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Sunday, 24 March 2024

ROHILLA THE TITLE

रोहिल्ला उपाधि - शूरवीर, अदम्य - साहसी विशेष युद्ध कला में प्रवीण, उच्च कुलीन सेनानायको, और सामन्तों को उनके गुणों के अनुरूप क्षत्रिय वीरों को तदर्थ उपाधि से विभूषित किया जाता था - जैसे - रावत - महारावत, राणा, महाराणा, ठाकुर, नेगी, रावल, रहकवाल, रोहिल्ला, समरलछन्द, लखमीर,(एक लाख का नायक) आदि। इसी आधार पर उनके वंशज भी आजतक राजपूतों के सभी गोत्रों में पाए जाते हैं। "वभूव रोहिल्लद्व्यड्कों वेद शास्त्रार्थ पारग: । द्विज: श्री हरि चन्द्राख्य प्रजापति समो गुरू : ।।2।। ( बाउक का जोधपुर लेख ) - सन 837 ई. चैत्र सुदि पंचमी - हिंदी अर्थ - "वेद शास्त्र में पारंगत रोहिल्लाद्धि उपाधिधारी एक हरिश्चन्द्र नाम का ब्राह्मण था" जो प्रजापति के समान था हुआ ।।6।। ( गुज्जर गौरव मासिक पत्रिका - अंक 10, वर्ष ।।माह जौलाई 1991 पृष्ठ - 13) (राजपुताने का इतिहास पृष्ठ - 147) (इतिहास रोहिला - राजपूत पृष्ठ - 23) (प्राचीन भारत का इतिहास, राजपूत वंश, - कैलाश - प्रकाशन लखनऊ सन 1970 ई. पृष्ठ - 104 -105 - ) रोहिल्लद्व्यड्क रोहिल्लद्धि - अंक वाला या उपाधि वाला । सर्वप्रथम प्रतिहार शासक द्विज हरिश्चन्द्र को रोहिल्लद्धि उपाधि प्राप्त हुई । बाउक,प्रतिहार शासक विप्र हरिश्चन्द्र के पुत्र कवक और श्रीमति पदमनी का पुत्र था वह बड़ा पराक्रमी और नरसिंह वीर था। प्रतिहार एक पद है, किसी विशेष वर्ण का सूचक नही है। विप्र हरिश्चन्द्र प्रतिहार अपने बाहुबल से मांडौर दुर्ग की रक्षा करने वाला था, अदम्य साहस व अन्य किसी विशेष रोहिला शासक के प्रभावनुरूप ही रोहिल्लद्व्यड्क उपाधि को किसी आधार के बिना कोई भी व्यक्ति अपने नाम के साथ सम्बन्ध करने का वैधानिक रूप में अधिकारी नही हो सकता। उपरोक्त से स्पष्ट है कि बहुत प्राचीन काल से ही गुणकर्म के आधार पर क्षत्रिय उपाधि "रोहिल्ला" प्रयुक्त । प्रदत्त करने की वैधानिक व्यवस्था थी। जिसे हिन्दुआसूर्य - महाराजा पृथ्वीराज चौहान ने भी यथावत रखा। पृथ्वीराज चौहान की सेना में एक सौ रोहिल्ला - राजपूत सेना नायक थे । "पृथ्वीराज रासौ" - चहूँप्रान, राठवर, जाति पुण्डीर गुहिल्ला । बडगूजर पामार, कुरभ, जागरा, रोहिल्ला ।। इस कवित्त से स्पष्ट है । कि - प्राचीन - काल में रोहिला- क्षत्रियों का स्थान बहुत ऊँचा था। रोहिला रोहिल्ल आदि शब्द राजपुत्रों अथवा क्षत्रियों के ही द्योतक थे । इस कवित्त के प्रमाणिकता "आइने अकबरी", 'सुरजन चरिता' भी सिद्ध करते हैं । युद्ध में कमानी की तरह (रोह चढ़ाई करके) शत्रु सेना को छिन्न - भिन्न करने वाले को रहकवाल, रावल, रोहिल्ला, महाभट्ट कहा गया है। महाराज पृथ्वीराज चौहान की सेना में पांच गोत्रों के रावल थे - रावल - रोहिला रावल - सिन्धु रावल - घिलौत (गहलौत) रावल - काशव या कश्यप रावल - बलदया बल्द मुग़ल बादशाह अकबर ने भी बहादुरी की रोहिल्ला उपाधि को यथावत बनाए रखा जब अकबर की सेना दूसरे राज्यों को जीत कर आती थी तो अकबर अपनी सेना के सरदारों को,बहादुर जवानों बहादुरी के पदक (ख़िताब,उपाधि) देता था। एक बार जब महाराणा मान सिंह काबुल जीतकर वापिस आए तो अकबर ने उसके बाइस राजपूत सरदारों को यह ख़िताब दी (उपाधि से सम्मानित किया) बाई तेरा हर निरकाला रावत को - रावल जी चौमकिंग सरनाथा को - रावल झंड्कारा कांड्कड को - रोहिल्ला रावत मन्चारा - कांड्कड काम करन, निरकादास रावत को रावराज और रूहेलाल को रोहिला
गौरवशाली इतिहास के कुछ स्वर्णाक्षर (रोहिला क्षत्रिय) भारत वर्ष का क्षेत्रफल 42 ,02 ,500 वर्ग किमी था । रोहिला साम्राज्य 25 ,000 वर्ग किमी 10 ,000 वर्गमील में फैला हुआ था । रोहिला, राजपूतो का एक गोत्र , कबीला (परिवार) या परिजन- समूह है जो कठेहर - रोहिलखण्ड के शासक एंव संस्थापक थे |मध्यकालीन भारत में बहुत से राजपूत लडाको को रोहिला की उपाधि से विभूषित किया गया. उनके वंशज आज भी रोहिला परिवारों में पाए जाते हैं । रोहिले- राजपूत प्राचीन काल से ही सीमा- प्रांत, मध्य देश (गंगा- यमुना का दोआब), पंजाब, काश्मीर, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और बुंदेलखंड के कुछ भागों में शासन करते रहे हैं । जबकि मुस्लिम-रोहिला साम्राज्य अठारहवी शताब्दी में इस्लामिक दबाव के पश्चात् स्थापित हुआ. मुसलमानों ने इसे उर्दू में "रूहेलखण्ड" कहा और खुद को ये अफगान लोग रुहेला सरदार कहलाने लगे । सन 1702 से 1720 ई तक रोहिलखण्ड में रोहिले राजपूतो का शासन था(औरंगजेब के कमजोर पड़ते ही पुनः रोहिला राजपूतों ने रोहिलखंड को स्वतंत्र घोषित कर दिया था). जिसकी राजधानी बरेली थी । रोहिले राजपूतो के महान शासक "राजा इन्द्रगिरी" ने रोहिलखण्ड की पश्चिमी सीमा पर सहारनपुर में एक किला बनवाया,जिसे "प्राचीन रोहिला किला" कहा जाता है । सन 1801 ई में रोहिलखण्ड को अंग्रेजो ने अपने अधिकार में ले लिया था. हिन्दू रोहिले-राजपुत्रो द्वारा बनवाए गये इस प्राचीन रोहिला किला को 1806 से 1858 के मध्य कारागार में परिवर्तित कर दिया गया था । इसी प्राचीन- रोहिला- किला में आज सहारनपुर की जिला- कारागार है । "सहारन" राजपूतो का एक गोत्र है जो रोहिले राजपूतो में पाया जाता है. यह सूर्य वंश की एक प्रशाखा है जो राजा भरत के पुत्र तक्ष के वंशधरो से प्रचालित हुई थी । फिरोज तुगलक के आक्रमण के समय "थानेसर" (वर्तमान में हरियाणा में स्थित) का राजा "सहारन" ही था । दिल्ली में गुलाम वंश के समय रोहिलखण्ड की राजधानी "रामपुर" में राजा रणवीर सिंह कठेहरिया (काठी कोम, निकुम्भ वंश, सूर्यवंश रावी नदी के काठे से विस्थापित कठगणों के वंशधर) का शासन था । इसी रोहिले राजा रणवीर सिंह ने तुगलक के सेनापति नसीरुद्दीन चंगेज,बहराम वंश (नसीरुद्दीन महमूद) को हराया था. 'खंड' क्षत्रिय राजाओं से सम्बंधित है, जैसे भरतखंड, बुंदेलखंड, विन्धयेलखंड , रोहिलखंड, कुमायुखंड, उत्तराखंड आदि । प्राचीन भारत की केवल दो भाषाएँ संस्कृत व प्राकृत (सरलीकृत संस्कृत) थी । रोहिल प्राकृत और खंड संस्कृत के शब्द हैं जो क्षत्रिय राजाओं के प्रमाण हैं । इस्लामिक नाम है दोलताबाद, कुतुबाबाद, मुरादाबाद, जलालाबाद, हैदराबाद, मुबारकबाद, फैजाबाद, आदि । रोहिले राजपूतो की उपस्तिथि के प्रमाण हैं । योधेय गणराज्य के सिक्के, गुजरात का (1445 वि ) ' का शिलालेख (रोहिला मालदेव के सम्बन्ध में), मध्यदेश में स्थित रोहिलखंड रामपुर में राजा रणवीर सिंह के किले के खंडहर, रानी तारादेवी सती का मंदिर , पीलीभीत में राठौर रोहिलो (महिचा- प्रशाखा) की सतियों के सतियों के मंदिर, सहारनपुर का प्राचीन रोहिला किला, मंडोर का शिलालेख, " बड़ौत में स्तिथ " राजा रणवीर सिंह रोहिला मार्ग ",सहारनपुर में प्राचीन रोहिला किला के सामने स्थित सूर्य वंशी क्षत्रिय सम्राट कठेहर रोहिलखंड महाराजा रणवीर सिंह रोहिला चौक,।।
नगरे नगरे ग्रामै ग्रामै विलसन्तु संस्कृतवाणी । सदने - सदने जन - जन बदने , जयतु चिरं कल्याणी ।। जोधपुर का शिलालेख, प्रतिहार शासक हरीशचंद्र को मिली रोहिल्लाद्व्यंक की उपाधि, कई अन्य राजपूतो के वंशो को प्राप्त उपाधियाँ, 'पृथ्वीराज रासो', आल्हाखण्ड - काव्य और, सभी राजपूत वंशो में पाए जाने वाले प्रमुख गोत्र । अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा भारत द्वारा प्रकाशित पावन ग्रन्थ क्षत्रिय वंशाणर्व (रोहिले क्षत्रियों का राज्य रोहिलखण्ड का पूर्व नाम पांचाल व मध्यदेश), वर्तमान में अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा से अखिल भारतीय रो. क्ष. वि. परिषद को संबद्धता प्राप्त होना, वर्तमान में भी रोहिलखण्ड (संस्कृत भाषा में) क्षेत्र का नाम यथावत बने रहना, अंग्रेजो द्वारा भी उत्तर रेलवे को "रोहिलखण्ड - रेलवे" का नाम देना जो बरेली से देहरादून तक सहारनपुर होते हुए जाती थी, वर्तमान में लाखो की संख्या में पाए जाने वाले रोहिला-राजपूत, रोहिले-राजपूतों के सम्पूर्ण भारत में फैले हुए कई अन्य संगठन अखिल भारतीय स्तर पर 'राजपूत रत्न' रोहिला शिरोमणि डा. कर्णवीर सिंह द्वारा संगठित एक अखिल भारतीय रोहिला क्षत्रिय विकास परिषद (सम्बद्ध अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा) पंजीकरण संख्या - 545, आदि,अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के बहुत से रोहिला क्षत्रियों का आजीवन सदस्य और पदाधिकारी होना। 12. पानीपत की तीसरी लड़ाई (अब्दाली और मराठा वार में) रोहिले राजपूत- राजा गंगासहाय राठौर /गंगा सिंह महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत के नेतृत्व में मराठों की ओर से अफगान आक्रान्ता अहमदशाह अब्दाली व पठान नजीबदौला(रुहेला सरदार नजीब खान) के विरुद्ध लड़े व वीरगति पाई । इस मराठा युद्ध में लगभग एक हजार चार सौ रोहिले राजपूत वीरगति को प्राप्त हुए । (1761-ईसवी,दिन बुधवार, मकर सक्रांति,१४जनवरी .) (इतिहास -रोहिला-राजपूत द्वारा डॉक्टर के सी सेन पानीपत, और ,कलायत,हरियाणा में वर्तमान में स्थित शिला लेख और रानी सती रामप्यारी का स्मारक स्थल दर्शनीय है) 13. प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 में भी रोहिले राजपूतों ने अपना योगदान दिया, ग्वालियर के किले में रानी लक्ष्मीबाई को हजारों की संख्या में रोहिले राजपूत मिले, इस महायज्ञ में स्त्री पुरुष सभी ने अपने गहने धन आदि एकत्र कर झाँसी की रानी के साथ अंग्रेजो के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए सम्राट बहादुरशाह- जफर तक पहुँचाए । अंग्रेजों ने ढूँढ-ढूँढ कर उन्हें काट डाला और शूट एट साइट का नोटिस जारी किया जिससे रोहिले राजपूतों ने अज्ञातवास की शरण ली। 14. राजपूतों की हार के प्रमुख कारण थे हाथियों का प्रयोग, सामंत प्रणाली व आपसी मतभेद, ऊँचे व भागीदार कुल का भेदभाव (छोटे व बड़े की भावना) आदि। 15. सम्वत 825 में बप्पा रावल चित्तौड़ से विधर्मियों को खदेड़ता हुआ ईरान तक गया। बप्पा रावल से समर सिंह तक 400 वर्ष होते हैं, गह्लौतों का ही शासन रहा। इनकी 24 शाखाएँ हैं। जिनके 16 गोत्र (बप्पा रावल के वंशधर) रोहिले राजपूतों में पाए जाते हैं। 16. चितौड़ के राणा समर सिंह (1193 ई.) की रानी पटना की राजकुमारी थी इसने 9 राजा, 1 रावत और कुछ रोहिले साथ लेकर मौ. गोरी के गुलाम कुतुबद्दीन का आक्रमण रोका और उसे ऐसी पराजय दी कि कभी उसने चितौड़ की ओर नही देखा। 17. रोहिला शब्द क्षेत्रजनित, गुणजनित व 'मूल पुरुष' नाम-जनित है। यह गोत्र जाटों में भी रूहेला, रोहेला, रूलिया, रूहेल , रूहिल, रूहिलान नामों से पाया जाता है। 18. रूहेला गोत्र जाटों में राजस्थान व उ. प्र. में पाया जाता है। रोहेला गोत्र के जाट जयपुर में बजरंग बिहार ओर ईनकम टैक्स कालोनी टौंक रोड में विद्यमान है। झुनझुन, सीकर, चुरू, अलवर, बाडमेर में भी रोहिला गोत्र के जाट विद्यमान हैं । उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में रोहेला गोत्र के जाटों के बारह गाँव हैं। महाराष्ट्र में रूहिलान गोत्र के जाट वर्धा में केसर व खेड़ा गाँव में विद्यमान हैं। 19. मुगल सम्राट अकबर ने भी राजपूत राजाओं को विजय प्राप्त करने के पश्चात् रोहिला-उपाधि से विभूषित किया था, जैसे राव, रावत, महारावल, राणा, महाराणा, रोहिल्ला, रहकवाल आदि। 20. "रोहिला-राजपूत" समाज , क्षत्रियों का वह परिवार है जो सरल ह्रदयी, परिश्रमी,राष्ट्रप्रेमी,स्वधर्मपरायण, स्वाभिमानी व वर्तमान में अधिकांश बिखरा होने के कारण साधनविहीन है। 40 प्रतिशत कृषि कार्य से,30 प्रतिशत श्रम के सहारे व 30 प्रतिशत व्यापार व लघु उद्योगों के सहारे जीवन यापन कर रहे हैं। इनके पूर्वजो ने हजारों वर्षों तक अपनी आन, मान, मर्यादा की रक्षा के लिए बलिदान दिए हैं और अनेको आक्रान्ताओं को रोके रखने में अपना सर्वस्व मिटाया है । गणराज्य व लोकतंत्रात्मक व्यवस्था को सजीव बनाये रखने की भावना के कारण वंश परंपरा के विरुद्ध रहे, करद राज्यों में भी स्वतंत्रता बनाये रखी । कठेहर रोहिलखण्ड की स्थापना से लेकर सल्तनत काल की उथल पुथल, मार काट , दमन चक्र तक लगभग आठ सौ वर्ष के शासन काल के पश्चात् 1857 के ग़दर के समय तक रोहिले राजपूतों ने राष्ट्रहित में बलिदान दिये हैं। क्रूर काल के झंझावालों से संघर्ष करते हुए क्षत्रियों का यह 'रोहिला परिवार' बिखर गया है, इस समाज की पहचान के लिए भी आज स्पष्टीकरण देना पड़ता है। कैसा दुर्भाग्य है? यह क्षत्रिय वर्ग का। जो अपनी पहचान को भी टटोलना पड़ रहा है। परन्तु समय के चक्र में सब कुछ सुरक्षित है। इतिहास के दर्पण में थिरकते चित्र, बोलते हैं, अतीत झाँकता है, सच सोचता है कि उसके होने के प्रमाण धुंधले-धुंधले से क्यों हैं? हे- क्षत्रिय तुम धन्य हो, पहचानो अपने प्रतिबिम्बों को' - "क्षत्रिय एकता का बिगुल फूँक सब धुंधला धुंधला छंटने दो। हो अखंड भारत के राजपुत्र खण्ड खण्ड में न सबको बंटने दो ।।" 21. रोहिलखण्ड से विस्थापित इन रोहिला परिवारों में राजपूत परम्परा के कुछ प्रमुख गोत्र इस प्रकार पाए जाते हैं :- 
रोहिला, रोहित, रोहिल, रावल, द्रोहिया, रल्हन, रूहिलान, रौतेला , रावत यौधेय, योतिक, जोहिया, झोझे, पेशावरी पुण्डीर, पांडला, पंढेर, पुन्ड़ेहार, पुंढीर, पुंडाया चौहान, जैवर, जौडा, चाहल, चावड़ा, खींची, गोगद, गदाइया, सनावर, क्लानियां, चिंगारा, चाहड बालसमंद, चोहेल, चेहलान, बालदा, बछ्स (वत्स), बछेर, चयद, झझोड, चौपट, खुम्ब, जांघरा, जंगारा, झांझड निकुम्भ, कठेहरिया, कठौरा, कठैत, कलुठान, कठपाल, कठेडिया, कठड, काठी, कठ, पालवार राठौर, महेचा, महेचराना, रतनौता, बंसूठ जोली, जोलिए, बांकटे, बाटूदा, थाथी, कपोलिया, खोखर, अखनौरिया ,लोहमढ़े, मसानिया बुन्देला, उमट, ऊमटवाल भारतवंशी, भारती, गनान नाभावंशी,बटेरिया, बटवाल, बरमटिया परमार, जावडा, लखमरा, मूसला, मौसिल, भौंसले, बसूक, जंदडा, पछाड़, पंवारखा, ढेड, मौन तोमर, तंवर, मुदगल, देहलीवाल, किशनलाल, सानयाल, सैन, सनाढय गहलौत, कूपट, पछाड़, थापा, ग्रेवाल, कंकोटक, गोद्देय, पापडा, नथैड़ा, नैपाली, लाठिवाल, पानिशप, पिसोण्ड, चिरडवाल, नवल, चरखवाल, साम्भा, पातलेय, पातलीय, छन्द (चंड), क्षुद्रक,(छिन्ड, इन्छड़, नौछड़क), रज्जडवाल, बोहरा, जसावत, गौर, मलक, मलिक, कोकचे, काक कछवाहा, कुशवाहा, कोकच्छ, ततवाल, बलद, मछेर सिसौदिया, भरोलिया, बरनवाल, बरनपाल, बहारा
खुमाहड, अवन्ट, ऊँटवाल 
सिकरवार, रहकवाल, रायकवार, ममड, गोदे सोलंकी, गिलानिया, भुन, बुन, बघेला, ऊन, (उनयारिया) बडगूजर, सिकरवार, ममड़ा, पुडिया कश्यप, काशब, रावल, रहकवाल यदु, मेव, छिकारा, तैतवाल, भैनिवाल, उन्हड़, भाटटी बनाफरे, जादो, बागड़ी, सिन्धु, कालड़ा, सारन, छुरियापेड, लखमेरिया, चराड, जाखड़, सेरावत, देसवाल, पूडिया प्रमुख रोहिला क्षत्रिय शासक अंगार सैन - गांधार (वैदिक काल) अश्वकरण - ईसा पूर्व 326 (मश्कावती दुर्ग) अजयराव - स्यालकोट (सौकंल दुर्ग) ईसा पूर्व 326 प्रचेता - मलेच्छ संहारक शाशिगुप्त - साइरस के समकालीन सुभाग सैन - मौर्य साम्राज्य के समकालीन राजाराम शाह - 929 वि. रामपुर रोहिलखण्ड बीजराज - रोहिलखण्ड करण चन्द्र - रोहिलखण्ड विग्रह राज - रोहिलखण्ड - गंगापार कर स्रुघ्न जनपद (सुगनापुर) यमुना तक विस्तार दसवीं शताब्दी में सरसावा में किले का निर्माण पश्चिमी सीमा पर, यमुना द्वारा ध्वस्त टीले के रूप में नकुड़ रोड पर देखा जा सकता है। सावन्त सिंह - रोहिलखण्ड जगमाल - रोहिलखण्ड धिंगतराव - रोहिलखण्ड गोंकुल सिंह - रोहिलखण्ड महासहाय - रोहिलखण्ड त्रिलोक चन्द - रोहिलखण्ड रणवीर सिंह - रोहिलखण्ड सुन्दर पाल - रोहिलखण्ड नौरंग देव - रोहिलखण्ड सूरत सिंह - रोहिलखण्ड हंसकरण रहकवाल - पृथ्वीराज के सेनापति मिथुन देव रायकवार - ईसम सिंह पुण्डीर के मित्र थाना भवन शासक सहकरण, विजयराव - उपरोक्त राजा हतरा - हिसार जगत राय - बरेली मुकंदराज - बरेली 1567 ई. बुधपाल - बदायुं महीचंद राठौर - बदायुं बांसदेव - बरेली बरलदेव - बरेली राजसिंह - बरेली परमादित्य - बरेली न्यादरचन्द - बरेली राजा सहारन - थानेश्वर प्रताप राव खींची (चौहान वंश) - गागरोन राणा लक्ष्य सिंह - सीकरी रोहिला मालदेव - गुजरात जबर सिंह - सोनीपत रामदयाल महेचराना - क्लामथ गंगसहाय - महेचराना - क्लामथ 1761 ई. राणा प्रताप सिंह - कौराली (गंगोह) 1095 ई. नानक चन्द - अल्मोड़ा राजा पूरणचन्द - बुंदेलखंड राजा हंस ध्वज - हिसार व राजा हरचंद राजा बसंतपाल - रोहिलखण्ड व्रतुसरदार, सामंत वृतपाल 1193 ई. महान सिंह बडगूजर - बागपत 1184 ई. राजा यशकरण - अंधली गुणाचन्द - जयकरण - चरखी - दादरी राजा मोहनपाल देव - करोली राजारूप सैन - रोपड़ राजा महपाल पंवार - जीन्द राजा परपदेड पुंडीर - लाहौर राजा लखीराव - स्यालकोट राजा जाजा जी तोमर - दिल्ली खड़ग सिंह - रोहिलखण्ड लौदी के समकालीन राजा हरि सिंह - खिज्रखां के दमन का शिकार हुआ - कुमायुं की पहाड़ियों में अज्ञातवास की शरण ली राजा इन्द्रगिरी (रोहिलखण्ड) (इन्द्रसेन) - सहारनपुर में प्राचीन रोहिला किला बनवाया । रोहिला क्षत्रिय वंश भास्कर लेखक आर. आर. राजपूत मुरसेन अलीगढ से प्रस्तुत राजा बुद्ध देव रोहिला - 1787 ई., सिंधिया व जयपुर के कछवाहो के खेड़ा व तुंगा के मैदान में हुए युद्ध का प्रमुख पात्र । (राय कुँवर देवेन्द्र सिंह जी राजभाट, तुंगा (राजस्थान)
रोहिल्ला उपाधि - शूरवीर, अदम्य - साहसी विशेष युद्ध कला में प्रवीण, उच्च कुलीन सेनानायको, और सामन्तों को उनके गुणों के अनुरूप क्षत्रिय वीरों को तदर्थ उपाधि से विभूषित किया जाता था - जैसे - रावत - महारावत, राणा, महाराणा, ठाकुर, नेगी, रावल, रहकवाल, रोहिल्ला, समरलछन्द, लखमीर,(एक लाख का नायक) आदि। इसी आधार पर उनके वंशज भी आजतक राजपूतों के सभी गोत्रों में पाए जाते हैं। "वभूव रोहिल्लद्व्यड्कों वेद शास्त्रार्थ पारग: । द्विज: श्री हरि चन्द्राख्य प्रजापति समो गुरू : ।।2।। ( बाउक का जोधपुर लेख ) - सन 837 ई. चैत्र सुदि पंचमी - हिंदी अर्थ - "वेद शास्त्र में पारंगत रोहिल्लाद्धि उपाधिधारी एक हरिश्चन्द्र नाम का ब्राह्मण था" जो प्रजापति के समान था हुआ ।।6।। ( गुज्जर गौरव मासिक पत्रिका - अंक 10, वर्ष ।।माह जौलाई 1991 पृष्ठ - 13) (राजपुताने का इतिहास पृष्ठ - 147) (इतिहास रोहिला - राजपूत पृष्ठ - 23) (प्राचीन भारत का इतिहास, राजपूत वंश, - कैलाश - प्रकाशन लखनऊ सन 1970 ई. पृष्ठ - 104 -105 - ) रोहिल्लद्व्यड्क रोहिल्लद्धि - अंक वाला या उपाधि वाला । सर्वप्रथम प्रतिहार शासक द्विज हरिश्चन्द्र को रोहिल्लद्धि उपाधि प्राप्त हुई । बाउक,प्रतिहार शासक विप्र हरिश्चन्द्र के पुत्र कवक और श्रीमति पदमनी का पुत्र था वह बड़ा पराक्रमी और नरसिंह वीर था। प्रतिहार एक पद है, किसी विशेष वर्ण का सूचक नही है। विप्र हरिश्चन्द्र प्रतिहार अपने बाहुबल से मांडौर दुर्ग की रक्षा करने वाला था, अदम्य साहस व अन्य किसी विशेष रोहिला शासक के प्रभावनुरूप ही रोहिल्लद्व्यड्क उपाधि को किसी आधार के बिना कोई भी व्यक्ति अपने नाम के साथ सम्बन्ध करने का वैधानिक रूप में अधिकारी नही हो सकता। उपरोक्त से स्पष्ट है कि बहुत प्राचीन काल से ही गुणकर्म के आधार पर क्षत्रिय उपाधि "रोहिल्ला" प्रयुक्त । प्रदत्त करने की वैधानिक व्यवस्था थी। जिसे हिन्दुआसूर्य - महाराजा पृथ्वीराज चौहान ने भी यथावत रखा। पृथ्वीराज चौहान की सेना में एक सौ रोहिल्ला - राजपूत सेना नायक थे । "पृथ्वीराज रासौ" - चहूँप्रान, राठवर, जाति पुण्डीर गुहिल्ला । बडगूजर पामार, कुरभ, जागरा, रोहिल्ला ।। इस कवित्त से स्पष्ट है । कि - प्राचीन - काल में रोहिला- क्षत्रियों का स्थान बहुत ऊँचा था। रोहिला रोहिल्ल आदि शब्द राजपुत्रों अथवा क्षत्रियों के ही द्योतक थे । इस कवित्त के प्रमाणिकता "आइने अकबरी", 'सुरजन चरिता' भी सिद्ध करते हैं । युद्ध में कमानी की तरह (रोह चढ़ाई करके) शत्रु सेना को छिन्न - भिन्न करने वाले को रहकवाल, रावल, रोहिल्ला, महाभट्ट कहा गया है। महाराज पृथ्वीराज चौहान की सेना में पांच गोत्रों के रावल थे - रावल - रोहिला रावल - सिन्धु रावल - घिलौत (गहलौत) रावल - काशव या कश्यप रावल - बलदया बल्द मुग़ल बादशाह अकबर ने भी बहादुरी की रोहिल्ला उपाधि को यथावत बनाए रखा जब अकबर की सेना दूसरे राज्यों को जीत कर आती थी तो अकबर अपनी सेना के सरदारों को,बहादुर जवानों बहादुरी के पदक (ख़िताब,उपाधि) देता था। एक बार जब महाराणा मान सिंह काबुल जीतकर वापिस आए तो अकबर ने उसके बाइस राजपूत सरदारों को यह ख़िताब दी (उपाधि से सम्मानित किया) बाई तेरा हर निरकाला रावत को - रावल जी चौमकिंग सरनाथा को - रावल झंड्कारा कांड्कड को - रोहिल्ला रावत मन्चारा - कांड्कड काम करन, निरकादास रावत को रावराज और रूहेलाल को रोहिला✍️संकलित :
द्वारा_
*समय सिंह पुंडीर*
 *संदर्भ ग्रंथ*
*क्षत्रिय/राजपूत वाटिका*
*प्रकाशित*
*अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा ,मुख्यालय दिल्ली*
*स्थापित१८८९*

SOME FACTS ABOUT ROHILA SANGTHAN

*अतीत और वर्तमान के दर्पण में थिरकते चित्र बोलते हैं, कि उनके होने का प्रमाण क्या है।।*
*1..रोहिला क्षत्रियों के विस्थापन और गदर1857 में उनके विरुद्ध शूट एट साइट का यानी देखते ही गोली मारने का आदेश जारी होने के बाद से परचून की हालत में बिखरना और ब्रिटिश काल में रोहिलखंड में अफगानों के शासन से इनकी पहचान विलुप्त होने के मुख्य कारण पाए गए* *प्रथम विश्व युद्ध के बाद रोहिला क्षत्रिय रोहिला राजपूत सरनेम से संगठित होने आरंभ हुए क्योंकि वक्त बदलता है रक्त नही*
*2..सन1930में युद्ध समाप्ति के एक दशक बाद महारानी विक्टोरिया ने जातिगत जनगणना कराई,पुरानी दिल्ली में जनगणना से समय कोई संगठन सक्रिय नही था,जो मार्ग दर्शन कर सके तो कुछ लोगो ने स्वयं को रोहिला टांक क्षत्रिय,कुछ लोगो ने टांक रोहिला क्षत्रिय लिखवाया और कार्य वही दोनो जिनका हवाला आज भी देते है दुहाई भी देते है,किंतु क्षत्रिय शब्द दोनो तरह से बताने वाले लोगो ने नही छोड़ा क्योंकि वे अपना और अपने पूर्वजों का इतिहास अभी भूले नही थे,इस जनगणना की रिपोर्ट सेंसस कमिश्नर जे एच हटशन ने ब्रिटिश हाई कमिश्नर को22दिसंबर1930, को सौंप दी जिसमे क्लियर अनुमोदित किया कि जाति के हिसाब से इन दोनो मिक्सड शब्दो के उपनाम से रोहिला टांक क्षत्रिय से टांक को अविलंब भिन्न /अलग किया जाए* *अतः सिद्ध होता है कि रोहिला क्षत्रिय उपनाम ब्रिटिश काल से प्रमाणिक है और दोनो समुदाय अलग अलग है**सामान्य क्षत्रिय केटेगरी में उल्लिखित है*
*4.1931 ईसवी में रोहिलखंड से विस्थापित होकर आए परचून की हालत में बिखरे पड़े इन क्षत्रिय परिवारों ने संगठित होने की योजना बनाई, और खुल कर सामने आ गए जबकि स्वतंत्रता के लिए देश भर में आंदोलन और संघर्ष जारी था बहुत से रोहिला राजपूत आजादी की जंग में कूद पड़े,और कही पर रोहिला क्षत्रिय और कही पर रोहिला राजपूत जाने गए ,कुछ स्थानों पर अभी अज्ञात वास जैसी ही हालत रही और पेशेगत जातियों के उपनाम को धारण कर जाने गए,उत्तर भारत में रोहिलखंड राजपूताना से विस्थापन लगभग चार सदी तक चलता रहा और 1720में पूर्णतया रोहिलखंड अफगानों के अधिकार में आ गया और वे खुद रुहेला सरदार /नवाब बन गए,इसके अतिरिक्त भारत में रोहिला क्षत्रियों की काठ ,कठ शाखा की विभिन्न नामों से लगभग69राजपूत रियासते थी जिनका उल्लेख यहां करना अप्रासंगिक है *एक संगठन रोहिला राजपूत नाम से बना जिसने इतिहास रोहिला राजपूत लिखवाए और खोज खोज कर अपने भाईयो को जोड़ा उनके गोत्रों की लिस्ट बनाई दूसरा संगठन रुहेला क्षत्रिय नाम से बना उन्होंने रुहेला क्षत्रिय जाति निर्णय नाम से इतिहास संकलित कराया* 
*5..दिल्ली में कोई संगठन आजादी से पहले नही बन पाया और भारत 1947, में आजाद हो गया* *1970 के दशक में हजारी लाल वर्मा जी जो एक पत्रिका निकालते थे और प्रेस रिपोर्ट भी बनाते थे उन्होंने टांक रोहिला क्षत्रिय नाम के संगठन बनाए जिनकी संख्या दिल्ली में आज लगभग दस है किसी का नाम रोहिला टांक सभा किसी का टांक रोहिला सभा है इनमे अन्य और पेशेगत जातियों के लोग सदस्य है किंतु 2014 तक सामान्य ही रहे यानी क्षत्रिय ही रहे सन2014, में टोंक नाम से दिल्ली में पिछड़े वर्ग में अधिसूचित हुए,रोहिला क्षत्रिय सामान्य में ही है ओबीसी नही है*
*दिल्ली के अंदर टांको के रोहिला राजपूतों के साथ रोहिला टांक महासभा नाम के संगठन होने के कारण कुछ लोगो ने वहां भी पिछड़ी का जिन्न खड़ा कर दिया है और रोहिला राजपूतों का सामान्य में रह जाना हजम नही हो रहा और रोहिला राजपूत को रुहेला जाति बता कर संख्या बढ़ाने की बात कहते हुए पिछड़ी जाति के लिए आवेदन किया गया बताया गया है ,कुछ राजनीतिक महत्वाकांक्षी लोग संख्या बल दिखा कर अपनी पैठ दिल्ली की राजनीति में बनाना चाहते है कि में इतनी पिछड़ी जातियों का सरदार हूं मुझे आम आदमी पार्टी टिकट दे दे यंत्री मनोनित कर दे ऐसे लोग रोहिला क्षत्रिय समाज के अस्तित्व के लिए घातक सिद्ध हो रहे है।अभी सर्वे हो गया बताया गया है किंतु रोहिला एक क्षत्रिय खाप है सरनेम है और सरनेम को जाति नही बनाया जा सकता,इस लिए अभी स्थिति साफ नही रोहिला क्षत्रियो का दिल्ली में क्या होगा पिछड़ी में रुहेला जाति स्वीकार करेंगे या रोहिला राजपूत बने रहेंगे*
*6..1984 में कुछ रोहिला क्षत्रिय लोगो ने निर्णय लिया कि विशुद्ध रोहिला क्षत्रियों का एक अलग संगठन बनाया जाय जिससे भ्रमित हो रहा या क्षत्रिय समाज जो पेशेग्गत जातियों की दल दल में जा रहा है उनकी भीड़ में गुम होता जा रहा है अपनी मौलिक पहचान बनाए और क्षत्रियों की मुख्य धारा की ओर चले, संगठन बन गया इतिहास लिखा गया और1989, के अक्टूबर माह की,22, तारीख को एक महाअधिवेशन बुलाया गया जिसमे इतिहास का विमोचन हो गया और मुख्य धारा के क्षत्रियों ने रोहिला क्षत्रियों को अपना अभिन्न अंग मानते हुए आवाह्न किया कि रोहिला क्षत्रियों को किन्ही अन्य पेशेगत जातियों के स्थान पर अपनी पहचान एक राजपूत/क्षत्रिय के रूप में बनानी चाहिए क्योंकि उनकी वंशावली इतिहास और भूगोल पूर्णतया जीवित है**इस संगठन का नाम रखा गया अखिल भारतीय रोहिला क्षत्रिय विकास परिषद रजिस्टर्ड*
*7..अब दौर चला कि जोर शोर से प्रचार किया जाए इतिहास बताया जाए रोहिला को क्षत्रिय/राजपूत साबित करने में कोर कसर न छोड़ी जाए।। सभी रोहिला क्षत्रिय अति उत्साह से परिपूर्ण रहे और कार्य करते रहे समाज संगठित होने लगा* *1995ईसवी में हरियाणा में रोहिला क्षत्रिय को क्षत्रिय शब्द हटा कर केवल रोहिला को चार पेशेगत जातियों के साथ पिछड़े वर्ग में सात प्रतिशत के आरक्षण में अधिसूचित कराया गया इसमें जो धोखा हो गया और किसने कैसे किया यदि बखान किया जाए तो रोहिला क्षत्रिय समाज के बन ए सभी संगठन के अध्यक्षों नेताओ की भारी भूल उजागर होगी जिससे समाज विघटित हो गया*
*मध्य प्रदेश में एक ही विधान सभा क्षेत्र में रोहिला राजपूतों के लगभग नब्बे गांव है सभी राजपूत ठाकुर पटेल जमींदार है वे किस ई पेशेगत जाति को नही जानते और न ही वे उनसे संबंधित है राजनीति के एक लालची नेता ने रूवला रुवाला नाम की किसी जाति के साथ पिछड़े वर्ग में अधिसूचित कर दिया अपनी वोटो की संख्या बढ़ाने के लालच में हो यो गया कि कोई सामाजिक संगठन नही था किसान संगठन थे*
*8..आज समय आया इलेक्ट्रोनिक मीडिया सोसल मीडिया का और सगठन में वर्चस्व की जंग का संघ संगठन बने रोहिला क्षत्रिय समाज बिखर गया और युवा वर्ग जाग गया जो इतनी जानकारी प्राप्त कर चुका है कि स्वाभिमान से रोहिला राजपूत कहता है और मुख्य धारा में लोटना चाहता है सम्पूर्ण राजपूत क्षत्रिय समाज रोहिला क्षत्रियों को एकता के लिए पुकारता है और पूर्ण सपोर्ट करने लगा है अपने राजपूत संगठनों में लेने के लिए उतारू है रोहिला क्षत्रियों का सम्मान लोटा लाया है आज का युवा और धीरे धीरे आर्थिक हालात भी काबू में आ गए है*
*दूरस्थ गांव की हालत भी ठीक है उनकी पहचान रोहिला क्षत्रिय के नाम से बनती जा रही है युवाओं का सर्किल विस्तृत हो गया सम्मान बढ़ गया है*
*9.इस पुनरोत्थान, पुनरोत्कर्श के काल में क्षत्रिय शब्द का अकाल पड़ गया अचानक ज्ञात हुआ कि उत्तर प्रदेश में भी कुछ महत्वाकांक्षी रोहिला प्रतिनिधियों ने राजनीतिक लाभ लेने और संख्या ओबीसी की बढ़ाने के लालच में निवेदन किया था कि जिस प्रदेश में राजपूताना रोहिलखंड है वहा भी रोहिला राजपूतों को रुहेला जाति मानते हुए पिछड़े वर्ग में डाला जाए*
**10..जबकि आज उत्तर प्रदेश में तीन सो जातियों को जो पिछड़ी है सत्ताइस प्रतिशत आरक्षण नही मिलेगा, संख्याबल और कार्य के आधार पर चार श्रेणी में बांटा गया है, रुहेला जी को पिछड़ी में संभवतः दो प्रतिशत का ही लाभ मिल पाएगा, राजनीतिक लाभ हेतु सम्पूर्ण समाज के अस्तित्व को खतरे में डाल रहे चंद लोग संख्या बल बढ़ाने के लिए अन्य दस जातिगत लोगो में विलय होकर रोहिला राजपूत समाज को उन जातियों का घटक बता कर उनके साथ रुहेला रोहिला सरनेम लिख कर राजनीतिक लाभ लेने हेतु अलग संगठन उनके साथ मिल कर बना लिए है,स्वयंभू नेता बने उनके सरकार को भ्रमित कर रोहिला राजपूत समाज से भी छलावा किया जा रहा है*
*यदि तीन दशक पहले ज्ञान शून्य कुछ समाज के ठेकेदारों ने उत्तर प्रदेश में पिछड़ी के लिए आवेदन कर भी दिया था तो उनसे अधिक शिक्षित आज के ठेकेदारों को जो वर्तमान में रोहिला क्षत्रिय सगठनों के नेता है और उच्चतम शिक्षित है क्या उन्हे वर्तमान स्थिति का आकलन नहीं करना चाहिए था कि अब आर्थिक आधार पर सवर्ण आरक्षण लेने और सामान्य में पजीकृत कराने में लाभ है या पिछड़ी में जाने में, किंतु उन्हें केवल अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकनी है और निजी लाभ हेतु सम्पूर्ण रोहिला क्षत्रिय समाज के उपनाम को उपयोग में लाना है दिमागी कसरत क्यों करे*
*शिक्षा आदमी को आंतरिक रूप से परफेक्ट बनाती है किंतु उच्च शिक्षित आज के नेताओ की मति भ्रष्ट हो गई और सोचने और सामाजिक पहलुओं पर अध्ययन करने की शक्ति शून्य हो गई है अथवा कोई समय नहीं लगाना चाहते और फालतू मे नेता बन गले में मालाएं डलवाते और राजपूताना पगड़ी धारण कर उसकी लाज गंवाते फिरते है समाज की कोई चिंता नहीं अपनी चमक के सामने*
*यह कार्य चंद लोगो ने अपनी मर्जी से किया बताया गया जिसमें उत्तर प्रदेश में निवास करने वाले हर आयु वर्ग के रोहिला राजपूत/,,क्षत्रिय परिवारों की कोई लिखित प्रस्तावित वार्ता रूपी सलाह सहमति नही है* 
*इस लिए सभी छ संगठनों ने जो रोहिला क्षत्रिय शब्द के साथ बने थे क्षत्रिय बोलना छोड़ दिया है ताकि पिछड़ी में आने में कोई अड़चन क्षत्रिय खुद को कहने में न आ जाए इसे कहते है आज वक्त बदलता है तो रक्त भी बदल जाता है पुरानी कहावत गलत सिद्ध हुई*
*प्रश्न*
*कृपया बताए सभी पाठक कि अचानक आई इस राजनीतिक बिसात की दूषित हवा के झोंके में सामाजिक सगठनों के राजनीतिक सगठनों में परिवर्तन को कैसे रोका जाए और किया क्या जाए या कुछ न किया जाए क्या ठीक होगा या गलत होगा*
*भावी पीढ़ी का भविष्य लिखने वाले वर्तमान नेतृत्व को क्या अधिकार है कोई* ????
*कुछ बदलते परिवेश को ध्यान में रखते हुए चंद शब्दो में अपनी राय दे क्योंकि सभी रोहिला क्षत्रिय सगठनों का नब्बे वर्षो का सफर निरर्थक होता जा रहा है जहां से आरंभ किया था वही अंत होने जा रहा है जो पहचान रोहिला राजपूत समाज की बनी थी उसे निजी लाभ हेतु धूल धूसरित किया जा रहा है सामाजिक नेता ज्ञान,स्वाभिमान शून्य होकर पिछलग्गू बन कर रोहिला क्षत्रिय समाज के साथ छलावा करने पर आमदा हो रहे है इस लिए आत्म चिंतन करते हुए रोहिला क्षत्रिय समाज के हितों की रक्षा के लिए सोचिए, कि आज ओबीसी में जाने में रोहिला क्षत्रिय समाज का कितना नुकसान हो जायेगा और कुछ अवश्य बोलिए आपकी अति कृपा होगी और भावी पीढ़ी का मार्ग दर्शन और भविष्य निर्धारण भी*
*धन्यवाद*
*निवेदक*
*हम आप और तुम

Thursday, 21 March 2024

THIRD BETTLE OF PANIPAT @ROHILA RAJPUTS _@रोहिला राजपूत और पानीपत1761 का युद्ध

*⚔️🚩14जनवरी वीर गंगा सिंह महेचा  Rathod  रोहिला राजपूत के  बलिदान  पर  शत शत नमन🚩⚔️*

*आज दिनांक 18मार्च 2024 से 264 साल पहले 14 जनवरी 1761 ईसवी दिन  बुध वार  हाड़ कंपाने वाली कड़कती ठंड और बारिश कोहरे के अंधेरे में  PANIPAT  KE MEDAAN में दिया था इस  वीर  ने सनातन की रक्षा के लिए  अपने जीवन का बलिदान।।

इतिहास में अजेय  वीर गंगा सिंह    महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत 

,मराठों और अहमद शाह अब्दाली तथा नाजीबुद्दोला उर्फ नजीब खान रुहेला के बीच पानीपत के प्रसिद्ध  युद्ध में लड़ा  था DESH RAKSHA  के लिए , सदा शिव राव भाऊ के सेना के सेनापति के रूप में ,
दिया था जीवन का  सबसे बड़ा बलिदान।। उनकी सम्पूर्ण सेना ने भी पाई थी वीर गति*।।
*14जनवरी दिन  बुध  वार मकर सक्रांति 1761 को PANIPAT  MEDAAN में  एक BHAYNKAR  Yuddh ,हुआ था ।। फूट के कारण 150000 मराठो को अबदाली व नजीब खान रुहेला की संयुक्त सेना ने 2बजे से 5बजे के बीच काट डाला जो हिंदुत्व/सनातन की रक्षा महाराष्ट्र से आये थे और उन्हें न यहां के लोगो ने  कोई सहायता नही दी, भूखे ही लड़े , जीत कर भी सर्दी भूख और धोखे के  कारण हारे ।।यदि हिन्दू  एकता के साथ  14जनवरी मकर सक्रांति को  PANIPAT में अबदाली से युद्ध करते तो भारत मे  ब्रिटिशराज ना होता और भारत का मानचित्र कुछ और ही  होता । उधर 14जनवरी 1761 दिन बुधवार मकर सक्रांति को कुरुक्षेत्र नहाने गए मराठा श्रद्धालुओ को अबदाली की सेना की टुकड़ी ने सूरजकुंड में काट डाला ठंडे जल में लाल हो गया था सूरजकुंड तालाब कुरुक्षेत्र का,, जो आज भी सूखने पर लाल दिखता है। 40000 हिन्दू महिलाओ को नहाते हुए ही ठंडे जल से ठिठुरते हुए नँगा  ही उठा कर  अफगान सेना अब्दाली के शिविर में ले गयी, जिन्हें अफगानिस्तान की सेना को वितरित कर दिया गया।।।*वापिस लोट रहे अफगानों से  DULLA  BHATTI  ने  उन दक्षिण भारतीय हिन्दू मराठी महिलाओं को छुड़ाया तथा  अफगानी सेना की टुकड़ी  को मार गिराया था*।।कलायत से वीर  गंगा सिंह महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत ने अपनी सेना सहित मराठी सेना का साथ दिया ओर सदाशिव राव भाऊ के प्रमुख सेना पति के रूप में वीर गति पाई वीर  गंगा सिंह महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत की समाधि व रानी रामप्यारी का सती मन्दिर आज भी आप कलायत (कैथल)के कपिल मुनि स्थान पर आश्रम में देख सकते है जिसका निर्माण मछोंडा निवासी रोहिला राजपूत सौदागर मल पुत्र अमर नाथ ने  कराया था* 
 कलायत  का राज्य MUDAHAAD राजपूतो है वही रानी रामप्यारी सती माता का मंदिर  भी कपिल मुनि स्थान पर है जिसे सभी राजपूत मिलकर पूजते है,ऐसा इतिहास कार प्रशांत सिंह राणा mudahad करनाल वालो ने साक्षात देखा और वीर गंगा सिंह महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत की समाधि का शिलालेख साझा किया है।7*।
*इसी वंश के महेचा*
 *राठौड़ रोहिला राजपूत कलायत से चल कर करनाल के आस पास के विलेजिज में रुके ओर कुछ लोग यमुना पार करते हुए ambaheta* *अंबहेटा,घाट हेडा, नल्हेडा, उम्अरी आदि विलेजेज में प्रवास किया ,घाट हेडा में जनरल भवानी सिंह के प्रपोत्र ठाकुर हरी सिंह महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत एक महान क्रांति कारी हुए ये पांचों भाईयो ने आज़ादी के लिए अपना यौवन बलिदान किया, ठाकुर हरिसिंह के छोटे भाई तो अपनी नवेली दुल्हन को भी छोड़ रास्ते से ही* *आज़ादी के दीवानों की पुकार पर भाग खड़े हुए उनका नाम था शशि भूषण महेचराना ,!!!आज उसी परिवार से आर्य समाज में एक महान राज ऋषि है श्री श्री १००८श्री ज्ञानाननद जी महाराज जिनका गृहस्थ में नाम रहा श्री राजपाल सिंह रोहिला,!!! उनका स्वर्गारोहण सन2024के आरंभिक माह में हो गया है। 1857के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में भी इसी महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत राजवंश के जनरल भवानी सिंह ने तात्या टोपे के प्रमुख सेनापति के रूप में ब्रिटिश सरकार को नाको चने चबाए थे* *ये राजवंश रोहिलखंड के पीलीभीत व बन्दायू से कलायत आए थे।*इतिहास ने इस रक्त रंजित सक्रांति को भुला दिया है किन्तु रोहिला राजपूत इतिहास में यह १७६१की मकर सक्रांति स्मरणीय अक्षरों में लिखी गई है ,हिन्दू धर्म रक्षार्थ हुई थी धरा रक्त से लाल*
*ऐसे महान वीर जिसने स्वधर्म हिंदुत्व की रक्षा के लिए उत्तर भारत में अक्रांता अब्दाली को रोकने आए मराठों का साथ दिया था जब कोई साथ नहीं आया क्योंकि मराठे यहां की रियासतों से कर वसूल रहे थे*
*स्वधर्म के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने वाले इस महान वीर को शत शत नमन,इस विश्व प्रसिद्ध युद्ध ने भारत की तस्वीर ही बदल दी थी यदि मराठे जीत जाते तो अंग्रेजी राज खत्म हो जाता किंतु यहां राष्ट्र से अधिक महत्व वर्चस्व को दिया गया*
*वीर गंगा सिंह महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत का नाम कही भी इस युद्ध के वर्णन में किसी ने नही किया किंतु उस महान वीर की वीर गाथा रोहिला राजपूत इतिहास में जीवित है* 
*सभी क्षत्रिय बंधुओ से निवेदन है कि उनकी स्मृति में सांय काल एक दीपक जलाया जाए और उनकी बहादुरी को नमन करते हुए भावी पीढ़ी को उनके इतिहास से अवगत कराया जाए*
*जय जय राजपूताना रोहिलखंड*🙏🚩https://youtu.be/OeYRf5x5uF0?feature=shared
*14January मकर सक्रांति दिन बुधवार 1761ईस्वी हाड़ कंपाने वाली कड़कती सर्दी भूख के तांडव में अद्भुत युद्ध में वीर गंगा सिंह महेचावत राठौड़ रोहिला राजपूत का और मर्द मराठों का बलिदान एक अमित कहानी है और भारत के भाग्य की एक महत्व पूर्ण कड़ी है,सुनिए वीरांगना आरती रोहिला की प्रस्तुति उनकी आवाज में और भारत के कोने कोने में पहुंचाइए जनमानस तक ताकि सच्चाई सामने आए।। ओर भावी पीढ़ी जाने मर्द मराठों और रोहिला राजपूतों का बलिदान और याद रखे सारा हिन्दुस्तान*🚩🚩https://youtu.be/OeYRf5x5uF0?feature=shared
*14January मकर सक्रांति दिन बुधवार 1761ईस्वी हाड़ कंपाने वाली कड़कती सर्दी भूख के तांडव में अद्भुत युद्ध में वीर गंगा सिंह महेचावत राठौड़ रोहिला राजपूत का और मर्द मराठों का बलिदान एक अमित कहानी है और भारत के भाग्य की एक महत्व पूर्ण कड़ी है,सुनिए वीरांगना आरती रोहिला की प्रस्तुति उनकी आवाज में और भारत के कोने कोने में पहुंचाइए जनमानस तक ताकि सच्चाई सामने आए।। ओर भावी पीढ़ी जाने मर्द मराठों और रोहिला राजपूतों का बलिदान और याद रखे सारा हिन्दुस्तान*

*विशेष नोट___यहां प्रदर्शित सभी चित्र नेट पर उपलब्ध है और पाठको को समझाने और सुविधा पूर्वक देखने हेतु सोसल मीडिया से लिए गए हैं इन पर लेखक का कोई अधिकार नहीं है।

Wednesday, 20 March 2024

ROHILKHAND

  रोहिलखंड
रोहिलखंड विक्की पीडिया ⚜️
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%96%E0%A4%82%E0%A4%A
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रोहिलखंड(हिंदी,संस्कृत,अंग्रेजी भाषा) या रुहेलखण्ड(उर्दू मिक्स हिंदी, रूहेल उर्दू खंड हिंदी) रुहेलखंड(उर्दू) उत्तर प्रदेश के उत्तर-पश्चिम में एक क्षेत्र है।[1][2].
*रोहिलखंड शुद्ध हिंदी ,संस्कृत और प्राकृत भाषा का शब्द है जिसका पश्तु भाषी अफगानों से कोई लेना देना नही है क्षत्रिय इतिहास साक्षी है कि रोहिलखंड की स्थापना रोहिला राजपूतों द्वारा दसवीं सदी के आरंभ में की गई थी।।
रोहिलखंड गंगा की उपत्यका के ऊपरी भाग में २५००० वर्ग कि॰मी॰ (१००००वर्ग मील) क्षेत्र तक विस्तृत है। इसके दक्षिण पश्चिमी ओर गंगा है, पश्चिमी ओर उत्तराखंड और नेपाल उत्तर में हैं। पूर्वी ओर अवध है। इसका नाम यहां की एक क्षत्रिय खाप रोहिला(रोहिला क्षत्रियों की कठ शाखा) के नाम पर कठेहर रोहिलखंड पड़ा। जिसकी स्थापना अहिक्षेत्र में पूर्व नाम पांचाल,सन ९०९ईसवी में राजा राम शाह उर्फ रामसिंह ने की थी और रामनगर गांव को रामपुर के नाम से विकसित किया जिसे आज भी रियासत रामपुर या रोहिलो का रामपुर कहा जाता है। रोह शब्द अवरोह धातु से लिया गया है जिसका अर्थ है चढ़ना अवरोही, रोही प्लस ला प्रत्य बराबर रोहिला अर्थात चढ़ाई करने वाला, पश्चिमी उत्तरीय सीमा प्रांत वैसे भी पर्वतीय चढ़ाई युक्त ढलान युक्त होने के कारण और द्रहयु के वंशजो द्रोही / रोही के वंशजो चन्द्र वन्स के क्षत्रियो का प्रदेश होने के कारण मध्य काल तक पाणिनि कालीन भारत से लेकर रोह के नाम से जाना गया,।

तीब्र प्रवाह *रोह*, की भांति चढ़ाई करने वाला भी रोहिला कहलाया।

रोहिला शब्द भारत के गौरव शाली इतिहास का एक विशेष दर्पण है ! यह वही शब्द है जो वीर क्षत्रिय राजवंशों व इतिहास की वीर गाथाओं से परिचय कराता है।

रोहिला 500 ईसा पूर्व पुराना शब्द है( प्राचीन भारत-पृष्ठ-159, बी एम रस्तोगी)

रोहिला एक संघ था, भारत

के उन वीरो का, भारत की पश्चिमी उत्तरीय सीमा प्रहरियों का जिन्होंने स्वयम के टुकड़े टुकड़े होने तक ओर अंतिम श्वांस लेने तक धूलि के कण के बराबर भी आक्रांताओं को भारत भूमि और कदम नही रखने दिया।

रोहिले राजपूत प्राचीनकाल से ही लोकतंत्र के संवाहक रहे हैं

वंस वाद, पीढ़ी वाद से दूर रहे है

रोहिल खंड राज्य लोकतन्त्रात्मक गणराज्य था
वंशानुक्रम का शासन नहीं था*

वाचाल( वाछेल),चौहान, राठोर, गहलोत, (,गहलोत) गोड बारेचा चौहान आदि प्रसिद्ध साहसी राज वन्सो का शासन था ये सभी कटेहर इया राजपूत कहलाते थे
सुन्दर बलिष्ठ

योग्य पहलवान(रहेल्ला) को अपना शासक चुनाव ( हाथ उठा कर) से नियुक्त करते थे

इसी लिए इनमे राजपूतो के सभी वंस शाखाये प्रशाखाए उपलब्ध है।

रणवीर सिंह सूर्य वंस निकुम्भ शाखा के वशिष्ठ गोत्र में उत्पन्न हुए थे,

उनका प्रवर गोत्र काठी कठोड,कठेरिया था 

इस कठेहर रोहिल खंड के राजा के साथ 84 लोहे के कवच धारी अजेय रोहिले सरदार / सेनापति, सामंत थे

उनके सामने मुल्ला नहीं टिक पाते थे

इनमे निम्न गोत्रो के योधा थे

1- लखमीर 2- राठोर/महेच राणा 3- चौहान/ वत्स/ जेवरा 4-वाछेल / वाचाल/ कूपट/ गहलोत

5- मोउसले/ भौंसले/ मौसुल/ मोसले/ मूसले

6- कठेहरिय/ काठी/, कठायत/ कठोड़े 7- रहक वाल/रायकवार /सिकरवार

12 बारह रोहिले लोहे के कवच धारी सैनिक थे।

सल्तनत काल में दिल्ली के सुल्तान पूर्णतया इन्हें कभी भी नहीं जीत पाए

(वासुदेवशरण अगरवाल)

इतिहास कार

हमारे ही परिवार जो कटेहर रोहिल खंड में रह गए विश्थापित नहीं हुए वे

आज भी राजपूतो की मुख्य धारा में ही हैं कठेरिया राजपूत कहलाते है उनके सम्बन्ध इन्ही राजपूतो से होते है

जी गंगा पार कर विस्थापित हो इधर आगये रोहिला कहलाये

जो रामगंगा पार कर कुमायूं गए

काठी कठेत कठ्यत काठ आयत कहलाये और चंद वंश के राजा के यहं रहे

महाराजा रणवीर सिंह रोहिल्ला का जन्म ऐसे समय मे हुआ जब राजपूत शक्ति क्षीण हो चुकी थी और मुस्लिम आक्रांता अपनी सल्तनत कायम करने के लिए बचे हुए राजपूतो का दमन करने में लगे थे गौरी के आक्रमण से पृथ्वी राज चौहान का साम्राज्य नष्ट कर गुलाम वन्स का शासन स्थापित हो रहा था राजस्थान में मेवाड़ ओर मध्यदेश (उत्तर प्रदेश), ,में रोहिलखण्ड के कठेहरिया राजपूतो ने दिल्ली के सुल्तान बनने वाले आक्रांताओ के नाक में दम कर रखा था 1206 में सभी राजपूत शक्तियों को एकत्र कर सामन्त वृतपाल रोहिल्ला ने ऐबक इल्तुतमिश आदि को रोहिलखण्ड में घुसने से रोका त्रिलोक सिंह आदि रोहिलखण्ड पर अधिकार जमाने वाले मुस्लिम शासकों को खदेड़ देते थे,इस विपत्ति काल मे रोहिलखण्ड की पावन भूमि पर कार्तिक मास के कृष्ण की प्रथमा तिथि तदनुसार 25 अक्टूबर 1204 इसवी को रामपुर के किले में राजा त्रिलोक सिंह के यहां एक वीर पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम करण हरिद्वार के पण्डित गोकुल चंद पण्डे के पिता ने रणवीर सिंह के नाम से किया ,जब रणवीर सिंह 21 वर्ष के हुवे तो विजयपुर सीकरी के राजा की पुत्री तारा देवी से रणवीर सिंह का विवाह हो गया उसी वर्ष रामपुर के किले में रणवीर सिंह का राजतिलक हुवा ,उन् से दिल्ली के सुल्तान भय खाने लगे किसी ने रोहिलखण्ड पर आक्रमण करने का साहस नहीं था।



ये कठेहरिया/ काठी (रोहिला क्षत्रियों की प्रमुख प्राचीन शाखा)निकुम्भ वंश के रोहिलखण्ड के राजा थे, 1253 में इनके शासन काल मे दिल्ली सल्तनत के इल्तुतमिश के पुत्र एवम सेनापति नासिरुद्दीन महमूद उर्फ चंगेज जो बहाराम वन्स का मुसलमान आक्रांता था दिल्ली दरबार मे कसम लेकर आया कि रोहिलखण्ड पर विजय पाकर ही लौटेगा 30000 की विशाल सेना लेकर उसने रोहिलखण्ड पर हमला किया पीलीभीत ओर रामपुर के बीच मे किसी स्थान पर मुसलमानों को 6000 रोहिले राजपूतो ने घेर लिया तथा भयंकर युद्ध हुआ रोहिले बहादुर थे लोहे के कवचधारी थे नासिरुद्दीन चंगेज की सेना को काट डाला गया बचे हुए मुसलमान भाग खड़े हुए

नासिरुद्दीन ने प्राणदान मांगे

सभी धन दौलत रणवीर सिंह के चरणों मे रख गिड़गिड़ाया,सूर्य वंशी क्षत्रिय सम्राट रोहिलखंड नरेश ,महा राजा

 रणवीर सिंह रोहिला, कठोडा(कठेहरिया) ने क्षात्र धर्म रक्षार्थ शरणागत को क्षमा दान दे दिया

परन्तु वह दिल्ली दरबार से कसम लेकर आया था क्या मुह दिखाए यह सोच कर रामपुर के जंगलों में छिप गया और रास्ते खोजने में लगा कि राजा को कैसे पराजित किया जाए

क्योकि कितनी भी मुसलमान सेना दिल्ली से मंगवाता रोहला राजपूत इतने बहादुर थे कि उनके सामने नही टिक पाती उसने छल प्रपंच धोखा करने की सोची

रामपुर के किले के एक दरबारी हरिद्वार निवासी पण्डे गोकुल राम उर्फ गोकुल चंद को लालच दिया और रक्षा बंधन के दिन शस्त्र पूजन के समय निश्शस्त्र रोहिले राजपूतो पर हमला करने का परामर्श दे दिया

चंगेज ने दिल्ली से कुमुद ओर सेना मंगवाई ओर जंगलो में छिपा दी पण्डे ने सफेद ध्वज के साथ चंगेज को राजा से किले का द्वार खोल के मिलवाया भी जबकि राजपूत पण्डे का इंतजार कर रहे थे कि कब आये और पूजा शुरू हो।

पण्डे ने तो धोखा कर दिया था राजा ने सफेद ध्वज देख सन्धि प्रस्ताब समझ समर्पण समझ आने का संकेत दिया

मालूम हुआ कि पंडा किले के चारो द्वार खोल कर आया था

निहत्थे राजपूतो पर तीब्रता से मुसलमान सेना चारो तरफ से टूट पड़ी

राजपूतो को शाका कर मरमिटने का आदेश रणवीर सिंह ने दे दिया और मुसलमानों को सबक सिखाने के लिए भिड़गये,लगभग ,2800राजपुतो ने नसीरुद्दीन के बीस हजार आक्रांताओं को काट डाला

  निहत्थे होने के कारण राजपूत वीरगति को प्राप्त हुए,
सूर्य वंशी क्षत्रिय सम्राट राजा रणवीर सिंह रोहिला अकेले पड़ गए उन्हे चंगेज के सेनिको ने चारो ओर से घेरे में ले लिया और उन पर टूट पड़े,रणवीर सिंह का युद्ध कौशल देख कर नसीरुद्दीन महमूद चकित रह गया वे निहत्थे ही आक्रांताओं से लोहा ले रहे थे किंतु साहस नही छोड़ा अद्भुत शौर्य संग्राम में
राजा रणवीर सिंह का बलिदान हुआ,

रानी तारावती सभी क्षत्राणियो के साथ ज्वाला पान कर जौहर कर गयी

किले को मुसलमान घेर चुके थे।

रणवीर सिंह का भाई सूरत सिंह उर्फ सुजान सिंह अपने 338 साथियों के साथ निकल गया और हरियाणा में 1254 में चरखी दादरी आकर प्रवासित हुआ।

हरिद्वार पंडो ने रणवीर सिंह की वंशावाली में झूठ लिखा कि उसकी ओलाद बंजारा हो गयी।

कितना तुष्टिकरण होता था तब भी इतिहास लेखन में।

जबकि रोहिले राजपूतो के राज भाट राय भीम राज निवासी बड़वा जी का बड़ा तुंगा जिला जयपुर की पोथी में मिला कि सूरत सिंह चरखी दादरी आ बसा ।


रक्षाबंधन एक गोरव गाथा को समस्त राजपूत समाज इस बलिदान दिवस 
को शौर्य दिवस के रूप में मनाता है,
तथा इस महान साहसी दिल्ली सल्तनत को धूल चटाने वाले क्षत्रिय सम्राट रणवीर सिंह रोहिला की जयंती 25अक्टूबर को प्रतिवर्ष सम्पूर्ण भारत का राजपूत समाज एक स्वाधीनता व स्वाभिमान दिवस के रूप में मनाता है।
1253 -1254 ईसवी में दिल्ली के सुल्तानों को धुल चटाने वाले महाराजा रणवीर सिंह रोहिला ने लिखी थीं एक गौरव गाथा रामपुर के किले में हुआ यह शौर्य संग्राम निहत्थे रोहिले राज पूतो पर टूट पड़े थे नासिरुद्दीन के सैनिक शास्त्र विहीन रोहिलो ने बहनों की राखी के सहारे किया शाका और दिया सर्वस्व बलिदान आज सचमुच शौर्य दिवस है राजा रणवीर सिंह को याद कर

यह तो सचमुच एतिहासिक सत्य/ तथ्य है

रोहिला क्षत्रिय वास्तव में

विशुद्ध क्षत्रिय राजवंश है।

एक चीते के समान ही जिसकी अपनी अलग पहचान होती है।

इतिहास इस बात का साक्षी है

रोहिले क्षत्रियो ने आज तक

कभी भी राष्ट्र व् अपनी क्षत्रिय कौम पर जीते जी आंच नहीं आने दी।

800 वर्षो तक आक्रान्ताओ को रोके रखने में अपना सर्वस्व मिटाया है

विधर्मी का संघार किया है

शाका और * जौहर* किया है

परन्तु अपना धर्म न बदला न छोड़ा।

रोहिला राजवँश का मूल पुरुष है चन्द्र वंसी चक्रवर्ती सम्राट ययाति के तीसरे पुत्र द्रहयु

इसी का अपभ्रंस द्रोह रोह ओर फिर रोहिला हुआ*

रोहिल खंड राज्य लोकतन्त्रात्मक गणराज्य था

वंशानुक्रम का शासन नहीं था*

वाचाल( वाछेल)चौहान, राठोर ,गेहलोत (,गहलोत) वारेचा,गोड आदि प्रसिद्ध साहसी राज वंशो का शासन था ये सभी कठेहरिया राजपूत कहलाते थे।
सुन्दर बलिष्ठ

योग्य पहलवान(रहेल्ला) को अपना शासक ( हाथ उठा कर) सर्व सम्मति से नियुक्त करते थे

🤺🤺🤺

अयोध्या में इख (गन्ना) उगाने वाले

इश्क्वाकू /सूर्य का उदय हुआ

और प्रयाग के पास झूंसी में चन्द्र वंस

का उदय हुआ

चक्रवर्ती सम्राट ययाति इसी वंस में हुए

इनके तीसरे पुत्र द्रह्यु के नाम पर द्रह्यु वंस/गंधार वंस चला

द्रह्यु से रोहिलाओ का मूल है

भारत के चन्द्र वंस के चक्रवर्ती सम्राट

ययाति के पुत्र द्रह्यु का प्रदेश ही द्रोह ,रूह/ रोह प्रदेश ने नाम से जाना गया

रोह का अर्थ है चढ़ना (पर्वतीय )

यह है भी एक पर्वतीय प्रदेश ही

यह भारत की पश्चिमी उत्तरीय सीमा का प्रदेश था

इस रोह प्रदेश की लोकेशन अब गूगल मेप पर देखे

इसके निवासियों ने सिकंदर को भारत में प्रवेश करने से रोकने के बाद 400 वर्ष तक आक्रनताओं को रोके रक्खा जब मैदानों से मदद नहीं मिली तो मैदानों की और आना प्रारम्भ कर दिया

कठ गणराज्य

क्षुद्रक गणराज्य

मालव गणराज्य

योद्धेय गणराज्य

अश्वक गणराज्य आदि के शासक मुसलमानों से टक्कर लेते हुए मैदानों में आये
सौराष्ट्र /,
गुजरात में काठियावाड़,

पंचाल में कठेहर रोहिलखंड राज्य की स्थापना की।

पंजाब से सहारनपुर तक यौद्धेय राज्य की स्थापना की(रोहिलखंड में रोहिला क्षत्रियों ने १७२०ईसवी तक शासन किया।अफगानों ने रोहिला राजा हरनंद का कत्ल करके१७२०ईसवी में खुद को रुहेला उर्दू में कहना आरंभ कर दिया और रुहेला सरदार,नवाब उसी अफगान ट्राइब्स के शासकों की एक कड़ी है को १८०२तक रही,तत्पश्चात अंग्रेजो ने रोहिलखंड,रुहेलखंड को ब्रिटिश राज में मिलाया)

 ये सभी क्षत्रिय कठेरिया /रोहिला 

कठेहरिया/रोहिले क्षत्रिय ,रोहिला राजपूत कहलाए।*रोहिलखंड राजपूताना आज भी उत्तर प्रदेश का एक बहुत बड़ा भाग हैं और एक कमिश्नरी के रूप में विद्यमान है।

(राजपूत/क्षत्रिय वाटिका)

(रोहिले क्षत्रियो का क्रमबद्ध इतिहास)

रोही +ला(प्रत्य)----*रोहिला*

रोहिला* अर्थात चढ़ने या चढ़ाई करने वाला ।
नौवी शताब्दी से विशेष युद्ध कला में प्रवीण बहुत से योद्धाओं को रोहिला उपाधि प्रदत्त की गई ,836ईसवी का एक शिला लेख मंडोर के किले में लगा है तदनुसार विप्र ब्राह्मण राजा हरिश्चंद्र प्रतिहार को उसके द्वारा वीरता से किले की रक्षा करने और युद्ध कौशल के कारण उसे रोहिलाद्वायंक की उपाधि मिली थी। प्रत्यक्ष शिलालेख विद्यमान है।अन्य ग्रंथों के अनुसार भी मध्यकाल में रोहिला उपाधि का प्रचलन हुवा,महाराजा पृथ्वी राज चौहान की सेना में एक सो रोहिला सेना नायक थे जिनके आधार पर अनेक योद्धाओं को रोहिला उपाधि प्राप्त हुई।समस्त उत्तर भारत में आज रोहिला राजपूत करोड़ों की संख्या में विद्यमान है।_____

GOTRA LIST___OF ROHILA RAJPUT COMMUNITY IN INDIAरोहिला राजपूत गोत्र लिस्ट

रोहिलखण्ड से विस्थापित इन रोहिला परिवारों में क्षत्रिय परम्परा के कुछ प्रमुख गोत्र हैं :- [2]

रोहिला, रूहेला, ठैँगर,ठहित, रोहिल, रावल, द्रोहिया, रल्हन, रूहिलान, रौतेला , रावत,लोहारिया

वो क्षत्रिय वंश जिन को रोहिल्ला उपाधि से नवाजा गया

यौधेय, योतिक, जोहिया, झोझे, पेशावरी

पुण्डीर, पांडला, पंढेर, पुन्ड़ेहार, पुंढीर, पुंडाया

चौहान, जैवर, जौडा, चाहल, चावड़ा, खींची, गोगद, गदाइया, सनावर, क्लानियां, चिंगारा, चाहड बालसमंद, बहरासर, बराबर, चोहेल, चेहलान, बालदा, बछ्स (वत्स), बछेर, चयद, झझोड, चौपट, खुम्ब, जांघरा, जंगारा, झांझड,शाण

निकुम्भ, कठेहरिया, कठौरा, कठैत, कलुठान, कठपाल, कठेडिया, कठड, कठोड़ा , काठी, कठ, पालवार

राठौर, महेचा,महेचवत्त महेचराना, रतनौता, धांधल बंसूठ जोली, जोलिए, बांकटे, बाटूदा, थाथी, कपोलिया, खोखर, अखनौरिया ,लोहमढ़े, मसानिया

बुन्देला, बांदरिया, अववट उमट, ऊमटवाल

, भारती, गनान, गर्ग

, बटेरिया, बरमटिया

परमार, जावडा, लखमरा, मूसला, मौसिल, भौंसले, बसूक, जंदडा, पछाड़, पंवारखा, मौन

तोमर, तंवर, मुदगल, देहलीवाल, किशनलाल, सानयाल, सैन, सनाढय,बंदरीया

गहलौत, कूपट, पछाड़, थापा, ग्रेवाल, कंकोटक, गोद्देय,गद्दे, पापडा, नथैड़ा, नैपाली, लाठिवाल, पानिशप, पिसोण्ड, चिरडवाल, नवल, चरखवाल, साम्भा, पातलेय, पातलीय, छन्द (चंड), क्षुद्रक,(छिन्ड, इन्छड़, नौछड़क), रज्जडवाल, बोहरा, जसावत, गौर, मलक, मलिक, कोकचे,कटोच काक

कछवाहा, कुशवाहा, कोकच्छ, ततवाल, बलद, मछेर,कोकचा

सिसौदिया, ऊँटवाड़ या ऊँटवाल, भरोलिया, बरनवाल, बरनपाल, बहारा

खुमाहड, अवन्ट, ऊँट, ऊँटवाल

सिकरवार, रहकवाल, रायकवार, ममड, गोदे

सोलंकी, गिलानिया, भुन, बुन, बघेला, ऊन, (उनयारिया),बरनवाल

बडगूजर, सिकरवार, ममड़ा, पुडिया

कश्यप, काशब, रावल, रहकवाल

यदु, मेव, छिकारा,चिकारा,बटवाल तैतवाल, भैनिवाल, उन्हड़, भाटटी बनाफरे, जादो, बागड़ी, सिन्धु, कालड़ा, सारन, छुरियापेड, लखमेरिया, चराड, जाखड़, सेरावत, देसवाल।
गौत्र और वंश....
गुणसूत्र वंश का वाहक

हमारे धार्मिक ग्रंथ और हमारी सनातन हिन्दू परंपरा के अनुसार पुत्र (बेटा) को कुलदीपक अथवा वंश को आगे बढ़ाने वाला माना जाता है..... 
अर्थात.... उसे गोत्र का वाहक माना जाता है.

क्या आप जानते हैं कि.... आखिर क्यों होता है कि सिर्फ पुत्र को ही वंश का वाहक माना जाता है ????

असल में इसका कारण.... पुरुष प्रधान समाज अथवा पितृसत्तात्मक व्यवस्था नहीं .... 
बल्कि, हमारे जन्म लेने की प्रक्रिया है.

अगर हम जन्म लेने की प्रक्रिया को सूक्ष्म रूप से देखेंगे तो हम पाते हैं कि......

एक स्त्री में गुणसूत्र (Chromosomes) XX होते है.... और, पुरुष में XY होते है. 

इसका मतलब यह हुआ कि.... अगर पुत्र हुआ (जिसमें XY गुणसूत्र है)... तो, उस पुत्र में Y गुणसूत्र पिता से ही आएगा क्योंकि माता में तो Y गुणसूत्र होता ही नही है

और.... यदि पुत्री हुई तो (xx गुणसूत्र) तो यह गुणसूत्र पुत्री में माता व् पिता दोनों से आते है.

XX गुणसूत्र अर्थात पुत्री

अब इस XX गुणसूत्र के जोड़े में एक X गुणसूत्र पिता से तथा दूसरा X गुणसूत्र माता से आता है. 

तथा, इन दोनों गुणसूत्रों का संयोग एक गांठ सी रचना बना लेता है... जिसे, Crossover कहा जाता है.

जबकि... पुत्र में XY गुणसूत्र होता है.

अर्थात.... जैसा कि मैंने पहले ही बताया कि.... पुत्र में Y गुणसूत्र केवल पिता से ही आना संभव है क्योंकि माता में Y गुणसूत्र होता ही नहीं है.

और.... दोनों गुणसूत्र अ-समान होने के कारण.... इन दोनों गुणसूत्र का पूर्ण Crossover नहीं... बल्कि, केवल 5 % तक ही Crossover होता है.

और, 95 % Y गुणसूत्र ज्यों का त्यों (intact) ही बना रहता है.

तो, इस लिहाज से महत्त्वपूर्ण Y गुणसूत्र हुआ.... क्योंकि, Y गुणसूत्र के विषय में हम निश्चिंत है कि.... यह पुत्र में केवल पिता से ही आया है.

बस..... इसी Y गुणसूत्र का पता लगाना ही गौत्र प्रणाली का एकमात्र उदेश्य है जो हजारों/लाखों वर्षों पूर्व हमारे ऋषियों ने जान लिया था.

इस तरह ये बिल्कुल स्पष्ट है कि.... हमारी वैदिक गोत्र प्रणाली, गुणसूत्र पर आधारित है अथवा Y गुणसूत्र को ट्रेस करने का एक माध्यम है.

उदाहरण के लिए .... यदि किसी व्यक्ति का गोत्र शांडिल्य है तो उस व्यक्ति में विद्यमान Y गुणसूत्र शांडिल्य ऋषि से आया है.... या कहें कि शांडिल्य ऋषि उस Y गुणसूत्र के मूल हैं.

अब चूँकि.... Y गुणसूत्र स्त्रियों में नहीं होता है इसीलिए विवाह के पश्चात स्त्रियों को उसके पति के गोत्र से जोड़ दिया जाता है.

वैदिक/ हिन्दू संस्कृति में एक ही गोत्र में विवाह वर्जित होने का मुख्य कारण यह है कि एक ही गोत्र से होने के कारण वह पुरुष व् स्त्री भाई-बहन कहलाए क्योंकि उनका पूर्वज (ओरिजिन) एक ही है..... क्योंकि, एक ही गोत्र होने के कारण...
दोनों के गुणसूत्रों में समानता होगी.

आज की आनुवंशिक विज्ञान के अनुसार भी..... यदि सामान गुणसूत्रों वाले दो व्यक्तियों में विवाह हो तो उनके संतान... आनुवंशिक विकारों का साथ उत्पन्न होगी क्योंकि.... ऐसे दंपत्तियों की संतान में एक सी विचारधारा, पसंद, व्यवहार आदि में कोई नयापन नहीं होता एवं ऐसे बच्चों में रचनात्मकता का अभाव होता है.

विज्ञान द्वारा भी इस संबंध में यही बात कही गई है कि सगौत्र शादी करने पर अधिकांश ऐसे दंपत्ति की संतानों में अनुवांशिक दोष अर्थात् मानसिक विकलांगता, अपंगता, गंभीर रोग आदि जन्मजात ही पाए जाते हैं.
शास्त्रों के अनुसार इन्हीं कारणों से सगौत्र विवाह पर प्रतिबंध लगाया था.
यही कारण था कि शारीरिक बिषमता के कारण अग्रेज राज परिवार में आपसी विवाह बन्द हुए। 
जैसा कि हम जानते हैं कि.... पुत्री में 50% गुणसूत्र माता का और 50% पिता से आता है.

फिर, यदि पुत्री की भी पुत्री हुई तो.... वह डीएनए 50% का 50% रह जायेगा...
और फिर.... यदि उसके भी पुत्री हुई तो उस 25% का 50% डीएनए रह जायेगा.

इस तरह से सातवीं पीढ़ी में पुत्री जन्म में यह % घटकर 1% रह जायेगा.

अर्थात.... एक पति-पत्नी का ही डीएनए सातवीं पीढ़ी तक पुनः पुनः जन्म लेता रहता है....और, यही है "सात जन्मों के साथ का रहस्य".

लेकिन..... यदि संतान पुत्र है तो .... पुत्र का गुणसूत्र पिता के गुणसूत्रों का 95% गुणों को अनुवांशिकी में ग्रहण करता है और माता का 5% (जो कि किन्हीं परिस्थितियों में एक % से कम भी हो सकता है) डीएनए ग्रहण करता है...
और, यही क्रम अनवरत चलता रहता है.

जिस कारण पति और पत्नी के गुणों युक्त डीएनए बारम्बार जन्म लेते रहते हैं.... अर्थात, यह जन्म जन्मांतर का साथ हो जाता है.

इन सब में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि.... माता पिता यदि कन्यादान करते हैं तो इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि वे कन्या को कोई वस्तु समकक्ष समझते हैं...

बल्कि, इस दान का विधान इस निमित किया गया है कि दूसरे कुल की कुलवधू बनने के लिये और उस कुल की कुल धात्री बनने के लिये, उसे गोत्र मुक्त होना चाहिए. 

पुत्रियां..... आजीवन डीएनए मुक्त हो नहीं सकती क्योंकि उसके भौतिक शरीर में वे डीएनए रहेंगे ही, इसलिये मायका अर्थात माता का रिश्ता बना रहता है.

शायद यही कारण है कि..... विवाह के पश्चात लड़कियों के पिता को घर को ""मायका"" ही कहा जाता है.... "'पिताका"" नहीं.

क्योंकि..... उसने अपने जन्म वाले गोत्र अर्थात पिता के गोत्र का त्याग कर दिया है....!

और चूंकि..... कन्या विवाह के बाद कुल वंश के लिये रज का दान कर मातृत्व को प्राप्त करती है... इसीलिए, हर विवाहित स्त्री माता समान पूजनीय हो जाती है.

आश्चर्य की बात है कि.... हमारी ये परंपराएं हजारों-लाखों साल से चल रही है जिसका सीधा सा मतलब है कि हजारों लाखों साल पहले.... जब पश्चिमी देशों के लोग नंग-धड़ंग जंगलों में रह रहा करते थे और चूहा ,बिल्ली, कुत्ता वगैरह मारकर खाया करते थे....

उस समय भी हमारे पूर्वज ऋषि मुनि.... इंसानी शरीर में गुणसूत्र के विभक्तिकरण को समझ गए थे.... और, हमें गोत्र सिस्टम में बांध लिया था.

इस बातों से एक बार फिर ये स्थापित होता है कि....  
हमारा सनातन हिन्दू धर्म पूर्णतः वैज्ञानिक है....

बस, हमें ही इस बात का भान नहीं है.

असल में..... अंग्रेजों ने जो हमलोगों के मन में जो कुंठा बोई है..... उससे बाहर आकर हमें अपने पुरातन विज्ञान को फिर से समझकर उसे अपनी नई पीढियों को बताने और समझाने की जरूरत है.
*गोत्र एक डी एन ए की तरह ही है गोत्र के महत्व को वैज्ञानिक तरीके से समझे अज्ञानता की हठधर्मिता न करे*

रोहि्ला क्षत्रियों में ऊंटवाल गोत्र चंद्रवंशी एवं सूर्यवंशी दोनों में पाए जाते हैं सूर्यवंशी ऊंटवाल गोत्र मेवाड़ के गहलोत सिसोदिया घराने से हैं और चंद्रवंशी ऊंटवाल जैसलमेर के भाटी घराने से है।

*विशेष नोट___यहां प्रदर्शित सभी चित्र नेट से लिए गए है जो केवल समझाने के उद्देश्य की पूर्ति हेतु चस्पा किए गए है जिनका लेखक से कोई संबंध नहीं है केवल प्रतीकात्मक रूप से उद्धरित किए और प्रदर्शित किए गए है।।

Tuesday, 19 March 2024

HISTORY OF ROHILA RAJPUTS

https://youtu.be/JrR9PAOsYis?si=buq2Fpej4u3vBIjf

ROHILA RAJPUT

रोहिला शब्द भारत के गौरव शाली इतिहास का एक विशेष दर्पण है ! यह वही शब्द है जो वीर क्षत्रिय राजवंशों व इतिहास की वीर गाथाओं से परिचय कराता है।
रोहिला 500 ईसा पूर्व पुराना शब्द है( प्राचीन भारत-पृष्ठ-159, बी एम रस्तोगी)
रोहिला एक संघ था, भारत
 के उन वीरो का, भारत की पश्चिमी उत्तरीय सीमा प्रहरियों का जिन्होंने स्वयम के टुकड़े टुकड़े होने तक ओर अंतिम श्वांस लेने तक धूलि के कण के बराबर भी आक्रांताओं को भारत भूमि और कदम नही रखने दिया।


रोहिले राजपूत प्राचीनकाल से ही लोकतंत्र के संवाहक रहे हैं
वंस वाद पीढ़ी वाद से दूर रहे है


*रोहिल खंड राज्य लोकतन्त्रात्मक गणराज्य था 
वंशानुक्रम का शासन नहीं था*
*वाचाल( वाछेल)चौहान राठोर ग्र्ह्लोत (,गहलोत) आदि प्रसिद्ध साहसी राज वन्सो का शासन था ये सभी कटेहर इया राजपूत कहलाते थे
सुन्दर बलिष्ठ 
योग्य पहलवान(रहेल्ला) को अपना शासक चुनाव ( हाथ उठा कर) से नियुक्त करते थे 


इसी लिए इनमे राजपूतो के सभी वंस शाखाये प्रशाखाए उपलब्ध है


रणवीर सिंह सूर्य वंस निकुम्भ शाखा के वशिष्ठ गोत्र में उत्पन्न हुए थे 
उनका प्रवर गोत्र काठी था


इस कटेहर रोहिल खंड के राजा के साथ 84 लोहे के कवच धारी अजेय रोहिले सरदार / सामंत थे 
उनके सामने मुल्ला नहीं टिक पाते थे 
इनमे निम्न गोत्रो के योधा थे
1- लखमीर 2- राठोर/महेच राणा 3- चौहान/ वत्स/ जेवरा 4-वाछेल / वाचाल/ कूपत/ गहलोत
5- मोउसले/ भौंसले/ मौसुल/ मोसले/ मुसले 
6- कतेहरिया/ काठी/, कठायत/ कठोड़े 7- रहक वाल/रायकवार /सिकरवार
12 बारह रोहिले लोहे के कवच धारी प्रत्येक गोत्रो से थे 
सल्तनत काल में दिल्ली के सुल्तान पूर्णतया इन्हें कभी भी नहीं जीत पाए
(वासुदेवशरण अगरवाल)
इतिहास कार



हमारे ही परिवार जो कटेहर रोहिल खंड में रह गए विश्थापित नहीं हुए वे
आज भी राजपूतो की मुख्य धारा में ही हैं कठेरिया राजपूत कहलाते है उनके सम्बन्ध इन्ही राजपूतो से होते है 
जी गंगा पार कर विस्थापित हो इधर आगये रोहिला कहलाये
जो रामगंगा पार कर कुमायूं गए 
काठी कठेत कठ्यत काठ आयत कहलाये और चाँद वाशी राजा के यहं रहे



महाराजा रणवीर सिंह रोहिल्ला का जन्म ऐसे समय मे हुआ जब राजपूत शक्ति क्षीण हो चुकी थी और मुस्लिम आक्रांता अपनी सल्तनत कायम करने के लिए बचे हुए राजपूतो का दमन करने में लगे थे गौरी के आक्रमण से पृथ्वी राज चौहान का साम्राज्य नष्ट कर गुलाम वन्स का शासन स्थापित हो रहा था राजस्थान में मेवाड़ ओर मध्यदेश (उत्तर प्रदेश), ,में रोहिलखण्ड के कठेहरिया राजपूतो ने दिल्ली के सुल्तान बनने वाले आक्रांताओ के नाक में दम कर रखा था 1206 में सभी राजपूत शक्तियों को एकत्र कर सामन्त वृतपाल रोहिल्ला ने ऐबक इल्तुतमिश आदि को रोहिलखण्ड में घुसने से रोका त्रिलोक सिंह आदि रोहिलखण्ड पर अधिकार जमाने वाले मुस्लिम शासकों को खदेड़ देते थे,इस विपत्ति काल मे रोहिलखण्ड की पावन भूमि पर कार्तिक मास के कृष्ण की प्रथमा तिथि तदनुसार 25 अक्टूबर 1204 इसवी को रामपुर के किले में राजा त्रिलोक सिंह के यहां एक वीर पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम करण हरिद्वार के पण्डित गोकुल चंद पण्डे के पिता ने रणवीर सिंह के नाम से किया ,जब रणवीर सिंह 21 वर्ष के हुवे तो विजयपुर सीकरी के राजा की पुत्री तारा देवी से रणवीर सिंह का विवाह हो गया उसी वर्ष रामपुर के किले में रणवीर सिंह का राजतिलक हुवा ,उन् से दिल्ली के सुल्तान भय खाने लगे किसी ने रोहिलखण्ड पर आक्रमण करने का साहस नहीं था


काठेर रोहिल्लख़ंड राजपूत!


ये कतेहरिया काठी निकुम्भ वन्स के रोहिलखण्ड के राजा थे 1253 में इनके शासन काल मे दिल्ली सल्तनत के इल्तुतमिश के पुत्र एवम सेनापति नासिरुद्दीन महमूद उर्फ चंगेज जो बहाराम वन्स का मुसलमान आक्रांता था दिल्ली दरबार मे कसम लेकर आया कि रोहिलखण्ड पर विजय पाकर ही लौटेगा 30000 की विशाल सेना लेकर उसने रोहिलखण्ड पर हमला किया पीलीभीत ओर रामपुर के बीच मे किसी स्थान पर मुसलमानों को 6000 रोहिले राजपूतो ने घेर लिया तथा भयंकर युद्ध हुआ रोहिले बहादुर थे लोहे के कवचधारी थे नासिरुद्दीन चंगेज की सेना को काट डाला गया बचे हुए मुसलमान भाग खड़े हुए 
नासिरुद्दीन ने प्राणदान मांगे 
सभी धन दौलत रणवीर सिंह के चरणों मे रख गिड़गिड़ाया 
राजा रणवीर सिंह कठोडा ने क्षात्र धर्म रक्षार्थ शरणागत को क्षमा दान दे दिया
परन्तु वह दिल्ली दरबार से कसम लेकर आया था क्या मुह दिखाए यह सोच कर रामपुर के जंगलों में छिप गया और रास्ते खोजने में लगा कि राजा को कैसे पराजित किया जाए
क्योकि कितनी भी मुसलमान सेना दिल्ली से मंगवाता रोहला राजपूत इतने बहादुर थे कि उनके सामने नही टिक पाती उसने छल प्रपंच धोखा करने की सोची 
रामपुर के किले के एक दरबारी हरिद्वार निवासी पण्डे गोकुल राम उर्फ गोकुल चंद को लालच दिया और रक्षा बंधन के दिन शस्त्र पूजन के समय निश्शस्त्र रोहिले राजपूतो पर हमला करने का परामर्श दे दिया 
चंगेज ने दिल्ली से कुमुद ओर सेना मंगवाई ओर जंगलो में छिपा दी पण्डे ने सफेद ध्वज के साथ चंगेज को राजा से किले का द्वार खोल मिलवाया जबकि राजपूत पण्डे का इंतजार कर रहे थे कि कब आये और पूजा शुरू हो
पण्डे ने तो धोखा कर दिया था राजा ने सफेद ध्वज देख सन्धि प्रस्ताब समझ समर्पण समझ आने का संकेत दिया 
मालूम हुआ कि पंडा किले के चारो द्वार खोल कर आया था 
निहत्थे राजपूतो पर तीब्रता से मुसलमान सेना चारो तरफ से टूट पड़ी 
राजपूतो को शाका कर मरमिटने का आदेश रणवीर सिंह ने दे दिया और मुसलमानों को सबक सिखाने के लिए भिड़गये 
थे निहत्थे लड़े बहुत पंरन्तु मारे गए 
राजा रणवीर सिंह का बलिदान हुआ
रानी तारावती सभी क्षत्राणियो के साथ ज्वाला पान कर जौहर कर गयी 
किले को मुसलमान घेर चुके थे
रणवीर सिंह का भाई सूरत सिंह अपने 338 साथियों के साथ निकल गया और हरियाणा में 1254 में चरखी दादरी आकर प्रवासित हुआ
हरिद्वार पंडो ने रणवीर सिंह की वंशावलि में झूठ लिखा कि उसकी ओलाद बंजारा हो गयी 
कितना तुष्टिकरण होता था तब भी इतिहास लेखन में
जबकि रोहिले राजपूतो के राज भाट रायय भीम राज निवासी बड़वा जी का बड़ा तुंगा जिला जयपुर की पोथी में मिला कि सूरत सिंह चरखी दादरी आ बसा था
राजा रणवीर सिंह का यह बलिदान याद रखेगा हिंदुस्तान


एक शौर्य दिवस
रक्षाबंधन एक गोरव गाथा
आज से 770 वर्ष पूर्व दिल्ली के सुल्तानों को धुल चटाने वाले महाराजा रणवीर सिंह रोहिला ने लिखी थीं एक गौरव गाथा रामपुर के किले में हुआ यह शौर्य संग्राम निहत्थे रोहिले राज पूतो पर टूट पड़े थे नासिरुद्दीन के सैनिक शास्त्र विहीन रोहिलो ने बहनों की राखी के सहारे किया शाका और दिया सर्वस्व बलिदान आज सचमुच शौर्य दिवस है राजा रणवीर सिंह को याद करे



यह तो सचमुच एतिहासिक सत्य/ तथ्य है 
 रोहिला क्षत्रिय वास्तव में
 विशुद्ध क्षत्रिय राजवंस है 
एक चीते के समान ही जिसकी अपनी अलग पहचान होती है 
इतिहास इस बात का साक्षी है 
रोहिले क्षत्रियो ने आज तक 
कभी भी राष्ट्र व् अपनी क्षत्रिय कोम पर जीते जी आंच नहीं आने दी 
800 वर्षो तक आक्रान्ताओ को। रोके रखने में अपना सर्वस्व मिटाया है 
विधर्मी का संघार किया है 
शाका और * जौहर* किया है 
परन्तु अपना धर्म न बदला न छोड़ा!!!!



Monday, 18 March 2024

ROHILKHAND RAJPUTANA KINGDOM

*कन्नौज पतन के बाद रोहिलखण्ड राज्य की स्थापना कठेहरिया राजा राम शाह उर्फ रामसिंह रोहिला ने की थी अहिक्षेत्र काम्पिल्य के एक गॉंव रामनगर को रामपुर नगर बसाया ओर यह क्षत्रिय राजा राम के नाम पर रखा गया था यहाँ रोहिले राजपूतो ने 11 पीढ़ी लगातार शासन किया राजा रणवीर सिंह रोहिला ने नासीरुद्दीन महमूद और हरिसिंह रोहिला ने खिज्रखान को धूल चटाई नोरंगदेव ने पिंगू (, तैमूर लंग)को हराया 1445 के बाद भी कभी भी पूर्णतया रोहिलखंड को दिल्ली दरबार नही जीत पाया अकबर ओर बाद में औरंगजेब ने चाल चली और अफगानों की घुसपैठ करनी आबादी बढ़ानी शुरू की थी ,1707 में ओरंग जेब की मृत्यु के बाद उसके दुर्दांत सेनापति दाऊद खान बरेच अफगान के जाट दत्तक पुत्र जिसका नाम अलीमुहम्मद था ने धोखे से बरेली और बिसौली के बीच में रोहिला राजा हरननंद का कत्ल किया और सम्पूर्ण रोहिलखण्ड पर अधिकार कर लिया इन अफगानों ने भी रोहिलखण्ड के नवाब बन जाने के कारणों से स्वयम को रुहेला कहा वास्तव में ये रोहिला नही थे जैसे कि रोह देश के अफगान लिखा यह गलत है 1707 में ये आये तब *अफगानिस्तान को रोह देश नही कहा जाता था* 
 यह झूठा मुस्लिम* *तुस्टीकरण का इतिहास है 16वी सदी में जगत सिंह रोहिल्ला राजपूत के पुत्रों बाँसदेव व बर्लदेव के नाम पर बरेली नगर की नॉवे रखी गयी अफगानों ने* *कोई नगर नही बसाया चंद काल मे ही उन्होंने रामपुर का क्यो नाम राम के नाम पर नही रखा*

*विशेष नोट___,यहां प्रदर्शित सभी चित्र नेट द्वारा सोसल मीडिया से लिए गए है इनका लेखक से कोई संबंध नहीं है केवल  प्रतीक मात्र है।।

Sunday, 17 March 2024

SOME GOTRA OF ROHILA KSHTRIYAS

*ROHILA RAJPUT GOTRA*
आठवी सदी से आरंभ हुई
*रोहिल्ला *उपाधि से शूरवीर, अदम्य - साहसी विशेष युद्ध कला में प्रवीण, उच्च कुलीन सेनानायको, और सामन्तों को उनके गुणों के अनुरूप क्षत्रिय वीरों को तदर्थ उपाधि से विभूषित किया जाता था - जैसे - रावत - महारावत, राणा, रूहॆला, ठाकुर, नेगी, रावल, रहकवाल, रोहिला, समरलछन्द, लखमीर,(एक लाख का नायक) आदि। इसी आधार पर उनके वंशज भी आज तक (क्षत्रियों) के सभी गोत्रों में पाए जाते हैं।

रोहिलखण्ड से विस्थापित इन रोहिला परिवारों में क्षत्रिय वंश परम्परा के कुछ प्रमुख गोत्र हैं :-

रोहिला, रूहेला, ठैँगर,ठहित, रोहिल, रावल, द्रोहिया, रल्हन, रूहिलान, रौतेला , रावत,लोहारिया


यौधेय, योतिक, जोहिया, झोझे, पेशावरी

पुण्डीर, पांडला, पंढेर, पुन्ड़ेहार, पुंढीर, पुंडाया

चौहान, जैवर, जौडा, चाहल, चावड़ा, खींची, गोगद, गदाइया, सनावर, क्लानियां, चिंगारा, चाहड बालसमंद, बहरासर, बराबर, चोहेल, चेहलान, बालदा, बछ्स (वत्स), बछेर, चयद, झझोड, चौपट, खुम्ब, जांघरा, जंगारा, झांझड,शाण

निकुम्भ, कठेहरिया,कठोड़ , कठोडा ,कठौरा, कठैत, कलुठान, कठपाल, कठेडिया, कठड, काठी, कठ, पालवार

राठौर, महेचा, महेचराना, रतनौता, बंसूठ जोली,धांधल, जोलिए, बांकटे, बाटूदा, थाथी, कपोलिया, खोखर, अखनौरिया ,लोहमढ़े, मसानिया,लखमार, लखमीर 

बुन्देला, उमट, ऊमटवाल

 भारती, गनान बटेरिया, बटवाल, बरमटिया

परमार, जावडा, लखमरा, मूसला, मौसिल, भौंसले, बसूक, जंदडा, पछाड़, पंवारखा, मौन

तोमर, तंवर, मुदगल, देहलीवाल, किशनलाल, सानयाल, सैन, सनाढय,बंदरीया

गहलौत, कूपट, पछाड़, थापा, ग्रेवाल, कंकोटक, गोद्देय, पापडा, नथैड़ा, नैपाली, लाठिवाल, पानिशप, पिसोण्ड, चिरडवाल, नवल, ऊंट ,चरखवाल, साम्भा, पातलेय, पातलीय, छन्द (चंड), क्षुद्रक,(छिन्ड, इन्छड़, नौछड़क), रज्जडवाल, बोहरा, जसावत, गौर, मलक, मलिक, 

कछवाहा, कुशवाहा, कोकच्छ, कोकचा, काक, ततवाल, बलद, मछेर

सिसौदिया, ऊँटवाड़ या ऊँटवाल, भरोलिया, बरनवाल, बरनपाल, बहारा

खुमाहड, अवन्ट, ऊँट, ऊँटवाल

सिकरवार, रहकवाल,गर्ग, रायकवार, ,ममड, गोदे

सोलंकी, गिलानिया, भुन, बुन, बघेला, ऊन, (उनयारिया)

बडगूजर, सिकरवार, ममड़ा, पुडिया

कश्यप, काशब, रावल, रहकवाल

यदु, मेव, छिकारा,,चिकारा तैतवाल, भैनिवाल, उन्हड़, भाटी ,बनाफरे, जादो, बागड़ी, सिन्धु, कालड़ा, सारन, छुरियापेड,(सूर्य वंश के क्षुद्रक छ्त्रपारे छुरिया पेड़ अलग है) लखमेरिया,(परमार लख्मरा ,ओर गहलोत लखमरा अलग है)चराड, जाखड़, सेरावत, देसवाल।

रोहि्ला क्षत्रियों में ऊंटवाल गोत्र चंद्रवंशी एवं सूर्यवंशी दोनों में पाए जाते हैं सूर्यवंशी ऊंटवाल गोत्र मेवाड़ के गहलोत सिसोदिया घराने से हैं और चंद्रवंशी ऊंटवाल जैसलमेर के भाटी घराने से है।
कोई गोत्र छूट गया हो तो उस गोत्र को coment box में लिखे संशोधन के साथ एड किया जायेगा

गौत्र और वंश....
गुणसूत्र वंश का वाहक

हमारे धार्मिक ग्रंथ और हमारी सनातन हिन्दू परंपरा के अनुसार पुत्र (बेटा) को कुलदीपक अथवा वंश को आगे बढ़ाने वाला माना जाता है..... 
अर्थात.... उसे गोत्र का वाहक माना जाता है.

क्या आप जानते हैं कि.... आखिर क्यों होता है कि सिर्फ पुत्र को ही वंश का वाहक माना जाता है ????

असल में इसका कारण.... पुरुष प्रधान समाज अथवा पितृसत्तात्मक व्यवस्था नहीं .... 
बल्कि, हमारे जन्म लेने की प्रक्रिया है.

अगर हम जन्म लेने की प्रक्रिया को सूक्ष्म रूप से देखेंगे तो हम पाते हैं कि......

एक स्त्री में गुणसूत्र (Chromosomes) XX होते है.... और, पुरुष में XY होते है. 

इसका मतलब यह हुआ कि.... अगर पुत्र हुआ (जिसमें XY गुणसूत्र है)... तो, उस पुत्र में Y गुणसूत्र पिता से ही आएगा क्योंकि माता में तो Y गुणसूत्र होता ही नही है

और.... यदि पुत्री हुई तो (xx गुणसूत्र) तो यह गुणसूत्र पुत्री में माता व् पिता दोनों से आते है.

XX गुणसूत्र अर्थात पुत्री

अब इस XX गुणसूत्र के जोड़े में एक X गुणसूत्र पिता से तथा दूसरा X गुणसूत्र माता से आता है. 

तथा, इन दोनों गुणसूत्रों का संयोग एक गांठ सी रचना बना लेता है... जिसे, Crossover कहा जाता है.

जबकि... पुत्र में XY गुणसूत्र होता है.

अर्थात.... जैसा कि मैंने पहले ही बताया कि.... पुत्र में Y गुणसूत्र केवल पिता से ही आना संभव है क्योंकि माता में Y गुणसूत्र होता ही नहीं है.

और.... दोनों गुणसूत्र अ-समान होने के कारण.... इन दोनों गुणसूत्र का पूर्ण Crossover नहीं... बल्कि, केवल 5 % तक ही Crossover होता है.

और, 95 % Y गुणसूत्र ज्यों का त्यों (intact) ही बना रहता है.

तो, इस लिहाज से महत्त्वपूर्ण Y गुणसूत्र हुआ.... क्योंकि, Y गुणसूत्र के विषय में हम निश्चिंत है कि.... यह पुत्र में केवल पिता से ही आया है.

बस..... इसी Y गुणसूत्र का पता लगाना ही गौत्र प्रणाली का एकमात्र उदेश्य है जो हजारों/लाखों वर्षों पूर्व हमारे ऋषियों ने जान लिया था.

इस तरह ये बिल्कुल स्पष्ट है कि.... हमारी वैदिक गोत्र प्रणाली, गुणसूत्र पर आधारित है अथवा Y गुणसूत्र को ट्रेस करने का एक माध्यम है.

उदाहरण के लिए .... यदि किसी व्यक्ति का गोत्र शांडिल्य है तो उस व्यक्ति में विद्यमान Y गुणसूत्र शांडिल्य ऋषि से आया है.... या कहें कि शांडिल्य ऋषि उस Y गुणसूत्र के मूल हैं.

अब चूँकि.... Y गुणसूत्र स्त्रियों में नहीं होता है इसीलिए विवाह के पश्चात स्त्रियों को उसके पति के गोत्र से जोड़ दिया जाता है.

वैदिक/ हिन्दू संस्कृति में एक ही गोत्र में विवाह वर्जित होने का मुख्य कारण यह है कि एक ही गोत्र से होने के कारण वह पुरुष व् स्त्री भाई-बहन कहलाए क्योंकि उनका पूर्वज (ओरिजिन) एक ही है..... क्योंकि, एक ही गोत्र होने के कारण...
दोनों के गुणसूत्रों में समानता होगी.

आज की आनुवंशिक विज्ञान के अनुसार भी..... यदि सामान गुणसूत्रों वाले दो व्यक्तियों में विवाह हो तो उनके संतान... आनुवंशिक विकारों का साथ उत्पन्न होगी क्योंकि.... ऐसे दंपत्तियों की संतान में एक सी विचारधारा, पसंद, व्यवहार आदि में कोई नयापन नहीं होता एवं ऐसे बच्चों में रचनात्मकता का अभाव होता है.

विज्ञान द्वारा भी इस संबंध में यही बात कही गई है कि सगौत्र शादी करने पर अधिकांश ऐसे दंपत्ति की संतानों में अनुवांशिक दोष अर्थात् मानसिक विकलांगता, अपंगता, गंभीर रोग आदि जन्मजात ही पाए जाते हैं.
शास्त्रों के अनुसार इन्हीं कारणों से सगौत्र विवाह पर प्रतिबंध लगाया था.
यही कारण था कि शारीरिक बिषमता के कारण अग्रेज राज परिवार में आपसी विवाह बन्द हुए। 
जैसा कि हम जानते हैं कि.... पुत्री में 50% गुणसूत्र माता का और 50% पिता से आता है.

फिर, यदि पुत्री की भी पुत्री हुई तो.... वह डीएनए 50% का 50% रह जायेगा...
और फिर.... यदि उसके भी पुत्री हुई तो उस 25% का 50% डीएनए रह जायेगा.

इस तरह से सातवीं पीढ़ी में पुत्री जन्म में यह % घटकर 1% रह जायेगा.

अर्थात.... एक पति-पत्नी का ही डीएनए सातवीं पीढ़ी तक पुनः पुनः जन्म लेता रहता है....और, यही है "सात जन्मों के साथ का रहस्य".

लेकिन..... यदि संतान पुत्र है तो .... पुत्र का गुणसूत्र पिता के गुणसूत्रों का 95% गुणों को अनुवांशिकी में ग्रहण करता है और माता का 5% (जो कि किन्हीं परिस्थितियों में एक % से कम भी हो सकता है) डीएनए ग्रहण करता है...
और, यही क्रम अनवरत चलता रहता है.

जिस कारण पति और पत्नी के गुणों युक्त डीएनए बारम्बार जन्म लेते रहते हैं.... अर्थात, यह जन्म जन्मांतर का साथ हो जाता है.

इन सब में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि.... माता पिता यदि कन्यादान करते हैं तो इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि वे कन्या को कोई वस्तु समकक्ष समझते हैं...

बल्कि, इस दान का विधान इस निमित किया गया है कि दूसरे कुल की कुलवधू बनने के लिये और उस कुल की कुल धात्री बनने के लिये, उसे गोत्र मुक्त होना चाहिए. 

पुत्रियां..... आजीवन डीएनए मुक्त हो नहीं सकती क्योंकि उसके भौतिक शरीर में वे डीएनए रहेंगे ही, इसलिये मायका अर्थात माता का रिश्ता बना रहता है.

शायद यही कारण है कि..... विवाह के पश्चात लड़कियों के पिता को घर को ""मायका"" ही कहा जाता है.... "'पिताका"" नहीं.

क्योंकि..... उसने अपने जन्म वाले गोत्र अर्थात पिता के गोत्र का त्याग कर दिया है....!

और चूंकि..... कन्या विवाह के बाद कुल वंश के लिये रज का दान कर मातृत्व को प्राप्त करती है... इसीलिए, हर विवाहित स्त्री माता समान पूजनीय हो जाती है.

आश्चर्य की बात है कि.... हमारी ये परंपराएं हजारों-लाखों साल से चल रही है जिसका सीधा सा मतलब है कि हजारों लाखों साल पहले.... जब पश्चिमी देशों के लोग नंग-धड़ंग जंगलों में रह रहा करते थे और चूहा ,बिल्ली, कुत्ता वगैरह मारकर खाया करते थे....

उस समय भी हमारे पूर्वज ऋषि मुनि.... इंसानी शरीर में गुणसूत्र के विभक्तिकरण को समझ गए थे.... और, हमें गोत्र सिस्टम में बांध लिया था.

इस बातों से एक बार फिर ये स्थापित होता है कि....  
हमारा सनातन हिन्दू धर्म पूर्णतः वैज्ञानिक है....

बस, हमें ही इस बात का भान नहीं है.

असल में..... अंग्रेजों ने जो हमलोगों के मन में जो कुंठा बोई है..... उससे बाहर आकर हमें अपने पुरातन विज्ञान को फिर से समझकर उसे अपनी नई पीढियों को बताने और समझाने की जरूरत है.
 गोत्र के महत्व को वैज्ञानिक तरीके से समझे अज्ञानता की हठधर्मिता न करे*
*विशेष नोट__यहां प्रदर्शित चित्र केवल प्रतीकात्मक है जो सोसल मीडिया से लिया गया है इस पर लेखक का कोई हक और लेखक से कोई संबंध नहीं है।।

HISTORY OF ROHILA RAJPUTS

जय जय राजपूताना बुंदेलखंड,रोहिलखंड,बघेलखंड,कुमायुखंड उत्तराखंड (भरतखण्ड)
क्षत्रिय अस्तित्व न्याय मोर्चा सभी क्षत्रिय साम्राज्य को खोज खोज कर सामने लाने की मुहिम में है बहुत कुछ छिपाया गया और हमे नही पढ़ाया जाता किंतु क्षत्रिय कभी मिटता नही वह शास्वत है सनातन है उसकी रक्षा स्वयं सृष्टि रचयिता करता है ,क्षत्रिय अस्तित्व न्याय मोर्चा किसी भी क्षत्रिय के अस्तित्व को संरक्षित करने का कार्य कर रहा है,कितना हास्यास्पद है कि वैदिक कालीन उत्तरी पांचाल में स्थापित राजपूताना रोहिलखंड के क्षत्रिय के स्थान पर आक्रांता अफगानों का इतिहास पढ़ाया जाता है अट्ठारहवीं सदी से आगे राजपूत इतिहास को गायब ही कर दिया गया विक्की पीडिया से भी हटा दिया गया है किंतु अब और अन्याय इतिहास केhttps://youtu.be/JrR9PAOsYis?si=buq2Fpej4u3vBIjf साथ सहन नही किया जायेगा।।

रोहिल्ला उपाधि -

 शूरवीर, अदम्य - साहसी विशेष युद्ध कला में प्रवीण, उच्च कुलीन सेनानायको, और सामन्तों को उनके गुणों के अनुरूप क्षत्रिय वीरों को तदर्थ उपाधि से विभूषित किया जाता था - जैसे - रावत - महारावत, राणा, महाराणा, ठाकुर, नेगी, रावल, रहकवाल, रोहिल्ला, समरलछन्द, लखमीर,(एक लाख का नायक) आदि। इसी आधार पर उनके वंशज भी आजतक राजपूतों के सभी गोत्रों में पाए जाते हैं। "वभूव रोहिल्लद्व्यड्कों वेद शास्त्रार्थ पारग: । द्विज: श्री हरि चन्द्राख्य प्रजापति समो गुरू : ।।2।। ( बाउक का जोधपुर लेख ) - सन 837 ई. चैत्र सुदि पंचमी - हिंदी अर्थ - "वेद शास्त्र में पारंगत रोहिल्लाद्धि उपाधिधारी एक हरिश्चन्द्र नाम का ब्राह्मण था" जो प्रजापति के समान था हुआ ।।6।। ( गुज्जर गौरव मासिक पत्रिका - अंक 10, वर्ष ।।माह जौलाई 1991 पृष्ठ - 13) (राजपुताने का इतिहास पृष्ठ - 147) (इतिहास रोहिला - राजपूत पृष्ठ - 23) (प्राचीन भारत का इतिहास, राजपूत वंश, - कैलाश - प्रकाशन लखनऊ सन 1970 ई. पृष्ठ - 104 -105 - ) रोहिल्लद्व्यड्क रोहिल्लद्धि - अंक वाला या उपाधि वाला । सर्वप्रथम प्रतिहार शासक द्विज हरिश्चन्द्र को रोहिल्लद्धि उपाधि प्राप्त हुई । बाउक,प्रतिहार शासक विप्र हरिश्चन्द्र के पुत्र कवक और श्रीमति पदमनी का पुत्र था वह बड़ा पराक्रमी और नरसिंह वीर था। प्रतिहार एक पद है, किसी विशेष वर्ण का सूचक नही है। विप्र हरिश्चन्द्र प्रतिहार अपने बाहुबल से मांडौर दुर्ग की रक्षा करने वाला था, अदम्य साहस व अन्य किसी विशेष रोहिला शासक के प्रभावनुरूप ही रोहिल्लद्व्यड्क उपाधि को किसी आधार के बिना कोई भी व्यक्ति अपने नाम के साथ सम्बन्ध करने का वैधानिक रूप में अधिकारी नही हो सकता। उपरोक्त से स्पष्ट है कि बहुत प्राचीन काल से ही गुणकर्म के आधार पर क्षत्रिय उपाधि "रोहिल्ला" प्रयुक्त । प्रदत्त करने की वैधानिक व्यवस्था थी। जिसे हिन्दुआसूर्य - महाराजा पृथ्वीराज चौहान ने भी यथावत रखा। पृथ्वीराज चौहान की सेना में एक सौ रोहिल्ला - राजपूत सेना नायक थे । "पृथ्वीराज रासौ" - चहूँप्रान, राठवर, जाति पुण्डीर गुहिल्ला । बडगूजर पामार, कुरभ, जागरा, रोहिल्ला ।। इस कवित्त से स्पष्ट है । कि - प्राचीन - काल में रोहिला- क्षत्रियों का स्थान बहुत ऊँचा था। रोहिला रोहिल्ल आदि शब्द राजपुत्रों अथवा क्षत्रियों के ही द्योतक थे । इस कवित्त के प्रमाणिकता "आइने अकबरी", 'सुरजन चरिता' भी सिद्ध करते हैं । युद्ध में कमानी की तरह (रोह चढ़ाई करके) शत्रु सेना को छिन्न - भिन्न करने वाले को रहकवाल, रावल, रोहिल्ला, महाभट्ट कहा गया है। महाराज पृथ्वीराज चौहान की सेना में पांच गोत्रों के रावल थे - रावल - रोहिला रावल - सिन्धु रावल - घिलौत (गहलौत) रावल - काशव या कश्यप रावल - बलदया बल्द मुग़ल बादशाह अकबर ने भी बहादुरी की रोहिल्ला उपाधि को यथावत बनाए रखा जब अकबर की सेना दूसरे राज्यों को जीत कर आती थी तो अकबर अपनी सेना के सरदारों को,बहादुर जवानों बहादुरी के पदक (ख़िताब,उपाधि) देता था। एक बार जब महाराणा मान सिंह काबुल जीतकर वापिस आए तो अकबर ने उसके बाइस राजपूत सरदारों को यह ख़िताब दी (उपाधि से सम्मानित किया) बाई तेरा हर निरकाला रावत को - रावल जी चौमकिंग सरनाथा को - रावल झंड्कारा कांड्कड को - रोहिल्ला रावत मन्चारा - कांड्कड काम करन, निरकादास रावत को रावराज और रूहेलाल को रोहिला
गौरवशाली इतिहास के कुछ स्वर्णाक्षर (रोहिला क्षत्रिय) भारत वर्ष का क्षेत्रफल 42 ,02 ,500 वर्ग किमी था । रोहिला साम्राज्य 25 ,000 वर्ग किमी 10 ,000 वर्गमील में फैला हुआ था । रोहिला, राजपूतो का एक गोत्र , कबीला (परिवार) या परिजन- समूह है जो कठेहर - रोहिलखण्ड के शासक एंव संस्थापक थे |मध्यकालीन भारत में बहुत से राजपूत लडाको को रोहिला की उपाधि से विभूषित किया गया. उनके वंशज आज भी रोहिला परिवारों में पाए जाते हैं । रोहिले- राजपूत प्राचीन काल से ही सीमा- प्रांत, मध्य देश (गंगा- यमुना का दोआब), पंजाब, काश्मीर, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश में शासन करते रहे हैं । जबकि मुस्लिम-रोहिला साम्राज्य अठारहवी शताब्दी में इस्लामिक दबाव के पश्चात् स्थापित हुआ. मुसलमानों ने इसे उर्दू में "रूहेलखण्ड" कहा । 1702 से 1720 ई तक रोहिलखण्ड में रोहिले राजपूतो का शासन था. जिसकी राजधानी बरेली थी । रोहिले राजपूतो के महान शासक "राजा इन्द्रगिरी" ने रोहिलखण्ड की पश्चिमी सीमा पर सहारनपुर में एक किला बनवाया,जिसे "प्राचीन रोहिला किला" कहा जाता है । सन 1801 ई में रोहिलखण्ड को अंग्रेजो ने अपने अधिकार में ले लिया था. हिन्दू रोहिले-राजपुत्रो द्वारा बनवाए गये इस प्राचीन रोहिला किला को 1806 से 1857 के मध्य कारागार में परिवर्तित कर दिया गया था । इसी प्राचीन- रोहिला- किला में आज सहारनपुर की जिला- कारागार है । "सहारन" राजपूतो का एक गोत्र है जो रोहिले राजपूतो में पाया जाता है. यह सूर्य वंश की एक प्रशाखा है जो राजा भरत के पुत्र तक्षक के वंशधरो से प्रचालित हुई थी । फिरोज तुगलक के आक्रमण के समय "थानेसर" (वर्तमान में हरियाणा में स्थित) का राजा "सहारन" ही था । दिल्ली में गुलाम वंश के समय रोहिलखण्ड की राजधानी "रामपुर" में राजा रणवीर सिंह कठेहरिया (काठी कोम, निकुम्भ वंश, सूर्यवंश रावी नदी के काठे से विस्थापित कठगणों के वंशधर) का शासन था । इसी रोहिले राजा रणवीर सिंह ने तुगलक के सेनापति नसीरुद्दीन चंगेज को हराया था. 'खंड' क्षत्रिय राजाओं से सम्बंधित है, जैसे भरतखंड, बुंदेलखंड, विन्धयेलखंड , रोहिलखंड, कुमायुखंड, उत्तराखंड आदि । प्राचीन भारत की केवल दो भाषाएँ संस्कृत व प्राकृत (सरलीकृत संस्कृत) थी । रोहिल प्राकृत और खंड संस्कृत के शब्द हैं जो क्षत्रिय राजाओं के प्रमाण हैं । इस्लामिक नाम है दोलताबाद, कुतुबाबाद, मुरादाबाद, जलालाबाद, हैदराबाद, मुबारकबाद, फैजाबाद, आदि । रोहिले राजपूतो की उपस्तिथि के प्रमाण हैं । योधेय गणराज्य के सिक्के, गुजरात का (1445 वि ) ' का शिलालेख (रोहिला मालदेव के सम्बन्ध में), मध्यप्रदेश में स्थित रोहिलखंड रामपुर में राजा रणवीर सिंह के किले के खंडहर, रानी तारादेवी सती का मंदिर , पीलीभीत में राठौर रोहिलो (महिचा- प्रशाखा) की सतियों के सतियों के मंदिर, सहारनपुर का प्राचीन रोहिला किला, मंडोर का शिलालेख, " बड़ौत में स्तिथ " राजा रणवीर सिंह रोहिला मार्ग "
नगरे नगरे ग्रामै ग्रामै विलसन्तु संस्कृतवाणी । सदने - सदने जन - जन बदने , जयतु चिरं कल्याणी ।। जोधपुर का शिलालेख, प्रतिहार शासक हरीशचंद्र को मिली रोहिल्लाद्व्यंक की उपाधि, कई अन्य राजपूतो के वंशो को प्राप्त उपाधियाँ, 'पृथ्वीराज रासो', आल्हाखण्ड - काव्यव, सभी राजपूत वंशो में पाए जाने वाले प्रमुख गोत्र । अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा भारत द्वारा प्रकाशित पावन ग्रन्थ क्षत्रिय वंशाणर्व (रोहिले क्षत्रियों का राज्य रोहिलखण्ड का पूर्व नाम पांचाल व मध्यप्रदेश), वर्तमान में अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा से अखिल भारतीय रो. क्ष. वि. परिषद को संबद्धता प्राप्त होना, वर्तमान में भी रोहिलखण्ड (संस्कृत भाषा में) क्षेत्र का नाम यथावत बने रहना, अंग्रेजो द्वारा भी उत्तर रेलवे को "रोहिलखण्ड - रेलवे" का नाम देना जो बरेली से देहरादून तक सहारनपुर होते हुए जाती थी, वर्तमान में लाखो की संख्या में पाए जाने वाले रोहिला-राजपूत, रोहिले-राजपूतों के सम्पूर्ण भारत में फैले हुए कई अन्य संगठन अखिल भारतीय स्तर पर 'राजपूत रत्न' रोहिला शिरोमणि डा. कर्णवीर सिंह द्वारा संगठित एक अखिल भारतीय रोहिला क्षत्रिय विकास परिषद (सम्बद्ध अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा) पंजीकरण संख्या - 545, आदि। 12. पानीपत की तीसरी लड़ाई (रोहिला वार) में रोहिले राजपूत- राजा गंगासहाय राठौर (महेचा) के नेतृत्व में मराठों की ओर से अफगान आक्रान्ता अहमदशाह अब्दाली व रोहिला पठान नजीबदौला के विरुद्ध लड़े व वीरगति पाई । इस मराठा युद्ध में लगभग एक हजार चार सौ रोहिले राजपूत वीरगति को प्राप्त हुए । (1761-1774 ई .) (इतिहास -रोहिला-राजपूत) 13. प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 में भी रोहिले राजपूतों ने अपना योगदान दिया, ग्वालियर के किले में रानी लक्ष्मीबाई को हजारों की संख्या में रोहिले राजपूत मिले, इस महायज्ञ में स्त्री पुरुष सभी ने अपने गहने धन आदि एकत्र कर झाँसी की रानी के साथ अंग्रेजो के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए सम्राट बहादुरशाह- जफर तक पहुँचाए । अंग्रेजों ने ढूँढ-ढूँढ कर उन्हें काट डाला जिससे रोहिले राजपूतों ने अज्ञातवास की शरण ली। 14. राजपूतों की हार के प्रमुख कारण थे हाथियों का प्रयोग, सामंत प्रणाली व आपसी मतभेद, ऊँचे व भागीदार कुल का भेदभाव (छोटे व बड़े की भावना) आदि। 15. सम्वत 825 में बप्पा रावल चित्तौड़ से विधर्मियों को खदेड़ता हुआ ईरान तक गया। बप्पा रावल से समर सिंह तक 400 वर्ष होते हैं, गह्लौतों का ही शासन रहा। इनकी 24 शाखाएँ हैं। जिनके 16 गोत्र (बप्पा रावल के वंशधर) रोहिले राजपूतों में पाए जाते हैं। 16. चितौड़ के राणा समर सिंह (1193 ई.) की रानी पटना की राजकुमारी थी इसने 9 राजा, 1 रावत और कुछ रोहिले साथ लेकर मौ. गोरी के गुलाम कुतुबद्दीन का आक्रमण रोका और उसे ऐसी पराजय दी कि कभी उसने चितौड़ की ओर नही देखा। 17. रोहिला शब्द क्षेत्रजनित, गुणजनित व 'मूल पुरुष' नाम-जनित है। यह गोत्र जाटों में भी रूहेला, रोहेला, रूलिया, रूहेल , रूहिल, रूहिलान नामों से पाया जाता है। 18. रूहेला गोत्र जाटों में राजस्थान व उ. प्र. में पाया जाता है। रोहेला गोत्र के जाट जयपुर में बजरंग बिहार ओर ईनकम टैक्स कालोनी टौंक रोड में विद्यमान है। झुनझुन, सीकर, चुरू, अलवर, बाडमेर में भी रोहिला गोत्र के जाट विद्यमान हैं । उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में रोहेला गोत्र के जाटों के बारह गाँव हैं। महाराष्ट्र में रूहिलान गोत्र के जाट वर्धा में केसर व खेड़ा गाँव में विद्यमान हैं। 19. मुगल सम्राट अकबर ने भी राजपूत राजाओं को विजय प्राप्त करने के पश्चात् रोहिला-उपाधि से विभूषित किया था, जैसे राव, रावत, महारावल, राणा, महाराणा, रोहिल्ला, रहकवाल आदि। 20. "रोहिला-राजपूत" समाज , क्षत्रियों का वह परिवार है जो सरल ह्रदयी, परिश्रमी,राष्ट्रप्रेमी,स्वधर्मपरायण, स्वाभिमानी व वर्तमान में अधिकांश अज्ञातवास के कारण साधनविहीन है। 40 प्रतिशत कृषि कार्य से,30 प्रतिशत श्रम के सहारे व 30 प्रतिशत व्यापार व लघु उद्योगों के सहारे जीवन यापन कर रहे हैं। इनके पूर्वजो ने हजारों वर्षों तक अपनी आन, मान, मर्यादा की रक्षा के लिए बलिदान दिए हैं और अनेको आक्रान्ताओं को रोके रखने में अपना सर्वस्व मिटाया है । गणराज्य व लोकतंत्रात्मक व्यवस्था को सजीव बनाये रखने की भावना के कारण वंश परंपरा के विरुद्ध रहे, करद राज्यों में भी स्वतंत्रता बनाये रखी । कठेहर रोहिलखण्ड की स्थापना से लेकर सल्तनत काल की उथल पुथल, मार काट , दमन चक्र तक लगभग आठ सौ वर्ष के शासन काल के पश्चात् 1857 के ग़दर के समय तक रोहिले राजपूतों ने राष्ट्रहित में बलिदान दिये हैं। क्रूर काल के झंझावालों से संघर्ष करते हुए क्षत्रियों का यह 'रोहिला परिवार' बिखर गया है, इस समाज की पहचान के लिए भी आज स्पष्टीकरण देना पड़ता है। कैसा दुर्भाग्य है? यह क्षत्रिय वर्ग का। जो अपनी पहचान को भी टटोलना पड़ रहा है। परन्तु समय के चक्र में सब कुछ सुरक्षित है। इतिहास के दर्पण में थिरकते चित्र, बोलते हैं, अतीत झाँकता है, सच सोचता है कि उसके होने के प्रमाण धुंधले-धुंधले से क्यों हैं? हे- क्षत्रिय तुम धन्य हो, पहचानो अपने प्रतिबिम्बों को' - "क्षत्रिय एकता का बिगुल फूँक सब धुंधला धुंधला छंटने दो। हो अखंड भारत के राजपुत्र खण्ड खण्ड में न सबको बंटने दो ।।" 21. रोहिलखण्ड से विस्थापित इन रोहिला परिवारों में राजपूत परम्परा के कुछ प्रमुख गोत्र इस प्रकार पाए जाते हैं :- 
रोहिला, रोहित, रोहिल, रावल, द्रोहिया, रल्हन, रूहिलान, रौतेला , रावत यौधेय, योतिक, जोहिया, झोझे, पेशावरी पुण्डीर, पांडला, पंढेर, पुन्ड़ेहार, पुंढीर, पुंडाया चौहान, जैवर, जौडा, चाहल, चावड़ा, खींची, गोगद, गदाइया, सनावर, क्लानियां, चिंगारा, चाहड बालसमंद, चोहेल, चेहलान, बालदा, बछ्स (वत्स), बछेर, चयद, झझोड, चौपट, खुम्ब, जांघरा, जंगारा, झांझड निकुम्भ, कठेहरिया, कठौरा, कठैत, कलुठान, कठपाल, कठेडिया, कठड, काठी, कठ, पालवार राठौर, महेचा, महेचराना, रतनौता, बंसूठ जोली, जोलिए, बांकटे, बाटूदा, थाथी, कपोलिया, खोखर, अखनौरिया ,लोहमढ़े, मसानिया बुन्देला, उमट, ऊमटवाल भारतवंशी, भारती, गनान नाभावंशी,बटेरिया, बटवाल, बरमटिया परमार, जावडा, लखमरा, मूसला, मौसिल, भौंसले, बसूक, जंदडा, पछाड़, पंवारखा, ढेड, मौन तोमर, तंवर, मुदगल, देहलीवाल, किशनलाल, सानयाल, सैन, सनाढय गहलौत, कूपट, पछाड़, थापा, ग्रेवाल, कंकोटक, गोद्देय, पापडा, नथैड़ा, नैपाली, लाठिवाल, पानिशप, पिसोण्ड, चिरडवाल, नवल, चरखवाल, साम्भा, पातलेय, पातलीय, छन्द (चंड), क्षुद्रक,(छिन्ड, इन्छड़, नौछड़क), रज्जडवाल, बोहरा, जसावत, गौर, मलक, मलिक, कोकचे, काक कछवाहा, कुशवाहा, कोकच्छ, ततवाल, बलद, मछेर सिसौदिया, भरोलिया, बरनवाल, बरनपाल, बहारा
खुमाहड, अवन्ट, ऊँटवाल 
सिकरवार, रहकवाल, रायकवार, ममड, गोदे सोलंकी, गिलानिया, भुन, बुन, बघेला, ऊन, (उनयारिया) बडगूजर, सिकरवार, ममड़ा, पुडिया कश्यप, काशब, रावल, रहकवाल यदु, मेव, छिकारा, तैतवाल, भैनिवाल, उन्हड़, भाटटी बनाफरे, जादो, बागड़ी, सिन्धु, कालड़ा, सारन, छुरियापेड, लखमेरिया, चराड, जाखड़, सेरावत, देसवाल, पूडिया प्रमुख रोहिला क्षत्रिय शासक अंगार सैन - गांधार (वैदिक काल) अश्वकरण - ईसा पूर्व 326 (मश्कावती दुर्ग) अजयराव - स्यालकोट (सौकंल दुर्ग) ईसा पूर्व 326 प्रचेता - मलेच्छ संहारक शाशिगुप्त - साइरस के समकालीन सुभाग सैन - मौर्य साम्राज्य के समकालीन राजाराम शाह - 929 वि. रामपुर रोहिलखण्ड बीजराज - रोहिलखण्ड करण चन्द्र - रोहिलखण्ड विग्रह राज - रोहिलखण्ड - गंगापार कर स्रुघ्न जनपद (सुगनापुर) यमुना तक विस्तार दसवीं शताब्दी में सरसावा में किले का निर्माण पश्चिमी सीमा पर, यमुना द्वारा ध्वस्त टीले के रूप में नकुड़ रोड पर देखा जा सकता है। सावन्त सिंह - रोहिलखण्ड जगमाल - रोहिलखण्ड धिंगतराव - रोहिलखण्ड गोंकुल सिंह - रोहिलखण्ड महासहाय - रोहिलखण्ड त्रिलोक चन्द - रोहिलखण्ड रणवीर सिंह - रोहिलखण्ड सुन्दर पाल - रोहिलखण्ड नौरंग देव - रोहिलखण्ड सूरत सिंह - रोहिलखण्ड हंसकरण रहकवाल - पृथ्वीराज के सेनापति मिथुन देव रायकवार - ईसम सिंह पुण्डीर के मित्र थाना भवन शासक सहकरण, विजयराव - उपरोक्त राजा हतरा - हिसार जगत राय - बरेली मुकंदराज - बरेली 1567 ई. बुधपाल - बदायुं महीचंद राठौर - बदायुं बांसदेव - बरेली बरलदेव - बरेली राजसिंह - बरेली परमादित्य - बरेली न्यादरचन्द - बरेली राजा सहारन - थानेश्वर प्रताप राव खींची (चौहान वंश) - गागरोन राणा लक्ष्य सिंह - सीकरी रोहिला मालदेव - गुजरात जबर सिंह - सोनीपत रामदयाल महेचराना - क्लामथ गंगसहाय - महेचराना - क्लामथ 1761 ई. राणा प्रताप सिंह - कौराली (गंगोह) 1095 ई. नानक चन्द - अल्मोड़ा राजा पूरणचन्द - बुंदेलखंड राजा हंस ध्वज - हिसार व राजा हरचंद राजा बसंतपाल - रोहिलखण्ड व्रतुसरदार, सामंत वृतपाल 1193 ई. महान सिंह बडगूजर - बागपत 1184 ई. राजा यशकरण - अंधली गुणाचन्द - जयकरण - चरखी - दादरी राजा मोहनपाल देव - करोली राजारूप सैन - रोपड़ राजा महपाल पंवार - जीन्द राजा परपदेड पुंडीर - लाहौर राजा लखीराव - स्यालकोट राजा जाजा जी तोमर - दिल्ली खड़ग सिंह - रोहिलखण्ड लौदी के समकालीन राजा हरि सिंह - खिज्रखां के दमन का शिकार हुआ - कुमायुं की पहाड़ियों में अज्ञातवास की शरण ली राजा इन्द्रगिरी (रोहिलखण्ड) (इन्द्रसेन) - सहारनपुर में प्राचीन रोहिला किला बनवाया । रोहिला क्षत्रिय वंश भास्कर लेखक आर. आर. राजपूत मुरसेन अलीगढ से प्रस्तुत राजा बुद्ध देव रोहिला - 1787 ई., सिंधिया व जयपुर के कछवाहो के खेड़ा व तुंगा के मैदान में हुए युद्ध का प्रमुख पात्र । (राय कुँवर देवेन्द्र सिंह जी राजभाट, तुंगा (राजस्थान)
रोहिल्ला उपाधि - शूरवीर, अदम्य - साहसी विशेष युद्ध कला में प्रवीण, उच्च कुलीन सेनानायको, और सामन्तों को उनके गुणों के अनुरूप क्षत्रिय वीरों को तदर्थ उपाधि से विभूषित किया जाता था - जैसे - रावत - महारावत, राणा, महाराणा, ठाकुर, नेगी, रावल, रहकवाल, रोहिल्ला, समरलछन्द, लखमीर,(एक लाख का नायक) आदि। इसी आधार पर उनके वंशज भी आजतक राजपूतों के सभी गोत्रों में पाए जाते हैं। "वभूव रोहिल्लद्व्यड्कों वेद शास्त्रार्थ पारग: । द्विज: श्री हरि चन्द्राख्य प्रजापति समो गुरू : ।।2।। ( बाउक का जोधपुर लेख ) - सन 837 ई. चैत्र सुदि पंचमी - हिंदी अर्थ - "वेद शास्त्र में पारंगत रोहिल्लाद्धि उपाधिधारी एक हरिश्चन्द्र नाम का ब्राह्मण था" जो प्रजापति के समान था हुआ ।।6।। ( गुज्जर गौरव मासिक पत्रिका - अंक 10, वर्ष ।।माह जौलाई 1991 पृष्ठ - 13) (राजपुताने का इतिहास पृष्ठ - 147) (इतिहास रोहिला - राजपूत पृष्ठ - 23) (प्राचीन भारत का इतिहास, राजपूत वंश, - कैलाश - प्रकाशन लखनऊ सन 1970 ई. पृष्ठ - 104 -105 - ) रोहिल्लद्व्यड्क रोहिल्लद्धि - अंक वाला या उपाधि वाला । सर्वप्रथम प्रतिहार शासक द्विज हरिश्चन्द्र को रोहिल्लद्धि उपाधि प्राप्त हुई । बाउक,प्रतिहार शासक विप्र हरिश्चन्द्र के पुत्र कवक और श्रीमति पदमनी का पुत्र था वह बड़ा पराक्रमी और नरसिंह वीर था। प्रतिहार एक पद है, किसी विशेष वर्ण का सूचक नही है। विप्र हरिश्चन्द्र प्रतिहार अपने बाहुबल से मांडौर दुर्ग की रक्षा करने वाला था, अदम्य साहस व अन्य किसी विशेष रोहिला शासक के प्रभावनुरूप ही रोहिल्लद्व्यड्क उपाधि को किसी आधार के बिना कोई भी व्यक्ति अपने नाम के साथ सम्बन्ध करने का वैधानिक रूप में अधिकारी नही हो सकता। उपरोक्त से स्पष्ट है कि बहुत प्राचीन काल से ही गुणकर्म के आधार पर क्षत्रिय उपाधि "रोहिल्ला" प्रयुक्त । प्रदत्त करने की वैधानिक व्यवस्था थी। जिसे हिन्दुआसूर्य - महाराजा पृथ्वीराज चौहान ने भी यथावत रखा। पृथ्वीराज चौहान की सेना में एक सौ रोहिल्ला - राजपूत सेना नायक थे । "पृथ्वीराज रासौ" - चहूँप्रान, राठवर, जाति पुण्डीर गुहिल्ला । बडगूजर पामार, कुरभ, जागरा, रोहिल्ला ।। इस कवित्त से स्पष्ट है । कि - प्राचीन - काल में रोहिला- क्षत्रियों का स्थान बहुत ऊँचा था। रोहिला रोहिल्ल आदि शब्द राजपुत्रों अथवा क्षत्रियों के ही द्योतक थे । इस कवित्त के प्रमाणिकता "आइने अकबरी", 'सुरजन चरिता' भी सिद्ध करते हैं । युद्ध में कमानी की तरह (रोह चढ़ाई करके) शत्रु सेना को छिन्न - भिन्न करने वाले को रहकवाल, रावल, रोहिल्ला, महाभट्ट कहा गया है। महाराज पृथ्वीराज चौहान की सेना में पांच गोत्रों के रावल थे - रावल - रोहिला रावल - सिन्धु रावल - घिलौत (गहलौत) रावल - काशव या कश्यप रावल - बलदया बल्द मुग़ल बादशाह अकबर ने भी बहादुरी की रोहिल्ला उपाधि को यथावत बनाए रखा जब अकबर की सेना दूसरे राज्यों को जीत कर आती थी तो अकबर अपनी सेना के सरदारों को,बहादुर जवानों बहादुरी के पदक (ख़िताब,उपाधि) देता था। एक बार जब महाराणा मान सिंह काबुल जीतकर वापिस आए तो अकबर ने उसके बाइस राजपूत सरदारों को यह ख़िताब दी (उपाधि से सम्मानित किया) बाई तेरा हर निरकाला रावत को - रावल जी चौमकिंग सरनाथा को - रावल झंड्कारा कांड्कड को - रोहिल्ला रावत मन्चारा - कांड्कड काम करन, निरकादास रावत को रावराज और रूहेलाल को रोहिला✍️संकलित :-समय सिंह पुंडीर,राष्ट्रीय प्रचारक,क्षत्रिय अस्तित्व न्याय मोर्चा,आजीवन सदस्य अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा स्थापित१८९७ईस्वी भारत मुख्यालय दिल्ली, 🙏🌹🌷