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Sunday, 28 July 2024

The Brave Rohillas


इतिहास के पन्नों में दर्ज है रोहिला राजपूतों का पराक्रम

पौराणिक व पुरातत्विक साक्ष्यों का अवलोकन करने पर स्पष्ट हो गया है कि रोहिला शब्द ऐतिहासिक महत्व रखता है, क्यांेकि इस शब्द से उन वीर क्षत्रिय वश्ंाों के इतिहास का परिचय मिलता है, जिन्होंने लगभग पांच सौ वर्ष ईसा पूर्व से ही  भारत भूमि पर आक्रमण करने वाले- ईरानी यूनानी, अरब, कुषाण, शक हूण आदि विदेशी आक्रान्ताओं से सर्वप्रथम भयंकर संघर्ष किया। लगभग दो हजार पांच सौ वर्षो तक वीर प्रहरियों की भाँति विकट संघर्ष करते हुए इतनी दीर्घ अवधि तक के काल खण्ड में  इन क्षत्रिय वर्गो का कितना रक्त बहा होगा, कितनी महिलाओं के माथे का सिन्दूर मिटा होगा, कितने घर, गाँव शहर बर्बाद हुए होंगे, कितने बालक व बालिकाये अनाथों की तरह भटकते फिरे होंगें।  जिन्हें अपने प्राणों से प्रिय अपनी मातृभूमि थी , संस्कृति के रक्षक इन महान वीर  प्रहरियों  को भारतीय इतिहास के पटल पर समुचित स्थान न मिल पाया। 

वस्तुतः क्षत्रिय समाज भारत की रक्षा शक्ति रहा है, समय की आवश्यकता को अनुभव करके संस्कृति और अखण्डता की रक्षा के लिए कटिबद्ध होकर क्षात्र धर्म का परिचय  देकर भारत को महान गणतंत्रात्मक विश्वशक्ति के रूप में स्थापित कराने में भारत की वीर ‘‘क्षत्रिय शक्तियों ‘‘ने अवस्मिरणीय योगदान दिया है। सामाजिक और सम्प्रदायिक एकता के बिना कोई देश आन्तरिक रूप से बलवान नहीं हो सकता। 

अपने पूर्वजों के द्वारा किये गये कार्यो को स्मरण कर प्रेरणा स्वरूप रोहिला क्षत्रियों के इतिहास के कुछ धुँधले पन्ने उकेरते हुए प्रमाणित झलकिया 



1. ईसा पूर्व 326ै, सिकन्दर ने अपने सैनिकों से मर्म स्पर्षीशब्दों में प्रार्थना की कि ‘‘मुझे भारत  से  गौरव के साथ लौट जाने दो तथा भगौडे की भाँति भागने पर मजबूर न करो।‘‘ ‘‘ सांकल दुर्ग (स्याल कोट)  के सभी कठवीर और उनके परिवार बाहर निकल गए चूंकि रोहिला राजा अजायराव वीरगति को प्राप्त हो चुका था। कठ गणराज्य के प्रमुख, निकुम्भ वंशी ( सूर्यवंश) हठवीर अजय राव की पुत्री कर्णिका के मन में  अपने पिता की मृत्यु के उपरान्त प्रतिशोध की भावना जाग उठी और वह दुर्ग में छिपकर बैठ गई, यह राजकुमारी बहुत साहसी व चुतर थी। कर्णिका को दुर्ग में अकेली फँसी रहने की कोई चिन्ता न थी। दुर्ग में प्रवेश करते ही फिलिप के हदय स्थान पर बड़ी तीव्रता से दुधारी कटार कर्णिका ने घोंप दी। फिलिप कर्णिका के तीक्ष्ण वार को संभाल न सका तथा अचेत होकर भूमि पर गिर पड़। कर्णिका गुप्त द्वारा से निकल उसकी प्रतीक्षा कर रहे कुछ जनों से जा मिली। फिलिप कुछ समय पश्चात् तडपता हुआ दम तोड गया।

    (श्री जयचन्द विद्यांलकार ‘‘ इतिहास  प्रवेश पृष्ठ 76)

‘‘    (हरि कृष्ष प्रेमी‘‘- सीमा संरक्षण)

  

   2.  यह काठी कौम वही थी जिसने सिकन्दर का मुकाबला पंजाब में किया था। बाद में वह दक्षिण में बस गई फिर मालवा होती हुई कच्छ व सौराष्ट्र में आबद हुई। इसी  जाति के नामपर सौराष्ट्र देश का नाम कठियावाड पडा। कठगणों के मुखिया जगमान को शालीवहन ने मार डाला तथा उसके कई सौ घोडे़ व ऊँट जैसलमेर ले आए‘‘।

(- कर्नल जेम्स टाड़ ‘‘ टाड़राजस्थान‘‘- कुक द्वारा सम्पादित, भाग-2 पृष्ठ 1207)

3. ‘‘मस्य दुर्ग (मश्कावती दुर्ग) सिकन्दर के आक्रमण के समय अजेय समझा जाता था। अश्वक गणराजय के रोहिला राजा अश्वकर्ण को अचानक तीव्र बाण लगा और वीरगति प्राप्त हुए। अश्वकों के हौंसले टूट गए और युद्ध बन्द करने की घोषणा कर दी और सिकन्दर ने अश्वकों को शान्तिपूर्वक दुर्ग से बाहर आने को कहा। लगभग सात हजार रोहिले अश्वक (घुड़सवार) वीर मश्कावती दुर्ग से बाहर निकल आए और अपने- अपने परिवारों सहित सात-आठ मील चलने पर विश्राम की गोद में खोए गए। अश्वकों व उनके परिवारों पर सिकन्दर की सेना ने बड़ा विकट आक्रमण किया। वीर अश्वक रोहिला क्षत्रियों ने डट कर युद्ध किया। युद्ध करते करते करते जब तक स्त्री बच्चे सब नही कट मरे तब तक युद्ध बन्द नही किया रक्त की अन्तिम बूँद के रहने तक अश्वक लड़ते रहे। सिकन्दर द्वारा  विश्वासघात करना विद्वानों द्वारा घृणित समझा गया। यूनानी इतिहास कार प्लूटार्क ने भी सिकन्दर के इस कार्य की निन्दा की।

(श्री बी0रान0 रस्तोगी, एम.ए.-प्राचीन भारत‘‘  पृष्ठ 163)

(श्री हरिकृष्ण प्रेमी ‘‘ सीमा संरक्षण पृष्ठ 31)

4. उत्तरी पाँचाल में कठगण धीरे-2 अपनी शक्ति को संगठित कर आधुनिक रोहिलखण्ड के क्षेत्रों में कठेहर राज्य की स्थापना का कार्यक्रम बनाने लगै। विस्थापित होने के पक्षचात् कुछ क्षत्रिय वीर कठगण उस प्रान्त में जाकर बसे जिसे आज कठिहर अर्थात कठेहर, बुदाँयु (बुद्धमऊ, राजा बुद्धपाल रोहिला द्वारा स्थापित) का देश कहते है।

 (डाँ केषव चन्द्र सेन इतिहास- रोहिला राजपूत पृष्ठ 27)

5. तुगलक काल में कठेहर रोहिलखण्ड के रोहिले क्षत्रियों ने अनेक विद्रोह किए जिनका सल्तनत की ओर से दमन किया गया। इस श्रेणी में रोहिला नरेष खड़ग सिंह का नाम  विद्रोहियों की श्रेणी में विषेष उल्लेखनीय माना जाता है। मुस्लिम सल्तनत के विरूद्ध विद्रोह करने के कारण कुछ इतिहासकारों ने राजा खड़ग सिंह को केवल खडगू के नाम से ही सम्बोधित किया है। 

रोहिला नरेष खड़ग सिंह रोहिलखण्ड निवासी सभी राजपूत वर्गो का माननीय नेता तथा मुस्लिम सल्तनत के लिए विद्रोही शक्तियों  का प्रमुख सेना नायक था। इस खडगूूूूूूू रोहिला सरदार ने राजपूत शक्तियों की पारस्परिक एकता को सुदृढ़ करने के लिए कठोर प्रयास किए।

 स्वतन्त्र हिन्दु राज्य के आधीनस्थ हिन्दु प्रजा, निरन्तर तुर्को से संघर्ष करती रही। बलबन जैसा शासक भी राज्य विस्तार का साहस न कर सका।‘‘ कौल से लेकर रोहिलाखण्ड (कठेहर) तक का समस्त क्षेत्र- अशान्तिमय बना हुआ था।

      (डाॅ0 एल0पी0 शर्मा) मध्यकालीन भारत पृष्ठ 103 व रोहिला क्षत्रियों का क्रमबद्ध इतिहास पृष्ठ 141 से साभार ।

6. सैययद ख्रिज खां के आक्रमण के पश्चात रोहिल खण्ड में रोहिला राजा हरी सिंह का पराभव हुआ और रोहिला क्षत्रिय वर्ग का शासकों के रूप में कोई विषेष विवरण प्रस्तुत नहीं हो सका। सम्भवतः रोहिलखण्ड से विस्थापित ये क्षत्रिय भारत के विभिन्न क्षेत्रों मेे फैल गए, और सैनिकों के रूप में सेनाओं में कार्यरत हो गए। इसके पष्चात् राजा महीचन्द (बदायूँ) के वश्ंाज गौतम गौत्रीय राणा गंगासहाय राठौर (गौत्र प्रशाखा महिचा) का उल्लेख मिला है जो अफगान आक्रान्ता अहमदशाह अब्दाली के विरूद्ध मराठों की ओर से पानीपत के युद्ध में अपने एक हजार चार सौ वीर रोहिला राजपूतों के साथ लड़ा और आर्य क्षत्रिय धर्म संरक्षण के लिए बलिदान  हो गया।

(डा/0 केशवचन्द्र सेन पानीपत, इतिहास रोहिला- राजपूत)

7. सन् 1833 में ब्रिटिश शासन के साथ समझौते के अनुरूप नवाब खानदान को हरियाणा के झज्जर से सहारनपुर आना पड़ा यहाँ आकर उन्होंने उस दौर के सैकड़ों वर्ष पूर्व किसी मराठी राजा द्वारा निर्मित इस किले को अपनी रिहाइश की शक्ल दी।‘‘

(सुनहरा इतिहास समेटे है किला नवाबगंज)

    (अमर उजाला सहारनपुर पृष्ठ 10 ,18 नवम्बर 2009)

Wednesday, 24 July 2024

RAJPUT CLANS

 RAJPUT CLANS AND SOME PALCES THEIR OFक्रमांक नाम गोत्र वंश स्थान और जिला
1. सूर्यवंशी भारद्वाज सूर्य बुलन्दशहर आगरा मेरठ अलीगढ
2. गहलोत वशिष्ट , कश्यप, बैजवापेड सूर्य मेवाड़ और पूर्वी जिले
3. सिसोदिया बैजवापेड गहलोत महाराणा उदयपुर स्टेट
4. कछवाहा गौतम,वशिष्ठ,मानव सूर्य महाराजा जयपुर
5. राठौड गौतम,कश्यप,भारद्वाज,शान्डिल्य गहरवार महाराजा राजस्थान, रोहिलखंड अनेक स्थानों पाए जाते हैं जोधपुर ,बीकानेर,किशनगढ़ और पूर्व और मालवा
6. रवानी अत्रि,भारद्वाज चन्द्रयान चंद्र राजगीर, औरंगाबाद(बिहार), रोहतास और इलाहाबाद 
7. सोमवंशी अत्रय चन्द्र प्रतापगढ और जिला हरदोई
8. यदुवंशी अत्रय चन्द्र राजकरौली राजपूताने में
9. भाटी अत्रय जादौन महारजा जैसलमेर राजपूताना
10. जाडेचा अत्रय यदुवंशी महाराजा कच्छ भुज
11. जादवा अत्रय जादौन शाखा अवा. कोटला ऊमरगढ आगरा
12. तोमर अत्रय, व्याघ्र, गार्गेय चन्द्र पाटन के राव तंवरघार जिला ग्वालियर
13. कटियार व्याघ्र तोंवर धरमपुर का राज और हरदोई
14. पालीवार व्याघ्र चन्द्र गोरखपुर
15. सत्पोखरिया भारद्वाज राठौड(चाँपावत) मऊ जिला घोसी, इंदारा
16. परिहार, वरगाही कौशल्य, कश्यप अग्नि बांदा जिला, रीवा राज्य में बघेलखंड
17. तखी कौशल्य परिहार पंजाब कांगडा जालंधर जम्मू में
18. पंवार वशिष्ठ अग्नि मालवा मेवाड धौलपुर पूर्व मे बलिया
19. सोलंकी भारद्वाज अग्नि राजपूताना मालवा सोरों जिला एटा
20. चौहान वत्स अग्नि राजपूताना पूर्व और सर्वत्र
21. हाडा वत्स चौहान कोटा बूंदी और हाडौती देश
22. खींची वत्स चौहान खींचीवाडा मालवा ग्वालियर
23. भदौरिया वत्स चौहान नौगंवां पारना आगरा इटावा गालियर
24. देवडा वत्स चौहान राजपूताना सिरोही राज
25. शम्भरी वत्स चौहान नीमराणा रानी का रायपुर पंजाब
26. बच्छगोत्री वत्स चौहान प्रतापगढ सुल्तानपुर
27. राजकुमार वत्स चौहान दियरा कुडवार फ़तेहपुर जिला
28. पवैया वत्स चौहान ग्वालियर
29. गौर,गौड भारद्वाज सूर्य शिवगढ रायबरेली कानपुर लखनऊ
30. वैस भारद्वाज सूर्य आजमगढ उन्नाव रायबरेली मैनपुरी पूर्व में
31. गहरवार कश्यप, भारद्वाज सूर्य माडा, हरदोई, वनारस, उन्नाव, बांदा पूर्व
32. सेंगर गौतम ब्रह्मक्षत्रिय जगम्बनपुर भरेह इटावा जालौन
33. कनपुरिया भारद्वाज ब्रह्मक्षत्रिय पूर्व में राजाअवध के जिलों में हैं
34. बिसेन अत्रय,वत्स,भारद्वाज,पाराशर,शान्डिल्य ब्रह्मक्षत्रिय गोरखपुर गोंडा प्रतापगढ महराजगंज (निचलौल के उत्तर क्षेत्र के समीप) हैं
35. निकुम्भ वशिष्ठ,भारद्वाज सूर्य वंशी कठेहर रोहिलखंड , मऊ गोरखपुर आजमगढ हरदोई जौनपुर
36. श्रीनेत भारद्वाज निकुम्भ गाजीपुर बस्ती गोरखपुर
37. कटहरिया , कठेरिया वशिष्ठ् भारद्वाज, सूर्य वंशी बरेली बंदायूं मुरादाबाद शहाजहांपुर ,रोहिलखंड 
38. वाच्छिल अत्रयवच्छिल चन्द्र मथुरा बुलन्दशहर शाहजहांपुर,रोहिलखंड 
39. बढगूजर वशिष्ठ सूर्य ,सिकरवार ,सीकरी अनूपशहर एटा अलीगढ मैनपुरी मुरादाबाद हिसार गुडगांव जयपुर
40. झाला मरीच, कश्यप, मार्कण्डे चन्द्र धागधरा मेवाड झालावाड कोटा
41. गौतम गौतम ब्रह्मक्षत्रिय राजा अर्गल फ़तेहपुर
42. रैकवार भारद्वाज सूर्य बहरायच सीतापुर बाराबंकी
43. करचुल हैहय कृष्णात्रेय चन्द्र बलिया फ़ैजाबाद अवध
44. चन्देल चान्द्रायन चन्द्रवंशी (रवानी) गिद्धौर ,कानपुर, फ़र्रुखाबाद, बुन्देलखंड, पंजाब, गुजरात
45. जनवार कौशल्य चन्द्रवंशी बलरामपुर अवध के जिलों में
46. बहेलिया भारद्वाज, वैस (उप जाति सिसोदिया )की गोद सिसोदिया रायबरेली बाराबंकी
47. दीत्तत कश्यप सूर्यवंश की शाखा उन्नाव, बस्ती, प्रतापगढ, जौनपुर, रायबरेली ,बांदा
48. सिलार शौनिक चन्द्र सूरत राजपूतानी
49. सिकरवार भारद्वाज, सांक्रित्यन बढगूजर ग्वालियर, आगरा, गाजीपुर और उत्तरप्रदेश में
50. सुरवार गर्ग सूर्य कठियावाड में
51. सुर्वैया वशिष्ठ यदुवंश काठियावाड
52. मोरी ब्रह्मगौतम सूर्य मथुरा ,आगरा ,धौलपुर
53. टांक (तत्तक) शौनिक नागवंश मैनपुरी और पंजाब
54. गुप्त गार्ग्य चन्द्र अब इस वंश का पता नही है
55. कौशिक कौशिक चन्द्र बलिया, आजमगढ, गोरखपुर
56. भृगुवंशी भार्गव ब्रह्मक्षत्रिय वनारस, बलिया, आजमगढ, गोरखपुर
57. गर्गवंशी गर्ग ब्रह्मक्षत्रिय आजमगढ, नरसिंहपुर सुल्तानपुर,अवध,बस्ती,फैजाबाद
58. पडियारिया, देवल,सांकृतसाम ब्रह्मक्षत्रिय राजपूताना
59. ननवग कौशिक चन्द्र जौनपुर जिला
60. वनाफ़र पाराशर,कश्यप चन्द्र बुन्देलखन्ड बांदा वनारस
61. जैसवार कश्यप यदुवंशी मिर्जापुर एटा मैनपुरी
62. चौलवंश भारद्वाज सूर्य दक्षिण मद्रास तमिलनाडु कर्नाटक में
63. निमवंशी कश्यप सूर्य संयुक्त प्रांत
64. वैनवंशी वैन्य सोमवंशी मिर्जापुर
65. दाहिमा गार्गेय ब्रह्मक्षत्रिय काठियावाड राजपूताना
66. पुण्डीर कपिल, पुलस्त्य भारद्वाज ब्रह्मक्षत्रिय पंजाब, गुजरात, रींवा, यू.पी.
67. तुलवा आत्रेय चन्द्र राजाविजयनगर
68. कटोच कश्यप चन्द्र राजानादौन कोटकांगडा,हिमाचल
69. चावडा,पंवार,चोहान,वर्तमान कुमावत वशिष्ठ पंवार की शाखा मलवा रतलाम उज्जैन गुजरात मेवाड
70. अहवन वशिष्ठ चावडा,कुमावत खेरी हरदोई सीतापुर बारांबंकी
71. डौडिया वशिष्ठ पंवार शाखा बुलंदशहर मुरादाबाद बांदा मेवाड गल्वा पंजाब
72. गोहिल बैजबापेण गहलोत शाखा काठियावाड
73. बुन्देला कश्यप गहरवारशाखा बुन्देलखंड के रजवाडे
74. काठी कश्यप गहरवारशाखा काठियावाड झांसी बांदा, कठेहर रोहिलखंड
75. जोहिया पाराशर चन्द्र पंजाब देश मे
76. गढावंशी कांवायन चन्द्र गढावाडी के लिंगपट्टम में
77. मौखरी अत्रय चन्द्र प्राचीन राजवंश था
78. लिच्छिवी कश्यप सूर्य प्राचीन राजवंश था
79. बाकाटक विष्णुवर्धन सूर्य अब पता नहीं चलता है
80. पाल कश्यप सूर्य यह वंश सम्पूर्ण भारत में बिखर गया है
81. सैन अत्रय ब्रह्मक्षत्रिय यह वंश भी भारत में बिखर गया है
82. कदम्ब मान्डग्य ब्रह्मक्षत्रिय दक्षिण महाराष्ट्र मे हैं
83. पोलच भारद्वाज ब्रह्मक्षत्रिय दक्षिण में मराठा के पास में है
84. बाणवंश कश्यप असुरवंश श्री लंका और दक्षिण भारत में,कैन्या जावा में
85. काकुतीय भारद्वाज चन्द्र,प्राचीन सूर्य था अब पता नही मिलता है
86. सुणग वंश भारद्वाज चन्द्र,पाचीन सूर्य था, अब पता नही मिलता है
87. दहिया गौतम ब्रह्मक्षत्रिय मारवाड में जोधपुर
88. जेठवा कश्यप हनुमानवंशी राजधूमली काठियावाड
89. मोहिल वत्स चौहान शाखा महाराष्ट्र मे है
90. बल्ला भारद्वाज,कश्यप सूर्य, काठी ,काठी दरबार काठियावाड मे मिलते हैं
91. डाबी वशिष्ठ यदुवंश राजस्थान
92. खरवड वशिष्ठ यदुवंश मेवाड उदयपुर
93. सुकेत भारद्वाज गौड की शाखा पंजाब में पहाडी राजा
94. पांड्य अत्रय चन्द अब इस वंश का पता नहीं
95. पठानिया पाराशर वनाफ़रशाखा पठानकोट राजा पंजाब
96. बमटेला शांडल्य विसेन शाखा हरदोई फ़र्रुखाबाद
97. बारहगैया वत्स चौहान गाजीपुर
98. भैंसोलिया वत्स चौहान भैंसोल गाग सुल्तानपुर
99. चन्दोसिया भारद्वाज वैस सुल्तानपुर
100. चौपटखम्ब कश्यप ब्रह्मक्षत्रिय जौनपुर
101. धाकरे भारद्वाज(भृगु) ब्रह्मक्षत्रिय आगरा मथुरा मैनपुरी इटावा हरदोई बुलन्दशहर
102. धन्वस्त यमदाग्नि ब्रह्मक्षत्रिय जौनपुर आजमगढ वनारस
103. धेकाहा कश्यप पंवार की शाखा भोजपुर शाहाबाद
104. दोबर(दोनवार) वत्स या कश्यप ब्रह्मक्षत्रिय गाजीपुर बलिया आजमगढ गोरखपुर
105. हरद्वार भार्गव चन्द्र शाखा आजमगढ
106. जायस कश्यप राठौड की शाखा रायबरेली मथुरा
107. जरोलिया व्याघ्रपद चन्द्र बुलन्दशहर
108. जसावत मानव्य कछवाह शाखा मथुरा आगरा
109. जोतियाना(भुटियाना) मानव्य कश्यप,कछवाह शाखा मुजफ़्फ़रनगर मेरठ
110. घोडेवाहा मानव्य कछवाह शाखा लुधियाना होशियारपुर जालन्धर
111. कछनिया शान्डिल्य ब्रह्मक्षत्रिय अवध के जिलों में
112. काकन भृगु ब्रह्मक्षत्रिय गाजीपुर आजमगढ
113. कासिब कश्यप कछवाह शाखा शाहजहांपुर,रोहिलखंड
114. किनवार कश्यप सेंगर की शाखा पूर्व बंगाल और बिहार में
115. बरहिया गौतम सेंगर की शाखा पूर्व बंगाल और बिहार
116. लौतमिया भारद्वाज बढगूजर शाखा बलिया गाजी पुर शाहाबाद
117. मौनस मौन कछवाह शाखा मिर्जापुर प्रयाग जौनपुर
118. नगबक मानव्य कछवाह शाखा जौनपुर आजमगढ मिर्जापुर
119. पलवार व्याघ्र सोमवंशी शाखा आजमगढ फ़ैजाबाद गोरखपुर
120. रायजादे पाराशर चन्द्र की शाखा पूर्व अवध में
121. सिंहेल कश्यप सूर्य आजमगढ परगना मोहम्दाबाद
122. तरकड कश्यप दिक्खित शाखा आगरा मथुरा
122. तिसहिया कौशल्य परिहार इलाहाबाद परगना हंडिया
124. तिरोता कश्यप तंवर की शाखा आरा शाहाबाद भोजपुर
125. उदमतिया वत्स ब्रह्मक्षत्रिय आजमगढ गोरखपुर
126. भाले वशिष्ठ पंवार अलीगढ
127. भालेसुल्तान भारद्वाज वैस की शाखा रायबरेली लखनऊ उन्नाव
128. जैवार व्याघ्र तंवर की शाखा दतिया झांसी बुन्देलखंड
129. सरगैयां व्याघ्र सोमवंश हमीरपुर बुन्देलखण्ड
130. किसनातिल अत्रय तोमरशाखा दतिया बुन्देलखंड
131. टडैया भारद्वाज सोलंकीशाखा झांसी ललितपुर बुन्देलखंड
132. खागर अत्रय यदुवंश शाखा जालौन हमीरपुर झांसीखंगार क्षत्रिय राठौड़ शाखा मध्य प्रदेश 
133. पिपरिया भारद्वाज गौडों की शाखा बुन्देलखंड
134. सिरसवार अत्रय चन्द्र शाखा बुन्देलखंड
135. खींचर वत्स चौहान शाखा फ़तेहपुर में असौंथड राज्य
136. खाती कश्यप दिक्खित शाखा बुन्देलखंड,राजस्थान में कम संख्या होने के कारण इन्हे बढई गिना जाने लगा
137. आहडिया बैजवापेण गहलोत आजमगढ
138. उदावत गौतम राठौड पाली
139. उजैने श्रवण पंवार आरा डुमरिया
140. अमेठिया भारद्वाज गौड अमेठी लखनऊ सीतापुर
141. दुर्गवंशी कश्यप दिक्खित राजा जौनपुर राजाबाजार
142. बिलखरिया कश्यप दिक्खित प्रतापगढ उमरी राजा
143. डोगरा कश्यप सूर्य कश्मीर राज्य और बलिया
144. निर्वाण वत्स चौहान राजपूताना (राजस्थान)
145. जाटू व्याघ्र तोमर राजस्थान,हिसार पंजाब
146. नरौनी मानव्य कछवाहा बलिया आरा
147. भनवग भारद्वाज कनपुरिया जौनपुर
148. गिदवरिया वशिष्ठ पंवार बिहार मुंगेर भागलपुर
149. रक्षेल कश्यप सूर्य रीवा राज्य में बघेलखंड
150. कटारिया भारद्वाज सोलंकी झांसी मालवा बुन्देलखंड
151. रजवार वत्स चौहान पूर्व मे बुन्देलखंड
152. द्वार व्याघ्र तोमर जालौन झांसी हमीरपुर
153. इन्दौरिया व्याघ्र तोमर आगरा मथुरा बुलन्दशहर
154. छोकर अत्रय यदुवंश अलीगढ मथुरा बुलन्दशहर
155. जांगडा वत्स चौहान बुलन्दशहर पूर्व में झांसी
156. शौनक शौन भ्रृगुवंशी इलाहाबाद
157. बघेल कश्यप या भारद्वाज सोलंकी रीवा राज्य में बघेलखंड
158. दिक्खित कश्यप सूर्य बुन्देलखंड
159. बंधलगोती भारद्वाज ब्रह्मक्षत्रिय अमेठी,सुल्तानपुर
160. कलहंस अंगिरस परिहार प्रतापगढ,बहरायच,गोरखपुर,बस्ती
161. बेरुआर भारद्वाज तोमर बलिया,आजमगढ,मऊ
162.रोहिला(रोहिलखंड में शासन करने वाले सभी क्षत्रिय राजपूत जैसे_राठौड़,गोर,वाछिल्ल , वारेचा चौहान,चौहान,काठी,निकुंभ,परमार,बनाफरे आदि९०९ईस्वी से १७२०ईस्वी कठेहर रोहिलखंड,कुमायूं ,नेपाल,सौराष्ट्र,
आदि लगभग पांच हजार क्षत्रिय गोत्र शाखाएं ,प्रशाखाएं है देश के विभिन्न क्षेत्रों में ।
सूर्य और चंद्र ही प्राचीन वैदिक कालीन क्षत्रिय पूरा इतिहास काल से है बाद में अग्नि वंश और ऋषि वंश माने गए जिनसे छत्तीस राजवंश लिखे गए हैं,।
जिसके पास जो जानकारी मिले कॉपी पेस्ट करके इसमें एड करते जाए जिससे सभी तक जानकारी पहुंचे और जो लिस्टिड नही हुए वे सूची बद्ध किए जा सके ।
जय राजपूताना
जय भवानी
क्षत्रिय इतिहास की अनंत कहानी
क्रमशः====
विशेष नोट _____यह प्रर्दशित चित्र सोसल मीडिया से लिए गए, है लेखक का इस पर कोई हक नही है यह प्रतीकात्मक रूप है और सोसल मीडिया की संपत्ति है।।

PANIPAT @ROHILA VEER GANGA SINGH MAHECHA RATHOD ROHILA RAJPUT AND THE BATTLE OF PANIPAT

*इतिहास के पन्नो में दर्ज है वीर गंगा सिंह महेचा राठौड़ और अन्य रोहिला राजपूतों का पराक्रम*
*पानीपत के तीसरे युद्ध में हुआ था वीर गंगा सिंह महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत और उसकी सेना का बलिदान*

*14 जनवरी सन 1761 ईसवी दिन बुधवार मकर सक्रांति को दिया हिंदुत्व के लिए सर्वोच्च बलिदान**🤺🤺🤺🤺🎠🎠🎠🏇🏼
🏇🏼🏇🏼🏇🏼
*पानीपत के मैदान में समय 2बजे** *अपराह्न,जनवरी की हाड़ कंपाने वाली सर्दी,कोहरा और बिजली की गड़गड़ाहट से बारिश के भयावह मौसम में*
*1400 रोहिले राजपूत वीर गंगा सिंह उर्फ गंगा सहाय महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत के नेतृत्व में कूद पड़े हिन्दू धर्म रक्षार्थ युद्ध भूमि पर रुहेला सरदार नजीब खान(नजीबुद्दोला) बंगस व आक्रांता अहमद शाह दुर्रानी अब्दाली के विरुद्ध लड़ रहे मराठो की ओर से* 😇😇🎠🎠🤺🤺🏇🏼🏇🏼🏇🏼 *छिड़ गया घमासान युद्ध! कट कट गिर रहे अब्दाली के सैनिक ।कट कट गिर रहे थे गद्दार रुहेले नजीब खान के रूहेले बंगस बारेच पठान*।
*परन्तु हुआ क्या, गार्दी की टॉप सामने आ गयी* *और मुसलमानों के चिथड़े उड़ने लगे 1400 रोहिले राजपूतो की एक टुकड़ी मुख्य सेना से बिछुड़ गयी और अफगानों ने उन्हें घेर लिया वीर राठौड़ गंगा सिंह रोहिला ऊर्फ गंगा सहाय महेचा व उनके साथी हजारो अफगानों का संहार करते हुए सांय पांच बजे वीर गति को प्राप्त हुए* ।
*मराठो की हार हुई अपनी ही तोप के सामने अपनी ही सेना आ गई थी ! उधर सदाशिव राव भाऊ के भतीजे विश्वास राव घायल होकर गिरे तो भाऊ हाथी से उतर के घोड़े पर आ गए युद्ध करने हेतु तो हाथी पर भाऊ को न देख कर सेना भागने लगी और तितर बितर हो गई ।क्या दुखद हार हुई !!जीती हुई* *पानीपत की तीसरी लड़ाई को मराठे जीत कर भी एक घण्टे में हार गए* ।
उत्तर भारत की रक्षार्थ आये मराठो का साथ अन्य राजपूतो जाटो गुज्जरों ने नही दिया क्योंकि मराठे उनसे कर वसूलते थे,और अकेले पड़े हिंदुत्व के लिए लड़े मराठो का साथ सदा शिव राव भाऊ के सेनापति के रूप में सेना में भर्ती हो वीर रोहिला गंगा सिंह महेचावत ने अपना जीवन का सर्वोच्च बलिदान देकर भी दिया ।
वीर गंगा सिंह रोहिला की रानी रामप्यारी देवी mudahad राजपूत रियासत कलायत के कपिल मुनि आश्रम में सती हुई और वही वीर रोहिला गंगा सिंह की समाधि स्थापित की गई।
इसी वंश के
*भवानी सिंह महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत तांत्या टोपे की सेना में सेनापति थे जब झांसी की रानी को ह्यूरोज ने घायल किया तो जनरल भवानी सिंह महेचराना ने अपने 16 सेनिको के साथ रक्षा कवच तैयार कर अंग्रेजो से उनकी रक्षा करते रहे और लक्ष्मी बाई को सुरक्षित एक जंगल में कुटिया तक पहुंचाया था किंतु अंग्रेजो के हाथ नही पड़ने दिया*,
 *सन 1858 ईसवी।*

*आज भी महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत कलायत ,अंबाला और यमुना पार कर पूरब की ओर उत्तर प्रदेश के जनपद सहारनपुर के दस गांव में आबाद है,इसी वंश के ठाकुर हरिसिंह रोहिला एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे ,जिनकी घोड़ी छोटी ट्रेन से भी तेज दौड़ती थी। उनके वंशज आज भी गांव घाठेड़ा,सहारनपुर और करनाल में रहते है।।
🏇🏼🏇🏼🏇🏼🏇🏼🏇🏼🏇🏼🤺🤺🤺🤺🤺🎠🎠🎠🎠 *बुक्स तांत्या टोपे व हिन्दू रोहिला क्षत्रिय इतिहास में उपलब्ध लेख*🏇🏼🏇🏼🏇🏼🏇🏼🎠🎠🎠🤺🤺🤺



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