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Thursday 14 March 2024

MAHARAJA RANVEER SINGH ROHILA ROHILKHAND NARESH

*राजपुताना कठेहर रोहिलखंड*
के एक महान पराक्रमी योद्धा 
सूर्य वंशी क्षत्रिय सम्राट
*एक अजेय योद्धा*
*महाराजा रणवीर सिहं जी*

      *संक्षिप्त परिचय*
************************* *जन्म दिवस* 25 अक्टूबर, 1204 तदानुसार तत्कालीन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की प्रथमा तिथि संवत 1147विक्रमी
#पिता* महाराज त्रिलोक सिंह जी
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*वंश* सूर्य/ रघु वंश , सूर्यवंश की निकुंभ शाखा
वेद _यजुर वेद,उपवेद__धनुर्वेद,प्रवर_एक/तीन , शिखा_दाहिनी, पाद_दाहिनी,सूत्र _गुभेल,देवता__विष्णु (रघुनाथ जी), कुलदेवी _चावड़ा/कालिका माता,ध्वजा__गरुड़,नदी__सरयू,झंडा पंच रंगा,नगाड़ा_रण गंजन , ईष्ट_रघुनाथ/श्री राम चंद्र जी,उद्घोष_हर हर महादेव गोत्र_वशिष्ठ गुणधर्म _काठी (कठोर) गद्दी _ अयोध्या,ठिकाना__रावी व व्यास नदियों के बीच के काठे का क्षेत्र 
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#राज्य विस्तार*
◆गंगा - यमुना दोआब क्षेत्र #दक्षिण पश्चिम में गंगा तक #पश्चिम में उत्तराखंड 
#उत्तर में नेपाल तक
*क्षेत्रफल* 25000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र या 10000 वर्ग मील क्षेत्र तक 

# सूबे* 
पांचाल, 
मध्यदेश,
कठेहर, (रोहिलखण्ड)
*राजधानी* -रामपुर (निकट अहिक्षेत्र, रामनगर) कांपिल्य
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(तेहरवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध)

🔆सूर्यवंश🔆
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#आइए इतिहास में चलें*
* रघु वंश में सूर्य वंशी महाराज भरत के वंशधर निकुम्भ ई●पू● 326 वर्ष कठगण राज्य (रावी नदी के काठे में) सिकन्दर का आक्रमण काल-राजधानी सांकल दुर्ग (वर्तमान स्यालकोट) 53 वीं पीढ़ी में  राजा अजयराव के वंशधर निकुम्भ वंशी राजस्थान अलवर, मंगल गढ़ जैसलमेर होते हुए गुजरात सौराष्ट्र कठियावाड , फिर पांचाल, मध्यदेश गये। 
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*अलवर में दुर्ग निकुम्भ वंशी (कठ क्षत्रिय रावी नदी के काठे से विस्थापित कठ-ंगण) क्षत्रियों ने बनवाया (राज्य मंगल गढ़), सौराष्ट्र में काठियावाड़ की स्थापना की ।
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 #मध्यदेश के उत्तरी पांचाल में कठेहर रोहिलखंड राज्य की स्थापना (कन्नौज के पतन के पश्चात्) की। यहां अहिक्षेत्र के पास रामनगर गांव मे राजधानी स्थापित की, ऊंचा गांव मझगांवा को सैनिक छावनी बनाया। यहां पर शासक हंसदेव, रहे, इनके पुत्र हंसबेध राजा बने-ं816 ई. तक- इसी वंश में राजा रामशाही (राम सिंह जी ) ने रामपुर गांव को एक नगर का रूप दिया और *909 ई में कठेहर- रोहिलखण्ड प्रान्त की राजधानी रामपुर में स्थापित की। 
#यहां पर कठ क्षत्रियों ने 11 पीढ़ी शासन किया इसी वंश में महापराक्रमी, विधर्मी संहारक राजा रणवीर
सिंह रोहिला का जन्म कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की प्रथमा तिथि तदानुसार 25 अक्टूबर 1204ईसवी को राजपूत काल के ऐसे समय में हुआ जब महराजा पृथ्वी राज चौहान के शासन अंत के कारण समस्त राजपूत शक्ति क्षीण हो चुकी थी ओर मुस्लिम आक्रांता इस्लामिक सल्तनत कायम करने में लगे थे बची हुई राजपूत शक्तियों का बहुत कठोरता ओर बर्बरता से दमन कर रहे  थे हिंदुआ सूर्य चौहान का शासन अस्त हो चुका था ।
वंश वृक्ष इस प्रकार पाया गया
रामपुर संस्थापक राजा राम सिंह उर्फ रामशाह 909 ई. में 966 विक्रमी , 3 पौत्र- बीजयराज 4. करणचन्द 5. विग्रह राज 6. सावन्त सिंह (रोहिलखण्ड का विस्तार गंगापार कर यमुना तक किया,) सिरसापाल के राज्य सरसावा में एक किले का निर्माण कराया। (दशवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध) नकुड रोड पर किले को आज यमुना द्वारा ध्वस्त एक टीले के रूप में देखा जा सकता है। 7. जगमाल 8 धिंगतराम 9 गोकुल सिंह 10 महासहाय 11 त्रिलोकसिंह 12रणवीर सिंह( 1204 ),नौरंग देव (पिंगू को परास्त किया) (राजपूत गजट लाहौर 04.06.1940 द्वारा डा0 
सन्त सिंह चैहान)
इक्कीस वर्ष की आयु में रामपुर के राजा त्रिलोक चंद उर्फ त्रिलोक सिंह के पुत्र रणवीर सिंह रोहिला का विवाह विजयपुर सीकरी की राजकुमारी तारा देवी से हुआ। रणवीर सिंह रोहिला का राजतिलक भी इसी वर्ष इक्कीस वर्ष की आयु में हुआ यानी 1225,ईसवी में हुआ ,इनकी लंबाई लगभग सात फीट थी, कंधो पर सीना कवच लगभग साठ शेर ,सिर पर कवच लोहे का इक्कीस सेर खड़ग का वजन 25, सेर ओर स्वयं उनका वजन 125 सेर था। सन् 1236से1240तक रजया तुदीन सुल्तान1242मइजुद्दीन बहराम शाह,1246 अलाउद्दीन महमूद शाह आदि दिल्ली सुल्तान सेनाओं से राजा रणवीर सिंह रोहिला ने कठेहर रोहिलखंड का लोहा मनवाया ओर किसी भी दिल्ली सुल्तान मामुल्क को रोहिलखंड में प्रवेश नहीं होने दिया । इनके साथ विभिन्न राजवंशों के चौरासी अजेय योद्धा थे ,राठौड़, गोड, चौहान,वारेचा परमार गहलोत वच्छिल आदि थे वे सब लोहे के कवच धारी थे।
दिल्ली सुल्तान के 
गुलाम , सेनापति नासिरूद्दीन चंगेज उर्फ नासिरूद्दीन महमूद ने , सन् 1253 ई0,में दोआब, कठेहर, शिवालिक पंजाब, बिजनौर आदि क्षेत्रों पर विजय पाने के लिए दमनकारी अभियान किया। इतने अत्याचार , मारकाट तबाही मचाई कि विद्रोह करने वाले स्थानीय शासक, बच्चे व स्त्रियां भी सुरक्षित नहीं रही। ऐसी विषम परिस्थिति में रोहिल खण्ड के रोहिला शासकों ने दिल्ली सल्तनत के सूबेदार‘ ताजुल मुल्क इज्जूददीन डोमिशी‘ को मार डाला। दिल्ली सल्तनत के लिये यह घटना भीषण चुनौती समझी गई। इस समय रामपुर के राजा रणवीर सिंह थे । उन्होनें आस पास की समस्त राजपूत शक्तियों को एकता के सूत्र में बांधा ओर दिल्ली सल्तनत के विरूद्ध अपनी क्रान्तिकारी प्रवृत्ति को सजीव बनाये रखा था जिससे दिल्ली सुल्तान कठेहर पर आक्रमण करते हुए भय खाते थे ,नासिरूद्दीन महमूद बहराम गुलाम वंश ( उर्फ चंगेज) इस घटना से उद्वेलित हो उठा और सहारनपुर ‘ उशीनर प्रदेश‘ के मण्डावार व मायापुर से 1253 ई0 में गंगापार कर गया और विद्रोह को दबाता हुआ, रोहिलखण्ड को रौदता हुआ बदांयू पहुंचा। वहां उसे ज्ञात हुआ कि रामपुर में राजा रणवीर सिंह रोहिला के साथ लोहे के कवचधारी 84 रोहिले है जिनसे विजय पाना टेढ़ी खीर है। सूचना दिल्ली भेजी गई। दिल्ली दरबार में सन्नाटा हो गया कि एक छोटे राज्य कठेहर रोहिलखंड के रोहिलों से कैसे छीना जाए। नासिरूद्दीन चंगेज (महमूद) ने तलवार व बीड़ा उठाकर राजा रणवीर सिंह के साथ युद्ध करने की घोषणा की। रामपुर व पीलीभीत के बीच मैदान में नसीरुद्दीन व कठेहर नरेश सूर्य वंशी क्षत्रिय रणवीर सिंह की सेना के बीच भयंकर युद्ध हुआ, 6000 रोहिला राजपूत व 
 84 लोहे के कवचधारी रन्धेलवंशी सेना नायकों की सेना के सामने नासिरूद्दीन की तीस हजारी सेना के पैर उखड़ गये।
      नासिरूद्दीन चंगेज को बन्दी बना लिया गया। बची हुई सेना के हाथी व घोडे तथा एक लाख रूपये महाराज रणवीर सिंह को देने की प्रार्थना पर आगे ऐसा अत्याचार न करने की शपथ लेकर नासिरूद्दीन महमूद ने प्राण दान मांग लिया। क्षात्र धर्म के अनुसार शरणागत को अभयदान देकर राजा रणवीर सिंह ने उसे छोड़ दिया। परन्तु धोखेबाज महमूद जो राजा रणवीर सिंह पर विजय पाने का बीड़ा उठाकर दिल्ली से आया था, षडयंत्रों में लग गया। राजा रणवीर सिंह का एक दरबारी पं. गोकुलराम पाण्डेय था। उसे रामपुर का राजा नियुक्त करने का लालच देकर महमूद ने विश्वास में ले लिया और रामपुर के किले का भेद लेता रहा। पं. गोकुल राम ने लालच के वशीभूत होकर विधर्मी को बता दिया कि रक्षांबधन के दिन सभी राजपूत निःशस्त्र होकर शिव मन्दिर में शस्त्र पूजा करेंगें।यह शिव मन्दिर किले के दक्षिण द्वार के समीप है , यह सुनकर महमूद का चेहरा खिल उठा और दिल्ली से भारी सेना को मंगाकर जमावड़ा प्रारम्भ कर दिया रक्षाबन्धन का दिन आ गया। किले में उपस्थित सभी सैनिक, सेनाायक अपने-ंअपने शस्त्रों को उतार कर पूजा स्थान पर शिव मन्दिर ले जा रहे थे। गोकुल राम पाण्डेय यह सब सूचना विधर्मी तक पहुंचाता रहा। श्वेत ध्वज सामने रखकर दक्षिण द्वार पर पठानों की गुलामवंशी सेना एकत्र हो गयी। पूजा में तल्लीन राज पुत्रों को पाकर गोकुलराम पाण्डेय ने द्वार खोल दिया।
      शिव उपासना में रत सभी उपस्थितों को घेरे में ले लिया गया। समस्त राजपूत भौचक्के रह गए ओर मन्दिर से तुलसी का पत्ता लिया ओर मुंह में दबा कर शाका बोल दिया,घमासान युद्ध छिड़ गया परन्तु ऐसी गद्दारी के कारण राजा रणवीर सिंह ने निशस्त्र लड़ते हुए अदम्य साहस ओर शोर्य का परिचय दिया ओर महमूद के सैनिकों से भिड़ गए अद्भुत दृश्य था रणवीर सिंह चारो ओर से विधर्मी सैनिकों से घिरे युद्ध कर रहे थे विधर्मी की खड़ग छीन ली ओर आक्रांताओं के शीश कट कट गिरने लगे , उस समय रामपुर के किले में केवल तीन हजार राजपूत ही उपस्थित थे ओर वे भी निहत्थे रह गए थे सभी राजपूत बड़ी वीरता से लडे किन्तु संख्या में कम होने के कारण बिखर गए, रणवीर सिंह रोहिला की पीठ पर विधर्मी सेना ने तलवार से वार करके काट डाला ओर अंतिम बूंद रक्त की रहने तक रणवीर धराशाई नहीं हुए यह देख कर नसीरुद्दीन चकित रह गया देखते ही देखते कठेहर नरेश वीरगति को प्राप्त हुए। नासिरूद्दीन ने पं. गोकुल राम से कहा कि जिसका नमक खाया अब तुम उसी के नहीं हुए तो तुम्हारा भी संहार अनिवार्य है। नमक हरामी को जीने का हक नहीं है। गोकुल का धड़ भी सिर से अलग पड़ा था। सभी स्त्री बच्चों को लेकर रणवीर सिंह का भाई सूरत सिंह उर्फ सुजान सिंह किले से पलायन कर गया । महारानी तारादेवी जो विजय पुर सीकरी के राजा की पुत्री थी राजा रणवीर सिंह के साथ सती हो गई। 
रामपुर में किले के खण्डरात, सती तारादेवी का मन्दिर तथा उनका राजमहल अभी तक एक ध्वस्त टीले के रूप में मौजूद है, जो क्षात्र धर्म का परिचायक व रामपुर में रोहिला क्षत्रियों की कठ-शाखा के शासन काल की याद ताजा करता है जिन्होंने अपना सर्वस्व बलिदान कर क्षात्र धर्म की रक्षा की। गुलाम वंश, सल्तनत काल में विधर्मी की पराधीनता कभी स्वीकार नहीं की। अन्तिम सांस तक दिल्ली सल्तनत से युद्ध किया और कितनी ही बार धूल चटाई तथा रोहिलखण्ड को स्वतंत्र राज्य बनाये रखा। निरन्तर संघर्ष करते रहे राजा रणवीर सिंह का बलिदान व्यर्थ नहीं , सदैव तुगलक, मंगोल , मुगलों आदि से विद्रोह किया और स्वतंत्र रहने की भावना को सजीव रखा। राणा रणवीर सिंह के वंशधर आज भी रोहिला-ंक्षत्रियों में पाए जाते हे,जय राजपुताना कठेहर रोहिलखंड
उनकी पावन स्मृति को जीवित रखने व रोहिलखंड राजपुताना की वीर गाथा को सजीव बनाए रखने के लिए भारत का समस्त रोहिला क्षत्रिय राजपूत समाज रक्षा बन्धन को शोर्य दिवस तथा पच्चीस अक्टूबर को प्रतिवर्ष स्वाभिमान दिवस के रूप में मनाता हे ओर शस्त्र पूजा करता है । उत्तर भारत के महानगर बड़ौत में राजा रणवीर सिंह रोहिला मार्ग व ऐतिहासिक नगर सहारनपुर में आज महाराजा रण वीर सिंह रोहिला चौक स्थित है। (संदर्भ__इतिहास रोहिला राजपूत द्वारा डॉक्टर के सी सेन, रोहिला क्षत्रियों का क्रमबद्ध इतिहास द्वारा श्री दर्शन लाल रोहिला, रोहिला क्षत्रिय वंश भास्कर द्वारा आर आर राजपूत, रोहिला क्षत्रिय जाति निर्णय द्वारा राय भीम राज राजभाट बड़वा जी का बाड़ा तूंगा राजस्थान, काठी कठेरिया क्षत्रिय व रोहिला राजपूत द्वारा महेश सिंह कठाय त नेपाल , मध्य कालीन भारत द्वारा ठाकुर अजित सिंह परिहार बाला घाट मध्य प्रदेश  
संकलन व लेखन 
समय सिंह पुंडीर
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क्षत्रिय/राजपूत वाटिका
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा

*सनातन रक्षक,विधर्मी संहारक और लगभग तीस वर्ष तक आक्रांताओं द्वारा किए जा रहे इस्लामी करण को रोकने वाले राजपूत सम्राट रोहिलखंड नरेश महाराजा रणवीर सिंह रोहिला की जयंती सभी क्षत्रिय भाई स्वाधीनता और स्वाभिमान दिवस के रूप में मनाते हैं*

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