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Tuesday, 24 June 2025

गोत्र का महत्व एक डी एन ए की तरह है

*क्या आपको अपने गोत्र की असली शक्ति का पता है?*

*न कोई अनुष्ठान। न कोई अंधविश्वास। यह आपका प्राचीन कोड है।*

*इस पूरे थ्रेड को ऐसे पढ़िए जैसे आपका अतीत इसी पर निर्भर करता हो।*

*गोत्र आपका उपनाम नहीं है। यह आपकी आध्यात्मिक डीएनए है।*

आइए जानते हैं सबसे अजीब बात क्या है?

*हम में से ज्यादातर लोग यह भी नहीं जानते कि हमारा गोत्र क्या है।*
*हम सोचते हैं यह तो बस वो लाइन है जो पंडितजी पूजा में बोलते हैं। लेकिन ये उससे कहीं ज़्यादा है।*

*गोत्र का मतलब है — आप किस ऋषि के मन से जुड़े हुए हैं।*

*खून से नहीं। बल्कि विचार, ऊर्जा, तरंग और ज्ञान से।*

*हर हिंदू आध्यात्मिक रूप से किसी एक ऋषि से जुड़ा हुआ है। वो ऋषि आपके बौद्धिक पूर्वज हैं। उनका ज्ञान, उनका मानसिक स्वरूप, उनकी आंतरिक ऊर्जा — ये सब आप में प्रवाहित होती है।*
*गोत्र का मतलब जाति नहीं है।*
आजकल लोग इसे गड़बड़ा देते हैं।

*गोत्र का ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र से कोई लेना-देना नहीं है। यह जातियों से पहले, उपनामों से पहले, यहाँ तक कि राजाओं से भी पहले से है।*

*यह सबसे प्राचीन पहचान प्रणाली थी — शक्ति नहीं, ज्ञान के आधार पर।*
*हर किसी का गोत्र होता था — यहां तक कि ऋषि भी अपने सच्चे शिष्यों को गोत्र देते थे। यह सीख के बल पर अर्जित होता था।*

*गोत्र कोई लेबल नहीं है। यह एक आध्यात्मिक विरासत की मोहर है।*


*हर गोत्र एक ऋषि से आता है — एक सुपरमाइंड से।*

मान लीजिए आपका गोत्र वशिष्ठ है।

*तो इसका मतलब आपके पूर्वज ऋषि वशिष्ठ थे — वही जिन्होंने भगवान राम और राजा दशरथ को मार्गदर्शन दिया था।*

*इसी तरह, भारद्वाज गोत्र?*
*तो आप उस ऋषि से जुड़े हैं जिन्होंने वेदों के बड़े भाग लिखे और योद्धाओं व विद्वानों को प्रशिक्षित किया।*

*कुल मिलाकर 49 प्रमुख गोत्र हैं। हर एक ऐसे ऋषि से जुड़ा है जो खगोल- शास्त्री, चिकित्सक, योद्धा, मंत्र विशेषज्ञ या प्रकृति वैज्ञानिक थे।*

*बुज़ुर्ग एक ही गोत्र में विवाह क्यों मना करते थे?*

*अब आती है वो बात जो स्कूल में नहीं पढ़ाई जाती*:-
*प्राचीन भारत में गोत्र का उपयोग जेनेटिक लाइन (वंशानुक्रम) को ट्रैक करने के लिए किया जाता था।*

*गोत्र पितृवंश से चलता है अर्थात् पुत्र ऋषि की वंशरेखा को आगे बढ़ाता है।*

*इसलिए यदि एक ही गोत्र के दो व्यक्ति विवाह करें, तो वे आनुवंशिक रूप से भाई-बहन जैसे होते हैं। ऐसे बच्चों में मानसिक और शारीरिक दोष होने की संभावना रहती है।*

*गोत्र प्रणाली = प्राचीन भारतीय डीएनए विज्ञान।*

*और हमें ये हज़ारों साल पहले पता था — पश्चिमी विज्ञान के जेनेटिक्स से पहले।*


*गोत्र = आपका मानसिक प्रोग्रामिंग।*
अब इसे निजी बनाते हैं।
*कुछ लोग जन्म से विचारशील होते हैं। कुछ में गहरी आध्यात्मिक भूख होती है। कुछ को प्रकृति में शांति मिलती है। कुछ स्वाभाविक नेता या सत्य-साधक होते हैं।*

क्यों?

*क्योंकि आपके गोत्र ऋषि का मन अभी भी आपकी प्रवृत्तियों को आकार देता है।*

*जैसे आपका मन आज भी उसी ऋषि की तरंगों से ट्यून है — जैसे वह सोचते, महसूस करते, प्रार्थना करते और शिक्षा देते थे।*

*यदि आपका गोत्र किसी योद्धा ऋषि से है, तो आपमें साहस की भावना होगी।यदि वह किसी चिकित्सक ऋषि से है, तो आप आयुर्वेद या चिकित्सा की ओर आकर्षित होंगे।*

यह कोई संयोग नहीं है — यह गहरी प्रोग्रामिंग है।

*गोत्र का उपयोग शिक्षा को व्यक्तिगत बनाने में होता था। प्राचीन गुरुकुलों में सबको एक जैसा नहीं पढ़ाया जाता था।*

*गुरु का पहला प्रश्न होता था* — *बेटा, तुम्हारा गोत्र क्या है? क्यों? क्योंकि इससे पता चलता था कि छात्र किस तरह से सीखता है। कौन सी विद्या उसके लिए उपयुक्त है। कौन से मंत्र उसकी ऊर्जा से मेल खाते हैं।*

*अत्रि गोत्र का छात्र ध्यान और मंत्र में प्रशिक्षित होता।कश्यप गोत्र का छात्र आयुर्वेद में गहराई तक जाता।*

*गोत्र सिर्फ पहचान नहीं था — यह सीखने की शैली और जीवन पथ था।*


*अंग्रेजों ने इसका मज़ाक उड़ाया। बॉलीवुड ने हँसी बनाई। और हम भूल गए।*

*जब अंग्रेज आए, उन्होंने इस प्रणाली को अंधविश्वास कहा।*

*वे गोत्र को समझ नहीं सके — इसलिए उसे बकवास बता दिया।*

*बॉलीवुड ने फिर मजाक बनाया। पंडितजी फिर गोत्र पूछ रहे हैं! — जैसे यह कोई बेकार पुरानी बात हो।*

*और धीरे-धीरे, हमने अपने दादाजी - दादीजी या नानाजी - नानीजी से पूछना बंद कर दिया। हमने अपने बच्चों को बताना छोड़ दिया।*

सिर्फ 100 साल में, 10,000 साल पुरानी व्यवस्था गायब हो रही है।

*उन्होंने इसे मारा नहीं। हमने इसे मरने दिया।*


*यदि आप अपना गोत्र नहीं जानते — आपने एक नक्शा खो दिया है।*

*कल्पना कीजिए कि आप एक प्राचीन शाही परिवार के सदस्य हैं — लेकिन अपना उपनाम भी नहीं जानते।*

यही गंभीरता है।

*आपका गोत्र आपके पूर्वजों का जीपीएस है — जो आपको मार्ग दिखाता है:*

*सही मंत्र, सही अनुष्ठान, सही ऊर्जा उपचार, सही आध्यात्मिक मार्ग, विवाह में सही मेल। इसके बिना, हम अपने ही धर्म में अंधे होकर चल रहे हैं।*


*गोत्र की परंपराएँ "सिर्फ दिखावा" नहीं थीं।*

*जब पंडित जी पूजा में आपका गोत्र बोलते हैं — वो सिर्फ औपचारिकता नहीं कर रहे। वो आपको ऋषि की ऊर्जा से जोड़ रहे हैं। आपकी आध्यात्मिक वंश परंपरा को बुला रहे हैं। ताकि वह साक्षी बने और आशीर्वाद दे।*

*इसीलिए संकल्प में गोत्र बोलना महत्वपूर्ण है — जैसे कहा जा रहा हो।*

*मैं, भारद्वाज ऋषि का वंशज, पूर्ण आत्म - जागरूकता के साथ ईश्वर से सहायता मांगता हूँ।*

यह सुंदर है। पवित्र है। और सच्चा है।

*अपने गोत्र को फिर से जानिए — इससे पहले कि बहुत देर हो जाए। अपने माता-पिता से पूछिए। अपने दादा-दादी या नाना-नानी से पूछिए। ज़रूरत हो तो शोध कीजिए। लेकिन इस हिस्से को जाने बिना न जिएं।*

*इसे लिख लीजिए। अपने बच्चों को बताइए। गर्व से कहिए।*

*आप सिर्फ 1990 या 2000 में जन्मे कोई आम व्यक्ति नहीं हैं। आप एक अनंत ज्वाला के वाहक हैं, जिसे हजारों साल पहले किसी ऋषि ने प्रज्वलित किया था।*

*आप उस कहानी का अभी तक का अंतिम अध्याय हैं — जो महाभारत, रामायण, यहां तक कि समय की गिनती शुरू होने से भी पहले शुरू हुई थी।*

*आपका गोत्र आपकी आत्मा का भुलाया हुआ पासवर्ड है।*

*आज के युग में हम वाई-फाई पासवर्ड याद रखते हैं, ईमेल लॉगिन्स, नेटफ्लिक्स कोड…लेकिन हम अपना सबसे प्राचीन पासकोड भूल जाते हैं — अपना गोत्र।*

*वह एक शब्द, एक पूरी धारा खोल सकता है — पूर्वजों का ज्ञान, मानसिक प्रवृत्तियाँ, कर्मिक स्मृतियाँ, यहां तक कि आपकी आध्यात्मिक कमज़ोरियाँ और ताकतें।*

*यह सिर्फ एक लेबल नहीं — एक चाबी है। आप या तो इसका उपयोग करते हैं… या इसे खो देते हैं।*

*महिलाएं विवाह के बाद अपना गोत्र "खोती" नहीं हैं — वे उसे चुपचाप संभालती हैं।*
*बहुत लोग मानते हैं कि महिलाएं विवाह के बाद अपना गोत्र बदल देती हैं। लेकिन सनातन धर्म बहुत सूक्ष्म है।*

*श्राद्ध जैसे अनुष्ठानों में भी, स्त्री का गोत्र उसके पिता के वंश से लिया जाता है। क्यों? क्योंकि गोत्र वाई - क्रोमोसोम (पुरुष वंश) से चलता है।*

*स्त्रियाँ उस ऊर्जा को धारण करती हैं, लेकिन आनुवंशिक रूप से आगे नहीं बढ़ातीं।*

*इसलिए नहीं — स्त्री का गोत्र विवाह के बाद समाप्त नहीं होता। वह उसमें जीवित रहता है।*

*देवता भी गोत्र नियमों का पालन करते थे। रामायण में जब भगवान श्रीराम और सीता का विवाह हुआ — तब भी उनके गोत्र की जाँच की गई थी।*

*राम: इक्ष्वाकु वंश, वशिष्ठ गोत्र*

*सीता: जनक की पुत्री, कश्यप गोत्र वंश*

*उन्होंने सिर्फ प्रेम के नाम पर विवाह नहीं किया। दिव्य रूपों ने भी धर्म का पालन किया।*

*यह प्रणाली कितनी पवित्र थी — और आज भी है।*

गोत्र और प्रारब्ध कर्म का गहरा संबंध है

*क्या कभी ऐसा लगा है कि कुछ आदतें, प्रवृत्तियाँ, इच्छाएँ — बचपन से ही आपके अंदर हैं?*

*यह आपके प्रारब्ध कर्म का हिस्सा हो सकता है — जो इस जीवन में फल देने लगे हैं।*

और गोत्र इस पर प्रभाव डालता है।

*हर ऋषि की अपनी कर्मिक प्रवृत्तियाँ थीं। आप, उनकी ऊर्जा को लेकर, उन्हीं कर्मों की ओर आकर्षित हो सकते हैं — जब तक आप उसे तोड़ने का संकल्प न लें।*

*गोत्र जानना = अपने कर्म पथ को समझना और शुद्ध करना।*

*हर गोत्र का अपना देवता और बीज मंत्र होता है। गोत्र सिर्फ मानसिक वंश नहीं हैं — ये विशिष्ट देवताओं और बीज मंत्रों से जुड़े होते हैं, जो आपकी आत्मा की आवृत्ति से मेल खाते हैं।*

*कभी ऐसा लगा कि कोई मंत्र आप पर असर नहीं कर रहा?*

*शायद आप अपने फोन को गलत चार्जर से चार्ज करने की कोशिश कर रहे हैं।*

*सही मंत्र + आपका गोत्र = आध्यात्मिक करंट का प्रवाह।*

*यह जानना आपकी साधना, ध्यान और उपचार की शक्ति को 10 गुना बढ़ा सकता है।*


*जब भ्रम हो — गोत्र आपकी आंतरिक दिशा है*
*आज की दुनिया में हर कोई खोया हुआ है।*

*जीवन का उद्देश्य, रिश्ते, करियर, धर्म — हर चीज़ में उलझन है।*

*लेकिन यदि आप चुपचाप बैठें और अपने गोत्र, अपने ऋषि, अपनी पूर्वज प्रवृत्तियों पर ध्यान करें — तो आंतरिक स्पष्टता मिलने लगेगी।*

*आपके ऋषि उलझन में नहीं जीते थे। उनका विचार प्रवाह अभी भी आपकी नसों में बह रहा है।*

*उससे जुड़ जाइए — और खोए हुए नहीं, जड़ों से जुड़े महसूस करने लगेंगे।*
*हर महान हिंदू राजा गोत्र का सम्मान करता था*

*चंद्रगुप्त मौर्य से लेकर हर्षवर्धन, शिवाजी महाराज तक — सभी राजाओं के पास राजगुरु होते थे, जो कुल, गोत्र और संप्रदाय का रिकॉर्ड रखते थे।*

*यहां तक कि राजनीति और युद्ध के निर्णय भी गोत्र संबंधों, मेलों और रक्त संबंधों के आधार पर होते थे।*

*क्यों? क्योंकि गोत्र को नजरअंदाज करना ऐसा था जैसे अपनी रीढ़ को नजरअंदाज करना।*

*गोत्र प्रणाली ने महिलाओं को शोषण से बचाया।*

*इसे “पिछड़ा” कहने से पहले समझिए — प्राचीन काल में गोत्र का पालन अनाचार को रोकने, कुल की मर्यादा बनाए रखने और लड़कियों की गरिमा की रक्षा के लिए होता था।*

*यहां तक कि यदि कोई महिला युद्ध में बिछड़ जाए या अगवा हो जाए — तो उसका गोत्र उसे पहचानने और सम्मान दिलाने में मदद करता था।*

*यह पिछड़ापन नहीं — यह दूरदर्शी व्यवस्था थी। गोत्र = ब्रह्मांडीय खेल में आपकी भूमिका।*

*हर ऋषि केवल ध्यान नहीं करते थे — वे ब्रह्मांड के लिए कर्तव्य निभाते थे।*

*कोई शरीर के उपचार पर केंद्रित था। कोई ग्रह-नक्षत्रों को समझ रहा था।*

*कोई धर्म की रक्षा कर रहा था, कोई न्याय प्रणाली बना रहा था।*

*आपका गोत्र उस उद्देश्य की गूंज अपने अंदर रखता है।*

*यदि जीवन में खालीपन लगता है — शायद आपने अपनी ब्रह्मांडीय भूमिका को भूल दिया है।*

गोत्र खोजिए। आप खुद को पा लेंगे।

*यह धर्म की बात नहीं — यह पहचान की बात है।*

*चाहे कोई नास्तिक हो… या सिर्फ आध्यात्मिक… या फिर अनुष्ठानों से उलझन में — गोत्र फिर भी मायने रखता है।*

*क्योंकि यह धर्म से परे है।यह पूर्वज चेतना है। यह भारत की वह गहराई है, जो ज़बरदस्ती नहीं करती — बस चुपचाप मार्गदर्शन देती है।*

*आपको इसमें “विश्वास” करने की ज़रूरत नहीं। बस इसे याद रखने की ज़रूरत है।*

अंतिम शब्द:
*आपका नाम भले ही आधुनिक हो।*
*आपकी जीवनशैली भले ही वैश्विक हो।*
*लेकिन आपका गोत्र समय से परे है।*

*और यदि आप इसे अनदेखा करते हैं, तो आप उस नदी की तरह हैं — जो नहीं जानती कि वह कहाँ से आई है।*

*गोत्र आपका “अतीत” नहीं है यह भविष्य के ज्ञान का पासवर्ड है।*

*इसे खोलिए — इससे पहले कि अगली पीढ़ी भूल जाए कि ऐसा कुछ था भी*।

क्या आप अपने गोत्र की असली शक्ति को जानते हैं?

यह कोई परंपरा नहीं है। कोई अंधविश्वास नहीं है। यह आपका प्राचीन कोड है।

यह पूरा लेख पढ़िए — मानो आपका अतीत इसी पर टिका हो।

1. गोत्र आपका उपनाम नहीं है। यह आपकी आध्यात्मिक डीएनए है।
पता है सबसे अजीब क्या है?
अधिकतर लोग जानते ही नहीं कि वे किस गोत्र से हैं।
हमें लगता है कि यह बस एक लाइन है जो पंडितजी पूजा में कहते हैं। लेकिन यह सिर्फ इतना नहीं है।

आपका गोत्र दर्शाता है — आप किस ऋषि की मानसिक ऊर्जा से जुड़े हुए हैं।
खून से नहीं, बल्कि विचार, ऊर्जा, तरंग और ज्ञान से।

हर हिंदू आध्यात्मिक रूप से एक ऋषि से जुड़ा होता है।
वो ऋषि आपके बौद्धिक पूर्वज हैं।
उनकी सोच, ऊर्जा, और चेतना आज भी आपमें बह रही है।

2. गोत्र का अर्थ जाति नहीं होता।
आज लोग इसे गड़बड़ा देते हैं।
गोत्र ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र नहीं दर्शाता।
यह जातियों से पहले, उपनामों से पहले, राजाओं से भी पहले अस्तित्व में था।

यह सबसे प्राचीन पहचान का तरीका था — ज्ञान पर आधारित, शक्ति पर नहीं।
हर किसी का गोत्र होता था।
ऋषि अपने शिष्यों को गोत्र देते थे जब वे उनकी शिक्षाओं को ईमानदारी से अपनाते थे।

इसलिए, गोत्र कोई लेबल नहीं — यह आध्यात्मिक विरासत की मुहर है।

3. हर गोत्र एक ऋषि से जुड़ा होता है — एक “सुपरमाइंड” से
मान लीजिए आप वशिष्ठ गोत्र से हैं — तो आप वशिष्ठ ऋषि से जुड़े हैं, वही जिन्होंने श्रीराम और दशरथ को मार्गदर्शन दिया था।

भृगु गोत्र?
आप उस ऋषि से जुड़े हैं जिन्होंने वेदों का हिस्सा लिखा और योद्धाओं को प्रशिक्षण दिया।

कुल 49 मुख्य गोत्र हैं — हर एक ऋषियों से जुड़ा जो ज्योतिषी, वैद्य, योद्धा, मंत्रद्रष्टा या प्रकृति वैज्ञानिक थे।

4. क्यों बुज़ुर्ग एक ही गोत्र में विवाह मना करते थे?
यह बात स्कूल में नहीं सिखाई जाती।

प्राचीन भारत में गोत्र एक जेनेटिक ट्रैकर था।
यह पितृवंश से चलता है — यानी पुत्र ऋषि की लाइन आगे बढ़ाते हैं।

इसलिए अगर एक ही गोत्र के दो लोग विवाह करें, तो वे आनुवंशिक रूप से भाई-बहन जैसे होंगे।
इससे संतान में मानसिक और शारीरिक विकार आ सकते हैं।

गोत्र व्यवस्था = प्राचीन भारतीय डीएनए विज्ञान
और यह हम हजारों साल पहले जानते थे — जब पश्चिमी विज्ञान को जेनेटिक्स का भी अंदाजा नहीं था।

5. गोत्र = आपका मानसिक प्रोग्रामिंग
चलो इसे व्यक्तिगत बनाते हैं।

कुछ लोग गहरे विचारक होते हैं।
कुछ में गहरी आध्यात्मिक भूख होती है।
कुछ को प्रकृति में शांति मिलती है।
कुछ नेता या सत्य के खोजी होते हैं।

क्यों?
क्योंकि आपके गोत्र के ऋषि का मन आज भी आपके अंदर गूंजता है।

अगर आपका गोत्र किसी योद्धा ऋषि का है — आपको साहस महसूस होगा।
अगर वह किसी वैद्य ऋषि से है — तो आयुर्वेद या चिकित्सा में रुचि हो सकती है।

यह संयोग नहीं — यह गहराई से जुड़ा प्रोग्राम है।

6. पहले गोत्र के आधार पर शिक्षा दी जाती थी
प्राचीन गुरुकुलों में सबको एक जैसा नहीं सिखाया जाता था।
गुरु का पहला प्रश्न होता था:
“बेटा, तुम्हारा गोत्र क्या है?”

क्यों?
क्योंकि इससे गुरु समझ जाते थे कि छात्र कैसे सीखता है, कौन सी विद्या उसके लिए उपयुक्त है।

अत्रि गोत्र वाला छात्र — ध्यान और मंत्रों में प्रशिक्षित होता।

कश्यप गोत्र वाला — आयुर्वेद में गहराई से जाता।

गोत्र सिर्फ पहचान नहीं, जीवनपथ था।

7. ब्रिटिशों ने इसका मज़ाक उड़ाया, बॉलीवुड ने हंसी बनाई, और हमने इसे भुला दिया
जब ब्रिटिश भारत आए, उन्होंने इसे अंधविश्वास कहा।

फिर फिल्मों में मज़ाक बना —
“पंडितजी फिर से गोत्र पूछ रहे हैं!” — जैसे यह कोई बेमतलब रस्म हो।

धीरे-धीरे हमने अपने बुज़ुर्गों से पूछना छोड़ दिया।
अपने बच्चों को बताना छोड़ दिया।

100 साल में 10,000 साल पुरानी व्यवस्था लुप्त हो रही है।

उसे किसी ने खत्म नहीं किया। हमने ही उसे मरने दिया।

8. अगर आप अपना गोत्र नहीं जानते — तो आपने एक नक्शा खो दिया है
कल्पना कीजिए कि आप किसी प्राचीन राजघराने से हों — पर अपना उपनाम तक नहीं जानते।

आपका गोत्र = आपकी आत्मा का GPS है।

सही मंत्र

सही साधना

सही विवाह

सही मार्गदर्शन

इसके बिना हम अपने ही धर्म में अंधे होकर चल रहे हैं।

9. गोत्र की पुकार सिर्फ रस्म नहीं होती
जब पंडित पूजा में आपका गोत्र बोलते हैं, तो वे सिर्फ औपचारिकता नहीं निभा रहे।

वे आपको आपकी ऋषि ऊर्जा से दोबारा जोड़ रहे होते हैं।

यह एक पवित्र संवाद होता है:
“मैं, भारद्वाज ऋषि की संतान, अपने आत्मिक वंशजों की उपस्थिति में यह संकल्प करता हूँ।”

यह सुंदर है। पवित्र है। सच्चा है।

10. इसे फिर से जीवित करो — इसके लुप्त होने से पहले
अपने माता-पिता से पूछो।
दादी-दादा से पूछो।
शोध करो, पर इसे जाने मत दो।

इसे लिखो, अपनी संतानों को बताओ। गर्व से कहो:

आप सिर्फ 1990 या 2000 में जन्मे इंसान नहीं हैं —
आप एक ऐसी ज्योति के वाहक हैं जो हजारों साल पहले किसी ऋषि ने जलाई थी।

11. आपका गोत्र = आत्मा का पासवर्ड
आज हम वाई-फाई पासवर्ड, नेटफ्लिक्स लॉगिन याद रखते हैं...

पर अपने गोत्र को भूल जाते हैं।

वो एक शब्द — आपके भीतर की

चेतना

आदतें

पूर्व कर्म

आध्यात्मिक शक्तियां

…सब खोल सकता है।

यह लेबल नहीं — यह चाबी है।

12. महिलाएं विवाह के बाद गोत्र “खोती” नहीं हैं
लोग सोचते हैं कि विवाह के बाद स्त्री का गोत्र बदल जाता है। पर सनातन धर्म सूक्ष्म है।

श्राद्ध आदि में स्त्री का गोत्र पिता से लिया जाता है।
क्योंकि गोत्र पुरुष रेखा से चलता है (Y-क्रोमोज़ोम से)।
स्त्री ऊर्जा को वहन करती है, लेकिन आनुवंशिक रूप से उसे आगे नहीं बढ़ाती।

इसलिए स्त्री का गोत्र समाप्त नहीं होता — वह उसमें मौन रूप से जीवित रहता है।

13. भगवानों ने भी गोत्र का पालन किया
रामायण में श्रीराम और सीता के विवाह में भी गोत्र जांचा गया:

राम: इक्ष्वाकु वंश, वशिष्ठ गोत्र

सीता: जनक की पुत्री, कश्यप गोत्र

जय सिया राम

🚩🔥🕉️🌹🙏
साभार प्रस्तुति
REPOSTED 
ऋषियों के चित्र फेस बुक से लिए गए है इनसे प्रस्तुत कर्ता का कोई संबंध नहीं है।

Thursday, 19 June 2025

The Brave Rohillas


इतिहास के पन्नों में दर्ज है रोहिला राजपूतों का पराक्रम

पौराणिक व पुरातत्विक साक्ष्यों का अवलोकन करने पर स्पष्ट हो गया है कि रोहिला शब्द ऐतिहासिक महत्व रखता है, क्यांेकि इस शब्द से उन वीर क्षत्रिय वश्ंाों के इतिहास का परिचय मिलता है, जिन्होंने लगभग पांच सौ वर्ष ईसा पूर्व से ही  भारत भूमि पर आक्रमण करने वाले- ईरानी यूनानी, अरब, कुषाण, शक हूण आदि विदेशी आक्रान्ताओं से सर्वप्रथम भयंकर संघर्ष किया। लगभग दो हजार पांच सौ वर्षो तक वीर प्रहरियों की भाँति विकट संघर्ष करते हुए इतनी दीर्घ अवधि तक के काल खण्ड में  इन क्षत्रिय वर्गो का कितना रक्त बहा होगा, कितनी महिलाओं के माथे का सिन्दूर मिटा होगा, कितने घर, गाँव शहर बर्बाद हुए होंगे, कितने बालक व बालिकाये अनाथों की तरह भटकते फिरे होंगें।  जिन्हें अपने प्राणों से प्रिय अपनी मातृभूमि थी , संस्कृति के रक्षक इन महान वीर  प्रहरियों  को भारतीय इतिहास के पटल पर समुचित स्थान न मिल पाया। 

वस्तुतः क्षत्रिय समाज भारत की रक्षा शक्ति रहा है, समय की आवश्यकता को अनुभव करके संस्कृति और अखण्डता की रक्षा के लिए कटिबद्ध होकर क्षात्र धर्म का परिचय  देकर भारत को महान गणतंत्रात्मक विश्वशक्ति के रूप में स्थापित कराने में भारत की वीर ‘‘क्षत्रिय शक्तियों ‘‘ने अवस्मिरणीय योगदान दिया है। सामाजिक और सम्प्रदायिक एकता के बिना कोई देश आन्तरिक रूप से बलवान नहीं हो सकता। 

अपने पूर्वजों के द्वारा किये गये कार्यो को स्मरण कर प्रेरणा स्वरूप रोहिला क्षत्रियों के इतिहास के कुछ धुँधले पन्ने उकेरते हुए प्रमाणित झलकिया 



1. ईसा पूर्व 326ै, सिकन्दर ने अपने सैनिकों से मर्म स्पर्षीशब्दों में प्रार्थना की कि ‘‘मुझे भारत  से  गौरव के साथ लौट जाने दो तथा भगौडे की भाँति भागने पर मजबूर न करो।‘‘ ‘‘ सांकल दुर्ग (स्याल कोट)  के सभी कठवीर और उनके परिवार बाहर निकल गए चूंकि रोहिला राजा अजायराव वीरगति को प्राप्त हो चुका था। कठ गणराज्य के प्रमुख, निकुम्भ वंशी ( सूर्यवंश) हठवीर अजय राव की पुत्री कर्णिका के मन में  अपने पिता की मृत्यु के उपरान्त प्रतिशोध की भावना जाग उठी और वह दुर्ग में छिपकर बैठ गई, यह राजकुमारी बहुत साहसी व चुतर थी। कर्णिका को दुर्ग में अकेली फँसी रहने की कोई चिन्ता न थी। दुर्ग में प्रवेश करते ही फिलिप के हदय स्थान पर बड़ी तीव्रता से दुधारी कटार कर्णिका ने घोंप दी। फिलिप कर्णिका के तीक्ष्ण वार को संभाल न सका तथा अचेत होकर भूमि पर गिर पड़। कर्णिका गुप्त द्वारा से निकल उसकी प्रतीक्षा कर रहे कुछ जनों से जा मिली। फिलिप कुछ समय पश्चात् तडपता हुआ दम तोड गया।

    (श्री जयचन्द विद्यांलकार ‘‘ इतिहास  प्रवेश पृष्ठ 76)

‘‘    (हरि कृष्ष प्रेमी‘‘- सीमा संरक्षण)

  

   2.  यह काठी कौम वही थी जिसने सिकन्दर का मुकाबला पंजाब में किया था। बाद में वह दक्षिण में बस गई फिर मालवा होती हुई कच्छ व सौराष्ट्र में आबद हुई। इसी  जाति के नामपर सौराष्ट्र देश का नाम कठियावाड पडा। कठगणों के मुखिया जगमान को शालीवहन ने मार डाला तथा उसके कई सौ घोडे़ व ऊँट जैसलमेर ले आए‘‘।

(- कर्नल जेम्स टाड़ ‘‘ टाड़राजस्थान‘‘- कुक द्वारा सम्पादित, भाग-2 पृष्ठ 1207)

3. ‘‘मस्य दुर्ग (मश्कावती दुर्ग) सिकन्दर के आक्रमण के समय अजेय समझा जाता था। अश्वक गणराजय के रोहिला राजा अश्वकर्ण को अचानक तीव्र बाण लगा और वीरगति प्राप्त हुए। अश्वकों के हौंसले टूट गए और युद्ध बन्द करने की घोषणा कर दी और सिकन्दर ने अश्वकों को शान्तिपूर्वक दुर्ग से बाहर आने को कहा। लगभग सात हजार रोहिले अश्वक (घुड़सवार) वीर मश्कावती दुर्ग से बाहर निकल आए और अपने- अपने परिवारों सहित सात-आठ मील चलने पर विश्राम की गोद में खोए गए। अश्वकों व उनके परिवारों पर सिकन्दर की सेना ने बड़ा विकट आक्रमण किया। वीर अश्वक रोहिला क्षत्रियों ने डट कर युद्ध किया। युद्ध करते करते करते जब तक स्त्री बच्चे सब नही कट मरे तब तक युद्ध बन्द नही किया रक्त की अन्तिम बूँद के रहने तक अश्वक लड़ते रहे। सिकन्दर द्वारा  विश्वासघात करना विद्वानों द्वारा घृणित समझा गया। यूनानी इतिहास कार प्लूटार्क ने भी सिकन्दर के इस कार्य की निन्दा की।

(श्री बी0रान0 रस्तोगी, एम.ए.-प्राचीन भारत‘‘  पृष्ठ 163)

(श्री हरिकृष्ण प्रेमी ‘‘ सीमा संरक्षण पृष्ठ 31)

4. उत्तरी पाँचाल में कठगण धीरे-2 अपनी शक्ति को संगठित कर आधुनिक रोहिलखण्ड के क्षेत्रों में कठेहर राज्य की स्थापना का कार्यक्रम बनाने लगै। विस्थापित होने के पक्षचात् कुछ क्षत्रिय वीर कठगण उस प्रान्त में जाकर बसे जिसे आज कठिहर अर्थात कठेहर, बुदाँयु (बुद्धमऊ, राजा बुद्धपाल रोहिला द्वारा स्थापित) का देश कहते है।

 (डाँ केषव चन्द्र सेन इतिहास- रोहिला राजपूत पृष्ठ 27)

5. तुगलक काल में कठेहर रोहिलखण्ड के रोहिले क्षत्रियों ने अनेक विद्रोह किए जिनका सल्तनत की ओर से दमन किया गया। इस श्रेणी में रोहिला नरेष खड़ग सिंह का नाम  विद्रोहियों की श्रेणी में विषेष उल्लेखनीय माना जाता है। मुस्लिम सल्तनत के विरूद्ध विद्रोह करने के कारण कुछ इतिहासकारों ने राजा खड़ग सिंह को केवल खडगू के नाम से ही सम्बोधित किया है। 

रोहिला नरेष खड़ग सिंह रोहिलखण्ड निवासी सभी राजपूत वर्गो का माननीय नेता तथा मुस्लिम सल्तनत के लिए विद्रोही शक्तियों  का प्रमुख सेना नायक था। इस खडगूूूूूूू रोहिला सरदार ने राजपूत शक्तियों की पारस्परिक एकता को सुदृढ़ करने के लिए कठोर प्रयास किए।

 स्वतन्त्र हिन्दु राज्य के आधीनस्थ हिन्दु प्रजा, निरन्तर तुर्को से संघर्ष करती रही। बलबन जैसा शासक भी राज्य विस्तार का साहस न कर सका।‘‘ कौल से लेकर रोहिलाखण्ड (कठेहर) तक का समस्त क्षेत्र- अशान्तिमय बना हुआ था।

      (डाॅ0 एल0पी0 शर्मा) मध्यकालीन भारत पृष्ठ 103 व रोहिला क्षत्रियों का क्रमबद्ध इतिहास पृष्ठ 141 से साभार ।

6. सैययद ख्रिज खां के आक्रमण के पश्चात रोहिल खण्ड में रोहिला राजा हरी सिंह का पराभव हुआ और रोहिला क्षत्रिय वर्ग का शासकों के रूप में कोई विषेष विवरण प्रस्तुत नहीं हो सका। सम्भवतः रोहिलखण्ड से विस्थापित ये क्षत्रिय भारत के विभिन्न क्षेत्रों मेे फैल गए, और सैनिकों के रूप में सेनाओं में कार्यरत हो गए। इसके पष्चात् राजा महीचन्द (बदायूँ) के वश्ंाज गौतम गौत्रीय राणा गंगासहाय राठौर (गौत्र प्रशाखा महिचा) का उल्लेख मिला है जो अफगान आक्रान्ता अहमदशाह अब्दाली के विरूद्ध मराठों की ओर से पानीपत के युद्ध में अपने एक हजार चार सौ वीर रोहिला राजपूतों के साथ लड़ा और आर्य क्षत्रिय धर्म संरक्षण के लिए बलिदान  हो गया।

(डा/0 केशवचन्द्र सेन पानीपत, इतिहास रोहिला- राजपूत)

7. सन् 1833 में ब्रिटिश शासन के साथ समझौते के अनुरूप नवाब खानदान को हरियाणा के झज्जर से सहारनपुर आना पड़ा यहाँ आकर उन्होंने उस दौर के सैकड़ों वर्ष पूर्व किसी मराठी राजा द्वारा निर्मित इस किले को अपनी रिहाइश की शक्ल दी।‘‘

(सुनहरा इतिहास समेटे है किला नवाबगंज)

    (अमर उजाला सहारनपुर पृष्ठ 10 ,18 नवम्बर 2009)

Refrences--
 भारत भूमि और उसके वासी पृष्ठ-230 पंडित जयचंद्र विद्यालंकार
2-दून ज्योति-साप्ताहिक देहरादून 18 फरवरी 1974 
पुरुषोत्तम नागेश ओक व डॉक्टर ओमवीर शर्मा हेड ऑफ हिस्ट्री विभाग
3-क्षत्रिय वर्तमान पृष्ठ 97 व 263 ठाकुर अजित सिंह परिहार बालाघाट
4- प्राचीन भारत पृष्ठ -118,159,162 बीएम रस्तोगी इतिहास कार
5 राजतरँगनी पृष्ठ 31-39 कल्हण कृत अनुवादक नीलम अग्रवाल
6-रोहिला क्षत्रिय वन्स भास्कर ,आर आर राजपूत मूरसेन अलीगढ़
7- इतिहास रोहिला राजपूत 
डॉक्टर के सी सेन
8 - भारत का इतिहास पृष्ठ 138 डॉक्टर दया प्रकाश
9-भारतीय इतिहास मीमांसा पृष्ठ 44 जय चंद विद्यालंकार
10- भारतीय इतिहास की रूप रेखा द्वितीय भाग पृष्ठ 699 बीएम रस्तोगी
11-सीमा संरक्षण पृष्ठ 21-22 हरिकृष्ण प्रेमी
12 टॉड राजस्थान पृष्ठ 457 परिच्छेद 43 अनुवादक केशव कुमार ठाकुर
13- प्राचीन भारत का इतिहास राजपूत वन्स पृष्ठ 104 व 105कैलाश प्रकाशन लखनऊ 1970 व पृष्ठ 147
14 रोहिला क्षत्रियो का क्रमबद्ध इतिहास लेखक दर्शन लाल रोहिला 
15 राजपूत ,/क्षत्रिय वाटिका 
राजनीतिन सिंह रावत अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा
16 रिलेशन बिटवीन रोहिला एंड कठहरिया राजपूत निकुम्भ व श्रीनेत वंश 
महेश सिंह कठायत नेपाल

Tuesday, 3 June 2025

रक्त रंजीत हुई धरा रोहिलखंड रामपुर की ,सिर कटा ,धड़ लड़ता रहा रणबांके रणवीर का

रक्त रंजीत हुई धरा तीन हजार राजपूतों का संहार निहत्थे किया गया।*तेरहवीं शदाब्दी के आरंभ में उत्तर प्रदेश के बहुत बड़े भूभाग पर रोहिला राजपूतों का शासन था,जिसकी स्थापना सूर्य वंशी क्षत्रिय महाराजा रणवीर सिंह रोहिला जी ने एक स्वतंत्र राज्य के रूप में की थी। उस समय दिल्ली के सुलतानों ने आतंक मचा रखा था और सल्तनत विस्तार करने और धर्मांतरण करने में दिल्ली की पूरी शक्ति काम कर रही थी किंतु रोहिलखंड नरेश महाराजा रणवीर सिंह रोहिला से दिल्ली के सुल्तान भय खाते थे क्योंकि तीस साल तक आक्रमण करते रहने के बाद भी वे कभी रोहिलखंड पर कब्जा नहीं कर पाए।महाराजा रणवीर सिंह रोहिला सनातन धर्म के रक्षक और विधर्मी संहारक के रूप में उभर रहे थे समस्त राजपूत शक्तियों को एक मंच पर रोहिलखंड में एकत्र करके उन्होंने अनेको बार आक्रांताओ को धूल चटाई और रोहिलखंड की स्वतंत्रता पर आंच नहीं आने दी। सन 1254ईस्वी में रक्षा बंधन के दिन जब निशस्त्र राजपूत किले में राखी का त्योहार मना रहे थे और बहिनों से रक्षा सूत्र बंधवा रहे थे तो पूर्व नियोजित गद्दारी के कारण दिल्ली सुल्तान नसीरुद्दीन महमूद ने गद्दार द्वारा किले के चारो द्वार खोल देने पर अचानक निहत्थे राजपूतों पर तीस हजार की सेना लेकर लग भाग दस बजे हमला कर दिया,सभी राजपूत संख्या में कम लगभग तीन हजार होने बाद भी बड़ी बहादुरी से लड़े,राजा रणवीर सिंह रोहिला ने अद्भुत वीरता का प्रदर्शन करते हुए सांय पांच बजे तक भीषण संग्राम किया और दिल्ली की सेना को उनके ही हथियार छीन कर गाजर मूली की तरह काट डाला अंत में अकरांताओ के एक दुर्दांत खूंखवार दल ने उन्हे चारो ओर से घेर लिया ,रक्त की अंतिम बूंद रहने तक महाराजा रणवीर सिंह रोहिला ने साहस नहीं छोड़ा और दुश्मनों का काल बने रहे,संख्या में अधिक आक्रांता होने के कारण उनके टुकड़े टुकड़े कर दिए गए और बचे तो केवल हड्डियो के टुकड़े ही इतना दुर्दांत राक्षसी तरीके से राजा रणवीर सिंह को काट डाला उनकी इस वीरता को देख कर नसीरुद्दीन किले से बाहर आ गया और बचे स्त्री बच्चो को छोड़ गया लूट कर किले को चला गया पुस्तकालय को आग लगा दी। राजा रणवीर सिंह के रक्षा बंधन के दिन हुए इस बलिदान को समस्त सनातन रक्षक क्षत्रियजन शौर्य और स्वाभिमान दिवस के रूप में मनाते है।इस वर्ष सोमवार दिनांक19 अगस्त2024को क्षत्रिय सम्राट रोहिलखंड नरेश का 771वा बलिदान दिवस है। सभी से निवेदन है महापुरुषों को सम्मान देने और इतिहास संरक्षण की कड़ी में रक्षा बंधन को शौर्य दिवस के रूप में मनाए । महाराजा रणवीर सिंह रोहिला जी के नाम पर नामित चौक ,चौराहे,भवनों , पार्कों और सड़को पर सांय काल दीपक जलाएं और सनातन रक्षक के बलिदान को याद करे,प्रतिमाओं पर माल्यार्पण पर पुष्पांजलि दे और श्रद्धा सुमन अर्पित करे।अपने अपने घरों नगरों गांवों में जैसी भी व्यवस्था हो सामूहिक या व्यक्तिगत रक्षा बंधन को सांय काल अवश्य महान वीर सनातन रक्षक विधर्मी संहारक को याद करे ताकि इतिहास जिंदा रहे और भावी पीढ़ी को देश प्रेम की प्रेरणा मिले।*

*रोहिला क्षत्रिय समाज के महान वीरों को सच्ची श्रद्धांजलि तभी होगी जब रोहिला क्षत्रियों के अस्तित्व की रक्षा होगी अन्यथा राजनीति के शिकार कुछ षड्यंत्र कारी अन्य समाज में इस क्षत्रिय समाज को घटक बता कर विलीन करना चाहते है*
*उनके बहकावे में न आकर रोहिला क्षत्रिय समाज की रक्षा करे और भावी पीढ़ी का मार्ग दर्शन करे*
*जय जय महाराजा रणवीर सिंह रोहिला*
*जय जय राजपूताना रोहिलखंड*
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