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Monday, 23 December 2024

ROHILA THE BRAND

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 में भी रोहिले राजपूतों ने अपना योगदान दिया, ग्वालियर के किले में रानी लक्ष्मीबाई को हजारों की संख्या में रोहिले राजपूत मिले, इस महायज्ञ में स्त्री पुरुष सभी ने अपने गहने, धन आदि एकत्र कर झांसी की रानी के साथ अंग्रेजों के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए सम्राट बहादुरशाह- जफर तक पहुंचाए। अंग्रेजों ने ढूंढ-ढूंढ कर उन्हें काट डाला जिससे रोहिले राजपूतों ने अज्ञातवास की शरण ली। राजपूतों की हार के प्रमुख कारण थे हाथियों का प्रयोग, सामंत प्रणाली व आपसी मतभेद, ऊंचे व भागीदार कुल का भेदभाव (छोटे व बड़े की भावना) आदि। सम्वत 825 में बप्पा रावल चित्तौड़ से विधर्मियों को खदेड़ता हुआ ईरान तक गया। बप्पा रावल से समर सिंह तक 400 वर्ष होते हैं, गह्लौतों का ही शासन रहा। इनकी 24 शाखाएं हैं। जिनके 16 गोत्र (बप्पा रावल के वंशधर) रोहिले राजपूतों में पाए जाते हैं। चितौड़ के राणा समर सिंह (1193 ई.) की रानी पटना की राजकुमारी थी इसने 9 राजा, 1 रावत और कुछ रोहिले साथ लेकर मौ. गोरी के गुलाम कुतुबद्दीन का आक्रमण रोका और उसे ऐसी पराजय दी कि कभी उसने चितौड़ की ओर नहीं देखा।  रोहिलखंड के बीचोबीच स्थित संभल के हरिहर मंदिर को रोहिला राजपूतों ने तीन बार आक्रमण करके विधर्मियों से मुक्त कराया था जो सन 1857तक हिंदुओ के कब्जे में रहा,ब्रिटिश राज में इस मंदिर को 1920ईस्वी में भारतीय पुरातत्व विभाग को सौंप दिया गया था।।रोहिला शब्द क्षेत्रजनित, गुणजनित व मूल पुरुष नाम-जनित है। यह गोत्र जाटों में भी रूहेला, रोहेला, रूलिया, रूहेल, रूहिल, रूहिलान नामों से पाया जाता है। रूहेला गोत्र जाटों में राजस्थान व उ. प्र. में पाया जाता है। रोहेला गोत्र के जाट जयपुर में बजरंग बिहार ओर ईनकम टैक्स कालोनी टौंक रोड में विद्यमान है। झुनझुन, सीकर, चुरू, अलवर, बाडमेर में भी रोहिला गोत्र के जाट विद्यमान हैं। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में रोहेला रोहल रोहिलान गोत्र के जाटों के बारह गाँव हैं। महाराष्ट्र में रूहिलान गोत्र के जाट वर्धा में केसर व खेड़ा गांव में विद्यमान हैं।रोहतक के पास रोहद आदि स्थानों पर रोहिल रूहिल रोहल रोहिल उपनाम के जाट विद्युमान है जो खुद को महाराज रोहा के वंशज बताते हैं। भिवानी में रोहिल उपनाम के जाट विद्यमान है।मुगल सम्राट अकबर ने भी राजपूत राजाओं को विजय प्राप्त करने के पश्चात् रोहिला-उपाधि से विभूषित किया था, जैसे राव, रावत, महारावल, राणा, महाराणा, रोहिल्ला, रहकवाल आदि।रोहिलखंड से विस्थापित रोहिला-राजपूत समाज, क्षत्रियों का वह परिवार है जो सरल ह्रदयी, परिश्रमी, राष्ट्रप्रेमी, स्वधर्मपरायण, स्वाभिमानी व वर्तमान में अधिकांश अज्ञातवास के कारण साधनविहीन है। 40 प्रतिशत कृषि कार्य से, 30 प्रतिशत श्रम के सहारे व 30 प्रतिशत व्यापार व लघु उद्योगों के सहारे जीवन यापन कर रहे हैं। इनके पूर्वजों ने हजारों वर्षों तक अपनी आन, मान, मर्यादा की रक्षा के लिए बलिदान दिए हैं और अनेको आक्रान्ताओं को रोके रखने में अपना सर्वस्व मिटाया है। गणराज्य व लोकतंत्रात्मक व्यवस्था को सजीव बनाये रखने की भावना के कारण वंश परंपरा के विरुद्ध रहे, करद राज्यों में भी स्वतंत्रता बनाये रखी। कठेहर रोहिलखण्ड की स्थापना से लेकर सल्तनत काल की उथल पुथल, मार काट, दमन चक्र तक लगभग आठ सौ वर्ष के शासन काल के पश्चात् 1857 के ग़दर के समय तक रोहिले राजपूतों ने राष्ट्रहित में बलिदान दिये हैं। क्रूर काल के झंझावातो से संघर्ष करते हुए क्षत्रियों का यह रोहिला परिवार बिखर गया है, इस समाज की पहचान के लिए भी आज स्पष्टीकरण देना पड़ता है। कैसा दुर्भाग्य है? यह क्षत्रिय वर्ग का। जो अपनी पहचान को भी टटोलना पड़ रहा है। परन्तु समय के चक्र में सब कुछ सुरक्षित है। इतिहास के दर्पण में थिरकते चित्र, बोलते हैं, अतीत झांकता है, सच सोचता है कि उसके होने के प्रमाण धुंधले-धुंधले से क्यों हैं? हे- क्षत्रिय तुम धन्य हो, पहचानों अपने प्रतिबिम्बों को –

क्षत्रिय एकता के बिगुल FOONK सब  _धुंधला _धुंधला छंटने दो।

हो akhand भारत के राजपुत्र, खण्ड खण्ड में न सभी को  batne   दो।।
संकलन
समय सिंह पुंडीर
प्रकाशित
क्षत्रिय आवाज मासिक पत्रिका
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा १८९७
*राजपूत विशेषांक*
02मई 2011ईस्वी


Saturday, 14 December 2024

RAJPUTANA ROHILKHAND

जय जय राजपूताना बुंदेलखंड,रोहिलखंड,बघेलखंड,कुमायुखंड उत्तराखंड (भरतखण्ड)
क्षत्रिय अस्तित्व न्याय मोर्चा सभी क्षत्रिय साम्राज्य को खोज खोज कर सामने लाने की मुहिम में है बहुत कुछ छिपाया गया और हमे नही पढ़ाया जाता किंतु क्षत्रिय कभी मिटता नही वह शास्वत है सनातन है उसकी रक्षा स्वयं सृष्टि रचयिता करता है ,क्षत्रिय अस्तित्व न्याय मोर्चा किसी भी क्षत्रिय के अस्तित्व को संरक्षित करने का कार्य कर रहा है,कितना हास्यास्पद है कि वैदिक कालीन उत्तरी पांचाल में स्थापित राजपूताना रोहिलखंड के क्षत्रिय के स्थान पर आक्रांता अफगानों का इतिहास पढ़ाया जाता है अट्ठारहवीं सदी से आगे राजपूत इतिहास को गायब ही कर दिया गया विक्की पीडिया से भी हटा दिया गया है किंतु अब और अन्याय इतिहास के साथ सहन नही किया जायेगा।।

रोहिल्ला उपाधि -

 शूरवीर, अदम्य - साहसी विशेष युद्ध कला में प्रवीण, उच्च कुलीन सेनानायको, और सामन्तों को उनके गुणों के अनुरूप क्षत्रिय वीरों को तदर्थ उपाधि से विभूषित किया जाता था - जैसे - रावत - महारावत, राणा, महाराणा, ठाकुर, नेगी, रावल, रहकवाल, रोहिल्ला, समरलछन्द, लखमीर,(एक लाख का नायक) आदि। इसी आधार पर उनके वंशज भी आजतक राजपूतों के सभी गोत्रों में पाए जाते हैं। "वभूव रोहिल्लद्व्यड्कों वेद शास्त्रार्थ पारग: । द्विज: श्री हरि चन्द्राख्य प्रजापति समो गुरू : ।।2।। ( बाउक का जोधपुर लेख ) - सन 837 ई. चैत्र सुदि पंचमी - हिंदी अर्थ - "वेद शास्त्र में पारंगत रोहिल्लाद्धि उपाधिधारी एक हरिश्चन्द्र नाम का ब्राह्मण था" जो प्रजापति के समान था हुआ ।।6।। ( गुज्जर गौरव मासिक पत्रिका - अंक 10, वर्ष ।।माह जौलाई 1991 पृष्ठ - 13) (राजपुताने का इतिहास पृष्ठ - 147) (इतिहास रोहिला - राजपूत पृष्ठ - 23) (प्राचीन भारत का इतिहास, राजपूत वंश, - कैलाश - प्रकाशन लखनऊ सन 1970 ई. पृष्ठ - 104 -105 - ) रोहिल्लद्व्यड्क रोहिल्लद्धि - अंक वाला या उपाधि वाला । सर्वप्रथम प्रतिहार शासक द्विज हरिश्चन्द्र को रोहिल्लद्धि उपाधि प्राप्त हुई । बाउक,प्रतिहार शासक विप्र हरिश्चन्द्र के पुत्र कवक और श्रीमति पदमनी का पुत्र था वह बड़ा पराक्रमी और नरसिंह वीर था। प्रतिहार एक पद है, किसी विशेष वर्ण का सूचक नही है। विप्र हरिश्चन्द्र प्रतिहार अपने बाहुबल से मांडौर दुर्ग की रक्षा करने वाला था, अदम्य साहस व अन्य किसी विशेष रोहिला शासक के प्रभावनुरूप ही रोहिल्लद्व्यड्क उपाधि को किसी आधार के बिना कोई भी व्यक्ति अपने नाम के साथ सम्बन्ध करने का वैधानिक रूप में अधिकारी नही हो सकता। उपरोक्त से स्पष्ट है कि बहुत प्राचीन काल से ही गुणकर्म के आधार पर क्षत्रिय उपाधि "रोहिल्ला" प्रयुक्त । प्रदत्त करने की वैधानिक व्यवस्था थी। जिसे हिन्दुआसूर्य - महाराजा पृथ्वीराज चौहान ने भी यथावत रखा। पृथ्वीराज चौहान की सेना में एक सौ रोहिल्ला - राजपूत सेना नायक थे । "पृथ्वीराज रासौ" - चहूँप्रान, राठवर, जाति पुण्डीर गुहिल्ला । बडगूजर पामार, कुरभ, जागरा, रोहिल्ला ।। इस कवित्त से स्पष्ट है । कि - प्राचीन - काल में रोहिला- क्षत्रियों का स्थान बहुत ऊँचा था। रोहिला रोहिल्ल आदि शब्द राजपुत्रों अथवा क्षत्रियों के ही द्योतक थे । इस कवित्त के प्रमाणिकता "आइने अकबरी", 'सुरजन चरिता' भी सिद्ध करते हैं । युद्ध में कमानी की तरह (रोह चढ़ाई करके) शत्रु सेना को छिन्न - भिन्न करने वाले को रहकवाल, रावल, रोहिल्ला, महाभट्ट कहा गया है। महाराज पृथ्वीराज चौहान की सेना में पांच गोत्रों के रावल थे - रावल - रोहिला रावल - सिन्धु रावल - घिलौत (गहलौत) रावल - काशव या कश्यप रावल - बलदया बल्द मुग़ल बादशाह अकबर ने भी बहादुरी की रोहिल्ला उपाधि को यथावत बनाए रखा जब अकबर की सेना दूसरे राज्यों को जीत कर आती थी तो अकबर अपनी सेना के सरदारों को,बहादुर जवानों बहादुरी के पदक (ख़िताब,उपाधि) देता था। एक बार जब महाराणा मान सिंह काबुल जीतकर वापिस आए तो अकबर ने उसके बाइस राजपूत सरदारों को यह ख़िताब दी (उपाधि से सम्मानित किया) बाई तेरा हर निरकाला रावत को - रावल जी चौमकिंग सरनाथा को - रावल झंड्कारा कांड्कड को - रोहिल्ला रावत मन्चारा - कांड्कड काम करन, निरकादास रावत को रावराज और रूहेलाल को रोहिला
गौरवशाली इतिहास के कुछ स्वर्णाक्षर (रोहिला क्षत्रिय) भारत वर्ष का क्षेत्रफल 42 ,02 ,500 वर्ग किमी था । रोहिला साम्राज्य 25 ,000 वर्ग किमी 10 ,000 वर्गमील में फैला हुआ था । रोहिला, राजपूतो का एक गोत्र , कबीला (परिवार) या परिजन- समूह है जो कठेहर - रोहिलखण्ड के शासक एंव संस्थापक थे |मध्यकालीन भारत में बहुत से राजपूत लडाको को रोहिला की उपाधि से विभूषित किया गया. उनके वंशज आज भी रोहिला परिवारों में पाए जाते हैं । रोहिले- राजपूत प्राचीन काल से ही सीमा- प्रांत, मध्य देश (गंगा- यमुना का दोआब), पंजाब, काश्मीर, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश में शासन करते रहे हैं । जबकि मुस्लिम-रोहिला साम्राज्य अठारहवी शताब्दी में इस्लामिक दबाव के पश्चात् स्थापित हुआ. मुसलमानों ने इसे उर्दू में "रूहेलखण्ड" कहा । 1702 से 1720 ई तक रोहिलखण्ड में रोहिले राजपूतो का शासन था. जिसकी राजधानी बरेली थी । रोहिले राजपूतो के महान शासक "राजा इन्द्रगिरी" ने रोहिलखण्ड की पश्चिमी सीमा पर सहारनपुर में एक किला बनवाया,जिसे "प्राचीन रोहिला किला" कहा जाता है । सन 1801 ई में रोहिलखण्ड को अंग्रेजो ने अपने अधिकार में ले लिया था. हिन्दू रोहिले-राजपुत्रो द्वारा बनवाए गये इस प्राचीन रोहिला किला को 1806 से 1857 के मध्य कारागार में परिवर्तित कर दिया गया था । इसी प्राचीन- रोहिला- किला में आज सहारनपुर की जिला- कारागार है । "सहारन" राजपूतो का एक गोत्र है जो रोहिले राजपूतो में पाया जाता है. यह सूर्य वंश की एक प्रशाखा है जो राजा भरत के पुत्र तक्षक के वंशधरो से प्रचालित हुई थी । फिरोज तुगलक के आक्रमण के समय "थानेसर" (वर्तमान में हरियाणा में स्थित) का राजा "सहारन" ही था । दिल्ली में गुलाम वंश के समय रोहिलखण्ड की राजधानी "रामपुर" में राजा रणवीर सिंह कठेहरिया (काठी कोम, निकुम्भ वंश, सूर्यवंश रावी नदी के काठे से विस्थापित कठगणों के वंशधर) का शासन था । इसी रोहिले राजा रणवीर सिंह ने तुगलक के सेनापति नसीरुद्दीन चंगेज को हराया था. 'खंड' क्षत्रिय राजाओं से सम्बंधित है, जैसे भरतखंड, बुंदेलखंड, विन्धयेलखंड , रोहिलखंड, कुमायुखंड, उत्तराखंड आदि । प्राचीन भारत की केवल दो भाषाएँ संस्कृत व प्राकृत (सरलीकृत संस्कृत) थी । रोहिल प्राकृत और खंड संस्कृत के शब्द हैं जो क्षत्रिय राजाओं के प्रमाण हैं । इस्लामिक नाम है दोलताबाद, कुतुबाबाद, मुरादाबाद, जलालाबाद, हैदराबाद, मुबारकबाद, फैजाबाद, आदि । रोहिले राजपूतो की उपस्तिथि के प्रमाण हैं । योधेय गणराज्य के सिक्के, गुजरात का (1445 वि ) ' का शिलालेख (रोहिला मालदेव के सम्बन्ध में), मध्यप्रदेश में स्थित रोहिलखंड रामपुर में राजा रणवीर सिंह के किले के खंडहर, रानी तारादेवी सती का मंदिर , पीलीभीत में राठौर रोहिलो (महिचा- प्रशाखा) की सतियों के सतियों के मंदिर, सहारनपुर का प्राचीन रोहिला किला, मंडोर का शिलालेख, " बड़ौत में स्तिथ " राजा रणवीर सिंह रोहिला मार्ग "
नगरे नगरे ग्रामै ग्रामै विलसन्तु संस्कृतवाणी । सदने - सदने जन - जन बदने , जयतु चिरं कल्याणी ।। जोधपुर का शिलालेख, प्रतिहार शासक हरीशचंद्र को मिली रोहिल्लाद्व्यंक की उपाधि, कई अन्य राजपूतो के वंशो को प्राप्त उपाधियाँ, 'पृथ्वीराज रासो', आल्हाखण्ड - काव्यव, सभी राजपूत वंशो में पाए जाने वाले प्रमुख गोत्र । अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा भारत द्वारा प्रकाशित पावन ग्रन्थ क्षत्रिय वंशाणर्व (रोहिले क्षत्रियों का राज्य रोहिलखण्ड का पूर्व नाम पांचाल व मध्यप्रदेश), वर्तमान में अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा से अखिल भारतीय रो. क्ष. वि. परिषद को संबद्धता प्राप्त होना, वर्तमान में भी रोहिलखण्ड (संस्कृत भाषा में) क्षेत्र का नाम यथावत बने रहना, अंग्रेजो द्वारा भी उत्तर रेलवे को "रोहिलखण्ड - रेलवे" का नाम देना जो बरेली से देहरादून तक सहारनपुर होते हुए जाती थी, वर्तमान में लाखो की संख्या में पाए जाने वाले रोहिला-राजपूत, रोहिले-राजपूतों के सम्पूर्ण भारत में फैले हुए कई अन्य संगठन अखिल भारतीय स्तर पर 'राजपूत रत्न' रोहिला शिरोमणि डा. कर्णवीर सिंह द्वारा संगठित एक अखिल भारतीय रोहिला क्षत्रिय विकास परिषद (सम्बद्ध अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा) पंजीकरण संख्या - 545, आदि। 12. पानीपत की तीसरी लड़ाई (रोहिला वार) में रोहिले राजपूत- राजा गंगासहाय राठौर (महेचा) के नेतृत्व में मराठों की ओर से अफगान आक्रान्ता अहमदशाह अब्दाली व रोहिला पठान नजीबदौला के विरुद्ध लड़े व वीरगति पाई । इस मराठा युद्ध में लगभग एक हजार चार सौ रोहिले राजपूत वीरगति को प्राप्त हुए । (1761-1774 ई .) (इतिहास -रोहिला-राजपूत) 13. प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 में भी रोहिले राजपूतों ने अपना योगदान दिया, ग्वालियर के किले में रानी लक्ष्मीबाई को हजारों की संख्या में रोहिले राजपूत मिले, इस महायज्ञ में स्त्री पुरुष सभी ने अपने गहने धन आदि एकत्र कर झाँसी की रानी के साथ अंग्रेजो के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए सम्राट बहादुरशाह- जफर तक पहुँचाए । अंग्रेजों ने ढूँढ-ढूँढ कर उन्हें काट डाला जिससे रोहिले राजपूतों ने अज्ञातवास की शरण ली। 14. राजपूतों की हार के प्रमुख कारण थे हाथियों का प्रयोग, सामंत प्रणाली व आपसी मतभेद, ऊँचे व भागीदार कुल का भेदभाव (छोटे व बड़े की भावना) आदि। 15. सम्वत 825 में बप्पा रावल चित्तौड़ से विधर्मियों को खदेड़ता हुआ ईरान तक गया। बप्पा रावल से समर सिंह तक 400 वर्ष होते हैं, गह्लौतों का ही शासन रहा। इनकी 24 शाखाएँ हैं। जिनके 16 गोत्र (बप्पा रावल के वंशधर) रोहिले राजपूतों में पाए जाते हैं। 16. चितौड़ के राणा समर सिंह (1193 ई.) की रानी पटना की राजकुमारी थी इसने 9 राजा, 1 रावत और कुछ रोहिले साथ लेकर मौ. गोरी के गुलाम कुतुबद्दीन का आक्रमण रोका और उसे ऐसी पराजय दी कि कभी उसने चितौड़ की ओर नही देखा। 17. रोहिला शब्द क्षेत्रजनित, गुणजनित व 'मूल पुरुष' नाम-जनित है। यह गोत्र जाटों में भी रूहेला, रोहेला, रूलिया, रूहेल , रूहिल, रूहिलान नामों से पाया जाता है। 18. रूहेला गोत्र जाटों में राजस्थान व उ. प्र. में पाया जाता है। रोहेला गोत्र के जाट जयपुर में बजरंग बिहार ओर ईनकम टैक्स कालोनी टौंक रोड में विद्यमान है। झुनझुन, सीकर, चुरू, अलवर, बाडमेर में भी रोहिला गोत्र के जाट विद्यमान हैं । उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में रोहेला गोत्र के जाटों के बारह गाँव हैं। महाराष्ट्र में रूहिलान गोत्र के जाट वर्धा में केसर व खेड़ा गाँव में विद्यमान हैं। 19. मुगल सम्राट अकबर ने भी राजपूत राजाओं को विजय प्राप्त करने के पश्चात् रोहिला-उपाधि से विभूषित किया था, जैसे राव, रावत, महारावल, राणा, महाराणा, रोहिल्ला, रहकवाल आदि। 20. "रोहिला-राजपूत" समाज , क्षत्रियों का वह परिवार है जो सरल ह्रदयी, परिश्रमी,राष्ट्रप्रेमी,स्वधर्मपरायण, स्वाभिमानी व वर्तमान में अधिकांश अज्ञातवास के कारण साधनविहीन है। 40 प्रतिशत कृषि कार्य से,30 प्रतिशत श्रम के सहारे व 30 प्रतिशत व्यापार व लघु उद्योगों के सहारे जीवन यापन कर रहे हैं। इनके पूर्वजो ने हजारों वर्षों तक अपनी आन, मान, मर्यादा की रक्षा के लिए बलिदान दिए हैं और अनेको आक्रान्ताओं को रोके रखने में अपना सर्वस्व मिटाया है । गणराज्य व लोकतंत्रात्मक व्यवस्था को सजीव बनाये रखने की भावना के कारण वंश परंपरा के विरुद्ध रहे, करद राज्यों में भी स्वतंत्रता बनाये रखी । कठेहर रोहिलखण्ड की स्थापना से लेकर सल्तनत काल की उथल पुथल, मार काट , दमन चक्र तक लगभग आठ सौ वर्ष के शासन काल के पश्चात् 1857 के ग़दर के समय तक रोहिले राजपूतों ने राष्ट्रहित में बलिदान दिये हैं। क्रूर काल के झंझावालों से संघर्ष करते हुए क्षत्रियों का यह 'रोहिला परिवार' बिखर गया है, इस समाज की पहचान के लिए भी आज स्पष्टीकरण देना पड़ता है। कैसा दुर्भाग्य है? यह क्षत्रिय वर्ग का। जो अपनी पहचान को भी टटोलना पड़ रहा है। परन्तु समय के चक्र में सब कुछ सुरक्षित है। इतिहास के दर्पण में थिरकते चित्र, बोलते हैं, अतीत झाँकता है, सच सोचता है कि उसके होने के प्रमाण धुंधले-धुंधले से क्यों हैं? हे- क्षत्रिय तुम धन्य हो, पहचानो अपने प्रतिबिम्बों को' - "क्षत्रिय एकता का बिगुल फूँक सब धुंधला धुंधला छंटने दो। हो अखंड भारत के राजपुत्र खण्ड खण्ड में न सबको बंटने दो ।।" 21. रोहिलखण्ड से विस्थापित इन रोहिला परिवारों में राजपूत परम्परा के कुछ प्रमुख गोत्र इस प्रकार पाए जाते हैं :- 
रोहिला, रोहित, रोहिल, रावल, द्रोहिया, रल्हन, रूहिलान, रौतेला , रावत यौधेय, योतिक, जोहिया, झोझे, पेशावरी पुण्डीर, पांडला, पंढेर, पुन्ड़ेहार, पुंढीर, पुंडाया चौहान, जैवर, जौडा, चाहल, चावड़ा, खींची, गोगद, गदाइया, सनावर, क्लानियां, चिंगारा, चाहड बालसमंद, चोहेल, चेहलान, बालदा, बछ्स (वत्स), बछेर, चयद, झझोड, चौपट, खुम्ब, जांघरा, जंगारा, झांझड निकुम्भ, कठेहरिया, कठौरा, कठैत, कलुठान, कठपाल, कठेडिया, कठड, काठी, कठ, पालवार राठौर, महेचा, महेचराना, रतनौता, बंसूठ जोली, जोलिए, बांकटे, बाटूदा, थाथी, कपोलिया, खोखर, अखनौरिया ,लोहमढ़े, मसानिया बुन्देला, उमट, ऊमटवाल भारतवंशी, भारती, गनान नाभावंशी,बटेरिया, बटवाल, बरमटिया परमार, जावडा, लखमरा, मूसला, मौसिल, भौंसले, बसूक, जंदडा, पछाड़, पंवारखा, ढेड, मौन तोमर, तंवर, मुदगल, देहलीवाल, किशनलाल, सानयाल, सैन, सनाढय गहलौत, कूपट, पछाड़, थापा, ग्रेवाल, कंकोटक, गोद्देय, पापडा, नथैड़ा, नैपाली, लाठिवाल, पानिशप, पिसोण्ड, चिरडवाल, नवल, चरखवाल, साम्भा, पातलेय, पातलीय, छन्द (चंड), क्षुद्रक,(छिन्ड, इन्छड़, नौछड़क), रज्जडवाल, बोहरा, जसावत, गौर, मलक, मलिक, कोकचे, काक कछवाहा, कुशवाहा, कोकच्छ, ततवाल, बलद, मछेर सिसौदिया, भरोलिया, बरनवाल, बरनपाल, बहारा
खुमाहड, अवन्ट, ऊँटवाल 
सिकरवार, रहकवाल, रायकवार, ममड, गोदे सोलंकी, गिलानिया, भुन, बुन, बघेला, ऊन, (उनयारिया) बडगूजर, सिकरवार, ममड़ा, पुडिया कश्यप, काशब, रावल, रहकवाल यदु, मेव, छिकारा, तैतवाल, भैनिवाल, उन्हड़, भाटटी बनाफरे, जादो, बागड़ी, सिन्धु, कालड़ा, सारन, छुरियापेड, लखमेरिया, चराड, जाखड़, सेरावत, देसवाल, पूडिया प्रमुख रोहिला क्षत्रिय शासक अंगार सैन - गांधार (वैदिक काल) अश्वकरण - ईसा पूर्व 326 (मश्कावती दुर्ग) अजयराव - स्यालकोट (सौकंल दुर्ग) ईसा पूर्व 326 प्रचेता - मलेच्छ संहारक शाशिगुप्त - साइरस के समकालीन सुभाग सैन - मौर्य साम्राज्य के समकालीन राजाराम शाह - 929 वि. रामपुर रोहिलखण्ड बीजराज - रोहिलखण्ड करण चन्द्र - रोहिलखण्ड विग्रह राज - रोहिलखण्ड - गंगापार कर स्रुघ्न जनपद (सुगनापुर) यमुना तक विस्तार दसवीं शताब्दी में सरसावा में किले का निर्माण पश्चिमी सीमा पर, यमुना द्वारा ध्वस्त टीले के रूप में नकुड़ रोड पर देखा जा सकता है। सावन्त सिंह - रोहिलखण्ड जगमाल - रोहिलखण्ड धिंगतराव - रोहिलखण्ड गोंकुल सिंह - रोहिलखण्ड महासहाय - रोहिलखण्ड त्रिलोक चन्द - रोहिलखण्ड रणवीर सिंह - रोहिलखण्ड सुन्दर पाल - रोहिलखण्ड नौरंग देव - रोहिलखण्ड सूरत सिंह - रोहिलखण्ड हंसकरण रहकवाल - पृथ्वीराज के सेनापति मिथुन देव रायकवार - ईसम सिंह पुण्डीर के मित्र थाना भवन शासक सहकरण, विजयराव - उपरोक्त राजा हतरा - हिसार जगत राय - बरेली मुकंदराज - बरेली 1567 ई. बुधपाल - बदायुं महीचंद राठौर - बदायुं बांसदेव - बरेली बरलदेव - बरेली राजसिंह - बरेली परमादित्य - बरेली न्यादरचन्द - बरेली राजा सहारन - थानेश्वर प्रताप राव खींची (चौहान वंश) - गागरोन राणा लक्ष्य सिंह - सीकरी रोहिला मालदेव - गुजरात जबर सिंह - सोनीपत रामदयाल महेचराना - क्लामथ गंगसहाय - महेचराना - क्लामथ 1761 ई. राणा प्रताप सिंह - कौराली (गंगोह) 1095 ई. नानक चन्द - अल्मोड़ा राजा पूरणचन्द - बुंदेलखंड राजा हंस ध्वज - हिसार व राजा हरचंद राजा बसंतपाल - रोहिलखण्ड व्रतुसरदार, सामंत वृतपाल 1193 ई. महान सिंह बडगूजर - बागपत 1184 ई. राजा यशकरण - अंधली गुणाचन्द - जयकरण - चरखी - दादरी राजा मोहनपाल देव - करोली राजारूप सैन - रोपड़ राजा महपाल पंवार - जीन्द राजा परपदेड पुंडीर - लाहौर राजा लखीराव - स्यालकोट राजा जाजा जी तोमर - दिल्ली खड़ग सिंह - रोहिलखण्ड लौदी के समकालीन राजा हरि सिंह - खिज्रखां के दमन का शिकार हुआ - कुमायुं की पहाड़ियों में अज्ञातवास की शरण ली राजा इन्द्रगिरी (रोहिलखण्ड) (इन्द्रसेन) - सहारनपुर में प्राचीन रोहिला किला बनवाया । रोहिला क्षत्रिय वंश भास्कर लेखक आर. आर. राजपूत मुरसेन अलीगढ से प्रस्तुत राजा बुद्ध देव रोहिला - 1787 ई., सिंधिया व जयपुर के कछवाहो के खेड़ा व तुंगा के मैदान में हुए युद्ध का प्रमुख पात्र । (राय कुँवर देवेन्द्र सिंह जी राजभाट, तुंगा (राजस्थान)
रोहिल्ला उपाधि - शूरवीर, अदम्य - साहसी विशेष युद्ध कला में प्रवीण, उच्च कुलीन सेनानायको, और सामन्तों को उनके गुणों के अनुरूप क्षत्रिय वीरों को तदर्थ उपाधि से विभूषित किया जाता था - जैसे - रावत - महारावत, राणा, महाराणा, ठाकुर, नेगी, रावल, रहकवाल, रोहिल्ला, समरलछन्द, लखमीर,(एक लाख का नायक) आदि। इसी आधार पर उनके वंशज भी आजतक राजपूतों के सभी गोत्रों में पाए जाते हैं। "वभूव रोहिल्लद्व्यड्कों वेद शास्त्रार्थ पारग: । द्विज: श्री हरि चन्द्राख्य प्रजापति समो गुरू : ।।2।। ( बाउक का जोधपुर लेख ) - सन 837 ई. चैत्र सुदि पंचमी - हिंदी अर्थ - "वेद शास्त्र में पारंगत रोहिल्लाद्धि उपाधिधारी एक हरिश्चन्द्र नाम का ब्राह्मण था" जो प्रजापति के समान था हुआ ।।6।। ( गुज्जर गौरव मासिक पत्रिका - अंक 10, वर्ष ।।माह जौलाई 1991 पृष्ठ - 13) (राजपुताने का इतिहास पृष्ठ - 147) (इतिहास रोहिला - राजपूत पृष्ठ - 23) (प्राचीन भारत का इतिहास, राजपूत वंश, - कैलाश - प्रकाशन लखनऊ सन 1970 ई. पृष्ठ - 104 -105 - ) रोहिल्लद्व्यड्क रोहिल्लद्धि - अंक वाला या उपाधि वाला । सर्वप्रथम प्रतिहार शासक द्विज हरिश्चन्द्र को रोहिल्लद्धि उपाधि प्राप्त हुई । बाउक,प्रतिहार शासक विप्र हरिश्चन्द्र के पुत्र कवक और श्रीमति पदमनी का पुत्र था वह बड़ा पराक्रमी और नरसिंह वीर था। प्रतिहार एक पद है, किसी विशेष वर्ण का सूचक नही है। विप्र हरिश्चन्द्र प्रतिहार अपने बाहुबल से मांडौर दुर्ग की रक्षा करने वाला था, अदम्य साहस व अन्य किसी विशेष रोहिला शासक के प्रभावनुरूप ही रोहिल्लद्व्यड्क उपाधि को किसी आधार के बिना कोई भी व्यक्ति अपने नाम के साथ सम्बन्ध करने का वैधानिक रूप में अधिकारी नही हो सकता। उपरोक्त से स्पष्ट है कि बहुत प्राचीन काल से ही गुणकर्म के आधार पर क्षत्रिय उपाधि "रोहिल्ला" प्रयुक्त । प्रदत्त करने की वैधानिक व्यवस्था थी। जिसे हिन्दुआसूर्य - महाराजा पृथ्वीराज चौहान ने भी यथावत रखा। पृथ्वीराज चौहान की सेना में एक सौ रोहिल्ला - राजपूत सेना नायक थे । "पृथ्वीराज रासौ" - चहूँप्रान, राठवर, जाति पुण्डीर गुहिल्ला । बडगूजर पामार, कुरभ, जागरा, रोहिल्ला ।। इस कवित्त से स्पष्ट है । कि - प्राचीन - काल में रोहिला- क्षत्रियों का स्थान बहुत ऊँचा था। रोहिला रोहिल्ल आदि शब्द राजपुत्रों अथवा क्षत्रियों के ही द्योतक थे । इस कवित्त के प्रमाणिकता "आइने अकबरी", 'सुरजन चरिता' भी सिद्ध करते हैं । युद्ध में कमानी की तरह (रोह चढ़ाई करके) शत्रु सेना को छिन्न - भिन्न करने वाले को रहकवाल, रावल, रोहिल्ला, महाभट्ट कहा गया है। महाराज पृथ्वीराज चौहान की सेना में पांच गोत्रों के रावल थे - रावल - रोहिला रावल - सिन्धु रावल - घिलौत (गहलौत) रावल - काशव या कश्यप रावल - बलदया बल्द मुग़ल बादशाह अकबर ने भी बहादुरी की रोहिल्ला उपाधि को यथावत बनाए रखा जब अकबर की सेना दूसरे राज्यों को जीत कर आती थी तो अकबर अपनी सेना के सरदारों को,बहादुर जवानों बहादुरी के पदक (ख़िताब,उपाधि) देता था। एक बार जब महाराणा मान सिंह काबुल जीतकर वापिस आए तो अकबर ने उसके बाइस राजपूत सरदारों को यह ख़िताब दी (उपाधि से सम्मानित किया) बाई तेरा हर निरकाला रावत को - रावल जी चौमकिंग सरनाथा को - रावल झंड्कारा कांड्कड को - रोहिल्ला रावत मन्चारा - कांड्कड काम करन, निरकादास रावत को रावराज और रूहेलाल को रोहिला✍️संकलित द्वारा :-समय सिंह पुंडीर,राष्ट्रीय प्रवक्ता,क्षत्रिय अस्तित्व न्याय मोर्चा,आजीवन सदस्य अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा स्थापित१८९७ईस्वी भारत मुख्यालय दिल्ली, 🙏🌹🌷

Thursday, 12 December 2024

ROHILA RAJPUT OF TOMAR (तंवर)VANSH GOTRA

तोमर वंश की पांडववीर अर्जुन से दिल्लीपति 
महाराजा अनंगपाल तक की वंशावली :-
1. अर्जुन
2. अभिमन्यु
3. परिक्षत
4. जनमेजय
5. अश्वमेघ
6. दलीप
7. छत्रपाल
8. चित्ररथ
9. पुष्टशल्य
10. उग्रसेन
11. कुमारसेन
12. भवनति
13. रणजीत
14. ऋषिक
15. सुखदेव
16.नरहरिदेव
17. सूचीरथ
18. शूरसेन
19. दलीप द्वितीय
20. पर्वतसेन
21. सोमवीर
22. मेघाता
23. भीमदेव
24. नरहरिदेव द्वितीय
25. पूर्णमल
26. कर्दबीन
27. आपभीक
28. उदयपाल
29. युदनपाल
30. दयातराज
31. भीमपाल
32. क्षेमक
33. अनक्षामी
34. पुरसेन
35. बिसरवा
36. प्रेमसेन
37. सजरा
38. अभयपाल
39. वीरसाल
40. अमरचुड़
41. हरिजीवि
42. अजीतपाल
43. सर्पदन
44. वीरसेन
45. महेशदत्त
46. महानिम
47. समुद्रसेन
48. शत्रुपाल
49. धर्मध्वज
50. तेजपाल
51. वालिपाल
52. सहायपाल
53. देवपाल
54. गोविन्दपाल
55. हरिपाल
56. गोविन्दपाल द्वितीय
57. नरसिंह पाल
58. अमृतपाल
59. प्रेमपाल
60. हरिश्चंद्र
61. महेंद्रपाल
62. छत्रपाल
63. कल्याणसेन
64. केशवसेन
65. गोपालसेन
66. महाबाहु
67. भद्रसेन
68. सोमचंद्र
69. रघुपाल
70. नारायण
71. भनुपाद
72. पदमपाद
73. दामोदरसेन
74. चतरशाल
75. महेशपाल
76. ब्रजागसेन
77. अभयपाल
78. मनोहरदास
79. सुखराज
80. तंगराज
81. तुंगपाल – 
इनके नाम से इनके वंशज तोमर या तंवर राजपूत कहलाते हैं।
82. अनंगपाल तंवर (तोमर) – 
दिल्ली राज्य के संस्थापक, इस वंशावली से पता चलता है कि अनंगपाल तंवर और तंवर(तोमर) वंश चंद्रवंशी क्षत्रिय हैं, और इनका संबंध पाण्डु-पुत्र-अर्जुन से जुड़ता हैं।
#जय_भवानी 🙏🚩🗡️तोमर ,तंवर,तुंवर ( पांडु वंसी चन्द्र वन्स,तुवरसू वंसी चन्द्र वन्स), राजपूतो की निम्न शाखाये रोहिले राजपूतो में है
1, जंघारा
2सोमवाल
3बटोला
4बढ़ वार
5 जाडिया 
6इन्दौलिया
7कटियार/कटोच
8गोगड़
9गंगवार
10बनाफ़रे(एक यदु वन्स बनाफर अलग है)
11पठानिया
12 काठी(सूर्य वंश की निकुंभ काठी शाखा अलग है)
13 जडोलिया
14सिकरवार
15किशन लाल,कुशनवाल किशनवाल
*गद्दी*--इंद्रप्रस्थ(दिल्ली)
*ठिकाने*--बुद्धमूउ (बंदायू )रोहिलखण्ड,
दतिया,(,बुंदेलखंड)
धर्मपुर(हरदोई)
आदि
ऋषि गोत्र -गार्गेय,पराशर,मुदगल,
प्रवर -तीन
वेद--,यजुर्वेद
शाखा --वाजसनेयी
सूत्र--पारस्कर,गुह्य सूत्र
*कुलदेवी*--योगेश्वरी
निशान --हरा
देवता --शिव
नगाडा -रणगंजन

शस्त्र--खड्ग
पर्व --विजय दशमी
उद्घोष-हरर हर महादेव
उन्माद -विजय या वीर गति
पूर्वज 
पुरुरवा
ययाति
पुरु
शान्तनु
:
:
:
:
पाण्डव
:
:
:क्षेमक
(ईसापूर्व 424)
:
:
:
अनंगपाल प्रथम (742 ईसवी में उजड़ी दिलली को पुनः बसाया)
इनकी 16 वी पीढ़ी में सोलहवाँ अनंगपाल हुवा इसने क्वार सुदी एकादशी दिन सोमवार को लालकोट(वर्तमान लालकिला) की नींव डाली
17वां अनंगपाल उर्फ तेजपाल हुवा इन्होंने आगरे में तेज महल बनवाया(वर्तमान ताज महल)
इसी तेजपाल के दो पुत्र
महेश पाल ओर जीत पाल(अजयपाल)
थे। महेश पाल इंद्रप्रस्थ दिल्ली की गद्दी पर ही रहा ओर अजयपाल वहाँ से चल कर कठहर रोहिलखण्ड के बुद्धमऊ के राजा बुधपाल के यहां आया और अपना राज्य स्थापित कर वन्स चलाया अजय पाल के पुत्र महिपाल ने माघ सुदी पंचमी दिन मंगल वार को बुद्धमूउ बंदायू के किले की नीव रखी 
इनके प्रपौत्र थे किसन सिंह उर्फ किशन सेन ओर सुख सेन 1253 ईसवी में रामपुर के राजा रणवीर सिंह रोहिला के सेनापति की हैसियत से दिल्ली सुल्तान नसीरूदीन महमूद बहराम उर्फ चंगेज की तीस हजारी सेना को धूल चटाई इनके प्रपौत्र राजा सोहन पाल देव ने करोली में ठिकाना स्थाई कर अपने दादा श्री किशन सेन उर्फ किशन सिंह के नाम पर अपने वंशजो के गोत्र को किशनलाल या किसन वाल नाम से प्रचलित किया इन्ही के वंसज बुंदेलखंड दतिया गए वहां वे किशन लाल राजपूत है ।इसी तरह रोहिलखण्ड में जिन जिन वन्स के राजपूतो ने 909 ईसवी से 1720ईसवी तक शासन किया वही है 
*रोहिला राजपूत*
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Sunday, 27 October 2024

ROHILA KINGDOM

*प्रमुख रोहिला क्षत्रिय शासक*

*1. अंगार सैन -* गांधार (वैदिक काल)
*2. अश्वकरण -* ईसा पूर्व 326 (मश्कावती दुर्ग)
*3. अजयराव -* स्यालकोट (सांकल दुर्ग) ईसा पूर्व 326
*4. प्रचेता -* मलेच्छ संहारक 
*5. शाशिगुप्त -* साइरस के समकालीन 
*6. सुभाग सैन -* मौर्य साम्राज्य के समकालीन 
*7. राजाराम शाह -* 909ईसवी रामपुर रोहिलखण्ड 
*8. बीजराज -* रोहिलखण्ड
*9. करण चन्द्र -* रोहिलखण्ड
*10. विग्रह राज -* रोहिलखण्ड - गंगापार कर स्रुघ्न जनपद (सुगनापुर) यमुना तक विस्तार दसवीं शताब्दी में सरसावा में किले का निर्माण पश्चिमी सीमा पर, यमुना द्वारा ध्वस्त टीले के रूप में नकुड़ रोड पर देखा जा सकता है।
*11. सावन्त सिंह -* रोहिलखण्ड
*12. जगमाल -* रोहिलखण्ड
*13. धिंगतराव -* रोहिलखण्ड
*14. गोंकुल सिंह -* रोहिलखण्ड
*15. महासहाय -* रोहिलखण्ड
*16. त्रिलोक चन्द -* रोहिलखण्ड
*17. रणवीर सिंह -* रोहिलखण्ड
*18. सुन्दर पाल -* रोहिलखण्ड
*19. नौरंग देव -* रोहिलखण्ड
*20. सूरत सिंह -* रोहिलखण्ड
*21. हंसकरण रहकवाल -* पृथ्वीराज के सेनापति 
*22. मिथुन देव रायकवार -* ईसम सिंह पुण्डीर के मित्र थाना भवन शासक 
*23. सहकरण, विजयराव -* उपरोक्त 
*24. राजा हतरा -* हिसार 
*25. जगत राय -* बरेली 
*26. मुकंदराज -* बरेली 1567 ई.
*27. बुधपाल -* बदायुं 
*28. महीचंद राठौर -* बदायुं
*29. बांसदेव -* बरेली 
*30. बरलदेव -* बरेली
*31. राजसिंह -* बरेली
*32. परमादित्य -* बरेली
*33. न्यादरचन्द -* बरेली
*34. राजा सहारन -* थानेश्वर 
*35. प्रताप राव खींची (चौहान वंश) -* गागरोन 
*36. राणा लक्ष्य सिंह -* सीकरी 
*37. रोहिला मालदेव -* गुजरात एवम जालोर
*38. जबर सिंह -* सोनीपत 
*39. रामदयाल महेचराना -* कलायथ
*40. गंगसहाय ,वीर गंगा सिंह महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत -* महेचराना - क्लायथ 1761 ई.
*41. राणा प्रताप सिंह -* कौराली (गंगोह) 1095 ई.
*42. नानक चन्द -* अल्मोड़ा 
*43. राजा पूरणचन्द -* बुंदेलखंड 
*44. राजा हंस ध्वज -* हिसार व राजा हरचंद 
*45. राजा बसंतपाल -* रोहिलखण्ड व्रतुसरदार, सामंत वृतपाल 1193 ई.
*46. महान सिंह बडगूजर -* बागपत 1184 ई.
*47. राजा यशकरण -* अंधली 
*48. गुणाचन्द -* जयकरण - चरखी - दादरी 
*49. राजा मोहनपाल देव -* करोली 
*50. राजारूप सैन -* रोपड़ 
*51. राजा महीपाल पंवार -* जीन्द 
*52. राजा परपदेड पुंडीर -* लाहौर 
*53. राजा लखीराव -* स्यालकोट 
*54. राजा जाजा जी तोमर -* दिल्ली 
*55. खड़ग सिंह -* रोहिलखण्ड लौदी के समकालीन 
*56. राजा हरि सिंह -* खिज्रखां के दमन का शिकार हुआ - कुमायुं की पहाड़ियों में अज्ञातवास की शरण ली 
*57. राजा इन्द्रगिरी (रोहिलखण्ड) (इन्द्रसेन) -* सहारनपुर में प्राचीन रोहिला किला बनवाया रोहिला क्षत्रिय वंश भास्कर लेखक आर. आर. राजपूत मुरसेन अलीगढ से प्रस्तुत 
*58. राजा बुद्ध देव रोहिला -* 1787 ई., सिंधिया व जयपुर के कछवाहो के खेड़ा व तुंगा के मैदान में हुए युद्ध का प्रमुख पात्र (राय कुँवर देवेन्द्र सिंह जी राजभाट, तुंगा (राजस्थान)
*नोट* ..*इनके अतिरिक्त और बहुत से रोहिला शासक विभिन्न स्थानों पर हुए,जिनकी खोज जारी हैं क्योंकि क्षत्रिय इतिहास को छिपाया गया है जैसे महोबा में चंदेला से पहले रोहिला शासन था, राजस्थान के राठौड़ रोहिलखंड बंदायू से आए थे*




* दिनांक 10मई 2011 प्रकाशित.क्षत्रिय आवाज मासिक पत्रिका एवम राजपूत/क्षत्रिय वाटिका(क्षत्रिय वंशावली) 22अगस्त2012 🙏*
*जय राजपूताना*

*विशेष नोट__ये चित्र नेट द्वारा सोसल मीडिया से लिए गए केवल प्रतीकात्मक रूप है लेखक का उनसे कोई लेना देना नही है।।।
विभिन्न राजाओं के चित्र केवल प्रतीकात्मक है ये रोहिलखंड के और राजपूताना रोहिलखंड के राजा नही है।।
आभार दर्शकों का

Thursday, 29 August 2024

Maharaja Ranveer Singh Rohilla ( Rohilkhand)

महाराजा रणवीर सिहं रोहिला
राज्य-पांचाल, (मध्यदेश)), कठेहर,रोहिलखण्ड राजधानी-रामपुर (निकट अहिक्षेत्र, रामनगर)
(तेहरवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध)
*एक अजेय योद्धा, विधर्मी संहारक*सूर्यवंश-  सूर्य वंश में इस्क्वाकु की तेरहवीं पीढ़ी में महान पराक्रमी राजा निकुंभ से ही निकुंभ वंश स्थापित है जो अयोध्या के राजा थे इसी  निकुंभ   वंश की कठ शाखा ,(निकुंभ वंश की दूसरी शाखा श्रीनेत भी है)  ईसा पूर्व 326 वर्ष कठगण राज्य (रावी नदी के काठे में) सिकन्दर का आक्रमण काल-राजधानी सांकल दुर्ग (वर्तमान स्यालकोट) 53 वीं पीढ़ी ,राज्य अजयराव के वंशधर निकुम्भ वंशी, काठी कठेहरिया क्षत्रिय राजस्थान अलवर, मंगल गढ़, जैसलमेर होते हुए गुजरात, सौराष्ट्र गये, फिर पांचाल, मध्यदेश गये। अलवर में दुर्ग निकुम्भ वंशी (कठ क्षत्रिय रावी नदी के काठे से (विस्थापित कठ-ंगण) क्षत्रियों ने बनवाया (राज्य मंगलगढ़), सौराष्ट्र में काठियावाड़ की स्थापना की । मध्यदेश के पांचाल में कठेहर राज्य की स्थापना सन् 648 से 720 ई. तक। यहां अहिक्षेत्र के पास रामनगर गांव मे ंराजधानी स्थापित की, ऊंचा गांव मझ गांवा को सैनिक छावनी बनाया। यहां पर शासक हंसदेव, रहे, इनके पुत्र हंसबेध राजा बने-ं816 ई. तक- इसी वंश में निकुम्भवंश कठेहरिया रामश्शाही (राम सिंह जी ) ने रामपुर गांव को एक नगर का रूप दिया और 909 ई में कठेहर- रोहिलखण्ड प्रान्त की राजधानी रामपुर में स्थापित की। यहां पर  कठ क्षत्रियों ने 11 पीढ़ी शासन किया इसी वंश में महापराक्रमी, विधर्मी संहारक राजा रणवीर
सिंह रोहिला का जन्म हुआ।
वंश वृक्ष इस प्रकार पाया गया
रामपुर संस्थापक राजा राम सिंह उर्फ रामशाह 909 ई. में 966 विक्रमी , 3 पौत्र- बीजयराज 4. करणचन्द 5. विम्रहराज 6. सावन्त  सिंह (रोहिलखण्ड का विस्तार गंगापार कर यमुना तक किया,) सिरसापाल के राज्य सरसावा में एक किले का निर्माण कराया। (दशवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध) नकुड रोड पर किले को आज यमुना द्वारा ध्वस्त एक टीले के रूप में देखा जा सकता है। 7. जगमाल 8. रणवीर सिंह 9. धिंगतराम 10 गोकुल सिंह 11 महासहाय 12. त्रिलोकचन्द 13. नौरंग देव (पिंगू/तैमूर  लंग को परास्त किया) (राजपूत गजट लाहौर 04.06.1940 द्वारा डा0 
सन्त सिंह चैहान)

(रामपुर का रोहिला किला), *राजा रणवीर सिंह रोहिला, दिल्ली में गुलामवंश का शासन*
गुलाम सेनापति नासिरूद्दीन चंगेज उर्फ नासिरूद्दीन महमूद, सन् 1253 ई0, बहराम वंश ने दोआब, कठेहर, शिवालिक पंजाब, बिजनौर आदि क्षेत्रों पर विजय पाने के लिए दमनकारी अभियान किया। इतने अत्याचार , मारकाट तबाही मचाई कि विदे्राह करने वाले स्थानीय शासक,  बच्चे व स्त्रियंा भी सुरक्षित नहीं रही। ऐसी विषम परिस्थिति में रोहिल खण्ड के रोहिला शासकों ने दिल्ली सल्तनत के सूबेदार‘ ताजुल मुल्क इज्जूददीन डोमिशी‘ को मार डाला। दिल्ली सल्तनत के लिये यह घटना भीषण चुनौती समझी गई। इस समय रामपुर के राजा रणवीर सिंह रोहिला थे । उन्होने दिल्ली सल्तनत के विरूद्ध अपनी क्रान्तिकारी प्रवृत्ति को सजीव बनाये रखा। नासिरूद्दीन महमूद (चंगेज) इस घटना से उद्वेलित हो उठा और सहारनपुर ‘( उशीनर प्रदेश‘) के मण्डावार व मायापुर से 1254 ई0 में गंगापार कर गया और विद्रोह को दबाता हुआ, रोहिलखण्ड को रौदता हुआ बदांयू पहुंचा। वहां उसे ज्ञात हुआ कि रामपुर में राजा रणवीर सिंह के साथ लोहे के कवचधारी 84 अजेय रोहिले  योद्धा है जिनसे विजय पाना टेढ़ी खीर है। इस समय दिल्ली की शासन व्यवस्था बलबन के हाथों में थी। सूचना दिल्ली भेजी  गई। दिल्ली दरबार में सन्नाटा हो गया कि एक छोटे राज्य कठेहरखण्ड /रोहिलखंड को रोहिलों से कैसे छीना जाए। नासिरूद्दीन चंगेज (महमूद) ने तलवार व बीड़ा  उठाकर राजा रणवीर सिंह के साथ युद्ध करने की घोषणा की। रामपुर व पीलीभीत के बीच मैदान में दिल्ली सल्तनत की भारी तीस हजारी सेना व रोहिलों में भयंकर संघर्ष हुआ। वशिष्ठ गोत्र के 84 लोहे के कवचधारी रन्धेलवंशी सेना नायकों की सेना के सामने नासिरूद्दीन की सेना के पैर उखड़ गये।
      नासिरूद्दीन चंगेज को बन्दी बना लिया गया। बची हुई सेना के हाथी व घोडे तथा एक लाख रूपये महाराज रणवीर सिंह को देने की प्रार्थना पर आगे ऐसा अत्याचार न करने की शपथ लेकर नासिरूद्दीन महमूद ने  प्राण दान मांग लिया। क्षात्र धर्म के अनुसार शरणागत को अभयदान देकर राजा रणवीर सिंह ने उसे छोड़ दिया। परन्तु धोखेबाज महमूद जो राजा रणवीर सिंह पर विजय पाने का बीड़ा उठाकर दिल्ली से आया था, षडयंत्रों में लग गया। राजा रणवीर सिंह का एक दरबारी पं. गोकुलराम पाण्डेय  था। उसे रामपुर का राजा नियुक्त करने का लालच देकर महमूद ने विश्वास में ले लिया और रामपुर के किले का भेद लेता रहा। पं. गोकुल राम ने लालच के वशीभूत होकर विधर्मी को बता दिया कि रक्षांबधन के दिन सभी राजपूत निःशस्त्र होकर शिव मन्दिर मंे शस्त्र पूजा करेंगें। वशिष्ठ गोत्र के कठेहरिया राजपूतों मंे शिव  उपासना कर शक्ति प्राप्त करने की भावना जीवित है।यह शिव मन्दिर किले के दक्षिण द्वार के समीप है। यह सुनकर महमूद का चेहरा खिल उठा और दिल्ली से भारी सेना को मंगाकर जमावड़ा प्रारम्भ कर दिया रक्षाबन्धन का दिन आ गया। सभी किले में उपस्थित  सैनिक, सेनाायक अपने-ंअपने शस्त्रों को उतार कर पूजा स्थान पर शिव मन्दिर ले जा रहे थे। गोकुल राम पाण्डेय यह सब सूचना विधर्मी तक पहुचंता रहा। सामने श्वेत ध्वज रखकर दक्षिण द्वार पर पठानों की गुलामवंशी सेना एकत्र हो गयी। पूजा में तल्लीन राज पुत्रों को पाकर गोकुलराम पाण्डेय ने द्वार खोल दिया।
      शिव उपासना में रत सभी उपस्थितों को घेरे में ले लिया गया। घमासान युद्ध छिड़ गया परन्तु ऐसी गद्दारी के कारण राजा रणवीर सिंह वीरगति को प्राप्त हुए। नासिरूद्दीन ने पं. गोकुल राम से कहा कि जिसका नमक खाया अब तुम उसी के नहीं हुए तो तुम्हारा भी संहार अनिवार्य है। नमक हरामी को जीने का हक नहीं है। गोकुल का धड़ भी सिर से अलग पड़ा था। सभी स्त्री बच्चों को लेकर रणवीर सिंह का  भाई सूरत सिंह किले से पलायन कर चरखी दादरी में अज्ञातवास को चला गया। महारानी तारादेवी राजा रणवीर सिंह  के साथ सती हो गई। 
रामपुर में किले के खण्डरात, सती तारादेवी का मन्दिर तथा उनका राजमहल अभी तक मौजूद है, जो क्षात्र धर्म का परिचायक व रामपुर में रेहिले क्षत्रियों की कठ-शाखा के शासन काल की याद ताजा करता है जिन्होंने अपना सर्वस्व बलिदान कर क्षात्र धर्म की रक्षा की। गुलाम वंश, सल्तनत काल में विधर्मी की पराधीनता कभी स्वीकार नहीं की। अन्तिम सांस तक दिल्ली सल्तनत से युद्ध किया और रोहिलखण्ड को स्वतंत्र राज्य बनाये रखा। निरन्तर संघर्ष करते रहे राजा रणवीर सिंह का बलिदान व्यर्थ नहीं , सदैव तुगलक, मंगोल , मुगलों आदि से विद्रोह किया और स्वतंत्र रहने की भावना को सजीव रखा। राणा रणवीर सिंह के वंशधर आज भी रोहिला-ंक्षत्रियों में पाए जाते है।

Friday, 23 August 2024

Shourya Divas

*तेरहवीं शदाब्दी के आरंभ में उत्तर प्रदेश के बहुत बड़े भूभाग पर रोहिला राजपूतों का शासन था,जिसकी स्थापना सूर्य वंशी क्षत्रिय महाराजा रणवीर सिंह रोहिला जी ने एक स्वतंत्र राज्य के रूप में की थी। उस समय दिल्ली के सुलतानों ने आतंक मचा रखा था और सल्तनत विस्तार करने और धर्मांतरण करने में दिल्ली की पूरी शक्ति काम कर रही थी किंतु रोहिलखंड नरेश महाराजा रणवीर सिंह रोहिला से दिल्ली के सुल्तान भय खाते थे क्योंकि तीस साल तक आक्रमण करते रहने के बाद भी वे कभी रोहिलखंड पर कब्जा नहीं कर पाए।महाराजा रणवीर सिंह रोहिला सनातन धर्म के रक्षक और विधर्मी संहारक के रूप में उभर रहे थे समस्त राजपूत शक्तियों को एक मंच पर रोहिलखंड में एकत्र करके उन्होंने अनेको बार आक्रांताओ को धूल चटाई और रोहिलखंड की स्वतंत्रता पर आंच नहीं आने दी। सन 1254ईस्वी में रक्षा बंधन के दिन जब निशस्त्र राजपूत किले में राखी का त्योहार मना रहे थे और बहिनों से रक्षा सूत्र बंधवा रहे थे तो पूर्व नियोजित गद्दारी के कारण दिल्ली सुल्तान नसीरुद्दीन महमूद ने गद्दार द्वारा किले के चारो द्वार खोल देने पर अचानक निहत्थे राजपूतों पर तीस हजार की सेना लेकर लग भाग दस बजे हमला कर दिया,सभी राजपूत संख्या में कम लगभग तीन हजार होने बाद भी बड़ी बहादुरी से लड़े,राजा रणवीर सिंह रोहिला ने अद्भुत वीरता का प्रदर्शन करते हुए सांय पांच बजे तक भीषण संग्राम किया और दिल्ली की सेना को उनके ही हथियार छीन कर गाजर मूली की तरह काट डाला अंत में अकरांताओ के एक दुर्दांत खूंखवार दल ने उन्हे चारो ओर से घेर लिया ,रक्त की अंतिम बूंद रहने तक महाराजा रणवीर सिंह रोहिला ने साहस नहीं छोड़ा और दुश्मनों का काल बने रहे,संख्या में अधिक आक्रांता होने के कारण उनके टुकड़े टुकड़े कर दिए गए और बचे तो केवल हड्डियो के टुकड़े ही इतना दुर्दांत राक्षसी तरीके से राजा रणवीर सिंह को काट डाला उनकी इस वीरता को देख कर नसीरुद्दीन किले से बाहर आ गया और बचे स्त्री बच्चो को छोड़ गया लूट कर किले को चला गया पुस्तकालय को आग लगा दी। राजा रणवीर सिंह के रक्षा बंधन के दिन हुए इस बलिदान को समस्त सनातन रक्षक क्षत्रियजन शौर्य और स्वाभिमान दिवस के रूप में मनाते है।इस वर्ष सोमवार दिनांक19 अगस्त2024को क्षत्रिय सम्राट रोहिलखंड नरेश का 771वा बलिदान दिवस है। सभी से निवेदन है महापुरुषों को सम्मान देने और इतिहास संरक्षण की कड़ी में रक्षा बंधन को शौर्य दिवस के रूप में मनाए । महाराजा रणवीर सिंह रोहिला जी के नाम पर नामित चौक ,चौराहे,भवनों , पार्कों और सड़को पर सांय काल दीपक जलाएं और सनातन रक्षक के बलिदान को याद करे,प्रतिमाओं पर माल्यार्पण पर पुष्पांजलि दे और श्रद्धा सुमन अर्पित करे।अपने अपने घरों नगरों गांवों में जैसी भी व्यवस्था हो सामूहिक या व्यक्तिगत रक्षा बंधन को सांय काल अवश्य महान वीर सनातन रक्षक विधर्मी संहारक को याद करे ताकि इतिहास जिंदा रहे और भावी पीढ़ी को देश प्रेम की प्रेरणा मिले।*

*रोहिला क्षत्रिय समाज के महान वीरों को सच्ची श्रद्धांजलि तभी होगी जब रोहिला क्षत्रियों के अस्तित्व की रक्षा होगी अन्यथा राजनीति के शिकार कुछ षड्यंत्र कारी अन्य समाज में इस क्षत्रिय समाज को घटक बता कर विलीन करना चाहते है*
*उनके बहकावे में न आकर रोहिला क्षत्रिय समाज की रक्षा करे और भावी पीढ़ी का मार्ग दर्शन करे*
*जय जय महाराजा रणवीर सिंह रोहिला*
*जय जय राजपूताना रोहिलखंड*
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Sunday, 28 July 2024

The Brave Rohillas


इतिहास के पन्नों में दर्ज है रोहिला राजपूतों का पराक्रम

पौराणिक व पुरातत्विक साक्ष्यों का अवलोकन करने पर स्पष्ट हो गया है कि रोहिला शब्द ऐतिहासिक महत्व रखता है, क्यांेकि इस शब्द से उन वीर क्षत्रिय वश्ंाों के इतिहास का परिचय मिलता है, जिन्होंने लगभग पांच सौ वर्ष ईसा पूर्व से ही  भारत भूमि पर आक्रमण करने वाले- ईरानी यूनानी, अरब, कुषाण, शक हूण आदि विदेशी आक्रान्ताओं से सर्वप्रथम भयंकर संघर्ष किया। लगभग दो हजार पांच सौ वर्षो तक वीर प्रहरियों की भाँति विकट संघर्ष करते हुए इतनी दीर्घ अवधि तक के काल खण्ड में  इन क्षत्रिय वर्गो का कितना रक्त बहा होगा, कितनी महिलाओं के माथे का सिन्दूर मिटा होगा, कितने घर, गाँव शहर बर्बाद हुए होंगे, कितने बालक व बालिकाये अनाथों की तरह भटकते फिरे होंगें।  जिन्हें अपने प्राणों से प्रिय अपनी मातृभूमि थी , संस्कृति के रक्षक इन महान वीर  प्रहरियों  को भारतीय इतिहास के पटल पर समुचित स्थान न मिल पाया। 

वस्तुतः क्षत्रिय समाज भारत की रक्षा शक्ति रहा है, समय की आवश्यकता को अनुभव करके संस्कृति और अखण्डता की रक्षा के लिए कटिबद्ध होकर क्षात्र धर्म का परिचय  देकर भारत को महान गणतंत्रात्मक विश्वशक्ति के रूप में स्थापित कराने में भारत की वीर ‘‘क्षत्रिय शक्तियों ‘‘ने अवस्मिरणीय योगदान दिया है। सामाजिक और सम्प्रदायिक एकता के बिना कोई देश आन्तरिक रूप से बलवान नहीं हो सकता। 

अपने पूर्वजों के द्वारा किये गये कार्यो को स्मरण कर प्रेरणा स्वरूप रोहिला क्षत्रियों के इतिहास के कुछ धुँधले पन्ने उकेरते हुए प्रमाणित झलकिया 



1. ईसा पूर्व 326ै, सिकन्दर ने अपने सैनिकों से मर्म स्पर्षीशब्दों में प्रार्थना की कि ‘‘मुझे भारत  से  गौरव के साथ लौट जाने दो तथा भगौडे की भाँति भागने पर मजबूर न करो।‘‘ ‘‘ सांकल दुर्ग (स्याल कोट)  के सभी कठवीर और उनके परिवार बाहर निकल गए चूंकि रोहिला राजा अजायराव वीरगति को प्राप्त हो चुका था। कठ गणराज्य के प्रमुख, निकुम्भ वंशी ( सूर्यवंश) हठवीर अजय राव की पुत्री कर्णिका के मन में  अपने पिता की मृत्यु के उपरान्त प्रतिशोध की भावना जाग उठी और वह दुर्ग में छिपकर बैठ गई, यह राजकुमारी बहुत साहसी व चुतर थी। कर्णिका को दुर्ग में अकेली फँसी रहने की कोई चिन्ता न थी। दुर्ग में प्रवेश करते ही फिलिप के हदय स्थान पर बड़ी तीव्रता से दुधारी कटार कर्णिका ने घोंप दी। फिलिप कर्णिका के तीक्ष्ण वार को संभाल न सका तथा अचेत होकर भूमि पर गिर पड़। कर्णिका गुप्त द्वारा से निकल उसकी प्रतीक्षा कर रहे कुछ जनों से जा मिली। फिलिप कुछ समय पश्चात् तडपता हुआ दम तोड गया।

    (श्री जयचन्द विद्यांलकार ‘‘ इतिहास  प्रवेश पृष्ठ 76)

‘‘    (हरि कृष्ष प्रेमी‘‘- सीमा संरक्षण)

  

   2.  यह काठी कौम वही थी जिसने सिकन्दर का मुकाबला पंजाब में किया था। बाद में वह दक्षिण में बस गई फिर मालवा होती हुई कच्छ व सौराष्ट्र में आबद हुई। इसी  जाति के नामपर सौराष्ट्र देश का नाम कठियावाड पडा। कठगणों के मुखिया जगमान को शालीवहन ने मार डाला तथा उसके कई सौ घोडे़ व ऊँट जैसलमेर ले आए‘‘।

(- कर्नल जेम्स टाड़ ‘‘ टाड़राजस्थान‘‘- कुक द्वारा सम्पादित, भाग-2 पृष्ठ 1207)

3. ‘‘मस्य दुर्ग (मश्कावती दुर्ग) सिकन्दर के आक्रमण के समय अजेय समझा जाता था। अश्वक गणराजय के रोहिला राजा अश्वकर्ण को अचानक तीव्र बाण लगा और वीरगति प्राप्त हुए। अश्वकों के हौंसले टूट गए और युद्ध बन्द करने की घोषणा कर दी और सिकन्दर ने अश्वकों को शान्तिपूर्वक दुर्ग से बाहर आने को कहा। लगभग सात हजार रोहिले अश्वक (घुड़सवार) वीर मश्कावती दुर्ग से बाहर निकल आए और अपने- अपने परिवारों सहित सात-आठ मील चलने पर विश्राम की गोद में खोए गए। अश्वकों व उनके परिवारों पर सिकन्दर की सेना ने बड़ा विकट आक्रमण किया। वीर अश्वक रोहिला क्षत्रियों ने डट कर युद्ध किया। युद्ध करते करते करते जब तक स्त्री बच्चे सब नही कट मरे तब तक युद्ध बन्द नही किया रक्त की अन्तिम बूँद के रहने तक अश्वक लड़ते रहे। सिकन्दर द्वारा  विश्वासघात करना विद्वानों द्वारा घृणित समझा गया। यूनानी इतिहास कार प्लूटार्क ने भी सिकन्दर के इस कार्य की निन्दा की।

(श्री बी0रान0 रस्तोगी, एम.ए.-प्राचीन भारत‘‘  पृष्ठ 163)

(श्री हरिकृष्ण प्रेमी ‘‘ सीमा संरक्षण पृष्ठ 31)

4. उत्तरी पाँचाल में कठगण धीरे-2 अपनी शक्ति को संगठित कर आधुनिक रोहिलखण्ड के क्षेत्रों में कठेहर राज्य की स्थापना का कार्यक्रम बनाने लगै। विस्थापित होने के पक्षचात् कुछ क्षत्रिय वीर कठगण उस प्रान्त में जाकर बसे जिसे आज कठिहर अर्थात कठेहर, बुदाँयु (बुद्धमऊ, राजा बुद्धपाल रोहिला द्वारा स्थापित) का देश कहते है।

 (डाँ केषव चन्द्र सेन इतिहास- रोहिला राजपूत पृष्ठ 27)

5. तुगलक काल में कठेहर रोहिलखण्ड के रोहिले क्षत्रियों ने अनेक विद्रोह किए जिनका सल्तनत की ओर से दमन किया गया। इस श्रेणी में रोहिला नरेष खड़ग सिंह का नाम  विद्रोहियों की श्रेणी में विषेष उल्लेखनीय माना जाता है। मुस्लिम सल्तनत के विरूद्ध विद्रोह करने के कारण कुछ इतिहासकारों ने राजा खड़ग सिंह को केवल खडगू के नाम से ही सम्बोधित किया है। 

रोहिला नरेष खड़ग सिंह रोहिलखण्ड निवासी सभी राजपूत वर्गो का माननीय नेता तथा मुस्लिम सल्तनत के लिए विद्रोही शक्तियों  का प्रमुख सेना नायक था। इस खडगूूूूूूू रोहिला सरदार ने राजपूत शक्तियों की पारस्परिक एकता को सुदृढ़ करने के लिए कठोर प्रयास किए।

 स्वतन्त्र हिन्दु राज्य के आधीनस्थ हिन्दु प्रजा, निरन्तर तुर्को से संघर्ष करती रही। बलबन जैसा शासक भी राज्य विस्तार का साहस न कर सका।‘‘ कौल से लेकर रोहिलाखण्ड (कठेहर) तक का समस्त क्षेत्र- अशान्तिमय बना हुआ था।

      (डाॅ0 एल0पी0 शर्मा) मध्यकालीन भारत पृष्ठ 103 व रोहिला क्षत्रियों का क्रमबद्ध इतिहास पृष्ठ 141 से साभार ।

6. सैययद ख्रिज खां के आक्रमण के पश्चात रोहिल खण्ड में रोहिला राजा हरी सिंह का पराभव हुआ और रोहिला क्षत्रिय वर्ग का शासकों के रूप में कोई विषेष विवरण प्रस्तुत नहीं हो सका। सम्भवतः रोहिलखण्ड से विस्थापित ये क्षत्रिय भारत के विभिन्न क्षेत्रों मेे फैल गए, और सैनिकों के रूप में सेनाओं में कार्यरत हो गए। इसके पष्चात् राजा महीचन्द (बदायूँ) के वश्ंाज गौतम गौत्रीय राणा गंगासहाय राठौर (गौत्र प्रशाखा महिचा) का उल्लेख मिला है जो अफगान आक्रान्ता अहमदशाह अब्दाली के विरूद्ध मराठों की ओर से पानीपत के युद्ध में अपने एक हजार चार सौ वीर रोहिला राजपूतों के साथ लड़ा और आर्य क्षत्रिय धर्म संरक्षण के लिए बलिदान  हो गया।

(डा/0 केशवचन्द्र सेन पानीपत, इतिहास रोहिला- राजपूत)

7. सन् 1833 में ब्रिटिश शासन के साथ समझौते के अनुरूप नवाब खानदान को हरियाणा के झज्जर से सहारनपुर आना पड़ा यहाँ आकर उन्होंने उस दौर के सैकड़ों वर्ष पूर्व किसी मराठी राजा द्वारा निर्मित इस किले को अपनी रिहाइश की शक्ल दी।‘‘

(सुनहरा इतिहास समेटे है किला नवाबगंज)

    (अमर उजाला सहारनपुर पृष्ठ 10 ,18 नवम्बर 2009)

Wednesday, 24 July 2024

PANIPAT @ROHILA VEER GANGA SINGH MAHECHA RATHOD ROHILA RAJPUT AND THE BATTLE OF PANIPAT

*इतिहास के पन्नो में दर्ज है वीर गंगा सिंह महेचा राठौड़ और अन्य रोहिला राजपूतों का पराक्रम*
*पानीपत के तीसरे युद्ध में हुआ था वीर गंगा सिंह महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत और उसकी सेना का बलिदान*

*14 जनवरी सन 1761 ईसवी दिन बुधवार मकर सक्रांति को दिया हिंदुत्व के लिए सर्वोच्च बलिदान**🤺🤺🤺🤺🎠🎠🎠🏇🏼
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*पानीपत के मैदान में समय 2बजे** *अपराह्न,जनवरी की हाड़ कंपाने वाली सर्दी,कोहरा और बिजली की गड़गड़ाहट से बारिश के भयावह मौसम में*
*1400 रोहिले राजपूत वीर गंगा सिंह उर्फ गंगा सहाय महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत के नेतृत्व में कूद पड़े हिन्दू धर्म रक्षार्थ युद्ध भूमि पर रुहेला सरदार नजीब खान(नजीबुद्दोला) बंगस व आक्रांता अहमद शाह दुर्रानी अब्दाली के विरुद्ध लड़ रहे मराठो की ओर से* 😇😇🎠🎠🤺🤺🏇🏼🏇🏼🏇🏼 *छिड़ गया घमासान युद्ध! कट कट गिर रहे अब्दाली के सैनिक ।कट कट गिर रहे थे गद्दार रुहेले नजीब खान के रूहेले बंगस बारेच पठान*।
*परन्तु हुआ क्या, गार्दी की टॉप सामने आ गयी* *और मुसलमानों के चिथड़े उड़ने लगे 1400 रोहिले राजपूतो की एक टुकड़ी मुख्य सेना से बिछुड़ गयी और अफगानों ने उन्हें घेर लिया वीर राठौड़ गंगा सिंह रोहिला ऊर्फ गंगा सहाय महेचा व उनके साथी हजारो अफगानों का संहार करते हुए सांय पांच बजे वीर गति को प्राप्त हुए* ।
*मराठो की हार हुई अपनी ही तोप के सामने अपनी ही सेना आ गई थी ! उधर सदाशिव राव भाऊ के भतीजे विश्वास राव घायल होकर गिरे तो भाऊ हाथी से उतर के घोड़े पर आ गए युद्ध करने हेतु तो हाथी पर भाऊ को न देख कर सेना भागने लगी और तितर बितर हो गई ।क्या दुखद हार हुई !!जीती हुई* *पानीपत की तीसरी लड़ाई को मराठे जीत कर भी एक घण्टे में हार गए* ।
उत्तर भारत की रक्षार्थ आये मराठो का साथ अन्य राजपूतो जाटो गुज्जरों ने नही दिया क्योंकि मराठे उनसे कर वसूलते थे,और अकेले पड़े हिंदुत्व के लिए लड़े मराठो का साथ सदा शिव राव भाऊ के सेनापति के रूप में सेना में भर्ती हो वीर रोहिला गंगा सिंह महेचावत ने अपना जीवन का सर्वोच्च बलिदान देकर भी दिया ।
वीर गंगा सिंह रोहिला की रानी रामप्यारी देवी mudahad राजपूत रियासत कलायत के कपिल मुनि आश्रम में सती हुई और वही वीर रोहिला गंगा सिंह की समाधि स्थापित की गई।
इसी वंश के
*भवानी सिंह महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत तांत्या टोपे की सेना में सेनापति थे जब झांसी की रानी को ह्यूरोज ने घायल किया तो जनरल भवानी सिंह महेचराना ने अपने 16 सेनिको के साथ रक्षा कवच तैयार कर अंग्रेजो से उनकी रक्षा करते रहे और लक्ष्मी बाई को सुरक्षित एक जंगल में कुटिया तक पहुंचाया था किंतु अंग्रेजो के हाथ नही पड़ने दिया*,
 *सन 1858 ईसवी।*

*आज भी महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत कलायत ,अंबाला और यमुना पार कर पूरब की ओर उत्तर प्रदेश के जनपद सहारनपुर के दस गांव में आबाद है,इसी वंश के ठाकुर हरिसिंह रोहिला एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे ,जिनकी घोड़ी छोटी ट्रेन से भी तेज दौड़ती थी। उनके वंशज आज भी गांव घाठेड़ा,सहारनपुर और करनाल में रहते है।।
🏇🏼🏇🏼🏇🏼🏇🏼🏇🏼🏇🏼🤺🤺🤺🤺🤺🎠🎠🎠🎠 *बुक्स तांत्या टोपे व हिन्दू रोहिला क्षत्रिय इतिहास में उपलब्ध लेख*🏇🏼🏇🏼🏇🏼🏇🏼🎠🎠🎠🤺🤺🤺



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