इतिहास के पन्नों में दर्ज है रोहिला राजपूतों का पराक्रम
पौराणिक व पुरातत्विक साक्ष्यों का अवलोकन करने पर स्पष्ट हो गया है कि रोहिला शब्द ऐतिहासिक महत्व रखता है, क्यांेकि इस शब्द से उन वीर क्षत्रिय वश्ंाों के इतिहास का परिचय मिलता है, जिन्होंने लगभग पांच सौ वर्ष ईसा पूर्व से ही भारत भूमि पर आक्रमण करने वाले- ईरानी यूनानी, अरब, कुषाण, शक हूण आदि विदेशी आक्रान्ताओं से सर्वप्रथम भयंकर संघर्ष किया। लगभग दो हजार पांच सौ वर्षो तक वीर प्रहरियों की भाँति विकट संघर्ष करते हुए इतनी दीर्घ अवधि तक के काल खण्ड में इन क्षत्रिय वर्गो का कितना रक्त बहा होगा, कितनी महिलाओं के माथे का सिन्दूर मिटा होगा, कितने घर, गाँव शहर बर्बाद हुए होंगे, कितने बालक व बालिकाये अनाथों की तरह भटकते फिरे होंगें। जिन्हें अपने प्राणों से प्रिय अपनी मातृभूमि थी , संस्कृति के रक्षक इन महान वीर प्रहरियों को भारतीय इतिहास के पटल पर समुचित स्थान न मिल पाया।
वस्तुतः क्षत्रिय समाज भारत की रक्षा शक्ति रहा है, समय की आवश्यकता को अनुभव करके संस्कृति और अखण्डता की रक्षा के लिए कटिबद्ध होकर क्षात्र धर्म का परिचय देकर भारत को महान गणतंत्रात्मक विश्वशक्ति के रूप में स्थापित कराने में भारत की वीर ‘‘क्षत्रिय शक्तियों ‘‘ने अवस्मिरणीय योगदान दिया है। सामाजिक और सम्प्रदायिक एकता के बिना कोई देश आन्तरिक रूप से बलवान नहीं हो सकता।
अपने पूर्वजों के द्वारा किये गये कार्यो को स्मरण कर प्रेरणा स्वरूप रोहिला क्षत्रियों के इतिहास के कुछ धुँधले पन्ने उकेरते हुए प्रमाणित झलकिया
1. ईसा पूर्व 326ै, सिकन्दर ने अपने सैनिकों से मर्म स्पर्षीशब्दों में प्रार्थना की कि ‘‘मुझे भारत से गौरव के साथ लौट जाने दो तथा भगौडे की भाँति भागने पर मजबूर न करो।‘‘ ‘‘ सांकल दुर्ग (स्याल कोट) के सभी कठवीर और उनके परिवार बाहर निकल गए चूंकि रोहिला राजा अजायराव वीरगति को प्राप्त हो चुका था। कठ गणराज्य के प्रमुख, निकुम्भ वंशी ( सूर्यवंश) हठवीर अजय राव की पुत्री कर्णिका के मन में अपने पिता की मृत्यु के उपरान्त प्रतिशोध की भावना जाग उठी और वह दुर्ग में छिपकर बैठ गई, यह राजकुमारी बहुत साहसी व चुतर थी। कर्णिका को दुर्ग में अकेली फँसी रहने की कोई चिन्ता न थी। दुर्ग में प्रवेश करते ही फिलिप के हदय स्थान पर बड़ी तीव्रता से दुधारी कटार कर्णिका ने घोंप दी। फिलिप कर्णिका के तीक्ष्ण वार को संभाल न सका तथा अचेत होकर भूमि पर गिर पड़। कर्णिका गुप्त द्वारा से निकल उसकी प्रतीक्षा कर रहे कुछ जनों से जा मिली। फिलिप कुछ समय पश्चात् तडपता हुआ दम तोड गया।
(श्री जयचन्द विद्यांलकार ‘‘ इतिहास प्रवेश पृष्ठ 76)
‘‘ (हरि कृष्ष प्रेमी‘‘- सीमा संरक्षण)
2. यह काठी कौम वही थी जिसने सिकन्दर का मुकाबला पंजाब में किया था। बाद में वह दक्षिण में बस गई फिर मालवा होती हुई कच्छ व सौराष्ट्र में आबद हुई। इसी जाति के नामपर सौराष्ट्र देश का नाम कठियावाड पडा। कठगणों के मुखिया जगमान को शालीवहन ने मार डाला तथा उसके कई सौ घोडे़ व ऊँट जैसलमेर ले आए‘‘।
(- कर्नल जेम्स टाड़ ‘‘ टाड़राजस्थान‘‘- कुक द्वारा सम्पादित, भाग-2 पृष्ठ 1207)
3. ‘‘मस्य दुर्ग (मश्कावती दुर्ग) सिकन्दर के आक्रमण के समय अजेय समझा जाता था। अश्वक गणराजय के रोहिला राजा अश्वकर्ण को अचानक तीव्र बाण लगा और वीरगति प्राप्त हुए। अश्वकों के हौंसले टूट गए और युद्ध बन्द करने की घोषणा कर दी और सिकन्दर ने अश्वकों को शान्तिपूर्वक दुर्ग से बाहर आने को कहा। लगभग सात हजार रोहिले अश्वक (घुड़सवार) वीर मश्कावती दुर्ग से बाहर निकल आए और अपने- अपने परिवारों सहित सात-आठ मील चलने पर विश्राम की गोद में खोए गए। अश्वकों व उनके परिवारों पर सिकन्दर की सेना ने बड़ा विकट आक्रमण किया। वीर अश्वक रोहिला क्षत्रियों ने डट कर युद्ध किया। युद्ध करते करते करते जब तक स्त्री बच्चे सब नही कट मरे तब तक युद्ध बन्द नही किया रक्त की अन्तिम बूँद के रहने तक अश्वक लड़ते रहे। सिकन्दर द्वारा विश्वासघात करना विद्वानों द्वारा घृणित समझा गया। यूनानी इतिहास कार प्लूटार्क ने भी सिकन्दर के इस कार्य की निन्दा की।
(श्री बी0रान0 रस्तोगी, एम.ए.-प्राचीन भारत‘‘ पृष्ठ 163)
(श्री हरिकृष्ण प्रेमी ‘‘ सीमा संरक्षण पृष्ठ 31)
4. उत्तरी पाँचाल में कठगण धीरे-2 अपनी शक्ति को संगठित कर आधुनिक रोहिलखण्ड के क्षेत्रों में कठेहर राज्य की स्थापना का कार्यक्रम बनाने लगै। विस्थापित होने के पक्षचात् कुछ क्षत्रिय वीर कठगण उस प्रान्त में जाकर बसे जिसे आज कठिहर अर्थात कठेहर, बुदाँयु (बुद्धमऊ, राजा बुद्धपाल रोहिला द्वारा स्थापित) का देश कहते है।
(डाँ केषव चन्द्र सेन इतिहास- रोहिला राजपूत पृष्ठ 27)
5. तुगलक काल में कठेहर रोहिलखण्ड के रोहिले क्षत्रियों ने अनेक विद्रोह किए जिनका सल्तनत की ओर से दमन किया गया। इस श्रेणी में रोहिला नरेष खड़ग सिंह का नाम विद्रोहियों की श्रेणी में विषेष उल्लेखनीय माना जाता है। मुस्लिम सल्तनत के विरूद्ध विद्रोह करने के कारण कुछ इतिहासकारों ने राजा खड़ग सिंह को केवल खडगू के नाम से ही सम्बोधित किया है।
रोहिला नरेष खड़ग सिंह रोहिलखण्ड निवासी सभी राजपूत वर्गो का माननीय नेता तथा मुस्लिम सल्तनत के लिए विद्रोही शक्तियों का प्रमुख सेना नायक था। इस खडगूूूूूूू रोहिला सरदार ने राजपूत शक्तियों की पारस्परिक एकता को सुदृढ़ करने के लिए कठोर प्रयास किए।
स्वतन्त्र हिन्दु राज्य के आधीनस्थ हिन्दु प्रजा, निरन्तर तुर्को से संघर्ष करती रही। बलबन जैसा शासक भी राज्य विस्तार का साहस न कर सका।‘‘ कौल से लेकर रोहिलाखण्ड (कठेहर) तक का समस्त क्षेत्र- अशान्तिमय बना हुआ था।
(डाॅ0 एल0पी0 शर्मा) मध्यकालीन भारत पृष्ठ 103 व रोहिला क्षत्रियों का क्रमबद्ध इतिहास पृष्ठ 141 से साभार ।
6. सैययद ख्रिज खां के आक्रमण के पश्चात रोहिल खण्ड में रोहिला राजा हरी सिंह का पराभव हुआ और रोहिला क्षत्रिय वर्ग का शासकों के रूप में कोई विषेष विवरण प्रस्तुत नहीं हो सका। सम्भवतः रोहिलखण्ड से विस्थापित ये क्षत्रिय भारत के विभिन्न क्षेत्रों मेे फैल गए, और सैनिकों के रूप में सेनाओं में कार्यरत हो गए। इसके पष्चात् राजा महीचन्द (बदायूँ) के वश्ंाज गौतम गौत्रीय राणा गंगासहाय राठौर (गौत्र प्रशाखा महिचा) का उल्लेख मिला है जो अफगान आक्रान्ता अहमदशाह अब्दाली के विरूद्ध मराठों की ओर से पानीपत के युद्ध में अपने एक हजार चार सौ वीर रोहिला राजपूतों के साथ लड़ा और आर्य क्षत्रिय धर्म संरक्षण के लिए बलिदान हो गया।
(डा/0 केशवचन्द्र सेन पानीपत, इतिहास रोहिला- राजपूत)
7. सन् 1833 में ब्रिटिश शासन के साथ समझौते के अनुरूप नवाब खानदान को हरियाणा के झज्जर से सहारनपुर आना पड़ा यहाँ आकर उन्होंने उस दौर के सैकड़ों वर्ष पूर्व किसी मराठी राजा द्वारा निर्मित इस किले को अपनी रिहाइश की शक्ल दी।‘‘
(सुनहरा इतिहास समेटे है किला नवाबगंज)
(अमर उजाला सहारनपुर पृष्ठ 10 ,18 नवम्बर 2009)
पौराणिक व पुरातत्विक साक्ष्यों का अवलोकन करने पर स्पष्ट हो गया है कि रोहिला शब्द ऐतिहासिक महत्व रखता है, क्यांेकि इस शब्द से उन वीर क्षत्रिय वश्ंाों के इतिहास का परिचय मिलता है, जिन्होंने लगभग पांच सौ वर्ष ईसा पूर्व से ही भारत भूमि पर आक्रमण करने वाले- ईरानी यूनानी, अरब, कुषाण, शक हूण आदि विदेशी आक्रान्ताओं से सर्वप्रथम भयंकर संघर्ष किया। लगभग दो हजार पांच सौ वर्षो तक वीर प्रहरियों की भाँति विकट संघर्ष करते हुए इतनी दीर्घ अवधि तक के काल खण्ड में इन क्षत्रिय वर्गो का कितना रक्त बहा होगा, कितनी महिलाओं के माथे का सिन्दूर मिटा होगा, कितने घर, गाँव शहर बर्बाद हुए होंगे, कितने बालक व बालिकाये अनाथों की तरह भटकते फिरे होंगें। जिन्हें अपने प्राणों से प्रिय अपनी मातृभूमि थी , संस्कृति के रक्षक इन महान वीर प्रहरियों को भारतीय इतिहास के पटल पर समुचित स्थान न मिल पाया।
वस्तुतः क्षत्रिय समाज भारत की रक्षा शक्ति रहा है, समय की आवश्यकता को अनुभव करके संस्कृति और अखण्डता की रक्षा के लिए कटिबद्ध होकर क्षात्र धर्म का परिचय देकर भारत को महान गणतंत्रात्मक विश्वशक्ति के रूप में स्थापित कराने में भारत की वीर ‘‘क्षत्रिय शक्तियों ‘‘ने अवस्मिरणीय योगदान दिया है। सामाजिक और सम्प्रदायिक एकता के बिना कोई देश आन्तरिक रूप से बलवान नहीं हो सकता।
अपने पूर्वजों के द्वारा किये गये कार्यो को स्मरण कर प्रेरणा स्वरूप रोहिला क्षत्रियों के इतिहास के कुछ धुँधले पन्ने उकेरते हुए प्रमाणित झलकिया
1. ईसा पूर्व 326ै, सिकन्दर ने अपने सैनिकों से मर्म स्पर्षीशब्दों में प्रार्थना की कि ‘‘मुझे भारत से गौरव के साथ लौट जाने दो तथा भगौडे की भाँति भागने पर मजबूर न करो।‘‘ ‘‘ सांकल दुर्ग (स्याल कोट) के सभी कठवीर और उनके परिवार बाहर निकल गए चूंकि रोहिला राजा अजायराव वीरगति को प्राप्त हो चुका था। कठ गणराज्य के प्रमुख, निकुम्भ वंशी ( सूर्यवंश) हठवीर अजय राव की पुत्री कर्णिका के मन में अपने पिता की मृत्यु के उपरान्त प्रतिशोध की भावना जाग उठी और वह दुर्ग में छिपकर बैठ गई, यह राजकुमारी बहुत साहसी व चुतर थी। कर्णिका को दुर्ग में अकेली फँसी रहने की कोई चिन्ता न थी। दुर्ग में प्रवेश करते ही फिलिप के हदय स्थान पर बड़ी तीव्रता से दुधारी कटार कर्णिका ने घोंप दी। फिलिप कर्णिका के तीक्ष्ण वार को संभाल न सका तथा अचेत होकर भूमि पर गिर पड़। कर्णिका गुप्त द्वारा से निकल उसकी प्रतीक्षा कर रहे कुछ जनों से जा मिली। फिलिप कुछ समय पश्चात् तडपता हुआ दम तोड गया।
(श्री जयचन्द विद्यांलकार ‘‘ इतिहास प्रवेश पृष्ठ 76)
‘‘ (हरि कृष्ष प्रेमी‘‘- सीमा संरक्षण)
2. यह काठी कौम वही थी जिसने सिकन्दर का मुकाबला पंजाब में किया था। बाद में वह दक्षिण में बस गई फिर मालवा होती हुई कच्छ व सौराष्ट्र में आबद हुई। इसी जाति के नामपर सौराष्ट्र देश का नाम कठियावाड पडा। कठगणों के मुखिया जगमान को शालीवहन ने मार डाला तथा उसके कई सौ घोडे़ व ऊँट जैसलमेर ले आए‘‘।
(- कर्नल जेम्स टाड़ ‘‘ टाड़राजस्थान‘‘- कुक द्वारा सम्पादित, भाग-2 पृष्ठ 1207)
3. ‘‘मस्य दुर्ग (मश्कावती दुर्ग) सिकन्दर के आक्रमण के समय अजेय समझा जाता था। अश्वक गणराजय के रोहिला राजा अश्वकर्ण को अचानक तीव्र बाण लगा और वीरगति प्राप्त हुए। अश्वकों के हौंसले टूट गए और युद्ध बन्द करने की घोषणा कर दी और सिकन्दर ने अश्वकों को शान्तिपूर्वक दुर्ग से बाहर आने को कहा। लगभग सात हजार रोहिले अश्वक (घुड़सवार) वीर मश्कावती दुर्ग से बाहर निकल आए और अपने- अपने परिवारों सहित सात-आठ मील चलने पर विश्राम की गोद में खोए गए। अश्वकों व उनके परिवारों पर सिकन्दर की सेना ने बड़ा विकट आक्रमण किया। वीर अश्वक रोहिला क्षत्रियों ने डट कर युद्ध किया। युद्ध करते करते करते जब तक स्त्री बच्चे सब नही कट मरे तब तक युद्ध बन्द नही किया रक्त की अन्तिम बूँद के रहने तक अश्वक लड़ते रहे। सिकन्दर द्वारा विश्वासघात करना विद्वानों द्वारा घृणित समझा गया। यूनानी इतिहास कार प्लूटार्क ने भी सिकन्दर के इस कार्य की निन्दा की।
(श्री बी0रान0 रस्तोगी, एम.ए.-प्राचीन भारत‘‘ पृष्ठ 163)
(श्री हरिकृष्ण प्रेमी ‘‘ सीमा संरक्षण पृष्ठ 31)
4. उत्तरी पाँचाल में कठगण धीरे-2 अपनी शक्ति को संगठित कर आधुनिक रोहिलखण्ड के क्षेत्रों में कठेहर राज्य की स्थापना का कार्यक्रम बनाने लगै। विस्थापित होने के पक्षचात् कुछ क्षत्रिय वीर कठगण उस प्रान्त में जाकर बसे जिसे आज कठिहर अर्थात कठेहर, बुदाँयु (बुद्धमऊ, राजा बुद्धपाल रोहिला द्वारा स्थापित) का देश कहते है।
(डाँ केषव चन्द्र सेन इतिहास- रोहिला राजपूत पृष्ठ 27)
5. तुगलक काल में कठेहर रोहिलखण्ड के रोहिले क्षत्रियों ने अनेक विद्रोह किए जिनका सल्तनत की ओर से दमन किया गया। इस श्रेणी में रोहिला नरेष खड़ग सिंह का नाम विद्रोहियों की श्रेणी में विषेष उल्लेखनीय माना जाता है। मुस्लिम सल्तनत के विरूद्ध विद्रोह करने के कारण कुछ इतिहासकारों ने राजा खड़ग सिंह को केवल खडगू के नाम से ही सम्बोधित किया है।
रोहिला नरेष खड़ग सिंह रोहिलखण्ड निवासी सभी राजपूत वर्गो का माननीय नेता तथा मुस्लिम सल्तनत के लिए विद्रोही शक्तियों का प्रमुख सेना नायक था। इस खडगूूूूूूू रोहिला सरदार ने राजपूत शक्तियों की पारस्परिक एकता को सुदृढ़ करने के लिए कठोर प्रयास किए।
स्वतन्त्र हिन्दु राज्य के आधीनस्थ हिन्दु प्रजा, निरन्तर तुर्को से संघर्ष करती रही। बलबन जैसा शासक भी राज्य विस्तार का साहस न कर सका।‘‘ कौल से लेकर रोहिलाखण्ड (कठेहर) तक का समस्त क्षेत्र- अशान्तिमय बना हुआ था।
(डाॅ0 एल0पी0 शर्मा) मध्यकालीन भारत पृष्ठ 103 व रोहिला क्षत्रियों का क्रमबद्ध इतिहास पृष्ठ 141 से साभार ।
6. सैययद ख्रिज खां के आक्रमण के पश्चात रोहिल खण्ड में रोहिला राजा हरी सिंह का पराभव हुआ और रोहिला क्षत्रिय वर्ग का शासकों के रूप में कोई विषेष विवरण प्रस्तुत नहीं हो सका। सम्भवतः रोहिलखण्ड से विस्थापित ये क्षत्रिय भारत के विभिन्न क्षेत्रों मेे फैल गए, और सैनिकों के रूप में सेनाओं में कार्यरत हो गए। इसके पष्चात् राजा महीचन्द (बदायूँ) के वश्ंाज गौतम गौत्रीय राणा गंगासहाय राठौर (गौत्र प्रशाखा महिचा) का उल्लेख मिला है जो अफगान आक्रान्ता अहमदशाह अब्दाली के विरूद्ध मराठों की ओर से पानीपत के युद्ध में अपने एक हजार चार सौ वीर रोहिला राजपूतों के साथ लड़ा और आर्य क्षत्रिय धर्म संरक्षण के लिए बलिदान हो गया।
(डा/0 केशवचन्द्र सेन पानीपत, इतिहास रोहिला- राजपूत)
7. सन् 1833 में ब्रिटिश शासन के साथ समझौते के अनुरूप नवाब खानदान को हरियाणा के झज्जर से सहारनपुर आना पड़ा यहाँ आकर उन्होंने उस दौर के सैकड़ों वर्ष पूर्व किसी मराठी राजा द्वारा निर्मित इस किले को अपनी रिहाइश की शक्ल दी।‘‘
(सुनहरा इतिहास समेटे है किला नवाबगंज)
(अमर उजाला सहारनपुर पृष्ठ 10 ,18 नवम्बर 2009)
however, the other two posts are chinese so cant be read.
ReplyDeletethese posts are not in chinese.. these are written in hindi font.. if you want to read, please download the hindi font in your computer..then u can read these posts also..otherwise i shall try to type same as the 1st post..
ReplyDeletedon't retype bhai sahab i will download hindi font. my blog post is
Deleterajive-singh.blogspot.com/
please visit.
Samay jee, Here is proof of Kateheria Rohilla rajput history - please get details book from Mr MS Kathayat jee -
Deletehttp://mskathayat.blogspot.com/2014/01/historical-relation-of-nikumba-rohilla.html
--
http://mskathayat.blogspot.com/2013/11/relation-of-katehria-rajput-and-rohilla.html
On page 250 of the book “Kshatriya Vartman” by Thakur Ajit Singh, it is started: “The ancient home of Rudra-Randhel or Rohail is Bans Bareilly. It is sub-branch of Katehartyas of the Nikumbh Vans descended from Bharat”.
Bhim Raj describes the Rohilla rajputs as migrating to this tract and founding the State of Rampur, where they held their sway for eleven generations
keep it up Pundir jee, history needs lot of time, efforts and resources!
ReplyDeleteall rajput rulers kathet/kathi /rathore/jewar/chouhanetc migrated from rohilkhand are called rohila rajputsplease aftermigrationto nepalby routeofkumaun/pilibhitcrossing ramganga riverfrom bareilly
Deleterohilkhand is purely sanskrit word established by hindurohila rajputsmigrated from roh provincein seventeenth cencuarybefore muslima they were kaths from kath gan rajya near ravi river kathgarh
ReplyDeletekatheharrohilkhand was before rahmatkhanruhela afgan in eighteenth century
ReplyDeleteseventh century may be read in place of seventeenth cencury in above reply please
ReplyDeleteseventh century may be read in place of seventeenth cencury in above reply please
ReplyDeleteरोहिला राजपुत्रो के इतिहास की अधिक जानकारी के लिए नेट पर रोहिला राजपूत
ReplyDeleteसम फैक्ट्स फ्रॉम हिस्ट्री रोहिला राजपूत सर्च करिये
Excellent
ReplyDeleteExcellent work done by you goodself. Great work I salute you Hon'ble samay singh pundir ji
ReplyDeleteधन्यवाद रविन्द्र रोहिला जी ,राजपूतो की यह रोहिला खाफ अपनी बहादुरी के विख्यात है,इनके पूर्वजो ने भारत के पश्चिमोत्तरीय सीमा प्रांत पर हजारो साल तक आक्रांताओ को रोके रखने में अपना सर्वस्व मिटाया है,मैदानी भागों के क्षत्रियो से सहायता न मिलने और सीमा पर लगातार बढ़ते इस्लामिक हमलों कब कारण रोहिले मैदानों में आये और सौराष्ट्र को काठियावाड़ के नाम से विख्यात किया, पांचाल, अहिक्षेत्र, काम्पिल्य आदि क्षेत्रों पर अधिकार जमाया तथा इसका नाम कठेहर रोहिलखण्ड रख्खा,यह काठी कौम वही थी जिसने सिकन्दर का मुकाबला रावी व व्यास नदी के काठे में किया था और उसे घुटने टेकने पर मजबूर कर भागने पर विवश कर दिया था, टांको ने तक्षकों ने रोहिला को धोखा दिया और सिकन्दर को 20 हजार सेना दे उसे जान बचा कर भागने का अवसर दिया,
ReplyDeleteजिसकी मदद से लौटते हुए उसने अजय राव रोहिला के अश्वक गणराज्य के मशकवती दुर्ग को घेर लिया, अश्वक रोहिला ने डट कर मुकाबला किया,
अजय राव की पुत्री कर्णिका ने फिलिप को छुरा घोप दिया,
शिविर में 7हजार अष्वको को सिंकदर ने काट डाला था, सिकन्दर के इस कृत्य की इतिहास कारो ने कड़ी निंदा की।
टांको ने तक्षकों ने रोहिला को धोखा दिया... kya taank, takshaq aur rohilla alag alag hai ya alag alag dhaarao mai bat gaye hai? Kya taank, takshak aur rohilla teeno hi rooh desh se aaye the? sab kuch itna confusing kyo hai?
ReplyDeleteबिल्कुल सही गौरव जी तक्षक टांक अलग जाती है
Deleteजिनका रोहिले राजपूतो से कोई सम्बन्ध नही है
घर घर राजपुताना रोहिलखण्ड के राजाओं की वीरता की कहानियां भावी पीढ़ी को सुनाए
ReplyDeletesure sir...
Deleteअश्व रोही लौह = रोहीलौह = रोहीलौ
ReplyDelete--
रोहिल्ला थे रोहीलौह -> वीर घुड़सवार सशस्त्र सैनिक
- इसलिए नाम से लिया गया
घुड़सवार सेना, तलवार चलाने वाला -- : अश्व रोही लौह सैनिक शौर्य , सेनापति
Excellent piece of work...hope to see more facts...proud on your efforts and hardwork...keep it up
ReplyDeleteजय राजपूताना रोहिलखंड
ReplyDeleteजय राजपूताना रोहिलखंड
ReplyDelete*प्रमुख रोहिला क्षत्रिय शासक*
ReplyDelete*1. अंगार सैन -* गांधार (वैदिक काल)
*2. अश्वकरण -* ईसा पूर्व 326 (मश्कावती दुर्ग)
*3. अजयराव -* स्यालकोट (सांकल दुर्ग) ईसा पूर्व 326
*4. प्रचेता -* मलेच्छ संहारक
*5. शाशिगुप्त -* साइरस के समकालीन
*6. सुभाग सैन -* मौर्य साम्राज्य के समकालीन
*7. राजाराम शाह -* 909ईसवी रामपुर रोहिलखण्ड
*8. बीजराज -* रोहिलखण्ड
*9. करण चन्द्र -* रोहिलखण्ड
*10. विग्रह राज -* रोहिलखण्ड - गंगापार कर स्रुघ्न जनपद (सुगनापुर) यमुना तक विस्तार दसवीं शताब्दी में सरसावा में किले का निर्माण पश्चिमी सीमा पर, यमुना द्वारा ध्वस्त टीले के रूप में नकुड़ रोड पर देखा जा सकता है।
*11. सावन्त सिंह -* रोहिलखण्ड
*12. जगमाल -* रोहिलखण्ड
*13. धिंगतराव -* रोहिलखण्ड
*14. गोंकुल सिंह -* रोहिलखण्ड
*15. महासहाय -* रोहिलखण्ड
*16. त्रिलोक चन्द -* रोहिलखण्ड
*17. रणवीर सिंह -* रोहिलखण्ड
*18. सुन्दर पाल -* रोहिलखण्ड
*19. नौरंग देव -* रोहिलखण्ड
*20. सूरत सिंह -* रोहिलखण्ड
*21. हंसकरण रहकवाल -* पृथ्वीराज के सेनापति
*22. मिथुन देव रायकवार -* ईसम सिंह पुण्डीर के मित्र थाना भवन शासक
*23. सहकरण, विजयराव -* उपरोक्त
*24. राजा हतरा -* हिसार
*25. जगत राय -* बरेली
*26. मुकंदराज -* बरेली 1567 ई.
*27. बुधपाल -* बदायुं
*28. महीचंद राठौर -* बदायुं
*29. बांसदेव -* बरेली
*30. बरलदेव -* बरेली
*31. राजसिंह -* बरेली
*32. परमादित्य -* बरेली
*33. न्यादरचन्द -* बरेली
*34. राजा सहारन -* थानेश्वर
*35. प्रताप राव खींची (चौहान वंश) -* गागरोन
*36. राणा लक्ष्य सिंह -* सीकरी
*37. रोहिला मालदेव -* गुजरात एवम जालोर
*38. जबर सिंह -* सोनीपत
*39. रामदयाल महेचराना -* कलायथ
*40. गंगसहाय ,वीर गंगा सिंह महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत -* महेचराना - क्लायथ 1761 ई.
*41. राणा प्रताप सिंह -* कौराली (गंगोह) 1095 ई.
*42. नानक चन्द -* अल्मोड़ा
*43. राजा पूरणचन्द -* बुंदेलखंड
*44. राजा हंस ध्वज -* हिसार व राजा हरचंद
*45. राजा बसंतपाल -* रोहिलखण्ड व्रतुसरदार, सामंत वृतपाल 1193 ई.
*46. महान सिंह बडगूजर -* बागपत 1184 ई.
*47. राजा यशकरण -* अंधली
*48. गुणाचन्द -* जयकरण - चरखी - दादरी
*49. राजा मोहनपाल देव -* करोली
*50. राजारूप सैन -* रोपड़
*51. राजा महीपाल पंवार -* जीन्द
*52. राजा परपदेड पुंडीर -* लाहौर
*53. राजा लखीराव -* स्यालकोट
*54. राजा जाजा जी तोमर -* दिल्ली
*55. खड़ग सिंह -* रोहिलखण्ड लौदी के समकालीन
*56. राजा हरि सिंह -* खिज्रखां के दमन का शिकार हुआ - कुमायुं की पहाड़ियों में अज्ञातवास की शरण ली
*57. राजा इन्द्रगिरी (रोहिलखण्ड) (इन्द्रसेन) -* सहारनपुर में प्राचीन रोहिला किला बनवाया रोहिला क्षत्रिय वंश भास्कर लेखक आर. आर. राजपूत मुरसेन अलीगढ से प्रस्तुत
*58. राजा बुद्ध देव रोहिला -* 1787 ई., सिंधिया व जयपुर के कछवाहो के खेड़ा व तुंगा के मैदान में हुए युद्ध का प्रमुख पात्र (राय कुँवर देवेन्द्र सिंह जी राजभाट, तुंगा (राजस्थान)
*नोट* ..*इनके अतिरिक्त और बहुत से रोहिला शासक विभिन्न स्थानों पर हुए,जिनकी खोज जारी हैं क्योंकि क्षत्रिय इतिहास को छिपाया गया है जैसे महोबा में चंदेला से पहले रोहिला शासन था, राजस्थान के राठौड़ रोहिलखंड बंदायू से आए थे*
क्रमशः
*संकलन _समय सिंह पुंडीर, दिनांक 10मई 2011 प्रकाशित.क्षत्रिय आवाज मासिक पत्रिका एवम राजपूत/क्षत्रिय वाटिका(क्षत्रिय वंशावली) 22अगस्त2012 🙏*
*जय राजपूताना*
ऐतिहासिक जानकारी किसी के पास हो तो कॉमेंट में दीजिए
ReplyDelete*राजपूत काल की विश्व विख्यात रियासत रोहिलखंड और बुंदेलखंड में थी अद्भुत आयुद्ध निमार्ण की परंपरा,रामपुर के रोहिला क्षत्रिय नरेश रणवीर सिंह ने आरंभ की थी खड्ग,तलवार और शामशीर अकाट्य प्रणाली विकसित,रामपुर रोहिलखंड की ,भवानी नामक तलवार,जगदंबा नाम की खड्ग और तुलजा नामक शमशिर अकाट्य और अनोखी मारक क्षमता रखती थी जिनकी चर्चा राजपूत काल में बहुत हुई किंतु इतिहास कारो ने इनके विषय में चुप्पी साधे रखी,बुंदेलखंड का भला विश्व विख्यात था,रामपुर की हथियारों कारीगरी के अवशेष मात्र चाकू आज भी रामपुरी नाम से विश्व में प्रसिद्ध है*
ReplyDelete*जय जय बुंदेलखंड ,रोहिलखंड*
*रोहिलखंड संस्थापक राजा रणवीर सिंह रोहिला और बुंदेल केशरी महाराजा छत्रसाल बुंदेला ने दिल्ली दरबार की ईंट से ईंट बजा दी थी,किंतु फिर भी इतिहास मनमोहन सिंह बना रहा*को
बहुत दुर्लभ जानकारी
ReplyDelete⚜️ *मेरा परिचय*⚜️
ReplyDelete1.*नाम सरनेम सहित*_ रविन्द्र रोहिला
2.*वंश* _ सूर्यवंश(गहलोत)
*बप्पा रावल के वंशज*
3.*गोत्र*_ पानिशप (पुर्णसरे)
*प्रवर ऋषि गोत्र जो विवाह आदि संस्कारों के लिए वांछित होता है*_वशिष्ठ
4.*ऋषि* _वशिष्ठ
5.*शाखा*_माधोजनी (रावल)
6.*वेद* _ _यजुर्वेद,उपवेद__धनुर्वेद
7.*सूत्र* _कात्यायन
8.*शिखा* _दाहिनी
9.*पाद* _दाहिना
10.*उपवेद* _धनुर
11.*देवता* _ शिव
12.*कुलदेवी*_ बानासुरी
13.*ध्वज* _पंचरंगा
14.*निशान* _रणजीत (केसरिया)
15.*नदी* _सरयू
16.*पक्षी* _गरुड़
17.*गुरु* _वशिष्ठ
18.*उद्घोष* _हर हर महादेव
19 *गद्दी* _अलमार्ड(अरावली का किला)
20.*निकास*_ अरावली ,किला अलमर्द
21.*ठिकाना* _बावल गांव(बरवाला)
22.*नगाड़ा* _रणजीत
23.*बैर या पदवी,उपाधि*_रावले रोहिला
24.*अस्त्र शस्त्र* _ खड़ग भवानी
25.*गोत्र कर्ता मूल पुरुष* राजा पूरन सिंह जी बाबल गांव ( वर्तमान बरवाला जिला बागपत ) में मेव जाति के आतंक को ख़तम किया युद्ध करके जनता को भयमुक्त कराया और पुर्णसरे गोत्र प्रचलित किया
यहां सोलहवीं सदी में जाट आक्रमण में इनके वंशज हार गए और आस पास के गांव, नगर आदि स्थानों को पलायन किया,कुछ लोग दिल्ली ,हरियाणा में चले गए शासन व्यवस्था छिन भिन्न हो गई,कालांतर में बिखरते चले गए।
✒️🙏
⚜️ *मेरा परिचय*⚜️
ReplyDelete1.*नाम सरनेम सहित*_ रविन्द्र रोहिला
2.*वंश* _ सूर्यवंश(गहलोत)
*बप्पा रावल के वंशज*
3.*गोत्र*_ पानिशप (पुर्णसरे)
*प्रवर ऋषि गोत्र जो विवाह आदि संस्कारों के लिए वांछित होता है*_वशिष्ठ
4.*ऋषि* _वशिष्ठ
5.*शाखा*_माधोजनी (रावल)
6.*वेद* _ _यजुर्वेद,उपवेद__धनुर्वेद
7.*सूत्र* _कात्यायन
8.*शिखा* _दाहिनी
9.*पाद* _दाहिना
10.*उपवेद* _धनुर
11.*देवता* _ शिव
12.*कुलदेवी*_ बानासुरी
13.*ध्वज* _पंचरंगा
14.*निशान* _रणजीत (केसरिया)
15.*नदी* _सरयू
16.*पक्षी* _गरुड़
17.*गुरु* _वशिष्ठ
18.*उद्घोष* _हर हर महादेव
19 *गद्दी* _अलमार्ड(अरावली का किला)
20.*निकास*_ अरावली ,किला अलमर्द
21.*ठिकाना* _बावल गांव(बरवाला)
22.*नगाड़ा* _रणजीत
23.*बैर या पदवी,उपाधि*_रावले रोहिला
24.*अस्त्र शस्त्र* _ खड़ग भवानी
25.*गोत्र कर्ता मूल पुरुष* राजा पूरन सिंह जी बाबल गांव ( वर्तमान बरवाला जिला बागपत ) में मेव जाति के आतंक को ख़तम किया युद्ध करके जनता को भयमुक्त कराया और पुर्णसरे गोत्र प्रचलित किया
यहां सोलहवीं सदी में जाट आक्रमण में इनके वंशज हार गए और आस पास के गांव, नगर आदि स्थानों को पलायन किया,कुछ लोग दिल्ली ,हरियाणा में चले गए शासन व्यवस्था छिन भिन्न हो गई,कालांतर में बिखरते चले गए।
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*क्षत्रिय सम्राट रोहिलखंड नरेश ,महाराजा रणवीर सिंह रोहिला जी के शौर्य को आज तक नही भुला पाया राजपूताना रोहिलखंड*
ReplyDelete*रक्षा बंधन के दिन रोहिलखंड की वीर भूमि गंगा सी पवित्र राजपूतों के रक्त से रंजित और आक्रांताओं के काल की धरती रामपुर के किले में दिया थी कठेहर रोहिलखंड नरेश,महाराजा रणवीर सिंह रोहिला ने अदम्य साहस और अद्भुत शौर्य का परिचय,दिल्ली सुलतान नादिरुद्दीन बहराम उर्फ चंगेज की चालीस हजार की सेना को शिकस्त धोखे के शिकार राजपूत निहत्थे ही लड़े,आक्रमण कारियो के अस्त्र शस्त्र छीन छीन किया था शौर्य संग्राम अंत में चंगेज के खूंखवार दरिंदो ने अकेले में घेर लिया था रणवीर किंतु उनके साहस से विस्मित हुए बिना नहीं रहे,रणवीर रणभूमि के वीर सपूत खेत रहे,उनका बलिदान रोहिलखंड के राजपूताना इतिहास में स्वर्णाक्षर दे गया,समस्त राजपूत समाज रक्षा बंधन के दिन हुए इस बलिदान को एक शोर्य दिवस के रूप में मनाता आया है,यूट्यूब पर महाराजा रणवीर सिंह रोहिला की वीर गाथा दी हुई है,सभी क्षत्रिय जन अपने बच्चो को दिखाए ताकि सल्तनत काल में १२५४ ईसवी के इस इतिहास के धुंधले पृष्ठ भी उकेरे जा सके,जय महाराजा रणवीर सिंह रोहिला ,जय राजपूताना रोहिलखंड*
*इतिहास के पन्नो में दर्ज है रोहिला राजपूतों का पराक्रम*
ReplyDelete*पानीपत के तीसरे युद्ध में हुआ था वीर गंगा सिंह महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत और उसकी सेना का बलिदान*
*14 जनवरी सन 1761 ईसवी दिन बुधवार मकर सक्रांति को दिया हिंदुत्व के लिए सर्वोच्च बलिदान**🤺🤺🤺🤺🎠🎠🎠🏇🏼
🏇🏼🏇🏼🏇🏼
*पानीपत के मैदान में समय 2बजे** *अपराह्न,जनवरी की हाड़ कंपाने वाली सर्दी,कोहरा और बिजली की गड़गड़ाहट से बारिश के भयावह मौसम में*
*1400 रोहिले राजपूत वीर गंगा सिंह उर्फ गंगा सहाय महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत के नेतृत्व में कूद पड़े हिन्दू धर्म रक्षार्थ युद्ध भूमि पर रुहेला सरदार नजीब खान बंगस व आक्रांता अहमद शाह दुर्रानी अब्दाली के विरुद्ध लड़ रहे मराठो की ओर से* 😇😇🎠🎠🤺🤺🏇🏼🏇🏼🏇🏼 छिड़ गया घमासान युद्ध कट कट गिर रहे अब्दाली के सैनिक कट कट गिर रहे थे गद्दार रुहेले नजीब खान के रूहेले बंगास पठान
परन्तु हुआ क्या गार्दी की टॉप सामने आ गयी और मुसलमानों के चिथड़े उड़ने लगे 1400 रोहिले राजपूतो की एक टुकड़ी मुख्य सेना से बिछुड़ गयी और अफगानों ने उन्हें घेर लिया वीर राठौड़ गंगा सिंह रोहिला /गंगा सहाय व उनके साथी हजारो अफगानों का संहार करते हुए सांय पांच बजे वीर गति को। प्राप्त हुए ।
मराठो की हार हुई अपनी ही तोप के सामने अपनी ही देना आ गई थी !क्या दुखद हार !!जीती हुई पानीपत की तीसरी लड़ाई को मराठे जीत कर भी एक घण्टे में हार गए ।
उत्तर भारत की रक्षार्थ आये मराठो का साथ अन्य राजपूतो जाटो गुज्जरों ने नही दिया क्योंकि मराठे उनसे कर वसूलते थे,और अकेले पड़े हिंदुत्व के लिए लड़े मराठो का साथ सदा शिव राव भाऊ के सेनापति के रूप में सेना में भर्ती हो वीर रोहिला गंगा सिंह ने अपना जीवन का सर्वोच्च बलिदान देकर भी दिया ।
इसी वंश के
भवानी सिंह महेचा तांत्या टोपे की सेना में सेनापति थे जब झांसी की रानी को ह्यूरोज ने घायल किया तो जनरल भवानी सिंह महेचराना ने अपने 16 सेनिको के साथ रक्षा कवच तैयार कर अंग्रेजो से उनकी रक्षा करते रहे और लक्ष्मी बाई को सुरक्षित एक जंगल में कुटिया तक पहुंचाया था किंतु अंग्रेजो के हाथ नही पड़ने दिया,
सन 1858 ईसवी।
🏇🏼🏇🏼🏇🏼🏇🏼🏇🏼🏇🏼🤺🤺🤺🤺🤺🎠🎠🎠🎠 बुक्स तांत्या टोपे व हिन्दू रोहिला क्षत्रिय इतिहास में उपलब्ध लेख🏇🏼🏇🏼🏇🏼🏇🏼🎠🎠🎠🤺🤺🤺
*14जनवरी 1761 मकर सक्रांति दिन बुधवार पानीपत का मैदान नजीबुदौला रुहेला सरदार ने बुलाया अपना ही अफगानी दुरररानी अबदाली अहमदशाह दिल्ली पर अधिकार करने को मराठे आ डटे आक्रांताओ के रोकने हेतु ओर हुवा एक भीषण सग्राम इसी दिन 2लाख यात्री जो मराठो के साथ मकर सक्रांति का कुरुक्षेत्र सूरजकुंड स्नान करने आये थे लगा रहे थे सक्रांति की डुबकी उत्तर भारत के किसी राजपूत गुज्जर जाट ब्रहामण ने साथ नही दिया मराठो का क्योंकि मराठे उनसे कर वसूल करते थे इसलिए यहां की रियासते उनके खिलाफ थी केवल वीर राठौड़ गंगा सहाय महेचाराणा रोहिला राजपूत स्वयम को नही रोक पाए और 1400 रोहिले राजपूतो के साथ रुहेला सरदार नजीबखान अफगानी ओर अहमदशाह अब्दाली के विरुद्ध मराठो का साथ देने कूदे पानीपत की जंग में ,2 बजे तक मराठे जीत रहे थे भूखे ठिठुरते हुए 14 जनवरी को हाड़ कंपाने वाली सर्दी और बारिश कोहरे में लड़ रहे थे ,अनायास ही धोखा हुआ और चारो ओर से घिर गए 5 बजे तक 50 हजार मराठे कट कर युद्ध हारे ओर अबदाली की जीत हुई उधर सूरजकुंड कुरुक्षेत्र में 40 हजार महिलाओ को नहाते हुए वस्त्र विहीनी पकड लिया गया और नजीब ओर अबदाली को सौंप दिया गया, वीर गंगा सहाय महेचा राठौड़ भी खेत रहे ,बाद में रुहेला सरदार नजीब खान अफगानी ने 1764 में सूरजमल जाट महान शासक का भी कत्ल कर दिया और बदल गया एक ओर इतिहास का पन्ना यदि समस्त हिन्दू 14 जनवरी 1761 को एक होकर लड़ता तो आज इतिहास कुछ और ही कहता न ब्रिटिश राज होता न भारत गुलाम होता और होता हिन्दवी स्वराज*
ReplyDeleteCool and I have a super give: Whole House Remodel Cost home renovators
ReplyDelete*प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 में भी* *रोहिले राजपूतों ने अपना योगदान दिया, ग्वालियर के किले में रानी लक्ष्मीबाई को हजारों की संख्या में रोहिले राजपूत मिले, इस महायज्ञ में स्त्री पुरुष सभी ने अपने गहने, धन आदि एकत्र कर झांसी की रानी के साथ अंग्रेजों के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए सम्राट बहादुरशाह- जफर तक पहुंचाए। अंग्रेजों ने ढूंढ-ढूंढ कर उन्हें काट डाला जिससे रोहिले* *राजपूतों ने अज्ञातवास की शरण ली। राजपूतों की हार के प्रमुख कारण थे सेना में हाथियों का प्रयोग, सामंत प्रणाली व आपसी मतभेद, ऊंचे व भागीदार कुल का भेदभाव (छोटे व बड़े की भावना) आदि और हमलावरों द्वारा गायों के झुंड को आगे करके तीर चलाना वार करना क्योंकि राजपूत गाय माता पर सीधे वार नहीं करते जिससे बिना वार किए आक्रमण झेलना और बारूद का सामना करना बारूदी हथियारों की कमी और गाय संरक्षण भी हार का कारण बने। सम्वत 825 में बप्पा रावल चित्तौड़ से विधर्मियों को खदेड़ता हुआ ईरान तक गया। बप्पा रावल से समर सिंह तक 400 वर्ष होते हैं, गह्लौतों का ही शासन रहा। इनकी 24 शाखाएं हैं। जिनके 16 गोत्र (बप्पा रावल के वंशधर) रोहिले राजपूतों में पाए जाते हैं। चितौड़ के राणा समर सिंह (1193 ई.) की रानी पटना की राजकुमारी थी इसने 9 राजा, 1 रावत और कुछ रोहिले साथ लेकर मौ. गोरी के गुलाम कुतुबद्दीन का आक्रमण रोका और उसे ऐसी पराजय दी कि कभी उसने चितौड़ की ओर नहीं देखा। रोहिला राजपूतों ने रोहिलखंड के बीचोबीच स्थित संभल के हरिहर मंदिर को तीन बार विधर्मियों पर आक्रमण करके उनसे मुक्त कराया था जो *सन 1857तक हिंदुओ के कब्जे में था,ब्रिटिश राज में इसे सन 1920 में भारतीय पुरातत्व विभाग को सौंप दिया था,।। रोहिला शब्द क्षेत्रजनित, गुणजनित व मूल पुरुष नाम-जनित है। यह गोत्र जाटों में भी रूहेला, रोहेला, रूलिया, रूहेल, रूहिल, रूहिलान नामों से पाया जाता है। रूहेला गोत्र जाटों में राजस्थान व उ. प्र. में पाया जाता है। रोहेला गोत्र के जाट जयपुर में बजरंग बिहार ओर ईनकम टैक्स कालोनी टौंक रोड में विद्यमान है। झुनझुन, सीकर, चुरू, अलवर, बाडमेर में भी रोहिला गोत्र के जाट विद्यमान हैं। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में रोहेला रोहल रोहिलान गोत्र के जाटों के बारह गाँव हैं। महाराष्ट्र में रूहिलान गोत्र के जाट वर्धा में केसर व खेड़ा गांव में विद्यमान हैं।रोहतक के पास रोहद आदि स्थानों पर रोहिल रूहिल रोहल रोहिल उपनाम के जाट विद्यमान है जो खुद को महाराज रोहा के वंशज बताते हैं। भिवानी में रोहिल उपनाम के जाट विद्यमान है।मुगल सम्राट अकबर ने भी राजपूत राजाओं को विजय प्राप्त करने के पश्चात् रोहिला-उपाधि से विभूषित किया था, जैसे राव, रावत, महारावल, राणा, महाराणा, रोहिल्ला, रहकवाल आदि।रोहिलखंड से विस्थापित रोहिला-राजपूत समाज, क्षत्रियों का वह परिवार है जो सरल ह्रदयी, परिश्रमी, राष्ट्रप्रेमी, स्वधर्मपरायण, स्वाभिमानी व वर्तमान में अधिकांश अज्ञातवास के कारण साधनविहीन है। 40 प्रतिशत कृषि कार्य से, 30 प्रतिशत श्रम के सहारे व 30 प्रतिशत व्यापार व लघु उद्योगों के सहारे जीवन यापन कर रहे हैं। इनके पूर्वजों ने हजारों वर्षों तक अपनी आन, मान, मर्यादा की रक्षा के लिए बलिदान दिए हैं और अनेको आक्रान्ताओं को रोके रखने में अपना सर्वस्व मिटाया है। गणराज्य व लोकतंत्रात्मक व्यवस्था को सजीव बनाये रखने की भावना के कारण वंश परंपरा के विरुद्ध रहे, करद राज्यों में भी स्वतंत्रता बनाये रखी। कठेहर रोहिलखण्ड की स्थापना से लेकर सल्तनत काल की उथल पुथल, मार काट, दमन चक्र तक लगभग आठ सौ वर्ष के शासन काल के पश्चात् 1857 के ग़दर के समय तक रोहिले राजपूतों ने राष्ट्रहित में बलिदान दिये हैं। क्रूर काल के झंझावातो से संघर्ष करते हुए क्षत्रियों का यह रोहिला परिवार बिखर गया है, इस समाज की पहचान के लिए भी आज स्पष्टीकरण देना पड़ता है। कैसा दुर्भाग्य है? यह क्षत्रिय वर्ग का। जो अपनी पहचान को भी टटोलना पड़ रहा है। परन्तु समय के चक्र में सब कुछ सुरक्षित है। इतिहास के दर्पण में थिरकते चित्र, बोलते हैं, अतीत झांकता है, सच सोचता है कि उसके होने के प्रमाण धुंधले-धुंधले से क्यों हैं? हे- क्षत्रिय तुम धन्य हो, *पहचानों अपने प्रतिबिम्बों को –*
ReplyDelete*क्षत्रिय एकता के बिगुल फूंक सब _धुंधला _धुंधला छंटने दो।*
*हो अखंड भारत के राजपुत्र, खण्ड खण्ड में न सभी को बंटने दो।।*
संकलन
समय सिंह पुंडीर
प्रकाशित
क्षत्रिय आवाज मासिक पत्रिका
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा १८९७
*राजपूत विशेषांक*
02मई 2011ईस्वी