आठवी सदी से आरंभ हुई
*रोहिल्ला *उपाधि से शूरवीर, अदम्य - साहसी विशेष युद्ध कला में प्रवीण, उच्च कुलीन सेनानायको, और सामन्तों को उनके गुणों के अनुरूप क्षत्रिय वीरों को तदर्थ उपाधि से विभूषित किया जाता था - जैसे - रावत - महारावत, राणा, रूहॆला, ठाकुर, नेगी, रावल, रहकवाल, रोहिला, समरलछन्द, लखमीर,(एक लाख का नायक) आदि। इसी आधार पर उनके वंशज भी आज तक (क्षत्रियों) के सभी गोत्रों में पाए जाते हैं।
रोहिलखण्ड से विस्थापित इन रोहिला परिवारों में क्षत्रिय वंश परम्परा के कुछ प्रमुख गोत्र हैं :-
रोहिला, रूहेला, ठैँगर,ठहित, रोहिल, रावल, द्रोहिया, रल्हन, रूहिलान, रौतेला , रावत,लोहारिया
यौधेय, योतिक, जोहिया, झोझे, पेशावरी
पुण्डीर, पांडला, पंढेर, पुन्ड़ेहार, पुंढीर, पुंडाया
चौहान, जैवर, जौडा, चाहल, चावड़ा, खींची, गोगद, गदाइया, सनावर, क्लानियां, चिंगारा, चाहड बालसमंद, बहरासर, बराबर, चोहेल, चेहलान, बालदा, बछ्स (वत्स), बछेर, चयद, झझोड, चौपट, खुम्ब, जांघरा, जंगारा, झांझड,शाण
निकुम्भ, कठेहरिया,कठोड़ , कठोडा ,कठौरा, कठैत, कलुठान, कठपाल, कठेडिया, कठड, काठी, कठ, पालवार
राठौर, महेचा, महेचराना, रतनौता, बंसूठ जोली,धांधल, जोलिए, बांकटे, बाटूदा, थाथी, कपोलिया, खोखर, अखनौरिया ,लोहमढ़े, मसानिया,लखमार, लखमीर
बुन्देला, उमट, ऊमटवाल
भारती, गनान बटेरिया, बटवाल, बरमटिया
परमार, जावडा, लखमरा, मूसला, मौसिल, भौंसले, बसूक, जंदडा, पछाड़, पंवारखा, मौन
तोमर, तंवर, मुदगल, देहलीवाल, किशनलाल, सानयाल, सैन, सनाढय,बंदरीया
गहलौत, कूपट, पछाड़, थापा, ग्रेवाल, कंकोटक, गोद्देय, पापडा, नथैड़ा, नैपाली, लाठिवाल, पानिशप, पिसोण्ड, चिरडवाल, नवल, ऊंट ,चरखवाल, साम्भा, पातलेय, पातलीय, छन्द (चंड), क्षुद्रक,(छिन्ड, इन्छड़, नौछड़क), रज्जडवाल, बोहरा, जसावत, गौर, मलक, मलिक,
कछवाहा, कुशवाहा, कोकच्छ, कोकचा, काक, ततवाल, बलद, मछेर
सिसौदिया, ऊँटवाड़ या ऊँटवाल, भरोलिया, बरनवाल, बरनपाल, बहारा
खुमाहड, अवन्ट, ऊँट, ऊँटवाल
सिकरवार, रहकवाल,गर्ग, रायकवार, ,ममड, गोदे
सोलंकी, गिलानिया, भुन, बुन, बघेला, ऊन, (उनयारिया)
बडगूजर, सिकरवार, ममड़ा, पुडिया
कश्यप, काशब, रावल, रहकवाल
यदु, मेव, छिकारा,,चिकारा तैतवाल, भैनिवाल, उन्हड़, भाटी ,बनाफरे, जादो, बागड़ी, सिन्धु, कालड़ा, सारन, छुरियापेड,(सूर्य वंश के क्षुद्रक छ्त्रपारे छुरिया पेड़ अलग है) लखमेरिया,(परमार लख्मरा ,ओर गहलोत लखमरा अलग है)चराड, जाखड़, सेरावत, देसवाल।
रोहि्ला क्षत्रियों में ऊंटवाल गोत्र चंद्रवंशी एवं सूर्यवंशी दोनों में पाए जाते हैं सूर्यवंशी ऊंटवाल गोत्र मेवाड़ के गहलोत सिसोदिया घराने से हैं और चंद्रवंशी ऊंटवाल जैसलमेर के भाटी घराने से है।
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गौत्र और वंश....
गुणसूत्र वंश का वाहक
हमारे धार्मिक ग्रंथ और हमारी सनातन हिन्दू परंपरा के अनुसार पुत्र (बेटा) को कुलदीपक अथवा वंश को आगे बढ़ाने वाला माना जाता है.....
अर्थात.... उसे गोत्र का वाहक माना जाता है.
क्या आप जानते हैं कि.... आखिर क्यों होता है कि सिर्फ पुत्र को ही वंश का वाहक माना जाता है ????
असल में इसका कारण.... पुरुष प्रधान समाज अथवा पितृसत्तात्मक व्यवस्था नहीं ....
बल्कि, हमारे जन्म लेने की प्रक्रिया है.
अगर हम जन्म लेने की प्रक्रिया को सूक्ष्म रूप से देखेंगे तो हम पाते हैं कि......
एक स्त्री में गुणसूत्र (Chromosomes) XX होते है.... और, पुरुष में XY होते है.
इसका मतलब यह हुआ कि.... अगर पुत्र हुआ (जिसमें XY गुणसूत्र है)... तो, उस पुत्र में Y गुणसूत्र पिता से ही आएगा क्योंकि माता में तो Y गुणसूत्र होता ही नही है
और.... यदि पुत्री हुई तो (xx गुणसूत्र) तो यह गुणसूत्र पुत्री में माता व् पिता दोनों से आते है.
XX गुणसूत्र अर्थात पुत्री
अब इस XX गुणसूत्र के जोड़े में एक X गुणसूत्र पिता से तथा दूसरा X गुणसूत्र माता से आता है.
तथा, इन दोनों गुणसूत्रों का संयोग एक गांठ सी रचना बना लेता है... जिसे, Crossover कहा जाता है.
जबकि... पुत्र में XY गुणसूत्र होता है.
अर्थात.... जैसा कि मैंने पहले ही बताया कि.... पुत्र में Y गुणसूत्र केवल पिता से ही आना संभव है क्योंकि माता में Y गुणसूत्र होता ही नहीं है.
और.... दोनों गुणसूत्र अ-समान होने के कारण.... इन दोनों गुणसूत्र का पूर्ण Crossover नहीं... बल्कि, केवल 5 % तक ही Crossover होता है.
और, 95 % Y गुणसूत्र ज्यों का त्यों (intact) ही बना रहता है.
तो, इस लिहाज से महत्त्वपूर्ण Y गुणसूत्र हुआ.... क्योंकि, Y गुणसूत्र के विषय में हम निश्चिंत है कि.... यह पुत्र में केवल पिता से ही आया है.
बस..... इसी Y गुणसूत्र का पता लगाना ही गौत्र प्रणाली का एकमात्र उदेश्य है जो हजारों/लाखों वर्षों पूर्व हमारे ऋषियों ने जान लिया था.
इस तरह ये बिल्कुल स्पष्ट है कि.... हमारी वैदिक गोत्र प्रणाली, गुणसूत्र पर आधारित है अथवा Y गुणसूत्र को ट्रेस करने का एक माध्यम है.
उदाहरण के लिए .... यदि किसी व्यक्ति का गोत्र शांडिल्य है तो उस व्यक्ति में विद्यमान Y गुणसूत्र शांडिल्य ऋषि से आया है.... या कहें कि शांडिल्य ऋषि उस Y गुणसूत्र के मूल हैं.
अब चूँकि.... Y गुणसूत्र स्त्रियों में नहीं होता है इसीलिए विवाह के पश्चात स्त्रियों को उसके पति के गोत्र से जोड़ दिया जाता है.
वैदिक/ हिन्दू संस्कृति में एक ही गोत्र में विवाह वर्जित होने का मुख्य कारण यह है कि एक ही गोत्र से होने के कारण वह पुरुष व् स्त्री भाई-बहन कहलाए क्योंकि उनका पूर्वज (ओरिजिन) एक ही है..... क्योंकि, एक ही गोत्र होने के कारण...
दोनों के गुणसूत्रों में समानता होगी.
आज की आनुवंशिक विज्ञान के अनुसार भी..... यदि सामान गुणसूत्रों वाले दो व्यक्तियों में विवाह हो तो उनके संतान... आनुवंशिक विकारों का साथ उत्पन्न होगी क्योंकि.... ऐसे दंपत्तियों की संतान में एक सी विचारधारा, पसंद, व्यवहार आदि में कोई नयापन नहीं होता एवं ऐसे बच्चों में रचनात्मकता का अभाव होता है.
विज्ञान द्वारा भी इस संबंध में यही बात कही गई है कि सगौत्र शादी करने पर अधिकांश ऐसे दंपत्ति की संतानों में अनुवांशिक दोष अर्थात् मानसिक विकलांगता, अपंगता, गंभीर रोग आदि जन्मजात ही पाए जाते हैं.
शास्त्रों के अनुसार इन्हीं कारणों से सगौत्र विवाह पर प्रतिबंध लगाया था.
यही कारण था कि शारीरिक बिषमता के कारण अग्रेज राज परिवार में आपसी विवाह बन्द हुए।
जैसा कि हम जानते हैं कि.... पुत्री में 50% गुणसूत्र माता का और 50% पिता से आता है.
फिर, यदि पुत्री की भी पुत्री हुई तो.... वह डीएनए 50% का 50% रह जायेगा...
और फिर.... यदि उसके भी पुत्री हुई तो उस 25% का 50% डीएनए रह जायेगा.
इस तरह से सातवीं पीढ़ी में पुत्री जन्म में यह % घटकर 1% रह जायेगा.
अर्थात.... एक पति-पत्नी का ही डीएनए सातवीं पीढ़ी तक पुनः पुनः जन्म लेता रहता है....और, यही है "सात जन्मों के साथ का रहस्य".
लेकिन..... यदि संतान पुत्र है तो .... पुत्र का गुणसूत्र पिता के गुणसूत्रों का 95% गुणों को अनुवांशिकी में ग्रहण करता है और माता का 5% (जो कि किन्हीं परिस्थितियों में एक % से कम भी हो सकता है) डीएनए ग्रहण करता है...
और, यही क्रम अनवरत चलता रहता है.
जिस कारण पति और पत्नी के गुणों युक्त डीएनए बारम्बार जन्म लेते रहते हैं.... अर्थात, यह जन्म जन्मांतर का साथ हो जाता है.
इन सब में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि.... माता पिता यदि कन्यादान करते हैं तो इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि वे कन्या को कोई वस्तु समकक्ष समझते हैं...
बल्कि, इस दान का विधान इस निमित किया गया है कि दूसरे कुल की कुलवधू बनने के लिये और उस कुल की कुल धात्री बनने के लिये, उसे गोत्र मुक्त होना चाहिए.
पुत्रियां..... आजीवन डीएनए मुक्त हो नहीं सकती क्योंकि उसके भौतिक शरीर में वे डीएनए रहेंगे ही, इसलिये मायका अर्थात माता का रिश्ता बना रहता है.
शायद यही कारण है कि..... विवाह के पश्चात लड़कियों के पिता को घर को ""मायका"" ही कहा जाता है.... "'पिताका"" नहीं.
क्योंकि..... उसने अपने जन्म वाले गोत्र अर्थात पिता के गोत्र का त्याग कर दिया है....!
और चूंकि..... कन्या विवाह के बाद कुल वंश के लिये रज का दान कर मातृत्व को प्राप्त करती है... इसीलिए, हर विवाहित स्त्री माता समान पूजनीय हो जाती है.
आश्चर्य की बात है कि.... हमारी ये परंपराएं हजारों-लाखों साल से चल रही है जिसका सीधा सा मतलब है कि हजारों लाखों साल पहले.... जब पश्चिमी देशों के लोग नंग-धड़ंग जंगलों में रह रहा करते थे और चूहा ,बिल्ली, कुत्ता वगैरह मारकर खाया करते थे....
उस समय भी हमारे पूर्वज ऋषि मुनि.... इंसानी शरीर में गुणसूत्र के विभक्तिकरण को समझ गए थे.... और, हमें गोत्र सिस्टम में बांध लिया था.
इस बातों से एक बार फिर ये स्थापित होता है कि....
हमारा सनातन हिन्दू धर्म पूर्णतः वैज्ञानिक है....
बस, हमें ही इस बात का भान नहीं है.
असल में..... अंग्रेजों ने जो हमलोगों के मन में जो कुंठा बोई है..... उससे बाहर आकर हमें अपने पुरातन विज्ञान को फिर से समझकर उसे अपनी नई पीढियों को बताने और समझाने की जरूरत है.
गोत्र के महत्व को वैज्ञानिक तरीके से समझे अज्ञानता की हठधर्मिता न करे*
*विशेष नोट__यहां प्रदर्शित चित्र केवल प्रतीकात्मक है जो सोसल मीडिया से लिया गया है इस पर लेखक का कोई हक और लेखक से कोई संबंध नहीं है।।
dheendwal gotra not shown
ReplyDeleteढिंडवाल गोत्र रोहिला राजपूत गोत्र नही है धांधल है शुद्ध रूप ये राठौड़ वंश की पाबू जी rathod के वीर पुत्र धांधल से चली लिस्ट में धांधल लिखा है राठौड़ में गोतम ऋषि गोत्र है भाखर वाला गांव में धांधल राठौड़ रोहिला राजपूत की छतरियां है,ढिंढवाल नहीं शुद्ध रूप धांधल है
Deleteढिंडवाल गोत्र रोहिला राजपूत गोत्र नही है धांधल है शुद्ध रूप ये राठौड़ वंश की पाबू जी rathod के वीर पुत्र धांधल से चली लिस्ट में धांधल लिखा है राठौड़ में गोतम ऋषि गोत्र है भाखर वाला गांव में धांधल राठौड़ रोहिला राजपूत की छतरियां है,ढिंढवाल नहीं शुद्ध रूप धांधल है
Deleteश्रषि गोत्र की चर्चा नही की गई है ये सब तो हमारे शाखा गोत्र है।
ReplyDeleteढिंंढवाल गोत्र रोहिला राजपूत गोत्र नही है।।।।
Deleteरोहिला राजपूत में धांधल राठौड़ होते है ढिंढ वाल नही
*राठौड़ वन्स की 14 शाखाये रोहिले राजपूतो में है_*
Delete1_ धांधल
2_महेचा/महेच राणा/महेचा वत
3_ बन्दरिया/बांदर
4 _डंगरथ,डंगरोल
5 _जोलिये जोलु जालान
6 बांकुटे
7_रतानोट
8_थाती
9_कपोलिया
10 _खोखर
11_अखनोरिया
12_मसानिया
13_बिसूथ/बसेठ/बसूंठ
14 _लोह मढ़े
लोहे के कवचधारी
थे84 सरदार जो कन्नौज पतन के बाद रोहिलखण्ड में रणवीर सिंह की सेना में आ गए थे उनको लखमीर भी कहते थे जो एक लाख का सेना नायक होता था
इसलिए यह गोत्र लखमरा भी कहलाता है
14वी शाखा है।
प्रवर है *सौनिक*
ऋषि है *अंगिरा*
वेद है *यजुर्वेद*
उपवेद *धनुर*
शाखा *कौथुमी*
सूत्र *कात्यायन*
शिखा है *दाहिनी*
कुलदेवी है *पंखिनी*
राजेश्वरी ओर *नाग्निचा*
धर्म है *वैष्णव*
झंडा है *पंचरंगा*
नगाड़ा *रणजीत*
गद्दी है *कन्नौज*
पदवी
*रणबांका*
Ralu
ReplyDeleteRalu गोत्र रोहिला गोत्र नही है रावल है
Delete*👉 क्या आप भी अपना परिचय इस तरह दे सकते हैं🙏*
Delete1.*नाम सरनेम सहित* रमेश रोहिला
2.*वंश* _ सूर्य
3.*गोत्र* _गादेय /गादो/गदईया/गोगद
*प्रवर ऋषि गोत्र जो विवाह आदि संस्कारों के लिए वांछित होता है*
4.*ऋषि* _वैशंपायन/वशिष्ठ
5.*शाखा*_मधोज्जनि
6.*वेद* _यजुर्वेद
7.*सूत्र* कात्यायन
8.*शिखा* दाहिनी
9.*पाद* दाहिना
10.*उपवेद* धनुरवेद
11.*देवता* _शिव हर हर महादेव/विष्णु
12.*कुलदेवी* _बाणासु री/अंबिका
13.*ध्वज* केसरिया
14.*निशान* _पीला , रणजीत
15.*नदी* __सरयू/चंदभागा
16.*पक्षी* _मोर
17.*गुरु* _वशिष्ठ
18.*उद्घोष* __राजा रामचंद्र की जय
19*.*गद्दी* _मेवाड़
20.*निकास* _अलमार्डे किला अरावली
21.*ठिकाना* _अलमार्ड किला अरावली / रामपुर,बरेली, बिसौली/रोहिलखंड
22.*नगाड़ा* _बोरीसाल/कालका रण गंजन
23.*पदवी,उपाधि* _रावल (बापा रावल के दूसरे पुत्र के वंशज)
24.*अस्त्र शस्त्र* _भवानी तलवार,और तुलजा शमशीर/खड्ग
25.*गोत्र कर्ता मूल पुरुष* _राजा गिरधर जी
Mera gotra Miyau h wo inmain nahi hai, kripya kuch bataye
ReplyDeleteमेरा नाम रामकिशोर रूहेला है। मै मिलक जिला रामपुर हूं। मुझे मेरा गोत्र छुरी बंध मेरी मां ने बताया था। पर गोत्र की लिस्ट में छुरिया पेड़ है। क्या यह छुरी बंध ही है।
ReplyDeleteएक ही है जी
DeleteMusla
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