गौरवशाली इतिहास के कुछ स्वर्णाक्षर (रोहिला क्षत्रिय)
- भारत वर्ष का क्षेत्रफल 42 ,02 ,500 वर्ग किमी था ।
- रोहिला साम्राज्य 25 ,000 वर्ग किमी 10 ,000 वर्गमील में फैला हुआ था ।
- रोहिला, राजपूतो की एक खाप, परिवार या परिजन- समूह है जो कठेहर - रोहिलखण्ड के शासक एंव संस्थापक थे |मध्यकालीन भारत में बहुत से राजपूत लडाको को रोहिला की उपाधि से विभूषित किया गया. उनके वंशज आज भी रोहिला परिवारों में पाए जाते हैं ।
- रोहिले- राजपूत प्राचीन काल से ही सीमा- प्रांत, मध्य देश (गंगा-yamuna का दोआब),रोहिलखंड पंजाब, काश्मीर, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश में शासन करते रहे हैं । जबकि मुस्लिम-रोहिला साम्राज्य अठारहवी शताब्दी में इस्लामिक दबाव के पश्चात् स्थापित हुआ. । अफगानों ने इसे उर्दू में "रूहेलखण्ड" कहा ।
- 1702 से 1720 ई तक रोहिलखण्ड में रोहिले राजपूतो का ही शासन था. जिसकी राजधानी बरेली थी ।
- रोहिलखंड एक राजपूताना साम्राज्य है। रोहिलखंड एक शुद्ध हिंदी,संस्कृत और प्राकृत भाषा का शब्द है,अरेबिक या उर्दू शब्द नही है।
- रोहिले राजपूतो के महान शासक "राजा इन्द्रगिरी" ने रोहिलखण्ड की पश्चिमी सीमा पर रोहिलखंड विस्तार के समय सहारनपुर में एक किला बनवाया,जिसे "प्राचीन रोहिला किला" कहा जाता है । सन 1801 ई में रोहिलखण्ड को अंग्रेजो ने अपने अधिकार में ले लिया था. हिन्दू रोहिले-राजपुत्रो द्वारा बनवाए गये इस प्राचीन रोहिला किला को सन 1806 ईस्वी से सन1858 ईस्वी के मध्य कारागार में परिवर्तित कर दिया गया था । इसी प्राचीन- रोहिला- किला में आज सहारनपुर की जिला- कारागार है । उसके सामने महाराजा रणवीर सिंह रोहिला चौक स्थित है।
- "सहारन" राजपूतो का एक गोत्र है जो रोहिले राजपूतो में पाया जाता है. यह सूर्य वंश की एक प्रशाखा है जो राजा भरत के वंशधरो से प्रचालित हुई थी ।
- फिरोज़ तुगलक के आक्रमण के समय "थानेसर" (वर्तमान में हरियाणा में स्थित) का राजा "सहारन" ही था ।
- दिल्ली में गुलाम वंश के समय रोहिलखण्ड की राजधानी "रामपुर" में RANVEER SINGH ROHILA/KATHEHARIYA/ (काठी कोम, निकुम्भ वंश, सूर्यवंश रावी नदी के निकट से विस्थापित कठ गणों के वंशधर) का शासन था । इसी रोहिले राजा ने दिल्ली के सेनापति नसीरुद्दीन चंगेज को हराया था. 'खंड' kshtriyo से सम्बंधित है, जैसे भरतखंड, BUNDELKHAND, VIDHEYLKHAND , रोहिलखंड, KUMAYUNKHHAND, उत्तराखंड आदि ।
- प्राचीन भारत की केवल दो भाषाएँ संस्कृत व प्राकृत (सरलीकृत संस्कृत) थी । रोहिल प्राकृत और खंड संस्कृत के शब्द हैं जो क्षत्रिय राजाओं के प्रमाण हैं । इस्लामिक नाम है दोलताबाद, कुतुबाबाद, मुरादाबाद, जलालाबाद, हैदराबाद, मुबारकबाद, फैजाबाद, आदि ।
- रोहिले राजपूतो की उपस्तिथि के प्रमाण हैं । योधेय गणराज्य के सिक्के, गुजरात का (1445 वि ) ' का शिलालेख (रोहिला मालदेव के सम्बन्ध में), उत्तर प्रदेश में स्थित रोहिलखंड रामपुर में राजा रणवीर सिंह के किले के खंडहर, रानी तारादेवी सती का मंदिर , पीलीभीत में राठौर रोहिलो (महिचा- प्रशाखा) की सतियों के मंदिर, कपिल मुनि स्थान पर कलायथ कैथल(हरियाणा)में वीर GANGA SINGH महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत PANIPAT के तीसरे युद्ध KE YODHA की समाधि और उनकी रानी सती माता रामप्यारी का मंदिर जिसे क्षेत्र के सभी राजपूत मिलकर पूजते है। सहारनपुर का प्राचीन रोहिला किलाऔर उसके सामने स्थित क्षत्रिय सम्राट MAHA RAJA RANVEER SINGH ROHILA चौक, मंडोर का शिलालेख, " बड़ौत में स्तिथ " RAJA RANVEER SINGH ROHILA MARG"
नगरे नगरे ग्रामै ग्रामै विलसन्तु संस्कृतवाणी ।
सदने - सदने जन - जन बदने , जयतु चिरं कल्याणी ।।
जोधपुर का शिलालेख, प्रतिहार शासक HARISH CHANDRA को मिली रोहिल्लाद्व्यंक की उपाधि, कई अन्य
राजपूतो के वंशो को प्राप्त उपाधियाँ, 'पृथ्वीराज रासो', आल्हाखण्ड - काव्य सभी राजपूत वंशो में पाए
जाने वाले प्रमुख गोत्र ।
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा भारत द्वारा प्रकाशित पावन ग्रन्थ क्षत्रिय वंशाणर्व (रोहिले क्षत्रियों का
राज्य रोहिलखण्ड का पूर्व नाम पांचाल व मध्य देश, वर्तमान में अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा से
अखिल भारतीय रोहिला.क्षत्रिय विकास परिषद रजिस्टर्ड को संबद्धता प्राप्त होना,। वर्तमान में भी रोहिलखण्ड (संस्कृत भाषा में)
क्षेत्र का नाम यथावत बने रहना, अंग्रेजो द्वारा भी उत्तर रेलवे को "रोहिलखण्ड - रेलवे" का नाम देना जो
बरेली से देहरादून तक सहारनपुर होते हुए जाती थी, वर्तमान में लाखो की संख्या में पाए जाने वाले
रोहिला-राजपूत, रोहिले-राजपूतों के सम्पूर्ण भारत में फैले हुए कई अन्य संगठन अखिल भारतीय स्तर
पर 'राजपूत रत्न' रोहिला शिरोमणि डा. कर्णवीर सिंह द्वारा संगठित एक अखिल भारतीय रोहिला
क्षत्रिय विकास परिषद पंजीकृत (सम्बद्ध अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा) पंजीकरण संख्या - 545, आदि।
12. पानीपत की तीसरी लड़ाई में रोहिले राजपूत- राजा गंगासहाय/गंगा सिंह राठौर (महेचा) के नेतृत्व में
मराठों
की ओर से अफगान आक्रान्ता अहमदशाह अब्दाली व रोहिला पठान नजीबदौला के विरुद्ध लड़े व
वीरगति पाई । इस मराठा युद्ध में लगभग एक हजार चार सौ रोहिले राजपूत वीरगति को प्राप्त हुए ।
(इतिहास -रोहिला-राजपूत)
13. प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 में भी रोहिले राजपूतों ने अपना योगदान दिया, ग्वालियर के किले में रानी
लक्ष्मीबाई को हजारों की संख्या में रोहिले राजपूत मिले, इस महायज्ञ में स्त्री पुरुष सभी ने अपने गहने
धन आदि एकत्र कर झाँसी की रानी के साथ अंग्रेजो के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए सम्राट बहादुरशाह-
जफर तक पहुँचाए । अंग्रेजों ने ढूँढ-ढूँढ कर उन्हें काट डाला जिससे रोहिले राजपूतों ने अज्ञातवास की
शरण ली।
14. राजपूतों की हार के प्रमुख कारण थे हाथियों का प्रयोग, सामंत प्रणाली व आपसी मतभेद, ऊँचे व
भागीदार कुल का भेदभाव (छोटे व बड़े की भावना) आदि।
15. सम्वत 825 में बप्पा रावल चित्तौड़ से विधर्मियों को खदेड़ता हुआ ईरान तक गया। बप्पा रावल से समर
सिंह तक 400 वर्ष होते हैं, गह्लौतों का ही शासन रहा। इनकी 24 शाखाएँ हैं। जिनके 16 गोत्र (बप्पा
रावल के वंशधर) रोहिले राजपूतों में पाए जाते हैं।
16. चितौड़ के राणा समर सिंह (1193 ई.) की रानी पटना की राजकुमारी थी इसने 9 राजा, 1 रावत और कुछ
रोहिले साथ लेकर मौ. गोरी के गुलाम कुतुबद्दीन का आक्रमण रोका और उसे ऐसी पराजय दी कि कभी
उसने चितौड़ की ओर नही देखा।
17. रोहिला शब्द क्षेत्रजनित, गुणजनित व 'मूल पुरुष' नाम-जनित है। यह गोत्र जाटों में भी रूहेला, रोहेला,
रूलिया, रूहेल , रूहिल, रूहिलान नामों से पाया जाता है।
18. रूहेला गोत्र जाटों में राजस्थान व उ. प्र. में पाया जाता है। रोहेला गोत्र के जाट जयपुर में बजरंग बिहार
ओर ईनकम टैक्स कालोनी टौंक रोड में विद्यमान है। झुनझुन, सीकर, चुरू, अलवर, बाडमेर में भी
रोहिला गोत्र के जाट विद्यमान हैं । उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में रोहेला गोत्र के जाटों के बारह
गाँव हैं। महाराष्ट्र में रूहिलान गोत्र के जाट वर्धा में केसर व खेड़ा गाँव में विद्यमान हैं।,रोहतक और भिवानी में रोहिल, रूहिल उपनाम के जाट विद्यमान है।
19. मुगल सम्राट अकबर ने भी राजपूत राजाओं को विजय प्राप्त करने के पश्चात् रोहिला-उपाधि से
विभूषित किया था, जैसे राव, रावत, महारावल, राणा, महाराणा, रोहिल्ला, रहकवाल आदि।
20. "रोहिला-राजपूत" समाज , क्षत्रियों का वह परिवार है जो सरल ह्रदयी, परिश्रमी,राष्ट्रप्रेमी,स्वधर्मपरायण,
स्वाभिमानी व वर्तमान में अधिकांश अज्ञातवास के कारण साधनविहीन है। 40 प्रतिशत कृषि कार्य से,30
प्रतिशत श्रम के सहारे व 30 प्रतिशत व्यापार व लघु उद्योगों के सहारे जीवन यापन कर रहे हैं। इनके
पूर्वजो ने हजारों वर्षों तक अपनी आन, मान, मर्यादा की रक्षा के लिए बलिदान दिए हैं और अनेको
आक्रान्ताओं को रोके रखने में अपना सर्वस्व मिटाया है । गणराज्य व लोकतंत्रात्मक व्यवस्था को
सजीव बनाये रखने की भावना के कारण वंश परंपरा के विरुद्ध रहे, करद राज्यों में भी स्वतंत्रता बनाये
रखी । कठेहर रोहिलखण्ड की स्थापना से लेकर सल्तनत काल की उथल पुथल, मार काट , दमन चक्र
तक लगभग आठ सौ वर्ष के शासन काल के पश्चात् 1857 के ग़दर के समय तक रोहिले राजपूतों ने
राष्ट्रहित में बलिदान दिये हैं।
क्रूर काल के झंझावालों से संघर्ष करते हुए क्षत्रियों का यह 'रोहिला परिवार' बिखर BIKHAR गया।
, इस समाज की पहचान के लिए भी आज स्पष्टीकरण देना पड़ता है। कैसा दुर्भाग्य है? यह
क्षत्रिय वर्ग का। जो अपनी पहचान को भी टटोलना पड़ रहा है। परन्तु समय के चक्र में सब कुछ सुरक्षित
है। इतिहास के दर्पण में थिरकते चित्र, बोलते हैं, अतीत झाँकता है, सच सोचता है कि उसके होने के
प्रमाण धुंधले-धुंधले से क्यों हैं? हे- क्षत्रिय तुम धन्य हो, पहचानो अपने प्रतिबिम्बों को' -
"क्षत्रिय एकता का बिगुल फूँक
सब धुंधला धुंधला छंटने दो।
हो अखंड भारत के राजपुत्र
खण्ड खण्ड में न सबको बंटने दो ।।"
21. रोहिलखण्ड से विस्थापित इन रोहिला परिवारों में राजपूत परम्परा के कुछ प्रमुख गोत्र इस प्रकार पाए
जाते हैं :-
- रोहिला, रोहित, रोहिल, रावल, द्रोहिया, रल्हन, रूहिलान, रौतेला , रावत
- यौधेय, योतिक, जोहिया, झोझे, पेशावरी
- पुण्डीर, (पुलस्त्य)पांडला(धौम्य), पंढेर, पुन्ड़ेहार, पुंढीर, पुंडाया
- चौहान, जैवर, जौडा, चाहल, चावड़ा, खींची, गोगद, गदाइया, सनावर, क्लानियां, चिंगारा, चाहड बालसमंद, चोहेल, चेहलान, बालदा, बछ्स (वत्स), बछेर, चयद, झझोड, चौपट, खुम्ब, जांघरा, जंगारा, झांझड चुहल चूहेल
- निकुम्भ, कठेहरिया, कठौरा, कठैत, कलुठान, कठपाल, कठेडिया, कठड, काठी, कठ, पालवार
- RATHOD महेचा, महेचराना धांधल, रतनौता, बंसूठ जोली, जोलिए, बांकटे, बाटूदा, थाथी, कपोलिया, खोखर, अखनौरिया ,लोहमढ़े, मसानिया
- BUNDELA, उमट, ऊमटवाल
- , भारती, गनान
- नाभावंशी,बटेरिया, बटवाल, बरमटिया
- परमार, जावडा, लखमरा, मूसला, मौसिल, भौंसले, बसूक, जंदडा, पछाड़, पंवारखा, ढेड, मौन
- तोमर, तंवर, मुदगल, देहलीवाल, किशनलाल, सानयाल, सैन, सनाढय कालरा
- GEHLOT, कूपट, पछाड़, थापा, ग्रेवाल, कंकोटक, गोद्देय, पापडा, नथैड़ा, नैपाली, लाठिवाल, पानिशप, पिसोण्ड, चिरडवाल, नवल, चरखवाल, साम्भा, पातलेय, पातलीय, छन्द (चंड), क्षुद्रक,(छिन्ड, इन्छड़, नौछड़क), रज्जडवाल, बोहरा, जसावत, गौर, मलक, मलिक , मूसला
- कछवाहा, कुशवाहा, कोकच्छ, ततवाल, बलद, कोकचे काक मछेर
- सिसौदिया, भरोलिया, बरनवाल, बरनपाल, बहारा
- खुमाहड, अवन्ट, ऊँटवाल
- सिकरवार, रहकवाल, रायकवार, ममड, गोदे
- सोलंकी, गिलानिया, भुन, बुन, बघेला, ऊन, (उनयारिया)
- बडगूजर, सिकरवार, ममड़ा, पुडिया
- कश्यप, काशब, रावल, रहकवाल
- यदु, मेव, छिकारा, तैतवाल, भैनिवाल, उन्हड़, भाटटी बनाफरे, जादो, बागड़ी, सिन्धु, कालड़ा, सारन, छुरियापेड, लखमेरिया, चराड, जाखड़, सेरावत, देसवाल, पूडिया
प्रमुख रोहिला क्षत्रिय शासक
- अंगार सैन - गांधार (वैदिक काल)
- अश्वकरण - ईसा पूर्व 326 (मश्कावती दुर्ग)
- अजयराव - स्यालकोट (सौकंल दुर्ग) ईसा पूर्व 326
- प्रचेता - मलेच्छ संहारक
- शाशिगुप्त - साइरस के समकालीन
- सुभाग सैन - मौर्य साम्राज्य के समकालीन
- राजाराम शाह - 929 वि. रामपुर रोहिलखण्ड
- बीजराज - रोहिलखण्ड
- करण चन्द्र - रोहिलखण्ड
- विग्रह राज - रोहिलखण्ड - गंगापार कर स्रुघ्न जनपद (सुगनापुर) यमुना तक विस्तार दसवीं शताब्दी में सरसावा में किले का निर्माण पश्चिमी सीमा पर, यमुना द्वारा ध्वस्त टीले के रूप में नकुड़ रोड पर देखा जा सकता है।
- सावन्त सिंह - रोहिलखण्ड
- जगमाल - रोहिलखण्ड
- धिंगतराव - रोहिलखण्ड
- गोंकुल सिंह - रोहिलखण्ड
- महासहाय - रोहिलखण्ड
- त्रिलोक चन्द - रोहिलखण्ड
- रणवीर सिंह - रोहिलखण्ड
- सुन्दर पाल - रोहिलखण्ड
- नौरंग देव - रोहिलखण्ड
- सूरत सिंह - रोहिलखण्ड
- हंसकरण रहकवाल - पृथ्वीराज के सेनापति
- मिथुन देव रायकवार - ईसम सिंह पुण्डीर के मित्र थाना भवन शासक
- सहकरण, विजयराव - उपरोक्त
- राजा हतरा - हिसार
- जगत राय - बरेली
- मुकंदराज - बरेली 1567 ई.
- बुधपाल - बदायुं
- महीचंद राठौर - बदायुं
- बांसदेव - बरेली
- बरलदेव - बरेली
- राजसिंह - बरेली
- परमादित्य - बरेली
- न्यादरचन्द - बरेली
- राजा सहारन - थानेश्वर
- प्रताप राव खींची (चौहान वंश) - गागरोन
- राणा लक्ष्य सिंह - सीकरी
- रोहिला मालदेव - गुजरात
- जबर सिंह - सोनीपत
- रामदयाल महेचराना - कलायत
- गंगसहाय - महेचराना *कलायत* 1761 ई.
- राणा प्रताप सिंह - कौराली (गंगोह) 1095 ई.
- नानक चन्द - अल्मोड़ा
- राजा पूरणचन्द - बुंदेलखंड
- राजा हंस ध्वज - हिसार व राजा हरचंद
- राजा बसंतपाल - रोहिलखण्ड व्रतुसरदार, सामंत वृतपाल 1193 ई.
- महान सिंह बडगूजर - बागपत 1184 ई.
- राजा यशकरण - अंधली
- गुणाचन्द - जयकरण - चरखी - दादरी
- राजा मोहनपाल देव - करोली
- राजारूप सैन - रोपड़
- राजा महपाल पंवार - जीन्द
- राजा परपदेड पुंडीर - लाहौर
- राजा लखीराव - स्यालकोट
- राजा जाजा जी तोमर - दिल्ली
- खड़ग सिंह - रोहिलखण्ड लौदी के समकालीन
- राजा हरि सिंह - खिज्रखां के दमन का शिकार हुआ - कुमायुं की पहाड़ियों में अज्ञातवास की शरण ली
- राजा इन्द्रगिरी (रोहिलखण्ड) (इन्द्रसेन) - सहारनपुर में प्राचीन रोहिला किला बनवाया । रोहिला क्षत्रिय वंश भास्कर लेखक आर. आर. राजपूत मुरसेन अलीगढ से प्रस्तुत
- राजा बुद्ध देव रोहिला - 1787 ई., सिंधिया व जयपुर के कछवाहो के खेड़ा व तुंगा के मैदान में हुए युद्ध का प्रमुख पात्र । (राय कुँवर देवेन्द्र सिंह जी राजभाट, तुंगा (राजस्थान)
रोहिल्ला उपाधि - शूरवीर, अदम्य - साहसी विशेष युद्ध कला में प्रवीण, उच्च कुलीन सेनानायको, और सामन्तों को उनके गुणों के अनुरूप क्षत्रिय वीरों को तदर्थ उपाधि से विभूषित किया जाता था - जैसे - रावत - महारावत, राणा, महाराणा, ठाकुर, नेगी, रावल, रहकवाल, रोहिल्ला, समरलछन्द, लखमीर,(एक लाख का नायक) आदि। इसी आधार पर उनके वंशज भी आजतक राजपूतों के सभी गोत्रों में पाए जाते हैं।
"वभूव रोहिल्लद्व्यड्कों वेद शास्त्रार्थ पारग: । द्विज: श्री हरि चन्द्राख्य प्रजापति समो गुरू : ।।2।।
( बाउक का जोधपुर लेख )
- सन 837 ई. चैत्र सुदि पंचमी - हिंदी अर्थ - "वेद शास्त्र में पारंगत रोहिल्लाद्धि उपाधिधारी एक हरिश्चन्द्र नाम का ब्राह्मण था" जो प्रजापति के समान था हुआ ।।6।।
( गुज्जर गौरव मासिक पत्रिका - अंक 10, वर्ष ।।माह जौलाई 1991 पृष्ठ - 13) (राजपुताने का इतिहास पृष्ठ - 147) (इतिहास रोहिला - राजपूत पृष्ठ - 23) (प्राचीन भारत का इतिहास, राजपूत वंश, - कैलाश - प्रकाशन लखनऊ सन 1970 ई. पृष्ठ - 104 -105 - )
रोहिल्लद्व्यड्क रोहिल्लद्धि - अंक वाला या उपाधि वाला ।
सर्वप्रथम प्रतिहार शासक द्विज हरिश्चन्द्र को रोहिल्लद्धि उपाधि प्राप्त हुई । बाउक,प्रतिहार शासक विप्र हरिश्चन्द्र के पुत्र कवक और श्रीमति पदमनी का पुत्र था वह बड़ा पराक्रमी और नरसिंह वीर था।
प्रतिहार एक पद है, किसी विशेष वर्ण का सूचक नही है। विप्र हरिश्चन्द्र प्रतिहार अपने बाहुबल से मांडौर दुर्ग की रक्षा करने वाला था, अदम्य साहस व अन्य किसी विशेष रोहिला शासक के प्रभावनुरूप ही रोहिल्लद्व्यड्क उपाधि को किसी आधार के बिना कोई भी व्यक्ति अपने नाम के साथ सम्बन्ध करने का वैधानिक रूप में अधिकारी नही हो सकता।
उपरोक्त से स्पष्ट है कि बहुत प्राचीन काल से ही गुणकर्म के आधार पर क्षत्रिय उपाधि "रोहिल्ला" प्रयुक्त । प्रदत्त करने की वैधानिक व्यवस्था थी। जिसे हिन्दुआसूर्य - महाराजा पृथ्वीराज चौहान ने भी यथावत रखा। पृथ्वीराज चौहान की सेना में एक सौ रोहिल्ला - राजपूत सेना नायक थे । "पृथ्वीराज रासौ" -
चहूँप्रान, राठवर, जाति पुण्डीर गुहिल्ला । बडगूजर पामार, कुरभ, जागरा, रोहिल्ला ।। इस कवित्त से स्पष्ट है । कि - प्राचीन - काल में रोहिला- क्षत्रियों का स्थान बहुत ऊँचा था। रोहिला रोहिल्ल आदि शब्द राजपुत्रों अथवा क्षत्रियों के ही द्योतक थे । इस कवित्त के प्रमाणिकता "आइने अकबरी", 'सुरजन चरिता' भी सिद्ध करते हैं । युद्ध में कमानी की तरह (रोह चढ़ाई करके) शत्रु सेना को छिन्न - भिन्न करने वाले को रहकवाल, रावल, रोहिल्ला, महाभट्ट कहा गया है।
महाराज पृथ्वीराज चौहान की सेना में पांच गोत्रों के रावल थे -
- रावल - रोहिला
- रावल - सिन्धु
- रावल - घिलौत (गहलौत)
- रावल - काशव या कश्यप
- रावल - बलदया बल्द
मुग़ल बादशाह अकबर ने भी बहादुरी की रोहिल्ला उपाधि को यथावत बनाए रखा जब अकबर की सेना दूसरे राज्यों को जीत कर आती थी तो अकबर अपनी सेना के सरदारों को,बहादुर जवानों बहादुरी के पदक (ख़िताब,उपाधि) देता था। एक बार जब महाराणा मान सिंह काबुल जीतकर वापिस आए तो अकबर ने उसके बाइस राजपूत सरदारों को यह ख़िताब दी (उपाधि से सम्मानित किया)
- बाई तेरा हर निरकाला रावत को - रावल जी
- चौमकिंग सरनाथा को - रावल
- झंड्कारा कांड्कड को - रोहिल्ला
- रावत मन्चारा - कांड्कड काम करन, निरकादास रावत को रावराज और रूहेलाल को रोहिला
- स्वतंत्र रोहिलखंड राज्य संस्थापक महाराजा RANVEER SINGH ROHILA
- रक्षा बंधन के दिन रोहिलखंड की वीर भूमि गंगा सी पवित्र राजपूतों के रक्त से रंजित और आक्रांताओं के काल की धरती रामपुर के किले में दिया था कठेहर रोहिलखंड नरेश,महाराजा रणवीर सिंह रोहिला ने अदम्य साहस और अद्भुत शौर्य का परिचय!,दिल्ली सुलतान नासीरुद्दीन बहराम उर्फ चंगेज की चालीस हजार की सेना को दी थी शिकस्त!**तथा घुटने टेकने पर मजबूर किया था दिल्ली सल्तनत का दुर्दांत खूंखवार सेनापति नसीरुद्दीन महमूद को और प्राणदान मांगने पर क्षात्र धर्म रक्षार्थ छोड़ा था।**चंगेज ने अवसर पाकर रक्षा बंधन के दिन दरबारी गोकुल चंद पांडे हरिद्वार को लालच देकर किले के द्वार खुलवा लिए *धोखे के शिकार लगभग तीन हजार राजपूत निहत्थे ही लड़े,!आक्रमण कारियो के अस्त्र शस्त्र छीन छीन किया था शौर्य संग्राम दिल्ली सल्तनत की लगभग आधी गुलाम वंशी सेना को काट डाला था रोहिला राजपूतो ने!!अंत में चंगेज के खूंखवार दरिंदो ने अकेले में घेर लिया था RANVEER SINGH ROHILA को, जिन्हे आमने सामने की लड़ाई में दिल्ली सुलतान कभी नही हरा पाए थे किंतु वे उनके साहस से विस्मित हुए बिना नहीं रह सके ।रणवीर रणभूमि के वीर सपूत रक्त की अंतिम बूंद रहने तक संग्राम रत रहे और कतरा कतरा हो कर खेत रहे(सन 1254ईस्वी),उनका बलिदान रोहिलखंड के राजपूताना इतिहास में स्वर्णाक्षर दे गया!,समस्त राजपूत समाज रक्षा बंधन के दिन हुए इस बलिदान को एक शोर्य दिवस के रूप में मनाता आया है,यूट्यूब पर और अन्य सोसल मीडिया पर स्वतंत्र रोहिलखंड संस्थापक नरेश महाराजा RANVEER SINGH ROHILA की वीर गाथा दी हुई है,सभी क्षत्रिय जन अपने बच्चो को दिखाए ताकि सल्तनत काल में १२५४ ईसवी के इस इतिहास के धुंधले पृष्ठ भी उकेरे जा सके*, रक्षा बंधन को उनका बलिदान दिवस मनाया जाता है,समस्त क्षत्रिय समाज इस SHOURYA दिवस पर उन्हे कोटि कोटि नमन करते हुए उनके। बताए मार्ग पर स्वाधीनता और स्वाभिमान से स्वधर्म रक्षार्थ जीने की शपथ लेता है,यह सच्चाई हमसे स्कूली शिक्षा में छुपाई गई किंतु इतिहास के दर्पण में सब सुरक्षित रहता है जिसे उजागर कर भावी पीढ़ी को बताना ही हरेक क्षत्रिय का नैतिक दायित्व है अतः आप सभी क्षत्रियों से निवेदन है कि भावी पीढ़ी को सच्चाई बताए और स्वाभिमान से जीना दिखाए।।
- सूर्य वंशी निकुंभ क्षत्रिय महाराजा RANVEER SINGH ROHILA का जन्म हिंदूवा सूर्य महाराज पृथ्वी राज चौहान के पतन के बाद दिल्ली सल्तनत के बढ़ते कदमों के बीच ऐसे समय में सन१२०४ईस्वी में कठेहर रोहिलखंड की राजधानी रामपुर के किले में राजा त्रिलोक सिंह के यहां हुआ था, जब सभी राजपूत शक्तियां क्षीण और तितर बितर हो चुकी थी,इस्लामिक आक्रांता मध्य भारत की ओर दमन करते हुए आगे बढ़ते रहते थे।।,रणवीर सिंह रोहिला का विवाह विजय पुर सीकरी की राजकुमारी तारा देवी से हुआ तथा पच्चीस वर्ष की आयु में रामपुर की गद्दी पर विराजमान होकर इस्लामीकरण पर रोक लगाई ।। तीस सालों तक दिल्ली सुलतानो को धूल चटाई किंतु रक्षा बंधन के दिन शिव मंदिर गए राजपूतों को रक्षा सूत्र बंधवाते हुए नसीरुद्दीन बहराम ने गोकुल चंद पांडे के द्वारा किले के द्वार खोलने पर घेर लिया और फिर होगया ADBHUT SHOURYA SANGRAM .. विस्तार भय से संक्षिप्त गाथा वर्णित है जिसे चाटुकार मुगल कालीन और ब्रिटिश इतिहास कारो ने छिपाया*
- रोहिलखंड एक राजपूताना राज्य
कन्नौज पतन के बाद रोहिलखण्ड राज्य की स्थापना कठेहरिया राजा राम शाह उर्फ रामसिंह ने की थी अहिक्षेत्र काम्पिल्य के एक गॉंव रामनगर को रामपुर नगर बसाया ओर यह क्षत्रिय राजा राम के नाम पर रखा गया था यहाँ रोहिले राजपूतो ने 11 पीढ़ी लगातार शासन किया राजा रणवीर सिंह रोहिला ने नाइरुद्दीन महमूद,, ओर हरिसिंह रोहिला ने खिज्रखान को धूल चटाई नोरंगदेव ने पिंगू(तैमूर लंग)को हराया ।।।san ईस्वी के बाद भी कभी भी पूर्णतया रोहिलखंड को दिल्ली दरबार नही जीत पाया अकबर ओर बाद में औरंगजेब ने चाल चली और अफगानों की घुसपैठ करनी आबादी बढ़ानी शुरू की सन 1707ईस्वी में दाऊद खान बरेच अफगान के जाट दत्तक पुत्र जिसका नाम अलीमुहम्मद रखा था ने धोखे से बरेली में रोहिला राजा हरननंद का कत्ल किया और सम्पूर्ण रोहिलखण्ड पर अधिकार कर लिया इन अफगानों ने भी रोहिलखण्ड के नवाब बन जाने के कारणों से स्वयम को रुहेला सरदार कहा वास्तव में ये रोहिला नही थे जैसे कि रोह देश के अफगान लिखा यह गलत है ।।जिस काल में अफगान आए तब अफगानिस्तान को रोह देश नही कहा जाता था ।।
यह झूठा मुस्लिम तुष्टि करण का इतिहास है ।।16वी सदी में जगत सिंह कठेहरिया रोहिल्ला राजपूत के पुत्रों बाँसदेव व बर्लदेव के नाम पर बरेली नगर की नीव रखी गयी अफगानों ने कोई नगर नही बसाया उन्होंने अपने काल मे ही रामपुर का नाम राम के नाम पर नही रखा। यह भ्रामक झूठ है कि फैज उल्ला खान ने रामपुर को बसाया था अठारहवीं सदी में जबकि रामपुर रियासत की स्थापना दसवीं सदी में राजा रामसिंह रोहिला(काठी कोम के राजपूत) ने की थी
*रोहिला क्षत्रिय योद्धाओं का शौर्य साहस, युद्ध कौशल, और अपने कुल व राष्ट्र की रक्षा के प्रति बलिदान की भावना में निहित होता था।* *हमारे क्षत्रिय योद्धा युद्ध भूमि में मृत्यु से* *निर्भय होकर लड़ते थे और उनका* *एकमात्र कर्तव्य राज्य व समाज की रक्षा करना था। शौर्य उनके रक्त में समाया हुआ था, जो युद्ध की ज्वाला में अपने बलिदान के रूप में प्रदर्शित होता था।*
*#क्षत्रिय*
*जय राजपूताना अखंड राजपूताना*
*जय राजपूताना,जय राजपूताना रोहिलखंड ,बुंदेलखंड*
संदर्भ
इतिहास रोहिला राजपूत
डॉक्टर के सी सैन
रोहिला क्षत्रिय वंश भास्कर
आर आर राजपूत
कठेहरिया रोहिला राजपूत
रोहिला क्षत्रियों का क्रमबद्ध इतिहास
दर्शन लाल रोहिला
मध्य कालीन भारत का इतिहास
ठाकुर अजीत सिंह परिहार
बालाघाट मध्य प्रदेश
भारत भूमि और उसके वासी पृष्ठ-230 पंडित जयचंद्र विद्यालंकार
2-दून ज्योति-साप्ताहिक देहरादून 18 फरवरी 1974
पुरुषोत्तम नागेश ओक व डॉक्टर ओमवीर शर्मा हेड ऑफ हिस्ट्री विभाग
3-क्षत्रिय वर्तमान पृष्ठ 97 व 263 ठाकुर अजित सिंह परिहार बालाघाट
4- प्राचीन भारत पृष्ठ -118,159,162 बीएम रस्तोगी इतिहास कार
5 राजतरँगनी पृष्ठ 31-39 कल्हण कृत अनुवादक नीलम अग्रवाल
6-रोहिला क्षत्रिय वन्स भास्कर ,आर आर राजपूत मूरसेन अलीगढ़
7- इतिहास रोहिला राजपूत
डॉक्टर के सी सेन
8 - भारत का इतिहास पृष्ठ 138 डॉक्टर दया प्रकाश
9-भारतीय इतिहास मीमांसा पृष्ठ 44 जय चंद विद्यालंकार
10- भारतीय इतिहास की रूप रेखा द्वितीय भाग पृष्ठ 699 बीएम रस्तोगी
11-सीमा संरक्षण पृष्ठ 21-22 हरिकृष्ण प्रेमी
12 टॉड राजस्थान पृष्ठ 457 परिच्छेद 43 अनुवादक केशव कुमार ठाकुर
13- प्राचीन भारत का इतिहास राजपूत वन्स पृष्ठ 104 व 105कैलाश प्रकाशन लखनऊ 1970 व पृष्ठ 147
14 रोहिला क्षत्रियो का क्रमबद्ध इतिहास लेखक दर्शन लाल रोहिला
15 राजपूत ,/क्षत्रिय वाटिका
राजनीतिन सिंह रावत अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा
16 रिलेशन बिटवीन रोहिला एंड कठहरिया राजपूत निकुम्भ व श्रीनेत वंश
महेश सिंह कठायत नेपाल आदि बहुत क्षत्रिय वंशावलियों में उपलबद्ध है।।