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Wednesday 20 March 2024

ROHILKHAND

  रोहिलखंड
रोहिलखंड विक्की पीडिया ⚜️
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रोहिलखंड(हिंदी,संस्कृत,अंग्रेजी भाषा) या रुहेलखण्ड(उर्दू मिक्स हिंदी, रूहेल उर्दू खंड हिंदी) रुहेलखंड(उर्दू) उत्तर प्रदेश के उत्तर-पश्चिम में एक क्षेत्र है।[1][2].
*रोहिलखंड शुद्ध हिंदी ,संस्कृत और प्राकृत भाषा का शब्द है जिसका पश्तु भाषी अफगानों से कोई लेना देना नही है क्षत्रिय इतिहास साक्षी है कि रोहिलखंड की स्थापना रोहिला राजपूतों द्वारा दसवीं सदी के आरंभ में की गई थी।।
रोहिलखंड गंगा की उपत्यका के ऊपरी भाग में २५००० वर्ग कि॰मी॰ (१००००वर्ग मील) क्षेत्र तक विस्तृत है। इसके दक्षिण पश्चिमी ओर गंगा है, पश्चिमी ओर उत्तराखंड और नेपाल उत्तर में हैं। पूर्वी ओर अवध है। इसका नाम यहां की एक क्षत्रिय खाप रोहिला(रोहिला क्षत्रियों की कठ शाखा) के नाम पर कठेहर रोहिलखंड पड़ा। जिसकी स्थापना अहिक्षेत्र में पूर्व नाम पांचाल,सन ९०९ईसवी में राजा राम शाह उर्फ रामसिंह ने की थी और रामनगर गांव को रामपुर के नाम से विकसित किया जिसे आज भी रियासत रामपुर या रोहिलो का रामपुर कहा जाता है। रोह शब्द अवरोह धातु से लिया गया है जिसका अर्थ है चढ़ना अवरोही, रोही प्लस ला प्रत्य बराबर रोहिला अर्थात चढ़ाई करने वाला, पश्चिमी उत्तरीय सीमा प्रांत वैसे भी पर्वतीय चढ़ाई युक्त ढलान युक्त होने के कारण और द्रहयु के वंशजो द्रोही / रोही के वंशजो चन्द्र वन्स के क्षत्रियो का प्रदेश होने के कारण मध्य काल तक पाणिनि कालीन भारत से लेकर रोह के नाम से जाना गया,।

तीब्र प्रवाह *रोह*, की भांति चढ़ाई करने वाला भी रोहिला कहलाया।

रोहिला शब्द भारत के गौरव शाली इतिहास का एक विशेष दर्पण है ! यह वही शब्द है जो वीर क्षत्रिय राजवंशों व इतिहास की वीर गाथाओं से परिचय कराता है।

रोहिला 500 ईसा पूर्व पुराना शब्द है( प्राचीन भारत-पृष्ठ-159, बी एम रस्तोगी)

रोहिला एक संघ था, भारत

के उन वीरो का, भारत की पश्चिमी उत्तरीय सीमा प्रहरियों का जिन्होंने स्वयम के टुकड़े टुकड़े होने तक ओर अंतिम श्वांस लेने तक धूलि के कण के बराबर भी आक्रांताओं को भारत भूमि और कदम नही रखने दिया।

रोहिले राजपूत प्राचीनकाल से ही लोकतंत्र के संवाहक रहे हैं

वंस वाद, पीढ़ी वाद से दूर रहे है

रोहिल खंड राज्य लोकतन्त्रात्मक गणराज्य था
वंशानुक्रम का शासन नहीं था*

वाचाल( वाछेल),चौहान, राठोर, गहलोत, (,गहलोत) गोड बारेचा चौहान आदि प्रसिद्ध साहसी राज वन्सो का शासन था ये सभी कटेहर इया राजपूत कहलाते थे
सुन्दर बलिष्ठ

योग्य पहलवान(रहेल्ला) को अपना शासक चुनाव ( हाथ उठा कर) से नियुक्त करते थे

इसी लिए इनमे राजपूतो के सभी वंस शाखाये प्रशाखाए उपलब्ध है।

रणवीर सिंह सूर्य वंस निकुम्भ शाखा के वशिष्ठ गोत्र में उत्पन्न हुए थे,

उनका प्रवर गोत्र काठी कठोड,कठेरिया था 

इस कठेहर रोहिल खंड के राजा के साथ 84 लोहे के कवच धारी अजेय रोहिले सरदार / सेनापति, सामंत थे

उनके सामने मुल्ला नहीं टिक पाते थे

इनमे निम्न गोत्रो के योधा थे

1- लखमीर 2- राठोर/महेच राणा 3- चौहान/ वत्स/ जेवरा 4-वाछेल / वाचाल/ कूपट/ गहलोत

5- मोउसले/ भौंसले/ मौसुल/ मोसले/ मूसले

6- कठेहरिय/ काठी/, कठायत/ कठोड़े 7- रहक वाल/रायकवार /सिकरवार

12 बारह रोहिले लोहे के कवच धारी सैनिक थे।

सल्तनत काल में दिल्ली के सुल्तान पूर्णतया इन्हें कभी भी नहीं जीत पाए

(वासुदेवशरण अगरवाल)

इतिहास कार

हमारे ही परिवार जो कटेहर रोहिल खंड में रह गए विश्थापित नहीं हुए वे

आज भी राजपूतो की मुख्य धारा में ही हैं कठेरिया राजपूत कहलाते है उनके सम्बन्ध इन्ही राजपूतो से होते है

जी गंगा पार कर विस्थापित हो इधर आगये रोहिला कहलाये

जो रामगंगा पार कर कुमायूं गए

काठी कठेत कठ्यत काठ आयत कहलाये और चंद वंश के राजा के यहं रहे

महाराजा रणवीर सिंह रोहिल्ला का जन्म ऐसे समय मे हुआ जब राजपूत शक्ति क्षीण हो चुकी थी और मुस्लिम आक्रांता अपनी सल्तनत कायम करने के लिए बचे हुए राजपूतो का दमन करने में लगे थे गौरी के आक्रमण से पृथ्वी राज चौहान का साम्राज्य नष्ट कर गुलाम वन्स का शासन स्थापित हो रहा था राजस्थान में मेवाड़ ओर मध्यदेश (उत्तर प्रदेश), ,में रोहिलखण्ड के कठेहरिया राजपूतो ने दिल्ली के सुल्तान बनने वाले आक्रांताओ के नाक में दम कर रखा था 1206 में सभी राजपूत शक्तियों को एकत्र कर सामन्त वृतपाल रोहिल्ला ने ऐबक इल्तुतमिश आदि को रोहिलखण्ड में घुसने से रोका त्रिलोक सिंह आदि रोहिलखण्ड पर अधिकार जमाने वाले मुस्लिम शासकों को खदेड़ देते थे,इस विपत्ति काल मे रोहिलखण्ड की पावन भूमि पर कार्तिक मास के कृष्ण की प्रथमा तिथि तदनुसार 25 अक्टूबर 1204 इसवी को रामपुर के किले में राजा त्रिलोक सिंह के यहां एक वीर पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम करण हरिद्वार के पण्डित गोकुल चंद पण्डे के पिता ने रणवीर सिंह के नाम से किया ,जब रणवीर सिंह 21 वर्ष के हुवे तो विजयपुर सीकरी के राजा की पुत्री तारा देवी से रणवीर सिंह का विवाह हो गया उसी वर्ष रामपुर के किले में रणवीर सिंह का राजतिलक हुवा ,उन् से दिल्ली के सुल्तान भय खाने लगे किसी ने रोहिलखण्ड पर आक्रमण करने का साहस नहीं था।



ये कठेहरिया/ काठी (रोहिला क्षत्रियों की प्रमुख प्राचीन शाखा)निकुम्भ वंश के रोहिलखण्ड के राजा थे, 1253 में इनके शासन काल मे दिल्ली सल्तनत के इल्तुतमिश के पुत्र एवम सेनापति नासिरुद्दीन महमूद उर्फ चंगेज जो बहाराम वन्स का मुसलमान आक्रांता था दिल्ली दरबार मे कसम लेकर आया कि रोहिलखण्ड पर विजय पाकर ही लौटेगा 30000 की विशाल सेना लेकर उसने रोहिलखण्ड पर हमला किया पीलीभीत ओर रामपुर के बीच मे किसी स्थान पर मुसलमानों को 6000 रोहिले राजपूतो ने घेर लिया तथा भयंकर युद्ध हुआ रोहिले बहादुर थे लोहे के कवचधारी थे नासिरुद्दीन चंगेज की सेना को काट डाला गया बचे हुए मुसलमान भाग खड़े हुए

नासिरुद्दीन ने प्राणदान मांगे

सभी धन दौलत रणवीर सिंह के चरणों मे रख गिड़गिड़ाया,सूर्य वंशी क्षत्रिय सम्राट रोहिलखंड नरेश ,महा राजा

 रणवीर सिंह रोहिला, कठोडा(कठेहरिया) ने क्षात्र धर्म रक्षार्थ शरणागत को क्षमा दान दे दिया

परन्तु वह दिल्ली दरबार से कसम लेकर आया था क्या मुह दिखाए यह सोच कर रामपुर के जंगलों में छिप गया और रास्ते खोजने में लगा कि राजा को कैसे पराजित किया जाए

क्योकि कितनी भी मुसलमान सेना दिल्ली से मंगवाता रोहला राजपूत इतने बहादुर थे कि उनके सामने नही टिक पाती उसने छल प्रपंच धोखा करने की सोची

रामपुर के किले के एक दरबारी हरिद्वार निवासी पण्डे गोकुल राम उर्फ गोकुल चंद को लालच दिया और रक्षा बंधन के दिन शस्त्र पूजन के समय निश्शस्त्र रोहिले राजपूतो पर हमला करने का परामर्श दे दिया

चंगेज ने दिल्ली से कुमुद ओर सेना मंगवाई ओर जंगलो में छिपा दी पण्डे ने सफेद ध्वज के साथ चंगेज को राजा से किले का द्वार खोल के मिलवाया भी जबकि राजपूत पण्डे का इंतजार कर रहे थे कि कब आये और पूजा शुरू हो।

पण्डे ने तो धोखा कर दिया था राजा ने सफेद ध्वज देख सन्धि प्रस्ताब समझ समर्पण समझ आने का संकेत दिया

मालूम हुआ कि पंडा किले के चारो द्वार खोल कर आया था

निहत्थे राजपूतो पर तीब्रता से मुसलमान सेना चारो तरफ से टूट पड़ी

राजपूतो को शाका कर मरमिटने का आदेश रणवीर सिंह ने दे दिया और मुसलमानों को सबक सिखाने के लिए भिड़गये,लगभग ,2800राजपुतो ने नसीरुद्दीन के बीस हजार आक्रांताओं को काट डाला

  निहत्थे होने के कारण राजपूत वीरगति को प्राप्त हुए,
सूर्य वंशी क्षत्रिय सम्राट राजा रणवीर सिंह रोहिला अकेले पड़ गए उन्हे चंगेज के सेनिको ने चारो ओर से घेरे में ले लिया और उन पर टूट पड़े,रणवीर सिंह का युद्ध कौशल देख कर नसीरुद्दीन महमूद चकित रह गया वे निहत्थे ही आक्रांताओं से लोहा ले रहे थे किंतु साहस नही छोड़ा अद्भुत शौर्य संग्राम में
राजा रणवीर सिंह का बलिदान हुआ,

रानी तारावती सभी क्षत्राणियो के साथ ज्वाला पान कर जौहर कर गयी

किले को मुसलमान घेर चुके थे।

रणवीर सिंह का भाई सूरत सिंह उर्फ सुजान सिंह अपने 338 साथियों के साथ निकल गया और हरियाणा में 1254 में चरखी दादरी आकर प्रवासित हुआ।

हरिद्वार पंडो ने रणवीर सिंह की वंशावाली में झूठ लिखा कि उसकी ओलाद बंजारा हो गयी।

कितना तुष्टिकरण होता था तब भी इतिहास लेखन में।

जबकि रोहिले राजपूतो के राज भाट राय भीम राज निवासी बड़वा जी का बड़ा तुंगा जिला जयपुर की पोथी में मिला कि सूरत सिंह चरखी दादरी आ बसा ।


रक्षाबंधन एक गोरव गाथा को समस्त राजपूत समाज इस बलिदान दिवस 
को शौर्य दिवस के रूप में मनाता है,
तथा इस महान साहसी दिल्ली सल्तनत को धूल चटाने वाले क्षत्रिय सम्राट रणवीर सिंह रोहिला की जयंती 25अक्टूबर को प्रतिवर्ष सम्पूर्ण भारत का राजपूत समाज एक स्वाधीनता व स्वाभिमान दिवस के रूप में मनाता है।
1253 -1254 ईसवी में दिल्ली के सुल्तानों को धुल चटाने वाले महाराजा रणवीर सिंह रोहिला ने लिखी थीं एक गौरव गाथा रामपुर के किले में हुआ यह शौर्य संग्राम निहत्थे रोहिले राज पूतो पर टूट पड़े थे नासिरुद्दीन के सैनिक शास्त्र विहीन रोहिलो ने बहनों की राखी के सहारे किया शाका और दिया सर्वस्व बलिदान आज सचमुच शौर्य दिवस है राजा रणवीर सिंह को याद कर

यह तो सचमुच एतिहासिक सत्य/ तथ्य है

रोहिला क्षत्रिय वास्तव में

विशुद्ध क्षत्रिय राजवंश है।

एक चीते के समान ही जिसकी अपनी अलग पहचान होती है।

इतिहास इस बात का साक्षी है

रोहिले क्षत्रियो ने आज तक

कभी भी राष्ट्र व् अपनी क्षत्रिय कौम पर जीते जी आंच नहीं आने दी।

800 वर्षो तक आक्रान्ताओ को रोके रखने में अपना सर्वस्व मिटाया है

विधर्मी का संघार किया है

शाका और * जौहर* किया है

परन्तु अपना धर्म न बदला न छोड़ा।

रोहिला राजवँश का मूल पुरुष है चन्द्र वंसी चक्रवर्ती सम्राट ययाति के तीसरे पुत्र द्रहयु

इसी का अपभ्रंस द्रोह रोह ओर फिर रोहिला हुआ*

रोहिल खंड राज्य लोकतन्त्रात्मक गणराज्य था

वंशानुक्रम का शासन नहीं था*

वाचाल( वाछेल)चौहान, राठोर ,गेहलोत (,गहलोत) वारेचा,गोड आदि प्रसिद्ध साहसी राज वंशो का शासन था ये सभी कठेहरिया राजपूत कहलाते थे।
सुन्दर बलिष्ठ

योग्य पहलवान(रहेल्ला) को अपना शासक ( हाथ उठा कर) सर्व सम्मति से नियुक्त करते थे

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अयोध्या में इख (गन्ना) उगाने वाले

इश्क्वाकू /सूर्य का उदय हुआ

और प्रयाग के पास झूंसी में चन्द्र वंस

का उदय हुआ

चक्रवर्ती सम्राट ययाति इसी वंस में हुए

इनके तीसरे पुत्र द्रह्यु के नाम पर द्रह्यु वंस/गंधार वंस चला

द्रह्यु से रोहिलाओ का मूल है

भारत के चन्द्र वंस के चक्रवर्ती सम्राट

ययाति के पुत्र द्रह्यु का प्रदेश ही द्रोह ,रूह/ रोह प्रदेश ने नाम से जाना गया

रोह का अर्थ है चढ़ना (पर्वतीय )

यह है भी एक पर्वतीय प्रदेश ही

यह भारत की पश्चिमी उत्तरीय सीमा का प्रदेश था

इस रोह प्रदेश की लोकेशन अब गूगल मेप पर देखे

इसके निवासियों ने सिकंदर को भारत में प्रवेश करने से रोकने के बाद 400 वर्ष तक आक्रनताओं को रोके रक्खा जब मैदानों से मदद नहीं मिली तो मैदानों की और आना प्रारम्भ कर दिया

कठ गणराज्य

क्षुद्रक गणराज्य

मालव गणराज्य

योद्धेय गणराज्य

अश्वक गणराज्य आदि के शासक मुसलमानों से टक्कर लेते हुए मैदानों में आये
सौराष्ट्र /,
गुजरात में काठियावाड़,

पंचाल में कठेहर रोहिलखंड राज्य की स्थापना की।

पंजाब से सहारनपुर तक यौद्धेय राज्य की स्थापना की(रोहिलखंड में रोहिला क्षत्रियों ने १७२०ईसवी तक शासन किया।अफगानों ने रोहिला राजा हरनंद का कत्ल करके१७२०ईसवी में खुद को रुहेला उर्दू में कहना आरंभ कर दिया और रुहेला सरदार,नवाब उसी अफगान ट्राइब्स के शासकों की एक कड़ी है को १८०२तक रही,तत्पश्चात अंग्रेजो ने रोहिलखंड,रुहेलखंड को ब्रिटिश राज में मिलाया)

 ये सभी क्षत्रिय कठेरिया /रोहिला 

कठेहरिया/रोहिले क्षत्रिय ,रोहिला राजपूत कहलाए।*रोहिलखंड राजपूताना आज भी उत्तर प्रदेश का एक बहुत बड़ा भाग हैं और एक कमिश्नरी के रूप में विद्यमान है।

(राजपूत/क्षत्रिय वाटिका)

(रोहिले क्षत्रियो का क्रमबद्ध इतिहास)

रोही +ला(प्रत्य)----*रोहिला*

रोहिला* अर्थात चढ़ने या चढ़ाई करने वाला ।
नौवी शताब्दी से विशेष युद्ध कला में प्रवीण बहुत से योद्धाओं को रोहिला उपाधि प्रदत्त की गई ,836ईसवी का एक शिला लेख मंडोर के किले में लगा है तदनुसार विप्र ब्राह्मण राजा हरिश्चंद्र प्रतिहार को उसके द्वारा वीरता से किले की रक्षा करने और युद्ध कौशल के कारण उसे रोहिलाद्वायंक की उपाधि मिली थी। प्रत्यक्ष शिलालेख विद्यमान है।अन्य ग्रंथों के अनुसार भी मध्यकाल में रोहिला उपाधि का प्रचलन हुवा,महाराजा पृथ्वी राज चौहान की सेना में एक सो रोहिला सेना नायक थे जिनके आधार पर अनेक योद्धाओं को रोहिला उपाधि प्राप्त हुई।समस्त उत्तर भारत में आज रोहिला राजपूत करोड़ों की संख्या में विद्यमान है।_____

1 comment:

  1. रोहिलखंड शुद्ध हिंदी संस्कृत शब्द है राजपूताना रोहिलखंड राज्य की स्थापना रोहिला राजपूतों ने की थी किसी अफगान रोहिल्ला रुहेला ने नही

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