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Thursday, 2 October 2025

राजपूताना कठेहर रोहिलखंड के क्षत्रिय सम्राट सूर्य वंश की निकुंभ शाखा के महाराजा रणवीर सिंह रोहिला

*राजपुताना कठेहर रोहिलखंड*
के एक महान पराक्रमी योद्धा 
सूर्य वंशी क्षत्रिय सम्राट
*एक अजेय योद्धा*
*महाराजा रणवीर सिहं कठेहरिया रोहिला*

      *संक्षिप्त परिचय*
************************* *जन्म दिवस* 25 अक्टूबर, 1204 तदानुसार तत्कालीन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की प्रथमा तिथि संवत 1147 विक्रमी
#पिता* महाराज त्रिलोक सिंह जी काठी क्षत्रिय 
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*वंश* _सूर्यवंश की निकुंभ शाखा 
वेद _यजुर वेद,उपवेद__धनुर्वेद,प्रवर_एक/तीन , शिखा_दाहिनी, पाद_दाहिनी,सूत्र _गुभेल,देवता__विष्णु (रघुनाथ जी), कुलदेवी _चामुंडा/कालिका माता,ध्वजा__गरुड़,नदी__सरयू,झंडा पंच रंगा,नगाड़ा_रण गंजन , ईष्ट_रघुनाथ/श्री राम चंद्र जी,उद्घोष_हर हर महादेव गोत्र_वशिष्ठ गुणधर्म _काठी (कठोर) गद्दी _ अयोध्या,ठिकाना__रावी व व्यास नदियों के बीच के काठे का क्षेत्र 
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#राज्य विस्तार*
◆गंगा - यमुना दोआब क्षेत्र #दक्षिण पश्चिम में गंगा तक #पश्चिम में उत्तराखंड 
#उत्तर में नेपाल तक
*क्षेत्रफल* 25000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र या 10000 वर्ग मील क्षेत्र तक 

# सूबे* 
पांचाल, 
मध्यदेश,
कठेहर रोहिलखण्ड
*राजधानी* -रामपुर (निकट अहिक्षेत्र, रामनगर) कांपिल्य
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(तेहरवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध)

🔆सूर्यवंश🔆
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#आइए इतिहास में चलें*
* इस्क्वाकू वंश में सूर्य वंशी महाराज निकुम्भ के वंशधर ई●पू● 326 वर्ष कठगण राज्य (रावी नदी के काठे में) सिकन्दर का आक्रमण काल-राजधानी सांकल दुर्ग (वर्तमान स्यालकोट) 53 वीं पीढ़ी में राजा अजयराव के वंशधर निकुम्भ वंशी राजस्थान अलवर, मंगल गढ़ जैसलमेर होते हुए गुजरात सौराष्ट्र कठियावाड , फिर पांचाल, मध्यदेश गये। 
* एक टुकड़ी नेपाल गई
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*अलवर में दुर्ग निकुम्भ वंशी (कठ क्षत्रिय रावी नदी के काठे से विस्थापित कठ-ंगण जिन्होंने सिकंदर को घुटने टेकने पर मजबूर किया था) क्षत्रियों ने बनवाया (राज्य मंगल गढ़), सौराष्ट्र में काठियावाड़ की स्थापना की ।
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 #मध्यदेश के उत्तरी पांचाल में कठेहर रोहिलखंड राज्य की स्थापन। यहां अहिक्षेत्र के पास रामनगर गांव मे राजधानी स्थापित की, ऊंचा गांव मझगांवा को सैनिक छावनी बनाया। यहां पर शासक हंसदेव, रहे, इनके पुत्र हंसबेध राजा बने-ं816 ई. तक- इसी वंश में राजा रामशाही (राम सिंह जी ) ने रामपुर गांव को एक नगर का रूप दिया और *909 ई में कठेहर- रोहिलखण्ड प्रान्त की राजधानी रामपुर में स्थापित की। 
#यहां पर कठ क्षत्रियों ने 11 पीढ़ी शासन किया इसी वंश75 में महापराक्रमी, विधर्मी संहारक राजा रणवीर
सिंह कठेहरियारोहिला का जन्म कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की प्रथमा तिथि तदानुसार 25 अक्टूबर 1204ईसवी को राजपूत काल के ऐसे समय में हुआ जब महराजा पृथ्वी राज चौहान के शासन अंत के कारण समस्त राजपूत शक्ति क्षीण हो चुकी थी ओर मुस्लिम आक्रांता इस्लामिक सल्तनत कायम करने में लगे थे बची हुई राजपूत शक्तियों का बहुत कठोरता ओर बर्बरता से दमन कर रहे थे हिंदुआ सूर्य चौहान का शासन अस्त हो चुका था ।
वंश वृक्ष इस प्रकार पाया गया
रामपुर संस्थापक राजा राम सिंह उर्फ रामशाह 909 ई. में 966 विक्रमी , 3 पौत्र- बीजयराज 4. करणचन्द 5. विग्रह राज 6. सावन्त सिंह (रोहिलखण्ड कठेहर का विस्तार गंगापार कर यमुना तक किया,) सिरसापाल के राज्य सरसावा में एक किले का निर्माण कराया। (दशवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध) नकुड रोड पर किले को आज यमुना द्वारा ध्वस्त एक टीले के रूप में देखा जा सकता है। 7. जगमाल 8 धिंगतराम 9 गोकुल सिंह 10 महासहाय 11 त्रिलोकसिंह 12रणवीर सिंह( 1204 ),नौरंग देव (पिंगू को परास्त किया) (राजपूत गजट लाहौर 04.06.1940 द्वारा डा0 
सन्त सिंह चैहान)
इक्कीस वर्ष की आयु में रामपुर के राजा त्रिलोक चंद उर्फ त्रिलोक सिंह के पुत्र रणवीर सिंह रोहिला का विवाह विजयपुर सीकरी की राजकुमारी तारा देवी से हुआ। रणवीर सिंह रोहिला का राजतिलक भी इसी वर्ष इक्कीस वर्ष की आयु में हुआ यानी 1225,ईसवी में हुआ ,इनकी लंबाई लगभग सात फीट थी, कंधो पर सीना कवच लगभग साठ शेर ,सिर पर कवच लोहे का इक्कीस सेर खड़ग का वजन 25, सेर ओर स्वयं उनका वजन 125 सेर था। सन् 1236से1240 तक रजया तुदीन सुल्तान सन 1242 मइजुद्दीन बहराम शाह सन,1246 अलाउद्दीन महमूद शाह आदि दिल्ली सुल्तान सेनाओं से राजा रणवीर सिंह रोहिला , कठेहरिया ने कठेहर रोहिलखंड का लोहा मनवाया ओर किसी भी दिल्ली सुल्तान मामुल्क को रोहिलखंड में प्रवेश नहीं होने दिया । इनके साथ विभिन्न राजवंशों के चौरासी अजेय योद्धा थे ,राठौड़, गोड, चौहान,वारेचा परमार गहलोत वच्छिल आदि थे वे सब लोहे के कवच धारी थे।
दिल्ली सुल्तान के 
गुलाम , सेनापति नासिरूद्दीन चंगेज उर्फ नासिरूद्दीन महमूद ने , सन् 1253 ई0,में दोआब, कठेहर, शिवालिक पंजाब, बिजनौर आदि क्षेत्रों पर विजय पाने के लिए दमनकारी अभियान किया। इतने अत्याचार , मारकाट तबाही मचाई कि विद्रोह करने वाले स्थानीय शासक, बच्चे व स्त्रियां भी सुरक्षित नहीं रही। ऐसी विषम परिस्थिति में रोहिल खण्ड के रोहिला शासकों ने दिल्ली सल्तनत के सूबेदार‘ ताजुल मुल्क इज्जूददीन डोमिशी‘ को मार डाला। दिल्ली सल्तनत के लिये यह घटना भीषण चुनौती समझी गई। इस समय रामपुर के राजा रणवीर सिंह थे । उन्होनें आस पास की समस्त राजपूत शक्तियों को एकता के सूत्र में बांधा ओर दिल्ली सल्तनत के विरूद्ध अपनी क्रान्तिकारी प्रवृत्ति को सजीव बनाये रखा था जिससे दिल्ली सुल्तान कठेहर पर आक्रमण करते हुए भय खाते थे ,नासिरूद्दीन महमूद बहराम गुलाम वंश ( उर्फ चंगेज) इस घटना से उद्वेलित हो उठा और सहारनपुर ‘ उशीनर प्रदेश‘ के मण्डावार व मायापुर से 1253 ई0 में गंगापार कर गया और विद्रोह को दबाता हुआ, रोहिलखण्ड को रौदता हुआ बदांयू पहुंचा। वहां उसे ज्ञात हुआ कि रामपुर में राजा रणवीर सिंह रोहिला के साथ लोहे के कवचधारी 84 रोहिले है जिनसे विजय पाना टेढ़ी खीर है। सूचना दिल्ली भेजी गई। दिल्ली दरबार में सन्नाटा हो गया कि एक छोटे राज्य कठेहर रोहिलखंड के रोहिलों से कैसे छीना जाए। नासिरूद्दीन चंगेज (महमूद) ने तलवार व बीड़ा उठाकर राजा रणवीर सिंह के साथ युद्ध करने की घोषणा की। रामपुर व पीलीभीत के बीच मैदान में नसीरुद्दीन व कठेहर नरेश सूर्य वंशी क्षत्रिय रणवीर सिंह की सेना के बीच भयंकर युद्ध हुआ, 6000 रोहिला राजपूत व 
 84 लोहे के कवचधारी रन्धेलवंशी सेना नायकों की सेना के सामने नासिरूद्दीन की तीस हजारी सेना के पैर उखड़ गये।
      नासिरूद्दीन चंगेज को बन्दी बना लिया गया। बची हुई सेना के हाथी व घोडे तथा एक लाख रूपये महाराज रणवीर सिंह को देने की प्रार्थना पर आगे ऐसा अत्याचार न करने की शपथ लेकर नासिरूद्दीन महमूद ने प्राण दान मांग लिया। क्षात्र धर्म के अनुसार शरणागत को अभयदान देकर राजा रणवीर सिंह ने उसे छोड़ दिया। परन्तु धोखेबाज महमूद जो राजा रणवीर सिंह पर विजय पाने का बीड़ा उठाकर दिल्ली से आया था, षडयंत्रों में लग गया। राजा रणवीर सिंह का एक दरबारी पं. गोकुलराम पाण्डेय था। उसे रामपुर का राजा नियुक्त करने का लालच देकर महमूद ने विश्वास में ले लिया और रामपुर के किले का भेद लेता रहा। पं. गोकुल राम ने लालच के वशीभूत होकर विधर्मी को बता दिया कि रक्षांबधन के दिन सभी राजपूत निःशस्त्र होकर शिव मन्दिर में शस्त्र पूजा करेंगें।यह शिव मन्दिर किले के दक्षिण द्वार के समीप है , यह सुनकर महमूद का चेहरा खिल उठा और दिल्ली से भारी सेना को मंगाकर जमावड़ा प्रारम्भ कर दिया रक्षाबन्धन का दिन आ गया। किले में उपस्थित सभी सैनिक, सेनाायक अपने-ंअपने शस्त्रों को उतार कर पूजा स्थान पर शिव मन्दिर ले जा रहे थे। गोकुल राम पाण्डेय यह सब सूचना विधर्मी तक पहुंचाता रहा। श्वेत ध्वज सामने रखकर दक्षिण द्वार पर पठानों की गुलामवंशी सेना एकत्र हो गयी। पूजा में तल्लीन राज पुत्रों को पाकर गोकुलराम पाण्डेय ने द्वार खोल दिया।
      शिव उपासना में रत सभी उपस्थितों को घेरे में ले लिया गया। समस्त राजपूत भौचक्के रह गए ओर मन्दिर से तुलसी का पत्ता लिया ओर मुंह में दबा कर शाका बोल दिया,घमासान युद्ध छिड़ गया परन्तु ऐसी गद्दारी के कारण राजा रणवीर सिंह ने निशस्त्र लड़ते हुए अदम्य साहस ओर शोर्य का परिचय दिया ओर महमूद के सैनिकों से भिड़ गए अद्भुत दृश्य था रणवीर सिंह चारो ओर से विधर्मी सैनिकों से घिरे युद्ध कर रहे थे विधर्मी की खड़ग छीन ली ओर आक्रांताओं के शीश कट कट गिरने लगे , उस समय रामपुर के किले में केवल तीन हजार राजपूत ही उपस्थित थे ओर वे भी निहत्थे रह गए थे सभी राजपूत बड़ी वीरता से लडे किन्तु संख्या में कम होने के कारण बिखर गए, रणवीर सिंह कठहरिया रोहिला की पीठ पर विधर्मी सेना ने तलवार से वार करके काट डाला ओर अंतिम बूंद रक्त की रहने तक रणवीर धराशाई नहीं हुए यह देख कर नसीरुद्दीन चकित रह गया देखते ही देखते कठेहर नरेश वीरगति को प्राप्त हुए। नासिरूद्दीन ने पं. गोकुल राम से कहा कि जिसका नमक खाया अब तुम उसी के नहीं हुए तो तुम्हारा भी संहार अनिवार्य है। नमक हरामी को जीने का हक नहीं है। गोकुल का धड़ भी सिर से अलग पड़ा था। सभी स्त्री बच्चों को लेकर रणवीर सिंह का भाई सूरत सिंह उर्फ सुजान सिंह किले से पलायन कर गया । महारानी तारादेवी जो विजय पुर सीकरी के राजा की पुत्री थी राजा रणवीर सिंह के साथ सती हो गई। 
रामपुर में किले के खण्डरात, सती तारादेवी का मन्दिर तथा उनका राजमहल अभी तक एक ध्वस्त टीले के रूप में मौजूद है, जो क्षात्र धर्म का परिचायक व रामपुर में रोहिला क्षत्रियों की कठ-शाखा के शासन काल की याद ताजा करता है जिन्होंने अपना सर्वस्व बलिदान कर क्षात्र धर्म की रक्षा की। गुलाम वंश, सल्तनत काल में विधर्मी की पराधीनता कभी स्वीकार नहीं की। अन्तिम सांस तक दिल्ली सल्तनत से युद्ध किया और कितनी ही बार धूल चटाई तथा रोहिलखण्ड को स्वतंत्र राज्य बनाये रखा। निरन्तर संघर्ष करते रहे राजा रणवीर सिंह कठहरिया का बलिदान व्यर्थ नहीं , सदैव तुगलक, मंगोल , मुगलों आदि से विद्रोह किया और स्वतंत्र रहने की भावना को सजीव रखा। राणा रणवीर सिंह के वंशधर आज भी रोहिला-ंक्षत्रियों में पाए जाते हे,जय राजपुताना कठेहर रोहिलखंड
उनकी पावन स्मृति को जीवित रखने व रोहिलखंड कठेहर राजपूताना की वीर गाथा को सजीव बनाए रखने के लिए भारत का समस्त रोहिला क्षत्रिय राजपूत समाज रक्षा बन्धन को शोर्य दिवस तथा पच्चीस अक्टूबर को प्रतिवर्ष स्वाभिमान दिवस के रूप में मनाता हे ओर शस्त्र पूजा करता है । उत्तर भारत के महानगर बड़ौत में राजा रणवीर सिंह रोहिला मार्ग व ऐतिहासिक नगर सहारनपुर में आज महाराजा रण वीर सिंह रोहिला चौक स्थित है। (संदर्भ__इतिहास रोहिला राजपूत द्वारा डॉक्टर के सी सेन,
ठाकुर अजीत सिंह परिहार बालाघाट मध्य प्रदेश, मध्यकालीन भारत बीएम रस्तोगी ,रोहिला क्षत्रियों का क्रमबद्ध इतिहास द्वारा श्री दर्शन लाल रोहिला, रोहिला क्षत्रिय वंश भास्कर द्वारा आर आर राजपूत, रोहिला क्षत्रिय जाति निर्णय द्वारा राय भीम राज राजभाट बड़वा जी का बाड़ा तूंगा राजस्थान, काठी कठेरिया क्षत्रिय व रोहिला राजपूत द्वारा महेश सिंह कठाय त नेपाल , मध्य कालीन भारत द्वारा ठाकुर अजित सिंह परिहार बाला घाट मध्य प्रदेश  
संकलन व लेखन 
समय सिंह पुंडीर
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क्षत्रिय/राजपूत वाटिका
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा
राष्ट्रीय प्रवक्ता 
*क्षत्रिय अस्तित्व न्याय मोर्चा भारत*
नोट
*सनातन रक्षक,विधर्मी संहारक और लगभग तीस वर्ष तक आक्रांताओं द्वारा किए जा रहे इस्लामी करण को रोकने वाले राजपूत सम्राट रोहिलखंड नरेश महाराजा रणवीर सिंह रोहिला काठी क्षत्रिय की जयंती सभी क्षत्रिय भाई स्वाधीनता और स्वाभिमान दिवस के रूप में मनाते हैं*

Wednesday, 17 September 2025

ROHILA RAJPUT CREATION

*🙏रोहिला राजपूत स्थापत्य🙏, रोहिला क्षत्रियों द्वारा बसाए गए हजारों साल पुराने नगर गांव स्थान,और आजकल उन्ही की तरह होते जा रहे नामकरण🙏🙏**
*ये है*
*_ कुछ गांव- नगर और स्थान जिनकी स्थापना रोहिला राजपूतों ने हजारों साल पहले की.._थी*
१. रोहिला नाम का एक गांव छिबरामऊ कन्नौज में स्थित है।
२. रोहिल्ला पश्चिम नाम का स्थान बप्पा गोरी मन्ना, जिला बाड़मेर, (राजस्थान) में स्थित है।
३. रोहिल्ला नगर नाम का एक स्थान जिला बाराबंकी (उत्तर प्रदेश) में विद्यमान है।
४. रोहिल्ला नाम का गांव तहसील जिला गढ़वा (झारखंड) में स्थित है।
५. रोहिला नाम का गांव सीतापुर (उत्तर प्रदेश) से 4.4 किलोमीटर दूरी महोली मंडल में स्थित है
६. रोहिल्ला नाम का गांव तहसील चौहटान, जिला बाड़मेर राजस्थान में है।
७. रोहिला गांव में दिनांक 3- 10 16 21 को ही हरगोविंद साहब का मुगलों से युद्ध हुआ था।
८. भिवानी रोहिल्ला नाम का गांव लगभग 1000 वर्ष पूर्व हिसार से 20 किलोमीटर दूर (हरियाणा) रोहिल्ला क्षत्रिय स्थापित किया था।
९. पिपरी रोहिल्ला गांव, जिंटूर ब्लॉक जिला परभनी (महाराष्ट्र) में स्थित है। 
१०. रोहिल्ला कला गांव जयपुर राजस्थान से 282 किलोमीटर है जोधपुर से 81 किलोमीटर मंडोर में स्थित है।
११. रुहेला गांव में सन 1587 गुरु अर्जुन देव रहे थे।
१२. तेजा रोहिला नाम का गांव फाजिल्का पंजाब में स्थित है।
१३. रोहिल्ला नाम का एक प्राचीन गांव तिलचर उड़ीसा में स्थित है।
१४. रोहिल्ला नाम का एक गांव ब्लॉक पालाहाडा जिला अंगुल उड़ीसा में स्थित है।
१५. रोहिल्ला द्वारा नाम का एक गांव जिला बाशिम महाराष्ट्र में स्थित है।
१६. रोहिल्ला नाम का एक गांव तहसील तिलहर जिला शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश में स्थित है।
१७. झुंझुनू से 24 किलोमीटर दूर रोहिल्ला नामक स्थान पर नवलगढ़ किला स्थित है।
१८. रोहिल्ला ग्राम सेक्टर 132 नोएडा में विद्यमान है। 
१९. रोहिला नाम का एक गांव। तहसील बिलग्राम जिला हरदोई में स्थित है।
२०.प्राचीन रोहिला किला सहारनपुर उत्तर प्रदेश में विद्यमान है।जिसके सामने महाराजा रणवीर सिंह रोहिला चौक स्थित है।
२१.एक प्राचीन रोहिला किला ,झारखंड में भी स्थित है।
२२.महोबा में चंदेलो से पहले रोहिला शासन था,वहा रोहिला नाम का एक तालाब अति प्राचीन है।
२३.रोहिला नेशनल पार्क हिमाचल प्रदेश में स्थित है।
२४.बड़ौत नगर में राजा रणवीर सिंह रोहिला मार्ग स्थित है।
२५.रोहिणी दिल्ली में महाराजा रणवीर सिंह रोहिला पार्क है।
२६.झारखंड पलामू में प्राचीन रोहिला किला स्थित है।
२७.छपरौली जिला बागपत में रोहिला मंदिर स्थित है। जो रोहिला क्षत्रिय द्वारा बनवाया गया था 
२८. गांव जोला जिला शामली में रोहिला राजपूतों  द्वारा स्थापित माता का मंदिर स्थित है रोहिला राजपूतों का शिला लेख लगा है।
२९.कलायत जिला कैथल हरियाणा में वीर गंगा सिंह महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत की रानी रामप्यारी देवी का सती स्मारक स्थित है।
३०. निंदाना गांव महम चौबीसी हरियाणा में वीर लक्ष्मण सिंह रोहिला की रानी सुंदरी देवी रोहिला का भव्य प्राचीन मंदिर स्थित है।
३१. महाराष्ट्र में हर प्रसाद रूहेला मार्ग स्थित है।
इन सब से रोहिल्ला क्षत्रियों की प्राचीन स्थिति का प्रमाण मिलता है क्योंकि यह गांव ,नगर, स्थान सुदूर स्थित सदियों से विद्यमान हैं।
ये जानकारियां,रोहिला ज्योति स्मारिका दिल्ली राजधानी क्षेत्र 22अक्टूबर 2012 ओर रोहिला क्षत्रिय परिवार स्मारिका ,सहारनपुर दिनांक 28अक्टूबर 2016 तथा अन्य सोसल वेब साइट्स से ली गई है।
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 सभी_*रोहिला राजपूत**नौजवान युवा पीढ़ी* को ये जानकारियां अवश्य होनी चाहिए।


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*विशेष नोट___यहां प्रदर्शित सभी चित्र सोसल मीडिया पर उपलब्ध है और नेट द्वारा केवल प्रतीकात्मक रूप देने और पाठको को समझाने के उद्देश्य से उद्धरित किए गए है।

Monday, 1 September 2025

ROHILA RAJPUT OF TOMAR (तंवर)VANSH GOTRA

तोमर वंश की पांडववीर अर्जुन से दिल्लीपति 
महाराजा अनंगपाल तक की वंशावली :-
1. अर्जुन
2. अभिमन्यु
3. परिक्षत
4. जनमेजय
5. अश्वमेघ
6. दलीप
7. छत्रपाल
8. चित्ररथ
9. पुष्टशल्य
10. उग्रसेन
11. कुमारसेन
12. भवनति
13. रणजीत
14. ऋषिक
15. सुखदेव
16.नरहरिदेव
17. सूचीरथ
18. शूरसेन
19. दलीप द्वितीय
20. पर्वतसेन
21. सोमवीर
22. मेघाता
23. भीमदेव
24. नरहरिदेव द्वितीय
25. पूर्णमल
26. कर्दबीन
27. आपभीक
28. उदयपाल
29. युदनपाल
30. दयातराज
31. भीमपाल
32. क्षेमक
33. अनक्षामी
34. पुरसेन
35. बिसरवा
36. प्रेमसेन
37. सजरा
38. अभयपाल
39. वीरसाल
40. अमरचुड़
41. हरिजीवि
42. अजीतपाल
43. सर्पदन
44. वीरसेन
45. महेशदत्त
46. महानिम
47. समुद्रसेन
48. शत्रुपाल
49. धर्मध्वज
50. तेजपाल
51. वालिपाल
52. सहायपाल
53. देवपाल
54. गोविन्दपाल
55. हरिपाल
56. गोविन्दपाल द्वितीय
57. नरसिंह पाल
58. अमृतपाल
59. प्रेमपाल
60. हरिश्चंद्र
61. महेंद्रपाल
62. छत्रपाल
63. कल्याणसेन
64. केशवसेन
65. गोपालसेन
66. महाबाहु
67. भद्रसेन
68. सोमचंद्र
69. रघुपाल
70. नारायण
71. भनुपाद
72. पदमपाद
73. दामोदरसेन
74. चतरशाल
75. महेशपाल
76. ब्रजागसेन
77. अभयपाल
78. मनोहरदास
79. सुखराज
80. तंगराज
81. तुंगपाल – 
इनके नाम से इनके वंशज तोमर या तंवर राजपूत कहलाते हैं।
82. अनंगपाल तंवर (तोमर) – 
दिल्ली राज्य के संस्थापक, इस वंशावली से पता चलता है कि अनंगपाल तंवर और तंवर(तोमर) वंश चंद्रवंशी क्षत्रिय हैं, और इनका संबंध पाण्डु-पुत्र-अर्जुन से जुड़ता हैं।


तंवर/तोमर वंश की अनेक  शाखाएं इस प्रकार है तंवर वंश को अर्जुनायन वंश भी कहा गया है.इसकी 22 मुख्य शाखाएँ है जो पूरे उत्तर एवं मध्य भारत में फैलीं हुई है। तवंर वंश के मूल पुरुष पांडूपुत्र अर्जुन के पौत्र परीक्षित जी को बताया जाता है। तंवर वंश की 22 प्रमुख शाखाएं इस प्रकार है.....

==========जावला तंवर ===========
जावला या अनंगपाल के वंशज जावला तंवर कहलाए,रुनेचा,असील जी के तंवर,जाटू,सांपला(सिम्पल) आदि इनकी शाखाएँ हैं,सांपला(सिम्पल),रुनेचा जैसलमेर में मिलते हैं,लोकदेवता रामदेव इसी रुनेचा शाखा से थे,

========ग्वालेरा तंवर==============
दिल्ली छूटने के बाद ग्वालियर पर शासन करने के कारण यहाँ के तोमर ग्वालेरा कहलाए 

===========जाटू तंवर ==============
जाटू तंवर राजपूत वंश राजा अंगपाल द्वितीय के पौत्र व राजा शालीवाहन तंवर के पुत्र राव जैरथ जी जिन्हे जाटू जी कहा जाता था,के कुटुंब से आगे बढ़ा। राव जाटू के साथ उनके भाई रघु व अंगपाल तंवर प्रथम के पुत्र सतरौला का कुटुंब आज हरयाणा के रोहतक , महेंद्रगढ़ , हिसार, कैथल , कुरुक्षेत्र और खासकर भिवानी में वास करता है। एक समय में इनके राज्य के अधीन लगभग 1440 गाँव थे। आज जाटू तंवरों के चौरासी गाँव भिवानी और आस पास के जिलों में वास करती है। पूर्व जनरल वीके सिंह भी तंवरों की इसी शाखा से है। भिवानी शहर की स्थापना भी इन्ही तंवरों ने की। अब से कुछ समय पहले तक भी सरकारी दस्तावेजों में इस इलाके को तीन टप्पों या टप्पा में बसा हुआ माना व जाना जाता था जो की जाटू, रघु व सतरौला राजाओ की परागनाएँ थी।

इन तीनो तंवरो के वंशजों को अपनी जागीरें बढ़ने के अवसर मिले , जिनमे जाटू के वंशज काफी फैले और उम्र सिंह ने तोशाम का इलाका कब्जे में ले लिया इस कारण इलाका उमरैण टप्पा कहलाया जाने लगा। ऐसे ही भिवानी बछोअन टप्पा कहलाता था। जाटू के सिवानी वाले वंशजों को रईस कहा जाता था और तलवंडी में बसे वंशजों को राणा कहा जाने लगा।

======== जंघारा तंवर ============

जंघारा तंवर तंवरों में सबसे लड़ाकू शाख मानी जाती है। जंघारा शब्द ही जंग व अहारा शब्द को जोड़ कर बना है जिसका अर्थ है जो वंश जंग के लिए भूखा हो। जंघारा तंवरों की वंशावली अंगपाल के पोत्र राव जगपाल से होती है। यह तंवर इन्दौरिया तंवरो के भी भाई है। दिल्ली में चौहानो के कब्जे के बाद जंघारा तंवर तंवरों की मुख्या शाखा से अलग हो रोहिलखण्ड के इलाके की ओर राजकुमार धापू धाम के नेतृत्व में कूच कर गए। जंघारा राजपूतों ने बरेली व आस पास से चौदवीं शताब्दी में ग्वालों अहीरों व कठेरिया राजपूतों को युद्ध में हरा कर बहार निकाला। इन्होने रूहेला पठानों को भी कभी चैन से नहीं बैठने दिया , जंघारा राजपूतो की बहादुरी व लड़ाकूपन को देखते हुए ब्रिटिश काल में इनकी भर्ती सेना में ऊँचे ओहदों पर की जाती थी।

=========पठानिया तंवर============

पठानिया तंवर राजा अनंगपाल तंवर के अनुज राजा जैतपाल के वंशज है जिन्होंने उत्तर भारत में धमेरी नाम के राज्य की स्थापना की और पठानकोट नामक शहर बसाया। धमेरी राज्य का नाम बाद में जा कर नूरपुर पड़ा। यह वंश सं 1849 तक विदेशी आक्रमणकारियों के विरुध अपने संघर्षों के लिए जाना जाता है चाहे मुस्लमान हो या अंग्रेज। सं 1849 में नूरपुर अंग्रेजो के अधीन हो गया। इस वंश के राजा राम सिंह पठानिया अंग्रेजों के विरुद्ध अपनी वीरता के लिए विख्यात हैं,यह वंश इतना बहादुर व झुझारू है के आजादी के बाद भी पठानिया राजपूतों ने 3 महावीर चक्र प्राप्त किये। आज पठानिया राजपूत उत्तर पंजाब व हिमाचल में फैले हुए है।

============जंजुआ वंश ==============

जंजुआ वंश भी तंवर राजपूतों की तरह अर्जुन के वंशज माने जाते है। जंजुआ राजपूतों की उत्पत्ति व नाम अर्जुन के वंशज राजा जनमेजय से मानी जाती है जिनके ऊपर इनके वंश का नाम पड़ा। जंजुआ वंश तंवर वंश के भाई के रूप में देखा जाता है।जंजुआ राजपूतों के राज्य पूर्वी पाकिस्तान के इलाके में रहे है। इस वंश के ऊपर डिटेल्ड पोस्ट आने वाले समय में की जाएगी। ज्यादातर जंजुआ राजपूतों की खाप आज के पाकिस्तान में पायी जाती है जो मुस्लिम बन चुके है। कुछ जंजुआ राजपूतो के गाँव आज भी पंजाब में मौजूद है और वो हिन्दू राजपूत है। जंजुआ एक बहुत ही झुझारू व बहादुर वंश माना जाता है।पाकिस्तान के कई बड़े आर्मी जनरल जंजुआ राजपूत हैं,अंग्रेजो ने भी जंजुआ राजपूतो को पंजाब की सबसे लड़ाकू कौम बताया था.कबूल का प्रसिद्ध शाही वंश भी जंजुआ राजपूत वंश ही माना जाता है,जिन्होंने गजनवी से लम्बे समय तक संघर्ष किया था.यही नहीं इसके वंशज वीर पोरस को भी अपना पूर्वज मानते हैं जिन्होंने सिकन्दर को भी हरा दिया था.

===========जर्राल वंश ===============

ये भी तंवर वंश की शाखा हैं,इन्होने तराइन के दोनों युद्धों में प्रथ्विराज चौहान के साथ मिलकर गौरी का मुकाबला किया था,इसके बाद किसी कारणवश इस्लाम स्वीकार कर लिया,मध्य काल में इनका राज्य हरियाणा के कलानौर,जम्मू कश्मीर के राजौरी में था,इन्होने पठानों,सिखों,ब्रिटिशों और डोगरो से खूब लड़ाई लड़ी और कभी भी आसानी से किसी के काबू नहीं आये,आज इनकी आबादी अधिकतर जम्मू कश्मीर,पाकिस्तान में मिलती है,

============बेरुआर वंश

बेरुआर वंश तंवर वंश की ही एक शाखा है जिसने पूर्वी उत्तरप्रदेश के बलिया व मुज़्ज़फ़्फ़रपुर जिले पर राज किया। भाटों के अनुसार पूर्वी उत्तर प्रदेश में बेरुर नाम की जन जाती को पराजय कर कर बेरुआरी तंवरों ने राज्य स्थापित किया जिस कारण इनका नाम बेरु + आरी यानि दुश्मन पर पड़ा। बेरुआर वंश के कई गाँव आज बिहार के मिथिलांचल इलाके,फ़ैजाबाद,बलिया,गाजीपुर,बनारस,छपरा आदि जिलो में पाए जाते है,यह वंश पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार सीमा पर सबसे शक्तिशाली राजपूत वंशो में एक है.

===========इन्दौरिया / इंदोलिया तंवर =========
इन्दौरिया तंवर सम्राट अनंगपाल तोमर के पुत्र इंदुपाल के वंशज है। इन्दौरिया तंवरों के ठिकाने आज झाँसी दतिया धौलपुर आदि में पाए जाते है। दिल्ली के गौरी द्वारा ध्वस्त हो जाने के बाद यह शाख भी इन इलाकों में आ बसी।

============= इन्दा तंवर ============
यह खाप आज के मध्य प्रदेश के ग्वालियर के आस पास के इलाके में बसी हुई है। इस खाप को लडूवा तंवर भी कहते है।

=========बिलदारिया तंवर ============
राजा बंसोली के वंशज भागपाल ने बीदासर में राज्य स्थापित किया। बीदासर से जो तंवर निकले वे तंवर बिलदारिया कहलाये। इनके गाँव उत्तर प्रदेश के कानपूर बलिया उन्नाव आदि जिलों में है।

========खाती तंवर ===========
यह तंवर गढ़वाल के खात्मस्यु के अधिकारी थे। इससे पहले इनका निकास आगरा मुरेना के तोमरधार से माना गया है। आज यह शाख गढ़वाल में बस्ती है।

=============सतरावला तंवर========= 
अंगपाल के पुत्र सतरौल के वंशज। भिवानी हरियाणा के आस पास रहते है।

===============सोम वंश ============
सम्राट अनंगपाल उर्फ़ जावल के पुत्र सोम के वंशज। इन्हे सुमाल भी कहा जाता है। 
कुछ लोग इन्हें पांडू पुत्र भीम का वंश भी मानते हैं ।ईस्ट यूपी के सोमवंशी राजपूत इनसे अलग हैं।
सुमाल आज भी दिल्ली के रिठाला गाँव के मूल निवासी है। सुमाल रिठाला के आस पास के गाँवो के अलावा उत्तर प्रदेश के मुज़्ज़फरनगर व मेरठ के 24 गाँवो में पाए जाते है यहाँ इन्हे सोम कहा जाता है। उत्तर प्रदेश के मशहूर भाजपा नेता संगीत सोम इसी वंश से है।

============= कोड्यां तंवर============= 
जावाल के पुत्र पर ही इस खाप का नाम पड़ा। आज राजस्थान के सीकर जिले में डाबला के आस पास इनके गाँव पड़ते है।

============निहाल तंवर ============
ये भी दिल्ली पति अनंगपाल उर्फ़ जावल के वंश से है आज मध्यप्रदेश में पाए जाते है।
============सेलेरिया तंवर ==========
ये भी दिल्ली पति जावल के वंश से है। इन्हे सुनियार भी कहा जाता है ये मध्य प्रदेश के विदिशा में बस्ते है।

===============घोड़ेवा तंवर ===========
नूरपुर हिमाचल के तंवर घोड़ेवा शाशक कहलाए।

===========तिलोता तंवर =========
बिहार के आरा शाहबाद भोजपुर और यूपी के झाँसी जालौन जिले में निवास करते है।

===============जनवार राजपूत ============ 
उत्तर प्रदेश के बलरामपुर गंगवाल ऑइल प्रयागपुर इनके ठिकाने है। जनवार राजपूत झाँसी दतिया और बुंदेलखंड में भी पाए जाते है. जनवार तंवरों की शाखा के बजाये भाई बंध माने जाते है जो राजा तुंगपाल से पहले इस वंश से अलग हो गए।

================कटियार तंवर =========
धर्मपुर राज्य जिला हरदोई उत्तर प्रदेश कटियार तंवर राजपूतों का है

============पालीवार तंवर ============
उत्तरप्रदेश के गोरखपुर व फैज़ाबाद जिलो में इनके गाँव है।

================द्वार तंवर ============
यु पी के जालौन झाँसी व हमीरपुर जिलों में पाए जाते है

==============जरोलिया तंवर ====
यु पी के बुलंद शहर के आस पास के तंवर जरोलिया कह लाते है।कुछ जगह इन्हें गौड़ वंश की शाखा भी लिखा है।

=============रघु तंवर ===============
रघु तंवर जाटू तंवर के भाई माने जाते है और भिवानी के आस पास आज बसे हुए है।
===========अन्य तंवर शाखाये :=============
रैक्वाल तिलोता किसनातिल चंदेरिया रिटालिया मोहाल जोधाण अनवार बिलोड़िया अंगडिया मगरोठिया पन्ना बोधयाणा कोढयाना बेबत भैपा तुनिहान आदि '.

=========मराठा क्षत्रियों में तंवर वंश =========
मराठा तंवर मराठा तौर ठाकुर नाम से जाना जाता है.तौर ठाकुर के मराठवाडा प्रांत मे गोदावरी नदी के तीर पर २२ गाँव है.इस प्रांत को गंगथडी भी कहा जाता है,इसके अलावा मराठो में तावडे या तान्वरे,शिर्के भी तंवर वंशी हैं.
रोहिला क्षत्रियों में भी तोमर तंवर वंश पांडु के वंशधर अनेक गोत्र हे दिल्ली से विस्थापित बहुत सी तोमर शाखाएं रोहिला राजपूत गोत्रों में विद्यमान है।
#जय_भवानी 🙏🚩🗡️तोमर ,तंवर,तुंवर ( पांडु वंसी चन्द्र वन्स,तुवरसू वंसी चन्द्र वन्स), राजपूतो की निम्न शाखाये रोहिले राजपूतो में है
1, जंघारा
2सोमवाल
3बटोला
4बढ़ वार
5 जाडिया 
6इन्दौलिया
7कटियार/कटोच
8गोगड़
9गंगवार
10बनाफ़रे(एक यदु वन्स बनाफर अलग है)
11पठानिया
12 काठी(सूर्य वंश की निकुंभ काठी शाखा अलग है)
13 जडोलिया
14सिकरवार
15किशन लाल,कुशनवाल किशनवाल
*गद्दी*--इंद्रप्रस्थ(दिल्ली)
*ठिकाने*--बुद्धमूउ (बंदायू )रोहिलखण्ड,
दतिया,(,बुंदेलखंड)
धर्मपुर(हरदोई)
आदि
ऋषि गोत्र -गार्गेय,पराशर,मुदगल,
प्रवर -तीन
वेद--,यजुर्वेद
शाखा --वाजसनेयी
सूत्र--पारस्कर,गुह्य सूत्र
*कुलदेवी*--योगेश्वरी
निशान --हरा
देवता --शिव
नगाडा -रणगंजन

शस्त्र--खड्ग
पर्व --विजय दशमी
उद्घोष-हरर हर महादेव
उन्माद -विजय या वीर गति
पूर्वज 
पुरुरवा
ययाति
पुरु
शान्तनु
:
:
:
:
पाण्डव
:
:
:क्षेमक
(ईसापूर्व 424)
:
:
:
अनंगपाल प्रथम (742 ईसवी में उजड़ी दिलली को पुनः बसाया)
इनकी 16 वी पीढ़ी में सोलहवाँ अनंगपाल हुवा इसने क्वार सुदी एकादशी दिन सोमवार को लालकोट(वर्तमान लालकिला) की नींव डाली
17वां अनंगपाल उर्फ तेजपाल हुवा इन्होंने आगरे में तेज महल बनवाया(वर्तमान ताज महल)
इसी तेजपाल के दो पुत्र
महेश पाल ओर जीत पाल(अजयपाल)
थे। महेश पाल इंद्रप्रस्थ दिल्ली की गद्दी पर ही रहा ओर अजयपाल वहाँ से चल कर कठहर रोहिलखण्ड के बुद्धमऊ के राजा बुधपाल के यहां आया और अपना राज्य स्थापित कर वन्स चलाया अजय पाल के पुत्र महिपाल ने माघ सुदी पंचमी दिन मंगल वार को बुद्धमूउ बंदायू के किले की नीव रखी 
इनके प्रपौत्र थे किसन सिंह उर्फ किशन सेन ओर सुख सेन 1253 ईसवी में रामपुर के राजा रणवीर सिंह रोहिला के सेनापति की हैसियत से दिल्ली सुल्तान नसीरूदीन महमूद बहराम उर्फ चंगेज की तीस हजारी सेना को धूल चटाई इनके प्रपौत्र राजा सोहन पाल देव ने करोली में ठिकाना स्थाई कर अपने दादा श्री किशन सेन उर्फ किशन सिंह के नाम पर अपने वंशजो के गोत्र को किशनलाल या किसन वाल नाम से प्रचलित किया इन्ही के वंसज बुंदेलखंड दतिया गए वहां वे किशन लाल राजपूत है ।इसी तरह रोहिलखण्ड में जिन जिन वन्स के राजपूतो ने 909 ईसवी से 1720ईसवी तक शासन किया वही है 
*रोहिला राजपूत*
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Friday, 29 August 2025

Some Facts From History (Rohilla Rajput)

गौरवशाली इतिहास के कुछ स्वर्णाक्षर (रोहिला क्षत्रिय)

  1. भारत वर्ष का क्षेत्रफल 42 ,02 ,500 वर्ग किमी था ।
  2. रोहिला साम्राज्य 25 ,000  वर्ग किमी 10 ,000  वर्गमील में फैला हुआ था ।
  3. रोहिला, राजपूतो की एक खाप, परिवार या परिजन- समूह है जो कठेहर - रोहिलखण्ड के शासक एंव संस्थापक थे |मध्यकालीन भारत में बहुत से राजपूत लडाको को रोहिला की उपाधि से विभूषित किया गया. उनके वंशज आज भी रोहिला परिवारों में पाए जाते हैं ।
  4. रोहिले- राजपूत प्राचीन काल से ही सीमा- प्रांत, मध्य देश (गंगा-yamuna का दोआब),रोहिलखंड पंजाब, काश्मीर, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश में शासन करते रहे हैं । जबकि मुस्लिम-रोहिला साम्राज्य अठारहवी शताब्दी में इस्लामिक दबाव के पश्चात् स्थापित हुआ. । अफगानों ने इसे उर्दू में "रूहेलखण्ड" कहा ।
  5. 1702 से 1720 ई तक रोहिलखण्ड  में रोहिले राजपूतो का ही शासन था. जिसकी राजधानी बरेली थी ।
  6. रोहिलखंड एक राजपूताना साम्राज्य है। रोहिलखंड एक शुद्ध हिंदी,संस्कृत और प्राकृत भाषा का शब्द है,अरेबिक या उर्दू शब्द नही है।
  7. रोहिले राजपूतो के महान शासक "राजा इन्द्रगिरी" ने रोहिलखण्ड की पश्चिमी सीमा पर रोहिलखंड विस्तार के समय सहारनपुर में एक किला बनवाया,जिसे "प्राचीन रोहिला किला" कहा जाता है । सन 1801 ई में रोहिलखण्ड को अंग्रेजो ने अपने अधिकार में ले लिया था. हिन्दू रोहिले-राजपुत्रो द्वारा बनवाए गये इस प्राचीन रोहिला किला को सन 1806  ईस्वी से सन1858  ईस्वी के मध्य कारागार में परिवर्तित कर दिया गया था । इसी प्राचीन- रोहिला- किला में आज सहारनपुर की जिला- कारागार है । उसके सामने महाराजा रणवीर सिंह रोहिला चौक स्थित है।
  8. "सहारन" राजपूतो का एक गोत्र है जो रोहिले राजपूतो में पाया जाता है. यह सूर्य वंश की एक प्रशाखा है जो राजा भरत  के वंशधरो से प्रचालित हुई थी ।
  9. फिरोज़ तुगलक के आक्रमण के समय "थानेसर" (वर्तमान में हरियाणा में स्थित) का राजा "सहारन" ही  था ।
  10. दिल्ली में गुलाम वंश के समय रोहिलखण्ड की राजधानी "रामपुर" में RANVEER SINGH ROHILA/KATHEHARIYA/ (काठी कोम, निकुम्भ वंश, सूर्यवंश रावी नदी के निकट से विस्थापित कठ गणों के वंशधर) का शासन था । इसी रोहिले राजा ने दिल्ली के सेनापति नसीरुद्दीन चंगेज को हराया था. 'खंड' kshtriyo से सम्बंधित है, जैसे भरतखंड, BUNDELKHAND, VIDHEYLKHAND , रोहिलखंड, KUMAYUNKHHAND, उत्तराखंड आदि ।
  11. प्राचीन भारत  की केवल दो भाषाएँ संस्कृत व प्राकृत (सरलीकृत संस्कृत) थी । रोहिल प्राकृत और खंड संस्कृत के शब्द हैं जो क्षत्रिय राजाओं के प्रमाण हैं । इस्लामिक नाम है दोलताबाद, कुतुबाबाद, मुरादाबाद, जलालाबाद, हैदराबाद, मुबारकबाद, फैजाबाद, आदि ।
  12. रोहिले राजपूतो की उपस्तिथि के प्रमाण हैं । योधेय गणराज्य के सिक्के, गुजरात का (1445 वि ) ' का शिलालेख (रोहिला मालदेव के सम्बन्ध में), उत्तर प्रदेश में स्थित रोहिलखंड रामपुर में राजा रणवीर सिंह के किले के खंडहर, रानी तारादेवी सती का मंदिर , पीलीभीत में राठौर रोहिलो (महिचा- प्रशाखा) की सतियों के मंदिर, कपिल मुनि स्थान पर कलायथ कैथल(हरियाणा)में वीर GANGA SINGH महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत   PANIPAT के तीसरे युद्ध KE YODHA की समाधि और उनकी रानी सती माता रामप्यारी का मंदिर जिसे क्षेत्र के सभी राजपूत मिलकर पूजते है। सहारनपुर का प्राचीन रोहिला किलाऔर उसके सामने स्थित क्षत्रिय सम्राट MAHA RAJA RANVEER SINGH ROHILA  चौक, मंडोर का शिलालेख, " बड़ौत  में स्तिथ " RAJA RANVEER SINGH ROHILA MARG"
          नगरे नगरे ग्रामै ग्रामै  विलसन्तु संस्कृतवाणी ।
          सदने  - सदने जन - जन बदने , जयतु चिरं कल्याणी ।।
          जोधपुर का शिलालेख, प्रतिहार शासक  HARISH CHANDRA को मिली रोहिल्लाद्व्यंक की उपाधि, कई अन्य
          राजपूतो के वंशो को प्राप्त उपाधियाँ, 'पृथ्वीराज रासो', आल्हाखण्ड - काव्य सभी राजपूत वंशो में पाए
          जाने वाले प्रमुख गोत्र ।
          अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा भारत द्वारा प्रकाशित पावन ग्रन्थ क्षत्रिय वंशाणर्व (रोहिले क्षत्रियों का
          राज्य रोहिलखण्ड  का पूर्व नाम पांचाल व मध्य देश, वर्तमान में अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा से
          अखिल भारतीय रोहिला.क्षत्रिय विकास परिषद रजिस्टर्ड को संबद्धता प्राप्त होना,। वर्तमान में भी रोहिलखण्ड (संस्कृत भाषा में)
          क्षेत्र का नाम यथावत बने रहना, अंग्रेजो द्वारा भी उत्तर रेलवे को "रोहिलखण्ड - रेलवे" का नाम देना जो
          बरेली से देहरादून तक सहारनपुर होते हुए जाती थी, वर्तमान में लाखो की संख्या में पाए जाने वाले
          रोहिला-राजपूत, रोहिले-राजपूतों के सम्पूर्ण भारत में फैले हुए कई अन्य संगठन अखिल भारतीय स्तर
          पर 'राजपूत रत्न' रोहिला शिरोमणि डा. कर्णवीर सिंह द्वारा संगठित एक अखिल भारतीय रोहिला
          क्षत्रिय विकास परिषद पंजीकृत (सम्बद्ध अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा) पंजीकरण संख्या - 545, आदि।
   12.  पानीपत की तीसरी लड़ाई में रोहिले राजपूत- राजा गंगासहाय/गंगा सिंह राठौर (महेचा) के नेतृत्व में
          मराठों
          की ओर से अफगान आक्रान्ता अहमदशाह अब्दाली व रोहिला पठान नजीबदौला के विरुद्ध लड़े व
          वीरगति पाई । इस मराठा युद्ध में लगभग एक हजार चार सौ रोहिले राजपूत वीरगति को प्राप्त हुए ।
           (इतिहास -रोहिला-राजपूत)
   13.  प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 में भी रोहिले राजपूतों ने अपना योगदान दिया, ग्वालियर के किले में रानी
          लक्ष्मीबाई को हजारों की संख्या में रोहिले राजपूत मिले, इस महायज्ञ में स्त्री पुरुष सभी ने अपने गहने
          धन  आदि एकत्र कर झाँसी की रानी के साथ अंग्रेजो के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए सम्राट बहादुरशाह-
          जफर तक पहुँचाए । अंग्रेजों ने ढूँढ-ढूँढ कर उन्हें काट डाला जिससे रोहिले राजपूतों ने अज्ञातवास की
          शरण ली।
   14.  राजपूतों की हार के प्रमुख कारण थे हाथियों का प्रयोग, सामंत प्रणाली व आपसी मतभेद, ऊँचे व
          भागीदार कुल का भेदभाव (छोटे व बड़े की भावना) आदि।
   15.  सम्वत 825 में बप्पा रावल चित्तौड़ से विधर्मियों को खदेड़ता हुआ ईरान तक गया। बप्पा रावल से समर
          सिंह तक 400 वर्ष होते हैं, गह्लौतों का ही  शासन रहा। इनकी 24 शाखाएँ हैं। जिनके 16 गोत्र (बप्पा
          रावल के वंशधर) रोहिले राजपूतों में पाए जाते हैं।
   16.  चितौड़ के राणा समर सिंह (1193 ई.) की रानी पटना की राजकुमारी थी इसने 9 राजा, 1 रावत और कुछ
          रोहिले साथ लेकर मौ. गोरी के गुलाम कुतुबद्दीन का आक्रमण रोका और उसे ऐसी पराजय दी कि कभी
          उसने चितौड़ की ओर नही देखा।
   17.  रोहिला शब्द क्षेत्रजनित, गुणजनित व 'मूल पुरुष' नाम-जनित है। यह गोत्र जाटों में भी रूहेला, रोहेला,
          रूलिया, रूहेल , रूहिल, रूहिलान नामों से पाया जाता है।
   18.  रूहेला गोत्र जाटों में राजस्थान व उ. प्र. में पाया जाता है। रोहेला गोत्र के जाट जयपुर में बजरंग बिहार
          ओर ईनकम टैक्स कालोनी टौंक रोड में विद्यमान है। झुनझुन, सीकर, चुरू, अलवर, बाडमेर में भी 
          रोहिला गोत्र के जाट विद्यमान हैं । उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में रोहेला गोत्र के जाटों के बारह 
          गाँव हैं। महाराष्ट्र में रूहिलान गोत्र के जाट वर्धा में केसर व खेड़ा गाँव में विद्यमान हैं।,रोहतक और भिवानी में रोहिल, रूहिल उपनाम के जाट विद्यमान है।
   19.  मुगल सम्राट अकबर ने भी राजपूत राजाओं को विजय प्राप्त करने के पश्चात् रोहिला-उपाधि से
          विभूषित किया था, जैसे राव, रावत, महारावल, राणा, महाराणा, रोहिल्ला, रहकवाल आदि।
   20.  "रोहिला-राजपूत" समाज , क्षत्रियों का वह परिवार है जो सरल ह्रदयी, परिश्रमी,राष्ट्रप्रेमी,स्वधर्मपरायण,
          स्वाभिमानी व वर्तमान में अधिकांश अज्ञातवास के कारण साधनविहीन है। 40 प्रतिशत कृषि कार्य से,30
          प्रतिशत श्रम के सहारे व 30 प्रतिशत व्यापार व लघु उद्योगों के सहारे जीवन यापन कर रहे हैं। इनके 
          पूर्वजो ने हजारों वर्षों तक अपनी आन, मान, मर्यादा की रक्षा के लिए बलिदान दिए हैं और अनेको 
          आक्रान्ताओं को रोके रखने में अपना सर्वस्व मिटाया है । गणराज्य व लोकतंत्रात्मक व्यवस्था को
          सजीव बनाये रखने की भावना के कारण वंश परंपरा के विरुद्ध रहे, करद राज्यों में भी स्वतंत्रता बनाये
          रखी । कठेहर रोहिलखण्ड की स्थापना से लेकर सल्तनत काल की उथल पुथल, मार काट , दमन चक्र
          तक लगभग आठ सौ वर्ष के शासन काल के पश्चात् 1857 के ग़दर के समय तक रोहिले राजपूतों ने
          राष्ट्रहित में बलिदान दिये हैं। 
 क्रूर काल के झंझावालों से संघर्ष करते हुए क्षत्रियों का यह 'रोहिला परिवार' बिखर  BIKHAR गया।
           , इस समाज की पहचान के लिए भी आज स्पष्टीकरण देना पड़ता है। कैसा दुर्भाग्य है? यह
          क्षत्रिय वर्ग का। जो अपनी पहचान को भी टटोलना पड़ रहा है। परन्तु समय के चक्र में सब कुछ सुरक्षित
          है। इतिहास के दर्पण में थिरकते चित्र, बोलते हैं, अतीत झाँकता है, सच सोचता है कि उसके होने के
          प्रमाण धुंधले-धुंधले से क्यों हैं? हे- क्षत्रिय तुम धन्य हो, पहचानो अपने प्रतिबिम्बों को' -
          "क्षत्रिय एकता का बिगुल फूँक 
           सब धुंधला धुंधला छंटने दो।
           हो अखंड भारत के राजपुत्र 
           खण्ड खण्ड में न सबको बंटने दो ।।"
    21.  रोहिलखण्ड से विस्थापित इन रोहिला परिवारों में राजपूत परम्परा के कुछ प्रमुख गोत्र इस प्रकार पाए
           जाते हैं :-
  1. रोहिला, रोहित, रोहिल, रावल, द्रोहिया, रल्हन, रूहिलान, रौतेला , रावत 
  2. यौधेय, योतिक, जोहिया, झोझे, पेशावरी 
  3. पुण्डीर, (पुलस्त्य)पांडला(धौम्य), पंढेर, पुन्ड़ेहार, पुंढीर, पुंडाया  
  4. चौहान, जैवर, जौडा, चाहल, चावड़ा, खींची, गोगद, गदाइया, सनावर, क्लानियां, चिंगारा, चाहड बालसमंद, चोहेल, चेहलान, बालदा, बछ्स (वत्स), बछेर, चयद, झझोड, चौपट, खुम्ब, जांघरा, जंगारा, झांझड    चुहल चूहेल 
  5. निकुम्भ, कठेहरिया, कठौरा, कठैत, कलुठान, कठपाल, कठेडिया, कठड, काठी, कठ, पालवार 
  6. RATHOD महेचा, महेचराना धांधल, रतनौता, बंसूठ जोली, जोलिए, बांकटे, बाटूदा, थाथी, कपोलिया, खोखर, अखनौरिया ,लोहमढ़े, मसानिया 
  7. BUNDELA, उमट, ऊमटवाल 
  8. , भारती, गनान 
  9. नाभावंशी,बटेरिया, बटवाल, बरमटिया 
  10. परमार, जावडा, लखमरा, मूसला, मौसिल, भौंसले, बसूक, जंदडा, पछाड़, पंवारखा, ढेड, मौन 
  11. तोमर, तंवर, मुदगल, देहलीवाल, किशनलाल, सानयाल, सैन, सनाढय  कालरा
  12. GEHLOT, कूपट, पछाड़, थापा, ग्रेवाल, कंकोटक, गोद्देय, पापडा, नथैड़ा, नैपाली, लाठिवाल, पानिशप, पिसोण्ड, चिरडवाल, नवल, चरखवाल, साम्भा, पातलेय, पातलीय, छन्द (चंड), क्षुद्रक,(छिन्ड, इन्छड़, नौछड़क), रज्जडवाल, बोहरा, जसावत, गौर, मलक, मलिक , मूसला 
  13. कछवाहा, कुशवाहा, कोकच्छ, ततवाल, बलद,  कोकचे काक मछेर 
  14. सिसौदिया, भरोलिया, बरनवाल, बरनपाल, बहारा 
  15.  खुमाहड, अवन्ट, ऊँटवाल
  16. सिकरवार, रहकवाल, रायकवार, ममड, गोदे 
  17. सोलंकी, गिलानिया, भुन, बुन, बघेला, ऊन, (उनयारिया)
  18. बडगूजर, सिकरवार, ममड़ा, पुडिया 
  19. कश्यप, काशब, रावल, रहकवाल 
  20. यदु, मेव, छिकारा, तैतवाल, भैनिवाल, उन्हड़, भाटटी बनाफरे, जादो, बागड़ी, सिन्धु, कालड़ा, सारन, छुरियापेड,  लखमेरिया, चराड, जाखड़, सेरावत, देसवाल, पूडिया 
प्रमुख रोहिला क्षत्रिय शासक
  1. अंगार सैन  - गांधार (वैदिक काल)
  2. अश्वकरण - ईसा पूर्व 326 (मश्कावती दुर्ग)
  3. अजयराव - स्यालकोट (सौकंल दुर्ग) ईसा पूर्व 326
  4. प्रचेता - मलेच्छ संहारक 
  5. शाशिगुप्त - साइरस के समकालीन 
  6. सुभाग सैन - मौर्य साम्राज्य के समकालीन 
  7. राजाराम शाह - 929 वि. रामपुर रोहिलखण्ड 
  8. बीजराज - रोहिलखण्ड
  9. करण चन्द्र - रोहिलखण्ड
  10. विग्रह राज - रोहिलखण्ड - गंगापार कर स्रुघ्न जनपद (सुगनापुर) यमुना तक विस्तार दसवीं शताब्दी में सरसावा में किले का निर्माण पश्चिमी सीमा पर, यमुना द्वारा ध्वस्त टीले के रूप में नकुड़ रोड पर देखा जा सकता है।
  11. सावन्त सिंह - रोहिलखण्ड
  12. जगमाल - रोहिलखण्ड
  13. धिंगतराव - रोहिलखण्ड
  14. गोंकुल सिंह - रोहिलखण्ड
  15. महासहाय - रोहिलखण्ड
  16. त्रिलोक चन्द - रोहिलखण्ड
  17. रणवीर सिंह - रोहिलखण्ड
  18. सुन्दर पाल - रोहिलखण्ड
  19. नौरंग देव - रोहिलखण्ड
  20. सूरत सिंह - रोहिलखण्ड
  21. हंसकरण रहकवाल - पृथ्वीराज के सेनापति 
  22. मिथुन देव रायकवार - ईसम सिंह पुण्डीर के मित्र थाना भवन शासक 
  23. सहकरण, विजयराव - उपरोक्त 
  24. राजा हतरा - हिसार 
  25. जगत राय - बरेली 
  26. मुकंदराज - बरेली 1567 ई.
  27. बुधपाल - बदायुं 
  28. महीचंद राठौर - बदायुं
  29. बांसदेव - बरेली 
  30. बरलदेव - बरेली
  31. राजसिंह - बरेली
  32. परमादित्य - बरेली
  33. न्यादरचन्द - बरेली
  34. राजा सहारन - थानेश्वर 
  35. प्रताप राव खींची (चौहान वंश) - गागरोन 
  36. राणा लक्ष्य सिंह - सीकरी 
  37. रोहिला मालदेव - गुजरात 
  38. जबर सिंह - सोनीपत 
  39. रामदयाल महेचराना - कलायत
  40. गंगसहाय - महेचराना *कलायत* 1761 ई.
  41. राणा प्रताप सिंह - कौराली (गंगोह) 1095 ई.
  42. नानक चन्द - अल्मोड़ा 
  43. राजा पूरणचन्द - बुंदेलखंड 
  44. राजा हंस ध्वज - हिसार व राजा हरचंद 
  45. राजा बसंतपाल - रोहिलखण्ड व्रतुसरदार, सामंत वृतपाल 1193 ई.
  46. महान सिंह बडगूजर - बागपत 1184 ई.
  47. राजा यशकरण - अंधली 
  48. गुणाचन्द - जयकरण - चरखी - दादरी 
  49. राजा मोहनपाल देव - करोली 
  50. राजारूप सैन - रोपड़ 
  51. राजा महपाल पंवार - जीन्द 
  52. राजा परपदेड पुंडीर - लाहौर 
  53. राजा लखीराव - स्यालकोट 
  54. राजा जाजा जी तोमर - दिल्ली 
  55. खड़ग सिंह - रोहिलखण्ड लौदी के समकालीन 
  56. राजा हरि सिंह - खिज्रखां के दमन का शिकार हुआ - कुमायुं की पहाड़ियों में अज्ञातवास की शरण ली 
  57. राजा इन्द्रगिरी (रोहिलखण्ड) (इन्द्रसेन) - सहारनपुर में प्राचीन रोहिला किला बनवाया । रोहिला क्षत्रिय वंश भास्कर लेखक आर. आर. राजपूत मुरसेन अलीगढ से प्रस्तुत 
  58. राजा बुद्ध देव रोहिला - 1787 ई., सिंधिया व जयपुर के कछवाहो के खेड़ा व तुंगा के मैदान में हुए युद्ध का प्रमुख पात्र । (राय कुँवर देवेन्द्र सिंह जी राजभाट, तुंगा (राजस्थान)

रोहिल्ला उपाधि - शूरवीर, अदम्य - साहसी विशेष युद्ध कला में प्रवीण, उच्च कुलीन सेनानायको, और सामन्तों को उनके गुणों के अनुरूप क्षत्रिय वीरों को तदर्थ उपाधि से विभूषित किया जाता था - जैसे - रावत - महारावत, राणा, महाराणा, ठाकुर, नेगी, रावल, रहकवाल, रोहिल्ला, समरलछन्द, लखमीर,(एक लाख का नायक) आदि। इसी आधार पर उनके वंशज भी आजतक राजपूतों के सभी गोत्रों में पाए जाते हैं।
"वभूव रोहिल्लद्व्यड्कों वेद शास्त्रार्थ पारग: । द्विज: श्री हरि चन्द्राख्य प्रजापति समो गुरू : ।।2।।
    ( बाउक का जोधपुर लेख )
- सन 837 ई. चैत्र सुदि पंचमी - हिंदी अर्थ  - "वेद शास्त्र में पारंगत रोहिल्लाद्धि उपाधिधारी एक हरिश्चन्द्र  नाम का ब्राह्मण था" जो प्रजापति के समान था हुआ ।।6।।
( गुज्जर गौरव मासिक पत्रिका - अंक 10, वर्ष ।।माह जौलाई 1991 पृष्ठ - 13) (राजपुताने का इतिहास पृष्ठ - 147) (इतिहास रोहिला - राजपूत पृष्ठ - 23) (प्राचीन भारत का इतिहास, राजपूत वंश, - कैलाश - प्रकाशन लखनऊ सन 1970 ई. पृष्ठ - 104 -105 - )
रोहिल्लद्व्यड्क रोहिल्लद्धि - अंक वाला या उपाधि वाला ।
सर्वप्रथम प्रतिहार शासक द्विज हरिश्चन्द्र को रोहिल्लद्धि उपाधि प्राप्त हुई । बाउक,प्रतिहार शासक विप्र हरिश्चन्द्र के पुत्र कवक और श्रीमति पदमनी का पुत्र था वह बड़ा पराक्रमी और नरसिंह वीर था।
प्रतिहार एक पद है, किसी विशेष वर्ण का सूचक नही है। विप्र हरिश्चन्द्र प्रतिहार अपने बाहुबल से मांडौर दुर्ग की रक्षा करने वाला था, अदम्य साहस व अन्य किसी विशेष रोहिला शासक के प्रभावनुरूप ही रोहिल्लद्व्यड्क उपाधि को किसी आधार के बिना कोई भी व्यक्ति अपने नाम के साथ सम्बन्ध करने का वैधानिक रूप में अधिकारी नही हो सकता।
उपरोक्त से स्पष्ट है कि बहुत प्राचीन काल से ही गुणकर्म के आधार पर क्षत्रिय उपाधि "रोहिल्ला" प्रयुक्त । प्रदत्त करने की वैधानिक व्यवस्था थी। जिसे हिन्दुआसूर्य - महाराजा पृथ्वीराज चौहान ने भी यथावत रखा। पृथ्वीराज चौहान की सेना में एक सौ रोहिल्ला - राजपूत सेना नायक थे । "पृथ्वीराज रासौ" -
चहूँप्रान, राठवर, जाति पुण्डीर गुहिल्ला । बडगूजर पामार, कुरभ, जागरा, रोहिल्ला ।। इस कवित्त से स्पष्ट है । कि - प्राचीन - काल में रोहिला- क्षत्रियों का स्थान बहुत ऊँचा था। रोहिला रोहिल्ल आदि शब्द राजपुत्रों अथवा क्षत्रियों के ही द्योतक थे । इस कवित्त के प्रमाणिकता "आइने अकबरी", 'सुरजन चरिता' भी सिद्ध करते हैं । युद्ध में कमानी की तरह (रोह चढ़ाई करके) शत्रु सेना को छिन्न - भिन्न करने वाले को रहकवाल, रावल, रोहिल्ला, महाभट्ट कहा गया है।
महाराज पृथ्वीराज चौहान की सेना में पांच गोत्रों के रावल थे -
  1. रावल - रोहिला 
  2. रावल - सिन्धु 
  3. रावल - घिलौत (गहलौत)
  4. रावल -  काशव या कश्यप 
  5. रावल - बलदया बल्द
मुग़ल बादशाह अकबर ने भी बहादुरी की रोहिल्ला उपाधि को यथावत बनाए रखा जब अकबर की सेना दूसरे  राज्यों को जीत कर आती थी तो अकबर अपनी सेना के सरदारों को,बहादुर जवानों बहादुरी के पदक (ख़िताब,उपाधि) देता था। एक बार जब महाराणा मान सिंह काबुल जीतकर वापिस आए तो अकबर ने उसके बाइस राजपूत सरदारों को यह ख़िताब दी (उपाधि से सम्मानित किया)
  1. बाई तेरा हर निरकाला रावत को - रावल जी 
  2. चौमकिंग सरनाथा को - रावल 
  3. झंड्कारा कांड्कड को - रोहिल्ला 
  4. रावत मन्चारा - कांड्कड काम करन, निरकादास रावत को रावराज और रूहेलाल को रोहिला 
  5. स्वतंत्र रोहिलखंड राज्य संस्थापक महाराजा RANVEER SINGH ROHILA 
  6. रक्षा बंधन के दिन रोहिलखंड की वीर भूमि गंगा सी पवित्र राजपूतों के रक्त से रंजित और आक्रांताओं के काल की धरती रामपुर के किले में दिया था कठेहर रोहिलखंड नरेश,महाराजा रणवीर सिंह रोहिला ने अदम्य साहस और अद्भुत शौर्य का परिचय!,दिल्ली सुलतान नासीरुद्दीन बहराम उर्फ चंगेज की चालीस हजार की सेना को दी थी शिकस्त!**तथा घुटने टेकने पर मजबूर किया था दिल्ली सल्तनत का दुर्दांत खूंखवार सेनापति नसीरुद्दीन महमूद को और प्राणदान मांगने पर क्षात्र धर्म रक्षार्थ छोड़ा था।**चंगेज ने अवसर पाकर रक्षा बंधन के दिन दरबारी गोकुल चंद पांडे हरिद्वार को लालच देकर किले के द्वार खुलवा लिए *धोखे के शिकार लगभग तीन हजार राजपूत निहत्थे ही लड़े,!आक्रमण कारियो के अस्त्र शस्त्र छीन छीन किया था शौर्य संग्राम दिल्ली सल्तनत की लगभग आधी गुलाम वंशी सेना को काट डाला था रोहिला राजपूतो ने!!अंत में चंगेज के खूंखवार दरिंदो ने अकेले में घेर लिया था RANVEER SINGH ROHILA को, जिन्हे आमने सामने की लड़ाई में दिल्ली सुलतान कभी नही हरा पाए थे किंतु वे उनके साहस से विस्मित हुए बिना नहीं रह सके ।रणवीर रणभूमि के वीर सपूत रक्त की अंतिम बूंद रहने तक संग्राम रत रहे और कतरा कतरा हो कर खेत रहे(सन 1254ईस्वी),उनका बलिदान रोहिलखंड के राजपूताना इतिहास में स्वर्णाक्षर दे गया!,समस्त राजपूत समाज रक्षा बंधन के दिन हुए इस बलिदान को एक शोर्य दिवस के रूप में मनाता आया है,यूट्यूब पर और अन्य सोसल मीडिया पर स्वतंत्र रोहिलखंड संस्थापक नरेश महाराजा RANVEER SINGH ROHILA की वीर गाथा दी हुई है,सभी क्षत्रिय जन अपने बच्चो को दिखाए ताकि सल्तनत काल में १२५४ ईसवी के इस इतिहास के धुंधले पृष्ठ भी उकेरे जा सके*, रक्षा बंधन को उनका बलिदान दिवस मनाया जाता है,समस्त क्षत्रिय समाज इस SHOURYA दिवस पर उन्हे कोटि कोटि नमन करते हुए उनके। बताए मार्ग पर स्वाधीनता और स्वाभिमान से स्वधर्म रक्षार्थ जीने की शपथ लेता है,यह सच्चाई हमसे स्कूली शिक्षा में छुपाई गई किंतु इतिहास के दर्पण में सब सुरक्षित रहता है जिसे उजागर कर भावी पीढ़ी को बताना ही हरेक क्षत्रिय का नैतिक दायित्व है अतः आप सभी क्षत्रियों से निवेदन है कि भावी पीढ़ी को सच्चाई बताए और स्वाभिमान से जीना दिखाए।।
  7. सूर्य वंशी निकुंभ क्षत्रिय महाराजा RANVEER SINGH ROHILA का जन्म हिंदूवा सूर्य महाराज पृथ्वी राज चौहान के पतन के बाद दिल्ली सल्तनत के बढ़ते कदमों के बीच ऐसे समय में सन१२०४ईस्वी में कठेहर रोहिलखंड की राजधानी रामपुर के किले में राजा त्रिलोक सिंह के यहां हुआ था, जब सभी राजपूत शक्तियां क्षीण और तितर बितर हो चुकी थी,इस्लामिक आक्रांता मध्य भारत की ओर दमन करते हुए आगे बढ़ते रहते थे।।,रणवीर सिंह रोहिला का विवाह विजय पुर सीकरी की राजकुमारी तारा देवी से हुआ तथा पच्चीस वर्ष की आयु में रामपुर की गद्दी पर विराजमान होकर इस्लामीकरण पर रोक लगाई ।। तीस सालों तक दिल्ली सुलतानो को धूल चटाई किंतु रक्षा बंधन के दिन शिव मंदिर गए राजपूतों को रक्षा सूत्र बंधवाते हुए नसीरुद्दीन बहराम ने गोकुल चंद पांडे के द्वारा किले के द्वार खोलने पर घेर लिया और फिर होगया ADBHUT SHOURYA SANGRAM .. विस्तार  भय से संक्षिप्त गाथा वर्णित है जिसे चाटुकार मुगल कालीन और ब्रिटिश इतिहास कारो ने छिपाया*
  8. रोहिलखंड एक राजपूताना राज्य
कन्नौज पतन के बाद रोहिलखण्ड राज्य की स्थापना कठेहरिया राजा राम शाह उर्फ रामसिंह ने की थी अहिक्षेत्र काम्पिल्य के एक गॉंव रामनगर को रामपुर नगर बसाया ओर यह क्षत्रिय राजा राम के नाम पर रखा गया था यहाँ रोहिले राजपूतो ने 11 पीढ़ी लगातार शासन किया राजा रणवीर सिंह रोहिला ने नाइरुद्दीन महमूद,, ओर हरिसिंह रोहिला ने खिज्रखान को धूल चटाई नोरंगदेव ने पिंगू(तैमूर  लंग)को हराया ।।।san ईस्वी के बाद भी कभी भी पूर्णतया रोहिलखंड को दिल्ली दरबार नही जीत पाया अकबर ओर बाद में औरंगजेब ने चाल चली और अफगानों की घुसपैठ करनी आबादी बढ़ानी शुरू की सन 1707ईस्वी में दाऊद खान बरेच अफगान के जाट दत्तक पुत्र जिसका नाम अलीमुहम्मद रखा था ने धोखे से बरेली में रोहिला राजा हरननंद का कत्ल किया और सम्पूर्ण रोहिलखण्ड पर अधिकार कर लिया इन अफगानों ने भी रोहिलखण्ड के नवाब बन जाने के कारणों से स्वयम को रुहेला  सरदार कहा वास्तव में ये रोहिला नही थे जैसे कि रोह देश के अफगान लिखा यह गलत है ।।जिस काल  में अफगान आए  तब अफगानिस्तान को रोह देश नही कहा जाता था ।।
 यह झूठा मुस्लिम तुष्टि करण का इतिहास है ।।16वी सदी में जगत सिंह कठेहरिया रोहिल्ला राजपूत के पुत्रों बाँसदेव व बर्लदेव के नाम पर बरेली नगर की नीव रखी गयी अफगानों ने कोई नगर नही बसाया उन्होंने अपने  काल मे ही  रामपुर का  नाम राम के नाम पर नही रखा। यह भ्रामक झूठ है कि फैज उल्ला खान ने रामपुर को बसाया था अठारहवीं सदी में जबकि रामपुर रियासत की स्थापना दसवीं सदी में राजा रामसिंह रोहिला(काठी कोम के राजपूत) ने की थी

*रोहिला क्षत्रिय योद्धाओं का शौर्य साहस, युद्ध कौशल, और अपने कुल व राष्ट्र की रक्षा के प्रति बलिदान की भावना में निहित होता था।* *हमारे क्षत्रिय योद्धा युद्ध भूमि में मृत्यु से* *निर्भय होकर लड़ते थे और उनका* *एकमात्र कर्तव्य राज्य व समाज की रक्षा करना था। शौर्य उनके रक्त में समाया हुआ था, जो युद्ध की ज्वाला में अपने बलिदान के रूप में प्रदर्शित होता था।*
*#क्षत्रिय*
*जय राजपूताना अखंड राजपूताना*
*जय राजपूताना,जय राजपूताना रोहिलखंड ,बुंदेलखंड*
संदर्भ 
इतिहास रोहिला राजपूत
 डॉक्टर के सी सैन
रोहिला क्षत्रिय वंश भास्कर
आर आर राजपूत
कठेहरिया रोहिला राजपूत
रोहिला क्षत्रियों का क्रमबद्ध इतिहास
दर्शन लाल रोहिला
मध्य कालीन भारत का इतिहास
ठाकुर अजीत सिंह परिहार
बालाघाट मध्य प्रदेश
 भारत भूमि और उसके वासी पृष्ठ-230 पंडित जयचंद्र विद्यालंकार
2-दून ज्योति-साप्ताहिक देहरादून 18 फरवरी 1974 
पुरुषोत्तम नागेश ओक व डॉक्टर ओमवीर शर्मा हेड ऑफ हिस्ट्री विभाग
3-क्षत्रिय वर्तमान पृष्ठ 97 व 263 ठाकुर अजित सिंह परिहार बालाघाट
4- प्राचीन भारत पृष्ठ -118,159,162 बीएम रस्तोगी इतिहास कार
5 राजतरँगनी पृष्ठ 31-39 कल्हण कृत अनुवादक नीलम अग्रवाल
6-रोहिला क्षत्रिय वन्स भास्कर ,आर आर राजपूत मूरसेन अलीगढ़
7- इतिहास रोहिला राजपूत 
डॉक्टर के सी सेन
8 - भारत का इतिहास पृष्ठ 138 डॉक्टर दया प्रकाश
9-भारतीय इतिहास मीमांसा पृष्ठ 44 जय चंद विद्यालंकार
10- भारतीय इतिहास की रूप रेखा द्वितीय भाग पृष्ठ 699 बीएम रस्तोगी
11-सीमा संरक्षण पृष्ठ 21-22 हरिकृष्ण प्रेमी
12 टॉड राजस्थान पृष्ठ 457 परिच्छेद 43 अनुवादक केशव कुमार ठाकुर
13- प्राचीन भारत का इतिहास राजपूत वन्स पृष्ठ 104 व 105कैलाश प्रकाशन लखनऊ 1970 व पृष्ठ 147
14 रोहिला क्षत्रियो का क्रमबद्ध इतिहास लेखक दर्शन लाल रोहिला 
15 राजपूत ,/क्षत्रिय वाटिका 
राजनीतिन सिंह रावत अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा
16 रिलेशन बिटवीन रोहिला एंड कठहरिया राजपूत निकुम्भ व श्रीनेत वंश 
महेश सिंह कठायत नेपाल आदि बहुत क्षत्रिय वंशावलियों में उपलबद्ध है।।

Thursday, 7 August 2025

*वंश गोत्र किसे कहते हैं,क्या है मानव जीवन में गोत्र का महत्व*

*समान गोत्र में शादी से संतान में आते हैं अनुवांशिक दोष? जानिए क्या है वैज्ञानिक सच?*

१. हिन्दू कुल का गोत्र धरती में एक बीज बोने के बाद वह बीज अपनी जड़ें बनाता है, फिर धीरे धीरे बड़ा होता है और उस पर ढेर सारी टहनियां और पत्ते लगते हैं। हिन्दू कुल का गोत्र सिद्धांत भी कुछ इसी प्रकार का है। ऐतिहासिक रूप से हिन्दू धर्म में सबसे पहले कुछ ऋषियों का चुनाव किया गया था।

२. आने वाला वंश इन ऋषियों के आधार पर आगे इनके वंशज स्थापित किए गए, जो आज युगों से इस रीति को आगे बढ़ा रहे हैं। संस्कृत में गोत्र शब्द उपस्थित नहीं है परंतु इसके स्थान पर गोष्ठ मिला है, जिसका अर्थ एक पवित्र गाय से सम्बन्धित है। गोत्र शब्द को दो हिस्सों में विभाजित करके समझाया गया है।

३. शास्त्रों में गोत्र ‘गो’ का मतलब है ‘गाय’ और शेष्ठ शब्द ‘त्र’ का अर्थ है शाला। पाणिनीकी अष्टाध्यायी में गोत्र की एक परिभाषा भी मौजूद है, ‘अपात्यम पौत्रप्रभ्रति गोत्रम्’, अर्थात 'गोत्र शब्द का अर्थ है बेटे के बेटे के साथ शुरू होने वाली (एक साधु की) संतान्। इस प्रकार से प्राचीन काल से एक ही गोत्र के भीतर होने वाले लड़के और लड़की का एक-दूसरे से भाई-बहन का रिश्ता माना जाता है।

४. गोत्र एक होने पर विवाह नहीं क्योंकि उनके पूर्वज एक ही हैं, इसीलिए वह सगे तो नहीं, लेकिन मूल रूप से भाई बहन ही हुए। इसीलिए गोत्र सिद्धांत के अंतर्गत एक ही गोत्र के लड़के या लड़की का विवाह करने की मनाही होती है। इस विषय पर सामाजिक रूप से काफी गर्मागर्मी का माहौल बना रहता है, क्योंकि हमारी आज की पीढ़ी इन तथ्यों को महज ‘दकियानूसी बातें’ बताती है।

५. विज्ञान भी सहमत परंतु जब विज्ञान ही इसकी पैरवी करने लगे, तो भी क्या नौजवान पीढ़ी इसका समर्थन नहीं करेगी? इसमें कोई दो राय नहीं कि आज का युग तथ्यों के आधार पर बातें करता है। किसी देश की चाहे पूरी जनसंख्या ना ही सही, परंतु उसका एक बड़ा भाग ऐसी बातों पर जरूर सहमत होता है जो वैज्ञानिक प्रणाली से तथ्यों की सही परिभाषा दे।

६. लेकिन नौजवान पीढ़ी मानेगी? यदि हम आप से यह कहें कि आज विज्ञान ने भी यह मान लिया है कि यदि एक ही गोत्र के एक लड़के और लड़की का विवाह कर दिया जाए, तो यह ना केवल सामाजिक बल्कि मानसिक एवं स्वास्थ्य के संदर्भ से भी गलत साबित होता है। इसे समझने के लिए सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि किसी इंसान को उसका गोत्र हासिल कैसे होता है?

७. आठ ऋषि अति प्राचीन काल से गोत्र सिद्धांत की शुरुआत ब्राह्मण गोत्र से हुई थी। इस ब्राह्मण गोत्र के अंतर्गत 8 ऋषियों का चुनाव हुआ जिसमें से पहले सात सप्तर्षि थे और आठवें भारद्वाज ऋषि थे। यदि नामावली की जाए तो यह आठ ऋषि इस प्रकार हैं; अंगिरस, अत्रि, गौतम, कश्यप, भृगु, वशिष्ठ, कुत्स एवं भारद्वाज ऋषि।

८. आधार हैं ये ऋषि उपरोक्त आठ ऋषियों को ‘गोत्रकरिन’ भी कहा जाता है। हिन्दू धर्म में इन गोत्र के आधार पर ही विवाह करने की मान्यता है। एक जैसे गोत्र के लड़का एवं लड़की को भाई-बहन का दर्जा हासिल है। शास्त्रों में एक समान गोत्र में विवाह ना करने के विभिन्न कारण हैं, जिसमें से कुछ मर्यादाओं एवं अन्य कारण वंश रीति को सही रूप से आगे बढ़ाने से सम्बन्धित हैं।

९. तीन पीढ़ियों का गोत्र मिलान क्या आप जानते हैं कि हिन्दू विवाह में किस प्रकार से गोत्र को पहचानने की गणना की जाती है? एक लड़का लड़की की शादी के लिए सिर्फ विवाह के लायक लड़के लड़की का गोत्र ही नहीं मिलाया जाता, बल्कि मां और दादी का भी गोत्र मिलाते हैं। इसका अर्थ है कि तीन पीढ़ियों में कोई भी गोत्र समान नहीं होना चाहिए तभी शादी तय की जाती है।

१०. नयापन नहीं परंतु यदि गोत्र समान हैं तो विवाह ना करने की सलाह दी जाती है। हिन्दू शास्त्रों में एक गोत्र में विवाह करने पर प्रतिबंध इसलिए लगाया गया क्योंकि यह मान्यता है कि एक ही गोत्र या कुल में विवाह होने पर दंपत्ति की संतान अनुवांशिक दोष के साथ उत्पन्न होती है। ऐसे दंपत्तियों की संतान में एक सी विचारधारा, पसंद, व्यवहार आदि में कोई नयापन नहीं होता।

११. एक भी अलग हुआ तो यहां एक और बात ध्यान देने योग्य है कि यदि लड़का और लड़की का गोत्र अलग अलग है तब भी कई बार विवाह करने के मनाही दी जाती है, जिसका कारण है उनके ऊपर की किसी पीढ़ी के गोत्र का मिलान हो जाना। यदि लड़का लड़की के माता पिता या दादा दादी का गोत्र एक जैसा निकले, तब भी विवाह ना करने को कहा जाता है।

१२. क्रोमोसोम का महत्व यह तो हैं शास्त्रीय तथ्य, परंतु विज्ञान भी आज कुछ इसी प्रकार के तर्क दे रहा है। एक मानवीय शरीर में कुछ गुणसूत्र (क्रोमोसोम) पाए जाते हैं। यह दो प्रकार के होते हैं, ‘एक्स’(X) क्रोमोसोम तथा ‘वाय’(Y) क्रोमोसोम। विज्ञान कहता है कि एक ही गोत्र के सभी मर्दों में वाय(Y) क्रोमोसोम एक जैसा ही होता है।

१३. संतान में कमी इसी तरह से एक ही गोत्र की सभी स्त्रियों में भी एक्स(X) क्रोमोसोम एक जैसा होता है। तो यदि एक ही गोत्र के लड़का एवं लड़की की शादी कर दी जाए तो उनकी संतान कुछ कमियों के साथ पैदा होती है। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार एक संतान को अपना गोत्र अपने पिता से ही हासिल होता है, परंतु मलयालम और तेलुगु भाषी समुदायों में संतान का गोत्र उसकी मां के मुताबिक तय किया जाता है।

१४. स्त्री है पति पर निर्भर लेकिन ऐसी अवधारणा क्यों है? क्यों एक बच्चे को उसके पिता का गोत्र या पिता का ही आखिरी नाम हासिल होता है? माता का क्यों नहीं? और क्यों शादी के बाद महिलाएं अपना पुराना गोत्र या पुराना आखिरी नाम छोड़ नए गोत्र को अपनाती हैं? वह उसी गोत्र के साथ अपनी सारी ज़िंदगी क्यों नहीं बिता सकतीं?

१५. शरीर में 23 क्रोमोसोम इसका जवाब आगे की पंक्तियों में आपको हासिल हो सकता है। जैसा कि उपरोक्त लाइनों में बताया गया था कि एक मानवीय शरीर में कुछ क्रोमोसोम शामिल होते हैं। एक शरीर में 23 क्रोमोसोम होते हैं। एक बच्चे को जन्म के बाद अपने माता पिता दोनों से ही बराबर के क्रोमोसोम मिलते हैं।

१६. सेक्स क्रोमोसोम इसका मतलब उसे 46 क्रोमोसोम हासिल होते हैं। इन सभी क्रोमोसोम में से एक खास क्रोमोसोम होता है ‘सेक्स क्रोमोसोम’, जो यह निश्चित करता है कि पैदा होने वाले बच्चे का लिंग ‘मादा’ है या ‘पुरुष’। संभोग के दौरान प्रत्येक इंसान में एक खास क्रोमोसोम की उत्पत्ति होती है।

१७. एक्स एक्स(XX) या एक्स(XY) वाय? यदि संभोग के दौरान बनने वाले ‘सेल्स’ एक्स एक्स(XX) सेक्स क्रोमोसोम का जोड़ा बनाते हैं, तो लड़की पैदा होती है। इसके विपरीत यदि एक्स वाय(XY) सेक्स क्रोमोसोम बनता है, तो लड़का पैदा होगा। एक मां द्वारा केवल एक्स(X) सेक्स क्रोमोसोम ही दिया जाता है। एक पिता ही है जो एक्स (X)और वाय (Y)दोनों सेक्स क्रोमोसोम देने की क्षमता रखता है।

१८. बच्चे का लिंग(पुत्र या पुत्री) यह समाज में एक गलत अवधारणा है कि यदि लड़की पैदा हो तो इसमें मां की गलती है। पिता ही आने वाले बच्चे के लिंग(पुत्र या पुत्री) के लिए जिम्मेदार होता है। लेकिन बच्चे का लिंग(पुत्र या पुत्री) क्या हो इसका चुनाव एक पिता के हाथ में भी नहीं है। यह एक प्राकृतिक प्रतिक्रिया है।

१९. पिता का सेक्स क्रोमोसोम खैर यहां निष्कर्ष यह निकलता है कि यदि लड़का होगा तो उसे अपना सेक्स क्रोमोसोम पिता से हासिल होता है। परंतु एक लड़की अपना सेक्स क्रोमोसोम माता पिता दोनों से हासिल करती है। एक बच्चा यदि लड़का हो तो उसे अपना सेक्स क्रोमोसोम केवल अपने पिता से ही हासिल होता है क्योंकि उसका वाय(Y) क्रोमोसोम उसे कोई और नहीं दे सकता।

२०. किससे मिलता है सेक्स क्रोमोसोम लेकिन एक लड़की को अपना सेक्स क्रोमोसोम उसकी मां और उसकी मां की भी मां से हासिल होता है। इसे वैज्ञानिक भाषा में ‘क्रासओवर’ भी कहा जाता है। इस सारे वैज्ञानिक खेल में एक ‘वाय(Y)’ सेक्स क्रोमोसोम ऐसा है, जो कहीं ना कहीं कम पड़ जाता है।

२१. वाय सेक्स क्रोमोसोम यह वाय(Y) सेक्स क्रोमोसोम कभी भी एक महिला को हासिल नहीं होता है। इस वाय (Y)क्रोमोसोम का गोत्र से काफी गहरा सम्बन्ध है। यदि कोई अंगरस गोत्र से है तो उसका वाय(Y) क्रोमोसोम हजारों वर्ष पीछे से चलकर आया है, जो सीधा ऋषि अंगरस से सम्बन्धित है।

२२. भारद्वाज गोत्र इसके साथ ही यदि व्यक्ति का गोत्र भारद्वाज है जिसके साथ गोत्र परिवार (अंगिरस, बृहस्पत्य, भारद्वाज) भी जुड़े हैं, तो उसका वाय(Y) क्रोमोसोम वर्षों पीछे से अंगिरस से बृहस्पत्य और फिर ब्रहस्पत्य से भारद्वाज में बदलकर आया है। यहां समझने योग्य बात यह है कि केवल वाय(Y) क्रोमोसोम ही ऐसा है जो गोत्र परिवारों को एक आधार प्रदान करता है।

२३. पति का गोत्र इसीलिए यह माना जाता है कि एक स्त्री का खुद का कोई गोत्र नहीं होता। उसका गोत्र वही है जो उसके पति का गोत्र है। उनमें वाय(Y) क्रोमोसोम की अनुपस्थिति उन्हें अपने पति के गोत्र को अपनाने के लिए विवश करती है।
24. समान गोत्र और सपिंड गोत्र में विवाह वर्जित है। 
साभार सत्य सनातन Reposted
*क्या आपको अपने गोत्र की असली शक्ति का पता है?*

*न कोई अनुष्ठान। न कोई अंधविश्वास। यह आपका प्राचीन कोड है।*

*इस पूरे थ्रेड को ऐसे पढ़िए जैसे आपका अतीत इसी पर निर्भर करता हो।*

*गोत्र आपका उपनाम नहीं है। यह आपकी आध्यात्मिक डीएनए है।*

आइए जानते हैं सबसे अजीब बात क्या है?

*हम में से ज्यादातर लोग यह भी नहीं जानते कि हमारा गोत्र क्या है।*
*हम सोचते हैं यह तो बस वो लाइन है जो पंडितजी पूजा में बोलते हैं। लेकिन ये उससे कहीं ज़्यादा है।*

*गोत्र का मतलब है — आप किस ऋषि के मन से जुड़े हुए हैं।*

*खून से नहीं। बल्कि विचार, ऊर्जा, तरंग और ज्ञान से।*

*हर हिंदू आध्यात्मिक रूप से किसी एक ऋषि से जुड़ा हुआ है। वो ऋषि आपके बौद्धिक पूर्वज हैं। उनका ज्ञान, उनका मानसिक स्वरूप, उनकी आंतरिक ऊर्जा — ये सब आप में प्रवाहित होती है।*
*गोत्र का मतलब जाति नहीं है।*
आजकल लोग इसे गड़बड़ा देते हैं।

*गोत्र का ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र से कोई लेना-देना नहीं है। यह जातियों से पहले, उपनामों से पहले, यहाँ तक कि राजाओं से भी पहले से है।*

*यह सबसे प्राचीन पहचान प्रणाली थी — शक्ति नहीं, ज्ञान के आधार पर।*
*हर किसी का गोत्र होता था — यहां तक कि ऋषि भी अपने सच्चे शिष्यों को गोत्र देते थे। यह सीख के बल पर अर्जित होता था।*

*गोत्र कोई लेबल नहीं है। यह एक आध्यात्मिक विरासत की मोहर है।*


*हर गोत्र एक ऋषि से आता है — एक सुपरमाइंड से।*

मान लीजिए आपका गोत्र वशिष्ठ है।

*तो इसका मतलब आपके पूर्वज ऋषि वशिष्ठ थे — वही जिन्होंने भगवान राम और राजा दशरथ को मार्गदर्शन दिया था।*

*इसी तरह, भारद्वाज गोत्र?*
*तो आप उस ऋषि से जुड़े हैं जिन्होंने वेदों के बड़े भाग लिखे और योद्धाओं व विद्वानों को प्रशिक्षित किया।*

*कुल मिलाकर 49 प्रमुख गोत्र हैं। हर एक ऐसे ऋषि से जुड़ा है जो खगोल- शास्त्री, चिकित्सक, योद्धा, मंत्र विशेषज्ञ या प्रकृति वैज्ञानिक थे।*

*बुज़ुर्ग एक ही गोत्र में विवाह क्यों मना करते थे?*

*अब आती है वो बात जो स्कूल में नहीं पढ़ाई जाती*:-
*प्राचीन भारत में गोत्र का उपयोग जेनेटिक लाइन (वंशानुक्रम) को ट्रैक करने के लिए किया जाता था।*

*गोत्र पितृवंश से चलता है अर्थात् पुत्र ऋषि की वंशरेखा को आगे बढ़ाता है।*

*इसलिए यदि एक ही गोत्र के दो व्यक्ति विवाह करें, तो वे आनुवंशिक रूप से भाई-बहन जैसे होते हैं। ऐसे बच्चों में मानसिक और शारीरिक दोष होने की संभावना रहती है।*

*गोत्र प्रणाली = प्राचीन भारतीय डीएनए विज्ञान।*

*और हमें ये हज़ारों साल पहले पता था — पश्चिमी विज्ञान के जेनेटिक्स से पहले।*


*गोत्र = आपका मानसिक प्रोग्रामिंग।*
अब इसे निजी बनाते हैं।
*कुछ लोग जन्म से विचारशील होते हैं। कुछ में गहरी आध्यात्मिक भूख होती है। कुछ को प्रकृति में शांति मिलती है। कुछ स्वाभाविक नेता या सत्य-साधक होते हैं।*

क्यों?

*क्योंकि आपके गोत्र ऋषि का मन अभी भी आपकी प्रवृत्तियों को आकार देता है।*

*जैसे आपका मन आज भी उसी ऋषि की तरंगों से ट्यून है — जैसे वह सोचते, महसूस करते, प्रार्थना करते और शिक्षा देते थे।*

*यदि आपका गोत्र किसी योद्धा ऋषि से है, तो आपमें साहस की भावना होगी।यदि वह किसी चिकित्सक ऋषि से है, तो आप आयुर्वेद या चिकित्सा की ओर आकर्षित होंगे।*

यह कोई संयोग नहीं है — यह गहरी प्रोग्रामिंग है।

*गोत्र का उपयोग शिक्षा को व्यक्तिगत बनाने में होता था। प्राचीन गुरुकुलों में सबको एक जैसा नहीं पढ़ाया जाता था।*

*गुरु का पहला प्रश्न होता था* — *बेटा, तुम्हारा गोत्र क्या है? क्यों? क्योंकि इससे पता चलता था कि छात्र किस तरह से सीखता है। कौन सी विद्या उसके लिए उपयुक्त है। कौन से मंत्र उसकी ऊर्जा से मेल खाते हैं।*

*अत्रि गोत्र का छात्र ध्यान और मंत्र में प्रशिक्षित होता।कश्यप गोत्र का छात्र आयुर्वेद में गहराई तक जाता।*

*गोत्र सिर्फ पहचान नहीं था — यह सीखने की शैली और जीवन पथ था।*


*अंग्रेजों ने इसका मज़ाक उड़ाया। बॉलीवुड ने हँसी बनाई। और हम भूल गए।*

*जब अंग्रेज आए, उन्होंने इस प्रणाली को अंधविश्वास कहा।*

*वे गोत्र को समझ नहीं सके — इसलिए उसे बकवास बता दिया।*

*बॉलीवुड ने फिर मजाक बनाया। पंडितजी फिर गोत्र पूछ रहे हैं! — जैसे यह कोई बेकार पुरानी बात हो।*

*और धीरे-धीरे, हमने अपने दादाजी - दादीजी या नानाजी - नानीजी से पूछना बंद कर दिया। हमने अपने बच्चों को बताना छोड़ दिया।*

सिर्फ 100 साल में, 10,000 साल पुरानी व्यवस्था गायब हो रही है।

*उन्होंने इसे मारा नहीं। हमने इसे मरने दिया।*


*यदि आप अपना गोत्र नहीं जानते — आपने एक नक्शा खो दिया है।*

*कल्पना कीजिए कि आप एक प्राचीन शाही परिवार के सदस्य हैं — लेकिन अपना उपनाम भी नहीं जानते।*

यही गंभीरता है।

*आपका गोत्र आपके पूर्वजों का जीपीएस है — जो आपको मार्ग दिखाता है:*

*सही मंत्र, सही अनुष्ठान, सही ऊर्जा उपचार, सही आध्यात्मिक मार्ग, विवाह में सही मेल। इसके बिना, हम अपने ही धर्म में अंधे होकर चल रहे हैं।*


*गोत्र की परंपराएँ "सिर्फ दिखावा" नहीं थीं।*

*जब पंडित जी पूजा में आपका गोत्र बोलते हैं — वो सिर्फ औपचारिकता नहीं कर रहे। वो आपको ऋषि की ऊर्जा से जोड़ रहे हैं। आपकी आध्यात्मिक वंश परंपरा को बुला रहे हैं। ताकि वह साक्षी बने और आशीर्वाद दे।*

*इसीलिए संकल्प में गोत्र बोलना महत्वपूर्ण है — जैसे कहा जा रहा हो।*

*मैं, भारद्वाज ऋषि का वंशज, पूर्ण आत्म - जागरूकता के साथ ईश्वर से सहायता मांगता हूँ।*

यह सुंदर है। पवित्र है। और सच्चा है।

*अपने गोत्र को फिर से जानिए — इससे पहले कि बहुत देर हो जाए। अपने माता-पिता से पूछिए। अपने दादा-दादी या नाना-नानी से पूछिए। ज़रूरत हो तो शोध कीजिए। लेकिन इस हिस्से को जाने बिना न जिएं।*

*इसे लिख लीजिए। अपने बच्चों को बताइए। गर्व से कहिए।*

*आप सिर्फ 1990 या 2000 में जन्मे कोई आम व्यक्ति नहीं हैं। आप एक अनंत ज्वाला के वाहक हैं, जिसे हजारों साल पहले किसी ऋषि ने प्रज्वलित किया था।*

*आप उस कहानी का अभी तक का अंतिम अध्याय हैं — जो महाभारत, रामायण, यहां तक कि समय की गिनती शुरू होने से भी पहले शुरू हुई थी।*

*आपका गोत्र आपकी आत्मा का भुलाया हुआ पासवर्ड है।*

*आज के युग में हम वाई-फाई पासवर्ड याद रखते हैं, ईमेल लॉगिन्स, नेटफ्लिक्स कोड…लेकिन हम अपना सबसे प्राचीन पासकोड भूल जाते हैं — अपना गोत्र।*

*वह एक शब्द, एक पूरी धारा खोल सकता है — पूर्वजों का ज्ञान, मानसिक प्रवृत्तियाँ, कर्मिक स्मृतियाँ, यहां तक कि आपकी आध्यात्मिक कमज़ोरियाँ और ताकतें।*

*यह सिर्फ एक लेबल नहीं — एक चाबी है। आप या तो इसका उपयोग करते हैं… या इसे खो देते हैं।*

*महिलाएं विवाह के बाद अपना गोत्र "खोती" नहीं हैं — वे उसे चुपचाप संभालती हैं।*
*बहुत लोग मानते हैं कि महिलाएं विवाह के बाद अपना गोत्र बदल देती हैं। लेकिन सनातन धर्म बहुत सूक्ष्म है।*

*श्राद्ध जैसे अनुष्ठानों में भी, स्त्री का गोत्र उसके पिता के वंश से लिया जाता है। क्यों? क्योंकि गोत्र वाई - क्रोमोसोम (पुरुष वंश) से चलता है।*

*स्त्रियाँ उस ऊर्जा को धारण करती हैं, लेकिन आनुवंशिक रूप से आगे नहीं बढ़ातीं।*

*इसलिए नहीं — स्त्री का गोत्र विवाह के बाद समाप्त नहीं होता। वह उसमें जीवित रहता है।*

*देवता भी गोत्र नियमों का पालन करते थे। रामायण में जब भगवान श्रीराम और सीता का विवाह हुआ — तब भी उनके गोत्र की जाँच की गई थी।*

*राम: इक्ष्वाकु वंश, वशिष्ठ गोत्र*

*सीता: जनक की पुत्री, कश्यप गोत्र वंश*

*उन्होंने सिर्फ प्रेम के नाम पर विवाह नहीं किया। दिव्य रूपों ने भी धर्म का पालन किया।*

*यह प्रणाली कितनी पवित्र थी — और आज भी है।*

गोत्र और प्रारब्ध कर्म का गहरा संबंध है

*क्या कभी ऐसा लगा है कि कुछ आदतें, प्रवृत्तियाँ, इच्छाएँ — बचपन से ही आपके अंदर हैं?*

*यह आपके प्रारब्ध कर्म का हिस्सा हो सकता है — जो इस जीवन में फल देने लगे हैं।*

और गोत्र इस पर प्रभाव डालता है।

*हर ऋषि की अपनी कर्मिक प्रवृत्तियाँ थीं। आप, उनकी ऊर्जा को लेकर, उन्हीं कर्मों की ओर आकर्षित हो सकते हैं — जब तक आप उसे तोड़ने का संकल्प न लें।*

*गोत्र जानना = अपने कर्म पथ को समझना और शुद्ध करना।*

*हर गोत्र का अपना देवता और बीज मंत्र होता है। गोत्र सिर्फ मानसिक वंश नहीं हैं — ये विशिष्ट देवताओं और बीज मंत्रों से जुड़े होते हैं, जो आपकी आत्मा की आवृत्ति से मेल खाते हैं।*

*कभी ऐसा लगा कि कोई मंत्र आप पर असर नहीं कर रहा?*

*शायद आप अपने फोन को गलत चार्जर से चार्ज करने की कोशिश कर रहे हैं।*

*सही मंत्र + आपका गोत्र = आध्यात्मिक करंट का प्रवाह।*

*यह जानना आपकी साधना, ध्यान और उपचार की शक्ति को 10 गुना बढ़ा सकता है।*


*जब भ्रम हो — गोत्र आपकी आंतरिक दिशा है*
*आज की दुनिया में हर कोई खोया हुआ है।*

*जीवन का उद्देश्य, रिश्ते, करियर, धर्म — हर चीज़ में उलझन है।*

*लेकिन यदि आप चुपचाप बैठें और अपने गोत्र, अपने ऋषि, अपनी पूर्वज प्रवृत्तियों पर ध्यान करें — तो आंतरिक स्पष्टता मिलने लगेगी।*

*आपके ऋषि उलझन में नहीं जीते थे। उनका विचार प्रवाह अभी भी आपकी नसों में बह रहा है।*

*उससे जुड़ जाइए — और खोए हुए नहीं, जड़ों से जुड़े महसूस करने लगेंगे।*
*हर महान हिंदू राजा गोत्र का सम्मान करता था*

*चंद्रगुप्त मौर्य से लेकर हर्षवर्धन, शिवाजी महाराज तक — सभी राजाओं के पास राजगुरु होते थे, जो कुल, गोत्र और संप्रदाय का रिकॉर्ड रखते थे।*

*यहां तक कि राजनीति और युद्ध के निर्णय भी गोत्र संबंधों, मेलों और रक्त संबंधों के आधार पर होते थे।*

*क्यों? क्योंकि गोत्र को नजरअंदाज करना ऐसा था जैसे अपनी रीढ़ को नजरअंदाज करना।*

*गोत्र प्रणाली ने महिलाओं को शोषण से बचाया।*

*इसे “पिछड़ा” कहने से पहले समझिए — प्राचीन काल में गोत्र का पालन अनाचार को रोकने, कुल की मर्यादा बनाए रखने और लड़कियों की गरिमा की रक्षा के लिए होता था।*

*यहां तक कि यदि कोई महिला युद्ध में बिछड़ जाए या अगवा हो जाए — तो उसका गोत्र उसे पहचानने और सम्मान दिलाने में मदद करता था।*

*यह पिछड़ापन नहीं — यह दूरदर्शी व्यवस्था थी। गोत्र = ब्रह्मांडीय खेल में आपकी भूमिका।*

*हर ऋषि केवल ध्यान नहीं करते थे — वे ब्रह्मांड के लिए कर्तव्य निभाते थे।*

*कोई शरीर के उपचार पर केंद्रित था। कोई ग्रह-नक्षत्रों को समझ रहा था।*

*कोई धर्म की रक्षा कर रहा था, कोई न्याय प्रणाली बना रहा था।*

*आपका गोत्र उस उद्देश्य की गूंज अपने अंदर रखता है।*

*यदि जीवन में खालीपन लगता है — शायद आपने अपनी ब्रह्मांडीय भूमिका को भूल दिया है।*

गोत्र खोजिए। आप खुद को पा लेंगे।

*यह धर्म की बात नहीं — यह पहचान की बात है।*

*चाहे कोई नास्तिक हो… या सिर्फ आध्यात्मिक… या फिर अनुष्ठानों से उलझन में — गोत्र फिर भी मायने रखता है।*

*क्योंकि यह धर्म से परे है।यह पूर्वज चेतना है। यह भारत की वह गहराई है, जो ज़बरदस्ती नहीं करती — बस चुपचाप मार्गदर्शन देती है।*

*आपको इसमें “विश्वास” करने की ज़रूरत नहीं। बस इसे याद रखने की ज़रूरत है।*

अंतिम शब्द:
*आपका नाम भले ही आधुनिक हो।*
*आपकी जीवनशैली भले ही वैश्विक हो।*
*लेकिन आपका गोत्र समय से परे है।*

*और यदि आप इसे अनदेखा करते हैं, तो आप उस नदी की तरह हैं — जो नहीं जानती कि वह कहाँ से आई है।*

*गोत्र आपका “अतीत” नहीं है यह भविष्य के ज्ञान का पासवर्ड है।*

*इसे खोलिए — इससे पहले कि अगली पीढ़ी भूल जाए कि ऐसा कुछ था भी*।

क्या आप अपने गोत्र की असली शक्ति को जानते हैं? ..

#लेखांक को पूरा पढ़े..

यह कोई परंपरा नहीं है। कोई अंधविश्वास नहीं है। यह आपका प्राचीन कोड है।

यह पूरा लेख पढ़िए — मानो आपका अतीत इसी पर टिका हो।

1. गोत्र आपका उपनाम नहीं है। यह आपकी आध्यात्मिक डीएनए है।
पता है सबसे अजीब क्या है?
अधिकतर लोग जानते ही नहीं कि वे किस गोत्र से हैं।
हमें लगता है कि यह बस एक लाइन है जो पंडितजी पूजा में कहते हैं। लेकिन यह सिर्फ इतना नहीं है।

आपका गोत्र दर्शाता है — आप किस ऋषि की मानसिक ऊर्जा से जुड़े हुए हैं।
खून से नहीं, बल्कि विचार, ऊर्जा, तरंग और ज्ञान से।

हर हिंदू आध्यात्मिक रूप से एक ऋषि से जुड़ा होता है।
वो ऋषि आपके बौद्धिक पूर्वज हैं।
उनकी सोच, ऊर्जा, और चेतना आज भी आपमें बह रही है।

2. गोत्र का अर्थ जाति नहीं होता।
आज लोग इसे गड़बड़ा देते हैं।
गोत्र ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र नहीं दर्शाता।
यह जातियों से पहले, उपनामों से पहले, राजाओं से भी पहले अस्तित्व में था।

यह सबसे प्राचीन पहचान का तरीका था — ज्ञान पर आधारित, शक्ति पर नहीं।
हर किसी का गोत्र होता था।
ऋषि अपने शिष्यों को गोत्र देते थे जब वे उनकी शिक्षाओं को ईमानदारी से अपनाते थे।

इसलिए, गोत्र कोई लेबल नहीं — यह आध्यात्मिक विरासत की मुहर है।

3. हर गोत्र एक ऋषि से जुड़ा होता है — एक “सुपरमाइंड” से
मान लीजिए आप वशिष्ठ गोत्र से हैं — तो आप वशिष्ठ ऋषि से जुड़े हैं, वही जिन्होंने श्रीराम और दशरथ को मार्गदर्शन दिया था।

भृगु गोत्र?
आप उस ऋषि से जुड़े हैं जिन्होंने वेदों का हिस्सा लिखा और योद्धाओं को प्रशिक्षण दिया।

कुल 49 मुख्य गोत्र हैं — हर एक ऋषियों से जुड़ा जो ज्योतिषी, वैद्य, योद्धा, मंत्रद्रष्टा या प्रकृति वैज्ञानिक थे।

4. क्यों बुज़ुर्ग एक ही गोत्र में विवाह मना करते थे?
यह बात स्कूल में नहीं सिखाई जाती।

प्राचीन भारत में गोत्र एक जेनेटिक ट्रैकर था।
यह पितृवंश से चलता है — यानी पुत्र ऋषि की लाइन आगे बढ़ाते हैं।

इसलिए अगर एक ही गोत्र के दो लोग विवाह करें, तो वे आनुवंशिक रूप से भाई-बहन जैसे होंगे।
इससे संतान में मानसिक और शारीरिक विकार आ सकते हैं।

गोत्र व्यवस्था = प्राचीन भारतीय डीएनए विज्ञान
और यह हम हजारों साल पहले जानते थे — जब पश्चिमी विज्ञान को जेनेटिक्स का भी अंदाजा नहीं था।

5. गोत्र = आपका मानसिक प्रोग्रामिंग
चलो इसे व्यक्तिगत बनाते हैं।

कुछ लोग गहरे विचारक होते हैं।
कुछ में गहरी आध्यात्मिक भूख होती है।
कुछ को प्रकृति में शांति मिलती है।
कुछ नेता या सत्य के खोजी होते हैं।

क्यों?
क्योंकि आपके गोत्र के ऋषि का मन आज भी आपके अंदर गूंजता है।

अगर आपका गोत्र किसी योद्धा ऋषि का है — आपको साहस महसूस होगा।
अगर वह किसी वैद्य ऋषि से है — तो आयुर्वेद या चिकित्सा में रुचि हो सकती है।

यह संयोग नहीं — यह गहराई से जुड़ा प्रोग्राम है।

6. पहले गोत्र के आधार पर शिक्षा दी जाती थी
प्राचीन गुरुकुलों में सबको एक जैसा नहीं सिखाया जाता था।
गुरु का पहला प्रश्न होता था:
“बेटा, तुम्हारा गोत्र क्या है?”

क्यों?
क्योंकि इससे गुरु समझ जाते थे कि छात्र कैसे सीखता है, कौन सी विद्या उसके लिए उपयुक्त है।

अत्रि गोत्र वाला छात्र — ध्यान और मंत्रों में प्रशिक्षित होता।

कश्यप गोत्र वाला — आयुर्वेद में गहराई से जाता।

गोत्र सिर्फ पहचान नहीं, जीवनपथ था।

7. ब्रिटिशों ने इसका मज़ाक उड़ाया, बॉलीवुड ने हंसी बनाई, और हमने इसे भुला दिया
जब ब्रिटिश भारत आए, उन्होंने इसे अंधविश्वास कहा।

फिर फिल्मों में मज़ाक बना —
“पंडितजी फिर से गोत्र पूछ रहे हैं!” — जैसे यह कोई बेमतलब रस्म हो।

धीरे-धीरे हमने अपने बुज़ुर्गों से पूछना छोड़ दिया।
अपने बच्चों को बताना छोड़ दिया।

100 साल में 10,000 साल पुरानी व्यवस्था लुप्त हो रही है।

उसे किसी ने खत्म नहीं किया। हमने ही उसे मरने दिया।

8. अगर आप अपना गोत्र नहीं जानते — तो आपने एक नक्शा खो दिया है
कल्पना कीजिए कि आप किसी प्राचीन राजघराने से हों — पर अपना उपनाम तक नहीं जानते।

आपका गोत्र = आपकी आत्मा का GPS है।

सही मंत्र

सही साधना

सही विवाह

सही मार्गदर्शन

इसके बिना हम अपने ही धर्म में अंधे होकर चल रहे हैं।

9. गोत्र की पुकार सिर्फ रस्म नहीं होती
जब पंडित पूजा में आपका गोत्र बोलते हैं, तो वे सिर्फ औपचारिकता नहीं निभा रहे।

वे आपको आपकी ऋषि ऊर्जा से दोबारा जोड़ रहे होते हैं।

यह एक पवित्र संवाद होता है:
“मैं, भारद्वाज ऋषि की संतान, अपने आत्मिक वंशजों की उपस्थिति में यह संकल्प करता हूँ।”

यह सुंदर है। पवित्र है। सच्चा है।

10. इसे फिर से जीवित करो — इसके लुप्त होने से पहले
अपने माता-पिता से पूछो।
दादी-दादा से पूछो।
शोध करो, पर इसे जाने मत दो।

आप सिर्फ 1990 या 2000 में जन्मे इंसान नहीं हैं 

आप एक ऐसी ज्योति के वाहक हैं जो हजारों साल पहले किसी ऋषि ने जलाई थी।

11. आपका गोत्र = आत्मा का पासवर्ड
आज हम वाई-फाई पासवर्ड, नेटफ्लिक्स लॉगिन याद रखते हैं...

पर अपने गोत्र को भूल जाते हैं।

वो एक शब्द — आपके भीतर की

चेतना

आदतें

पूर्व कर्म

आध्यात्मिक शक्तियां

…सब खोल सकता है।

यह लेबल नहीं — यह चाबी है।

12. महिलाएं विवाह के बाद गोत्र “खोती” नहीं हैं
लोग सोचते हैं कि विवाह के बाद स्त्री का गोत्र बदल जाता है। पर सनातन धर्म सूक्ष्म है।

श्राद्ध आदि में स्त्री का गोत्र पिता से लिया जाता है।
क्योंकि गोत्र पुरुष रेखा से चलता है (Y-क्रोमोज़ोम से)।
स्त्री ऊर्जा को वहन करती है, लेकिन आनुवंशिक रूप से उसे आगे नहीं बढ़ाती।

इसलिए स्त्री का गोत्र समाप्त नहीं होता — वह उसमें मौन रूप से जीवित रहता है।

13. भगवानों ने भी गोत्र का पालन किया
रामायण में श्रीराम और सीता के विवाह में भी गोत्र जांचा गया

राम: इक्ष्वाकु वंश, वशिष्ठ गोत्र

सीता: जनक की पुत्री, कश्यप गोत्र



🚩🔥🕉️🌹🙏

गौत्र और वंश....
गुणसूत्र वंश का वाहक

हमारे धार्मिक ग्रंथ और हमारी सनातन हिन्दू परंपरा के अनुसार पुत्र (बेटा) को कुलदीपक अथवा वंश को आगे बढ़ाने वाला माना जाता है..... 
अर्थात.... उसे गोत्र का वाहक माना जाता है.

क्या आप जानते हैं कि.... आखिर क्यों होता है कि सिर्फ पुत्र को ही वंश का वाहक माना जाता है ????

असल में इसका कारण.... पुरुष प्रधान समाज अथवा पितृसत्तात्मक व्यवस्था नहीं .... 
बल्कि, हमारे जन्म लेने की प्रक्रिया है.

अगर हम जन्म लेने की प्रक्रिया को सूक्ष्म रूप से देखेंगे तो हम पाते हैं कि......

एक स्त्री में गुणसूत्र (Chromosomes) XX होते है.... और, पुरुष में XY होते है. 

इसका मतलब यह हुआ कि.... अगर पुत्र हुआ (जिसमें XY गुणसूत्र है)... तो, उस पुत्र में Y गुणसूत्र पिता से ही आएगा क्योंकि माता में तो Y गुणसूत्र होता ही नही है

और.... यदि पुत्री हुई तो (xx गुणसूत्र) तो यह गुणसूत्र पुत्री में माता व् पिता दोनों से आते है.

XX गुणसूत्र अर्थात पुत्री

अब इस XX गुणसूत्र के जोड़े में एक X गुणसूत्र पिता से तथा दूसरा X गुणसूत्र माता से आता है. 

तथा, इन दोनों गुणसूत्रों का संयोग एक गांठ सी रचना बना लेता है... जिसे, Crossover कहा जाता है.

जबकि... पुत्र में XY गुणसूत्र होता है.

अर्थात.... जैसा कि मैंने पहले ही बताया कि.... पुत्र में Y गुणसूत्र केवल पिता से ही आना संभव है क्योंकि माता में Y गुणसूत्र होता ही नहीं है.

और.... दोनों गुणसूत्र अ-समान होने के कारण.... इन दोनों गुणसूत्र का पूर्ण Crossover नहीं... बल्कि, केवल 5 % तक ही Crossover होता है.

और, 95 % Y गुणसूत्र ज्यों का त्यों (intact) ही बना रहता है.

तो, इस लिहाज से महत्त्वपूर्ण Y गुणसूत्र हुआ.... क्योंकि, Y गुणसूत्र के विषय में हम निश्चिंत है कि.... यह पुत्र में केवल पिता से ही आया है.

बस..... इसी Y गुणसूत्र का पता लगाना ही गौत्र प्रणाली का एकमात्र उदेश्य है जो हजारों/लाखों वर्षों पूर्व हमारे ऋषियों ने जान लिया था.

इस तरह ये बिल्कुल स्पष्ट है कि.... हमारी वैदिक गोत्र प्रणाली, गुणसूत्र पर आधारित है अथवा Y गुणसूत्र को ट्रेस करने का एक माध्यम है.

उदाहरण के लिए .... यदि किसी व्यक्ति का गोत्र शांडिल्य है तो उस व्यक्ति में विद्यमान Y गुणसूत्र शांडिल्य ऋषि से आया है.... या कहें कि शांडिल्य ऋषि उस Y गुणसूत्र के मूल हैं.

अब चूँकि.... Y गुणसूत्र स्त्रियों में नहीं होता है इसीलिए विवाह के पश्चात स्त्रियों को उसके पति के गोत्र से जोड़ दिया जाता है.

वैदिक/ हिन्दू संस्कृति में एक ही गोत्र में विवाह वर्जित होने का मुख्य कारण यह है कि एक ही गोत्र से होने के कारण वह पुरुष व् स्त्री भाई-बहन कहलाए क्योंकि उनका पूर्वज (ओरिजिन) एक ही है..... क्योंकि, एक ही गोत्र होने के कारण...
दोनों के गुणसूत्रों में समानता होगी.

आज की आनुवंशिक विज्ञान के अनुसार भी..... यदि सामान गुणसूत्रों वाले दो व्यक्तियों में विवाह हो तो उनके संतान... आनुवंशिक विकारों का साथ उत्पन्न होगी क्योंकि.... ऐसे दंपत्तियों की संतान में एक सी विचारधारा, पसंद, व्यवहार आदि में कोई नयापन नहीं होता एवं ऐसे बच्चों में रचनात्मकता का अभाव होता है.

विज्ञान द्वारा भी इस संबंध में यही बात कही गई है कि सगौत्र शादी करने पर अधिकांश ऐसे दंपत्ति की संतानों में अनुवांशिक दोष अर्थात् मानसिक विकलांगता, अपंगता, गंभीर रोग आदि जन्मजात ही पाए जाते हैं.
शास्त्रों के अनुसार इन्हीं कारणों से सगौत्र विवाह पर प्रतिबंध लगाया था.
यही कारण था कि शारीरिक बिषमता के कारण अग्रेज राज परिवार में आपसी विवाह बन्द हुए। 
जैसा कि हम जानते हैं कि.... पुत्री में 50% गुणसूत्र माता का और 50% पिता से आता है.

फिर, यदि पुत्री की भी पुत्री हुई तो.... वह डीएनए 50% का 50% रह जायेगा...
और फिर.... यदि उसके भी पुत्री हुई तो उस 25% का 50% डीएनए रह जायेगा.

इस तरह से सातवीं पीढ़ी में पुत्री जन्म में यह % घटकर 1% रह जायेगा.

अर्थात.... एक पति-पत्नी का ही डीएनए सातवीं पीढ़ी तक पुनः पुनः जन्म लेता रहता है....और, यही है "सात जन्मों के साथ का रहस्य".

लेकिन..... यदि संतान पुत्र है तो .... पुत्र का गुणसूत्र पिता के गुणसूत्रों का 95% गुणों को अनुवांशिकी में ग्रहण करता है और माता का 5% (जो कि किन्हीं परिस्थितियों में एक % से कम भी हो सकता है) डीएनए ग्रहण करता है...
और, यही क्रम अनवरत चलता रहता है.

जिस कारण पति और पत्नी के गुणों युक्त डीएनए बारम्बार जन्म लेते रहते हैं.... अर्थात, यह जन्म जन्मांतर का साथ हो जाता है.

इन सब में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि.... माता पिता यदि कन्यादान करते हैं तो इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि वे कन्या को कोई वस्तु समकक्ष समझते हैं...

बल्कि, इस दान का विधान इस निमित किया गया है कि दूसरे कुल की कुलवधू बनने के लिये और उस कुल की कुल धात्री बनने के लिये, उसे गोत्र मुक्त होना चाहिए. 

पुत्रियां..... आजीवन डीएनए मुक्त हो नहीं सकती क्योंकि उसके भौतिक शरीर में वे डीएनए रहेंगे ही, इसलिये मायका अर्थात माता का रिश्ता बना रहता है.

शायद यही कारण है कि..... विवाह के पश्चात लड़कियों के पिता को घर को ""मायका"" ही कहा जाता है.... "'पिताका"" नहीं.

क्योंकि..... उसने अपने जन्म वाले गोत्र अर्थात पिता के गोत्र का त्याग कर दिया है....!

और चूंकि..... कन्या विवाह के बाद कुल वंश के लिये रज का दान कर मातृत्व को प्राप्त करती है... इसीलिए, हर विवाहित स्त्री माता समान पूजनीय हो जाती है.

आश्चर्य की बात है कि.... हमारी ये परंपराएं हजारों-लाखों साल से चल रही है जिसका सीधा सा मतलब है कि हजारों लाखों साल पहले.... जब पश्चिमी देशों के लोग नंग-धड़ंग जंगलों में रह रहा करते थे और चूहा ,बिल्ली, कुत्ता वगैरह मारकर खाया करते थे....

उस समय भी हमारे पूर्वज ऋषि मुनि.... इंसानी शरीर में गुणसूत्र के विभक्तिकरण को समझ गए थे.... और, हमें गोत्र सिस्टम में बांध लिया था.

इस बातों से एक बार फिर ये स्थापित होता है कि....  
हमारा सनातन हिन्दू धर्म पूर्णतः वैज्ञानिक है....

बस, हमें ही इस बात का भान नहीं है.

असल में..... अंग्रेजों ने जो हमलोगों के मन में जो कुंठा बोई है..... उससे बाहर आकर हमें अपने पुरातन विज्ञान को फिर से समझकर उसे अपनी नई पीढियों को बताने और समझाने की जरूरत है.
*गोत्र के महत्व को वैज्ञानिक तरीके से समझे अज्ञानता की हठधर्मिता न करे*