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Sunday 24 March 2024

SOME FACTS ABOUT ROHILA SANGTHAN

*अतीत और वर्तमान के दर्पण में थिरकते चित्र बोलते हैं, कि उनके होने का प्रमाण क्या है।।*
*1..रोहिला क्षत्रियों के विस्थापन और गदर1857 में उनके विरुद्ध शूट एट साइट का यानी देखते ही गोली मारने का आदेश जारी होने के बाद से परचून की हालत में बिखरना और ब्रिटिश काल में रोहिलखंड में अफगानों के शासन से इनकी पहचान विलुप्त होने के मुख्य कारण पाए गए* *प्रथम विश्व युद्ध के बाद रोहिला क्षत्रिय रोहिला राजपूत सरनेम से संगठित होने आरंभ हुए क्योंकि वक्त बदलता है रक्त नही*
*2..सन1930में युद्ध समाप्ति के एक दशक बाद महारानी विक्टोरिया ने जातिगत जनगणना कराई,पुरानी दिल्ली में जनगणना से समय कोई संगठन सक्रिय नही था,जो मार्ग दर्शन कर सके तो कुछ लोगो ने स्वयं को रोहिला टांक क्षत्रिय,कुछ लोगो ने टांक रोहिला क्षत्रिय लिखवाया और कार्य वही दोनो जिनका हवाला आज भी देते है दुहाई भी देते है,किंतु क्षत्रिय शब्द दोनो तरह से बताने वाले लोगो ने नही छोड़ा क्योंकि वे अपना और अपने पूर्वजों का इतिहास अभी भूले नही थे,इस जनगणना की रिपोर्ट सेंसस कमिश्नर जे एच हटशन ने ब्रिटिश हाई कमिश्नर को22दिसंबर1930, को सौंप दी जिसमे क्लियर अनुमोदित किया कि जाति के हिसाब से इन दोनो मिक्सड शब्दो के उपनाम से रोहिला टांक क्षत्रिय से टांक को अविलंब भिन्न /अलग किया जाए* *अतः सिद्ध होता है कि रोहिला क्षत्रिय उपनाम ब्रिटिश काल से प्रमाणिक है और दोनो समुदाय अलग अलग है**सामान्य क्षत्रिय केटेगरी में उल्लिखित है*
*4.1931 ईसवी में रोहिलखंड से विस्थापित होकर आए परचून की हालत में बिखरे पड़े इन क्षत्रिय परिवारों ने संगठित होने की योजना बनाई, और खुल कर सामने आ गए जबकि स्वतंत्रता के लिए देश भर में आंदोलन और संघर्ष जारी था बहुत से रोहिला राजपूत आजादी की जंग में कूद पड़े,और कही पर रोहिला क्षत्रिय और कही पर रोहिला राजपूत जाने गए ,कुछ स्थानों पर अभी अज्ञात वास जैसी ही हालत रही और पेशेगत जातियों के उपनाम को धारण कर जाने गए,उत्तर भारत में रोहिलखंड राजपूताना से विस्थापन लगभग चार सदी तक चलता रहा और 1720में पूर्णतया रोहिलखंड अफगानों के अधिकार में आ गया और वे खुद रुहेला सरदार /नवाब बन गए,इसके अतिरिक्त भारत में रोहिला क्षत्रियों की काठ ,कठ शाखा की विभिन्न नामों से लगभग69राजपूत रियासते थी जिनका उल्लेख यहां करना अप्रासंगिक है *एक संगठन रोहिला राजपूत नाम से बना जिसने इतिहास रोहिला राजपूत लिखवाए और खोज खोज कर अपने भाईयो को जोड़ा उनके गोत्रों की लिस्ट बनाई दूसरा संगठन रुहेला क्षत्रिय नाम से बना उन्होंने रुहेला क्षत्रिय जाति निर्णय नाम से इतिहास संकलित कराया* 
*5..दिल्ली में कोई संगठन आजादी से पहले नही बन पाया और भारत 1947, में आजाद हो गया* *1970 के दशक में हजारी लाल वर्मा जी जो एक पत्रिका निकालते थे और प्रेस रिपोर्ट भी बनाते थे उन्होंने टांक रोहिला क्षत्रिय नाम के संगठन बनाए जिनकी संख्या दिल्ली में आज लगभग दस है किसी का नाम रोहिला टांक सभा किसी का टांक रोहिला सभा है इनमे अन्य और पेशेगत जातियों के लोग सदस्य है किंतु 2014 तक सामान्य ही रहे यानी क्षत्रिय ही रहे सन2014, में टोंक नाम से दिल्ली में पिछड़े वर्ग में अधिसूचित हुए,रोहिला क्षत्रिय सामान्य में ही है ओबीसी नही है*
*दिल्ली के अंदर टांको के रोहिला राजपूतों के साथ रोहिला टांक महासभा नाम के संगठन होने के कारण कुछ लोगो ने वहां भी पिछड़ी का जिन्न खड़ा कर दिया है और रोहिला राजपूतों का सामान्य में रह जाना हजम नही हो रहा और रोहिला राजपूत को रुहेला जाति बता कर संख्या बढ़ाने की बात कहते हुए पिछड़ी जाति के लिए आवेदन किया गया बताया गया है ,कुछ राजनीतिक महत्वाकांक्षी लोग संख्या बल दिखा कर अपनी पैठ दिल्ली की राजनीति में बनाना चाहते है कि में इतनी पिछड़ी जातियों का सरदार हूं मुझे आम आदमी पार्टी टिकट दे दे यंत्री मनोनित कर दे ऐसे लोग रोहिला क्षत्रिय समाज के अस्तित्व के लिए घातक सिद्ध हो रहे है।अभी सर्वे हो गया बताया गया है किंतु रोहिला एक क्षत्रिय खाप है सरनेम है और सरनेम को जाति नही बनाया जा सकता,इस लिए अभी स्थिति साफ नही रोहिला क्षत्रियो का दिल्ली में क्या होगा पिछड़ी में रुहेला जाति स्वीकार करेंगे या रोहिला राजपूत बने रहेंगे*
*6..1984 में कुछ रोहिला क्षत्रिय लोगो ने निर्णय लिया कि विशुद्ध रोहिला क्षत्रियों का एक अलग संगठन बनाया जाय जिससे भ्रमित हो रहा या क्षत्रिय समाज जो पेशेग्गत जातियों की दल दल में जा रहा है उनकी भीड़ में गुम होता जा रहा है अपनी मौलिक पहचान बनाए और क्षत्रियों की मुख्य धारा की ओर चले, संगठन बन गया इतिहास लिखा गया और1989, के अक्टूबर माह की,22, तारीख को एक महाअधिवेशन बुलाया गया जिसमे इतिहास का विमोचन हो गया और मुख्य धारा के क्षत्रियों ने रोहिला क्षत्रियों को अपना अभिन्न अंग मानते हुए आवाह्न किया कि रोहिला क्षत्रियों को किन्ही अन्य पेशेगत जातियों के स्थान पर अपनी पहचान एक राजपूत/क्षत्रिय के रूप में बनानी चाहिए क्योंकि उनकी वंशावली इतिहास और भूगोल पूर्णतया जीवित है**इस संगठन का नाम रखा गया अखिल भारतीय रोहिला क्षत्रिय विकास परिषद रजिस्टर्ड*
*7..अब दौर चला कि जोर शोर से प्रचार किया जाए इतिहास बताया जाए रोहिला को क्षत्रिय/राजपूत साबित करने में कोर कसर न छोड़ी जाए।। सभी रोहिला क्षत्रिय अति उत्साह से परिपूर्ण रहे और कार्य करते रहे समाज संगठित होने लगा* *1995ईसवी में हरियाणा में रोहिला क्षत्रिय को क्षत्रिय शब्द हटा कर केवल रोहिला को चार पेशेगत जातियों के साथ पिछड़े वर्ग में सात प्रतिशत के आरक्षण में अधिसूचित कराया गया इसमें जो धोखा हो गया और किसने कैसे किया यदि बखान किया जाए तो रोहिला क्षत्रिय समाज के बन ए सभी संगठन के अध्यक्षों नेताओ की भारी भूल उजागर होगी जिससे समाज विघटित हो गया*
*मध्य प्रदेश में एक ही विधान सभा क्षेत्र में रोहिला राजपूतों के लगभग नब्बे गांव है सभी राजपूत ठाकुर पटेल जमींदार है वे किस ई पेशेगत जाति को नही जानते और न ही वे उनसे संबंधित है राजनीति के एक लालची नेता ने रूवला रुवाला नाम की किसी जाति के साथ पिछड़े वर्ग में अधिसूचित कर दिया अपनी वोटो की संख्या बढ़ाने के लालच में हो यो गया कि कोई सामाजिक संगठन नही था किसान संगठन थे*
*8..आज समय आया इलेक्ट्रोनिक मीडिया सोसल मीडिया का और सगठन में वर्चस्व की जंग का संघ संगठन बने रोहिला क्षत्रिय समाज बिखर गया और युवा वर्ग जाग गया जो इतनी जानकारी प्राप्त कर चुका है कि स्वाभिमान से रोहिला राजपूत कहता है और मुख्य धारा में लोटना चाहता है सम्पूर्ण राजपूत क्षत्रिय समाज रोहिला क्षत्रियों को एकता के लिए पुकारता है और पूर्ण सपोर्ट करने लगा है अपने राजपूत संगठनों में लेने के लिए उतारू है रोहिला क्षत्रियों का सम्मान लोटा लाया है आज का युवा और धीरे धीरे आर्थिक हालात भी काबू में आ गए है*
*दूरस्थ गांव की हालत भी ठीक है उनकी पहचान रोहिला क्षत्रिय के नाम से बनती जा रही है युवाओं का सर्किल विस्तृत हो गया सम्मान बढ़ गया है*
*9.इस पुनरोत्थान, पुनरोत्कर्श के काल में क्षत्रिय शब्द का अकाल पड़ गया अचानक ज्ञात हुआ कि उत्तर प्रदेश में भी कुछ महत्वाकांक्षी रोहिला प्रतिनिधियों ने राजनीतिक लाभ लेने और संख्या ओबीसी की बढ़ाने के लालच में निवेदन किया था कि जिस प्रदेश में राजपूताना रोहिलखंड है वहा भी रोहिला राजपूतों को रुहेला जाति मानते हुए पिछड़े वर्ग में डाला जाए*
**10..जबकि आज उत्तर प्रदेश में तीन सो जातियों को जो पिछड़ी है सत्ताइस प्रतिशत आरक्षण नही मिलेगा, संख्याबल और कार्य के आधार पर चार श्रेणी में बांटा गया है, रुहेला जी को पिछड़ी में संभवतः दो प्रतिशत का ही लाभ मिल पाएगा, राजनीतिक लाभ हेतु सम्पूर्ण समाज के अस्तित्व को खतरे में डाल रहे चंद लोग संख्या बल बढ़ाने के लिए अन्य दस जातिगत लोगो में विलय होकर रोहिला राजपूत समाज को उन जातियों का घटक बता कर उनके साथ रुहेला रोहिला सरनेम लिख कर राजनीतिक लाभ लेने हेतु अलग संगठन उनके साथ मिल कर बना लिए है,स्वयंभू नेता बने उनके सरकार को भ्रमित कर रोहिला राजपूत समाज से भी छलावा किया जा रहा है*
*यदि तीन दशक पहले ज्ञान शून्य कुछ समाज के ठेकेदारों ने उत्तर प्रदेश में पिछड़ी के लिए आवेदन कर भी दिया था तो उनसे अधिक शिक्षित आज के ठेकेदारों को जो वर्तमान में रोहिला क्षत्रिय सगठनों के नेता है और उच्चतम शिक्षित है क्या उन्हे वर्तमान स्थिति का आकलन नहीं करना चाहिए था कि अब आर्थिक आधार पर सवर्ण आरक्षण लेने और सामान्य में पजीकृत कराने में लाभ है या पिछड़ी में जाने में, किंतु उन्हें केवल अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकनी है और निजी लाभ हेतु सम्पूर्ण रोहिला क्षत्रिय समाज के उपनाम को उपयोग में लाना है दिमागी कसरत क्यों करे*
*शिक्षा आदमी को आंतरिक रूप से परफेक्ट बनाती है किंतु उच्च शिक्षित आज के नेताओ की मति भ्रष्ट हो गई और सोचने और सामाजिक पहलुओं पर अध्ययन करने की शक्ति शून्य हो गई है अथवा कोई समय नहीं लगाना चाहते और फालतू मे नेता बन गले में मालाएं डलवाते और राजपूताना पगड़ी धारण कर उसकी लाज गंवाते फिरते है समाज की कोई चिंता नहीं अपनी चमक के सामने*
*यह कार्य चंद लोगो ने अपनी मर्जी से किया बताया गया जिसमें उत्तर प्रदेश में निवास करने वाले हर आयु वर्ग के रोहिला राजपूत/,,क्षत्रिय परिवारों की कोई लिखित प्रस्तावित वार्ता रूपी सलाह सहमति नही है* 
*इस लिए सभी छ संगठनों ने जो रोहिला क्षत्रिय शब्द के साथ बने थे क्षत्रिय बोलना छोड़ दिया है ताकि पिछड़ी में आने में कोई अड़चन क्षत्रिय खुद को कहने में न आ जाए इसे कहते है आज वक्त बदलता है तो रक्त भी बदल जाता है पुरानी कहावत गलत सिद्ध हुई*
*प्रश्न*
*कृपया बताए सभी पाठक कि अचानक आई इस राजनीतिक बिसात की दूषित हवा के झोंके में सामाजिक सगठनों के राजनीतिक सगठनों में परिवर्तन को कैसे रोका जाए और किया क्या जाए या कुछ न किया जाए क्या ठीक होगा या गलत होगा*
*भावी पीढ़ी का भविष्य लिखने वाले वर्तमान नेतृत्व को क्या अधिकार है कोई* ????
*कुछ बदलते परिवेश को ध्यान में रखते हुए चंद शब्दो में अपनी राय दे क्योंकि सभी रोहिला क्षत्रिय सगठनों का नब्बे वर्षो का सफर निरर्थक होता जा रहा है जहां से आरंभ किया था वही अंत होने जा रहा है जो पहचान रोहिला राजपूत समाज की बनी थी उसे निजी लाभ हेतु धूल धूसरित किया जा रहा है सामाजिक नेता ज्ञान,स्वाभिमान शून्य होकर पिछलग्गू बन कर रोहिला क्षत्रिय समाज के साथ छलावा करने पर आमदा हो रहे है इस लिए आत्म चिंतन करते हुए रोहिला क्षत्रिय समाज के हितों की रक्षा के लिए सोचिए, कि आज ओबीसी में जाने में रोहिला क्षत्रिय समाज का कितना नुकसान हो जायेगा और कुछ अवश्य बोलिए आपकी अति कृपा होगी और भावी पीढ़ी का मार्ग दर्शन और भविष्य निर्धारण भी*
*धन्यवाद*
*निवेदक*
*हम आपके है कोण????*

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