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Wednesday, 24 July 2024

PANIPAT @ROHILA VEER GANGA SINGH MAHECHA RATHOD ROHILA RAJPUT AND THE BATTLE OF PANIPAT

*इतिहास के पन्नो में दर्ज है वीर गंगा सिंह महेचा राठौड़ और अन्य रोहिला राजपूतों का पराक्रम*
*पानीपत के तीसरे युद्ध में हुआ था वीर गंगा सिंह महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत और उसकी सेना का बलिदान*

*14 जनवरी सन 1761 ईसवी दिन बुधवार मकर सक्रांति को दिया हिंदुत्व के लिए सर्वोच्च बलिदान**🤺🤺🤺🤺🎠🎠🎠🏇🏼
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*पानीपत के मैदान में समय 2बजे** *अपराह्न,जनवरी की हाड़ कंपाने वाली सर्दी,कोहरा और बिजली की गड़गड़ाहट से बारिश के भयावह मौसम में*
*1400 रोहिले राजपूत वीर गंगा सिंह उर्फ गंगा सहाय महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत के नेतृत्व में कूद पड़े हिन्दू धर्म रक्षार्थ युद्ध भूमि पर रुहेला सरदार नजीब खान(नजीबुद्दोला) बंगस व आक्रांता अहमद शाह दुर्रानी अब्दाली के विरुद्ध लड़ रहे मराठो की ओर से* 😇😇🎠🎠🤺🤺🏇🏼🏇🏼🏇🏼 *छिड़ गया घमासान युद्ध! कट कट गिर रहे अब्दाली के सैनिक ।कट कट गिर रहे थे गद्दार रुहेले नजीब खान के रूहेले बंगस बारेच पठान*।
*परन्तु हुआ क्या, गार्दी की टॉप सामने आ गयी* *और8 मुसलमानों के चिथड़े उड़ने लगे 1400 रोहिले राजपूतो की एक टुकड़ी मुख्य सेना से बिछुड़ गयी और अफगानों ने उन्हें घेर लिया वीर राठौड़ गंगा सिंह रोहिला ऊर्फ गंगा सहाय महेचा व उनके साथी हजारो अफगानों का संहार करते हुए सांय पांच बजे वीर गति को प्राप्त हुए* ।
*मराठो की हार हुई अपनी ही तोप के सामने अपनी ही सेना आ गई थी ! उधर सदाशिव राव भाऊ के भतीजे विश्वास राव घायल होकर गिरे तो भाऊ हाथी से उतर के घोड़े पर आ गए युद्ध करने हेतु तो हाथी पर भाऊ को न देख कर सेना भागने लगी और तितर बितर हो गई ।क्या दुखद हार हुई !!जीती हुई* *पानीपत की तीसरी लड़ाई को मराठे जीत कर भी एक घण्टे में हार गए* ।
उत्तर भारत की रक्षार्थ आये मराठो का साथ अन्य राजपूतो जाटो गुज्जरों ने नही दिया क्योंकि मराठे उनसे कर वसूलते थे,और अकेले पड़े हिंदुत्व के लिए लड़े मराठो का साथ सदा शिव राव भाऊ के सेनापति के रूप में सेना में भर्ती हो वीर रोहिला गंगा सिंह महेचावत ने अपना जीवन का सर्वोच्च बलिदान देकर भी दिया ।
वीर गंगा सिंह रोहिला की रानी रामप्यारी देवी mudahad राजपूत रियासत कलायत के कपिल मुनि आश्रम में सती हुई और वही वीर रोहिला गंगा सिंह की समाधि स्थापित की गई।
इसी वंश के
*भवानी सिंह महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत तांत्या टोपे की सेना में सेनापति थे जब झांसी की रानी को ह्यूरोज ने घायल किया तो जनरल भवानी सिंह महेचराना ने अपने 16 सेनिको के साथ रक्षा कवच तैयार कर अंग्रेजो से उनकी रक्षा करते रहे और लक्ष्मी बाई को सुरक्षित एक जंगल में कुटिया तक पहुंचाया था किंतु अंग्रेजो के हाथ नही पड़ने दिया*,
 *सन 1858 ईसवी।*

*आज भी महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत कलायत ,अंबाला और यमुना पार कर पूरब की ओर उत्तर प्रदेश के जनपद सहारनपुर के दस गांव में आबाद है,इसी वंश के ठाकुर हरिसिंह रोहिला एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे ,जिनकी घोड़ी छोटी ट्रेन से भी तेज दौड़ती थी। उनके वंशज आज भी गांव घाठेड़ा,सहारनपुर और करनाल में रहते है।।
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*विशेष नोट "__यहां प्रदर्शित सभी चित्र सोसल मीडिया से उद्धरत है इन पर लेखक का कोई अधिकार नहीं है ये पाठको को समझाने हेतु प्रतीकात्मक रूप से दर्शाए गए है।। ये सभी सोसल मीडिया की संपत्ति है।।

रोहिलखंड

⚜️रोहिलखंड विक्की पीडिया⚜️
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%96%E0%A4%82%E0%A4%A
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रोहिलखंड(हिंदी,संस्कृत,अंग्रेजी भाषा) या रुहेलखण्ड(उर्दू मिक्स हिंदी, रूहेल उर्दू खंड हिंदी) रुहेलखंड(उर्दू) उत्तर प्रदेश के उत्तर-पश्चिम में एक क्षेत्र है।[1][2].

रोहिलखंड गंगा की उपत्यका के ऊपरी भाग में २५००० वर्ग कि॰मी॰ (१००००वर्ग मील) क्षेत्र तक विस्तृत है। इसके दक्षिण पश्चिमी ओर गंगा है, पश्चिमी ओर उत्तराखंड और नेपाल उत्तर में हैं। पूर्वी ओर अवध है। इसका नाम यहां की एक क्षत्रिय खाप रोहिला(रोहिला क्षत्रियों की कठ शाखा) के नाम पर कठेहर रोहिलखंड पड़ा। जिसकी स्थापना अहिक्षेत्र में पूर्व नाम पांचाल,सन ९०९ईसवी में राजा राम शाह उर्फ रामसिंह ने की थी और रामनगर गांव को रामपुर के नाम से विकसित किया जिसे आज भी रियासत रामपुर या रोहिलो का रामपुर कहा जाता है। रोह शब्द अवरोह धातु से लिया गया है जिसका अर्थ है चढ़ना अवरोही, रोही प्लस ला प्रत्य बराबर रोहिला अर्थात चढ़ाई करने वाला, पश्चिमी उत्तरीय सीमा प्रांत वैसे भी पर्वतीय चढ़ाई युक्त ढलान युक्त होने के कारण और द्रहयु के वंशजो द्रोही / रोही के वंशजो चन्द्र वन्स के क्षत्रियो का प्रदेश होने के कारण मध्य काल तक पाणिनि कालीन भारत से लेकर रोह के नाम से जाना गया,।

तीब्र प्रवाह *रोह*, की भांति चढ़ाई करने वाला भी रोहिला कहलाया।

रोहिला शब्द भारत के गौरव शाली इतिहास का एक विशेष दर्पण है ! यह वही शब्द है जो वीर क्षत्रिय राजवंशों व इतिहास की वीर गाथाओं से परिचय कराता है।

रोहिला 500 ईसा पूर्व पुराना शब्द है( प्राचीन भारत-पृष्ठ-159, बी एम रस्तोगी)

रोहिला एक संघ था, भारत

के उन वीरो का, भारत की पश्चिमी उत्तरीय सीमा प्रहरियों का जिन्होंने स्वयम के टुकड़े टुकड़े होने तक ओर अंतिम श्वांस लेने तक धूलि के कण के बराबर भी आक्रांताओं को भारत भूमि और कदम नही रखने दिया।

रोहिले राजपूत प्राचीनकाल से ही लोकतंत्र के संवाहक रहे हैं

वंस वाद, पीढ़ी वाद से दूर रहे है

रोहिल खंड राज्य लोकतन्त्रात्मक गणराज्य था
वंशानुक्रम का शासन नहीं था*

वाचाल( वाछेल),चौहान, राठोर, गहलोत, (,गहलोत) गोड बारेचा चौहान आदि प्रसिद्ध साहसी राज वन्सो का शासन था ये सभी कटेहर इया राजपूत कहलाते थे
सुन्दर बलिष्ठ

योग्य पहलवान(रहेल्ला) को अपना शासक चुनाव ( हाथ उठा कर) से नियुक्त करते थे

इसी लिए इनमे राजपूतो के सभी वंस शाखाये प्रशाखाए उपलब्ध है।

रणवीर सिंह सूर्य वंस निकुम्भ शाखा के वशिष्ठ गोत्र में उत्पन्न हुए थे,

उनका प्रवर गोत्र काठी कठोड,कठेरिया था 

इस कठेहर रोहिल खंड के राजा के साथ 84 लोहे के कवच धारी अजेय रोहिले सरदार / सेनापति, सामंत थे

उनके सामने मुल्ला नहीं टिक पाते थे

इनमे निम्न गोत्रो के योधा थे

1- लखमीर 2- राठोर/महेच राणा 3- चौहान/ वत्स/ जेवरा 4-वाछेल / वाचाल/ कूपट/ गहलोत

5- मोउसले/ भौंसले/ मौसुल/ मोसले/ मूसले

6- कठेहरिय/ काठी/, कठायत/ कठोड़े 7- रहक वाल/रायकवार /सिकरवार

12 बारह रोहिले लोहे के कवच धारी सैनिक थे।

सल्तनत काल में दिल्ली के सुल्तान पूर्णतया इन्हें कभी भी नहीं जीत पाए

(वासुदेवशरण अगरवाल)

इतिहास कार

हमारे ही परिवार जो कटेहर रोहिल खंड में रह गए विश्थापित नहीं हुए वे

आज भी राजपूतो की मुख्य धारा में ही हैं कठेरिया राजपूत कहलाते है उनके सम्बन्ध इन्ही राजपूतो से होते है

जी गंगा पार कर विस्थापित हो इधर आगये रोहिला कहलाये

जो रामगंगा पार कर कुमायूं गए

काठी कठेत कठ्यत काठ आयत कहलाये और चंद वंश के राजा के यहं रहे

महाराजा रणवीर सिंह रोहिल्ला का जन्म ऐसे समय मे हुआ जब राजपूत शक्ति क्षीण हो चुकी थी और मुस्लिम आक्रांता अपनी सल्तनत कायम करने के लिए बचे हुए राजपूतो का दमन करने में लगे थे गौरी के आक्रमण से पृथ्वी राज चौहान का साम्राज्य नष्ट कर गुलाम वन्स का शासन स्थापित हो रहा था राजस्थान में मेवाड़ ओर मध्यदेश (उत्तर प्रदेश), ,में रोहिलखण्ड के कठेहरिया राजपूतो ने दिल्ली के सुल्तान बनने वाले आक्रांताओ के नाक में दम कर रखा था 1206 में सभी राजपूत शक्तियों को एकत्र कर सामन्त वृतपाल रोहिल्ला ने ऐबक इल्तुतमिश आदि को रोहिलखण्ड में घुसने से रोका त्रिलोक सिंह आदि रोहिलखण्ड पर अधिकार जमाने वाले मुस्लिम शासकों को खदेड़ देते थे,इस विपत्ति काल मे रोहिलखण्ड की पावन भूमि पर कार्तिक मास के कृष्ण की प्रथमा तिथि तदनुसार 25 अक्टूबर 1204 इसवी को रामपुर के किले में राजा त्रिलोक सिंह के यहां एक वीर पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम करण हरिद्वार के पण्डित गोकुल चंद पण्डे के पिता ने रणवीर सिंह के नाम से किया ,जब रणवीर सिंह 21 वर्ष के हुवे तो विजयपुर सीकरी के राजा की पुत्री तारा देवी से रणवीर सिंह का विवाह हो गया उसी वर्ष रामपुर के किले में रणवीर सिंह का राजतिलक हुवा ,उन् से दिल्ली के सुल्तान भय खाने लगे किसी ने रोहिलखण्ड पर आक्रमण करने का साहस नहीं था।



ये कठेहरिया/ काठी (रोहिला क्षत्रियों की प्रमुख प्राचीन शाखा)निकुम्भ वंश के रोहिलखण्ड के राजा थे, 1253 में इनके शासन काल मे दिल्ली सल्तनत के इल्तुतमिश के पुत्र एवम सेनापति नासिरुद्दीन महमूद उर्फ चंगेज जो बहाराम वन्स का मुसलमान आक्रांता था दिल्ली दरबार मे कसम लेकर आया कि रोहिलखण्ड पर विजय पाकर ही लौटेगा 30000 की विशाल सेना लेकर उसने रोहिलखण्ड पर हमला किया पीलीभीत ओर रामपुर के बीच मे किसी स्थान पर मुसलमानों को 6000 रोहिले राजपूतो ने घेर लिया तथा भयंकर युद्ध हुआ रोहिले बहादुर थे लोहे के कवचधारी थे नासिरुद्दीन चंगेज की सेना को काट डाला गया बचे हुए मुसलमान भाग खड़े हुए

नासिरुद्दीन ने प्राणदान मांगे

सभी धन दौलत रणवीर सिंह के चरणों मे रख गिड़गिड़ाया,सूर्य वंशी क्षत्रिय सम्राट रोहिलखंड नरेश ,महा राजा

 रणवीर सिंह रोहिला, कठोडा(कठेहरिया) ने क्षात्र धर्म रक्षार्थ शरणागत को क्षमा दान दे दिया

परन्तु वह दिल्ली दरबार से कसम लेकर आया था क्या मुह दिखाए यह सोच कर रामपुर के जंगलों में छिप गया और रास्ते खोजने में लगा कि राजा को कैसे पराजित किया जाए

क्योकि कितनी भी मुसलमान सेना दिल्ली से मंगवाता रोहला राजपूत इतने बहादुर थे कि उनके सामने नही टिक पाती उसने छल प्रपंच धोखा करने की सोची

रामपुर के किले के एक दरबारी हरिद्वार निवासी पण्डे गोकुल राम उर्फ गोकुल चंद को लालच दिया और रक्षा बंधन के दिन शस्त्र पूजन के समय निश्शस्त्र रोहिले राजपूतो पर हमला करने का परामर्श दे दिया

चंगेज ने दिल्ली से कुमुद ओर सेना मंगवाई ओर जंगलो में छिपा दी पण्डे ने सफेद ध्वज के साथ चंगेज को राजा से किले का द्वार खोल के मिलवाया भी जबकि राजपूत पण्डे का इंतजार कर रहे थे कि कब आये और पूजा शुरू हो।

पण्डे ने तो धोखा कर दिया था राजा ने सफेद ध्वज देख सन्धि प्रस्ताब समझ समर्पण समझ आने का संकेत दिया

मालूम हुआ कि पंडा किले के चारो द्वार खोल कर आया था

निहत्थे राजपूतो पर तीब्रता से मुसलमान सेना चारो तरफ से टूट पड़ी

राजपूतो को शाका कर मरमिटने का आदेश रणवीर सिंह ने दे दिया और मुसलमानों को सबक सिखाने के लिए भिड़गये,लगभग ,2800राजपुतो ने नसीरुद्दीन के बीस हजार आक्रांताओं को काट डाला

  निहत्थे होने के कारण राजपूत वीरगति को प्राप्त हुए,
सूर्य वंशी क्षत्रिय सम्राट राजा रणवीर सिंह रोहिला अकेले पड़ गए उन्हे चंगेज के सेनिको ने चारो ओर से घेरे में ले लिया और उन पर टूट पड़े,रणवीर सिंह का युद्ध कौशल देख कर नसीरुद्दीन महमूद चकित रह गया वे निहत्थे ही आक्रांताओं से लोहा ले रहे थे किंतु साहस नही छोड़ा अद्भुत शौर्य संग्राम में
राजा रणवीर सिंह का बलिदान हुआ,

रानी तारावती सभी क्षत्राणियो के साथ ज्वाला पान कर जौहर कर गयी

किले को मुसलमान घेर चुके थे।

रणवीर सिंह का भाई सूरत सिंह उर्फ सुजान सिंह अपने 338 साथियों के साथ निकल गया और हरियाणा में 1254 में चरखी दादरी आकर प्रवासित हुआ।

हरिद्वार पंडो ने रणवीर सिंह की वंशावाली में झूठ लिखा कि उसकी ओलाद बंजारा हो गयी।

कितना तुष्टिकरण होता था तब भी इतिहास लेखन में।

जबकि रोहिले राजपूतो के राज भाट राय भीम राज निवासी बड़वा जी का बड़ा तुंगा जिला जयपुर की पोथी में मिला कि सूरत सिंह चरखी दादरी आ बसा ।


रक्षाबंधन एक गोरव गाथा को समस्त राजपूत समाज इस बलिदान दिवस 
को शौर्य दिवस के रूप में मनाता है,
तथा इस महान साहसी दिल्ली सल्तनत को धूल चटाने वाले क्षत्रिय सम्राट रणवीर सिंह रोहिला की जयंती 25अक्टूबर को प्रतिवर्ष सम्पूर्ण भारत का राजपूत समाज एक स्वाधीनता व स्वाभिमान दिवस के रूप में मनाता है।
1253 -1254 ईसवी में दिल्ली के सुल्तानों को धुल चटाने वाले महाराजा रणवीर सिंह रोहिला ने लिखी थीं एक गौरव गाथा रामपुर के किले में हुआ यह शौर्य संग्राम निहत्थे रोहिले राज पूतो पर टूट पड़े थे नासिरुद्दीन के सैनिक शास्त्र विहीन रोहिलो ने बहनों की राखी के सहारे किया शाका और दिया सर्वस्व बलिदान आज सचमुच शौर्य दिवस है राजा रणवीर सिंह को याद कर

यह तो सचमुच एतिहासिक सत्य/ तथ्य है

रोहिला क्षत्रिय वास्तव में

विशुद्ध क्षत्रिय राजवंश है।

एक चीते के समान ही जिसकी अपनी अलग पहचान होती है।

इतिहास इस बात का साक्षी है

रोहिले क्षत्रियो ने आज तक

कभी भी राष्ट्र व् अपनी क्षत्रिय कौम पर जीते जी आंच नहीं आने दी।

800 वर्षो तक आक्रान्ताओ को रोके रखने में अपना सर्वस्व मिटाया है

विधर्मी का संघार किया है

शाका और * जौहर* किया है

परन्तु अपना धर्म न बदला न छोड़ा।

रोहिला राजवँश का मूल पुरुष है चन्द्र वंसी चक्रवर्ती सम्राट ययाति के तीसरे पुत्र द्रहयु

इसी का अपभ्रंस द्रोह रोह ओर फिर रोहिला हुआ*

रोहिल खंड राज्य लोकतन्त्रात्मक गणराज्य था

वंशानुक्रम का शासन नहीं था*

वाचाल( वाछेल)चौहान, राठोर ,गेहलोत (,गहलोत) वारेचा,गोड आदि प्रसिद्ध साहसी राज वंशो का शासन था ये सभी कठेहरिया राजपूत कहलाते थे।
सुन्दर बलिष्ठ

योग्य पहलवान(रहेल्ला) को अपना शासक ( हाथ उठा कर) सर्व सम्मति से नियुक्त करते थे

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अयोध्या में इख (गन्ना) उगाने वाले

इश्क्वाकू /सूर्य का उदय हुआ

और प्रयाग के पास झूंसी में चन्द्र वंस

का उदय हुआ

चक्रवर्ती सम्राट ययाति इसी वंस में हुए

इनके तीसरे पुत्र द्रह्यु के नाम पर द्रह्यु वंस/गंधार वंस चला

द्रह्यु से रोहिलाओ का मूल है

भारत के चन्द्र वंस के चक्रवर्ती सम्राट

ययाति के पुत्र द्रह्यु का प्रदेश ही द्रोह ,रूह/ रोह प्रदेश ने नाम से जाना गया

रोह का अर्थ है चढ़ना (पर्वतीय )

यह है भी एक पर्वतीय प्रदेश ही

यह भारत की पश्चिमी उत्तरीय सीमा का प्रदेश था

इस रोह प्रदेश की लोकेशन अब गूगल मेप पर देखे

इसके निवासियों ने सिकंदर को भारत में प्रवेश करने से रोकने के बाद 400 वर्ष तक आक्रनताओं को रोके रक्खा जब मैदानों से मदद नहीं मिली तो मैदानों की और आना प्रारम्भ कर दिया

कठ गणराज्य

क्षुद्रक गणराज्य

मालव गणराज्य

योद्धेय गणराज्य

अश्वक गणराज्य आदि के शासक मुसलमानों से टक्कर लेते हुए मैदानों में आये
सौराष्ट्र /,
गुजरात में काठियावाड़,

पंचाल में कठेहर रोहिलखंड राज्य की स्थापना की।

पंजाब से सहारनपुर तक यौद्धेय राज्य की स्थापना की(रोहिलखंड में रोहिला क्षत्रियों ने १७२०ईसवी तक शासन किया।अफगानों ने रोहिला राजा हरनंद का कत्ल करके१७२०ईसवी में खुद को रुहेला उर्दू में कहना आरंभ कर दिया और रुहेला सरदार,नवाब उसी अफगान ट्राइब्स के शासकों की एक कड़ी है को १८०२तक रही,तत्पश्चात अंग्रेजो ने रोहिलखंड,रुहेलखंड को ब्रिटिश राज में मिलाया)

 ये सभी क्षत्रिय कठेरिया /रोहिला 

कठेहरिया/रोहिले क्षत्रिय ,रोहिला राजपूत कहलाए।*रोहिलखंड राजपूताना आज भी उत्तर प्रदेश का एक बहुत बड़ा भाग हैं और एक कमिश्नरी के रूप में विद्यमान है।

(राजपूत/क्षत्रिय वाटिका)

(रोहिले क्षत्रियो का क्रमबद्ध इतिहास)

रोही +ला(प्रत्य)----*रोहिला*

रोहिला* अर्थात चढ़ने या चढ़ाई करने वाला ।
नौवी शताब्दी से विशेष युद्ध कला में प्रवीण बहुत से योद्धाओं को रोहिला उपाधि प्रदत्त की गई ,836ईसवी का एक शिला लेख मंडोर के किले में लगा है तदनुसार विप्र ब्राह्मण राजा हरिश्चंद्र प्रतिहार को उसके द्वारा वीरता से किले की रक्षा करने और युद्ध कौशल के कारण उसे रोहिलाद्वायंक की उपाधि मिली थी। प्रत्यक्ष शिलालेख विद्यमान है।अन्य ग्रंथों के अनुसार भी मध्यकाल में रोहिला उपाधि का प्रचलन हुवा,महाराजा पृथ्वी राज चौहान की सेना में एक सो रोहिला सेना नायक थे जिनके आधार पर अनेक योद्धाओं को रोहिला उपाधि प्राप्त हुई।समस्त उत्तर भारत में आज रोहिला राजपूत करोड़ों की संख्या में विद्यमान है।_____

ROHILA THE GREAT WARRIOR

*रक्षा बंधन के दिन रोहिलखंड की वीर भूमि गंगा सी पवित्र राजपूतों के रक्त से रंजित और आक्रांताओं के काल की धरती रामपुर के किले में दिया था कठेहर रोहिलखंड नरेश,महाराजा रणवीर सिंह रोहिला ने अदम्य साहस और अद्भुत शौर्य का परिचय!,दिल्ली सुलतान नासीरुद्दीन बहराम उर्फ चंगेज की चालीस हजार की सेना को दी थी शिकस्त!*
*तथा घुटने टेकने पर मजबूर किया था दिल्ली सल्तनत का दुर्दांत खूंखवार सेनापति नसीरुद्दीन महमूद को*!
*और प्राणदान मांगने पर क्षात्र धर्म रक्षार्थ छोड़ा था।*
*चंगेज ने अवसर पाकर रक्षा बंधन के दिन दरबारी गोकुल चंद पांडे हरिद्वार को लालच देकर किले के द्वार खुलवा लिए*
 *धोखे के शिकार लगभग तीन हजार राजपूत निहत्थे ही लड़े,!आक्रमण कारियो के अस्त्र शस्त्र छीन छीन किया था शौर्य संग्राम दिल्ली सल्तनत की लगभग आधी गुलाम वंशी सेना को काट डाला था रोहिला राजपूतो ने!!अंत में चंगेज के खूंखवार दरिंदो ने अकेले में घेर लिया था रणवीर सिंह रोहिला को, जिन्हे आमने सामने की लड़ाई में दिल्ली सुलतान कभी नही हरा पाए थे किंतु वे उनके साहस से विस्मित हुए बिना नहीं रह सके ।रणवीर रणभूमि के वीर सपूत रक्त की अंतिम बूंद रहने तक संग्राम रत रहे और कतरा कतरा हो कर खेत रहे(सन 1254ईस्वी),उनका बलिदान रोहिलखंड के राजपूताना इतिहास में स्वर्णाक्षर दे गया!,समस्त राजपूत समाज रक्षा बंधन के दिन हुए इस बलिदान को एक शोर्य दिवस के रूप में मनाता आया है,यूट्यूब पर और अन्य सोसल मीडिया पर स्वतंत्र रोहिलखंड संस्थापक नरेश महाराजा रणवीर सिंह रोहिला की वीर गाथा दी हुई है,सभी क्षत्रिय जन अपने बच्चो को दिखाए ताकि सल्तनत काल में १२५४ ईसवी के इस इतिहास के धुंधले पृष्ठ भी उकेरे जा सके*
*, रक्षा बंधन को उनका बलिदान दिवस मनाया जाता है,समस्त क्षत्रिय समाज इस शौर्य दिवस पर उन्हे कोटि कोटि नमन करते हुए उनके। बताए मार्ग पर स्वाधीनता और स्वाभिमान से स्वधर्म रक्षार्थ जीने की शपथ लेता है,यह सच्चाई हमसे स्कूली शिक्षा में छुपाई गई किंतु इतिहास के दर्पण में सब सुरक्षित रहता है जिसे उजागर कर भावी पीढ़ी को बताना ही हरेक क्षत्रिय का नैतिक दायित्व है अतः आप सभी क्षत्रियों से निवेदन है कि भावी पीढ़ी को सच्चाई बताए और स्वाभिमान से जीना दिखाए*
*सूर्य वंशी निकुंभ क्षत्रिय महाराजा रणवीर सिंह रोहिला का जन्म हिंदूवा सूर्य महाराज पृथ्वी राज चौहान के पतन के बाद दिल्ली सल्तनत के बढ़ते कदमों के बीच ऐसे समय में सन१२०४ईस्वी में कठेहर रोहिलखंड की राजधानी रामपुर के किले में राजा त्रिलोक सिंह के यहां हुआ था, जब सभी राजपूत शक्तियां क्षीण और तितर बितर हो चुकी थी,इस्लामिक आक्रांता मध्य भारत की ओर दमन करते हुए आगे बढ़ते रहते थे।।,रणवीर सिंह रोहिला का विवाह विजय पुर सीकरी की राजकुमारी तारा देवी से हुआ तथा पच्चीस वर्ष की आयु में रामपुर की गद्दी पर विराजमान होकर इस्लामीकरण पर रोक लगाई ।। तीस सालों तक दिल्ली सुलतानो को धूल चटाई किंतु रक्षा बंधन के दिन शिव मंदिर गए राजपूतों को रक्षा सूत्र बंधवाते हुए नसीरुद्दीन बहराम ने गोकुल चंद पांडे के द्वारा किले के द्वार खोलने पर घेर लिया और फिर होगया अद्भुत शौर्य संग्राम*
*विस्तार भय से संक्षिप्त गाथा वर्णित है जिसे चाटुकार मुगल कालीन और ब्रिटिश इतिहास कारो ने छिपाया*

*जय जय राजपूताना रोहिलखंड*
*जय क्षत्रिय सम्राट महाराजा रणवीर सिंह रोहिला सनातन रक्षक*



नोट __यहां प्रदर्शित चित्र नेट द्वारा सोसल मीडिया से लिए गए केवल प्रतीकात्मक रूप है इनका लेखक से कोई संबंध नहीं है।।


ROHILA RAJPUT CREATION

*🙏रोहिला राजपूत स्थापत्य🙏, रोहिला क्षत्रियों द्वारा बसाए गए हजारों साल पुराने नगर गांव स्थान,और आजकल उन्ही की तरह होते जा रहे नामकरण🙏🙏**
*ये है*
*_ कुछ गांव- नगर और स्थान जिनकी स्थापना रोहिला राजपूतों ने हजारों साल पहले की.._थी*
१. रोहिला नाम का एक गांव छिबरामऊ कन्नौज में स्थित है।
२. रोहिल्ला पश्चिम नाम का स्थान बप्पा गोरी मन्ना, जिला बाड़मेर, (राजस्थान) में स्थित है।
३. रोहिल्ला नगर नाम का एक स्थान जिला बाराबंकी (उत्तर प्रदेश) में विद्यमान है।
४. रोहिल्ला नाम का गांव तहसील जिला गढ़वा (झारखंड) में स्थित है।
५. रोहिला नाम का गांव सीतापुर (उत्तर प्रदेश) से 4.4 किलोमीटर दूरी महोली मंडल में स्थित है
६. रोहिल्ला नाम का गांव तहसील चौहटान, जिला बाड़मेर राजस्थान में है।
७. रोहिला गांव में दिनांक 3- 10 16 21 को ही हरगोविंद साहब का मुगलों से युद्ध हुआ था।
८. भिवानी रोहिल्ला नाम का गांव लगभग 1000 वर्ष पूर्व हिसार से 20 किलोमीटर दूर (हरियाणा) रोहिल्ला क्षत्रिय स्थापित किया था।
९. पिपरी रोहिल्ला गांव, जिंटूर ब्लॉक जिला परभनी (महाराष्ट्र) में स्थित है। 
१०. रोहिल्ला कला गांव जयपुर राजस्थान से 282 किलोमीटर है जोधपुर से 81 किलोमीटर मंडोर में स्थित है।
११. रुहेला गांव में सन 1587 गुरु अर्जुन देव रहे थे।
१२. तेजा रोहिला नाम का गांव फाजिल्का पंजाब में स्थित है।
१३. रोहिल्ला नाम का एक प्राचीन गांव तिलचर उड़ीसा में स्थित है।
१४. रोहिल्ला नाम का एक गांव ब्लॉक पालाहाडा जिला अंगुल उड़ीसा में स्थित है।
१५. रोहिल्ला द्वारा नाम का एक गांव जिला बाशिम महाराष्ट्र में स्थित है।
१६. रोहिल्ला नाम का एक गांव तहसील तिलहर जिला शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश में स्थित है।
१७. झुंझुनू से 24 किलोमीटर दूर रोहिल्ला नामक स्थान पर नवलगढ़ किला स्थित है।
१८. रोहिल्ला ग्राम सेक्टर 132 नोएडा में विद्यमान है। 
१९. रोहिला नाम का एक गांव। तहसील बिलग्राम जिला हरदोई में स्थित है।
२०.प्राचीन रोहिला किला सहारनपुर उत्तर प्रदेश में विद्यमान है।जिसके सामने महाराजा रणवीर सिंह रोहिला चौक स्थित है।
२१.एक प्राचीन रोहिला किला ,झारखंड में भी स्थित है।
२२.महोबा में चंदेलो से पहले रोहिला शासन था,वहा रोहिला नाम का एक तालाब अति प्राचीन है।
२३.रोहिला नेशनल पार्क हिमाचल प्रदेश में स्थित है।
२४.बड़ौत नगर में राजा रणवीर सिंह रोहिला मार्ग स्थित है।
२५.रोहिणी दिल्ली में महाराजा रणवीर सिंह रोहिला पार्क है।
२६.झारखंड पलामू में प्राचीन रोहिला किला स्थित है।
इन सब से रोहिल्ला क्षत्रियों की प्राचीन स्थिति का प्रमाण मिलता है क्योंकि यह गांव ,नगर, स्थान सुदूर स्थित सदियों से विद्यमान हैं।
ये जानकारियां,रोहिला ज्योति स्मारिका दिल्ली राजधानी क्षेत्र 22अक्टूबर 2012 ओर रोहिला क्षत्रिय परिवार स्मारिका ,सहारनपुर दिनांक 28अक्टूबर 2016 तथा अन्य सोसल वेब साइट्स से ली गई है।
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 सभी_*रोहिला राजपूत**नौजवान युवा पीढ़ी* को ये जानकारियां अवश्य होनी चाहिए।


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*विशेष नोट___यहां प्रदर्शित सभी चित्र सोसल मीडिया पर उपलब्ध है और नेट द्वारा केवल प्रतीकात्मक रूप देने और पाठको को समझाने के उद्देश्य से उद्धरित किए गए है।

रोहिलखंड

रोहिलखंड(हिंदी,संस्कृत,अंग्रेजी भाषा) या रुहेलखण्ड(उर्दू मिक्स हिंदी, रूहेल उर्दू खंड हिंदी) रुहेलखंड(उर्दू) उत्तर प्रदेश के उत्तर-पश्चिम में एक क्षेत्र है।[1][2].

रोहिलखंड गंगा की उपत्यका के ऊपरी २५००० वर्ग कि॰मी॰ क्षेत्र में विस्तृत है। इसके दक्षिण पश्चिमी ओर गंगा है, पश्चिमी ओर उत्तराखंड और नेपाल उत्तर में हैं। पूर्वी ओर अवध है। इसका नाम यहां की एक क्षत्रिय खाप रोहिला के नाम पर पड़ा। महाभारत में इसे रोह शब्द अवरोह धातु से लिया गया है जिसका अर्थ है चढ़ना अवरोही, रोही प्लस ला प्रत्य बराबर रोहिला अर्थात चढ़ाई करने वाला, पश्चिमी उत्तरीय सीमा प्रांत वैसे भी पर्वतीय चढ़ाई युक्त ढलान युक्त होने के कारण और द्रहयु के वंशजो द्रोही / रोही के वंशजो चन्द्र वन्स के क्षत्रियो का प्रदेश होने के कारण मध्य काल तक पाणिनि कालीन भारत से लेकर रोह के नाम से जाना गया,।

तीब्र प्रवाह *रोह*, की भांति चढ़ाई करने वाला भी रोहिला कहलाया।

रोहिला शब्द भारत के गौरव शाली इतिहास का एक विशेष दर्पण है ! यह वही शब्द है जो वीर क्षत्रिय राजवंशों व इतिहास की वीर गाथाओं से परिचय कराता है।

रोहिला 500 ईसा पूर्व पुराना शब्द है( प्राचीन भारत-पृष्ठ-159, बी एम रस्तोगी)

रोहिला एक संघ था, भारत

के उन वीरो का, भारत की पश्चिमी उत्तरीय सीमा प्रहरियों का जिन्होंने स्वयम के टुकड़े टुकड़े होने तक ओर अंतिम श्वांस लेने तक धूलि के कण के बराबर भी आक्रांताओं को भारत भूमि और कदम नही रखने दिया।

रोहिले राजपूत प्राचीनकाल से ही लोकतंत्र के संवाहक रहे हैं

वंस वाद पीढ़ी वाद से दूर रहे है

रोहिल खंड राज्य लोकतन्त्रात्मक गणराज्य था
वंशानुक्रम का शासन नहीं था*

वाचाल( वाछेल)चौहान राठोर ग्र्ह्लोत (,गहलोत) आदि प्रसिद्ध साहसी राज वन्सो का शासन था ये सभी कटेहर इया राजपूत कहलाते थे
सुन्दर बलिष्ठ

योग्य पहलवान(रहेल्ला) को अपना शासक चुनाव ( हाथ उठा कर) से नियुक्त करते थे

इसी लिए इनमे राजपूतो के सभी वंस शाखाये प्रशाखाए उपलब्ध है।

रणवीर सिंह सूर्य वंस निकुम्भ शाखा के वशिष्ठ गोत्र में उत्पन्न हुए थे,

उनका प्रवर गोत्र काठी कठोड,कठेरिया था 

इस कठेहर रोहिल खंड के राजा के साथ 84 लोहे के कवच धारी अजेय रोहिले सरदार / सेनापति, सामंत थे

उनके सामने मुल्ला नहीं टिक पाते थे

इनमे निम्न गोत्रो के योधा थे

1- लखमीर 2- राठोर/महेच राणा 3- चौहान/ वत्स/ जेवरा 4-वाछेल / वाचाल/ कूपट/ गहलोत

5- मोउसले/ भौंसले/ मौसुल/ मोसले/ मूसले

6- कठेहरिय/ काठी/, कठायत/ कठोड़े 7- रहक वाल/रायकवार /सिकरवार

12 बारह रोहिले लोहे के कवच धारी सैनिक थे।

सल्तनत काल में दिल्ली के सुल्तान पूर्णतया इन्हें कभी भी नहीं जीत पाए

(वासुदेवशरण अगरवाल)

इतिहास कार

हमारे ही परिवार जो कटेहर रोहिल खंड में रह गए विश्थापित नहीं हुए वे

आज भी राजपूतो की मुख्य धारा में ही हैं कठेरिया राजपूत कहलाते है उनके सम्बन्ध इन्ही राजपूतो से होते है

जी गंगा पार कर विस्थापित हो इधर आगये रोहिला कहलाये

जो रामगंगा पार कर कुमायूं गए

काठी कठेत कठ्यत काठ आयत कहलाये और चाँद वाशी राजा के यहं रहे

महाराजा रणवीर सिंह रोहिल्ला का जन्म ऐसे समय मे हुआ जब राजपूत शक्ति क्षीण हो चुकी थी और मुस्लिम आक्रांता अपनी सल्तनत कायम करने के लिए बचे हुए राजपूतो का दमन करने में लगे थे गौरी के आक्रमण से पृथ्वी राज चौहान का साम्राज्य नष्ट कर गुलाम वन्स का शासन स्थापित हो रहा था राजस्थान में मेवाड़ ओर मध्यदेश (उत्तर प्रदेश), ,में रोहिलखण्ड के कठेहरिया राजपूतो ने दिल्ली के सुल्तान बनने वाले आक्रांताओ के नाक में दम कर रखा था 1206 में सभी राजपूत शक्तियों को एकत्र कर सामन्त वृतपाल रोहिल्ला ने ऐबक इल्तुतमिश आदि को रोहिलखण्ड में घुसने से रोका त्रिलोक सिंह आदि रोहिलखण्ड पर अधिकार जमाने वाले मुस्लिम शासकों को खदेड़ देते थे,इस विपत्ति काल मे रोहिलखण्ड की पावन भूमि पर कार्तिक मास के कृष्ण की प्रथमा तिथि तदनुसार 25 अक्टूबर 1204 इसवी को रामपुर के किले में राजा त्रिलोक सिंह के यहां एक वीर पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम करण हरिद्वार के पण्डित गोकुल चंद पण्डे के पिता ने रणवीर सिंह के नाम से किया ,जब रणवीर सिंह 21 वर्ष के हुवे तो विजयपुर सीकरी के राजा की पुत्री तारा देवी से रणवीर सिंह का विवाह हो गया उसी वर्ष रामपुर के किले में रणवीर सिंह का राजतिलक हुवा ,उन् से दिल्ली के सुल्तान भय खाने लगे किसी ने रोहिलखण्ड पर आक्रमण करने का साहस नहीं था।



ये कठेहरिया/ काठी (रोहिला क्षत्रियों की प्रमुख प्राचीन शाखा)निकुम्भ वंश के रोहिलखण्ड के राजा थे 1253 में इनके शासन काल मे दिल्ली सल्तनत के इल्तुतमिश के पुत्र एवम सेनापति नासिरुद्दीन महमूद उर्फ चंगेज जो बहाराम वन्स का मुसलमान आक्रांता था दिल्ली दरबार मे कसम लेकर आया कि रोहिलखण्ड पर विजय पाकर ही लौटेगा 30000 की विशाल सेना लेकर उसने रोहिलखण्ड पर हमला किया पीलीभीत ओर रामपुर के बीच मे किसी स्थान पर मुसलमानों को 6000 रोहिले राजपूतो ने घेर लिया तथा भयंकर युद्ध हुआ रोहिले बहादुर थे लोहे के कवचधारी थे नासिरुद्दीन चंगेज की सेना को काट डाला गया बचे हुए मुसलमान भाग खड़े हुए

नासिरुद्दीन ने प्राणदान मांगे

सभी धन दौलत रणवीर सिंह के चरणों मे रख गिड़गिड़ाया

राजा रणवीर सिंह कठोडा ने क्षात्र धर्म रक्षार्थ शरणागत को क्षमा दान दे दिया

परन्तु वह दिल्ली दरबार से कसम लेकर आया था क्या मुह दिखाए यह सोच कर रामपुर के जंगलों में छिप गया और रास्ते खोजने में लगा कि राजा को कैसे पराजित किया जाए

क्योकि कितनी भी मुसलमान सेना दिल्ली से मंगवाता रोहला राजपूत इतने बहादुर थे कि उनके सामने नही टिक पाती उसने छल प्रपंच धोखा करने की सोची

रामपुर के किले के एक दरबारी हरिद्वार निवासी पण्डे गोकुल राम उर्फ गोकुल चंद को लालच दिया और रक्षा बंधन के दिन शस्त्र पूजन के समय निश्शस्त्र रोहिले राजपूतो पर हमला करने का परामर्श दे दिया

चंगेज ने दिल्ली से कुमुद ओर सेना मंगवाई ओर जंगलो में छिपा दी पण्डे ने सफेद ध्वज के साथ चंगेज को राजा से किले का द्वार खोल मिलवाया जबकि राजपूत पण्डे का इंतजार कर रहे थे कि कब आये और पूजा शुरू हो

पण्डे ने तो धोखा कर दिया था राजा ने सफेद ध्वज देख सन्धि प्रस्ताब समझ समर्पण समझ आने का संकेत दिया

मालूम हुआ कि पंडा किले के चारो द्वार खोल कर आया था

निहत्थे राजपूतो पर तीब्रता से मुसलमान सेना चारो तरफ से टूट पड़ी

राजपूतो को शाका कर मरमिटने का आदेश रणवीर सिंह ने दे दिया और मुसलमानों को सबक सिखाने के लिए भिड़गये,लगभग ,2800राजपुतो ने नसीरुद्दीन के बीस हजार आक्रांताओं को काट डाला

  निहत्थे होने के कारण राजपूत वीरगति को प्राप्त हुए,
सूर्य वंशी क्षत्रिय सम्राट राजा रणवीर सिंह रोहिला अकेले पड़ गए उन्हे चंगेज के सेनिको ने चारो ओर से घेरे में ले लिया और उन पर टूट पड़े,रणवीर सिंह का युद्ध कौशल देख कर नसीरुद्दीन चकित रह गया वे निहत्थे ही आक्रांताओं से लोहा ले रहे थे किंतु साहस नही छोड़ा अद्भुत शौर्य संग्राम में
राजा रणवीर सिंह का बलिदान हुआ,

रानी तारावती सभी क्षत्राणियो के साथ ज्वाला पान कर जौहर कर गयी

किले को मुसलमान घेर चुके थे।

रणवीर सिंह का भाई सूरत सिंह उर्फ सुजान सिंह अपने 338 साथियों के साथ निकल गया और हरियाणा में 1254 में चरखी दादरी आकर प्रवासित हुआ।

हरिद्वार पंडो ने रणवीर सिंह की वंशावाली में झूठ लिखा कि उसकी ओलाद बंजारा हो गयी

कितना तुष्टिकरण होता था तब भी इतिहास लेखन में

जबकि रोहिले राजपूतो के राज भाट रायय भीम राज निवासी बड़वा जी का बड़ा तुंगा जिला जयपुर की पोथी में मिला कि सूरत सिंह चरखी दादरी आ बसा था

राजा रणवीर सिंह का यह बलिदान याद रखेगा हिंदुस्तान


रक्षाबंधन एक गोरव गाथा को समस्त राजपूत समाज इस बलिदान दिवस 
को शौर्य दिवस के रूप में मनाता है,
तथा इस महान साहसी दिल्ली सल्तनत को धूल चटाने वाले क्षत्रिय सम्राट रणवीर सिंह रोहिला की जयंती 25अक्टूबर को प्रतिवर्ष सम्पूर्ण भारत का राजपूत समाज एक स्वाधीनता व स्वाभिमान दिवस के रूप में मनाता है।
1253 -1254 ईसवी में दिल्ली के सुल्तानों को धुल चटाने वाले महाराजा रणवीर सिंह रोहिला ने लिखी थीं एक गौरव गाथा रामपुर के किले में हुआ यह शौर्य संग्राम निहत्थे रोहिले राज पूतो पर टूट पड़े थे नासिरुद्दीन के सैनिक शास्त्र विहीन रोहिलो ने बहनों की राखी के सहारे किया शाका और दिया सर्वस्व बलिदान आज सचमुच शौर्य दिवस है राजा रणवीर सिंह को याद कर

यह तो सचमुच एतिहासिक सत्य/ तथ्य है

रोहिला क्षत्रिय वास्तव में

विशुद्ध क्षत्रिय राजवंश है।

एक चीते के समान ही जिसकी अपनी अलग पहचान होती है।

इतिहास इस बात का साक्षी है

रोहिले क्षत्रियो ने आज तक

कभी भी राष्ट्र व् अपनी क्षत्रिय कौम पर जीते जी आंच नहीं आने दी।

800 वर्षो तक आक्रान्ताओ को। रोके रखने में अपना सर्वस्व मिटाया है

विधर्मी का संघार किया है

शाका और * जौहर* किया है

परन्तु अपना धर्म न बदला न छोड़ा।

रोहिला राजवँश का मूल पुरुष है चन्द्र वंसी चक्रवर्ती सम्राट ययाति के तीसरे पुत्र द्रहयु

इसी का अपभ्रंस द्रोह रोह ओर फिर रोहिला हुआ*

रोहिल खंड राज्य लोकतन्त्रात्मक गणराज्य था

वंशानुक्रम का शासन नहीं था*

वाचाल( वाछेल)चौहान राठोर ग्र्ह्लोत (,गहलोत) वारेचा आदि प्रसिद्ध साहसी राज वंशो का शासन था ये सभी कठेहरिया राजपूत कहलाते थे
सुन्दर बलिष्ठ

योग्य पहलवान(रहेल्ला) को अपना शासक चुनाव ( हाथ उठा कर) से नियुक्त करते थे

🤺🤺🤺

अयोध्या में इख (गन्ना) उगाने वाले

इश्क्वाकू /सूर्य का उदय हुआ

और प्रयाग के पास झूंसी में चन्द्र वंस

का उदय हुआ

चक्रवर्ती सम्राट ययाति इसी वंस में हुए

इनके तीसरे पुत्र द्रह्यु के नाम पर द्रह्यु वंस/गंधार वंस चला

द्रह्यु से रोहिलाओ का मूल है

भारत के चन्द्र वंस के चक्रवर्ती सम्राट

ययाति के पुत्र द्रह्यु का प्रदेश ही द्रोह ,रूह/ रोह प्रदेश ने नाम से जाना गया

रोह का अर्थ है चढ़ना (पर्वतीय )

यह है भी एक पर्वतीय प्रदेश ही

यह भारत की पश्चिमी उत्तरीय सीमा का प्रदेश था

इस रोह प्रदेश की लोकेशन अब गूगल मेप पर देखे

इसके निवासियों ने सिकंदर को भारत में प्रवेश करने से रोकने के बाद 400 वर्ष तक आक्रनताओं को रोके रक्खा जब मैदानों से मदद नहीं मिली तो मैदानों की और आना प्रारम्भ कर दिया
इस काल में भारत के सीमा प्रहरी क्षत्रिय काठी, कठ गणराज्य से मैदानों की ओर आए,एक टुकड़ी ने सोरष्ट्र को कठियावाड नाम से शासित किया और एक टुकड़ी ने उत्तरी पांचाल को जीता और उसका नाम कठेहर रोहिलखंड रखा,राजा राम सिंह रोहिला(कठेहरिया काठी कठोड ने रामपुर नगर की स्थापना कर राजधानी बनाया और स्वतंत्र रोहिलखंड राज्य की नींव रखी यहां इन्होंने ग्यारह पीढ़ी निरंतर शासन किया।।
कठ गणराज्य

क्षुद्रक गणराज्य

मालव गणराज्य

योद्धेय गणराज्य

अश्वक गणराज्य आदि के शासक मुसलमानों से टक्कर लेते हुए मैदानों में आये
सौराष्ट्र /,
गुजरात में काठियावाड़,

पंचाल में कठेहर रोहिलखंड राज्य की स्थापना की।

पंजाब से सहारनपुर तक यौद्धेय राज्य की स्थापना की(रोहिलखंड में रोहिला क्षत्रियों ने १७२०ईसवी तक शासन किया।अफगानों ने रोहिला राजा हरनंद का कत्ल करके१७२०ईसवी में खुद को रुहेला उर्दू में कहना आरंभ कर दिया और रुहेला सरदार,नवाब उसी अफगान ट्राइब्स के शासकों की एक कड़ी है को १८०२तक रही,तत्पश्चात अंग्रेजो ने रोहिलखंड,रुहेलखंड को ब्रिटिश राज में मिलाया)

 ये सभी क्षत्रिय कठेरिया /रोहिला 

कठेहरिया/रोहिले क्षत्रिय ,रोहिला राजपूत कहलाए।*रोहिलखंड राजपूताना आज भी उत्तर प्रदेश का एक बहुत बड़ा भाग हैं और एक कमिश्नरी के रूप में विद्यमान है।

(राजपूत/क्षत्रिय वाटिका)

(रोहिले क्षत्रियो का क्रमबद्ध इतिहास)

रोही +ला(प्रत्य)----*रोहिला*

रोहिला* अर्थात चढ़ने या चढ़ाई करने वाला ।
नौवी शताब्दी से विशेष युद्ध कला में प्रवीण बहुत से योद्धाओं को रोहिला उपाधि प्रदत्त की गई ,836ईसवी का एक शिला लेख मंडोर के किले में लगा है तदनुसार विप्र ब्राह्मण राजा हरिश्चंद्र प्रतिहार को उसके द्वारा वीरता से किले की रक्षा करने और युद्ध कौशल के कारण उसे रोहिलाद्वायंक की उपाधि मिली थी। प्रत्यक्ष शिलालेख विद्यमान है।अन्य ग्रंथों के अनुसार भी मध्यकाल में रोहिला उपाधि का प्रचलन हुवा,महाराजा पृथ्वी राज चौहान की सेना में एक सो रोहिला सेना नायक थे जिनके आधार पर अनेक योद्धाओं को रोहिला उपाधि प्राप्त हुई।समस्त उत्तर भारत में आज रोहिला राजपूत करो ड़ों की संख्या में विद्यमान है।
संदर्भ

Refrences--
 भारत भूमि और उसके वासी पृष्ठ-230 पंडित जयचंद्र विद्यालंकार
2-दून ज्योति-साप्ताहिक देहरादून 18 फरवरी 1974 
पुरुषोत्तम नागेश ओक व डॉक्टर ओमवीर शर्मा हेड ऑफ हिस्ट्री विभाग
3-क्षत्रिय वर्तमान पृष्ठ 97 व 263 ठाकुर अजित सिंह परिहार बालाघाट
4- प्राचीन भारत पृष्ठ -118,159,162 बीएम रस्तोगी इतिहास कार
5 राजतरँगनी पृष्ठ 31-39 कल्हण कृत अनुवादक नीलम अग्रवाल
6-रोहिला क्षत्रिय वन्स भास्कर ,आर आर राजपूत मूरसेन अलीगढ़
7- इतिहास रोहिला राजपूत 
डॉक्टर के सी सेन
8 - भारत का इतिहास पृष्ठ 138 डॉक्टर दया प्रकाश
9-भारतीय इतिहास मीमांसा पृष्ठ 44 जय चंद विद्यालंकार
10- भारतीय इतिहास की रूप रेखा द्वितीय भाग पृष्ठ 699 बीएम रस्तोगी
11-सीमा संरक्षण पृष्ठ 21-22 हरिकृष्ण प्रेमी
12 टॉड राजस्थान पृष्ठ 457 परिच्छेद 43 अनुवादक केशव कुमार ठाकुर
13- प्राचीन भारत का इतिहास राजपूत वन्स पृष्ठ 104 व 105कैलाश प्रकाशन लखनऊ 1970 व पृष्ठ 147
14 रोहिला क्षत्रियो का क्रमबद्ध इतिहास लेखक दर्शन लाल रोहिला 
15 राजपूत ,/क्षत्रिय वाटिका 
राजनीतिन सिंह रावत अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा
16 रिलेशन बिटवीन रोहिला एंड कठहरिया राजपूत निकुम्भ व श्रीनेत वंश 
महेश सिंह कठायत नेपाल
*रोहिलखंड के राजपूतों का इतिहास
(डॉक्टर के सी सैन)
रोहिला क्षत्रिय वंश भास्कर
(आर आर राजपूत)
 रोहिला क्षत्रिय का क्रमबद्ध इतिहास,
(दर्शन लाल रोहिला)
रोहिला राजपूत
(सर जोड़ी क्लूटोस)
राजपूताना रोहिलखंड
(क्षत्रिय राजपूत वाटिका)
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा १८९७द्वारा प्रकाशित क्षत्रिय वंशावली

SHIV DATT SINGH ROHILA GZD

*आदरणीय सभापति श्रीमहेश बेनाडीकर पाटिल, सदन नेता श्री कुंवर अजय सिंह, श्री सुखदेव गोगामेडी, ............ सम्मानित मंच देश के कोने कोने से पधारे विभिन्न रजवाडे रियासतों सूबो और राज्यो से संबंधित महान वीर पुत्रों * मैं शिव दत्त सिंह रोहिला,संयोजक अखिल भारतीय रोहिला क्षत्रिय विकास परिषद रजिस्टर्ड,संसद सदस्य गवर्निंग कोंसिल राष्ट्रीय क्षत्रिय जन संसद व संयोजक क्षत्रिय अधिकार न्याय मोर्चा समस्त क्षत्रिय महानुभावों को बोलता हूं जय भवानी जय श्री राम और सभी को मेरा नमस्कार। मैं उत्तर प्रदेश के एक बहुत बडे भाग रोहिलखण्ड राजपूताना का प्रतिनिधित्व कर रहा हूं गवर्निंग कोंसिल संसद सदस्य होने के नाते मैं समस्त देश में विभिन्न नामों उपनामों को धारण किए हुए बिखरे पड़े क्षत्रियों जैसे बुंदेला,चंदेला, बघेला रोहिला ,खंगार, रवा,ओड,लोधी, सिक्ख, मराठा,अर्कवंशी,गोरखा,रवानी, कोलिए,अग्नि वंशी ,चोल , पांड्या गगोई आदि सभी संगठनों के प्रमुखों और गवर्निंग कोंसिल सदस्यों ,क्षत्रिय अधिकार न्याय मोर्चा संयोजको आदि पदाधिकारियों से निवेदन करता हूं कि हम जो लगभग छ हजार टुकड़ों में बिखरे पड़े समस्त क्षत्रियों की एकता व जो सिंह शावक इस्लामिक आक्रांताओं द्वार मचाई हुई भयंकर मारकाट की भगदड़ में मेमने के झुंडो में गुम गए उन्हे अपनी सिंह नाद सुना कर वापस लाने हेतु क्षत्रिय समाज के सामने बहुत विषम परिस्थितियां खड़ी है जिन पर विचार करना और निर्णय आवश्यक हो गया है जैसे सूर्य वंशी क्षत्रिय मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जन्म भूमि ट्रस्ट में क्षत्रियों की भागीदारी ,वामपंथियों द्वारा लिखित इतिहास को वास्तविक रूप देना उस इतिहास को बदला जाना जिसमे मुस्लिम अक्रांता शासकों का महिमा मंडन किया गया और स्थानीय बलिदानी क्षत्रिय राजाओं को विद्रोही लिखा गया है,जितने भी मार्गो नाम शहरो के नाम मुस्लिम आक्रांताओं ने अपने नाम पर किए या चाटुकार सरकारों ने मुस्लिमो के नाम पर रखे उन्हे बदला जाना और क्षत्रिय राजाओं के नाम पर रखा जाना क्योंकि उन्होंने ही प्रजा की रक्षा की तथा अपना जीवन का सर्वोच्च बलिदान देकर देश को बचाया लोक तंत्र के लिए अपना सर्वस्व दे दिया जितनी भी राष्ट्रीय धरोहर है सभी क्षत्रिय स्थापत्य है उनके रख रखाव के लिए क्षत्रियों का रखा जाना और सबसे घातक आरक्षण है जिसने क्षत्रिय समाज की रीढ़ तोड़ दी है,इसके लालच में क्षत्रिय समाज का विघटन हो रहा है खंड खंड हो विभिन्न जातियों में बंट गया है इस आरक्षण को समाप्त कराना और एस सी एस टी एक्ट जिसमे उल्लिखित है कि केवल एस सी को एस सी कहने मात्र से सवर्ण जाति को तुरंत गिरफ्तार किया जाए यह धारा हटवाना आदि अति आवश्यक व ज्वलंत मुद्दों पर कीर्यानवन तभी संभव है जब अपनी कोई राजनीतिक पकड़ हो,अपनी पार्टी हो अपनी सरकार हो,इसके लिए समस्त क्षत्रियों को एक मंच पर लाया जाए और एक राजनीतिक पार्टी का गठन हो,जैसे अखिल भारतीय क्षत्रिय विकास पार्टी ,राष्ट्रीय क्षत्रिय जन विकास पार्टी, राष्ट्रीय क्षत्रिय उत्थान मोर्चा आदि , हे क्षत्रिय वीर पुत्रों आज समय आ गया है कि जो आपके बलिदान स्वरूप आपको नही मिला वह पाना होगा,कुछ स्वहितार्थ कर दिखाना होगा*
   बुंदेलखंड जहां पहले बनाफर राजपूतों की रियासत थी ओर फिर चंदेल राजपूतों ने शासन किया उसी से लगता हुआ उत्तर पूर्व का राज्य राजपुताना रोहिलखंड हैं ,जिसने महान सम्राट चक्रवर्ती हिंदुआसुर्य्य प्रथ्वीराज चौहान के बाद शेष राजपूतों को कन्नौज पतन के बाद राजपूत एकता का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए तत्कालीन दिल्ली सलतनत को धूल चटाई ओर लगभग चार सौ साल संघर्ष करते हुए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया उन्ही महान वीर क्षत्रियों की संतान सूर्य वंशी ,रघुवंश निकुंभ काठी खाप के महाराजा रणवीर सिंह कठेहर रोहिलखंड नरेश की 817वी जयंती अक्टूबर 25, 2020 को बडी धूमधाम से समस्त राजपूत समाज ने पूरे उत्तर भारत में मनायी गयी। इसी प्रकार सभी क्षत्रिय वीर महाराजाओं की जयंती मनाई जाए। अट्ठारहवीं सदी तक इस्लामिक दबाव के चलते कुछ राजपूत कठेहर रोहिलखंड से भारत के अन्य भागों में गए और रोहिला राजपूत कहलाए। कठेहर रोहिलखंड को औरंगजेब के कमजोर पड़ते ही तुरंत स्वतंत्र घोषित कर रोहिलखंड की पश्चिमी सीमा पर गंगा पार करके सहारनपुर में महान शासक राजा इन्द्र सेन ने 1702 ईसवी तदानुसार 1761 विक्रमी में एक किले का निर्माण कराया जो आज प्राचीन रोहिला किला के नाम से प्रसिद्ध हे भारत के पुरातत्व विभाग ने इसे अपने संरक्षण में लेकर राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया हुआ है, उसी प्राचीन रोहिला किला को ब्रिटिश राज में गदर के बाद एक कारागार के रूप में प्रयोग किया ओर आज़ादी के सेनानियों की जेल बना डाली आज भी उसमे जिला कारागार स्थित है ,उसी प्राचीन रोहिला किला के सामने स्थित चौक का नाम सूर्य वंशी क्षत्रिय कठेहर नरेश के नाम पर महाराजा रणवीर सिंह रोहिला चौक कराया गया हे , बड़ौत नगर में एक मार्ग का नाम राजा रणवीर सिंह रोहिला मार्ग हे। इसी प्रकार नगर नगर गांव गांव में चौराहों ,मार्गो और भवनों के नामकरण उन क्षत्रिय राजाओं के नाम पर कराए जाने चाहिए जिन्हे भुलाने में कोई कमी नही छोड़ी गई है।
   *अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा ने समस्त क्षत्रियों की एकता के लिए जो बीड़ा उठाया था उसी महान विश्व विजेता क्षत्रिय संगठन के एकता हेतु किए गए महान कार्यों के कारण आज रोहिलखंड के क्षत्रिय भी आपके सम्मुख आपने भाइयों से मिल सके ओर भारत भूमि के अनेक महान क्षत्रिय वंशजों के दर्शन कर सके। हम अखिल भारतीय रोहिला क्षत्रिय विकास परिषद रजिस्टर्ड की ओर से माननीय सभा पति जी कुंवर अजय सिंह जी व महेश मोहनराव पाटिल बेनाडीकर का आभार प्रकट करते हे जो अपने बिछुड़े क्षत्रियों को मिलाने ओर एकता करने के लिए कटी ब्द्ध है आज के परिवेश में जहा पर क्षत्रियों के विरूद्ध स्वतंत्रता के बाद से ही कुचक्र चल रहे हे,राष्ट्रीय क्षत्रिय जन संसद का गठन अति आवश्यक था समय की पुकार हे कि क्षत्रिय अधिकार न्याय मोर्चा समस्त क्षत्रियों के लिए आवश्यक अधिकार की मांग करे ओर पूरा कराए, अपनी जमीन राज्य आदि सब कुछ लोक तंत्र को सौंपने के बाद भी क्षत्रिय आज अपने बलिदानों की परिणिती को क्यों तरस रहा है यही जानने हेतु आज आप हम सब देश के विभिन्न क्षेत्रों से एकत्र हुए हे कि भारत में हो रही क्षत्रियों की उपेक्षा के चलते किस तरह क्षत्रिय एकता बनाए जाएं ।
एकता न बन पाने के मुख्य कारण हे क्षत्रिय इतिहास जो भारत का गौरव शाली इतिहास है उसे वामपंथियों ओर चाटुकारों द्वारा लिखा जाना जिससे क्षत्रिय संस्कृत ओर विरासत भ्रमित हो भावी पीढ़ी को मार्ग दर्शन न किया जाना, जिससे मानसिक क्षमता ओर इतिहास के प्रति जागरूकता कम हुई।*
*मेरा राजपूत भाइयों से अनुरोध है कि सरकार पर हरेक क्षेत्र में दबाव बनाया जाए कि भारत के महान बलिदानी राजाओं सभ्यताओं की जानकारी पाठ्यक्रम में लाई जाए जिसे आज के सेलेब्स ने पूर्णतया नकार रखा हे,राजपुताना संस्कृती विरासत ओर सभ्यता को यदि भावी पीढ़ी को बताने की बात आए तो इतनी गहरी जड़ें हे इतिहास के पन्ने कम पड़ जाए। उत्तर प्रदेश की ही बात है बेंसवाडा में बेंस राजपूतों न शासन किया मैनपुरी में चौहान ने,दिल्ली में तोमर राजपूतों ने, वृंदावन व मथुरा में सोम वंश ने बुंदेलखंड में चंदेल ओर बनाफर ओर बुंदेला ने, रोहिलखंड में रोहिला कठेरिया राजपूतों ने , विजयपुर सीकरी में सूर्य वंशी सिकरवार राजपूत शासन था अकबर ने ध्वस्त कर फतेहपुर सीकरी किया रोहिलखंड के राजपुताना पर अफगानों को काबिज कर रूहेलखंड लिखा यह सब कोई उल्लेख नहीं है क्या यह इतिहास कारो की महान भूल है या सरकार ही नहीं चाहती कि भावी पीढ़ी क्षत्रिय बलिदान से अवगत हो कहने को बहुत है अंत में यही कहना है कि यदि आज इन ज्वलंत मुद्दों पर क्षत्रिय जन संसद विचार नहीं करती तो यह क्षत्रिय समाज उस वाटिका के समान विकर्षण को प्राप्त हो जाएगा जिसमे पोधे तो विभिन्न प्रकार के है किन्तु सुवासित पुष्प बसंत से रूठ जाए।*

*जय भवानी*
*जय MAHARANA*
*जय चौहान*
*जयMAHARAJA RANVEER SINGH ROHILA*

THE THIRD BETTLE OF PANIPAT पानीपत के युद्ध में रोहिला राजपूतों के बलिदान के सबूत जिंदा है

पानीपत की तीसरी लड़ाई से जुड़े इतिहास के साक्ष्य कलायत में भी मौजूद साक्ष्य खोज  रहे है, रोहिला क्षत्रिय सामाजिक संगठन
देश के अतीत से जुड़ी वीर गाथाओं को जन-जन तक पहुंचाने और इनकी स्मृतियों को हमेशा ताजा रखने के लिए रोहिला क्षत्रिय समाज संगठन ने खास पहल की है। इसके तहत कलायत श्री कपिल मुनि तट और वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप चौक के पास पानीपत की तीसरी लड़ाई के इतिहास से जुड़े धार्मिक स्थल हैं
रोहिल्ला क्षत्रिय समाज संगठन के लोगों ने कहा कि मशहूर मरहट्टा जनरैल भाऊ के दीवान गंगा सिंह महचा राठौड़ ने पानीपत की तीसरी लड़ाई में अहमद शाह अब्दाली के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे। इनकी पत्नी रानी रामप्यारी उस जमाने की परंपरा अनुसार सती हुई थी। उनकी स्मृति में कलायत श्री कपिल मुनि तट के पास सौदागर मल के पुत्र अमरनाथ रोहिल्ला निवासी मछूंडा ने बनाई थी। इस तरह देश के गौरवशाली इतिहास के लिए लड़ी गई लड़ाई में रोहिल्ला क्षत्रिय समाज की महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने बताया कि पानीपत की लड़ाई में शहीद हुए गंगा सिंह महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत थे। पानीपत की तीसरी लड़ाई में ये योद्धा अहमद शाह अब्दाली के विरुद्ध लड़े थे। उस दौरान गंगा सिंह की रानी रामप्यारी और क्षत्राणी अपने बच्चों के साथ कलायत रियासत के अधीन सुरक्षित थे। इस तरह शुरू से ही भारत भूमि पर कलायत का इतिहास गौरवशाली रहा है।
१४,जनवरी दिन बुधवार१७६१ईसवी में मकर सक्रांति के दिन वीर गंगा सिंह महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत ने सदा शिव राव भाऊ के सेनापति के रूप में रुहेला सरदार नजीब खान और अब्दाली दुर्रानी के विरुद्ध युद्ध में अपनी सेना सहित वीर गति पाई जबकि उत्तर भारत में किन्ही राजपूत, आदि ने मराठों का साथ नही दिया ,उनकी रानी राम प्यारी सती हुई।

SHIV DATT SINGH 11/4/2021

*आदरणीय सभापति श्रीमहेश बेनाडीकर पाटिल, सदन नेता श्री कुंवर अजय सिंह, श्री सुखदेव गोगामेडी, ............ सम्मानित मंच देश के कोने कोने से पधारे विभिन्न रजवाडे रियासतों सूबो और राज्यो से संबंधित महान वीर पुत्रों * मैं शिव दत्त सिंह रोहिला,संयोजक अखिल भारतीय रोहिला क्षत्रिय विकास परिषद रजिस्टर्ड,संसद सदस्य गवर्निंग कोंसिल राष्ट्रीय क्षत्रिय जन संसद व संयोजक क्षत्रिय अधिकार न्याय मोर्चा समस्त क्षत्रिय महानुभावों को बोलता हूं जय भवानी जय श्री राम और सभी को मेरा नमस्कार। मैं उत्तर प्रदेश के एक बहुत बडे भाग रोहिलखण्ड राजपूताना का प्रतिनिधित्व कर रहा हूं गवर्निंग कोंसिल संसद सदस्य होने के नाते मैं समस्त देश में विभिन्न नामों उपनामों को धारण किए हुए बिखरे पड़े क्षत्रियों जैसे बुंदेला,चंदेला, बघेला रोहिला ,खंगार, रवा,ओड,लोधी, सिक्ख, मराठा,अर्कवंशी,गोरखा,रवानी, कोलिए,अग्नि वंशी ,चोल , पांड्या गगोई आदि सभी संगठनों के प्रमुखों और गवर्निंग कोंसिल सदस्यों ,क्षत्रिय अधिकार न्याय मोर्चा संयोजको आदि पदाधिकारियों से निवेदन करता हूं कि हम जो लगभग छ हजार टुकड़ों में बिखरे पड़े समस्त क्षत्रियों की एकता व जो सिंह शावक इस्लामिक आक्रांताओं द्वार मचाई हुई भयंकर मारकाट की भगदड़ में मेमने के झुंडो में गुम गए उन्हे अपनी सिंह नाद सुना कर वापस लाने हेतु क्षत्रिय समाज के सामने बहुत विषम परिस्थितियां खड़ी है जिन पर विचार करना और निर्णय आवश्यक हो गया है जैसे सूर्य वंशी क्षत्रिय मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जन्म भूमि ट्रस्ट में क्षत्रियों की भागीदारी ,वामपंथियों द्वारा लिखित इतिहास को वास्तविक रूप देना उस इतिहास को बदला जाना जिसमे मुस्लिम अक्रांता शासकों का महिमा मंडन किया गया और स्थानीय बलिदानी क्षत्रिय राजाओं को विद्रोही लिखा गया है,जितने भी मार्गो नाम शहरो के नाम मुस्लिम आक्रांताओं ने अपने नाम पर किए या चाटुकार सरकारों ने मुस्लिमो के नाम पर रखे उन्हे बदला जाना और क्षत्रिय राजाओं के नाम पर रखा जाना क्योंकि उन्होंने ही प्रजा की रक्षा की तथा अपना जीवन का सर्वोच्च बलिदान देकर देश को बचाया लोक तंत्र के लिए अपना सर्वस्व दे दिया जितनी भी राष्ट्रीय धरोहर है सभी क्षत्रिय स्थापत्य है उनके रख रखाव के लिए क्षत्रियों का रखा जाना और सबसे घातक आरक्षण है जिसने क्षत्रिय समाज की रीढ़ तोड़ दी है,इसके लालच में क्षत्रिय समाज का विघटन हो रहा है खंड खंड हो विभिन्न जातियों में बंट गया है इस आरक्षण को समाप्त कराना और एस सी एस टी एक्ट जिसमे उल्लिखित है कि केवल एस सी को एस सी कहने मात्र से सवर्ण जाति को तुरंत गिरफ्तार किया जाए यह धारा हटवाना आदि अति आवश्यक व ज्वलंत मुद्दों पर कीर्यानवन तभी संभव है जब अपनी कोई राजनीतिक पकड़ हो,अपनी पार्टी हो अपनी सरकार हो,इसके लिए समस्त क्षत्रियों को एक मंच पर लाया जाए और एक राजनीतिक पार्टी का गठन हो,जैसे अखिल भारतीय क्षत्रिय विकास पार्टी ,राष्ट्रीय क्षत्रिय जन विकास पार्टी, राष्ट्रीय क्षत्रिय उत्थान मोर्चा आदि , हे क्षत्रिय वीर पुत्रों आज समय आ गया है कि जो आपके बलिदान स्वरूप आपको नही मिला वह पाना होगा,कुछ स्वहितार्थ कर दिखाना होगा*
   बुंदेलखंड जहां पहले बनाफर राजपूतों की रियासत थी ओर फिर चंदेल राजपूतों ने शासन किया उसी से लगता हुआ उत्तर पूर्व का राज्य राजपुताना रोहिलखंड हैं ,जिसने महान सम्राट चक्रवर्ती हिंदुआसुर्य्य प्रथ्वीराज चौहान के बाद शेष राजपूतों को कन्नौज पतन के बाद राजपूत एकता का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए तत्कालीन दिल्ली सलतनत को धूल चटाई ओर लगभग चार सौ साल संघर्ष करते हुए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया उन्ही महान वीर क्षत्रियों की संतान सूर्य वंशी ,रघुवंश निकुंभ काठी खाप के महाराजा रणवीर सिंह कठेहर रोहिलखंड नरेश की 817वी जयंती अक्टूबर 25, 2020 को बडी धूमधाम से समस्त राजपूत समाज ने पूरे उत्तर भारत में मनायी गयी। इसी प्रकार सभी क्षत्रिय वीर महाराजाओं की जयंती मनाई जाए। अट्ठारहवीं सदी तक इस्लामिक दबाव के चलते कुछ राजपूत कठेहर रोहिलखंड से भारत के अन्य भागों में गए और रोहिला राजपूत कहलाए। कठेहर रोहिलखंड को औरंगजेब के कमजोर पड़ते ही तुरंत स्वतंत्र घोषित कर रोहिलखंड की पश्चिमी सीमा पर गंगा पार करके सहारनपुर में महान शासक राजा इन्द्र सेन ने 1702 ईसवी तदानुसार 1761 विक्रमी में एक किले का निर्माण कराया जो आज प्राचीन रोहिला किला के नाम से प्रसिद्ध हे भारत के पुरातत्व विभाग ने इसे अपने संरक्षण में लेकर राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया हुआ है, उसी प्राचीन रोहिला किला को ब्रिटिश राज में गदर के बाद एक कारागार के रूप में प्रयोग किया ओर आज़ादी के सेनानियों की जेल बना डाली आज भी उसमे जिला कारागार स्थित है ,उसी प्राचीन रोहिला किला के सामने स्थित चौक का नाम सूर्य वंशी क्षत्रिय कठेहर नरेश के नाम पर महाराजा रणवीर सिंह रोहिला चौक कराया गया हे , बड़ौत नगर में एक मार्ग का नाम राजा रणवीर सिंह रोहिला मार्ग हे। इसी प्रकार नगर नगर गांव गांव में चौराहों ,मार्गो और भवनों के नामकरण उन क्षत्रिय राजाओं के नाम पर कराए जाने चाहिए जिन्हे भुलाने में कोई कमी नही छोड़ी गई है।
   *अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा ने समस्त क्षत्रियों की एकता के लिए जो बीड़ा उठाया था उसी महान विश्व विजेता क्षत्रिय संगठन के एकता हेतु किए गए महान कार्यों के कारण आज रोहिलखंड के क्षत्रिय भी आपके सम्मुख आपने भाइयों से मिल सके ओर भारत भूमि के अनेक महान क्षत्रिय वंशजों के दर्शन कर सके। हम अखिल भारतीय रोहिला क्षत्रिय विकास परिषद रजिस्टर्ड की ओर से माननीय सभा पति जी कुंवर अजय सिंह जी व महेश मोहनराव पाटिल बेनाडीकर का आभार प्रकट करते हे जो अपने बिछुड़े क्षत्रियों को मिलाने ओर एकता करने के लिए कटी ब्द्ध है आज के परिवेश में जहा पर क्षत्रियों के विरूद्ध स्वतंत्रता के बाद से ही कुचक्र चल रहे हे,राष्ट्रीय क्षत्रिय जन संसद का गठन अति आवश्यक था समय की पुकार हे कि क्षत्रिय अधिकार न्याय मोर्चा समस्त क्षत्रियों के लिए आवश्यक अधिकार की मांग करे ओर पूरा कराए, अपनी जमीन राज्य आदि सब कुछ लोक तंत्र को सौंपने के बाद भी क्षत्रिय आज अपने बलिदानों की परिणिती को क्यों तरस रहा है यही जानने हेतु आज आप हम सब देश के विभिन्न क्षेत्रों से एकत्र हुए हे कि भारत में हो रही क्षत्रियों की उपेक्षा के चलते किस तरह क्षत्रिय एकता बनाए जाएं ।
एकता न बन पाने के मुख्य कारण हे क्षत्रिय इतिहास जो भारत का गौरव शाली इतिहास है उसे वामपंथियों ओर चाटुकारों द्वारा लिखा जाना जिससे क्षत्रिय संस्कृत ओर विरासत भ्रमित हो भावी पीढ़ी को मार्ग दर्शन न किया जाना, जिससे मानसिक क्षमता ओर इतिहास के प्रति जागरूकता कम हुई।*
*मेरा राजपूत भाइयों से अनुरोध है कि सरकार पर हरेक क्षेत्र में दबाव बनाया जाए कि भारत के महान बलिदानी राजाओं सभ्यताओं की जानकारी पाठ्यक्रम में लाई जाए जिसे आज के सेलेब्स ने पूर्णतया नकार रखा हे,राजपुताना संस्कृती विरासत ओर सभ्यता को यदि भावी पीढ़ी को बताने की बात आए तो इतनी गहरी जड़ें हे इतिहास के पन्ने कम पड़ जाए। उत्तर प्रदेश की ही बात है बेंसवाडा में बेंस राजपूतों न शासन किया मैनपुरी में चौहान ने,दिल्ली में तोमर राजपूतों ने, वृंदावन व मथुरा में सोम वंश ने बुंदेलखंड में चंदेल ओर बनाफर ओर बुंदेला ने, रोहिलखंड में रोहिला कठेरिया राजपूतों ने , विजयपुर सीकरी में सूर्य वंशी सिकरवार राजपूत शासन था अकबर ने ध्वस्त कर फतेहपुर सीकरी किया रोहिलखंड के राजपुताना पर अफगानों को काबिज कर रूहेलखंड लिखा यह सब कोई उल्लेख नहीं है क्या यह इतिहास कारो की महान भूल है या सरकार ही नहीं चाहती कि भावी पीढ़ी क्षत्रिय बलिदान से अवगत हो कहने को बहुत है अंत में यही कहना है कि यदि आज इन ज्वलंत मुद्दों पर क्षत्रिय जन संसद विचार नहीं करती तो यह क्षत्रिय समाज उस वाटिका के समान विकर्षण को प्राप्त हो जाएगा जिसमे पोधे तो विभिन्न प्रकार के है किन्तु सुवासित पुष्प बसंत से रूठ जाए।*

*जय भवानी*
*जय महाराणा*
*जय चौहान*
*जय MAHARAJA RANVEER SINGH  ROHILA*
*ABRKVP*

*दिनांक*
11-4-2021

THE GREAT ROHILA वीर खड्ग सिंह(खड़गू सरदार)

रोहिला वीर खड़क सिंह *
तुगलक काल में कठेहर 'रोहिल खण्ड' के रोहिले क्षत्रियो ने अनेक विद्रोह किये थे, तथा उनका सल्तनत की और से दमन भी किया गया था ! तुगलक काल में रोहिला नरेश खडग सिंह का नाम विद्रोहियों की क्ष्रेणी में विशेष उल्लेखनीय माना जाता है,इनकी राजधानी  गढ़ आंवला  में था। मुस्लिम सल्तनत के विरुद्ध विद्रोह करने के कारण, कुछ इतिहासकारो ने राय खडग सिंह को केवल 'खड़कू' के नाम से सम्बोधित किया है !

इस अवसर पर रोहिल खण्ड के प्रमुख सरदार राजपूतो ने बदायू के गवर्नर सैयद मोहम्मद और उनके भाई अलाउदीन को, एक दावत में निमंत्रित करके इन दोनों भाइयो को यमलोक पंहुचा दिया ! यह घटना एक प्रकार से, दिल्ली साम्राज्य के लिए एक विषम समस्या के साथ ही, निरंतर विद्रोह करते रहने की चेतावनी थी !

रोहिला नरेश राय खडग सिंह, रोहिल खण्ड के निवासी सभी राजपूत वर्गों का माननीय नेता तथा विद्रोही शक्तियों का प्रमुख सेना नायक था ! दिल्ली सल्तनत से पूरी टक्कट लेने के लिए राय खडग सिंह ने इस प्रदेश की विद्रोही शक्तियों में, पारम्परिक एकता को सुदृढ़ रूप में स्थापित करने के लिए कठोर प्रयास किया था !

वस्तुतः दिल्ली के सुल्तानों के विरुद्ध पूरी टक्कर लेना और उनकी गुलामी सहन न करना  ही  राजपूतों की बहादुरी थी जिसे आगे इनके पुत्र हरिसिंह रोहिला ने जारी रखा और खिज्र खां को धूल चटाई।


विशेष नोट_,यहां प्रदर्शित चित्र केवल प्रतीकात्मक रूप है जो नेट द्वारा सोसल मीडिया से लिया गया है इस चित्र पर लेखक का कोई हक नही है।

DOCTOR KARAN VEER SINGH ROHILA CHANDIGARH

💬⚔️🚩 *महसूस कीजिए कि डॉक्टर कर्णवीर सिंह रोहिला जी की पुण्य आत्मा आपके साथ खड़ी है और अपने जीवंत विचारो को फलीभूत कराने में आपका साथ दे रही है*
*उनका सपना यही था कि विस्थापित होते होते परचून की हालत में बिखरे इस राजपूत समुदाय को उसकी खोई हुई पहचान रोहिला क्षत्रिय के रूप में तभी मिलेगी जब भावी पीढ़ी को अन्य रोजगार मिलेंगे और विपत्ति काल में जीवन यापन के लिए किए गए कार्य बदल जायेंगे,इसके लिए शिक्षा और रोजगार आवश्यक होगा और रोहिला राजपूत क्षत्रिय महाराजा के प्रतीक बिम्ब बनेंगे और उनका प्रचार होगा इतिहास पुनः दोहराएगा तो रोहिला राजपूत समाज का स्वरूप बदलता चला जायेगा*
*आज रोहिला क्षत्रिय समाज के साथ कुछ वैसा ही आप लोग करते जा रहे हैं प्रशिक्षण संस्थान भी है लगभग चार हजार रोहिला क्षत्रिय लड़के स्वरोजगार,सरकारी गैर सरकारी सर्विस से जरिए, अनेको प्रकार से जीवन यापन और परिवार का पालन पोषण कर रहे है और उन परिवारों के रोजगार भी बदलते जा रहे हैं ,रोहिला राजपूत इतिहास को सोशल मीडिया पर राजपूत सिरदारो ने इतना प्रचार किया के कोई भी अछूता नहीं रहा,रोहिला राजपूत समाज को उसका खोया गौरव मिलता जा रहा है*
*मुझे याद है,उनके विचारों से प्रभावित होकर उनके बड़े भाई सहारनपुर में अति प्रतिष्ठित एडवोकेट चौधरी ओम प्रकाश रोहिला जी ने भटनागर धर्म शाला जनक नगर में दिनांक १२ अगस्त १९८८ को कहा था कि जब तक कोई स्थान रुहेला बिरादरी को नही मिलता, कही मंदिर नही बनता ,कोई तीर्थ स्थान नही मिलता जिसके बारे में दूसरे लोग भी जाने कि यह है रुहेलदेव का मंदिर ,जैसे कश्मीर में सुना गया है रोहिल् देव  मंदिर, तब तक आप को पहचान वापस मिलना कठिन कार्य है क्योंकि आपकी मानसिक शक्ति दम तोड चुकी है,कुछ न कुछ बनाओ चाहे एक मंदिर सहारनपुर में रुहेलदेव का ही बना दो जिसे लोग रोजाना देखे मंदिर रूहेलदेव का है*

*उनकी भाषा में जो उन्होंने कहा था तो उनके छोटे भाई डॉक्टर साहब कर्णवीर सिंह  भी सुनते रहे और मन ही मन मुस्कराते रहे*

*मैने तभी बोला था फोटो फाइल में लगा है ,""कि रोहिला राजपूत है"" और उनके पूर्वजों के बलिदानों के कारण आज आप इस तरह की बैठक कर रहे है अन्यथा सजदा करते फिरते क्यों न उन्ही मे से किसी एक वीर राजा महाराजा सनातन रक्षक विधर्मी संहारक का मंदिर बनवा लो,उस समय इतना ही ज्ञान था मुझे*
*डॉक्टर साहब बोले थे-बेटा जी आपकी भावनाएं और सपने तभी पूरे होंगे जब आप इस संगठन से जुड़े रह कर चलोगे और अपनी भावनाओं ,इच्छाओं की पूर्ति में लगे रहोगे यह ऐसा प्लेट फार्म बनेगा जिस पर बैठ कर रोहिला राजपूत समाज गर्व की अनुभूति अवश्य करेगा*

*उनके आशीर्वाद से आज आपके महाराजा रणवीर सिंह रोहिला राजपूत की जन्म जयंती राज घरानों में राजा" भींडर" मेवाड़ रणधीर सिंह भींडर महाराज अपने महल में मनाते है,कुल दीप सिंह रोहिला हरियाणा जटौली वाले का प्रयास रंग लाता है-अनेक राजपूत हस्तियां, कुंवर अजय सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा,कुंवर राजेंद्र सिंह जी नरूका सेवा निवृत कर्नल राष्ट्रीय अध्यक्ष राष्ट्रीय क्षत्रिय ज्योति मिशन,क्षत्रिय शिरोमणि अदम्य साहसी चौहान की अस्थियों को हजार साल बाद गुलामी की बेडियो से आतंकियों के चंगुल से लाने वाले भाई शेर सिंह राणा जी संस्थापक राजपा, ओकेंद्र राणा फ्रॉम हरियाणा युवाओं के दिलो की धड़कन,दादा महिपाल सिंह मकराना अध्यक्ष श्री राजपूत करणी सेना, दिवंगत हुए दादा सुखदेव सिंह गोगा महेड़ी आदि जिनके नाम विश्व विख्यात है सोशल मीडिया पर इनके करोड़ों फोलोवर्स है वे रोहिला राजपूत वीर का गुणगान करते है जन्म जयंती पूरे विश्व में मनवाते है,भाई शेर सिंह राणाजी अपने साथी भाई कुलदीप सिंह रोहिला और दादा नरेंद्र सिंह चौहान को साथ लाकर महान वीर विधर्मी विनाशक सनातन रक्षक राजपूत रोहिलखंड सम्राट रणवीर सिंह रोहिला के चित्र पर पूजा करके माल्यार्पण कर रहे है*

*उन्होंने प्राचीन रोहिला किला अपनी टीम के साथ देखा और बोला गंगा से भी पवित्र रोहिलखंड की अपने पूर्वजों के रक्त से रंजित उनके खून और हड्डियों से लतपथ धरती में तुझे आज प्रणाम करता हूं तेरी भूमि की माटी हल्दी घाटी की माटी सी पवित्र है,रोहिलखंड के रामपुर को सर जमीन राजा रणवीर सिंह रोहिला के जन्म से एक राजपूत तीर्थ बन गई है*
*क्या यह किसी चमत्कार से कम नजर आता है??????*

*ऐसे ही सहारनपुर के रामपुर (भांकला गांव) की धरती राजपूताना परंपरा संचालित करने वाले डॉक्टर कर्णवीर सिंह रोहिला के जन्म से पवित्र हुई उन्होंने यहां के एक समृद्ध किसान परिवार सोलंकी बरनवाल रोहिला राजपूत समाज में श्री सुगन सिंह रोहिला जी के घर छ: जून उन्नीस सो छत्तीस(06 जून 1936ईस्वी) को जन्म लिया था और अपने व्यवहार और कार्य से इस राजपूत रोहिला परिवार (भांकला)की भूमि को प्रतिष्ठित करने और राजपूत रोहिला खाप को सम्मान दिलाने में अपना जीवन सत्रह मार्च २००० को होली के दिन समाप्त कर दिया था, समाज के कार्यों में इतने खो गए थे कि राष्ट्र पति श्री शंकर दयाल शर्मा जी के फेमिली चिकित्सक होते हुए भी अपनी परवाह करने को समय नही निकाल पाए और अपना जीवन बलिदान कर दिया,ऐसे गांव(  रामपुर) को मेरा कोटि कोटि प्रणाम जिसने रोहिला राजपूतों में अपनी संस्कृति का संचार करने के लिए ऐसे महान राजपूत सोलंकी बरनवाल रोहिला डॉक्टर कर्णवीर सिंह जी को इस समाज में जन्म देकर पुनरोद्धार और उत्कर्ष की राह दिखाई*
उनकी अभिलाषा  और सपने साकार हो रहे हैं ,पुण्य आत्माए आकार ले रही है,इतिहास पुनः अपना गौरव प्राप्त करता जा रहा है,आज आपके रोहिला राजपूत समाज के साथ भारत का सभी राजपूत समाज कंधे से कंधा मिलाए खड़ा है दादा राजेंद्र सिंह परिहार राष्ट्रीय अध्यक्ष क्षत्रिय अस्तित्व न्याय मोर्चा,रोहिला राजपूत इतिहास संरक्षण में लगे है रोहिला राजपूत युवाओं को जोड़ रहे हैं जागृति चरमोत्कर्ष पर है वो दिन दूर नही रोहिलखंड के राजपूतों का इतिहास स्कूल सेलेब्स में पढ़ाए जायेगा रोहिला क्षत्रिय भी अन्य क्षत्रिय राजपूतों की तरह ही सामान्य जाति की सूची में उल्लिखित कराया जाएगा भारत का संपूर्ण राजपूत समाज आ गया मैदान में रोहिला राजपूतों के सम्मान में*
*एक यही तो है ,यही है आशीर्वाद डॉक्टर करण वीर सिंह रोहिला जी की  पुण्य आत्मा के द्वारा दी जाती रही प्रेरणा का*
*आज एक रुहेल देव (,रोहिला राजपूत लोक देव ,सूर्य वंशी क्षत्रिय महाराजा रणवीर सिंह रोहिला) का मंदिर भी बना है विश्व में सहारनपुर की शान एतिहासिक राष्ट्रीय धरोहर प्राचीन रोहिला किला के सामने स्थित चौक का नाम है ,आज महाराजा रणवीर सिंह रोहिला चौक ,क्या यह किसी भव्य मंदिर से कम है?????*
*उनके विचारों और उनके संगठन अखिल भारतीय रोहिला क्षत्रिय विकास परिषद में निष्ठा रखिए आपके सभी कार्य पूर्ण होंगे*
*आज राष्ट्र की राजधानी दिल्ली रोहिणी क्षेत्र में युवा साथी जय प्रकाश रोहिला जी के प्रयास से एक पार्क का नाम भी महान वीर राजपूत सम्राट रणवीर सिंह रोहिला जी के नाम से है,रोहिला क्षत्रिय चौक भी नागलोई में है,और सबसे पहले इस क्षेत्र में बड़ौत नगर में रोहिला राजपूत समाज की ओर से श्री अनूप सिंह रोहिला जी ने कराया था श्री मति सरला मालिक तत्कालीन चेयर मैन के द्वारा एक मार्ग का नाम राजा रणवीर सिंह रोहिला मार्ग आज उनके पति विधायक के पी मालिक राज्य मंत्री जी भी हमारा साथ देते है ,और प्रेरित करते है कि जहाँ भी उनकी अवश्यकता हो वे खड़े होंगे और महाराजा रणवीर सिंह रोहिला जी के नाम पर नामकरण कराएंगे*


*डॉक्टर कर्णवीर सिंह रोहिला जी के ""हमे चाहिए स्वाभिमान""के उद्घोष को ध्यान में रखा वर्तमान न्यू जेनरेशन ने,जिस प्रेरणा के कारण आज युवक युवतियां प्रत्येक क्षेत्र में दर्शनीय भागीदारी कर अपना कैरियर बनाने में जुटे है,। अभिनय ,खेल , क्रिकेट कुश्ती,चिकित्सा ,मॉडलिंग एथलीट, बॉक्सिंग,गायन शिक्षा उच्च तम आई आई टी , सी पी एम टी आदि में अपना और परिवार तथा रोहिला राजपूत समाज का नाम बिना किसी आरक्षित सुविधा चलना ही होगा*
रोहिला औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान में भव्य पुस्तकालय  है डिजिटल लाइब्रेरी बनाई गई  है जिससे लाभान्वित होकर  छात्र छात्राएं  आधुनिक शिक्षा प्राप्त करेंगे।
उनके सुपुत्र डॉक्टर शालीन सिंह रोहिला जी ने  रोहिला क्षत्रिय समाज के उत्थान हेतु अनेक कार्य किए,आज वे भी पितृ स्थान पर ही पहुंच चुके है किंतु उनकी धर्मपत्नी डॉक्टर इंद्र जीत सिंह कौर आज भी चिकित्सा के क्षेत्र में उनके आशीर्वाद से ऊंचे आयाम पर है और दिन रात समाज सेवा को निस्वार्थ भाव से करती है,यह है डॉक्टर कर्णवीर सिंह रोहिला जी आत्मा को स्वयं के साथ महसूस करना और आशीर्वाद लेना।।
*सनातन धर्म की रक्षा के लिए उत्तर भारत का अकेला राजपूत वीर गंगा सिंह महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत को कलायत (कैथल) के mudahad राजपुतो को साथ लेकर दुर्रानी अब्दाली ,रुहेला नजीब खान से भिड़ गया था और मराठा सेनापति के रूप में वीर गति पाई थी उन्ही की स्मृति में अंबाहेटा नकूड तिराहे पर वीर गंगा सिंह महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत का स्मारक और उनकी रानी राम प्यारी देवी की सती समाधि बन कर तैयार किए जाने के प्रस्ताव आ रहे है,राजपूत स्मार्स्को को संरक्षित किया जा रहा है*
*तीर्थ नगरी हरिद्वार में उत्तराखंड में एक घाट जहा उनकी अस्थियां प्रवाहित हुई थी उस घाट का नाम होगा महाराजा रणवीर सिंह रोहिला घाट*।ये सभी सोच और कार्य सम्पादन ही उनकी अभिलाषा थी जिसे आप सभी  बड़ी आशा के साथ पूर्ण करेंगे ।।। 

डॉक्टर कर्ण वीर सिंह रोहिला अमर रहे।
 राजमाता रामकुमारी देवी अमर रहे।
डॉक्टर शालीन सिंह रोहिला अमर रहे।
डॉक्टर इंद्र जीत सिंह कौर जिंदाबाद।
जय जय भवानी
*जय जय राजपूताना*
*क्षत्रिय एकता जिंदाबाद*



          

MAHARAJA RANVEER SINGH ROHILA ROHILKHAND NARESH

*राजपुताना कठेहर रोहिलखंड*
के एक महान पराक्रमी योद्धा 
सूर्य वंशी क्षत्रिय सम्राट
*एक अजेय योद्धा*
*महाराजा रणवीर सिहं  रोहिला*

      *संक्षिप्त परिचय*
************************* *जन्म दिवस* 25 अक्टूबर, 1204 तदानुसार तत्कालीन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की प्रथमा तिथि संवत 1147 विक्रमी
#पिता* महाराज त्रिलोक सिंह जी
*************************
*वंश* _सूर्यवंश की निकुंभ शाखा 
वेद _यजुर वेद,उपवेद__धनुर्वेद,प्रवर_एक/तीन , शिखा_दाहिनी, पाद_दाहिनी,सूत्र _गुभेल,देवता__विष्णु (रघुनाथ जी), कुलदेवी _चावड़ा/कालिका माता,ध्वजा__गरुड़,नदी__सरयू,झंडा पंच रंगा,नगाड़ा_रण गंजन , ईष्ट_रघुनाथ/श्री राम चंद्र जी,उद्घोष_हर हर महादेव गोत्र_वशिष्ठ गुणधर्म _काठी (कठोर) गद्दी _ अयोध्या,ठिकाना__रावी व व्यास नदियों के बीच के काठे का क्षेत्र 
*************************
#राज्य विस्तार*
◆गंगा - यमुना दोआब क्षेत्र #दक्षिण पश्चिम में गंगा तक #पश्चिम में उत्तराखंड 
#उत्तर में नेपाल तक
*क्षेत्रफल* 25000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र या 10000 वर्ग मील क्षेत्र तक 

# सूबे* 
पांचाल, 
मध्यदेश,
कठेहर रोहिलखण्ड
*राजधानी* -रामपुर (निकट अहिक्षेत्र, रामनगर) कांपिल्य
##################
(तेहरवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध)

🔆सूर्यवंश🔆
***********************
#आइए इतिहास में चलें*
* इस्क्वाकू वंश में सूर्य वंशी महाराज निकुम्भ  के वंशधर ई●पू● 326 वर्ष कठगण राज्य (रावी नदी के काठे में) सिकन्दर का आक्रमण काल-राजधानी सांकल दुर्ग (वर्तमान स्यालकोट) 53 वीं पीढ़ी में  राजा अजयराव के वंशधर निकुम्भ वंशी राजस्थान अलवर, मंगल गढ़ जैसलमेर होते हुए गुजरात सौराष्ट्र कठियावाड , फिर पांचाल, मध्यदेश गये। 
*************************
*अलवर में दुर्ग निकुम्भ वंशी (कठ क्षत्रिय रावी नदी के काठे से विस्थापित कठ-ंगण) क्षत्रियों ने बनवाया (राज्य मंगल गढ़), सौराष्ट्र में काठियावाड़ की स्थापना की ।
*************************
 #मध्यदेश के उत्तरी पांचाल में कठेहर रोहिलखंड राज्य की स्थापन। यहां अहिक्षेत्र के पास रामनगर गांव मे राजधानी स्थापित की, ऊंचा गांव मझगांवा को सैनिक छावनी बनाया। यहां पर शासक हंसदेव, रहे, इनके पुत्र हंसबेध राजा बने-ं816 ई. तक- इसी वंश में राजा रामशाही (राम सिंह जी ) ने रामपुर गांव को एक नगर का रूप दिया और *909 ई में कठेहर- रोहिलखण्ड प्रान्त की राजधानी रामपुर में स्थापित की। 
#यहां पर कठ क्षत्रियों ने 11 पीढ़ी शासन किया इसी वंश में महापराक्रमी, विधर्मी संहारक राजा रणवीर
सिंह रोहिला का जन्म कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की प्रथमा तिथि तदानुसार 25 अक्टूबर 1204ईसवी को राजपूत काल के ऐसे समय में हुआ जब महराजा पृथ्वी राज चौहान के शासन अंत के कारण समस्त राजपूत शक्ति क्षीण हो चुकी थी ओर मुस्लिम आक्रांता इस्लामिक सल्तनत कायम करने में लगे थे बची हुई राजपूत शक्तियों का बहुत कठोरता ओर बर्बरता से दमन कर रहे  थे हिंदुआ सूर्य चौहान का शासन अस्त हो चुका था ।
वंश वृक्ष इस प्रकार पाया गया
रामपुर संस्थापक राजा राम सिंह उर्फ रामशाह 909 ई. में 966 विक्रमी , 3 पौत्र- बीजयराज 4. करणचन्द 5. विग्रह राज 6. सावन्त सिंह (रोहिलखण्ड का विस्तार गंगापार कर यमुना तक किया,) सिरसापाल के राज्य सरसावा में एक किले का निर्माण कराया। (दशवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध) नकुड रोड पर किले को आज यमुना द्वारा ध्वस्त एक टीले के रूप में देखा जा सकता है। 7. जगमाल 8 धिंगतराम 9 गोकुल सिंह 10 महासहाय 11 त्रिलोकसिंह 12रणवीर सिंह( 1204 ),नौरंग देव (पिंगू को परास्त किया) (राजपूत गजट लाहौर 04.06.1940 द्वारा डा0 
सन्त सिंह चैहान)
इक्कीस वर्ष की आयु में रामपुर के राजा त्रिलोक चंद उर्फ त्रिलोक सिंह के पुत्र रणवीर सिंह रोहिला का विवाह विजयपुर सीकरी की राजकुमारी तारा देवी से हुआ। रणवीर सिंह रोहिला का राजतिलक भी इसी वर्ष इक्कीस वर्ष की आयु में हुआ यानी 1225,ईसवी में हुआ ,इनकी लंबाई लगभग सात फीट थी, कंधो पर सीना कवच लगभग साठ शेर ,सिर पर कवच लोहे का इक्कीस सेर खड़ग का वजन 25, सेर ओर स्वयं उनका वजन 125 सेर था। सन् 1236से1240 तक रजया तुदीन सुल्तान सन 1242 मइजुद्दीन बहराम शाह सन,1246 अलाउद्दीन महमूद शाह आदि दिल्ली सुल्तान सेनाओं से राजा रणवीर सिंह रोहिला ने कठेहर रोहिलखंड का लोहा मनवाया ओर किसी भी दिल्ली सुल्तान मामुल्क को रोहिलखंड में प्रवेश नहीं होने दिया । इनके साथ विभिन्न राजवंशों के चौरासी अजेय योद्धा थे ,राठौड़, गोड, चौहान,वारेचा परमार गहलोत वच्छिल आदि थे वे सब लोहे के कवच धारी थे।
दिल्ली सुल्तान के 
गुलाम , सेनापति नासिरूद्दीन चंगेज उर्फ नासिरूद्दीन महमूद ने , सन् 1253 ई0,में दोआब, कठेहर, शिवालिक पंजाब, बिजनौर आदि क्षेत्रों पर विजय पाने के लिए दमनकारी अभियान किया। इतने अत्याचार , मारकाट तबाही मचाई कि विद्रोह करने वाले स्थानीय शासक, बच्चे व स्त्रियां भी सुरक्षित नहीं रही। ऐसी विषम परिस्थिति में रोहिल खण्ड के रोहिला शासकों ने दिल्ली सल्तनत के सूबेदार‘ ताजुल मुल्क इज्जूददीन डोमिशी‘ को मार डाला। दिल्ली सल्तनत के लिये यह घटना भीषण चुनौती समझी गई। इस समय रामपुर के राजा रणवीर सिंह थे । उन्होनें आस पास की समस्त राजपूत शक्तियों को एकता के सूत्र में बांधा ओर दिल्ली सल्तनत के विरूद्ध अपनी क्रान्तिकारी प्रवृत्ति को सजीव बनाये रखा था जिससे दिल्ली सुल्तान कठेहर पर आक्रमण करते हुए भय खाते थे ,नासिरूद्दीन महमूद बहराम गुलाम वंश ( उर्फ चंगेज) इस घटना से उद्वेलित हो उठा और सहारनपुर ‘ उशीनर प्रदेश‘ के मण्डावार व मायापुर से 1253 ई0 में गंगापार कर गया और विद्रोह को दबाता हुआ, रोहिलखण्ड को रौदता हुआ बदांयू पहुंचा। वहां उसे ज्ञात हुआ कि रामपुर में राजा रणवीर सिंह रोहिला के साथ लोहे के कवचधारी 84 रोहिले है जिनसे विजय पाना टेढ़ी खीर है। सूचना दिल्ली भेजी गई। दिल्ली दरबार में सन्नाटा हो गया कि एक छोटे राज्य कठेहर रोहिलखंड के रोहिलों से कैसे छीना जाए। नासिरूद्दीन चंगेज (महमूद) ने तलवार व बीड़ा उठाकर राजा रणवीर सिंह के साथ युद्ध करने की घोषणा की। रामपुर व पीलीभीत के बीच मैदान में नसीरुद्दीन व कठेहर नरेश सूर्य वंशी क्षत्रिय रणवीर सिंह की सेना के बीच भयंकर युद्ध हुआ, 6000 रोहिला राजपूत व 
 84 लोहे के कवचधारी रन्धेलवंशी सेना नायकों की सेना के सामने नासिरूद्दीन की तीस हजारी सेना के पैर उखड़ गये।
      नासिरूद्दीन चंगेज को बन्दी बना लिया गया। बची हुई सेना के हाथी व घोडे तथा एक लाख रूपये महाराज रणवीर सिंह को देने की प्रार्थना पर आगे ऐसा अत्याचार न करने की शपथ लेकर नासिरूद्दीन महमूद ने प्राण दान मांग लिया। क्षात्र धर्म के अनुसार शरणागत को अभयदान देकर राजा रणवीर सिंह ने उसे छोड़ दिया। परन्तु धोखेबाज महमूद जो राजा रणवीर सिंह पर विजय पाने का बीड़ा उठाकर दिल्ली से आया था, षडयंत्रों में लग गया। राजा रणवीर सिंह का एक दरबारी पं. गोकुलराम पाण्डेय था। उसे रामपुर का राजा नियुक्त करने का लालच देकर महमूद ने विश्वास में ले लिया और रामपुर के किले का भेद लेता रहा। पं. गोकुल राम ने लालच के वशीभूत होकर विधर्मी को बता दिया कि रक्षांबधन के दिन सभी राजपूत निःशस्त्र होकर शिव मन्दिर में शस्त्र पूजा करेंगें।यह शिव मन्दिर किले के दक्षिण द्वार के समीप है , यह सुनकर महमूद का चेहरा खिल उठा और दिल्ली से भारी सेना को मंगाकर जमावड़ा प्रारम्भ कर दिया रक्षाबन्धन का दिन आ गया। किले में उपस्थित सभी सैनिक, सेनाायक अपने-ंअपने शस्त्रों को उतार कर पूजा स्थान पर शिव मन्दिर ले जा रहे थे। गोकुल राम पाण्डेय यह सब सूचना विधर्मी तक पहुंचाता रहा। श्वेत ध्वज सामने रखकर दक्षिण द्वार पर पठानों की गुलामवंशी सेना एकत्र हो गयी। पूजा में तल्लीन राज पुत्रों को पाकर गोकुलराम पाण्डेय ने द्वार खोल दिया।
      शिव उपासना में रत सभी उपस्थितों को घेरे में ले लिया गया। समस्त राजपूत भौचक्के रह गए ओर मन्दिर से तुलसी का पत्ता लिया ओर मुंह में दबा कर शाका बोल दिया,घमासान युद्ध छिड़ गया परन्तु ऐसी गद्दारी के कारण राजा रणवीर सिंह ने निशस्त्र लड़ते हुए अदम्य साहस ओर शोर्य का परिचय दिया ओर महमूद के सैनिकों से भिड़ गए अद्भुत दृश्य था रणवीर सिंह चारो ओर से विधर्मी सैनिकों से घिरे युद्ध कर रहे थे विधर्मी की खड़ग छीन ली ओर आक्रांताओं के शीश कट कट गिरने लगे , उस समय रामपुर के किले में केवल तीन हजार राजपूत ही उपस्थित थे ओर वे भी निहत्थे रह गए थे सभी राजपूत बड़ी वीरता से लडे किन्तु संख्या में कम होने के कारण बिखर गए, रणवीर सिंह रोहिला की पीठ पर विधर्मी सेना ने तलवार से वार करके काट डाला ओर अंतिम बूंद रक्त की रहने तक रणवीर धराशाई नहीं हुए यह देख कर नसीरुद्दीन चकित रह गया देखते ही देखते कठेहर नरेश वीरगति को प्राप्त हुए। नासिरूद्दीन ने पं. गोकुल राम से कहा कि जिसका नमक खाया अब तुम उसी के नहीं हुए तो तुम्हारा भी संहार अनिवार्य है। नमक हरामी को जीने का हक नहीं है। गोकुल का धड़ भी सिर से अलग पड़ा था। सभी स्त्री बच्चों को लेकर रणवीर सिंह का भाई सूरत सिंह उर्फ सुजान सिंह किले से पलायन कर गया । महारानी तारादेवी जो विजय पुर सीकरी के राजा की पुत्री थी राजा रणवीर सिंह के साथ सती हो गई। 
रामपुर में किले के खण्डरात, सती तारादेवी का मन्दिर तथा उनका राजमहल अभी तक एक ध्वस्त टीले के रूप में मौजूद है, जो क्षात्र धर्म का परिचायक व रामपुर में रोहिला क्षत्रियों की कठ-शाखा के शासन काल की याद ताजा करता है जिन्होंने अपना सर्वस्व बलिदान कर क्षात्र धर्म की रक्षा की। गुलाम वंश, सल्तनत काल में विधर्मी की पराधीनता कभी स्वीकार नहीं की। अन्तिम सांस तक दिल्ली सल्तनत से युद्ध किया और कितनी ही बार धूल चटाई तथा रोहिलखण्ड को स्वतंत्र राज्य बनाये रखा। निरन्तर संघर्ष करते रहे राजा रणवीर सिंह का बलिदान व्यर्थ नहीं , सदैव तुगलक, मंगोल , मुगलों आदि से विद्रोह किया और स्वतंत्र रहने की भावना को सजीव रखा। राणा रणवीर सिंह के वंशधर आज भी रोहिला-ंक्षत्रियों में पाए जाते हे,जय राजपुताना कठेहर रोहिलखंड
उनकी पावन स्मृति को जीवित रखने व रोहिलखंड राजपुताना की वीर गाथा को सजीव बनाए रखने के लिए भारत का समस्त रोहिला क्षत्रिय राजपूत समाज रक्षा बन्धन को शोर्य दिवस तथा पच्चीस अक्टूबर को प्रतिवर्ष स्वाभिमान दिवस के रूप में मनाता हे ओर शस्त्र पूजा करता है । उत्तर भारत के महानगर बड़ौत में राजा रणवीर सिंह रोहिला मार्ग व ऐतिहासिक नगर सहारनपुर में आज महाराजा रण वीर सिंह रोहिला चौक स्थित है। (संदर्भ__इतिहास रोहिला राजपूत द्वारा डॉक्टर के सी सेन, रोहिला क्षत्रियों का क्रमबद्ध इतिहास द्वारा श्री दर्शन लाल रोहिला, रोहिला क्षत्रिय वंश भास्कर द्वारा आर आर राजपूत, रोहिला क्षत्रिय जाति निर्णय द्वारा राय भीम राज राजभाट बड़वा जी का बाड़ा तूंगा राजस्थान, काठी कठेरिया क्षत्रिय व रोहिला राजपूत द्वारा महेश सिंह कठाय त नेपाल , मध्य कालीन भारत द्वारा ठाकुर अजित सिंह परिहार बाला घाट मध्य प्रदेश  
संकलन व लेखन 
समय सिंह पुंडीर
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क्षत्रिय/राजपूत वाटिका
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा

*सनातन रक्षक,विधर्मी संहारक और लगभग तीस वर्ष तक आक्रांताओं द्वारा किए जा रहे इस्लामी करण को रोकने वाले राजपूत सम्राट रोहिलखंड नरेश महाराजा रणवीर सिंह रोहिला की जयंती सभी क्षत्रिय भाई स्वाधीनता और स्वाभिमान दिवस के रूप में मनाते हैं*

Some Facts From History (Rohilla Rajput)

गौरवशाली इतिहास के कुछ स्वर्णाक्षर (रोहिला क्षत्रिय)

  1. भारत वर्ष का क्षेत्रफल 42 ,02 ,500 वर्ग किमी था ।
  2. रोहिला साम्राज्य 25 ,000  वर्ग किमी 10 ,000  वर्गमील में फैला हुआ था ।
  3. रोहिला, राजपूतो की एक खाप, परिवार या परिजन- समूह है जो कठेहर - रोहिलखण्ड के शासक एंव संस्थापक थे |मध्यकालीन भारत में बहुत से राजपूत लडाको को रोहिला की उपाधि से विभूषित किया गया. उनके वंशज आज भी रोहिला परिवारों में पाए जाते हैं ।
  4. रोहिले- राजपूत प्राचीन काल से ही सीमा- प्रांत, मध्य देश (गंगा-yamuna का दोआब),रोहिलखंड पंजाब, काश्मीर, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश में शासन करते रहे हैं । जबकि मुस्लिम-रोहिला साम्राज्य अठारहवी शताब्दी में इस्लामिक दबाव के पश्चात् स्थापित हुआ. । अफगानों ने इसे उर्दू में "रूहेलखण्ड" कहा ।
  5. 1702 से 1720 ई तक रोहिलखण्ड  में रोहिले राजपूतो का ही शासन था. जिसकी राजधानी बरेली थी ।
  6. रोहिलखंड एक राजपूताना साम्राज्य है। रोहिलखंड एक शुद्ध हिंदी,संस्कृत और प्राकृत भाषा का शब्द है,अरेबिक या उर्दू शब्द नही है।
  7. रोहिले राजपूतो के महान शासक "राजा इन्द्रगिरी" ने रोहिलखण्ड की पश्चिमी सीमा पर रोहिलखंड विस्तार के समय सहारनपुर में एक किला बनवाया,जिसे "प्राचीन रोहिला किला" कहा जाता है । सन 1801 ई में रोहिलखण्ड को अंग्रेजो ने अपने अधिकार में ले लिया था. हिन्दू रोहिले-राजपुत्रो द्वारा बनवाए गये इस प्राचीन रोहिला किला को सन 1806  ईस्वी से सन1858  ईस्वी के मध्य कारागार में परिवर्तित कर दिया गया था । इसी प्राचीन- रोहिला- किला में आज सहारनपुर की जिला- कारागार है । उसके सामने महाराजा रणवीर सिंह रोहिला चौक स्थित है।
  8. "सहारन" राजपूतो का एक गोत्र है जो रोहिले राजपूतो में पाया जाता है. यह सूर्य वंश की एक प्रशाखा है जो राजा भरत  के वंशधरो से प्रचालित हुई थी ।
  9. फिरोज़ तुगलक के आक्रमण के समय "थानेसर" (वर्तमान में हरियाणा में स्थित) का राजा "सहारन" ही  था ।
  10. दिल्ली में गुलाम वंश के समय रोहिलखण्ड की राजधानी "रामपुर" में RANVEER SINGH ROHILA/KATHEHARIYA/ (काठी कोम, निकुम्भ वंश, सूर्यवंश रावी नदी के निकट से विस्थापित कठ गणों के वंशधर) का शासन था । इसी रोहिले राजा ने दिल्ली के सेनापति नसीरुद्दीन चंगेज को हराया था. 'खंड' kshtriyo से सम्बंधित है, जैसे भरतखंड, BUNDELKHAND, VIDHEYLKHAND , रोहिलखंड, KUMAYUNKHHAND, उत्तराखंड आदि ।
  11. प्राचीन भारत  की केवल दो भाषाएँ संस्कृत व प्राकृत (सरलीकृत संस्कृत) थी । रोहिल प्राकृत और खंड संस्कृत के शब्द हैं जो क्षत्रिय राजाओं के प्रमाण हैं । इस्लामिक नाम है दोलताबाद, कुतुबाबाद, मुरादाबाद, जलालाबाद, हैदराबाद, मुबारकबाद, फैजाबाद, आदि ।
  12. रोहिले राजपूतो की उपस्तिथि के प्रमाण हैं । योधेय गणराज्य के सिक्के, गुजरात का (1445 वि ) ' का शिलालेख (रोहिला मालदेव के सम्बन्ध में), उत्तर प्रदेश में स्थित रोहिलखंड रामपुर में राजा रणवीर सिंह के किले के खंडहर, रानी तारादेवी सती का मंदिर , पीलीभीत में राठौर रोहिलो (महिचा- प्रशाखा) की सतियों के मंदिर, कपिल मुनि स्थान पर कलायथ कैथल(हरियाणा)में वीर GANGA SINGH महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत   PANIPAT के तीसरे युद्ध KE YODHA की समाधि और उनकी रानी सती माता रामप्यारी का मंदिर जिसे क्षेत्र के सभी राजपूत मिलकर पूजते है। सहारनपुर का प्राचीन रोहिला किलाऔर उसके सामने स्थित क्षत्रिय सम्राट MAHA RAJA RANVEER SINGH ROHILA  चौक, मंडोर का शिलालेख, " बड़ौत  में स्तिथ " RAJA RANVEER SINGH ROHILA MARG"
          नगरे नगरे ग्रामै ग्रामै  विलसन्तु संस्कृतवाणी ।
          सदने  - सदने जन - जन बदने , जयतु चिरं कल्याणी ।।
          जोधपुर का शिलालेख, प्रतिहार शासक  HARISH CHANDRA को मिली रोहिल्लाद्व्यंक की उपाधि, कई अन्य
          राजपूतो के वंशो को प्राप्त उपाधियाँ, 'पृथ्वीराज रासो', आल्हाखण्ड - काव्य सभी राजपूत वंशो में पाए
          जाने वाले प्रमुख गोत्र ।
          अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा भारत द्वारा प्रकाशित पावन ग्रन्थ क्षत्रिय वंशाणर्व (रोहिले क्षत्रियों का
          राज्य रोहिलखण्ड  का पूर्व नाम पांचाल व मध्य देश, वर्तमान में अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा से
          अखिल भारतीय रोहिला.क्षत्रिय विकास परिषद रजिस्टर्ड को संबद्धता प्राप्त होना,। वर्तमान में भी रोहिलखण्ड (संस्कृत भाषा में)
          क्षेत्र का नाम यथावत बने रहना, अंग्रेजो द्वारा भी उत्तर रेलवे को "रोहिलखण्ड - रेलवे" का नाम देना जो
          बरेली से देहरादून तक सहारनपुर होते हुए जाती थी, वर्तमान में लाखो की संख्या में पाए जाने वाले
          रोहिला-राजपूत, रोहिले-राजपूतों के सम्पूर्ण भारत में फैले हुए कई अन्य संगठन अखिल भारतीय स्तर
          पर 'राजपूत रत्न' रोहिला शिरोमणि डा. कर्णवीर सिंह द्वारा संगठित एक अखिल भारतीय रोहिला
          क्षत्रिय विकास परिषद पंजीकृत (सम्बद्ध अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा) पंजीकरण संख्या - 545, आदि।
   12.  पानीपत की तीसरी लड़ाई में रोहिले राजपूत- राजा गंगासहाय/गंगा सिंह राठौर (महेचा) के नेतृत्व में
          मराठों
          की ओर से अफगान आक्रान्ता अहमदशाह अब्दाली व रोहिला पठान नजीबदौला के विरुद्ध लड़े व
          वीरगति पाई । इस मराठा युद्ध में लगभग एक हजार चार सौ रोहिले राजपूत वीरगति को प्राप्त हुए ।
           (इतिहास -रोहिला-राजपूत)
   13.  प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 में भी रोहिले राजपूतों ने अपना योगदान दिया, ग्वालियर के किले में रानी
          लक्ष्मीबाई को हजारों की संख्या में रोहिले राजपूत मिले, इस महायज्ञ में स्त्री पुरुष सभी ने अपने गहने
          धन  आदि एकत्र कर झाँसी की रानी के साथ अंग्रेजो के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए सम्राट बहादुरशाह-
          जफर तक पहुँचाए । अंग्रेजों ने ढूँढ-ढूँढ कर उन्हें काट डाला जिससे रोहिले राजपूतों ने अज्ञातवास की
          शरण ली।
   14.  राजपूतों की हार के प्रमुख कारण थे हाथियों का प्रयोग, सामंत प्रणाली व आपसी मतभेद, ऊँचे व
          भागीदार कुल का भेदभाव (छोटे व बड़े की भावना) आदि।
   15.  सम्वत 825 में बप्पा रावल चित्तौड़ से विधर्मियों को खदेड़ता हुआ ईरान तक गया। बप्पा रावल से समर
          सिंह तक 400 वर्ष होते हैं, गह्लौतों का ही  शासन रहा। इनकी 24 शाखाएँ हैं। जिनके 16 गोत्र (बप्पा
          रावल के वंशधर) रोहिले राजपूतों में पाए जाते हैं।
   16.  चितौड़ के राणा समर सिंह (1193 ई.) की रानी पटना की राजकुमारी थी इसने 9 राजा, 1 रावत और कुछ
          रोहिले साथ लेकर मौ. गोरी के गुलाम कुतुबद्दीन का आक्रमण रोका और उसे ऐसी पराजय दी कि कभी
          उसने चितौड़ की ओर नही देखा।
   17.  रोहिला शब्द क्षेत्रजनित, गुणजनित व 'मूल पुरुष' नाम-जनित है। यह गोत्र जाटों में भी रूहेला, रोहेला,
          रूलिया, रूहेल , रूहिल, रूहिलान नामों से पाया जाता है।
   18.  रूहेला गोत्र जाटों में राजस्थान व उ. प्र. में पाया जाता है। रोहेला गोत्र के जाट जयपुर में बजरंग बिहार
          ओर ईनकम टैक्स कालोनी टौंक रोड में विद्यमान है। झुनझुन, सीकर, चुरू, अलवर, बाडमेर में भी 
          रोहिला गोत्र के जाट विद्यमान हैं । उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में रोहेला गोत्र के जाटों के बारह 
          गाँव हैं। महाराष्ट्र में रूहिलान गोत्र के जाट वर्धा में केसर व खेड़ा गाँव में विद्यमान हैं।,रोहतक और भिवानी में रोहिल, रूहिल उपनाम के जाट विद्यमान है।
   19.  मुगल सम्राट अकबर ने भी राजपूत राजाओं को विजय प्राप्त करने के पश्चात् रोहिला-उपाधि से
          विभूषित किया था, जैसे राव, रावत, महारावल, राणा, महाराणा, रोहिल्ला, रहकवाल आदि।
   20.  "रोहिला-राजपूत" समाज , क्षत्रियों का वह परिवार है जो सरल ह्रदयी, परिश्रमी,राष्ट्रप्रेमी,स्वधर्मपरायण,
          स्वाभिमानी व वर्तमान में अधिकांश अज्ञातवास के कारण साधनविहीन है। 40 प्रतिशत कृषि कार्य से,30
          प्रतिशत श्रम के सहारे व 30 प्रतिशत व्यापार व लघु उद्योगों के सहारे जीवन यापन कर रहे हैं। इनके 
          पूर्वजो ने हजारों वर्षों तक अपनी आन, मान, मर्यादा की रक्षा के लिए बलिदान दिए हैं और अनेको 
          आक्रान्ताओं को रोके रखने में अपना सर्वस्व मिटाया है । गणराज्य व लोकतंत्रात्मक व्यवस्था को
          सजीव बनाये रखने की भावना के कारण वंश परंपरा के विरुद्ध रहे, करद राज्यों में भी स्वतंत्रता बनाये
          रखी । कठेहर रोहिलखण्ड की स्थापना से लेकर सल्तनत काल की उथल पुथल, मार काट , दमन चक्र
          तक लगभग आठ सौ वर्ष के शासन काल के पश्चात् 1857 के ग़दर के समय तक रोहिले राजपूतों ने
          राष्ट्रहित में बलिदान दिये हैं। क्रूर काल के झंझावालों से संघर्ष करते हुए क्षत्रियों का यह 'रोहिला परिवार'
          बिखर गया है, इस समाज की पहचान के लिए भी आज स्पष्टीकरण देना पड़ता है। कैसा दुर्भाग्य है? यह
          क्षत्रिय वर्ग का। जो अपनी पहचान को भी टटोलना पड़ रहा है। परन्तु समय के चक्र में सब कुछ सुरक्षित
          है। इतिहास के दर्पण में थिरकते चित्र, बोलते हैं, अतीत झाँकता है, सच सोचता है कि उसके होने के
          प्रमाण धुंधले-धुंधले से क्यों हैं? हे- क्षत्रिय तुम धन्य हो, पहचानो अपने प्रतिबिम्बों को' -
          "क्षत्रिय एकता का बिगुल फूँक 
           सब धुंधला धुंधला छंटने दो।
           हो अखंड भारत के राजपुत्र 
           खण्ड खण्ड में न सबको बंटने दो ।।"
    21.  रोहिलखण्ड से विस्थापित इन रोहिला परिवारों में राजपूत परम्परा के कुछ प्रमुख गोत्र इस प्रकार पाए
           जाते हैं :-
  1. रोहिला, रोहित, रोहिल, रावल, द्रोहिया, रल्हन, रूहिलान, रौतेला , रावत 
  2. यौधेय, योतिक, जोहिया, झोझे, पेशावरी 
  3. पुण्डीर, पांडला, पंढेर, पुन्ड़ेहार, पुंढीर, पुंडाया  
  4. चौहान, जैवर, जौडा, चाहल, चावड़ा, खींची, गोगद, गदाइया, सनावर, क्लानियां, चिंगारा, चाहड बालसमंद, चोहेल, चेहलान, बालदा, बछ्स (वत्स), बछेर, चयद, झझोड, चौपट, खुम्ब, जांघरा, जंगारा, झांझड    
  5. निकुम्भ, कठेहरिया, कठौरा, कठैत, कलुठान, कठपाल, कठेडिया, कठड, काठी, कठ, पालवार 
  6. RATHOD महेचा, महेचराना धांधल, रतनौता, बंसूठ जोली, जोलिए, बांकटे, बाटूदा, थाथी, कपोलिया, खोखर, अखनौरिया ,लोहमढ़े, मसानिया 
  7. BUNDELA, उमट, ऊमटवाल 
  8. , भारती, गनान 
  9. नाभावंशी,बटेरिया, बटवाल, बरमटिया 
  10. परमार, जावडा, लखमरा, मूसला, मौसिल, भौंसले, बसूक, जंदडा, पछाड़, पंवारखा, ढेड, मौन 
  11. तोमर, तंवर, मुदगल, देहलीवाल, किशनलाल, सानयाल, सैन, सनाढय 
  12. GEHLOT, कूपट, पछाड़, थापा, ग्रेवाल, कंकोटक, गोद्देय, पापडा, नथैड़ा, नैपाली, लाठिवाल, पानिशप, पिसोण्ड, चिरडवाल, नवल, चरखवाल, साम्भा, पातलेय, पातलीय, छन्द (चंड), क्षुद्रक,(छिन्ड, इन्छड़, नौछड़क), रज्जडवाल, बोहरा, जसावत, गौर, मलक, मलिक, कोकचे, काक 
  13. कछवाहा, कुशवाहा, कोकच्छ, ततवाल, बलद, मछेर 
  14. सिसौदिया, भरोलिया, बरनवाल, बरनपाल, बहारा 
  15.  खुमाहड, अवन्ट, ऊँटवाल
  16. सिकरवार, रहकवाल, रायकवार, ममड, गोदे 
  17. सोलंकी, गिलानिया, भुन, बुन, बघेला, ऊन, (उनयारिया)
  18. बडगूजर, सिकरवार, ममड़ा, पुडिया 
  19. कश्यप, काशब, रावल, रहकवाल 
  20. यदु, मेव, छिकारा, तैतवाल, भैनिवाल, उन्हड़, भाटटी बनाफरे, जादो, बागड़ी, सिन्धु, कालड़ा, सारन, छुरियापेड, लखमेरिया, चराड, जाखड़, सेरावत, देसवाल, पूडिया 
प्रमुख रोहिला क्षत्रिय शासक
  1. अंगार सैन  - गांधार (वैदिक काल)
  2. अश्वकरण - ईसा पूर्व 326 (मश्कावती दुर्ग)
  3. अजयराव - स्यालकोट (सौकंल दुर्ग) ईसा पूर्व 326
  4. प्रचेता - मलेच्छ संहारक 
  5. शाशिगुप्त - साइरस के समकालीन 
  6. सुभाग सैन - मौर्य साम्राज्य के समकालीन 
  7. राजाराम शाह - 929 वि. रामपुर रोहिलखण्ड 
  8. बीजराज - रोहिलखण्ड
  9. करण चन्द्र - रोहिलखण्ड
  10. विग्रह राज - रोहिलखण्ड - गंगापार कर स्रुघ्न जनपद (सुगनापुर) यमुना तक विस्तार दसवीं शताब्दी में सरसावा में किले का निर्माण पश्चिमी सीमा पर, यमुना द्वारा ध्वस्त टीले के रूप में नकुड़ रोड पर देखा जा सकता है।
  11. सावन्त सिंह - रोहिलखण्ड
  12. जगमाल - रोहिलखण्ड
  13. धिंगतराव - रोहिलखण्ड
  14. गोंकुल सिंह - रोहिलखण्ड
  15. महासहाय - रोहिलखण्ड
  16. त्रिलोक चन्द - रोहिलखण्ड
  17. रणवीर सिंह - रोहिलखण्ड
  18. सुन्दर पाल - रोहिलखण्ड
  19. नौरंग देव - रोहिलखण्ड
  20. सूरत सिंह - रोहिलखण्ड
  21. हंसकरण रहकवाल - पृथ्वीराज के सेनापति 
  22. मिथुन देव रायकवार - ईसम सिंह पुण्डीर के मित्र थाना भवन शासक 
  23. सहकरण, विजयराव - उपरोक्त 
  24. राजा हतरा - हिसार 
  25. जगत राय - बरेली 
  26. मुकंदराज - बरेली 1567 ई.
  27. बुधपाल - बदायुं 
  28. महीचंद राठौर - बदायुं
  29. बांसदेव - बरेली 
  30. बरलदेव - बरेली
  31. राजसिंह - बरेली
  32. परमादित्य - बरेली
  33. न्यादरचन्द - बरेली
  34. राजा सहारन - थानेश्वर 
  35. प्रताप राव खींची (चौहान वंश) - गागरोन 
  36. राणा लक्ष्य सिंह - सीकरी 
  37. रोहिला मालदेव - गुजरात 
  38. जबर सिंह - सोनीपत 
  39. रामदयाल महेचराना - कलायत
  40. गंगसहाय - महेचराना *कलायत* 1761 ई.
  41. राणा प्रताप सिंह - कौराली (गंगोह) 1095 ई.
  42. नानक चन्द - अल्मोड़ा 
  43. राजा पूरणचन्द - बुंदेलखंड 
  44. राजा हंस ध्वज - हिसार व राजा हरचंद 
  45. राजा बसंतपाल - रोहिलखण्ड व्रतुसरदार, सामंत वृतपाल 1193 ई.
  46. महान सिंह बडगूजर - बागपत 1184 ई.
  47. राजा यशकरण - अंधली 
  48. गुणाचन्द - जयकरण - चरखी - दादरी 
  49. राजा मोहनपाल देव - करोली 
  50. राजारूप सैन - रोपड़ 
  51. राजा महपाल पंवार - जीन्द 
  52. राजा परपदेड पुंडीर - लाहौर 
  53. राजा लखीराव - स्यालकोट 
  54. राजा जाजा जी तोमर - दिल्ली 
  55. खड़ग सिंह - रोहिलखण्ड लौदी के समकालीन 
  56. राजा हरि सिंह - खिज्रखां के दमन का शिकार हुआ - कुमायुं की पहाड़ियों में अज्ञातवास की शरण ली 
  57. राजा इन्द्रगिरी (रोहिलखण्ड) (इन्द्रसेन) - सहारनपुर में प्राचीन रोहिला किला बनवाया । रोहिला क्षत्रिय वंश भास्कर लेखक आर. आर. राजपूत मुरसेन अलीगढ से प्रस्तुत 
  58. राजा बुद्ध देव रोहिला - 1787 ई., सिंधिया व जयपुर के कछवाहो के खेड़ा व तुंगा के मैदान में हुए युद्ध का प्रमुख पात्र । (राय कुँवर देवेन्द्र सिंह जी राजभाट, तुंगा (राजस्थान)

रोहिल्ला उपाधि - शूरवीर, अदम्य - साहसी विशेष युद्ध कला में प्रवीण, उच्च कुलीन सेनानायको, और सामन्तों को उनके गुणों के अनुरूप क्षत्रिय वीरों को तदर्थ उपाधि से विभूषित किया जाता था - जैसे - रावत - महारावत, राणा, महाराणा, ठाकुर, नेगी, रावल, रहकवाल, रोहिल्ला, समरलछन्द, लखमीर,(एक लाख का नायक) आदि। इसी आधार पर उनके वंशज भी आजतक राजपूतों के सभी गोत्रों में पाए जाते हैं।
"वभूव रोहिल्लद्व्यड्कों वेद शास्त्रार्थ पारग: । द्विज: श्री हरि चन्द्राख्य प्रजापति समो गुरू : ।।2।।
    ( बाउक का जोधपुर लेख )
- सन 837 ई. चैत्र सुदि पंचमी - हिंदी अर्थ  - "वेद शास्त्र में पारंगत रोहिल्लाद्धि उपाधिधारी एक हरिश्चन्द्र  नाम का ब्राह्मण था" जो प्रजापति के समान था हुआ ।।6।।
( गुज्जर गौरव मासिक पत्रिका - अंक 10, वर्ष ।।माह जौलाई 1991 पृष्ठ - 13) (राजपुताने का इतिहास पृष्ठ - 147) (इतिहास रोहिला - राजपूत पृष्ठ - 23) (प्राचीन भारत का इतिहास, राजपूत वंश, - कैलाश - प्रकाशन लखनऊ सन 1970 ई. पृष्ठ - 104 -105 - )
रोहिल्लद्व्यड्क रोहिल्लद्धि - अंक वाला या उपाधि वाला ।
सर्वप्रथम प्रतिहार शासक द्विज हरिश्चन्द्र को रोहिल्लद्धि उपाधि प्राप्त हुई । बाउक,प्रतिहार शासक विप्र हरिश्चन्द्र के पुत्र कवक और श्रीमति पदमनी का पुत्र था वह बड़ा पराक्रमी और नरसिंह वीर था।
प्रतिहार एक पद है, किसी विशेष वर्ण का सूचक नही है। विप्र हरिश्चन्द्र प्रतिहार अपने बाहुबल से मांडौर दुर्ग की रक्षा करने वाला था, अदम्य साहस व अन्य किसी विशेष रोहिला शासक के प्रभावनुरूप ही रोहिल्लद्व्यड्क उपाधि को किसी आधार के बिना कोई भी व्यक्ति अपने नाम के साथ सम्बन्ध करने का वैधानिक रूप में अधिकारी नही हो सकता।
उपरोक्त से स्पष्ट है कि बहुत प्राचीन काल से ही गुणकर्म के आधार पर क्षत्रिय उपाधि "रोहिल्ला" प्रयुक्त । प्रदत्त करने की वैधानिक व्यवस्था थी। जिसे हिन्दुआसूर्य - महाराजा पृथ्वीराज चौहान ने भी यथावत रखा। पृथ्वीराज चौहान की सेना में एक सौ रोहिल्ला - राजपूत सेना नायक थे । "पृथ्वीराज रासौ" -
चहूँप्रान, राठवर, जाति पुण्डीर गुहिल्ला । बडगूजर पामार, कुरभ, जागरा, रोहिल्ला ।। इस कवित्त से स्पष्ट है । कि - प्राचीन - काल में रोहिला- क्षत्रियों का स्थान बहुत ऊँचा था। रोहिला रोहिल्ल आदि शब्द राजपुत्रों अथवा क्षत्रियों के ही द्योतक थे । इस कवित्त के प्रमाणिकता "आइने अकबरी", 'सुरजन चरिता' भी सिद्ध करते हैं । युद्ध में कमानी की तरह (रोह चढ़ाई करके) शत्रु सेना को छिन्न - भिन्न करने वाले को रहकवाल, रावल, रोहिल्ला, महाभट्ट कहा गया है।
महाराज पृथ्वीराज चौहान की सेना में पांच गोत्रों के रावल थे -
  1. रावल - रोहिला 
  2. रावल - सिन्धु 
  3. रावल - घिलौत (गहलौत)
  4. रावल -  काशव या कश्यप 
  5. रावल - बलदया बल्द
मुग़ल बादशाह अकबर ने भी बहादुरी की रोहिल्ला उपाधि को यथावत बनाए रखा जब अकबर की सेना दूसरे  राज्यों को जीत कर आती थी तो अकबर अपनी सेना के सरदारों को,बहादुर जवानों बहादुरी के पदक (ख़िताब,उपाधि) देता था। एक बार जब महाराणा मान सिंह काबुल जीतकर वापिस आए तो अकबर ने उसके बाइस राजपूत सरदारों को यह ख़िताब दी (उपाधि से सम्मानित किया)
  1. बाई तेरा हर निरकाला रावत को - रावल जी 
  2. चौमकिंग सरनाथा को - रावल 
  3. झंड्कारा कांड्कड को - रोहिल्ला 
  4. रावत मन्चारा - कांड्कड काम करन, निरकादास रावत को रावराज और रूहेलाल को रोहिला 
  5. स्वतंत्र रोहिलखंड राज्य संस्थापक महाराजा RANVEER SINGH ROHILA 
  6. रक्षा बंधन के दिन रोहिलखंड की वीर भूमि गंगा सी पवित्र राजपूतों के रक्त से रंजित और आक्रांताओं के काल की धरती रामपुर के किले में दिया था कठेहर रोहिलखंड नरेश,महाराजा रणवीर सिंह रोहिला ने अदम्य साहस और अद्भुत शौर्य का परिचय!,दिल्ली सुलतान नासीरुद्दीन बहराम उर्फ चंगेज की चालीस हजार की सेना को दी थी शिकस्त!**तथा घुटने टेकने पर मजबूर किया था दिल्ली सल्तनत का दुर्दांत खूंखवार सेनापति नसीरुद्दीन महमूद को और प्राणदान मांगने पर क्षात्र धर्म रक्षार्थ छोड़ा था।**चंगेज ने अवसर पाकर रक्षा बंधन के दिन दरबारी गोकुल चंद पांडे हरिद्वार को लालच देकर किले के द्वार खुलवा लिए *धोखे के शिकार लगभग तीन हजार राजपूत निहत्थे ही लड़े,!आक्रमण कारियो के अस्त्र शस्त्र छीन छीन किया था शौर्य संग्राम दिल्ली सल्तनत की लगभग आधी गुलाम वंशी सेना को काट डाला था रोहिला राजपूतो ने!!अंत में चंगेज के खूंखवार दरिंदो ने अकेले में घेर लिया था RANVEER SINGH ROHILA को, जिन्हे आमने सामने की लड़ाई में दिल्ली सुलतान कभी नही हरा पाए थे किंतु वे उनके साहस से विस्मित हुए बिना नहीं रह सके ।रणवीर रणभूमि के वीर सपूत रक्त की अंतिम बूंद रहने तक संग्राम रत रहे और कतरा कतरा हो कर खेत रहे(सन 1254ईस्वी),उनका बलिदान रोहिलखंड के राजपूताना इतिहास में स्वर्णाक्षर दे गया!,समस्त राजपूत समाज रक्षा बंधन के दिन हुए इस बलिदान को एक शोर्य दिवस के रूप में मनाता आया है,यूट्यूब पर और अन्य सोसल मीडिया पर स्वतंत्र रोहिलखंड संस्थापक नरेश महाराजा RANVEER SINGH ROHILA की वीर गाथा दी हुई है,सभी क्षत्रिय जन अपने बच्चो को दिखाए ताकि सल्तनत काल में १२५४ ईसवी के इस इतिहास के धुंधले पृष्ठ भी उकेरे जा सके*, रक्षा बंधन को उनका बलिदान दिवस मनाया जाता है,समस्त क्षत्रिय समाज इस SHOURYA दिवस पर उन्हे कोटि कोटि नमन करते हुए उनके। बताए मार्ग पर स्वाधीनता और स्वाभिमान से स्वधर्म रक्षार्थ जीने की शपथ लेता है,यह सच्चाई हमसे स्कूली शिक्षा में छुपाई गई किंतु इतिहास के दर्पण में सब सुरक्षित रहता है जिसे उजागर कर भावी पीढ़ी को बताना ही हरेक क्षत्रिय का नैतिक दायित्व है अतः आप सभी क्षत्रियों से निवेदन है कि भावी पीढ़ी को सच्चाई बताए और स्वाभिमान से जीना दिखाए।।
  7. सूर्य वंशी निकुंभ क्षत्रिय महाराजा RANVEER SINGH ROHILA का जन्म हिंदूवा सूर्य महाराज पृथ्वी राज चौहान के पतन के बाद दिल्ली सल्तनत के बढ़ते कदमों के बीच ऐसे समय में सन१२०४ईस्वी में कठेहर रोहिलखंड की राजधानी रामपुर के किले में राजा त्रिलोक सिंह के यहां हुआ था, जब सभी राजपूत शक्तियां क्षीण और तितर बितर हो चुकी थी,इस्लामिक आक्रांता मध्य भारत की ओर दमन करते हुए आगे बढ़ते रहते थे।।,रणवीर सिंह रोहिला का विवाह विजय पुर सीकरी की राजकुमारी तारा देवी से हुआ तथा पच्चीस वर्ष की आयु में रामपुर की गद्दी पर विराजमान होकर इस्लामीकरण पर रोक लगाई ।। तीस सालों तक दिल्ली सुलतानो को धूल चटाई किंतु रक्षा बंधन के दिन शिव मंदिर गए राजपूतों को रक्षा सूत्र बंधवाते हुए नसीरुद्दीन बहराम ने गोकुल चंद पांडे के द्वारा किले के द्वार खोलने पर घेर लिया और फिर होगया ADBHUT SHOURYA SANGRAM .. विस्तार  भय से संक्षिप्त गाथा वर्णित है जिसे चाटुकार मुगल कालीन और ब्रिटिश इतिहास कारो ने छिपाया*
  8. रोहिलखंड एक राजपूताना राज्य
कन्नौज पतन के बाद रोहिलखण्ड राज्य की स्थापना कठेहरिया राजा राम शाह उर्फ रामसिंह ने की थी अहिक्षेत्र काम्पिल्य के एक गॉंव रामनगर को रामपुर नगर बसाया ओर यह क्षत्रिय राजा राम के नाम पर रखा गया था यहाँ रोहिले राजपूतो ने 11 पीढ़ी लगातार शासन किया राजा रणवीर सिंह रोहिला ने नाइरुद्दीन महमूद,, ओर हरिसिंह रोहिला ने खिज्रखान को धूल चटाई नोरंगदेव ने पिंगू(तैमूर  लंग)को हराया ।।।san ईस्वी के बाद भी कभी भी पूर्णतया रोहिलखंड को दिल्ली दरबार नही जीत पाया अकबर ओर बाद में औरंगजेब ने चाल चली और अफगानों की घुसपैठ करनी आबादी बढ़ानी शुरू की सन 1707ईस्वी में दाऊद खान बरेच अफगान के जाट दत्तक पुत्र जिसका नाम अलीमुहम्मद रखा था ने धोखे से बरेली में रोहिला राजा हरननंद का कत्ल किया और सम्पूर्ण रोहिलखण्ड पर अधिकार कर लिया इन अफगानों ने भी रोहिलखण्ड के नवाब बन जाने के कारणों से स्वयम को रुहेला  सरदार कहा वास्तव में ये रोहिला नही थे जैसे कि रोह देश के अफगान लिखा यह गलत है ।।जिस काल  में अफगान आए  तब अफगानिस्तान को रोह देश नही कहा जाता था ।।
 यह झूठा मुस्लिम तुष्टि करण का इतिहास है ।।16वी सदी में जगत सिंह कठेहरिया रोहिल्ला राजपूत के पुत्रों बाँसदेव व बर्लदेव के नाम पर बरेली नगर की नीव रखी गयी अफगानों ने कोई नगर नही बसाया उन्होंने अपने  काल मे ही  रामपुर का  नाम राम के नाम पर नही रखा। यह भ्रामक झूठ है कि फैज उल्ला खान ने रामपुर को बसाया था अठारहवीं सदी में जबकि रामपुर रियासत की स्थापना दसवीं सदी में राजा रामसिंह रोहिला(काठी कोम के राजपूत) ने की थी
संदर्भ 
इतिहास रोहिला राजपूत
 डॉक्टर के सी सैन
रोहिला क्षत्रिय वंश भास्कर
आर आर राजपूत
कठेहरिया रोहिला राजपूत
रोहिला क्षत्रियों का क्रमबद्ध इतिहास
दर्शन लाल रोहिला
मध्य कालीन भारत का इतिहास
ठाकुर अजीत सिंह परिहार
बालाघाट मध्य प्रदेश आदि बहुत क्षत्रिय वंशावलियों में उपलबद्ध है।।