उनके सामने मुल्ला नहीं टिक पाते थे

इनमे निम्न गोत्रो के योधा थे

1- लखमीर 2- राठोर/महेच राणा 3- चौहान/ वत्स/ जेवरा 4-वाछेल / वाचाल/ कूपट/ गहलोत

5- मोउसले/ भौंसले/ मौसुल/ मोसले/ मूसले

6- कठेहरिय/ काठी/, कठायत/ कठोड़े 7- रहक वाल/रायकवार /सिकरवार

12 बारह रोहिले लोहे के कवच धारी सैनिक थे।

सल्तनत काल में दिल्ली के सुल्तान पूर्णतया इन्हें कभी भी नहीं जीत पाए

(वासुदेवशरण अगरवाल)

इतिहास कार

हमारे ही परिवार जो कटेहर रोहिल खंड में रह गए विश्थापित नहीं हुए वे

आज भी राजपूतो की मुख्य धारा में ही हैं कठेरिया राजपूत कहलाते है उनके सम्बन्ध इन्ही राजपूतो से होते है

जी गंगा पार कर विस्थापित हो इधर आगये रोहिला कहलाये

जो रामगंगा पार कर कुमायूं गए

काठी कठेत कठ्यत काठ आयत कहलाये और चाँद वाशी राजा के यहं रहे

महाराजा रणवीर सिंह रोहिल्ला का जन्म ऐसे समय मे हुआ जब राजपूत शक्ति क्षीण हो चुकी थी और मुस्लिम आक्रांता अपनी सल्तनत कायम करने के लिए बचे हुए राजपूतो का दमन करने में लगे थे गौरी के आक्रमण से पृथ्वी राज चौहान का साम्राज्य नष्ट कर गुलाम वन्स का शासन स्थापित हो रहा था राजस्थान में मेवाड़ ओर मध्यदेश (उत्तर प्रदेश), ,में रोहिलखण्ड के कठेहरिया राजपूतो ने दिल्ली के सुल्तान बनने वाले आक्रांताओ के नाक में दम कर रखा था 1206 में सभी राजपूत शक्तियों को एकत्र कर सामन्त वृतपाल रोहिल्ला ने ऐबक इल्तुतमिश आदि को रोहिलखण्ड में घुसने से रोका त्रिलोक सिंह आदि रोहिलखण्ड पर अधिकार जमाने वाले मुस्लिम शासकों को खदेड़ देते थे,इस विपत्ति काल मे रोहिलखण्ड की पावन भूमि पर कार्तिक मास के कृष्ण की प्रथमा तिथि तदनुसार 25 अक्टूबर 1204 इसवी को रामपुर के किले में राजा त्रिलोक सिंह के यहां एक वीर पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम करण हरिद्वार के पण्डित गोकुल चंद पण्डे के पिता ने रणवीर सिंह के नाम से किया ,जब रणवीर सिंह 21 वर्ष के हुवे तो विजयपुर सीकरी के राजा की पुत्री तारा देवी से रणवीर सिंह का विवाह हो गया उसी वर्ष रामपुर के किले में रणवीर सिंह का राजतिलक हुवा ,उन् से दिल्ली के सुल्तान भय खाने लगे किसी ने रोहिलखण्ड पर आक्रमण करने का साहस नहीं था।



ये कठेहरिया/ काठी (रोहिला क्षत्रियों की प्रमुख प्राचीन शाखा)निकुम्भ वंश के रोहिलखण्ड के राजा थे 1253 में इनके शासन काल मे दिल्ली सल्तनत के इल्तुतमिश के पुत्र एवम सेनापति नासिरुद्दीन महमूद उर्फ चंगेज जो बहाराम वन्स का मुसलमान आक्रांता था दिल्ली दरबार मे कसम लेकर आया कि रोहिलखण्ड पर विजय पाकर ही लौटेगा 30000 की विशाल सेना लेकर उसने रोहिलखण्ड पर हमला किया पीलीभीत ओर रामपुर के बीच मे किसी स्थान पर मुसलमानों को 6000 रोहिले राजपूतो ने घेर लिया तथा भयंकर युद्ध हुआ रोहिले बहादुर थे लोहे के कवचधारी थे नासिरुद्दीन चंगेज की सेना को काट डाला गया बचे हुए मुसलमान भाग खड़े हुए

नासिरुद्दीन ने प्राणदान मांगे

सभी धन दौलत रणवीर सिंह के चरणों मे रख गिड़गिड़ाया

राजा रणवीर सिंह कठोडा ने क्षात्र धर्म रक्षार्थ शरणागत को क्षमा दान दे दिया

परन्तु वह दिल्ली दरबार से कसम लेकर आया था क्या मुह दिखाए यह सोच कर रामपुर के जंगलों में छिप गया और रास्ते खोजने में लगा कि राजा को कैसे पराजित किया जाए

क्योकि कितनी भी मुसलमान सेना दिल्ली से मंगवाता रोहला राजपूत इतने बहादुर थे कि उनके सामने नही टिक पाती उसने छल प्रपंच धोखा करने की सोची

रामपुर के किले के एक दरबारी हरिद्वार निवासी पण्डे गोकुल राम उर्फ गोकुल चंद को लालच दिया और रक्षा बंधन के दिन शस्त्र पूजन के समय निश्शस्त्र रोहिले राजपूतो पर हमला करने का परामर्श दे दिया

चंगेज ने दिल्ली से कुमुद ओर सेना मंगवाई ओर जंगलो में छिपा दी पण्डे ने सफेद ध्वज के साथ चंगेज को राजा से किले का द्वार खोल मिलवाया जबकि राजपूत पण्डे का इंतजार कर रहे थे कि कब आये और पूजा शुरू हो

पण्डे ने तो धोखा कर दिया था राजा ने सफेद ध्वज देख सन्धि प्रस्ताब समझ समर्पण समझ आने का संकेत दिया

मालूम हुआ कि पंडा किले के चारो द्वार खोल कर आया था

निहत्थे राजपूतो पर तीब्रता से मुसलमान सेना चारो तरफ से टूट पड़ी

राजपूतो को शाका कर मरमिटने का आदेश रणवीर सिंह ने दे दिया और मुसलमानों को सबक सिखाने के लिए भिड़गये,लगभग ,2800राजपुतो ने नसीरुद्दीन के बीस हजार आक्रांताओं को काट डाला

  निहत्थे होने के कारण राजपूत वीरगति को प्राप्त हुए,
सूर्य वंशी क्षत्रिय सम्राट राजा रणवीर सिंह रोहिला अकेले पड़ गए उन्हे चंगेज के सेनिको ने चारो ओर से घेरे में ले लिया और उन पर टूट पड़े,रणवीर सिंह का युद्ध कौशल देख कर नसीरुद्दीन चकित रह गया वे निहत्थे ही आक्रांताओं से लोहा ले रहे थे किंतु साहस नही छोड़ा अद्भुत शौर्य संग्राम में
राजा रणवीर सिंह का बलिदान हुआ,

रानी तारावती सभी क्षत्राणियो के साथ ज्वाला पान कर जौहर कर गयी

किले को मुसलमान घेर चुके थे।

रणवीर सिंह का भाई सूरत सिंह उर्फ सुजान सिंह अपने 338 साथियों के साथ निकल गया और हरियाणा में 1254 में चरखी दादरी आकर प्रवासित हुआ।

हरिद्वार पंडो ने रणवीर सिंह की वंशावाली में झूठ लिखा कि उसकी ओलाद बंजारा हो गयी

कितना तुष्टिकरण होता था तब भी इतिहास लेखन में

जबकि रोहिले राजपूतो के राज भाट रायय भीम राज निवासी बड़वा जी का बड़ा तुंगा जिला जयपुर की पोथी में मिला कि सूरत सिंह चरखी दादरी आ बसा था

राजा रणवीर सिंह का यह बलिदान याद रखेगा हिंदुस्तान


रक्षाबंधन एक गोरव गाथा को समस्त राजपूत समाज इस बलिदान दिवस 
को शौर्य दिवस के रूप में मनाता है,
तथा इस महान साहसी दिल्ली सल्तनत को धूल चटाने वाले क्षत्रिय सम्राट रणवीर सिंह रोहिला की जयंती 25अक्टूबर को प्रतिवर्ष सम्पूर्ण भारत का राजपूत समाज एक स्वाधीनता व स्वाभिमान दिवस के रूप में मनाता है।
1253 -1254 ईसवी में दिल्ली के सुल्तानों को धुल चटाने वाले महाराजा रणवीर सिंह रोहिला ने लिखी थीं एक गौरव गाथा रामपुर के किले में हुआ यह शौर्य संग्राम निहत्थे रोहिले राज पूतो पर टूट पड़े थे नासिरुद्दीन के सैनिक शास्त्र विहीन रोहिलो ने बहनों की राखी के सहारे किया शाका और दिया सर्वस्व बलिदान आज सचमुच शौर्य दिवस है राजा रणवीर सिंह को याद कर

यह तो सचमुच एतिहासिक सत्य/ तथ्य है

रोहिला क्षत्रिय वास्तव में

विशुद्ध क्षत्रिय राजवंश है।

एक चीते के समान ही जिसकी अपनी अलग पहचान होती है।

इतिहास इस बात का साक्षी है

रोहिले क्षत्रियो ने आज तक

कभी भी राष्ट्र व् अपनी क्षत्रिय कौम पर जीते जी आंच नहीं आने दी।

800 वर्षो तक आक्रान्ताओ को। रोके रखने में अपना सर्वस्व मिटाया है

विधर्मी का संघार किया है

शाका और * जौहर* किया है

परन्तु अपना धर्म न बदला न छोड़ा।

रोहिला राजवँश का मूल पुरुष है चन्द्र वंसी चक्रवर्ती सम्राट ययाति के तीसरे पुत्र द्रहयु

इसी का अपभ्रंस द्रोह रोह ओर फिर रोहिला हुआ*

रोहिल खंड राज्य लोकतन्त्रात्मक गणराज्य था

वंशानुक्रम का शासन नहीं था*

वाचाल( वाछेल)चौहान राठोर ग्र्ह्लोत (,गहलोत) वारेचा आदि प्रसिद्ध साहसी राज वंशो का शासन था ये सभी कठेहरिया राजपूत कहलाते थे
सुन्दर बलिष्ठ

योग्य पहलवान(रहेल्ला) को अपना शासक चुनाव ( हाथ उठा कर) से नियुक्त करते थे

🤺🤺🤺

अयोध्या में इख (गन्ना) उगाने वाले

इश्क्वाकू /सूर्य का उदय हुआ

और प्रयाग के पास झूंसी में चन्द्र वंस

का उदय हुआ

चक्रवर्ती सम्राट ययाति इसी वंस में हुए

इनके तीसरे पुत्र द्रह्यु के नाम पर द्रह्यु वंस/गंधार वंस चला

द्रह्यु से रोहिलाओ का मूल है

भारत के चन्द्र वंस के चक्रवर्ती सम्राट

ययाति के पुत्र द्रह्यु का प्रदेश ही द्रोह ,रूह/ रोह प्रदेश ने नाम से जाना गया

रोह का अर्थ है चढ़ना (पर्वतीय )

यह है भी एक पर्वतीय प्रदेश ही

यह भारत की पश्चिमी उत्तरीय सीमा का प्रदेश था

इस रोह प्रदेश की लोकेशन अब गूगल मेप पर देखे

इसके निवासियों ने सिकंदर को भारत में प्रवेश करने से रोकने के बाद 400 वर्ष तक आक्रनताओं को रोके रक्खा जब मैदानों से मदद नहीं मिली तो मैदानों की और आना प्रारम्भ कर दिया
इस काल में भारत के सीमा प्रहरी क्षत्रिय काठी, कठ गणराज्य से मैदानों की ओर आए,एक टुकड़ी ने सोरष्ट्र को कठियावाड नाम से शासित किया और एक टुकड़ी ने उत्तरी पांचाल को जीता और उसका नाम कठेहर रोहिलखंड रखा,राजा राम सिंह रोहिला(कठेहरिया काठी कठोड ने रामपुर नगर की स्थापना कर राजधानी बनाया और स्वतंत्र रोहिलखंड राज्य की नींव रखी यहां इन्होंने ग्यारह पीढ़ी निरंतर शासन किया।।
कठ गणराज्य

क्षुद्रक गणराज्य

मालव गणराज्य

योद्धेय गणराज्य

अश्वक गणराज्य आदि के शासक मुसलमानों से टक्कर लेते हुए मैदानों में आये
सौराष्ट्र /,
गुजरात में काठियावाड़,

पंचाल में कठेहर रोहिलखंड राज्य की स्थापना की।

पंजाब से सहारनपुर तक यौद्धेय राज्य की स्थापना की(रोहिलखंड में रोहिला क्षत्रियों ने १७२०ईसवी तक शासन किया।अफगानों ने रोहिला राजा हरनंद का कत्ल करके१७२०ईसवी में खुद को रुहेला उर्दू में कहना आरंभ कर दिया और रुहेला सरदार,नवाब उसी अफगान ट्राइब्स के शासकों की एक कड़ी है को १८०२तक रही,तत्पश्चात अंग्रेजो ने रोहिलखंड,रुहेलखंड को ब्रिटिश राज में मिलाया)

 ये सभी क्षत्रिय कठेरिया /रोहिला 

कठेहरिया/रोहिले क्षत्रिय ,रोहिला राजपूत कहलाए।*रोहिलखंड राजपूताना आज भी उत्तर प्रदेश का एक बहुत बड़ा भाग हैं और एक कमिश्नरी के रूप में विद्यमान है।

(राजपूत/क्षत्रिय वाटिका)

(रोहिले क्षत्रियो का क्रमबद्ध इतिहास)

रोही +ला(प्रत्य)----*रोहिला*

रोहिला* अर्थात चढ़ने या चढ़ाई करने वाला ।
नौवी शताब्दी से विशेष युद्ध कला में प्रवीण बहुत से योद्धाओं को रोहिला उपाधि प्रदत्त की गई ,836ईसवी का एक शिला लेख मंडोर के किले में लगा है तदनुसार विप्र ब्राह्मण राजा हरिश्चंद्र प्रतिहार को उसके द्वारा वीरता से किले की रक्षा करने और युद्ध कौशल के कारण उसे रोहिलाद्वायंक की उपाधि मिली थी। प्रत्यक्ष शिलालेख विद्यमान है।अन्य ग्रंथों के अनुसार भी मध्यकाल में रोहिला उपाधि का प्रचलन हुवा,महाराजा पृथ्वी राज चौहान की सेना में एक सो रोहिला सेना नायक थे जिनके आधार पर अनेक योद्धाओं को रोहिला उपाधि प्राप्त हुई।समस्त उत्तर भारत में आज रोहिला राजपूत करो ड़ों की संख्या में विद्यमान है।
संदर्भ
*रोहिलखंड के राजपूतों का इतिहास
(डॉक्टर के सी सैन)
रोहिला क्षत्रिय वंश भास्कर
(आर आर राजपूत)
 रोहिला क्षत्रिय का क्रमबद्ध इतिहास,
(दर्शन लाल रोहिला)
रोहिला राजपूत
(सर जोड़ी क्लूटोस)
राजपूताना रोहिलखंड
(क्षत्रिय राजपूत वाटिका)
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा १८९७द्वारा प्रकाशित क्षत्रिय वंशावली

Thursday 21 March 2024

ANCIENT HISTORY OF RAJPUTANA ROHILKHAND

*प्राचीन रोहिला राजवंश*
*रोहिला क्षत्रिय/राजपूत*

वैववस्त मनु  से  प्रारंभ  हुई, , श्रीराम व  श्री कृष्ण जिस  कालखंड में है, सहस्राब्दियो पूर्व से भारत की पावन भूमि पर आज तक चली आ रही, क्षत्रिय वंशो की अटूट परम्परा को नमन करते हुए, एक राजन्य (राजपुत्र) ही जन्मसिद्ध स्वतंत्रता की रक्षा सदैव सीमाओ पर   KARTA AYA है हिंदुकुश रोहित-गिरि पंचनद तक भरत खण्ड की पश्चिमी उत्तरीय सीमा के क्षत्रिय प्रहरियों का दीर्घ कालीन विकट संघर्ष ही भारत की संस्कृति व सभ्यता की रक्षा करता रहा है। आक्रमणकारियों के लिए रोहितगिरि का उत्तारापथ ही पूर्व काल से एक  प्रवेश  द्वार  था। सूर्य, चन्द्र और नागादि संज्ञक क्षत्रिय वंशो की शाखाओं प्रशाखाओं में बंटे महाजनपद गणराज्यों के शासक ही प्राचीन आर्य सभ्यता को मध्य एशिया तक प्रसारित करने में संघर्षरत थे। यह प्रसार क्रम कई द्वीपों तथा मध्य एषिया तक होता चला गया, जहाँ से उनका आना जाना बसना उजडना लगा रहता था। वर्तमान भारत में बिखरे पड़े हजारों षाखाओं व प्रषाखाओं में विभाजित करोड़ो संताने है जो सूर्य व चन्द्र वंष की दो समानान्तर विकसित सभ्यताओं के रूप में समूचे आर्यवर्त, हिमवर्ष व मध्यएषिया, अरब ईरान, मिश्र आदि तक फैल गये थे तथा अपने व अपने पूर्वजों, धर्मगुरूओं ओर  वंश पुरोहितों, ऋषियों आदि के नाम पर अपने गणराज्य व ठिकाने स्थापित कर रहे थे।।

रोहिला शब्द भी इसी क्रम की एक
 अटूट कड़ी है प्रयाग के पास झूँसी में विकसित प्राचीन चन्द्रवंषी चक्रवर्ती सम्राट पुरूरवा व उसके वंशधरो में प्रख्यात सम्राट ययाति के पांच पुत्र पंचजन कहलाये और उनके पाँच जनपद स्थापित हुए। लगभग सात सहस्त्राब्दी पूर्व मध्य देश आर्यवर्त में विश्व की प्राचीनतम् सभ्यता विकसित हो रही थी, इलाहाबाद, (प्रयाग) के पास झूँसी में चन्द्रवंषी क्षत्रियों व कौशल (अयोध्या) में सूर्य वंशी इक्ष्वाकु के वंशधरो के राज्य खण्ड स्थापित हो रहे थे। उस काल की परम्परा के अनुसार जिस सम्राट के रथ का चक्र अनेक राज्यों में निशंक घूमता हो वह चक्रवर्ती सम्राटों की श्रेणी में मान्य होता था। वन गमन से पूर्व (वानप्रस्थ आश्रम) सम्राट ययाति ने अपने पाँच पुत्रों क्रमश यदु, तुर्वसु, द्रहृाू (उपनाम रोहू) पुरू और अनु के लिए अपने साम्राज्य को पांच भागों में विभक्त कर प्रत्येक पुत्र को अपने-अपने प्रदेशों के शासनाधिकार का उत्तरदायित्व सौंप दिया था*

1. *यदु- दक्षिण पश्चिम में केन-बेतुआ और चम्बल नदी के कांठो का प्रदेश दिया, कालान्तर में यदु के वंशधर यादव कहलाये*।

2. *तुर्वसु-कुरूष प्रदेष वर्तमान बघेल खण्ड तुर्वसु को प्राप्त हुआ, वहां कुरूषजनों को परास्त कर तुर्वसु वंष की स्थापना हुई*।

3. *द्रह्यु- चम्बल नदी के उत्तर पश्चिम, सिन्धु नदी के किनारे तथा यमुना नदी के पष्चिम पचनद (पंजाब) का पूरा प्रान्त द्रह्यु को मिला। द्रुह्यु के वष्ंाधर आगे चल कर उत्तर और पूरब में हिन्दु कुष तथा पामीर ओर पश्चिमोत्तर में वाल्हिक, हरअवती तक के विस्तुत क्षेत्रों पर अपना अधिकार स्थापित करते चले गए और वैदिक संस्कृति का प्रसार किया*।

4. *पुरू- पुरू को प्रतिष्ठान के राज्य सिंहासन पर आसीन किया गया, पुरू के वंष आगे चलकर पौरव कहलाए इसी वंष में भरत का जन्म हुआ, आर्यवर्त, हिमवर्ष, जम्बूद्वीप (मध्यप्रदेष-विन्घ्याचल से हिन्दुकुष रोहित गिरी तक) का नाम भरत खण्ड भारत वर्ष कहलाया*।

5. *अनु- यमुना नदी को पूरब* *और गंगा यमुना के मध्य का देष (दक्षिण पंचाल) तथा अयोध्या के पष्चिम के क्षेत्र अनु को प्राप्त हुए अनु के वंष घर आनव कहलाए*। 



*इस प्रकार चन्द वंश का विस्तार हुआ*।



*आर्यवर्त की उत्तरी सीमा पर स्थित केकय देष भरत को उसकी माता कैकेयी के राज्य के कारण प्राप्त हुआ। भरत के दो पुत्रों तक्ष व पुष्कर ने क्रमषः तक्षषिला व पुष्करावती दो राजधानियां स्थापित की और आर्य संस्कृति को समृद्ध किया। उस काल में संस्कृत ही मातृभाशा थी*।



*भारत की पश्चिमि उत्तरीय सीमाओं पर जिस अवसर पर भी विदेशी आक्रमण हुए सूर्य वंशी भरत और चन्द्र वंशी द्रह्यु के वंशधरों ने मिल कर**
**प्रहरियों के अनुरूप अपना रक्त बहाया। ईसा से लगभग पाँच सौ वर्ष पूर्व से इस पर्वतीय प्रदेष में पचनद तक ‘कठ‘ गणराज्य, छुद्रक गणराज्य, यौधेय गणराज्य, मालव गणराज्य, अश्वक गणराज्य आदि फल फूल रहे थे। इनकी शासन प्रणाली गणतंत्रात्मक* *थी। यहाँ के निवासी सौंदर्यापासक थे और सुन्दर पुरुष ही राजा चुना जाता था। दु्रह्यु देश का नाम कालान्तर में द्रुह्यु के वंशज गंधारसैन के नाम पर गांधार और सूर्यवंषी राजाओं ने अपने शासित प्रदेष को ‘कपिष‘ के नाम से प्रसिद्ध कर काबुल (कुम्भा) नदी के पूर्वोत्तरीय क्षेत्र में अपनी राजधानी का नाम कपिषा रखा*

      *प्राचीन काल में कपिष (लडाकू, उदण्ड पर्वताश्रयी) और गान्धार की भाशा संस्कृत थी, किन्तु मध्यकाल से संस्कृत भाशा का विकृत सरलीकृत रूप ‘ प्राकृत‘ में परिवर्तित हो गया। भाषा के आधार पर यह स्पष्ट है कि इस प्रदेष में सहस्त्रों वर्ष तक भारतीय संस्कृति और सभ्यता स्थापित रही और इस समस्त प्रदेष में दीर्घ काल तक आर्य क्षत्रिय नरेषों का षासन रहा*।

      *अनेक पहाड़ियों (माल्यवत्त-रोहितगिरि-लोहितगिरि-हिन्दकाकेश्षस-रोहतांग आदि) नदियों (कुनार, स्वातु, गोमल, कुर्रम, सिन्धु की सहायक नदियाँ- सतलज, रावी, व्यास तथा घाटियों के कारण सामरिक दृष्टि से भी यह प्रदेष इन पर्वताश्रयी क्षत्रिय नरेषों के लिए महत्वपूर्ण था। यहाँ ठण्डी ऋतु जलवायु की दृष्टि से अति उत्तम रही। इसलिए यहां के निवासी बलिष्ठ, रक्तिम वर्ण (ललिमा चुक्त गोरा रंग) व कद काटी में मजबूब, हठी व गठीले होते रहे है। दुर्गम पहाड़ियों, नदियों व घाटियों के कारण यहां के निवासी पर्वताश्रयी, अश्वारोही थे। अश्वो के लिए प्रसिद्ध रहा यह प्रदेश रोहित गिरिये, रोहित नस्ल के अश्वों के व्यापार का प्रमुख केन्द्र था। क्रमषः *इसी कारण यह प्रदेष घोड़ों का प्रदेष अथवा अष्वकों का प्रदेश* *(अष्वकायन) कहलाता था*
**रोहित (संस्कृत), वर्तमान भाषा में लाल- भूरा रंग के घोड़े और श्येन नस्ल *के घोड़े पाए जाते थे। घोडों अथवा अष्वारोहण के बिना यहां जीवन* *सम्भव नहीं था। विदेषी* *आक्रमणों के समय अष्वों की प्रथम भूमिका थी। गहरे किसमिसी रंग के बहादुर घोड़ों को रोहित नाम से सम्बोधित किया जाता था*।
 *ईरानी व यूनानी विद्वानों के द्वारा भी इस प्रदेश के रोहित नस्ल के घोड़ों की प्रषन्सा की गई है*
* **इस प्रदेश के (महाजनपद) प्राचीन शासक (चन्द्रवंषी) द्रुह्यु का उपनाम भी रोहु था। इसलिए इसका नाम द्रुहयू का देश रोह देश रोहित गिरि रोह प्रदेश (अपभ्रनस होता चला* गया )हो जाना व्यावहारिक व स्वाभाविक था। *
*संस्कृत भाषा में रोह का अर्थ है- सीधे दृढ़-बल युक्त चढ़ना-अवरोहण करना, रक्तिम वर्ण (रोहित), पर्वत (माउण्टेन) इसलिए मध्यकाल तक ये पर्वताश्रयी* *क्षत्रिय शासक रोहित वर्ग से प्रसिद्ध हुए*। 
*पर्वतीय प्रदेश का नाम , रोहित प्रदेश*
  (प्रांकृत संस्कृत में) यहां सेनाओं की युद्ध प्रणाली रोहिल्ला युद्ध (रोहिला वार, लैटिन भाषा में) प्रणाली
 *सीधे दृढ़ बल युक्त पर्वत पर अवरोहण की तरह तीब्रता से शत्रु पर चढ़ जाना*
 *शत्रु सेना पर बाढ़ रोह की तरह, लाल* *होकर (रक्ति वर्ण क्रोधित आक्रोष युक्त) टूट पड़ना, तीब्रता से षत्रु सेना में घुस जाना। रोह (कमानी) के समान षत्रु सेना को भेदते, (काटते जाना) हुए चढ़ाई करना, प्रख्यात हुई* कालांतर में अनेक *क्षत्रिय सेनानायकों को , रोहिल्ला उपधि से विभूषित किया गया*। (मध्यकाल में)

‘‘धृतकौषिक मौद्गल्यौ आलम्यान परषरः।

सौपायनस्तथत्रिश्च वासुकी रोहित स्तथा।‘‘

(राष्ट्रधर्म-भाद्रपद 2067, सितम्बर 2010 के पृष्ठ 31 पर रोहित गोत्र का उपरोक्त श्लोक में वर्णन)

‘‘अरूषा रोहिता रथे बात जुता

वृषभस्यवते स्वतः‘‘ ।।10।।

(ऋग्वेद मण्डल 1, अ0 15 स्0 94 ‘‘ रोहिला क्षत्रियों का क्रमबद्ध इतिहासः पृष्ठ 42)



*मद्रान, रोहित कश्चैव, आगेयान, मालवान अपि गणन सर्वान, विनिजीत्य, प्रहसन्निव,। महाभारत वन पर्व 255-20 प्राचीन रोहित गिरि के नाम का अस्तित्व आज भी रोहतांग घाटी, रोहतांग दर्रानाम से अवस्थित है*।

*महाभारत के सभा पर्व में लोहित (रोहित) (संस्कृत शब्द) प्रदेश के दस मण्डलों का उल्लेख है जो भारत का उत्तर पूर्वी मध्यभाग था। श्री वासूदेव शरण अग्रवाल*

      ‘‘ *पाणिनि कालीन भारत वर्ष पृष्ठ 449 ‘‘ अश्येनस्य जवसा‘‘ वैदिक साहितय ऋग्वेद 1, अ0 17, मत्र 11, सुक्त 118-119 अर्थात- दृढ निश्चय के साथ (अश्येनस्य ) बाज पखेरू के समान (जवसा) तीव्र वेग के समान हम लोगो को आन मिली। (यह श्येन और रोहित नस्ल के घोडों की अश्व के रोहिला सेनाओं का वर्णन है*।)

  ‘‘ *उत्तरीय सीमा प्रान्त मे ंएक सुरम्य स्थानथा यहाँ का राजा क्षत्रिय था वह अपनी प्रजा को बहुत प्यार करता था, यहाँ विभिन्न प्रकार के अन्न व फलों के वृक्ष थे*
*यहां के निवासी भयानक थे तथा उनकी भाषा रूक्ष संस्कृत थी। ये रजत तथा ताम्र मुद्राओं का प्रयोग करते थे*
 *ये बहुत लडाकू तथा बहादूर थे यह क्षेत्र कुम्भा नदी के उत्तर पूर्व में 155 मील दूर था। ‘‘ एक प्रसिद्ध इतिहासकार टालेमी के अनुसार यह वर्णन चीन पागी युलान-च्वाड्डा ने किया। प्राचीन भारत का ऐतिहासिक भूगोल पृष्ठ 153-154 द्वारा श्री विमलचन्द्र लाहा (रोहिला क्षत्रिय क्रमबद्ध इतिहास से साभार‘‘) पाणिनी ने भी पश्चिमोत्तरीय सीमा प्रान्त के अश्वकायनों, अश्वकों, कठों, यादवों, छुद्रकों, मालवों निवासी सभी क्षत्रिय वर्गो को पर्वतीय और युद्धोपजीवि कहा है*।

      *पर्वतीय (संस्कृत-हिन्दी), माउण्टेनीयर (लैटिन-अंगे्रजी), रोहित, रोहिते, रोहिले (संस्कृत ‘प्राकृत‘ - पश्तों) रोहिले-चढ़ने वाले, चढाई करने वाले अवरोही, अश्वारोही, द्रोही रोह रोहि पक्थजन , आदि समानार्थी शब्दों का सम्बन्ध प्राचीन क्षत्रिय वर्गोक्षत्रिय शासित क्षेत्रों ,पर्वतीय प्रदेशों (रोहितगिरि, रोहताग दर्रा, लोहित गिरि, कोकचा, पर्वत श्रेणी आदि)युद्ध प्रणालियों और नदी घाटी, काॅठो घोड़ों की पीठ पर (चढ़कर करने बहादुरी के साथ लडने वाले गुणों स्वभावों व क्षात्र धार्मो से है। भारतीय इतिहास में रोहिला- क्षत्रिय एक गौरवशाली वंश परम्परा है जिसमें कई प्राचीन क्षत्रिय वंशों के वंशज पाए जाते है। क्येांकि यह शब्द, क्षेत्रीयता (रोहिल देश, रोहित प्रदेश रोहित गिरि आदि द्रोह देश- रोह देश) गुणधर्म (रोहित-रक्तिम वर्ण) (कसमिसि लाल रंग) युद्ध प्रणाली (रोहिल्ला-युद्ध) (पूर्व वर्णित प्रणाली) उपाधि, बहादूीर, शौर्यपदक और क्षत्रिय सम्मान से जुडा है, इसलिए जो भी क्षत्रिय राजपुत्र इन सभी से सम्बन्धित रहा- रोहिला-क्षत्रिय अथवा रोहिल्ला राजपुत्र कहलाया गया। रोहिला-पठान इस्लामीकरण के पश्चात् की पक्भजनों , (क्षत्रिय) की आधुनिक वंश परम्परा है। जबकि क्रमशः रोहिला-क्षत्रिय पुरातन काल से भारतवर्ष में एक प्रहरी के रूप में विद्यमान रहे है*। 
*सहारनपुर के प्रख्यात साहित्यकार श्री कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर ने अपने पावन ग्रन्थ ‘‘ भगवान परशुराम‘‘ में भी रोहिल देश की चर्चा की है*।

      *प्रतिष्ठित ज्योतिषी एवं ग्रन्थकार डा. सुरेश चन्द्र मिश्र ने हिन्दुस्तान दैनिक‘‘ के रविवार 20 नवम्बर 2009 के मेरठ संस्करण के पृष्ठ-2 पर ‘‘ मूल गोत्र तालिका (40गोत्र) के क्रमांक छः पर क्षत्रिय गो़त्र रोहित का वर्णन किया है। वैदिक काल में पांच की वर्ग या समुदाय आर्य क्षत्रियों के थे जो मिलकर पंचजना-पंचजन कहे जाते थे। इनके सम्मिलित निर्णय को सभी लोग विवाद की दशा में मान लेते थे। इसी शब्द की परम्परा से आज पंचायत शब्द प्रचलित है। ये पांच वशं पुरूष या गोत्रकर्ता थे*।

  *यादव कुल पुरुष यदु, पौरव वंश पुरूष पुरू, द्रहयु वंश पुरूष द्रुहयु, तुर्वषु और आनववंश पुरूष अनु, से शेष अन्य समुदाय निकले थे*।









*क्षत्रिय वंश तालिका -14 (गंधार) वं. ता.-5*

     *इन्ही पांच वंशों के पुरूषों से महापंचायत बनती थी। प्रारम्भ में इन्हीं पंचजनों से लगभग 400 क्षत्रिय गोत्रों का प्रसार हुआ*

      *भारत की पष्चिमोत्तरीय सीमा पर विदेषी आक्रमण कारियों के आक्रमणों को विफल करने के लिए वहां के निवासी क्षत्रिय वर्गो एवं शासकों ने आरम्भ से ही प्रत्येक अवसर पर आक्रान्ताओं के विरूद्ध घोर संघर्ष किया किन्तु मैदानी षासकों की दुर्बल सीमान्त निति के कारण उन्हें किसी भी प्रकार की सहायता उपलब्ध हो सकी। इसलिए सीमान्त प्रदेष के वीर प्रहरी वर्ग इन प्रबल सुगठित आकान्ताअें की अपार शक्ति के सम्मूख लगभग पाँच सौ वर्षो से अधिक संघर्ष न कर सके और सिकन्दर के आक्रमण ईसा पूर्व लगभग 326 के पष्चात् से नदियाँ घाटियाँ, पर्वताश्रय पार करने लगे और मैदानी स्थानों की तरफ पूर्व व पूर्वोत्तर की तरफ आने लगे*
*(अध्याय-9) क्षत्रिय कुल ‘ काठी क्रम सं. 5*

      *पष्चिमोत्तरीय-सीमा प्रान्त पंजाब की जातियों व समुदायों का विवरण जो कि - स्व. सर डैंजिल लिबैट्रषन द्वारा पंजाब की जनगणना सन् 1883 और सर एडवर्ड मैकलेजन द्वारा पंजाब की जनगणना 1892 पर आधारित, सर .एच.ए. रोज द्वारा संकलित कोष है*
*इसमें रोहिला परिवारों* (राजपूत-क्लेन) का पर्याप्त विवरण है।
*संकलन एवम प्रस्तुति*
*समय सिंह पुंडीर*
*२२अगस्त २०१२*
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*विशेष नोट ____यहां प्रदर्शित सभी चित्र सोसल मीडिया से नेट द्वारा लिए गए है इनका लेखक से कोई संबंध नहीं ये सोसल मीडिया की संपत्ति है यहां केवल प्रतीकात्मक रूप से उड्धृत है।।।

THE THIRD BETTLE OF PANIPAT पानीपत के युद्ध में रोहिला राजपूतों के बलिदान के सबूत जिंदा है

पानीपत की तीसरी लड़ाई से जुड़े इतिहास के साक्ष्य कलायत में भी मौजूद साक्ष्य खोज  रहे है, रोहिला क्षत्रिय सामाजिक संगठन
देश के अतीत से जुड़ी वीर गाथाओं को जन-जन तक पहुंचाने और इनकी स्मृतियों को हमेशा ताजा रखने के लिए रोहिला क्षत्रिय समाज संगठन ने खास पहल की है। इसके तहत कलायत श्री कपिल मुनि तट और वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप चौक के पास पानीपत की तीसरी लड़ाई के इतिहास से जुड़े धार्मिक स्थल हैं
रोहिल्ला क्षत्रिय समाज संगठन के लोगों ने कहा कि मशहूर मरहट्टा जनरैल भाऊ के दीवान गंगा सिंह महचा राठौड़ ने पानीपत की तीसरी लड़ाई में अहमद शाह अब्दाली के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे। इनकी पत्नी रानी रामप्यारी उस जमाने की परंपरा अनुसार सती हुई थी। उनकी स्मृति में कलायत श्री कपिल मुनि तट के पास सौदागर मल के पुत्र अमरनाथ रोहिल्ला निवासी मछूंडा ने बनाई थी। इस तरह देश के गौरवशाली इतिहास के लिए लड़ी गई लड़ाई में रोहिल्ला क्षत्रिय समाज की महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने बताया कि पानीपत की लड़ाई में शहीद हुए गंगा सिंह महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत थे। पानीपत की तीसरी लड़ाई में ये योद्धा अहमद शाह अब्दाली के विरुद्ध लड़े थे। उस दौरान गंगा सिंह की रानी रामप्यारी और क्षत्राणी अपने बच्चों के साथ कलायत रियासत के अधीन सुरक्षित थे। इस तरह शुरू से ही भारत भूमि पर कलायत का इतिहास गौरवशाली रहा है।
१४,जनवरी दिन बुधवार१७६१ईसवी में मकर सक्रांति के दिन वीर गंगा सिंह महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत ने सदा शिव राव भाऊ के सेनापति के रूप में रुहेला सरदार नजीब खान और अब्दाली दुर्रानी के विरुद्ध युद्ध में अपनी सेना सहित वीर गति पाई जबकि उत्तर भारत में किन्ही राजपूत, आदि ने मराठों का साथ नही दिया ,उनकी रानी राम प्यारी सती हुई।

THIRD BETTLE OF PANIPAT @ROHILA RAJPUTS _@रोहिला राजपूत और पानीपत1761 का युद्ध

*⚔️🚩14जनवरी वीर गंगा सिंह महेचा  Rathod  रोहिला राजपूत के  बलिदान  पर  शत शत नमन🚩⚔️*

*आज दिनांक 18मार्च 2024 से 264 साल पहले 14 जनवरी 1761 ईसवी दिन  बुध वार  हाड़ कंपाने वाली कड़कती ठंड और बारिश कोहरे के अंधेरे में  PANIPAT  KE MEDAAN में दिया था इस  वीर  ने सनातन की रक्षा के लिए  अपने जीवन का बलिदान।।

इतिहास में अजेय  वीर गंगा सिंह    महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत 

,मराठों और अहमद शाह अब्दाली तथा नाजीबुद्दोला उर्फ नजीब खान रुहेला के बीच पानीपत के प्रसिद्ध  युद्ध में लड़ा  था DESH RAKSHA  के लिए , सदा शिव राव भाऊ के सेना के सेनापति के रूप में ,
दिया था जीवन का  सबसे बड़ा बलिदान।। उनकी सम्पूर्ण सेना ने भी पाई थी वीर गति*।।
*14जनवरी दिन  बुध  वार मकर सक्रांति 1761 को PANIPAT  MEDAAN में  एक BHAYNKAR  Yuddh ,हुआ था ।। फूट के कारण 150000 मराठो को अबदाली व नजीब खान रुहेला की संयुक्त सेना ने 2बजे से 5बजे के बीच काट डाला जो हिंदुत्व/सनातन की रक्षा महाराष्ट्र से आये थे और उन्हें न यहां के लोगो ने  कोई सहायता नही दी, भूखे ही लड़े , जीत कर भी सर्दी भूख और धोखे के  कारण हारे ।।यदि हिन्दू  एकता के साथ  14जनवरी मकर सक्रांति को  PANIPAT में अबदाली से युद्ध करते तो भारत मे  ब्रिटिशराज ना होता और भारत का मानचित्र कुछ और ही  होता । उधर 14जनवरी 1761 दिन बुधवार मकर सक्रांति को कुरुक्षेत्र नहाने गए मराठा श्रद्धालुओ को अबदाली की सेना की टुकड़ी ने सूरजकुंड में काट डाला ठंडे जल में लाल हो गया था सूरजकुंड तालाब कुरुक्षेत्र का,, जो आज भी सूखने पर लाल दिखता है। 40000 हिन्दू महिलाओ को नहाते हुए ही ठंडे जल से ठिठुरते हुए नँगा  ही उठा कर  अफगान सेना अब्दाली के शिविर में ले गयी, जिन्हें अफगानिस्तान की सेना को वितरित कर दिया गया।।।*वापिस लोट रहे अफगानों से  DULLA  BHATTI  ने  उन दक्षिण भारतीय हिन्दू मराठी महिलाओं को छुड़ाया तथा  अफगानी सेना की टुकड़ी  को मार गिराया था*।।कलायत से वीर  गंगा सिंह महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत ने अपनी सेना सहित मराठी सेना का साथ दिया ओर सदाशिव राव भाऊ के प्रमुख सेना पति के रूप में वीर गति पाई वीर  गंगा सिंह महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत की समाधि व रानी रामप्यारी का सती मन्दिर आज भी आप कलायत (कैथल)के कपिल मुनि स्थान पर आश्रम में देख सकते है जिसका निर्माण मछोंडा निवासी रोहिला राजपूत सौदागर मल पुत्र अमर नाथ ने  कराया था* 
 कलायत  का राज्य MUDAHAAD राजपूतो है वही रानी रामप्यारी सती माता का मंदिर  भी कपिल मुनि स्थान पर है जिसे सभी राजपूत मिलकर पूजते है,ऐसा इतिहास कार प्रशांत सिंह राणा mudahad करनाल वालो ने साक्षात देखा और वीर गंगा सिंह महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत की समाधि का शिलालेख साझा किया है।7*।
*इसी वंश के महेचा*
 *राठौड़ रोहिला राजपूत कलायत से चल कर करनाल के आस पास के विलेजिज में रुके ओर कुछ लोग यमुना पार करते हुए ambaheta* *अंबहेटा,घाट हेडा, नल्हेडा, उम्अरी आदि विलेजेज में प्रवास किया ,घाट हेडा में जनरल भवानी सिंह के प्रपोत्र ठाकुर हरी सिंह महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत एक महान क्रांति कारी हुए ये पांचों भाईयो ने आज़ादी के लिए अपना यौवन बलिदान किया, ठाकुर हरिसिंह के छोटे भाई तो अपनी नवेली दुल्हन को भी छोड़ रास्ते से ही* *आज़ादी के दीवानों की पुकार पर भाग खड़े हुए उनका नाम था शशि भूषण महेचराना ,!!!आज उसी परिवार से आर्य समाज में एक महान राज ऋषि है श्री श्री १००८श्री ज्ञानाननद जी महाराज जिनका गृहस्थ में नाम रहा श्री राजपाल सिंह रोहिला,!!! उनका स्वर्गारोहण सन2024के आरंभिक माह में हो गया है। 1857के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में भी इसी महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत राजवंश के जनरल भवानी सिंह ने तात्या टोपे के प्रमुख सेनापति के रूप में ब्रिटिश सरकार को नाको चने चबाए थे* *ये राजवंश रोहिलखंड के पीलीभीत व बन्दायू से कलायत आए थे।*इतिहास ने इस रक्त रंजित सक्रांति को भुला दिया है किन्तु रोहिला राजपूत इतिहास में यह १७६१की मकर सक्रांति स्मरणीय अक्षरों में लिखी गई है ,हिन्दू धर्म रक्षार्थ हुई थी धरा रक्त से लाल*
*ऐसे महान वीर जिसने स्वधर्म हिंदुत्व की रक्षा के लिए उत्तर भारत में अक्रांता अब्दाली को रोकने आए मराठों का साथ दिया था जब कोई साथ नहीं आया क्योंकि मराठे यहां की रियासतों से कर वसूल रहे थे*
*स्वधर्म के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने वाले इस महान वीर को शत शत नमन,इस विश्व प्रसिद्ध युद्ध ने भारत की तस्वीर ही बदल दी थी यदि मराठे जीत जाते तो अंग्रेजी राज खत्म हो जाता किंतु यहां राष्ट्र से अधिक महत्व वर्चस्व को दिया गया*
*वीर गंगा सिंह महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत का नाम कही भी इस युद्ध के वर्णन में किसी ने नही किया किंतु उस महान वीर की वीर गाथा रोहिला राजपूत इतिहास में जीवित है* 
*सभी क्षत्रिय बंधुओ से निवेदन है कि उनकी स्मृति में सांय काल एक दीपक जलाया जाए और उनकी बहादुरी को नमन करते हुए भावी पीढ़ी को उनके इतिहास से अवगत कराया जाए*
*जय जय राजपूताना रोहिलखंड*🙏🚩https://youtu.be/OeYRf5x5uF0?feature=shared
*14January मकर सक्रांति दिन बुधवार 1761ईस्वी हाड़ कंपाने वाली कड़कती सर्दी भूख के तांडव में अद्भुत युद्ध में वीर गंगा सिंह महेचावत राठौड़ रोहिला राजपूत का और मर्द मराठों का बलिदान एक अमित कहानी है और भारत के भाग्य की एक महत्व पूर्ण कड़ी है,सुनिए वीरांगना आरती रोहिला की प्रस्तुति उनकी आवाज में और भारत के कोने कोने में पहुंचाइए जनमानस तक ताकि सच्चाई सामने आए।। ओर भावी पीढ़ी जाने मर्द मराठों और रोहिला राजपूतों का बलिदान और याद रखे सारा हिन्दुस्तान*🚩🚩https://youtu.be/OeYRf5x5uF0?feature=shared
*14January मकर सक्रांति दिन बुधवार 1761ईस्वी हाड़ कंपाने वाली कड़कती सर्दी भूख के तांडव में अद्भुत युद्ध में वीर गंगा सिंह महेचावत राठौड़ रोहिला राजपूत का और मर्द मराठों का बलिदान एक अमित कहानी है और भारत के भाग्य की एक महत्व पूर्ण कड़ी है,सुनिए वीरांगना आरती रोहिला की प्रस्तुति उनकी आवाज में और भारत के कोने कोने में पहुंचाइए जनमानस तक ताकि सच्चाई सामने आए।। ओर भावी पीढ़ी जाने मर्द मराठों और रोहिला राजपूतों का बलिदान और याद रखे सारा हिन्दुस्तान*

*विशेष नोट___यहां प्रदर्शित सभी चित्र नेट पर उपलब्ध है और पाठको को समझाने और सुविधा पूर्वक देखने हेतु सोसल मीडिया से लिए गए हैं इन पर लेखक का कोई अधिकार नहीं है।